रविवार, 29 नवंबर 2009

मंहगाई के समाधान हेतु उपाय जरूरी राजनीति नहीं मंहगाई के समाधान हेतु उपाय जरूरी राजनीति नहीं

मंहगाई के समाधान हेतु उपाय जरूरी राजनीति नहीं

निर्मल रानी 

163011, महावीर नगर, अम्बाला शहर, हरियाण ोन-0171-2535628  email: nirmalrani@gmail.com

                                                                              

 देश प्रेम व राष्ट्र भक्ति पर  अपनी ंफिल्मों का   अधिकांशत निर्माण करने वाले ंफिल्म निर्माता, निर्देशक एवं अभिनेता मनोज कुमार ने तीन दशक पूर्व अपनी एक मशहूर ंफिल्म रोटी,कपड़ा और मकान में एक सुप्रसिद्ध गीत ंफिल्माया था। जिसके बोल थे मंहगाई मार गई.....। इसी गीत की एक पंक्ति याद कीजिए जिसमें कहा गया था कि पहले मुटठी में पैसे जाते थे और थैला भर शक्कर आती थी,अब थैले में पैसे जाते हैं और मुटठी में शक्कर आती है। जिन शब्दों में तीन दशक पूर्व की मंहगाई का उल्लेख किया गया है क्या वास्तव में इन गीतों की पंक्तियों के अनुसार ही उस समय उतनी मंहगाई थी? हरगिंज नहीं। परंतु उसके बावजूद गीतकार को उस समय की बढ़ती हुई  मंहगाई से आजिंज व परेशान होकर अपने गीत में इस प्रकार के व कुछ इससे भी कठोर बोल डालने पड़े। कहने का तात्पर्य यह है कि मंहगाई का बढ़ना आज केवल हमारे ही देश की कोई नई समस्या नहीं है। मंहगाई हमेशा बढ़ी है, लगातार बढ़ी है और मूल्यवृद्धि का यह सिलसिला आज भी बदस्तूर जारी है। हां हम यह जरूर कह सकते हैं कि मंहगाई बढ़ने की गति गत् एक वर्ष के भीतर कुछ ज्यादा ही तेंज हो गई है जिसे नियंत्रित करने की अविलंब ंजरूरत है।

              जहां तक निरंतर मूल्यवृद्धि होते रहने का प्रश् है तो इसे  हम एक प्राकृतिक क्रम के  रूप में स्वीकार करते हैं। परंतु गत् एक वर्ष में जिस प्रकार बेतहाशा मूल्यवृद्धि दर्ज की गई है और यह सिलसिला अभी भी पूर्ववत जारी है उसके कुछ विशेष कारण केंद्र सरकार द्वारा बताए जा रहे हैं। केंद्र सरकार के अनुसार पूरे विश्व में छाई अंतर्राष्ट्रीय स्तर की भयानक मंदी जहां इस निरंतर बढ़ती मंहगाई के लिए कांफी हद तक ंजिम्मेदार है वहीं कच्चे तेल की अंतर्राष्ट्रीय  ंकीमतों में लगातार होने वाला इंजांफा भी मंहगाई के इस सिलसिले के लिए कांफी हद तक ंजिम्मेदार है। इस पर सोने पे सुहागा यह कि इसी दौरान देश को जहां बारिश की कमी से जूझना पड़ा वहीं देश के कई इलाक़े सूखे व बाढ़ की चपेट में भी आ गए। जाहिर है इन प्राकृतिक परिस्थितियों ने मूल्यवृद्धि को चौथे आसमान पर पहुंचा दिया।

              इस पूरे प्रकरण में इससे भी अधिक दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि लगातार बढ़ती मंहगाई में अपने भारी मुनांफे की संभावनाओं को तलाशते हुए देश के मुनांफांखोरों,जमांखोरों व कालाबांजारी करने वालों ने इन दुर्भाग्यपूर्ण हालात से आर्थिक लाभ उठाना शुरु कर दिया। देश के कई राज्यों में चीनी,अन्न,दाल आदि के बड़े स्टॉक जमांखोरों के ंकब्ंजे से बरामद किए गए हैं। ऐसे कई जमांखोरों के विरुद्ध मुंकदमे भी ंकायम किए गए हैं। परंतु अंफसोस की बात तो यह है कि विपक्षी दल जमांखोरों व काला बाज़ारी करने वालों के विरुद्ध मुखरित होकर नहीें बोलते। विपक्षी दलों का सीधा निशाना केंद्र सरकार पर ही सधा रहता है। आज देश के अधिकांश राज्यों में ंगैर कांग्रेसी सरकारों का शासन है। मंहगाई उन ंगैर कांग्रेसी राज्यों में भी उतनी ही है जितनी कि कांग्रेस शासित राज्यों में देखी जा रही है। परंतु ंगैर कांग्रेसी राज्य सरकारें मूल्यवृद्धि नियंत्रण के परस्पर उपाय करने के बजाए केंद्र सरकार पर मंहगाई बढ़ने की ंजिम्मेदारी मढ़ने में अधिक उर्जा लगा रही हैं। बेशक कुछ राज्यों में जमांखोरों के विरुद्ध कार्रवाई हुई

