मंगलवार, 18 दिसंबर 2007

19 दिसम्‍बर – रामप्रसाद विस्मिल जयन्‍ती पर विशेष जन्‍म तिथि और पुण्‍य तिथि का संयोग

19 दिसम्‍बर रामप्रसाद विस्मिल जयन्‍ती पर विशेष जन्‍म तिथि और पुण्‍य तिथि का संयोग  

शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले........

सरफरोशी की तमन्‍ना अब हमारे दिल में है, देखना है जोर कितना बाजू ए कातिल में है

 

भारत  के स्‍वतंत्रता संग्राम के अमर नायकों में जिन चुनिन्‍दा महामानवों का जिक्र आता है उसमें एक अव्‍वल नाम अमर शहीद रामप्रसाद विस्मिल का भी है । काकोरी ट्रेन डकैती जैसा वीरता पूर्ण दुस्‍साहसी कार्य केवल भारतीय रण बाकुरों की टोली स्‍व. रामप्रसाद विस्मिल के नेतृत्‍व में ही कर सकती थी । भारत के इन महान वीरों के तेज और शौर्य का ही प्रभाव था कि ब्रिटिश सत्‍ता का न केवल सिंहासन हिला बल्कि उसके राज्‍य का कभी न डूबने वाला सूरज भी अंतत: अस्‍त हो गया ।

''सरफरोशी की तमन्‍ना अब हमारे दिल में है.............'' जैसे महान क्रान्ति गीत के रचयिता स्‍व. विस्मिल मुरैना जिला की अम्‍बाह तहसील के ग्राम बरवाई के रहने वाले थे । तोमर राजपूत परिवार में जन्‍मे इस तेजस्‍वी बालक ने बिटिश सत्‍ता के सिंहासन को जिस तरह हिला दिया उससे भारत का बच्‍चा बच्‍चा वाकिफ है ।

आज 19 दिसम्‍बर को इस अमर शहीद की जयन्‍ती है , चम्‍बल घाटी की ओर से हम इस वीर योद्धा को सादर नमन कर अपनी सादर श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं । धन्‍य है वो धरा जिस पर जन्‍मे विस्मिल जैसे वीर, पूज्‍य और वन्‍दनीय है वह मातृभूमि जहॉं जान निछावर करने वाले लाल जन्‍मे, धन्‍य हैं वे रक्‍त दानी और प्राणों का बलिदान करने वाले भारतीय नौजवान जिन्‍होंने अपने सुख ऐश्‍वर्य और जीवन का दान देकर हमें आज का भारत दिया । जय हिन्‍द

हंसते-हंसते झूल गए फांसी के फंदे पर

 

    याहू इण्डिया हिन्‍दी से साभार

Dec 19, 01:13 am

नई दिल्ली। भारतीय स्वाधीनता संग्राम में काकोरी कांड एक ऐसी घटना है जिसने अंग्रेजों की नींव झकझोर कर रख दी थी। अंग्रेजों ने आजादी के दीवानों द्वारा अंजाम दी गई इस घटना को काकोरी डकैती का नाम दिया और इसके लिए कई स्वतंत्रता सेनानियों को 19 दिसंबर 1927 को फांसी के फंदे पर लटका दिया।

फांसी की सजा से आजादी के दीवाने जरा भी विचलित नहीं हुए और वे हंसते-हंसते फांसी के फंदे पर झूल गए। बात नौ अगस्त 1925 की है जब चंद्रशेखर आजाद, राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खान, राजेंद्र लाहिड़ी और रोशन सिंह सहित 10 क्रांतिकारियों ने मिलकर लखनऊ से 14 मील दूर काकोरी और आलमनगर के बीच ट्रेन में ले जाए जा रहे सरकारी खजाने को लूट लिया।

दरअसल क्रांतिकारियों ने जो खजाना लूटा उसे जालिम अंग्रेजों ने हिंदुस्तान के लोगों से ही छीना था। लूटे गए धन का इस्तेमाल क्रांतिकारी हथियार खरीदने और आजादी के आंदोलन को जारी रखने में करना चाहते थे।

इतिहास में यह घटना काकोरी कांड के नाम से जानी गई, जिससे गोरी हुकूमत बुरी तरह तिलमिला उठी। उसने अपना दमन चक्र और भी तेज कर दिया।

