रविवार, 27 जनवरी 2008

परिसीमन का साया और : नेता जी का ट्रेडमार्क नाम दरोगा धर दो – चाहे सौ के सत्‍तर कर दो

परिसीमन का साया और : नेता जी का ट्रेडमार्क

नाम दरोगा धर दो चाहे सौ के सत्‍तर कर दो

नरेन्‍द्र सिंह तोमर ''आनन्‍द''

करवट 3 श्रंखलाबद्ध आलेख

 

पिछले अंक से जारी ...

 

अभी वैसे चुनाव में टाइम है, लेकिन राजनीतिक हवाई बमबारी तो पिछले महीने ही चालू हो चुकी है । यद्यपि राजनीतिक युद्ध के पूर्वाभ्‍यास तो चार महीने पहिले ही चालू हो गये थे । अब ये वक्‍त बतायेगा कि किसके फाइटर्स ज्‍यादा कामयाब रहेंगे ।

वैसे लोकल नेताओं को दिल्‍ली और भोपाल से कहीं ज्‍यादा टेंशन हो गया है । परिसीमन की छाया या साया जहॉं कहीं लोकल राजनीतिक दूकानें बन्‍द करा देगा वहीं नई एजेन्सीयां भी चालू करा देगा ।

गिड़गिड़ा और भिड़भिड़ा रहे हैं लोकल ठेकेदार आफ नेतागिरी

अब किसी कलेक्‍टर कमिश्‍नर या एस.पी. को ऐसे दिन देखने पड़ें कि वह रिरिया रिरिया कर घिघिया कर बाबू या थानेदार बनाने के लिये लोगों के चरण चुम्‍बन करता फिरे तो इसे आप क्‍या कहेंगे, वक्‍त की मार या मुकददर का पलटवार या फिर बुरे दिनों की दस्‍तक से घबराकर चने चबाने की जुगत ।

खैर जो भी हो ऐसा टाइम आ गया है और बड़े बड़े नेताजी की टांय टांय फिस्‍स हो रही है । बड़े नेताजी अब छोटे नेता बनने के लिये रिरियाने और गिड़गिड़ाने में लगे हैं ।

सबसे ज्‍यादा हालत खराब मुरैना सांसद अशोक अर्गल की हो रही है । वे अब अब सांसद से विधायक बनने के लिये दण्‍ड बैठक लगाते फिर रहे हैं । दरअसल युगों से चली रही आ रही मुरैना लोकसभा सीट अब आरक्षित से सामान्‍य सीट में तब्‍दील हो गयी है और मुरैना संसदीय सीट की महज अब एकमात्र विधानसभा सीट अम्‍बाह ही आरक्षित बची है । अब अर्गल भईया का अनर्गल प्रलाप कुछ इस कदर परवान चढ़ रहा है कि वे भाजपा के छोटे से छोटे और बड़े से बड़े नेताओं के आगे घिघियाते फिर रहे हैं, मजे की बात ये है कि भले ही अर्गल अपनी चमचागिरी किसी और वजह से कर रहे हों लेकिन मुरैना जिले के गली कूचों में पत्‍ते पत्‍ते पर यह दास्‍तां अब आम है । कुछ जोरदार फोटोग्राफ ऐसी विकट चमचागिरी के हमें उपलब्‍ध हुये हैं । खैर यह अर्गल के राजनीतिक और व्‍यक्तिगत अस्तित्‍व व भविष्‍य का प्रश्‍न है सो उनका चमचे आम हो जाना स्‍वाभाविक ही है । मगर इतना साफ है कि अगर अशोक अर्गल जैसा कि सुनने में आया है कि अम्‍बाह विधानसभा के अलावा भिण्‍ड संसदीय क्षेत्र से भी टिकिट पाने की जुगाड़ में लगे हैं । ज्ञातव्‍य है कि भिण्‍ड दतिया संसदीय क्षेत्र (मैं यहॉं चुनाव लड़ चुका हूँ) अब सामान्‍य से आरक्षित हो गया है, और अशोक भाई इस मौके को गंवाना नहीं चाहते । सो सेटंग भी हाई लेवल की बिठाने में लगे हैं । अब ये उनका वक्‍त और मुकददर तय करेगा कि ''तेरा क्‍या होगा ....''

