सोमवार, 30 नवंबर 2009

सचिन को कुछ मत कहो - राकेश अचल

सचिन को कुछ मत कहो  -  राकेश अचल

विवाद

       शिवसेना और राष्ट्रवादी कांग्रेस महान क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर को लेकर राजनीति कर रहे है। यह ठीक नहीं है। सचिन तेंदुलकर महाराष्ट्र का ही नहीं बल्कि पूरे राष्ट्र का गौरव है, वे राजनीति के लिए कतई नहीं बने है।

शिवसेना मराठी मानस होते हुए भी सचिन रमेश तेंदुलकर से इसलिए नाराज है क्योकि सचिन ने सेना के सुर में सुर नहीं मिलाया। मराठी और महाराष्ट्र से ऊपर राष्ट्र को रखा। यह सचिन ही कर सकते है। वे राष्ट्र और महाराष्ट्र तथा मराठी, हिंदी के महत्व को समझते है।

मराठी में शपथ न लेने पर सेना का क्लोन मन से सपा विधायक अबू आजमी पर तो हाथ उठा सकती है लेकिन सचिन तेंदुलकर पर नहीं। दोनों ठाकरे सेनाओ को पता है कि सचिन की होना उनकी सेनओ से कही ज्यादा बडी और शक्तिशाली है। सचिन का नायकत्व किसी भी कार्टूनिस्ट से कही ज्यादा बड़ा है। सचिन को बोलने के लिए किसी सामना जैसे माउथ पीस की जरूरत नही है सचिन कम, उनका बल्ला ज्यादा बोलता है।

भारतीय रेल ने दूरतों नाम की रेल का लोकर्पण किया तो सचिन प्रेमी राकपा ने दूरन्तों का नाम सचिन के नाम पर रखने की मांग कर डाली। राकांपा की इस मांग के पीछे सचिन प्रेम है या राजनीति यह खोज का विषय है किंतु शिवसेना को तो यह राजनीति है लगी। इसीलिए उन्होने राकांपा की मांग का विरोध करते हुए सचिन को भी छोटा बनने की घटिया कोशिश कर डाली।

दुर्भाग्य देखिए कि शिवसेना वाले मीडिया को भगवान नहीं मानते और उनके माउथपीस सामना के संपादक संजय राउत सचिन को महान नहीं मानते। उस सचिन को जिसकी महानता को पूरी दूनिया सलाम करती है।

मुझे नही लगता कि सामना में लिखी ऊट पटांग टिप्पणी से सचिन तेंदुलकर का कुछ नुकसान होने वाला है। राउत को अपने लिखे पर भरोसा है तो वे सबसे पहले शिवसेनिको को सचिन का क्रिकेट देखने से मना कर देखे। असलियत का पता चल जाएगा।

सचिन को लेकर शिवसेना द्वारा शुरू की गई राजनीति से सचिन के साथ साथ उनके असंख्य प्रशांसक भी आहत हुए है। इनमें मराठी भी है और गैर मराठी भी। इसलिए बेहतर तो यही है कि शिवसेना पहले राजनीति का मतलब समझे फिर राजनीतिक व्यवहार करना सीखे। गुण्डे-मवालियों की भाषा और उन्ही जैसा व्यवहार कम से कम भारतीय राजनीति का हिस्सा तो नही हो सकता।

पिछले कुछ वर्षो में शिवसेना और उसके क्लोन मनसे की जो गतिविधिया रही है उनसे साबित हो गया है कि महाराष्ट्र की यह सेनाऐ बसपा के जातिवादी चरित्र से भी ज्यादा जहरीली और राष्ट्रघाती है। वोटों की खातिर केंद्र और राज्यों की सरकारें भले ही इन घातक संगठनों पर रोक न लगाएं, किंतु महाराष्ट्र की सुस्ंकारित जनता को तो इनका बहिष्कार करना ही चाहिए। इस पूरे विवाद में हम सचिन रमेश तेंदुलकर के सयंम की सराहना करना चाहते है कि उन्होने कोई प्रतिक्रिया नही की। उनके मौन ने ही ठाकरे सेना का पानी उतार दिया। सेना की टिप्पणी का न शिव सैनिको पर असर हुआ न मराठी मानस परं सब जानते है कि सचिन मराठी बाद मे है पहले सच्चे भारतीय है। उन तमाम सच्चे भारतीयों की तरह जो किसी सेना का अंग नही है। जिन्हे कोई ठाकरे निर्देशित नहीं करते।

इस देश ने बीते सालों में कितने ही भाषायी आंदोलन और भाषा के आधार पर बने राजनीतिक संगठन देखे है लेकिन कोई भी अजर-अमर नहीं हो सका। हिंदी का विरोध कर दस पांच तो सबकी राजनीति चली, लेकिन बाद मे सब धूल मे मिल गए। हिंदी से अलग रहकर न आज देष की राजनिति जीवित रह सकती है, न अर्थ व्यवस्था। समाज तो हिंदी के बिना रह ही नही सकता। कोई भी भाषा और क्षेत्र हो, हिंदी सबके लिए संपर्क की भाषा है। विचार विमर्श का माध्यम है। हिंदी की अस्मिता मराठी की अस्मिता से कतई अलग नहीं है, इसलिए जागो, सैनिकों जागो। (भावार्थ)

 

रविवार, 29 नवंबर 2009

मंहगाई के समाधान हेतु उपाय जरूरी राजनीति नहीं मंहगाई के समाधान हेतु उपाय जरूरी राजनीति नहीं

मंहगाई के समाधान हेतु उपाय जरूरी राजनीति नहीं

निर्मल रानी 

163011, महावीर नगर, अम्बाला शहर, हरियाण ोन-0171-2535628  email: nirmalrani@gmail.com

                                                                              

 देश प्रेम व राष्ट्र भक्ति पर  अपनी ंफिल्मों का   अधिकांशत निर्माण करने वाले ंफिल्म निर्माता, निर्देशक एवं अभिनेता मनोज कुमार ने तीन दशक पूर्व अपनी एक मशहूर ंफिल्म रोटी,कपड़ा और मकान में एक सुप्रसिद्ध गीत ंफिल्माया था। जिसके बोल थे मंहगाई मार गई.....। इसी गीत की एक पंक्ति याद कीजिए जिसमें कहा गया था कि पहले मुटठी में पैसे जाते थे और थैला भर शक्कर आती थी,अब थैले में पैसे जाते हैं और मुटठी में शक्कर आती है। जिन शब्दों में तीन दशक पूर्व की मंहगाई का उल्लेख किया गया है क्या वास्तव में इन गीतों की पंक्तियों के अनुसार ही उस समय उतनी मंहगाई थी? हरगिंज नहीं। परंतु उसके बावजूद गीतकार को उस समय की बढ़ती हुई  मंहगाई से आजिंज व परेशान होकर अपने गीत में इस प्रकार के व कुछ इससे भी कठोर बोल डालने पड़े। कहने का तात्पर्य यह है कि मंहगाई का बढ़ना आज केवल हमारे ही देश की कोई नई समस्या नहीं है। मंहगाई हमेशा बढ़ी है, लगातार बढ़ी है और मूल्यवृद्धि का यह सिलसिला आज भी बदस्तूर जारी है। हां हम यह जरूर कह सकते हैं कि मंहगाई बढ़ने की गति गत् एक वर्ष के भीतर कुछ ज्यादा ही तेंज हो गई है जिसे नियंत्रित करने की अविलंब ंजरूरत है।