अपनों की ही गद्दारी के चलते काकोरी की घटना में शामिल सभी क्रांतिकारी पकडे़ गए, सिर्फ चंद्रशेखर आजाद अंग्रेजों के हाथ नहीं आए। हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी के 45 सदस्यों पर मुकदमा चलाया गया जिनमें से राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खान, राजेंद्र लाहिड़ी और रोशन सिंह को फांसी की सजा सुनाई गई।

ब्रिटिश हुकूमत ने पक्षपातपूर्ण ढंग से मुकदमा चलाया जिसकी बड़े पैमाने पर निंदा हुई क्योंकि डकैती जैसे मामले में फांसी की सजा सुनाना अपने आप में एक अनोखी घटना थी। फांसी की सजा के लिए 19 दिसंबर 1927 की तारीख मुकर्रर की गई लेकिन राजेंद्र लाहिड़ी को इससे दो दिन पहले 17 दिसंबर को ही गोंडा जेल में फांसी पर लटका दिया गया। राम प्रसाद बिस्मिल को 19 दिसंबर 1927 को गोरखपुर जेल और अशफाक उल्ला खान को इसी दिन फैजाबाद जेल में फांसी की सजा दी गई।

फांसी पर चढ़ते समय इन क्रांतिकारियों के चेहरे पर डर की कोई लकीर तक मौजूद नहीं थी और वे हंसते-हंसते फांसी के फंदे पर चढ़ गए।

काकोरी की घटना को अंजाम देने वाले आजादी के सभी दीवाने उच्च शिक्षित थे। राम प्रसाद बिस्मिल प्रसिद्ध कवि होने के साथ ही भाषायी ज्ञान में भी निपुण थे। उन्हें अंग्रेजी, हिंदुस्तानी, उर्दू और बांग्ला भाषा का अच्छा ज्ञान था।

अशफाक उल्ला खान इंजीनियर थे। काकोरी की घटना को क्रांतिकारियों ने काफी चतुराई से अंजाम दिया था। इसके लिए उन्होंने अपने नाम तक बदल लिए। राम प्रसाद बिस्मिल ने अपने चार अलग-अलग नाम रखे और अशफाक उल्ला ने अपना नाम कुमार जी रख लिया।

खजाने को लूटते समय क्रांतिकारियों को ट्रेन में एक जान पहचान वाला रेलवे का भारतीय कर्मचारी मिल गया। क्रांतिकारी यदि चाहते तो सबूत मिटाने के लिए उसे मार सकते थे लेकिन उन्होंने किसी की हत्या करना उचित नहीं समझा।

उस रेलवे कर्मचारी ने भी वायदा किया था कि वह किसी को कुछ नहीं बताएगा लेकिन बाद में इनाम के लालच में उसने ही पुलिस को सब कुछ बता दिया। इस तरह अपने ही देश के एक गद्दार की वजह से काकोरी की घटना में शामिल सभी जांबाज स्वतंत्रता सेनानी पकड़े गए लेकिन चंद्रशेखर आजाद जीते जी कभी अंग्रेजों के हाथ नहीं आए।

 

 

