शनिवार, 12 जून 2010

सॉंप तो निकल गया, लकीर काहे धुन रहे हो... अर्जुन सिंह बोलें या न बोलें फर्क क्‍या पड़ता है भाई- नरेन्‍द्र सिंह तोमर ‘’आनन्‍द’’

सॉंप तो निकल गया, लकीर काहे धुन रहे हो... अर्जुन सिंह बोलें या न बोलें फर्क क्‍या पड़ता है भाई  

नरेन्‍द्र सिंह तोमर ''आनन्‍द''

आज 26 साल बाद 1984 में घटित घटना और मुल्जिम की फरारी के बाद हमारे नेता और देशवासी जागे हैं कि कोई फरार हो गया । इन पठ्ठों में से एक को भी 26 साल तक ये सुध नहीं आई कि एण्‍डरसन नामक कोई जीव भारत से गायब है और भारत की अदालत में वह गैर हाजिर चल रहा है ।

उफ दर्दनाक 26 साल , सोते रहे नेता और देश के लोग , पता ही नहीं चला कि एण्‍डरसन महोदय फरार हैं , हैं न कमाल की बात । आज सब चिल्‍लपों मचा रहे हैं , सब टेटुआ फाड़ रहे हैं कि एण्‍डरसन फरार है । वाह रे देश वाह रे नेता , वाह रे पत्रकार , वाह रे अखबार । वाह री अदालत । 26 साल सोये रहे तो अब नर्रा भी काहे को रहे हो । क्‍या होगा टेंटुआ फाड़ने से ... एण्‍डरसन दौड़ता हुआ आयेगा कि हुजूर हम आ गये हैं , हमें जेल भेज दीजिये । जम कर ठहाका लगाने को जी चाहता है , इन मूर्ख देश वासीयों पर ।

लोग चिल्‍ला रहे हैं, नेता चिल्‍ला रहे हैं कि अर्जुन सिंह कुछ बोलो , कुछ बोलो सरकार , किसी को लपेट दो अपनी बोलती खोल के ।

भारत की राजनीति ही ऐसी है , यहॉं नेताओं को न तो भोपाल में गैस से मरे और पीडि़तों से भी कुछ लेना देना या सरोकार नहीं है और न एण्‍डरसन की फरारी से , सबको अपने अपने विरोधी नेताओं को मौका बखत मिलते ही चटकाने की पड़ी रहती है । सो दॉंव और मौका कोई नहीं चूकना चाहता । सबको पड़ी हे कि भोपाल गैस पीडि़त चाहे भाड़ में जायें , चाहे ससुरा एण्‍डरसन लाख दफा हाथ न आये लेकिन जलती आग है , हाथ सेंक ही डालो , कोई न कोई नेता तो निपटे । सब अपने अपने विरोधी नेताओं को निपटाने की जुगत में लगे हैं ।

किसी ने भी अब तक ये नहीं कहा कि एण्‍डरसन को कैसे वापस लायें , कैसे उसे पकड़ कर भारत की जेल के सीखचें में बन्‍द करें, कैसे उस फरारी को को पकड़ें । कोई एण्‍डरसन को लाने या पकड़ने की तो बात कर ही नहीं रहा ।

सब एक सुर में मेंढक टर्रा रहे हैं कि वो भागा कैसे, अरे नादानो उसे सजा पड़ चुकी है , वह भागा तो 26 साल पहले था , आज नहीं , उसके भागने का मसला या बात करनी थी तो 26 साल तक करनी थी , आज तो उसे सजा के लिये हासिल करना जरूरी है , उसे हासिल करने की बात क्‍यों नहीं कर रहे हो भाई ।

लोग लगे हैं अर्जुन सिंह बोलो , बोलो अर्जुन सिंह .. मैं पूछता हूं कि अर्जुन सिंह बोलेंगे भी तो भोपाल पीडि़तों को न्‍याय मिल जायेगा क्‍या या एण्‍डरसन लौट आयेगा ... या फिर इरादे क्‍या हैं जानी किस किस नेता को गैस काण्‍उ की आड़ में निबटाने के मंसूबे सजाये बैठे हो । बहरहाल हमें तो शक हैं कि ये सब के सब ही एक न एक एण्‍डरसन हैं , वह एण्‍डरसन तो लापरवाह करके एक ही रात में मौत की दवा बॉंट गयर लेकिन ये नेता तो रोज ही देश को गन्‍दी राजनीति से मौत बॉंट रहे हैं , इन्‍हें सजा कौन सुनायेगा । जय हिन्‍द , जय भारत ।

 