मगर इतना तो साफ है कि वर्षों से सत्‍ता सुख और राजनीतिक भोग विलास में आकण्‍ठ डूबे रहे अशोक अर्गल को अपनी राजनीतिक सत्‍ता का इस कदर छिनना रास नहीं आ रहा । आना भी नहीं चाहिये, आखिर तुलसी भईया उवाचे हैं कि दौलत की दो लात हैं, तुलसी निश्‍चय कीन । आवत में अन्‍धा करे, जावत करे अधीन ।। मुँह लगी मलाई अब इतनी आसानी से तो पिण्‍ड नहीं छोड़ेगी ।

पद, दौलत और प्रभाव जाते ही अच्‍छे अच्‍छे पगला जाते है, सो जाते नेताओं के घर मातम होने लगा है तो कौनसी विचित्र बात है । वेसे भी लोकतंत्र इसी का नाम है कि बेटा आज तेरा तो कल मेरा ।

जब मध्‍यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी तो भाजपाईयों की हर चौराहे पर ठुकाई हो जाती थी और एक अदना सा सिपाही चाहे जब डण्‍डा डालकर भीतर कर देता था । अब टाइम पल्‍टा खा गया है जो हाल तब उनके थे वो अब आजकल उनके हैं ।

खैर ये लोकतंत्र है, बदलती राजनीति है, ऐसा तो अब रिवाज ही बन गया है, आम जनता की रिपोर्ट भले ही पुलिस कभी नहीं लिखती हो या आर्थिक अपराध अन्‍वेषण ब्‍यूरो हजारों आम शिकायतों को कचरे में फेंक देता हो लेकिन हाई मैटर्स जो कवरेजेबल हों और समूचे मीडिया पर हेडलाइन बन कर छा जायें और जिनसे संसद या विधानसभायें ठप्‍प हो जायेंए उनकी कायमीयां तो चुटकी में ठोक देते हैं । चाहे राष्‍ट्रध्‍वज अपमान हो चाहे डम्‍पर हो चाहे देवास जमीन हो चाहे सहकारिता वाले मंत्री का मैटर हो चाहे सुभाष यादव या अन्‍य .... ।

भले ही मामले बाद में अर्जी फर्जी निकलें मगर चर्चा कराना, ठप्‍प कराना और आक्‍थू आक्‍थू के खेल में रैफरी के बजाये लाउडस्‍पीकरिया या एम्‍पलीफाइंग भूमिका मात्र निभा देना अब प्रशासनिक मशीनरी की डयूटी मात्र बन कर रह गयी है । कभी इसके हाथ खिलौना कभी उसके हाथ । उनके सकार में आ जाने का डर भी है तो उनकी सरकार चल रही है ये खौफ भी है । मगर प्‍यारे सच्‍ची बात ये है कि ये खेल अब लगभग बेअसर से हो गयें हैं, जनता को तो कोई मामला समझ ही नहीं आ रहा । जनता तो केवल इस कबडडी की मूक दर्शक मात्र है ।

अब ये दीगर बात है कि अम्‍बाह वाले नेताजी अर्गल को अपने एरिया में घुसने देंगें कि नहीं या भिण्‍ड में नेता लोग इम्‍पोर्टेड नेता चाहेंगे कि नहीं, मगर अशोक भाई को खुशफहमी है कि राज करना और हुकूमते चकाचौंध वे अपने ललाट में लिखा लाये हैं, उनकी कुण्‍डली के ग्रह बकाया नेताओं से ज्‍यादा बलवान बैठते हैं ।

अब बंशीलाल और मुंशीलाल क्‍या करेंगें, ये अर्गल भाई जरा सोच लीजिये । वैसे भी मुंशीलाल को पिछली विधानसभा में टिकिट नहीं मिला था, जिस पर काफी दंगा और पंगा भी हो चुका है । अगर आपको यह भ्रम है कि अम्‍बाह सीट पर भाजपा जीतती है, व्‍यकित नहीं, तो यह दूर हो जाना चाहिये । नजदीकी सीट दिमनी विधानसभा अब सामान्‍य हो जाने का असर चौतरफा होने वाला है । अम्‍बाह विधान सभा क्षेत्र आरक्षित भले ही हो, लेकिन यह रहस्‍य किसी से छिपा नहीं कि इस सीट का अम्‍बाह पोरसा क्षेत्र विशुद्ध राजपूत बाहुल्‍य है । और दिमनी विधानसभा क्षेत्र नये परिसीमन के मुतल्लिक राजपूत बाहुल्‍य है । अत: उनके समर्थन के बगैर यहॉं पार पाना असंभव नहीं तो मुश्किल ही है ।