मंगलवार, 4 दिसंबर 2007

बी.एस.एन.एल. मुरैना आखिर कहॉं गईं चोरी गई हजारों मीटर केबिलें

बी.एस.एन.एल. मुरैना आखिर कहॉं गईं चोरी गई हजारों मीटर केबिलें

किस्‍सा ए बी.एस.एन.एल.भ्रष्‍टाचार बनाम अंधेरगर्दी विद गुण्‍डागर्दी

किश्‍तबद्ध रिपोर्ताज भाग- 5

मुरैना 4 दिसम्‍बर 2007 । भ्रष्‍टाचार संचार निगम अनलिमिटेड यानि बी.एस.एन.एल. की पिछली किश्‍तों में अब तक आप पढ़ चुके हैं कि बी.एस.एन.एल. ने किस तरह अपनी सेवाओं और उपभोक्‍ताओं को प्रायवेट कम्‍पनीयों को सामने परोसा अब सवाल ये है कि भला कोई क्‍यों अपने ग्राहकों यानि उपभोक्‍ताओं को दूसरों को सौंपेगा । इस सवाल का जवाब भी बड़ा दिलचस्‍प है, बी.एस.एन.एल. से तो उनको तयशुदा तनख्‍वाह मिलती ही है, ऊपर से इस भ्रष्‍टाचार संचार निगम अनलिमिटेड में दो नंबर की मोटी कमाई के भी अनेक जरिये हैं, फर्जी बिलिंग (सबूत हमारे पास हैं) से लेकर खरीद फरोख्‍त और ठेकों में जबरदस्‍त भ्रष्‍टाचार (सबूत हमारे पास हैं), बी.एस.एन.एल. की योजनाओं उपहारों में जबरदस्‍त भ्रष्‍टाचार व अंधेरगर्दी (सबूत हमारे पास हैं) के अलावा म.प्र. की बिजली चोरी और  उसका अवैध पुन: विक्रय, प्रायवेट कम्‍पनीयों से करोड़ों और लाखों की रिश्‍वत वसूल कर उसके एवज में उपभोक्‍ता ट्रान्‍सफर करना आदि आदि आप आगे पढ़ते जाईये सब पता चलता जायेगा । इसके अलावा इस उपभोक्‍ता के बिल को उस उपभोक्‍ता के बिल में घुसेड़ना, सेटिंग के जरिये आप फ्री में लाखों करोड़ों रूपये की बात विदेशों तक में फ्री में कर सकते हैं, और इन बिलों की टोपी अन्‍य उपभोक्‍ताओं के सिर चढ़ाई जाती है, यदि कोई उपभोक्‍ता भूले भटके शिकायत शिकवा करे या अपनी शिकायत ऊपर भोपाल और दिल्‍ली तक करे तो अव्‍वल तो उसकी शिकायत पर कोई कार्यवाही भोपाल से दिल्‍ली तक नहीं होगी और उस उपभोक्‍ता पर फर्जी बिलिंग कर उसका खाता इतना लम्‍बा चौड़ा कर दिया जायेगा कि उसे चोर और डिफाल्‍टर घोषित करके फाइल नस्‍तीबद्ध स्‍वत: ही होती रहेगी । और उसकी कोई सुनवाई नहीं होगी । हमारे पास फर्जी बिलिंग के पक्‍के और मुकम्‍मल सबूत मौजूद है जो कि आगे की किश्‍तों में स्‍वत: जिक्र में आयेंगें (वर्तमान में ये आपराधिक प्रकरण दर्ज कराने हेतु साक्ष्‍य हैं और आपराधिक प्रकरण पुलिस व न्‍यायालय कार्यवाही प्रक्रम में है)

मजे की बात ये है कि बी.एस.एन.एल. में होने वाले विभिन्‍न भ्रष्‍टाचारों और धांधलीयों की कोई शिकायत न होती हो, ऐसा नहीं हैं, हमारे पास अब तक हुयी शिकायतों और सबूतों का जखीरा है, किन्‍तु इस भ्रष्‍टाचार के बंटवारे की लम्‍बी चौड़ी रकम का बड़ा हिस्‍सा दिल्‍ली और भोपाल तक पहुँचता है, अगली किश्‍तों में यह जिक्र भी आयेगा कि फर्जी बिलिंग और हड़का कर जबरन उपभोक्‍ताओं से अनुचित व अवैध रकम वसूली, उददापन कृत्‍य और गुण्‍डागर्दी, फर्जी व कूटरचित साक्ष्‍यों के सहारे उपभोक्‍ताओं पर मुकदमे बाजी कर करोड़ों बटोरने वाले बी.एस.एन.एल. का यह पैसा आखिर कहॉं हिल्‍ले लग रहा है, आप जब ये रहस्‍य जानेंगें तो खुद ही उछल पड़ेंगें ।

 

मुरैना बी.एस.एन.एल. प्रक्षेत्र में वर्ष 2003 से 2007 तक हजारों मीटर अण्‍डरग्राउण्‍ड ओ.एफ.सी. केबल चोरी हो चुकी है, और इसके चलते उपभोक्‍ताओं के टेलीफोन और इण्‍टरनेट कई दिनों तक अनेकों बार ठप्‍प रहे । यह सारे शहर मुरैना को मालुम है और अखबारों में भी जम कर ये खबरें छपीं हैं । हमारे पास कुछ अतिरिक्‍त साक्ष्‍य भी है ।