              जहां तक निरंतर मूल्यवृद्धि होते रहने का प्रश् है तो इसे  हम एक प्राकृतिक क्रम के  रूप में स्वीकार करते हैं। परंतु गत् एक वर्ष में जिस प्रकार बेतहाशा मूल्यवृद्धि दर्ज की गई है और यह सिलसिला अभी भी पूर्ववत जारी है उसके कुछ विशेष कारण केंद्र सरकार द्वारा बताए जा रहे हैं। केंद्र सरकार के अनुसार पूरे विश्व में छाई अंतर्राष्ट्रीय स्तर की भयानक मंदी जहां इस निरंतर बढ़ती मंहगाई के लिए कांफी हद तक ंजिम्मेदार है वहीं कच्चे तेल की अंतर्राष्ट्रीय  ंकीमतों में लगातार होने वाला इंजांफा भी मंहगाई के इस सिलसिले के लिए कांफी हद तक ंजिम्मेदार है। इस पर सोने पे सुहागा यह कि इसी दौरान देश को जहां बारिश की कमी से जूझना पड़ा वहीं देश के कई इलाक़े सूखे व बाढ़ की चपेट में भी आ गए। जाहिर है इन प्राकृतिक परिस्थितियों ने मूल्यवृद्धि को चौथे आसमान पर पहुंचा दिया।

              इस पूरे प्रकरण में इससे भी अधिक दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि लगातार बढ़ती मंहगाई में अपने भारी मुनांफे की संभावनाओं को तलाशते हुए देश के मुनांफांखोरों,जमांखोरों व कालाबांजारी करने वालों ने इन दुर्भाग्यपूर्ण हालात से आर्थिक लाभ उठाना शुरु कर दिया। देश के कई राज्यों में चीनी,अन्न,दाल आदि के बड़े स्टॉक जमांखोरों के ंकब्ंजे से बरामद किए गए हैं। ऐसे कई जमांखोरों के विरुद्ध मुंकदमे भी ंकायम किए गए हैं। परंतु अंफसोस की बात तो यह है कि विपक्षी दल जमांखोरों व काला बाज़ारी करने वालों के विरुद्ध मुखरित होकर नहीें बोलते। विपक्षी दलों का सीधा निशाना केंद्र सरकार पर ही सधा रहता है। आज देश के अधिकांश राज्यों में ंगैर कांग्रेसी सरकारों का शासन है। मंहगाई उन ंगैर कांग्रेसी राज्यों में भी उतनी ही है जितनी कि कांग्रेस शासित राज्यों में देखी जा रही है। परंतु ंगैर कांग्रेसी राज्य सरकारें मूल्यवृद्धि नियंत्रण के परस्पर उपाय करने के बजाए केंद्र सरकार पर मंहगाई बढ़ने की ंजिम्मेदारी मढ़ने में अधिक उर्जा लगा रही हैं। बेशक कुछ राज्यों में जमांखोरों के विरुद्ध कार्रवाई हुई

है। परंतु इसका अर्थ यह तो ंकतई नहीं हो सकता कि देश से जमांखोरी,कालाबांजारी का संफाया हो गया हो। वास्तव में जमांखोर तो ऐसे अवसरों की प्रतीक्षा में रहते हैं जिनसे कि आज हमारा देश रूबरू हो रहा है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि इन कालाबाजारी करने वालों तथा जमांखोरों के विरुद्ध कानूनी कार्रवाई कौन करे। यह केंद्र सरकार का कार्य क्षेत्र है या राज्य सरकारों की ंजिम्मेदारी है?जाहिर है यह राज्य संबंधी मुददा है और देश की प्रत्येक राज्य सरकारें चाहे वे कांग्रेसी सरकारें हों अथवा ंगैर कांग्रेसी, उन्हीं का यह दायित्व है कि वे मंहगाई के ंजिम्मेदार जमांखोरों के विरुद्ध सख्त से सख् त कार्रवाई करें तथा ऐसे गोदामों पर छापे मारकर बरामद की गई खाद्य सामग्री को खुले बाजार में उचित मूल्यों पर उपलब्ध कराएं।

              हां मूल्य वृद्धि की इस हाय-तौबा के बीच कुछ बातें ऐसी ंजरूर हैं जिनका अंकगणित आम जनता की समझ से बाहर है। जैसे कि आमतौर से किसी भी वस्तु की कीमत बढ़ने का बुनियादी अर्थशास्त्र यही सुना जाता है कि माल के  उत्पादन व आपूर्ति में कमी तथा उसके अनुपात में उसी माल की अधिक खपत होना प्राय: मूल्यवृद्धि का कारण माना जाता रहा है। परंतु आज तो परिस्थितियां ही कुछ उल्टी सी दिखाई दे रही हैं। यानि आप को बांजार में किसी वस्तु की कोई कमी नहीं मिलेगी। चीनी,सभी प्रकार की दालें,घी व तेल जैसी रोंजमर्रा के प्रयोग की सभी वस्तुएं आप जितनी चाहें ंखरीद सकते हैं। सब कुछ बांजार में उपलब्ध है। परंतु आप को उसकी ंकीमत वही चुकानी होगी जो दुकानदार द्वारा आप को बताई जा रही है। आंखिर इस अर्थशास्त्र का रहस्य क्या है? क्यों बढ़ रही है रोज़ाना इस प्रकार से मंहगाई और कौन सी शक्तियां व कौन से तंत्र काम कर रहे हैं इस मूल्य वृद्धि के घटनाक्रम के पीछे? यदि इस विषय की गहराई तक पहुंचने की कोशिश की जाए तो नि:स्संदेह मंहगाई दूर करने के उपायों की दिशा में सरकार के  ंकदम कुछ न कुछ आगे ंजरूर बढ़ सकते हैं।