वर्तमान विधायकों और नेताओं से जनता वैसे ही खफा चल रही है । ऐसे में जहॉं दिमनी विधानसभा में भी अब नेतागिरी की कई दूकानें बन्‍द होंगीं वहीं नये राजनीतिक गढ़ भी उभरेंगें । अभी तक यह सीट भाजपा के प्रभाव की मानी जाती रही है । वहीं निकटस्‍थ अम्‍बाह विधानसभा क्षेत्र भी दिमनी विधानसभा के समानान्‍तर में ही प्रभावित रहती है । दिमनी क्षेत्र से जहॉं मुंशीलाल, और संध्‍या राय का सत्‍ता समापन होगा वहीं । अधिक संभव है कि इस सीट पर अब समीकरण पूरी तरह नये तरीके से बनेंगें । शुरूआत में इस सीट पर भावी मुख्‍यमंत्री के नाम और यहॉं चुनाव लड़ने वाले के जातिगत व व्‍यक्तिगत प्रभाव का असर ज्‍यादा रहेगा । यहॉं वहीं राजनीतिक दल लाभ उठा सकेगा जो, सोच समझ कर प्रत्‍याशी खड़ा करेगा ।

हालांकि दिमनी विधानसभा के लिये आजकल जो खुसुर पुसुर जारी है और जो इस क्षेत्र पर नेतृत्‍व की दावेदारी ठोकने में लगे हैं, मुझे नहीं लगता कि वे इस सीट पर सीट निकाल सकेंगें ।

कहीं न कहीं नेताओं में खोट जनता देख रही है, और लोगों में एक आम आक्रोश भी है । दिमनी विधानसभा और अम्‍बाह विधानसभा क्षेत्र न केवल स्‍वयं अपने आप में महत्‍वपूर्ण हैं बल्कि समूचे संसदीय क्षेत्र की राजनीति को प्रभावित करने की ताकत रखने वाले क्षेत्र हैं । यह तोमर राजाओं के वारिसों का क्षेत्र है और यहॉं के लोगों में स्‍वाभिमान और बात पर अटल रहने की तासीर आज तक है । चालू भाषा में इसे ऐंठ में रहना कहा जाता है । या कभी कभी सनकी होना उवाचा जाता है ।

दिमनी विधानसभा सीट पर काफी लम्‍बे अर्से से आरक्षण रहने से, इस क्षेत्र की राजनीति लगभग समाप्‍त प्राय सी हो चुकी है । और इस क्षेत्र के मूल रहवासी राजनीति से बरसों दूर रहने के बाद अपना राजनीतिक अस्तित्‍व लगभग भूल कर अभी पशोपेश में ही हैं कि आखिर कौन होगा जो उनकी तकदीर बदलेगा ।

 

क्रमश: जारी अगले अंक में .........

 

शुक्रवार, 18 जनवरी 2008

ब्रिज कोर्स से बिखरे बहेलिया बच्चों के जीवन में खुशियों के रंग

ब्रिज कोर्स से बिखरे बहेलिया बच्चों के जीवन में खुशियों के रंग

तीतर-बटेर को फंसाने के फंदों की बिदाई, अब सभ्य जीवन की पढाई

बहेलियों को समाज की मुख्यधारा में लौटाने के प्रयास

पन्ना 18 जनवरी- वन्य जीवों के शिकार की प्रवृत्ति और लडाकू स्वभाव के लिए कुख्यात पन्ना की बहेलिया जाति के लोगों में समाज की मुख्यधारा में शामिल होने की ललक दिखाई देने लगी है, और अब तो उनके बच्चे तीतर-बटेर फंसाने के फंदों को त्यागकर शाला में पढने लगे हैं। शाला अप्रवेशी बच्चों के लिए राज्य सरकार के महत्वाकांक्षी आवासीय ब्रिजकोर्स ने सिर्फ दो माह में इन बहेलिया बच्चों के जीवन में खुशियों के रंग भरकर उनके जीवन की तस्वीर बदल दी है। यह पहला मौका है, जब बहेलिया कबीले की इस पीढी के बच्चों को शाला का मुंह देखने का सौभाग्य मिला।        बहेलिया अपने बच्चों को पढने के लिए स्कूल नहीं भेजते।