केबल चोरी होना यूं तो देखने में ओर सुनने में सामान्‍य चोरी की घटना जान पड़ती है, मगर हकीकत कुछ हट कर और कुछ अलग ही कहानी बयां करती है ।

पिछले सालों में चोरी गई केबिलें आज तक नहीं मिलीं, तो आखिर कहॉं गईं, जमीन खा गई या आसमान लील गया, क्‍यों कहीं भी बरामद न हो सकी ये केबलें । हॉं जी यही सच है, इन चोरी की केबलों को वाकई जमीन लील गयी । ये केबलें आम आदमी और आम चोरों के मतलब की नहीं होतीं, और न इनका उसके लिये कोई आम इस्‍तेमाल है । मगर इन केबलों की कीमत लाखों और करोड़ों रूपयों में अवश्‍य होती है । अब तो आप समझ ही गये होंगें कि किसने चुराईं केबलें और कहॉं गई ये केबलें ।

अब भी नहीं समझे तो चलो इस पहेली को भी हल कर देते हैं । यह केबलें केवल प्रायवेट कम्‍पनी वाले फ्रेन्‍चाइजी सेठजी के लिये यूजफुल और आज भी जमीन में उनकी नेटवर्क के परिपथ यानि सर्किट में फंसी है, फ्रेन्‍चाइजी सेठजी के तो बारे न्‍यारे हैं, कुछ दान दहेज में मिल गयीं और कुछ चोरी करवा लीं (इस चोरी में बी.एस.एन.एल. वाले ही आपराधिक षडयंत्र रचकर भागीदार हैं देखें धारा 120 बी भा.द.वि.) केबलों के सारे राज आज भी जमीन में दफन हैं । अब ये तो राम जाने कि बी.एस.एन.एल. वाले सेठ जी और प्रयवेट कम्‍पनी वाले सेठजी में आपस में क्‍या गुण्‍ताड़ा है, मगर बी.एस.एन.एल. उनका अन्‍धा सेवक है यह तो सिद्ध है ।

बी.एस.एन.एल. के उपभोक्‍ता पिछले दस साल में विशेषकर पिछले पॉंच साल में यूं ही प्रायवेट कम्‍पनीयों पर ट्रान्‍सफर नहीं हो गये बल्कि एक बड़ा गंभीर और तिलस्‍मी खेल खेला गया ।    

 

क्रमश: जारी अगले अंक में .........

      

 

रविवार, 2 दिसंबर 2007

मोहल्‍ले में कैसी मारामार हैं, आजा नच ले पे रोक बेकार है

मोहल्‍ले में कैसी मारामार हैं, आजा नच ले पे रोक बेकार है

व्‍यंग्‍य/ हास्‍य

नरेन्‍द्र सिंह तोमर ''आनन्‍द''

इण्‍टरनेट पर खबर है कि यू.पी., पंजाब और हरियाणा में माधुरी दीक्षित की फिल्‍म ''आजा नच ले'' पर रोक लग गई है । मसला वही राजनीतिक, वही पुराना जाति भेद ।

बात कुछ यूं है कि फिल्‍म में एक गाने में पंक्ति है- ''मोहल्‍ले में कैसी मारामार है, मोची भी खुद को कहता सुनार है'' ये पंक्ति बकौल यू.पी. सरकार दलितों के लिये आपत्तिजनक है, उनके मुताबिक ''मोची'' शब्‍द जातिसूचक शब्‍द है और इस शब्‍द को भारत की डिक्‍शनरी से उखाड़ फेंकना चाहिये । और 'मोची' एक व्‍यवसाय नहीं एक जाति है । समवेत स्‍वर इसके बाद उभरते सुनाई दिये, पठठे नेता लोग बोले कि ''मोचीयों'' को देश से उखाड़ फेंकों, मोचीगण देश के लिये कलंक हैं, मोची नामक शब्‍द कक्षा 1 से लेकर एम.ए. और पी.एच.डी. तक कहीं किसी किताब में नहीं मिलना चाहिये, यह जातिसूचक शब्‍द है । दलितों का अपमान है ।