              दूसरी बात मंहगाई के साथ-साथ आम आदमी की आय से भी जुड़ी हुई है। आज एक साधारण मंजदूर 200 रुपये की दिहाड़ी पर काम करता दिखाई देता है। रिक्शा चालकों ने तो 2 रुपये मांगने ही बंद कर दिए हैं। किसी भिखारी को अब दस या पचास पैसे दीजिए तो वह आंखें घूरकर आपकी ओर देखने लग जाता है। अर्थात् उसे भी कम से कम दो रुपये या पांच रुपये चाहिए। सरकारी कर्मचारियों की तनख्वाहें कितनी बढ़ चुकी हैं इसका अंदांजा वे स्वयं लगा सकते हैं। मंहगाई के साथ-साथ देश तरक्की क़ी राह पर आगे बढ़ रहा है। सड़कें,विद्युत,परिवहन,स्वास्थय,संचार तथा शिक्षा जैसी मूलभूत आवश्यकताओं के क्षेत्र में भी पहले से कहीं अधिक सुविधाएं देखी जा रही हैं। जाहिर है इन सब सुविधाओं का कुछ न कुछ भुगतान तो आम आदमी को किसी न किसी रूप में करना ही पड़ेगा। और वह देश का आम आदमी कर भी रहा है।

              उपरोक्त सभी तथ्यों के बावजूद देश की आम जनता इस बेतहाशा मूल्य वृद्धि से अविलंब निजात चाहती है। ंखासतौर पर जब देशवासी यह देखते हैं कि डा. मनमोहन सिंह जैसा विश्व का महान अर्थशास्त्री इस समय देश की बागडोर संभाल रहा हो। ऐसे में ंजरूरत इस बात की है कि जिस प्रकार अन्य कई प्रमुख एवं जटिल मुददों पर सर्वदलीय बैठकें आयोजित कर ऐसी समस्याओं से निपटने के सामूहिक रूप से उपाय तलाश किए जाते हैं ठीक उसी प्रकार सभी राजनैतिक दलों के नेता इस मुददे पर भी एकमत हों तथा आम आदमी को मंहगाई से निजात दिलाने में अपनी सकारात्मक भूमिका निभाएं। पूरे देश में व्यापक तौर पर छापेमारी किए जाने की भी सख्त ंजरूरत है। इस कार्य हेतु राज्य सरक ारें विशेष उपाय करें तथा ऐसे छापामार दस्ते गठित करें जो जमांखोरी के नेटवर्क को तत्काल ध्वस्त कर सके। अकारण ही किन्हीं वस्तुओं के दाम बढ़ाने वालों के  विरुद्ध भी सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए। विपक्षी दल भी मंहगाई के नाम पर की जाने वाली  घटिया व ओछी राजनीति से ंकतई बांज आएं। मंहगाई के मुददे पर मात्र कांग्रेस की नीतियों को ही ज़िम्मेदार ठहराने का विपक्षी दलों का प्रयास लोकसभा व विधानसभा के पिछले दिनों हुए चुनावों में पूरी तरह फेल हो चुका है। अत:भविष्य में भी मंहगाई रूपी लांछन न तो कांग्रेस पार्टी को नुंकसान पहुंचाने वाला दिखाई दे रहा है और न ही इस शोर-शराबे का कोई लाभ विपक्ष को मिलने की संभावना नंजरआ रही है। लिहांजा मेरे विचार से आम आदमी को मंहगाई से बचाने का सर्वोत्तम उपाय सर्व दलीय प्रयास ही रह जाता है। परंतु वह भी पूर्णतय: पारदर्शी,ईमानदाराना तथा ंजिम्मेदाराना होना चाहिए।

 

 

 

शनिवार, 28 नवंबर 2009

मेरा फिल्म स्टार बनना ईश्वर की इच्छा थी - आशा पारिख

मेरा फिल्म स्टार बनना ईश्वर की इच्छा थी - आशा पारिख

       इपफी-गोवा मे आज एक बार फिर आशा पारिख ने जहां अपनी पुरानी यादों को ताजा किया वहीं एक औपचारिक संवाददाता सम्मेलन को बीते दिनों की तरह सामूहिक रूप से पुन: साथ रहने में तब्दील कर दिया । सुन्दरता से दीप्तिमान आशा ने आनन्दित होते हुए कहा कि मेरा फिल्म स्टार बनना शायद ईश्वर की इच्छा थी और मैंने उस नियति को पूरा किया । यह नम्रता तब प्रदर्शित हुई जब किसी ने एक अभिनेत्री के रूप में उनके मूल्यांकन के विषय में पूछा । उन्होंने कहा कि शायद वह कुछ अभिनय क्षमता के साथ पैदा हुई थीं और कुछ अपने काम से सीखा । उन्होंने कहा कि मेरी शुरूआती फिल्मों में मुझे एक ग्लैमर डॉल (चमकीली गुड़िया) के रूप में प्रस्तुत किया गया, किन्तु दो बदन में काम करने के पश्चात मुझे आलोचनात्मक तारीफ मिली जिससे मुझे बड़ी संतुष्टि प्राप्त हुई ।

       अपने जीवन के विषय में कोई अफसोस ने जताते हुए उन्होंने कहा कि वे आशा पारिख के रूप में पुन: जन्म लेना चाहेंगी, तथापि उन्होंने अपनी आत्मकथा की संभावना से इंकार किया । उन्होंने अपनी फिल्मों को श्रेष्ठ मानने से इंकार किया लेकिन पुनर्निर्माण के एक प्रश्न के उत्तर में उन्होंने कहा कि दो बदन, मैं तुलसी तेरे आंगन की और मेरा गांव मेरा देश का पुनर्निर्माण किया जा सकता है । नये निर्देशकों में, उन्होंने कहा कि सूरज बड़जात्या, प्रियदर्शन और फरहान अख्तर आशा की नई किरण हैं ।

 

       सेंसर व्यवस्था के बारे में एक प्रश्न के उत्तर में सेंसर बोर्ड की पूर्व अध्यक्ष ने कहा कि यह बोर्ड से ज्यादा माता-पिता के लिए नियंत्रण का एक औजार है । उन्हें अपने बच्चों का मार्गदर्शन करना चाहिए और इसके लिए उन्हें ए श्रेणी की फिल्में देखने का बलिदान करना होगा ।

 

पटकथा से मोहब्बत होने के बाद ही मैं उसे फिल्म का रूप देता हूँ - अनिरुध्द रॉय चौधरी

पटकथा से मोहब्बत होने के बाद ही मैं उसे फिल्म का रूप देता हूँ - अनिरुध्द रॉय चौधरी

फिल्म के पर्दे पर आपकी मेहनत और आपका प्रेम ही कोई जादू कर पाता है, न कि कोई फार्मूला।  यह कहना है भारतीय पैनोरमा खंड में शामिल अन्तहीन फिल्म के निर्देशक अनिरुध्द रॉय चौधरी का। आज यहां संवाददाताओं से बातचीत में उन्होंने कहा कि उनकी सभी फिल्म वास्तविकता से पूर्ण होती है और उन अनुभवों, परिस्थितियों और चरित्रों पर आधारित होती है, जिसका उन्होंने जीवन में खुद अनुभव किया होता है। श्री अनिरुध्द ने कहा कि वे केवल उसी पटकथा पर फिल्म बनाते हैं, जिससे उन्हें मोहब्बत हो चुकी होती है। उनके साथ संवाददाता सम्मेलन में राहुल बोस, मीता वशिष्ट और राधिका आप्टे भी  उपस्थित थे।

