शनिवार, 11 अक्तूबर 2008

दुर्लभ और संकटापन्न औषधियों को संरक्षित रखता है-एनएमपीबी

दुर्लभ और संकटापन्न औषधियों को संरक्षित रखता है-एनएमपीबी

पीबी बी.एस.सजवान

राष्ट्रीय औषधीय वनस्पति बोर्ड (एनएमपीबी) का नवम्बर, 2000 में आयुष विभाग के तौर पर गठन कर दिया गया। यह विभाग औषधीय वनस्पतियों की सुरक्षा और खेती के लिए की जाने वाली पहलों के लिए उत्तरदायी है। 9वीं और 10वीं योजना के दौरान, बोर्ड ने करीब 30,000 हेक्टेअर क्षेत्र में औषधीय वनस्पतियों के संरक्षण के लिए राज्य वन विभागों और स्वयंसेवी एजेन्सियों को सहायता प्रदान की। 40,000 हेक्टेअर में औषधीय वनस्पतियों की खेती के लिए 5000 किसानों को  वित्तीय सहायता भी प्रदान की गई। इसके अतिरिक्त कृषि तकनीकों, किसानों को प्रशिक्षण, प्राथमिक संग्राहकों, जनजातियों और अन्य के विकास के लिए बहुत से अनुसंधान और विकास संस्थानों और विश्वविद्यालयों को सहायता प्रदान की गई। जागरूकता शिविरोें, कार्यशालाआें को लगाने, विद्यालयों और गृह औषधी बागीचों के निर्माण से समाज के सभी वर्गो में औषधीय वनस्पतियों की सुरक्षा औेर स्वास्थ्य देखभाल में उनकी भूमिका के प्रति गहरी रूचि जाग्रत हुई है।

       बोर्ड द्वारा 2007-08 के दौरान भारत में औषधीय वनस्पतियों की मांग और आपूर्ति के लिए किये गये एक अध्ययन में, आयुर्वेदिक उद्योग द्वारा उपयोग की जाने वाली कुछ वनस्पतियों की कमी चिन्ताजनक रूप से सामने आई। इसके बाद, बोर्ड ने राज्यों द्वारा अत्यधिक मात्रा में मांगी जाने वाली कुछ दुर्लभ और संकटापन्न औषध जातियों के संरक्षण और रोपण के लिए विशेष प्रस्तावों के आमंत्रण द्वारा एक विशेष मुहिम की शुरूआत की थी। इसके अंतर्गत विशेषतौर पर, स्त्रीजन्य रोगों में एक प्रमुख आयुर्वेदिक औषधी अशोकारिष्ट के लिए सीता अशोक (सैरेक्कासोका), 100 से ज्यादा आयुर्वेदिक औषधियों में प्रयोग की जाने वाली एक वनस्पतियुक्त झाड़ी गुग्गल (काम्मीफोरा विगहिट्टी) जिसमें गोंद जैसी राल निकली है और दशमूलारिष्ट सहित अधिकतर आयुर्वेदिक सत्वों में उपयोग किये  जाने वाले औषध- दशमूल जैसे विशेष औषधियुक्त पेड़ों के प्रति खास ध्यान दिया गया। सीता अशोक छाल की अनुमानत: मांग 2,000 मीट्रिक टन से ज्यादा है जबकि वनों में इसकी उपलब्धता बेहद दुर्लभ है। इसी तरह, आयुर्वेदिक उद्योग द्वारा 1,000 मीट्रिक टन से ज्यादा उपयोग की जाने वाली गुग्गल की गोंद का 90 प्रतिशत से ज्यादा आयात किया जाता है।

       इसलिए बोर्ड ने गुग्गल के पौधारोपण और संरक्षण के लिए गुजरात और राजस्थान के वन क्षेत्रों में 4,000 हेक्टेअर, सीता अशोक के लिए कर्नाटक, उड़ीसा और केरल में 800 हेक्टेअर और दशमूल वृक्षों के लिए गुजरात, मध्य प्रदेश, तमिलनाडू, कर्नाटक, केरल, त्रिपुरा और आंध्र प्रदेश में 1,100 हेक्टेअर भूमि को मंजूरी दे दी है।

       अत्यधिक ऊॅंचाई पर होने वाली एटीस, कुथ, कुटकी जैसी महत्वपूर्ण वनस्पतियों के संरक्षण और प्रवर्धन के लिए हिमालय में जमीनी स्तर पर कार्य करने वाले गैर-सरकारी संगठनों के माध्यम से एक विशेष मुहिम की शुरूआत भी की गई है। बोर्ड द्वारा श्री चांदी प्रकाश भट्ट की अध्यक्षता में ऊंॅचाई वाले क्षेत्रों में औषधीय वनस्पति पर एक कार्य बल का गठन भी किया गया है जिसका प्रमुख उदे्श्य पहाड़ों में नागरिक समाज की सक्रियता के माध्यम से संरक्षण प्रयासों को चलाना है।

       औषधीय वनस्पतियों के संरक्षण के लिए विद्यालय और गृह औषध बगीचे जैसे जागरूकता कार्यक्रम नागरिक समाज में बहुत अधिक लोकप्रिय हो चुके हैं। केन्द्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री ने रेजिडेन्ट वैलफेयर एसोसिएशनों के माध्यम से कार्यान्वित गृह औषध बगीचा कार्यक्रम का शुभारम्भ अक्टूबर, 2007 में किया था और इसे वर्तमान वर्ष के दौरान और अधिक बढ़ाने का प्रस्ताव है। विद्यालय औषध बगीचा कार्यक्रम के अंतर्गत, हमारे स्वास्थ्य संवर्ध्दन में जैव-विविधता की भूमिका के प्रति कल के नागरिकों में जागरूकता पैदा करने के लिए देश के विभिन्न भागों में 1000 से ज्यादा विद्यालयों को इसमें शामिल किया गया है। बोर्ड 11वीं योजना के दौरान नए कदम उठा रहा हैं। 10वीं योजना में व्यय किये गये 142 करोड़ रू0 की तुलना में 11वीं योजना के दौरान इसमें सात गुना वृध्दि करते हुए 990 करोड़ रू0 का प्रावधान है। औषधीय वनस्पतियों पर राष्ट्रीय अभियान के रूप में एक नई पहल को सरकार द्वारा स्वीकृति दी जा चुकी है जिसका उदे्श्य बाजार के अनुरूप खेती, औषधीय वनस्पतियों के माध्यम से कृषि व्यवसाय में महत्वपूर्ण वृध्दि के लिए संभावित चुनींदा समूहों के विकास पर ध्यान तथा इसके फलस्वरूप, उत्पादकों#किसानों की अपने उत्पादन के अधिक लाभकारी मूल्यों हेतु बाजार पहुँच में सुधार और आयुर्वेदिक, सिध्दा और यूनानी उद्योग के लिए बेहतर  किस्म के कच्चे माल को प्रोत्साहन देना है।

 

मुख्य कार्यकारी अधिकारी, एपएमपीबी, चंद्रलोक भवन, नई दिल्ली

 

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