जो लोग मोची से राष्‍ट्रपति बने, या केन्‍द्रीय मंत्री, मुख्‍यमंत्री और प्रधानमंत्री तक बन गये, उनका इतिहास देश से हटाओ, उनके इतिहास में से मोची हटाओ, मोची उनकी जाति बताता है । भईया पेशे से मैं एक एडवोकेट हूँ और मुझे पता है कि जातिसूचक शब्‍द उच्‍चारण से हरिजन एक्‍ट लग जाता है । सो मुझे भी नेता लोगों की चिल्‍लपों ठीक लगी , वाकई किताबों, इतिहास और डिक्‍शनरी में जहॉं जहॉं मोची आये हैं, तुरन्‍त डिलीट कर देने चाहिये । अरे जहॉं जहॉं मोची सिम्‍बल देखने को मिले तुरन्‍त हटा देना चाहिये, जिस चौराहे पर भी मोची मिल जाये तुरन्‍त उसे उठा कर खदेड़ देना चाहिये और उसे मोची बनने से और मोची का काम करने से तत्‍काल रोका जाना चाहिये, आखिर एक जातिसूचक शब्‍द, व्‍यवसाय, चित्रण, प्रतीकन जो किसी भी सूरत में एक जाति का बयान करते हो या उल्‍लेख करते हों तुरन्‍त हटाये जाना चाहिये ।

भारत में से मोचीयों के विलोपित किये जाने का वक्‍त आ गया है । मोची कहना, बोलना, लिखना, बनना सब अपराध है भईया । देश में जित्‍ते भी मोची संघ हैं, तत्‍काल समाप्‍त कर देने चाहिये, वे भी जातिसूचक संघ हैं ।

नवम्‍बर में डम्‍पर की बम्‍पर हिट रही, तो दिसम्‍बर में मोची हिट रही । हम अगर कभी फिल्‍म बनायेंगे तो उसका टायटल ''मोची''  रखना पसन्‍द करेंगें, आटो हिट होगी हमारी फिल्‍म, फिर नेता लोग कसीदे बांचेंगे, फिर हम टायटल चेन्‍ज करेंगें और कर देंगें ''द ग्रेट मोची'' नेता फिर डकरायेंगें तो हम कर देंगें ''नो मोची'' नेता फिर नर्रायेंगें तो अबकी बार हम कर देंगें '' द डार्क एज आफ ...'' वगैरह वगैरह ।

एक गीत पर वे ठुनक गयीं, अरे ठुनक क्‍या बिफर गयीं, अरे बिफर क्‍या मचल गयीं, अब उनका ठुनकना, बिफरना, और मचलना रंग दिखा गया और फिल्‍म वाले ने करोड़ों डूबते देख हाथ खड़े कर दिये, और माफी ठोक दी, और ''मोची डिलीट कर दिये, संग संग सुनार मुफत में ही डिलीट हो गये ।

अरे पियूष मिश्रा हम ठाकुर हैं, गाने से पूरे सुनार डिलीट करने की का जरूरत थी भईया, मोची हटाइके ठाकुर कर देते, और गाना कुछ यू हो जाता कि ''मोहल्‍ले में कैसी मारामार है, ठाकुर भी खुद को कहता सुनार है'' भईया पियूषा तुम्‍हारा गाना भी बचा रहिता, फिल्‍म भी सुपरहिट हो जाती, ठाकुरों को तो फिल्‍मों में हर रूप हर रंग में लाया गया है, एक कलर और हो जाता। सुनारों पर छोरीयां वैसे ही खूब जान छिड़कतीं हैं, सो थोड़ा भला ठाकुरों का हो लेता, कुछ दिन तो सुन्‍दरीयों से खतो खितावत होती ही ।

पर क्‍या पियूष ये क्‍या कर डाला, हम होते तो ऐसा नहीं करते भईया , अड़ जाते और लड़ जाते , तुमने तो देश की संस्‍कृति, इतिहास, विरासत, और पहचान के साथ किताबें बदलवा डालने की नींव धर दी ।