          घुमक्कड प्रवृति के अलग-अलग डेरों में रहने वाले बहेलिया जाति के ये लोग किसी भी स्थान पर स्थाई रूप से ठहर नहीं पाते और इन खानाबदोश लोगों का मुख्य पेशा आज भी तीतर-बटेर पकडना और वन्य जीवों का शिकार करना और जंगली जडी-बूटी बेचना है। लेकिन वन्य जीव संरक्षण कानून के नियमों के तहत वन्य जीवों के शिकार पर लगी रोक एवं जिला प्रशासन तथा जंगल विभाग के राष्ट्रीय उद्यान की समझाईश के कारण इनका वन्य प्राणियों के शिकार व वन्य प्राणियों के मांस की बिक्री का धंधा बंद हो गया है।

       बहेलिया मुख्य रूप से जंगल से जीवकोपार्जन करते थे और खानाबदोश की जिन्दगी बिताते थे। वन्य जीवों का शिकार करके उनका मांस खाना और उनके मांस की बिक्री करके उनके बदले जो भी अनाज या पैसा मिलता था, उसी से अपनी जीविका चलाना उनका मुख्य धंधा था। शिकार के काम में बच्चे भी अपने बा (पिता) का हाथ बंटाते थे। इन बच्चों को आवासीय ब्रिजकोर्स के माध्यम से शिक्षित करने के पीछे जिला प्रशासन और जंगल विभाग के राष्ट्रीय उद्यान की यही सोच थी कि यदि बच्चों की इस पीढी को शिक्षा से जोड दिया जाएगा, तो इस पीढी से वन्य जीवों के शिकार की प्रवृत्ति खत्म हो जाएगी और उनके संस्कारों से प्रोत्साहित होकर उनके बडे-बुजुर्ग भी शिकार की प्रवृत्ति त्याग देंगे।

      अपने काम को अंजाम देने के लिए पन्ना राष्ट्रीय उद्यान टाईगर रिजर्व के संचालक श्री जी0 कृष्णमूर्ति ने बच्चों के रहने के लिए आवासीय भवन उपलब्ध कराया और सर्वशिक्षा अभियान की जिला मिशन संचालक एवं कलेक्टर श्रीमती दीपाली रस्तोगी ने बच्चों को शिक्षक, ड्रेस, किताबें उपलब्ध कराते हुए भोजन की व्यवस्था कराई। बहेलियों को उनके डेरों पर जाकर प्रेरित करने में कर्मचारियों को भारी मशक्कत करनी पडी, तब कहीं जाकर ब-मुशिकल वे अपने बच्चे आवासीय ब्रिजकोर्स के लिए भेजने को राजी हुए। इस कोर्स की शुरूआत 22 लडकों और 12 लडकियों से की गई। जो बच्चे कभी जंगल में रहकर तीतर-बटेर फंसाने का काम इसलिए चाहते थे कि उनका और उनके माता-पिता का भरण पोषण हो सके, अब वह शाकाहार के योद्वा बन चुके हैं। ब्रिजकोर्स के शिक्षण-प्रशिक्षण के बाद जंगली जीवन से जुडे रहे बच्चे एकदम बदल गए हैं। जो कभी जंगल में वन्य जीवों की दावत उडाते थे, वही आज मांस का नाम सुनकर बुरा सा मुंह बनाने लगते हैं। जो महीनों नहीं नहाते थे और कपडे नहीं बदलते थे, अब रोजाना नहाते हैं और साफ-सुथरे कपडे पहनते हैं।

       शिक्षा प्रसार के लिए प्रशासन के आवासीय ब्रिजकोर्स का पांच सूत्रीय कार्यक्रम है। शिक्षण, सही व्यवहार, अच्छी आदतें, रहन-सहन का योग्य तरीका और उपयुक्त जीवनचर्या। आवासीय ब्रिज कोर्स में अब बहेलिया जाति के पढने वाले बच्चों की संख्या बढकर 56 लडके और 34 लडकियों के साथ कुल 90 हो गई है। इन बच्चों की दिनचर्या प्रात: 6 बजे से शुरू हो जाती है। पहले वे घूमने जाते हैं, फिर परेड, उसके बाद पी0टी0 करते हैं। योगा, प्राणायाम भी करते हैं। जंगली गतिविधियों के लिए पहचाने जाने वाले बहेलिया बच्चों को शिक्षा के पाठ ने इतना बदल दिया है कि इन बच्चों को देखकर नहीं लगता कि कभी इनका जंगली जीवन से पाला पडा होगा। इनको पढाने का जिम्मा भी कुशल शिक्षकों पर है तथा बच्चों को अनुशासन का पाठ पढाने के लिए एक रिटायर्ड फौजी को रखा गया हैं।