गुरुवार, 3 जून 2010

ऐसा भी होता है - जिन्‍दगी मुर्दारो पे रहम नहीं खाती , घर बैठे मंजिल नहीं आती – भाग- 1

ऐसा भी होता है - जिन्‍दगी मुर्दारो पे रहम नहीं खाती , घर बैठे मंजिल नहीं आती भाग- 1

(सच्‍चे घटनाक्रमों पर आधारित सच्‍ची वृत्तान्‍त श्रंखला , ये भी जिन्‍दगी जीने का एक स्‍टाइल है )

नरेन्‍द्र सिंह तोमर '''आनन्‍द''

अभी चन्‍द रोज पहले मुझे पॉंच ई मेल मिले जो कुछ अलग हट कर थे और अलग राम कहानी बयां कर रहे थे । दो ई मेल दो लड़कियों के थे, एक ई मेल एक वृद्ध का और एक दिल्‍ली या हरियाणा के किसी सज्‍जन का था । पॉंचों ई मेल में मुझसे अर्जेण्‍ट सहायता की गुहार की गयी थी ।

मैं सभी ई मेल को गौर से पढ़कर , हर जवाब देने लायक ई मेल का उत्‍तर भी देता हूं , मैंने उनके भी उत्‍तर दिये, हालांकि अधिक बिजली कटौती के चलते पिछले कुछ दिनों से यह क्रम भंग हो गया है ।

नवयुवतियों ने लिखा कि वे कुछ बोल्‍ड कदम उठाना चाहतीं हैं लेकिन सामाजिक परिवेश और संस्‍कृति उनकी राह में आड़े आ रही है , यदि मैं उनकी मदद करूं तो वे अपने मकसद आसानी से पा सकेगीं , इसी प्रकार वृद्ध सज्‍जन का कहना था कि उनके केवल एक पुत्र था , जिसका विवाह हुआ उसकी पत्‍नी और उसकी एक लड़की है , उनके पुत्र का एक झगड़े में लगी अन्‍दरूनी चोट के चलते काफी पहले निधन हो गया , अब उन्‍हें बहू की और उसकी बेटी जो कि 18 या 19 साल की है, की बेहद चिन्‍ता है , वे वृद्ध पति पत्‍नी अबकाफी वृद्ध हो चुके हैं और अब उनके जीवन का कोई भरोसा नहीं है , उनके पास बीच शहर में एक मकान, एक लायसेसी बन्‍दूक, और कुछ जमा पूंजी है, वे जल्‍दी से जल्‍दी अपनी सारी सम्‍पत्ति और बन्‍दूक आदि मेरे नाम करके मुझे देना चाहते हैं , वे चल फिर पाने में असमर्थ हैं, उन्‍होंने मेरे द्वारा उनकी पिछले समय में की गयीं कुछ विशेष मददों का हवाला दिया और मुझ पर विश्‍वास करने की लम्‍बी चौड़ी वजहें लिख डालीं , एवज में वे चाहते थे कि मैं उनकी बहू को और नातिन को अपने संरक्षण में ले लूं , उनकी बहू युवा और खूबसूरत है , नातिन भी खूबसूरत है , जिनकी रक्षा मैं ही कर सकता हूं ... वगैरह वगैरह  उनका पत्र लम्‍बा और बेहद मर्मस्‍पर्शी था । मैंने अपनी स्‍मृति पर जोर डाला तो कुछ साल पहले अपने रूटीन में मैंने उनकी मदद की थी , कुछ गुण्‍डे बदमाश उनकी संपत्ति पर कब्‍जा करना चाहते थे तो कुछ उनकी युवा बहू और नातिन के पीछे पड़े थे । मैंने उन्‍हें समस्‍या से छुटकारा दिलाया था , हालांकि तब भी शायद ऐसी ही बातें उन्होंने कीं थीं , लेकिन मैंने एक झटके में ही उनके आफर को ठुकरा दिया था, तब वे आये थे तो बेहद डरे ओर घबराये हुये थे , मेरे पास आते ही दोनों वृद्ध पति पत्‍नी सीधे ही मेरे पांवों में गिरकर बिलखने लगे, फूट फूट कर रोने लगे थे ।