 

       श्री राहुल बोस ने स्वीकार किया कि वे फिल्म की पटकथा में काफी फेरबदल कराते हैं। उन्होंने कहा कि किसी उपयुक्त कहानी को आप तभी पर्दे पर सफलतापूर्वक उतार सकते हैं, जब उसके पीछे की पटकथा में भी दम-खम हो।  राहुल बोस ने  कहा कि वे व्यावसायिक सिनेमा से ज्यादा नहीं जुड़ते क्योंकि उन्हें ऐसा सिनेमा काफी बोरिंग लगता है और वे उन चीजों को करना पसन्द करते हैं, जिनमें चुनौती हो।

 

       मीता वशिष्ट का कहना था कि अनिरुध्द रॉय चौधरी को अपनी पटकथा पर पूरा भरोसा होता है, लेकिन इसके बावजूद वे नई संभावनाओं के प्रति काफी खुला रुख अपनाते हैं।

 

 

शुक्रवार, 27 नवंबर 2009

संस्‍कृति भी ऑन लाइन होगी , कवियों साहित्‍यकारों के साथ एन.जी.ओ. की नेटवर्क भी ऑनलाइन होगी

संस्‍कृति भी ऑन लाइन होगी , कवियों साहित्‍यकारों के साथ एन.जी.ओ. की नेटवर्क भी ऑनलाइन होगी

मुरैना 28 नवम्‍बर 09, चम्‍बल की प्रसिद्ध स्‍वयंसेवी संस्‍था ''संस्‍कृति'' भी शीघ्र ही ऑन लाइन होकर इण्‍टरनेट पर आ रही है । ग्‍वालियर टाइम्‍स समूह संस्‍कृति संस्‍था को ऑनलाइन करने की व्‍यापक तैयारीयां कर रहा है ।

संस्‍कृति की वेबसाइट इण्‍टरेक्टिव होगी तथा साहित्‍यकार, कवि एवं स्‍वयंसेवी संगठनों की विशाल नेटवर्क संस्‍कृति की वेबसाइट पर उपलब्‍ध होगी , साथ ही संस्‍कृति अपनी परियोजनाये, सूचना का अधिकार सहित कई अनेक चैनल उपलब्‍ध करायेगी ।

संस्‍कृति के निदेशक प्रसिद्ध कवि एवं साहित्‍यकार देवेन्‍द्र तोमर ग्‍वालियर टाइम्‍स समूह से जुड़कर संस्‍कृति संस्‍था के कार्यो की बृहद परियोजना बनाने में जुटे हैं ।  संस्‍कृति की वेबसाइट में चम्‍बल के ही नहीं बल्कि देश भर के साहित्‍यकारों व कवियों को उनकी रचनाओं के साथ एक जगह पर ही प्रकाशित किया जायेगा । और कई ख्‍यातनाम साहित्‍यकारों व कवियों की दुर्लभ कृतियां भी यहॉं पढ़ीं जा सकेगी ।  उनकी तथा स्‍वयंसेवी संस्‍थाओं की विशाल नेटवर्क एवं डायरेक्‍ट्री भी यहॉं मय वेबसाइट उपलब्‍ध होगी । जिसमें आनलाइन पंजीयन कराने से लेकर प्रकाशन प्रसारण वेब नेटवर्किंग जैसी सुविधायें तथा आटो अपडेशन एवं आटो पब्‍िलिशिंग की सुविधा भी दी जायेगी ।

ग्‍वालियर टाइम्‍स के मुख्‍य कार्यपालन अधिकारी एवं प्रधान संपादक नरेन्‍द्र सिंह तोमर ''आनन्‍द'' वेब साइट की रूपरेखा तैयार कर रहे हैं । इसके पश्‍चात चम्‍बल की करीब 16 अन्‍य स्‍वयंसेवी संस्‍थायें भी ऑन लाइन की जायेंगी । नरेन्‍द्र सिंह तोमर ''आनन्‍द'' ने कहा है कि चम्‍बल के बारे में विश्‍व में व्‍याप्‍त भ्रांतियां दूर कर असल चम्‍बल से परिचित कराने के अपनी परियोजना के दूसरे चरण पर तथा ई कामर्स व ई गवर्नेन्‍स के तीसरे चरण को नेशनल नोबल यूथ अकादमी ने कार्य करना प्रारंभ कर दिया है । शीघ्र ही वे ग्‍वालियर चम्‍बल में एक विशेष अभियान छेड़ कर कार्यक्रम को गति देंगे ।

ग्‍वालियर टाइम्‍स ग्‍वालियर चम्‍बल के पत्रकारों, राजनेताओं, विद्यालयों, महाविद्यालयों, चिकित्‍सकों, अभिभाषकों की डायरेक्‍ट्री भी शीघ्र ही ऑनलाइन करने जा रही है यह भी इण्‍टरेक्टिव होगी और इसमें भी आन लाइन पंजीयन, आटो अपडेशन व आटो पब्‍िलिशंग की सुविधा रहेगी ।    

 

बुधवार, 25 नवंबर 2009

आलेख : प्रकृति के सानिध्य में स्वस्थ जीवन

आलेख : प्रकृति के सानिध्य में स्वस्थ जीवन

ग्वालियर 25 नवम्बर 09। प्रकृति, प्रकृति हमारी माँ है। भगवान ने हमें बनाने से पहले प्रकृति बनाई। जिससे वह हमारी सुरक्षा (केयर) कर सके। जिस प्रकार एक बच्चे की सुरक्षा मां करती है।

      प्रकृति कभी बीमारी पैदा नहीं करती। मुनष्य अपनी गलत जीवन शैली, गलत भोजन, गलत आदत, गलत स्वभाव के कारण बीमार होता है। प्राकृतिक रूप में रहने वाले कोई भी जानवर कभी बीमार नहीं होते। जैसी जीवन शैली पशु पक्षिओ की होती है वैसा भोजन और जीवन बनाने की अगर हम कोशिश करेंगे तो हम भी स्वस्थ रहेंगे।

      प्रकृति का पहला सिध्दांत है परिश्रम युक्त जीवन। जिसका पालन पशु पक्षी करते हैं। आसमान में पक्षी कोसों दूर तक उड़ते रहते हैं फिर अपना भोजन प्राप्त करते हैं। इसी प्रकार जानवर भी एक स्थान से दूसरे स्थान तक मीलों चल कर अपना भोजन प्राप्त करते हैं। प्रकृति भी हमें मेहनत करना सिखाती है। जिस प्रकार पेड़ के पत्ते हमेशा हिलते रहते हैं। नदी का पानी हमेशा बहता रहता है।