जो न हो सकता था, जो संभव नहीं, उस झगड़े की बुनियाद धर दी । भईये नेता बरसाती मेंढ़क होते हैं, एक बरसात (यानि चुनाव) में उतरा कर छा जाते हैं, दूसरी बरसात में लापता हो जाते हैं, लेकिन इतिहास, संस्‍कृति और देश व उसकी विरासत व पहचान स्‍थायी है, इसे न वो खत्‍म कर सके न ये कर सकेगें ।

लेकिन जब एक देश के इतिहास को बदलने की कोशिश हो रही है, तो मेरा चुप रहना मुझे उचित नहीं लगा । मोची हमारे देश और समाज का अभिन्‍न अंग रहें हैं, और करोड़ों लोग इस पेशे से अपना पेट भर रहे हैं । उन्‍हें जातिसूचक कह कर उनके पेट पर लात मारना न समाज के लिये ठीक रहेगा न देश के लिये । मेरे शहर में मोची का काम (जूतों की दूकान) कई ब्राहमण खोले बैठे हैं, लोग उनकी दूकान पर जाने से पहले ''मोची की दूकान'' पर जा रहे हैं कहते हैं । कई ब्राहमण भी इस चक्‍कर में निबट जायेंगे, प्‍यारे । और अब तो बी.एस.पी. को भी ब्राहमण समाज पार्टी कहा जाता है, सो काहे को ब्राहमणों की रोजी रोटी छीन रहे हो ।

फिल्‍म का नाम ही ऐसा था कि पंगा तो होना ही था, रख दिया नाम 'आजा नच ले', क्‍या खाक नाच ले, 'वे तो नच ले' के बजाय भांगड़ा करने लगीं । और नच ले के इस डिस्‍को, भांगड़ा और भरत नाटयम के बाद अब हमारा जी भी तांडव करने का हो रहा है । ले नच ले बेटा । आजा नच ले ।

उधर दिल्‍ली में भी नेता नच ले करना चालू कर दिये हैं, एक नेता तो इतना थिरक रहे हैं कि वे सेण्‍ट्रल मिनिस्‍ट्री को भी नच ले नच ले चिल्‍ला कर आखिर कह बैठे, कि सरकार को नचना ही नहीं आता, सरकार का नचने पर ध्‍यान ही नहीं है । क्‍या यार जनता भी कैसे कैसे नमूने नचाती है । चल भईया मैं भी तांडव की तैयारी करूं, अभी कुछ को और नचाना है, पहले चप्‍पल जुड़वा लूं , मगर अब ''मोची'' तो रहे नहीं, कौन जोड़ेगा मेरी चप्‍पल, सोचता हूँ किसी नेता से ठुकवा लाऊं दो कील, फिर उसी के संग नच भी लूंगा । या फिर शर्मिला जी से मिलता हूँ कि देश का शब्‍दकोश, इतिहास बदलने की बाकायदा माफी मांग कर अपनी जिम्‍मेवारी पर जो राष्‍ट्रीय किताबें बदलने और इतिहास, संस्‍कृति बदल डालने की मुहर लगाई है, अब या तो मेरी चप्‍पल जुड़वा दो या फिर खुद ठोको कील, और अब नच लो मेरे संग ।

 

 

शनिवार, 1 दिसंबर 2007

इण्‍टरनेट पर व्‍यावसायिक संव्‍यवहार पर स्‍टाम्‍प शुल्‍क लगेगा

प्रदेश सरकार बना रही है स्वयं का स्टाम्प विधेयक : सुझाव मांगे जायेंगे

इण्‍टरनेट पर व्‍यावसायिक संव्‍यवहार पर स्‍टाम्‍प शुल्‍क लगेगा

इलेक्ट्रॉनिक लेन-देन विधि सम्मत बनेगा

प्रदेश में इलेक्ट्रॉनिक संव्यवहार को कानूनी रूप देने के लिए राज्य सरकार मध्यप्रदेश स्टेम्प विधेयक 2007 को अंतिम रूप देने जा रही है। इसे आम जनता के लिए प्रकाशित कर सुझाव मांगे जायेंगे। वर्तमान में भारतीय स्टाम्प अधिनियम 1899 प्रदेश में लागू है। परन्तु विगत कुछ वर्षों से यह आवश्यकता महसूस की जा रही है कि बदले हुए परिवेश में वर्तमान अधिनियम के स्थान पर राज्य विशिष्ट अधिनियम बनाया जाये। मौजूदा अधिनियम में हर छोटे-छोटे संशोधन के लिए केन्द्र सरकार से अनुमति प्राप्त करना आवश्यक होता है और इसमें संशोधन में अत्यधिक विलम्ब होता है।