मैं उस दिन अपने रूटीन में बेठा अपना कामकाज निबटा रहा था, शायद हल्‍की सर्दियां थीं लोग काफी मेरे पास बैठे थे , मैं सबकी समस्‍यायें सुन कर उन्‍हें निबटाता जा रहा था । अचानक मेरी नजर दरवाजे के बाहर खड़े उन वृद्धों पर पड़ी, जो शायद मेरे पास तक आने में मेरा दरवाजा पार करने में डर रहे थे या संकोच कर रहे थे, या शायद बाहर वी.आई.पी. यों की गाडि़यों को देख कर अंदर आने में हिचकिचा रहे थे, मेरी जैसे ही उन पर नजर पड़ी, मैंने आवाज देकर उन्‍हें भीतर आने को कहा , उस समय कुछ वी.आई.पी. भी मेरे पास बैठे थे जिनके कुछ अर्जेण्‍ट काम निबटाने थे, ऐसे में उन वृद्धों को आवाज देकर बुलाना और सबसे पहले उनकी समस्‍या परेशानी पूछना, वी.आई.पी. को शायद अजीब लगा , लेकिन वे चुप रहे और शायद मेरी हरकत से उन्‍होंने अपने अपमान का घूंट ही पिया होगा । लेकिन उस वक्‍त मौन रहना उनकी मजबूरी थी वरना मेरे स्‍वभाव से सब भली भांति वाकिफ थे कि हम फिर क्‍या निर्णय लेते ।

वृद्ध पति पत्‍नी आते ही सीधे मेरे पॉंवों में गिरकर फूट फूट कर रोने लगे , मुझे वृद्धों के चरण स्‍पर्श करने और उनका आशीर्वाद लेने की आदत है लेकिन अचानक करिश्‍माई ढंग से उल्‍टा पुल्‍टा हो गया और वे मेरे पॉंवो से इस कदर लिपटे थे कि छोड़ ही नहीं रहे थे , बुरी तरह बिलख रहे थे । मुझे लगा कि इन्‍हें कुछ समय रो ही लेने दिया जायेगा तो ठीक रहेगा , इन्‍हें पहले इनके दुख के बांध तोड़ लेने दो, रो लेने दो जब बांध खाली हो जायेगा तभी ये अपनी बात मुझसे कह पायेंगे ।

कुछ समय जब वे नॉर्मल होकर चुप हुये तो मैंनें उन्‍हें बेठने को कहा , मेरे पास कुर्सी सोफे कम ही रहते हैं, और अधिक लोग आ जायें तो उनमें से कुछ को कुद समय बाहर ही इंतजार करना पड़ेगा, उस समय वी.आई.पी. कुर्सी सोफे घेरे बैठे थे, वृद्ध पति पत्‍नी लपक कर जमीन पर यानि फर्श पर बैठ गये ।  मुझे अजीब लगा, वी.आईपी. में से किसी ने भी उनके लिये जगह खाली नहीं की, मैंने यह बात गंभीरता से नोट की, हालांकि चेहरे पर कोई भाव नहीं प्रकट किये लेकिन तय कर लिया कि इन सालों को भी इन वृद्धों जैसे हाल में ले जाकर लटकाऊंगा । खैर वृद्धों ने अपनी समस्‍या , परेशानी रोते रोते बताई वही जो मै ऊपर लिख चुका हूं , साथ ही पूरी कहानी विस्‍तार से मैंनें अपने तरीके से उनके अन्‍दर से निकलवा ली , पता चला कि वे वृद्ध उ.प्र. पुलिस से सेवा निवृत्‍त हैं, इस दरम्‍यान हमारे वी.आई.पी. गण जिनके पास वक्त बेहद सीमित हुआ करता है , बुरी तरह पक गये , मैं उनकी कहानी को जानबूझ कर लम्‍बी और लम्‍बी करवाता जा रहा था और वी.आई.पी.यों की बैचैनी और बेकरारी का भरपूर मन ही मन आनन्‍द ले रहा था, बीच बीच में कई बार वी.आई.पी. बोले कि हम बाद में दोबारा आ जायेंगे आप इस इमरजेन्‍सी केस को निबटा लीजिये, और मैं बार बार उन्‍हें बैठने को की देता साथ ही अन्‍दर चाय और बनवाने की कह देता , वे चाय पी पी कर और गरीब वृद्धों की दुख व लाचारी भरी ट्रेजेडी सुन सुन कर भारी व्‍याकुल हो रहे थे और मैं उन्‍हें जाने भी नहीं दे रहा था ।