       कल तक जो बहेलिया अपने बच्चों को स्कूलों में भेजने की कल्पना तक नहीं कर सकते थे, आज उनके बच्चे सबसे अच्छे माहौल में पढ रहे है और अब वे अपनी वर्तमान पीढी को स्कूल में भेजने के बारे में सोचने लगे हैं। इस ब्रिजकोर्स में पढने वाली 9 वर्षीया गप्पीबाई यहां के माहौल में रम जाने पर कहती है कि पहले मुझे जंगल में रहना अच्छा लगता था। लेकिन यहां आने के बाद मैं वहां लौटना नहीं चाहती। एक दूसरे छात्र दुर्जन का कहना है कि पहले तीतर, सुअर का शिकार करते थे और पढने को बिलकुल मन नहीं करता था। अब पढना अच्छा लगता है और मुझे अपने गुरूजनों से प्रेरणा मिलती है। ये बच्चे अब तक बहुत कुछ सीख चुके हैं। कलेक्टर श्रीमती रस्तोगी ने बहेलियों के पुर्नवास के लिए जमीन, शासकीय योजनाओं के तहत रोजगार के साधन और अन्य मूलभूत सुविधाओं को मुहैया कराने का आश्वासन दिया है।

 

गुरुवार, 17 जनवरी 2008

भारत रत्‍न दो रूपया किलो, पद्मश्री पॉंच की पसेरी

व्‍यंग्‍य

भारत रत्‍न दो रूपया किलो, पद्मश्री पॉंच की पसेरी

चाहिये भारत रत्‍न तो आ जाओ चम्‍बल में

नरेन्‍द्र सिंह तोमर ''आनन्‍द ''

मुरैना 18 जनवरी । जी हॉं चौंकिये नहीं , हम पुरूस्‍कारों की बाज नहीं कर रहे हैं, यह नई वेरायटी की सब्‍जीयों के दाम हैं । शहर में इन दिनों काछीयों ने सब्‍जी बेचने का नया तरीका ईजाद किया है, जब मैंने पहली बार एक सब्‍जी वाले ठेले पर ऐसी आवाज सुनी तो मैं भी चौंक गया था । फिर बाहर आकर हकीकत जानी तो महज मुस्‍करा कर ही रह गया । हालांकि मेरा भी मन हुआ था कि पसेरी भर भारत रत्‍न मैं भी तुलवा लूं ।

हुआ कुछ यूं कि कुछ काछीयों की कम्‍पटीशन और ग्‍लोबलाइजेशन के चलते सब्‍जीयों की बिक्री में मन्‍दी आ गयी तो वे चिन्तित हो गये । काछीयों की पंचायत बैठी, चिन्‍तन हुआ फिर मन्‍थन हुआ । आखिर शिविर समाप्‍त हुआ, तय हुआ कि मार्केटिंग के नये गुर अपनाने होंगें और इसके लिये जिम्‍मेवारी निर्वहन एक बूढ़े काछी को सौंपी गयी । बूढ़े काछी ने टी.वी., इण्‍टरनेट और एमबीए फेमबीए सब पुस्‍तक किताब अखबार खंगाल डाले और पाया कि आज का हॉट क्‍या है यानि टॉप ई मेल स्‍टोरी क्‍या है । बूढ़े काछी को इतनी लम्‍बी खोज के बाद मिले ''भारत रत्‍न और पद्मश्री'' यही आजकल हॉट हैं, यही मोस्‍ट ई मेल्‍ड स्‍टोरी हैं ।

बूढ़े काछी ने गला खंखारा और महागुरू स्‍टायल में बोला कि ''लाल बुझक्‍कड़ बूझ के और न बूझो कोय, हरी हरी सब्जियन में रत्‍नश्री धर देय ।।खूब बिके फूलें फलें चमके किस्‍मत सोय । फ्रेश सेण्‍टरवा मारे बास, जो रत्‍नश्री धर लेय ।।