मध्यप्रदेश स्टेम्प विधेयक 2007 को बनाने के लिए गत दिवस वाणिज्यिक कर मंत्री श्री बाबूलाल गौर की अध्यक्षता में गठित केबिनेट उप समिति की बैठक में विधेयक के प्रारूप पर विचार किया। बैठक में उप समिति के सदस्य वित्त मंत्री श्री राघवजी, आवास एवं पर्यावरण तथा उद्योग एवं वाणिज्यिक मंत्री श्री जयन्त मलैया मौजूद थे। लोक निर्माण मंत्री श्री कैलाश विजयवर्गीय भी उक्त उप समिति के सदस्य हैं।

नये विधेयक में इलेक्ट्रानिकली संव्यवहार को स्टाम्प शुल्क के दायरे में लाया जायेगा। साथ ही 100 वर्ष से अधिक पुराने मौजूदा भारतीय स्टाम्प अधिनियम 1899 में शामिल प्रावधानों के बारे में न्यायालयों द्वारा अनेक परस्पर विरोधाभासी निर्णय दिये गये हैं। इन प्रावधानों को प्रस्तावित विधेयक में स्पष्ट किया जायेगा। इसके अलावा शस्ति के प्रावधानों को भी संशोधित किया जायेगा। इसके बन जाने से राज्य के राजस्व में वृध्दि भी हो सकेगी। वर्तमान में मौजूदा अधिनियम में केन्द्र सरकार द्वारा समवर्ती सूची का सहारा लेकर कानून बना दिया जाता है जिससे राज्य के राजस्व पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। उदाहरण के लिए वर्ष 2005 में स्पेशल इकानामिक झोन में निष्पादित होने वाले सभी दस्तावेजों पर तथा वर्ष 2000 में डिबेंचर के अंतरण के दस्तावेजों पर स्टाम्प शुल्क से छूट, राज्य सूची का विषय होने के बावजूद केन्द्र सरकार द्वारा भारतीय स्टाम्प अधिनियम में संशोधन कर दी गई। राज्य विशिष्ट अधिनियम अस्तित्व में आने पर ऐसा संभव नहीं हो सकेगा।

प्रस्तावित विधेयक में हस्तांतरण पत्र की परिभाषा का विस्तार, लिखत की परिभाषा का विस्तार (इलेक्ट्रानिक रिकार्ड) को सम्मिलित किया गया है। इसके फलस्वरूप शेयर ट्रांसफार, डिबेंचर ट्रांसफर पर भी राज्य को स्टाम्प शुल्क मिल सकेगा। पट्टे की परिभाषा का विस्तार कर पट्टे के करारों, न्यायालय की डिक्री तथा कोल बियरिंग एरिया एक्ट के अंतर्गत शासकीय कंपनियों में कोयला खदानों को वेष्ठित करने वाले आदेशों का सम्मिलित किया जायेगा। इसी तरह धारा 3 में स्टाम्प शुल्क इलेक्ट्रॉनिक चुकाये जाने का प्रावधान, खनन पट्टों पर भुगतान की गई वास्तविक रायल्टी पर स्टाम्प शुल्क का निर्धारण, गाईड लाइन मूल्यों को वैघानिकता, कलेक्टर के सभी निर्णयों के पुनरीक्षण की राजस्व मण्डल को शक्ति, डेवलपर से इनवेस्टर द्वारा क्रय किये भवन विक्रय करने पर स्टाम्प शुल्क का समायोजन, पट्टे पर बाजार मूल्य के मान से स्टाम्प शुल्क का अधिरोपण, हक की घोषणा के लिखत पर स्टाम्प शुल्क का अधिरोपण शामिल है।

प्रस्तावित विधेयक को विधानसभा में पुर:स्थापित करने के पूर्व भारत सरकार की पूर्व सहमति भी ली जाना प्रस्तावित है।