वी.आई.पी. की व्‍याकुलता मुझे बहुत आनन्‍द दे रही थी और जाहिर में मैं उन्‍हें बार बार ढाढ़स बंधा रहा था बार बार जबरदस्‍ती बिठाल लेता था , जाने भी नहीं दे रहा था एवं उनकी बात भी नहीं सुन रहा था , ऊपर से कह देता कि जैसे तैसे तो वी.आई.पी. चल कर इस गरीब के गरीबखाने तक आये हैं कुछ देर तो रौनक रहने दो हमारी भी महफिल में , इन कुर्सियों व सोफों के भाग जगने दो, इन्‍हें अपना मुकद्दर कुछ देर तो सराहने दो, हमें भी तो कुछ देर आपके दीदार होते रहने दो, आपसे मिलने तो हम जा नहीं पाते क्‍या करें यहॉं से निकल ही नहीं पाते , आज आप आये हैं बहार चली आयी है , इस मौसम को कुछ देर तो बना रहने दो, लोगों पर मोहल्‍ले वालों पर हमारा रौबदाब जरा जमने दो । वी.आई.पी. कसमसा कसमसा कर बिलबिला बिलबिला कर रह जाते , और अंग्रेजी व्हिस्‍की में आनन्‍द मस्‍त रहने वाले आज लगातार चाय पी पी कर पगलाये जा रहे थे ।

                           क्रमश: जारी अगले अंक में ....                               

 

बुधवार, 2 जून 2010

आज आज्ञा दे, वीर बाना फिर पहना माँ -नरेन्द्र सिंह तोमर "आनन्द"

आज आज्ञा दे, वीर बाना फिर पहना माँ -नरेन्द्र सिंह तोमर "आनन्द"

 

- नरेन्द्र सिंह तोमर "आनन्द"

 

जिस भारत ने दी पहचान मुझे, मेरी जान मुझे ।
जिसने पल पल पाल मुझे, खडा किया, बडा किया ।
उस माटी को आज दूर से नित नित शीश झुकाता हूँ ।
एक तराना वतन हिन्द को दिल से आज सुनाता हूँ ।
यूँ होंगे तेरे लाल बहुत ओ माँ सुन भारत माता ।
तेरे सीने को जोत चीर उदर जिन्हें भरना आता ।
अपने ही सुख की खातिर जिनको खून बहाना आता ।
अपने अपनों का खून चूस भ्रष्टाचार जिन्हें है आता ।
रिश्वत जिनका दीन धरम है जिनकी आँखों से दूर शरम है ।
हुयी जहाँ रोटी भी मँहगी, मँहगाई जहाँ एक धरम है ।
जहाँ गरीब की लाज है सस्ती , नित जहँ इक उजडे बस्ती ।
आतंक है चारों ओर, मचा खून का खेल यहाँ ।
आई पी एल ताल ठोकती क्रिकेट कलंकी खेल यहाँ ।
तुझ पर माता खून चढाने वीरों की जो टोली निकली ।
तुझ पर शीष चढाने वाले वीर बांकुरे केसरिया बाने ।
महारण के महारथी हाथ जो वीर ध्वजायें ताने ।
सिंहनाद जहाँ जय भवानी, हर हर महादेव जयघोष ।
घोडे अंग अंग अंगडाते हाथी चीख चीख चिंघाडें ।
वीरों के चेहरे सजते, तन पर कवच ढाल हैं मढते ।
रमणी जिन पर वारि जायें, तिलक आरती बलि बलि जायें ।
भारत तेरे वीर सिंह जो धरा दहाडों से थर्राते, शत्रु काँप काँप मर जाँय ।
चेहरे पर जिनके अतुल तेज वाणी में है अदभुत ओज जिनके नेत्रों में नेत्र मिलाते स्वयं महाकाल थर्रांय ।
जिन पर सदा चढी भवानी पूरी जिनकी होती वाणी नाम से जिनके काल थम जाय ।
एक को मारें, दो मर जावें तीजो दहशत सो मर जाय ।
ईंट फूट के गुटई हो जाय, गुटईं फूट छार हो जाय ।
छार फूट के रेता हो जाय रेता आसमान मंडराय ।
रणभूमि में शीष यूं कटते जैसे फसल काटते आज ।
रक्त चंदन से धरा रंगी वीरों ने पावन करदी जैसे आज ।
उस पावन धरणी पर माता जिस पर वीर हुये कुर्बान ।
पापी पाप अब सिर चढ बोले वीर भूमि पे चढा मसान ।
जाग जाग ओ भारत माता तेरी पावन लाज को खतरा है फिर आज ।
अपने वीरों को दे आज्ञा माता फिर दे केसरिया बाना हो फिर नया रण इक आज ।
अंदर बाहर सारे दुश्मन हम मारें फिर काट कमान ।
फिर धरा पावन करें तुझे दें दुष्ट पापीयों के बलिदान ।
भ्रष्टों की गर्दन हम तोडें पापीयों के लें शीष उतार ।
आतंक अन्याय, शोषण जिन्दा फूंकें कुछ तो कम करें तेरा भार ।
जाग जाग हे सिंह भवानी सजा आरती का फिर थाल ।
माँ अब तिलक भाल पर करदे तरसा माँ ये कईयों साल ।

- नरेन्द्र सिंह तोमर "आनन्द"