काछीयों को बूढ़े काछी की बात जंच गयी और अब सारे काछीयों ने अपने अपने साग भाजी ''भारत रत्‍न और पद्मश्री'' के नाम से बेचना शुरू कर दिये । अब काछीयों का माल भी खूब बिक रहा है और खरीदने वालों को भी मंहगे दाम चुकाकर भी तसल्‍ली होती है, आखिर वे भारत रत्‍न दो रूपया किलो और पद्मश्री पॉंच रूपैया पसेरी में खरीद कर खा रहे हैं ।

मैंने ये काछीयों वाला मामला जब अपने गांव में गांव वालों को सुनाया, तो पहले तो वो ठठा कर हँसे लेकिन बाद में गुरू गम्‍भीर हो गये आखिर ठाकुरों में अक्‍ल जरा देर से जो आती है । और अम्‍बाह की गुरूवारी हाट और मुरैने (हमारे यहॉं मुरैना को मुरैने और अम्‍बाह को अमाह कहा जाता है) की मंगलवारी हाट में जब कोई जानवर बेचने लाते हैं, तो उसकी मार्केटिंग के लिये कह देते हैं कि इसने सौ क्विंटल भारत रत्‍न और डेढ़ सौ क्विंटल पद्मश्री खाये चबाये और पचाये हैं ।

 

यह महज एक व्‍यंग्‍य आलेख है, उसी रूप में कृपया इसे ग्रहण करें

 

भारत में तकनीकी शिक्षा का विकास

भारत में तकनीकी शिक्षा का विकास

तकनीकी शिक्षा मानव संसाधन विकास का एक सबसे जटिल अंग है और यह लोगों के जीवन स्तर को सुधारने के लिए पर्याप्त क्षमता भी रखती है। शिक्षा के इस महत्वपूर्ण क्षेत्र की क्षमता को महसूस करते हुए राष्ट्रीय शिक्षा नीति, एनपीई, 1986 और प्रोग्राम ऑफ एक्शन, पीओए, 1986  ने बदलते समाजिक-आर्थिक परिवेश के अंतर्गत चुनौतियों का प्रभावी रूप से सामना करने के लिए तकनीकी शिक्षा को मान्यता देने और नवीकरण की आवश्यकता पर जोर दिया। तकनीकी शिक्षा के लिए अखिल भारतीय परिषद, एआईसीटीई पूरे देश में तकनीकी शिक्षा पध्दति के समन्वित विकास की योजना के अंतर्गत तकनीकी शिक्षा प्रणाली और संबंधित मामलों में ऐसी शिक्षा के गुणात्मक विकास को बढ़ाने और इसके लिए प्रतिमान और मानकों को बनाने के संदर्भ में संसद के 1987 के अधिनियम 52 के अंतर्गत सांविधिक अधिकार प्राप्त कर चुकी है।

परिषद तकनीकी शिक्षा के क्षेत्र में नियमन, प्रतिमान और मानकों का पालन, क्षमता निर्माण, मान्यता, प्राथमिकता के क्षेत्र में आर्थिक मदद, पाठ्क्रमों की देखरेख और मूल्यांकन, इक्विटी और गुणवत्ता को प्रदान करने वाली कई योजनाओं पर कार्य कर रही है।

पिछले कुछ वर्षो में भारतीय तकनीकी शिक्षा प्रणाली के क्षेत्र की क्षमता में महत्वपूर्ण वृध्दि हुई है। 31 जुलाई, 2007 के अनुसार, एआईसीटी द्वारा स्वीकृत संस्थानों में छात्रों की संख्या में महत्वपूर्ण वृध्दि हुई है। वर्ष 2007-08 के अकादमिक वर्ष में, परिषद 96,551 छात्रों की अतिरिक्त क्षमता प्रदान करने वाले करीब 456 नए संस्थानों को स्वीकृति दे चुकी है।

हमारे प्रयासों और प्रक्रियों में विश्वास जताते हुए वाशिंगटन के प्रमुख संस्थान एआईसीटीए-एनबीए को अंतरिम सदस्यता की स्वीकृति दे चुके हैं।