      अगर नदी का पानी बहना छोड़ दे तो तालाब बन जायेगा और तालाब में स्वत: ही कीटाणु पैदा होने लगते हैं। और तालाब का  पानी पीने योग्य नहीं होता जबकि नदी का पानी पीने योग्य। मेहनतयुक्त जीवन जीने  वाले का जीवन जीने योग्य होता है। बैठा जीवन जीने वाले के शरीर में अपने आप कीटाणु पैदा हो जाते हैं और बीमारी जीवन को घेर लेती है।

      बीमारी से दूर रहने के लिये हमें प्रकृति का ही सहारा लेना चाहिये। मिट्टी शरीर में से सारे विजातीय तत्व खींच लेती है इसलिये प्राकृतिक चिकित्सालयों में मिट्टी का लेप किया जाता है। हमारे पूर्वज किसान, माली या कुम्हार होते थे। तो उनका मिट्टी से संपर्क बना रहता था और वे स्वस्थ बने रहते थे। इसलिये महीने में एक बार पूरे बदन पर काली मिट्टी का लेप करें और सुंदर दिखें।

      पृथ्वी (धरती) स्वयं एक बहुत बड़ा लौह चुंबक है। जमीन पर सोने से हमें लौह चुंबकीय शक्ति मिलती है। इसलिये कम से कम एक घंटे हमें धरती पर सोना चाहिए। जमीन उबड़-खाबड़ होती है उसी कारण जमीन पर सोने वाले सभी जानवरों के सारे पॉइन्टस दब जाते है। नारियल के पत्तों की चटाई बिछाकर सोने से अपने आप एक्युप्रेशर चिकित्सा हो जाती है।

      पानी पृथ्वी का अमृत है और स्वास्थ्य के लिये सबसे जरूरी तत्व है। पानी के द्वारा शरीर की सफाई होती है। पूरे दिन में 15 से 20 ग्लास पानी पीने से शरीर का कचरा निकल जाता है। भूखे पेट पानी पीना चाहिये और भोजन के दो घंटे बाद पानी पीना टॉनिक के समान है। भोजन करते समय पानी नहीं पीना चाहिये। सुबह खाली पेट पानी पीना अमृत जैसा है। पशुपक्षी पानी में, तालाब में बैठते हैं। पानी में भी ऐसी शक्ति है, जो शरीर के विजातीय तत्वों को खींच लेती है। हमारे पूर्वज नदी तालाबों में नहाते थे, बारिश में भीगते थे तो उनकी पानी से चिकित्सा हो जाती थी। इसलिये माह में एक बार कम से कम आधा घंटा पानी में बैठें और रोगों को दूर भगायें।

      शरीर पांच तत्वों से मिलकर बना है। चार तत्व भोजन, पानी, हवा, अग्नि तो हमें मिल जाती है पर पांचवा तत्व आकाश तब तक नहीं मिलता जब तक हम उपवास नहीं करते। सभी जानवर भी उपवास करते हैं। पशुपक्षी जब भी बीमार  होते हैं खाना छोड़ देते हैं। प्रत्येक धर्म में भी उपवास की परंपरा है। सप्ताह में एक दिन उपवास करने से शरीर को भोजन पचाने में आसानी होती है और शरीर स्वस्थ रहता है।

      पशु पक्षी सूरज की रोशनी में दिनभर रहते हैं इसलिये वे कभी बीमार नहीं पड़ते। मनुष्य चार दीवारों के बीच सूर्य का प्रकाश न पाकर बीमार पड़ता है। इसलिये सुबह की सूरज की रोशनी मनुष्य को अवश्य लेनी चाहिये। छोटे बच्चों को सुबह की धूप दिखानी चाहिये जिससे उनकी हड्डियां और दिमाग मजबूत होता है। बड़ों को भी सूरज की रोशनी में सूर्य नमस्कार करना चाहिये। जानवर वहीं पानी पीता है जिसमें सूर्य की किरणें पड़ीं हों। हमें भी घर का मटका घर के आंगन या सूरज की रोशनी में रखना चाहिये। पानी पीने से शरीर में सात रंगों का बेलेन्स हो जाता है।

      हम स्वच्छ पानी पीते हैं, साफ सफाई से रहते हैं, कई तरह की सावधानी बरतते हैं फिर भी रोगग्रस्त हो जाते हैं परंतु हम जानवरों को देखें तो वे स्वस्थ रहते हैं क्योंकि उनकी रोगप्रतिरोधक क्षमता अत्यंत बलशाली होती है। कारण यह है कि वे नंगे पैर चलते है तो उनके पंजों के पाइंट कंकर, पत्थरों से दबते रहते हैं। एक्युप्रेशर सिध्दातों के अनुसार शरीर के सभी आंतरिक अवयवों के बिंदु या तो पंजों में या पैर के तलवों में स्थित होते  हैं।

      ज्यादातर पशुपक्षी शाकाहारी ही है और वे स्वस्थ रहते हैं। चावल की भूसी, गेहूँ का चोकर, सब्जियों के डंठल, फल, सब्जियों के छिलके इन्हें हम कचरा समझ कर गाय, बकरी को खिला देते हैं। यह चोकर बहुत ही पौष्टिक होता है, पेट साफ करने वाले होते है, पर हम मैदा (चोकर से निकला आटा), पॉलीश किये हुए चावल, रीफाइण्ड तेल, पॉलिश की हुई दालें, अनाज, छिलके उतारी हुई सब्जियां और फल खाते हैं। सभी चीजें छिलके सहित खाने से हम स्वस्थ रहेंगे।

      पशु पक्षी कच्चा ही खाते हैं पकाकर नहीं। कच्चा भोजन जीवन के लिये शक्ति से भरपूर होता है। शायद इसलिये चिकित्सालयों में कच्चा भोजन रोगियों को दिया जाता है। कच्चा सलाद, फल, अंकुरित दालें, अनाज, नारियल, सोयाबीन का दूध, खजूर, गेहूँघास, गोमूत्र आदि। जानवर जीभ के स्वाद के लिये नहीं खाते, मनुष्य जीभ का गुलाम है। दो इंच की जीभ छह फुट के शरीर को बीमार बना देती है। सभी धर्मों में भी अस्वाद भोजन की परंपरा है। कम से कम हफ्ते में एक दिन कच्चा भोजन या बिना मिर्च, मसाला का अस्वाद भोजन जरूर लेना चाहिये।

 

मंगलवार, 24 नवंबर 2009

पुलिस द्वारा गिरफ्तारी पर सीआरपीसी में संशोधन

पुलिस द्वारा गिरफ्तारी पर सीआरपीसी में संशोधन

NEW DELHI 24th NOVEMBER 2009

लोक सभा

 

       गृह राज्य मंत्री श्री मुल्लापल्ली रामचन्द्रन ने आज एक प्रश्न के लिखित उत्तर में लोक सभा को बताया कि राष्ट्रीय पुलिस आयोग ने अपनी तीसरी रिपोर्ट में, अन्य बातों के साथ-साथ यह उल्लेख किया है कि पुलिस द्वारा की गयी गिरपऊतारियों में से ज्यादातर गिरपऊतारियां वस्तुत: अपराध की रोकथाम की दृष्टि से न्यायोचित नहीं हैं । उन्होंने बताया कि इस प्रवृत्ति पर रोक लगाने के लिए वारंट के बगैर गिरपऊतार करने की पुलिस की शक्ति से संबंधित दण्ड प्रक्रिया संहित (क्ध्द. घ्.क्.) की धारा 41 को हाल ही में दण्ड प्रक्रिया संहिता (संशोधन) विधेयक, 2008 के माध्यम से संशोधित किया गया है । संशोधित धारा  41 (1) के खण्ड (ख) में यह प्रावधान है कि कोई व्यक्ति, जिसने कोई ऐसा संज्ञेय अपरोध किया है, जो सात वर्ष से कम अवधि के कारावास से दण्डनीय है, को युक्तियुक्त शिकायत अथवा विश्वसनीय जानकारी अथवा युक्तियुक्त संदेह के आधार पर गिरपऊतार किया जा सकता है और पुलिस अधिकारी को ऐसी गिरपऊतारी संबंधी कारणों को रिकार्ड करना होगा । उक्त अधिनियम के प्रावधानों को अभी लागू किया जाना है । उन्होंने बताया कि इसी बीच, भारत के विधि आयोग ने दण्ड प्रक्रिया संहिता की संशोधित धारा 41(ख) में पुन: यह संशोधन करने की सिफारिश की है कि पुलिस अधिकारी धारा 41 के तहत गिरपऊतारी करने के लिए ही नहीं बल्कि धारा 41 के तहत गिरपऊतारी करने के कारणों को भी रिकार्ड करने के लिए बाध्य हो । तदनुसार, अन्य बातों के साथ-साथ संसद में एक ऐसा विधेयक पेश करने का प्रस्ताव है जिसमें विधि आयोग द्वारा की गयी सिफारिश की तर्ज पर दण्ड प्रक्रिया संहिता की संशोधित धारा 41 (ख) में संशोधन का प्रस्ताव निहित हो । 

 

चर्चे-चर्खे : ब्रम्हा बनाम मुन्ना - राकेश अचल

चर्चे-चर्खे : ब्रम्हा बनाम मुन्ना  - राकेश अचल

लेखक ग्‍वालियर चम्‍बल क्षेत्र के वरिष्‍ठ पत्रकार एवं संपादक हैं

खतरे मे सी एम

      मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान खतरे मे है। लगता है शनि की कोई महादशा उन्हे परेशान कर रही है। 10 नवंबर को ग्वालियर में सी एम का उड़न खटोला लेंडिंग के समय वायु सेना की दोजीषों से टकराते-टकराते बचा, वह तो ऐनन मौके पर एटीसी ने ''गो अराउण्ड'' कह कर सबकी जान बचाली। जानकारो का कहना है कि सी एम के घर जब से नोट गिनने की मशीन आई है उसी दिन से कुछ न कुछ अपशकुन हो रहे है। साधना मामी ही अब इसका कोई उपाय कर सकती है। शनि की प्रतिकृति घर में रखने की क्या जरूरत। मशीन का काम हाथो से भी हो सकता है।

 

किसी को सजा, किसी को मजा

      आई.ए.एस. श्रीमती अंजू बघेल को जिस तरह से जमीन घोटाले में कथित रूप से लिप्त होने के आरोप में निलंबित किया गया, उसी तरह के आरोपो से घिरे छोटे भैया को जमीन घोटालों  की जांच का काम भी सौप दिया गया। छोटे भैया में कुछ तो खास है जो वे हर निजाम में ''इमाम'' की तरह पूछे परखे जाते है। दिग्गीराजा भी उन्हे ''नाक के बाल'' की, तरह सम्हाल कर रखते थे और मामा जी भी ऐसा ही कर रहे है। यानि शिव ने जो संपादा रावण को सौपी थी वही विभीषण को भी सौंप दी।

 

फिर नही गए पवन शर्मा

      सरकार किसी की भी हो, चलती आई.एस.एस. अफसरों की ही है। ग्वालियर के नगर निगम आयुक्त डा. पवन शर्मा ने दूसरी बार सरकारी आदेश को संशोधित कर यह बात एक बार फिर साबित कर दी। डा.पवन शर्मा को सरकार ने पहले बुरहानपुर का कलेक्टर पदस्थ किया, लेकिन वे नहीं गए। अबकी बार उन्हे सागर का कलेक्टर बनाया गया, लेकिन वे वहां भी नही गए। उनकी जगह शिवपुरी कलेक्टर को सागर भेजा गया। डा. शर्मा ग्वालियर में ही जमे है। जाहिर है कि पवन शर्मा के पास कोई तो जादुई चिराग का जिन्न है, जो बार-बार उनकी मुराद पूरी कर देता है और बेचारे शिवराज सिंह और उनके मुख्य सचिव राकेश साहनी टापते रह जाते है।

 

ब्रम्हा बनाम मुन्ना

      भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष नरेंद्रसिंह तोमर यानि ''मुन्ना'' को उनके साथी-संगी अब ''ब्रम्हा'' कि तरह पूजने लगे है। पार्टी और सरकार के कई प्रस्तावो पर आखरी मुहर ब्रम्हा जी की ही लगती है। कम से कम मुन्ना के ग्रह नगर में तो यहीं मान्यता हैं स्थानीय निकाय चुनावों के लिए टिकटार्थी अपने-अपने नेता की गणेश परिक्रमा कर रहे है लेकिन उन्हे यही सलाह दी जा रही है कि यदि टिकिट चाहिए तो ''ब्रम्हा'' जी का ध्यान करो। सिध्दियां और मनोकामनाएं वही से पूरी होती है।

 

एम.पी. चाहिए या मेयर

      स्थानीय निकाय चुनाव के लिए जिन नगर निगमों में महापौर का पद महिलाओं के लिए आरक्षित हुआ है, वहां टिकिट की पैरवी करने वालो से पार्टी से पार्टी के नेता, खासकर सत्तारूठ दल के नेता एक ही सवाल करते है कि आपको एम.पी.चाहिए या मेयर। एम.पी. अर्थात मेयर पति। धारणा यह है कि जहां भी महिला महापौर चुनी जाती है वहां ''सत्ता'' महिला महापौरों के पतियों के हाथ में होती है। अभी तक यह जमला पंचायतो में ही प्रचलित था लेकिन अब स्थानीय निकाय चुनाव भी इससे अछूते नहीं रहे।

 