       एआईसीटीई अधिनियमन के दो दशकों के बाद, परिषद का मानना है कि आज देश में तकनीकी शिक्षा में गुणवत्ता, सार्थकता और प्रभाव लाने और इसकी इक्विटी और क्षमता को बढ़ाने के लिए पर्याप्त विचार-विमर्श, और सलाह की आवश्यकता है। इसी आधार पर, एआईसीटीई ने एक योजना तैयार की और इसके अंतर्गत 17 और 18 दिसम्बर, 2007 को वह नई दिल्ली के पूसा स्थित राष्ट्रीय कृषि और विज्ञान परिसर के सिमपोसियम सभागार में ''भारत में तकनीकी शिक्षा का विकास'' विषय पर एक राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन कर रही है। इस सम्मेलन का उद्धाटन और माननीय केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री श्री अर्जुन सिंह करेगें। उच्चतर शिक्षा के लिए राज्य मंत्री श्रीमती डी पुरंदेश्वरी भी इस अवसर पर अपने विचार प्रकट करेगी। योजना आयोग के सदस्य प्रो0 बी. मंगेरकर उदघाट्न सत्र के मुख्य अतिथि होंगे। इसके अलावा इस सम्मेलन में, उच्चतर शिक्षा विभाग के सचिव श्री आर पी अग्रवाल, यूजीसी के अध्यक्ष प्रो. सुखदेव थोरट भी अपने विचार प्रकट करेगें। सम्मेलन में देशभर के तकनीकी विश्वविद्यालयों और संस्थानों के वरिष्ठ व्यक्तित्व भी भाग लेगें।

       इस सम्मेलन में सात मुख्य विषयों पर तकनीकी सत्रों के दौरान विचार-विमर्श किया जाएगा। इस सम्मेलन का उदेश्य तकनीकी शिक्षा की गुणवत्ता को बढ़ाना और उससे संबधित क्षेत्र में निर्धारित दीर्घकालीन लक्ष्यों को प्राप्त करने की दिशा में कदम उठाना है।

 

बुधवार, 16 जनवरी 2008

परिसीमन का साया और नेताओं की बैचैनी, इक पहलवान अम्‍बाले का इक पहलवान पटियाले का

परिसीमन का साया और नेताओं की बैचैनी, इक पहलवान अम्‍बाले का इक पहलवान पटियाले का

नरेन्‍द्र सिंह तोमर ''आनन्‍द''

करवट 2 श्रंखलाबद्ध आलेख

 

पिछले अंक से जारी ...

चन्‍दन चाचा के बाड़े में ... यह एक मशहूर कविता है जो पहले हमारे कोर्स में चलती थी जब हम स्‍कूल में थे, इसमें नागपंचमी के अवसर पर होने वाली कुश्‍ती दंगल के बारे में रोचक एवं मनोहारी चित्रण है ।

परिसीमन से गर्मायी राजनीति के चलते अंचल इस समय राजनीति का चन्‍दन चाचा का अखाड़ा बन गया है । यूं तो चम्‍बल घाटी में कई चन्‍दन चाचा हैं, मेरे गांव में भी एक चन्‍दन चाचा हैं, अब वे काफी वृद्ध हो चुके हैं लेकिन मैं उनका सबसे प्‍यारा बेटा यानि पहलवान रहा हूँ । लेकिन राजनीति एक ऐसी कुश्‍ती है कि जिसके पहलवान हम जैसे नहीं कुछ और ही किस्‍म के लोग हुआ करते हैं । राजनीति के पहलवान दूध घी और बादाम से नहीं बल्कि सुरा सुन्‍दरी और धुँआ पानी तथा बड़ी तगड़ी कार गाड़ीयों से नापे जाते हैं । अब भुजबल की नहीं बाहुबल की ताकत से अंदाज लगाया जाता है कि अमुक राजनीतिक दल का अमुक पहलवान कैसा खेलेगा । अब भलमनसाहत से नहीं गुण्‍डापन से लोकप्रियता का आकलन किया जाता है । वगैरह वगैरह यह भी पार्टीयों के लिये जानना जरूरी है कि जीतने के बाद कित्‍ते कमा सकेगा कित्‍ते खिला सकेगा । यूं कि कुल मिला कर राजनीति का चयन क्राइटिरिया कुछ अलग किस्‍म का होता है । चमचागिरी के अव्‍वल उस्‍ताद और वर्षों तक किसी बड़े नेता के यहॉं ढोक लगाते रहे हों तथा टिकिट मांगने जाते वक्‍त आपके साथ कितने वाहन और कितनी भीड़ है, इससे दिल्‍ली और भोपाल में बैठे बड़े नेताजी अंदाज लगाते हैं कि आप चुनाव जीत सकते हैं कि नहीं ।

मेरे एरिया के नेता सुपरहिट शोले फिल्‍म की तरह कुछ इस किस्‍म का मसाला अभी से इकठठा करना शुरू कर दिये हैं ।

इस देश में जहॉं छुटभैये नेताओं की कमी नहीं तो छुटभैयों के चमचों की भी कोई कमी नहीं है ।

एक कहावत है कि बरसात गिरते ही हर छोटा बड़ा गढढा पानी की चन्‍द बूंदों का आयतन पाते ही खुद को ताल तलैयां और सागरों से तौलने लगता है , बिल्‍कुल इसी तरह नेता जी (नये नेता जी) जैसे नया मुल्‍ला प्‍याज ज्‍यादा खाता है या ज्‍यादा अल्‍लाह चिल्‍लाता है नये नेता जी मतलब वे नेता जी जो किसी छुटभैये के चमचे बनकर उसके दरबार में सुबह शाम की हाजरी बजाने को ही राजनीतिज्ञ होना समझते हैं और उनके साथ जाकर बनियों हलवाईयों तथा चपरासीयों को धमकियाना शुरू कर देते हैं वे अपने आप को मनमोहन सिंह या अटलबिहारी से कम नहीं मानते । और खादी भण्‍डार की दूकान पर जाकर नई ड्रेस और जैकेट खरीद कर बगुला बन कर स्‍वयं को भावी मुख्‍यमंत्री या प्रधानमंत्री के रूप में देखने लगते हैं ।

छुटभैयों के चमचों को छुटचमचे कहे तो बेहतर हैं, परिसीमन की चर्चा के चलते कुछ छुटचमचे इन दिनों अंचल में अतिसक्रिय हो गये हैं और अपने आका के लिये फोनों पर धमकियाने के अलावा फण्‍ड अरेन्‍जमेण्‍ट और माहौल बनाने तथा मीडिया में नाम चलवाने की जुगत में जी तोड़ मेहनत में जुट गये हैं । वहीं कुछ हसीनायें भी सक्रिय होकर नेताओं के साथ तफरीह में लग गयीं हैं । यूं तो नेता महिलाओं के बगैर कहीं पग नहीं धरते और जैसे सीमा पर लड़ती सेना के सैनिक दो बूंद जिन्‍दगी की यानि प्‍यार की तलाश में आत्‍महत्‍यायें कर तनाव के विषाद में डूबे रहते हैं, ठीक उसी तरह बिन महिला नेत्री छुटचमचों को पार्टी या राजनीति में न रस आवे है न रूतबा लागे है ।

यूं तो लगभग हर राजनीतिक दल अपनी महिला विंग बनाता है, और महिला नेत्रीयां उनके साथ अक्‍सर सफर में या बैठकों में रहतीं है मगर .....खैर छोड़ो ।

हॉं तो परिसीमन की दस्‍तक के साथ ही बड़े नेताओं के छुटभैये सक्रिय होकर राग चुनावी अलापना शुरू कर दिये हैं और छुटचमचों ने उनके ख्‍वाबों को ताबीर देने का काम चालू कर दिया है ।

जहॉं गाडि़यों की बड़ी संख्‍या, फण्‍ड अरेन्‍जमेण्‍ट और सुरा सुन्‍दरी तथा भीड़ गुण्‍ताड़ा की मशक्‍कत चालू हो गयी है वहीं एरिया के टेम्‍परेचर लेने का काम भी चालू है ।

अब टिकिट मांगने वालों की कतार अभी से बनना शुरू हो गयी है और चुनाव यानि की शादी ब्‍याह के लिये लोग ऐन वक्‍त पर रिस्‍क लेने के मूड में नहीं हैं ।

मजे की बात ये है कि शहरों में कुछ लोग भीड़ व वाहन सप्‍लाई का व्‍यवसाय भी शुरू कर चुके हैं, और प्रतिवाहन व प्रति व्‍यक्ति सप्‍लाई नारों सहित या बगैर नारों सहित उनकी दरें अलग अलग हैं ।

 

     क्रमश: जारी अगले अंक में .........