मामी को ऑफर

दूसरी बार राज्यसभा के लिए चुनी गई श्रीमती मायासिंह को पार्टी के एक गुट ने ग्वालियर से महापौर का टिकिट ऑफर किया है ग्वालियर मे महापौर का पद पिछड़े वर्ग की महिला के लिए आरक्षित हुआ है। दुर्भाग्य से पार्टी के पास कोई सर्वमान्य उम्मीदवार नहीं है, ऐसे में कुछ लोगो को श्रीमती माया सिंह के पिछडे होने की याद आई मायासिंह को पार्टी के लोग सम्मान से मामी जी कहते है। मामी जी को जब यह प्रस्ताव मिला तो उन्होने हाथ खड़े कर दिए। वैसे मामी जी पिछली शताब्दी के नौ वे दशक मे उपमहापौर रह चुकी है।

 

टीसी की खोज

      म.प्र. सरकार को नया टी.सी., यानि ट्रांसपोर्ट कमिश्नर खोजने में पसीना आ रहा है। प्रदेश मे लगातार चार साल ट्रासंपोर्ट कमिश्नर रहे एन के त्रिपाठी सी.आर.पी.एफ के महानिदेशक बनकर दिल्ली चले गए। उनके स्थान पर आने के एिल पी.एच.क्यू में बैठे तमाम पुलिस अफसरों ने टेण्डर डाले है लेकिन अभी तक लिफाफे नहीं खुल पाए है। इस शून्य काल में टी.सी. कहने को विभाग के सचिव है लेकिन टीसी का रूतबा गालिब कर रहे है डिप्टी टी.सी.। प्रवर्तन शाखा के डिप्टी टीसी इस समय फुलफार्म मे है। आगे नाथ न पीछे पगा। आपकों पता ही होगा कि ट्रासपोर्ट महकमा सरकार की कामधेनु है। इसे दोहने की कला केवल ट्राँसपोर्ट कमिश्नर को आती है।

 

नए सी.पी.आर. की खोज

      काम के बोझ से जमीन में घंसे जा रहे जनसंपर्क आयुक्त मनोज श्रीवास्तव को राहत देने के लिए अब उनके उत्तराधिकारी की गंभीरता से खोज की जा रही है। मनोज श्रीवास्तव ने सत्ता और संगठन की बेहतर सेवाएं कर अपने लिए नया मुकाम लगभग तय कर लिया है। उनके स्थान पर भोपाल के संभाग आयुक्त पुखराज मारू तथा संजय शुक्ला के नामों पर चर्चा हो रही है। मारू के पास हालांकि डिग्रियों का अंबार है लेकिनउनके साथ जुडे विवाद डिग्रियों पर भारी पड़ रहे है। ऐसे में संजय शुक्ला की संभावनाएं ज्यादा उज्जवल और प्रबल है। यह परिवर्तन किसी भी समय हो सकता है। निगम चुनावों का इससे कोई लेना देना नहीं है।

 

निदंक नियरे राखिए

      प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री अनूप मिश्रा की सेहत का राज क्या है? खोजा तो पता चला  िकवे सदैव अपने निदंको को अपने नियर (पास) रखते है वह भी आगन मे कुटिया डलवा कर। पूर्व विधायक नरेंद्र निरथरे ने जल संसाधन मंत्री के रूप मे अनूप मिश्रा की थोक में शिकायतें की लेकिन मिश्रा जी से जैसे ही जिरथरे ने अपने भतीजे के लिए काम मांगा, स्वास्थ्यम मंत्री के रूप मे मिश्रा जी ने तत्काल बिरथरे के भतीजे को शिवपुरी मे स्वास्थ्य विभाग की दो इमारते बनाने का ठेका दिला दिया। मंत्री जी की इस दरियादिली की खबर पाकर पार्टी के नरियदिल नेता परेशान है। बेचारे मंत्री जी को घेर ही नही पा रहे।

 

जोशी बनाम जोशी

      जलसंसाधन विभाग में 307 करोड़ रूपए का घोटाला खुला सो अब घोटाले में लिप्त इंजीनियर अपने नेता यानि चीफ इंजीनियर जोशी को कोस रहे है। खबर है कि चीफ इंजीनियर जोशी ने हरसी बांध परियोजना में करोड़ो के टेण्डर लगाकर भुगतान कर दिया लेकिन विभाग के प्रमुख सचिव जोशी को कानी कौड़ी भी नही दी। जोशी ने जोशी से तकादा भी किया लेकिन रिटायर होने के बैठे चीफ इंजीनियर जोशी ने प्रमुख सचिव जोशी को ढेंगा दिखा दिया। इस पर पंडित जी को गुस्सा आया। उन्होने मामला ई.ओ.डब्लू को दे दिया। मुकदमा दर्ज होते ही तमाम इंजीनियर सस्पेंड हो गए अब उनकी तिजोरियां सोने की ईटें और नोटों के बंडल उगल रही है।

 

राकेश अचल

 

रविवार, 22 नवंबर 2009

आसपड़ौस : अबू नहीं, संविधान पिटा- राकेश अचल

आसपड़ौस :  अबू नहीं, संविधान पिटा

राकेश अचल

(लेखक ग्‍वालियर चम्‍बल क्षेत्र के वरिष्‍ठ पत्रकार हैं )

महाराष्ट्र विधानसभा मे जो हुआ वह शर्मनाक है। राज ठाकरे के विधायकों ने पूरी दुनियां मे महाराष्ट्र की और उससे बढ़कर इस अखंड राष्ट्र भारत की नाक कटवा दी। उन्होने हिंदी में शपथ लेने पर समाजवादी पार्टी के विधायक अबू आजमी को नहीं पीटा बल्कि पूरे संविधान पर हमला किया है।

       भारत के संविधान की सबसे बड़ी उपलब्धि यह है कि उसने प्रत्येक भारतवासी को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रा दी है। भारत मे रहने वाला कोई भी व्यक्ति किसी भी भाषा में लिख सकता है, पढ़ सकता है, बोल सकता है। अभिव्यक्ति की इस स्वतंत्रता की रक्षा के लिए कानून है। कानून के उल्लघंन पर सजा का प्रावधान हैं लेकिन लगता है राजनीति में नए-नए आए राजठाकरे या तो इन कानूनों, सजाओं की परवाह नही करते या फिर वे अनपढ़ है, उनके लिए संविधान की मोटी किताब में काली स्याही में लिखें सोने के अच्छर भैंस के बराबर है।

       मराठी मानुष की राजनीति करने वाले राज को उनके चाचा बाल ठाकरे ने जो संस्कार दिए थे वे अब फल फूल रहे है। व्यक्तिगत अस्मिता की रक्षा के लिए मराठी भाषा और मराठी मानुष का इस्तेमाल करने वाले इस युवा तुर्क की समझ में क्यों नही आता कि हाल में विधानसभा चुनावों मे जनता ने महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना को अस्वीकार कर दिया है। दो सैंकड़ा सीटों वाली विधान सभा में राज के केवल एक दर्जन गुर्गे ही विधायक बनकर प्रवेष पा सके है।

       दर असल महाराष्ट में राष्ट्र के विरूध्द भावनाएं भड़काने का जो खेल चार दषक पहले शुरू हुआ था, वह रह-रह कर अब भी जारी है, वोटो की राजनीति के आगे नतमस्तक सत्तारूढ़ दल राष्ट्रविरोधी गतिविधियों में सलंग्न क्षेत्रीय दलों के आगे बौने साबित हो रहे है।

       विधानसभा में अबू आजमी पर हमला करने वाले मनसे के 4 विधायको के निलंबन से इस शर्मनाक घटना का पटाक्षेप होने वाला नहीं है। इस घटना की देष व्यापी प्रतिक्रिया होना चाहिए। राजठाकरें के खिलाफ कानूनी कार्रावाई के लिए राज्य सरकार आगे क्यों नहीं आ रही? क्यों राज के फतबों को गैर कानूनी करार नहीं दिया जा रहा? राज के खिलाफ जो काम महाराष्ट्रके महान हिंदी प्रेमियों को करना चाहिए था, वह म.प्र. के हिंदी प्रेमियो ने किया।

       मंदसौर की एक अदालत ने एक हिंदी सेवी की प्रार्थना पर संज्ञान लेते हुए राजठाकरे के खिलाफ राष्ट्रभाषा के अपमान का प्रकरण दर्ज कर इस दिषा में पहल की है, लेकिन सवाल यह है कि क्या मंदसौर की अदालत महाराष्ट्र कि इस मराठीदा को सबक सिखा पाएगी?

       वस्तुत: अब समय आ गया है जब क्षेत्रवाद तथा भाषावाद के नाम पर होने वालो राजनीति का बहिष्कार किया जाए। यदि यह न हुआ तो आमयी मुबई और आपण महाराष्ट्र का भाव मराठियों को महाराष्ट्र के बाहर परेषानी का सबब बन सकता है।

       दक्षिण के हिंदी विरोधी आंदोलन का हश्र सबने देखा है। तमिलनाडु में हिंदी का प्रबल विरोध करने वाले द्रविण पुत्र व्यापार के लिए फर्राटेदार हिंदी बोलते है। कष्मीर मे पष्तो बोलने बालों का पेट हिंदी में बोले बिना भर नहीं सकता। इस मामले में पूर्वी राज्य एक आदर्ष उदाहरण है। पूर्व के किसी भी राज्य में हिंदी को लेकर कहीं कोई दुराग्रह नहीं है, असम का वोडो आंदोलन भी फुस्स हो चुका है। एक दिन यही सब मनसे के मराठी आंदोलन का भी होगा।

       मराठी भाषा को लेकर पूरे देष मे किसी को कोई दुराग्रह नही है। मराठी साहित्य का सर्वाधिक अनुवाद हिंदी में हुआ। मराठी सद-संस्कृति और सुसभ्यता की वाहक भाषा है। उसे लेकर राज परेषान क्यों है? राज शायद नही जानते कि भाषाओ का अस्तित्व राजनीतिक आंदोलनों से नहीं संस्कारों से बनता है। साढ़े तीन हजार सालों से तमिल भाषा का अस्तित्व किसी राजनीतिक आंदोलन की वजह से नहीं बल्कि संस्कारों की वजह से है।

       बेहतर हो कि राजठाकरे मराठी प्रेम को छोड़ मराठी मानष में षिक्षा, स्वास्थ्य और उनके आर्थिक हको के लिए संघर्ष करें। मराठियों के लिए कष्मीरियों की तरह विषेषाधिकारों की मांग करना बेमानी है। राज भूल जाते है कि महाराष्ट्र के महान नेताओं को राष्ट्र ने अपने सिरमाथे उनके मराठी भाषी होने के कारण नहीं उनकी योग्यताओं के कारण लिया था। लोकसभा अध्यक्ष से लेकर केंद्र सरकार के तमाम महत्व पूर्ण मंत्रालयों की कमान शुरू से महाराष्ट्र के नेताओं के हाथ मे रही। इसके लिए न बालठाकरे साहब के आंदोलन की जरूरत पड़ी न किसी और भाषाई आंदोलन की।

       संविधान समिति के प्रमुख डा. भीमराव अंबेडकर से लेकर सुषील षिंदे तक को देष में सम्मान। षिव सेना या महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना ने ही दिलाया। मराठी भाषी अच्छी तरह जानते है कि महाराष्ट्र के इन बेटो को सम्मान उनकी योग्यता, कर्मठता और राष्ट्र के प्रति निष्ठा से मिला है।

       मेरे ख्याल से राजठाकरे के कुव्सित राजनीतिक आंदोलन का विरोध महाराष्ट्र से ही शुरू होना चाहिए। मराठी जनता को समझना चाहिए कि राज उनका हित नही अहित कर रहे है। महाराष्ट्र की अर्थ व्यवस्था में अकेले मराठियों का नही बल्कि पूरे देष की भागीदारी है देष के प्रत्येक राज्य की प्रतिभा से महाराष्ट्र, महा-राष्ट्र बना है। अगर इसे बाधित किया गया तो महाराष्ट्र ''महा-राष्ट्र'' नही रह जाएगा।

       महाराष्ट्र को संप्रभु भारत राष्ट्र की मुख्यधारा से जोड़े रखने के लिए सेनाओं की नहीं प्रतिबंध्द राजनीतिक दलो की जरूरत है राज और उध्दव ठाकरे को चाहिए कि वे यदि सचमुच मराठी अस्मिता की रक्षा करना चाहते है तो अपनी-अपनी सेनाओं की पहचान समाप्त कर राष्ट्रीय दलो मे अपने आपको समाहित कर संघर्ष करें।

       आज जब पूरी दुनियां बहुत छोटी हो गई है। तब महाराष्ट्र में राजठाकरे के आंदोलन से देष बदनाम ही हो रहा है। आजादी के सत्तर साल बाद भी भारत में भाषा और क्षेत्र के नाम पर आंदोलनों के जीवित रहने से लगता है कि हमारी आजादी या तो अधूरी है, या हम आजदी का मर्म ही नही समझ सके।

       समय है जब पूरा देष दुनियां की महाषक्तियों के मुकाबले भारत को ''महान भारत'' बनाने के लिए भाषा और क्षेत्र की संकीर्णताओं से बाहर आकर पूरी ताकत के साथ एक जुट होकर खड़ा हों। इस एक जुटता में जो आड़े आए, उसे तिरस्कृत कर देना ही श्रेयस्कर है फिर चाहे वह राज ठाकरे हो या बालठाकरे। जो राष्ट्र का नही वह ''महाराष्ट्र'' का कैसे हो सकता है? संविधान के आगे सब बराबर है। (भावार्थ)

                             

                                                                                                   Rakesh Achal