है। परंतु इसका अर्थ यह तो ंकतई नहीं हो सकता कि देश से जमांखोरी,कालाबांजारी का संफाया हो गया हो। वास्तव में जमांखोर तो ऐसे अवसरों की प्रतीक्षा में रहते हैं जिनसे कि आज हमारा देश रूबरू हो रहा है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि इन कालाबाजारी करने वालों तथा जमांखोरों के विरुद्ध कानूनी कार्रवाई कौन करे। यह केंद्र सरकार का कार्य क्षेत्र है या राज्य सरकारों की ंजिम्मेदारी है?जाहिर है यह राज्य संबंधी मुददा है और देश की प्रत्येक राज्य सरकारें चाहे वे कांग्रेसी सरकारें हों अथवा ंगैर कांग्रेसी, उन्हीं का यह दायित्व है कि वे मंहगाई के ंजिम्मेदार जमांखोरों के विरुद्ध सख्त से सख् त कार्रवाई करें तथा ऐसे गोदामों पर छापे मारकर बरामद की गई खाद्य सामग्री को खुले बाजार में उचित मूल्यों पर उपलब्ध कराएं।

              हां मूल्य वृद्धि की इस हाय-तौबा के बीच कुछ बातें ऐसी ंजरूर हैं जिनका अंकगणित आम जनता की समझ से बाहर है। जैसे कि आमतौर से किसी भी वस्तु की कीमत बढ़ने का बुनियादी अर्थशास्त्र यही सुना जाता है कि माल के  उत्पादन व आपूर्ति में कमी तथा उसके अनुपात में उसी माल की अधिक खपत होना प्राय: मूल्यवृद्धि का कारण माना जाता रहा है। परंतु आज तो परिस्थितियां ही कुछ उल्टी सी दिखाई दे रही हैं। यानि आप को बांजार में किसी वस्तु की कोई कमी नहीं मिलेगी। चीनी,सभी प्रकार की दालें,घी व तेल जैसी रोंजमर्रा के प्रयोग की सभी वस्तुएं आप जितनी चाहें ंखरीद सकते हैं। सब कुछ बांजार में उपलब्ध है। परंतु आप को उसकी ंकीमत वही चुकानी होगी जो दुकानदार द्वारा आप को बताई जा रही है। आंखिर इस अर्थशास्त्र का रहस्य क्या है? क्यों बढ़ रही है रोज़ाना इस प्रकार से मंहगाई और कौन सी शक्तियां व कौन से तंत्र काम कर रहे हैं इस मूल्य वृद्धि के घटनाक्रम के पीछे? यदि इस विषय की गहराई तक पहुंचने की कोशिश की जाए तो नि:स्संदेह मंहगाई दूर करने के उपायों की दिशा में सरकार के  ंकदम कुछ न कुछ आगे ंजरूर बढ़ सकते हैं।

              दूसरी बात मंहगाई के साथ-साथ आम आदमी की आय से भी जुड़ी हुई है। आज एक साधारण मंजदूर 200 रुपये की दिहाड़ी पर काम करता दिखाई देता है। रिक्शा चालकों ने तो 2 रुपये मांगने ही बंद कर दिए हैं। किसी भिखारी को अब दस या पचास पैसे दीजिए तो वह आंखें घूरकर आपकी ओर देखने लग जाता है। अर्थात् उसे भी कम से कम दो रुपये या पांच रुपये चाहिए। सरकारी कर्मचारियों की तनख्वाहें कितनी बढ़ चुकी हैं इसका अंदांजा वे स्वयं लगा सकते हैं। मंहगाई के साथ-साथ देश तरक्की क़ी राह पर आगे बढ़ रहा है। सड़कें,विद्युत,परिवहन,स्वास्थय,संचार तथा शिक्षा जैसी मूलभूत आवश्यकताओं के क्षेत्र में भी पहले से कहीं अधिक सुविधाएं देखी जा रही हैं। जाहिर है इन सब सुविधाओं का कुछ न कुछ भुगतान तो आम आदमी को किसी न किसी रूप में करना ही पड़ेगा। और वह देश का आम आदमी कर भी रहा है।

              उपरोक्त सभी तथ्यों के बावजूद देश की आम जनता इस बेतहाशा मूल्य वृद्धि से अविलंब निजात चाहती है। ंखासतौर पर जब देशवासी यह देखते हैं कि डा. मनमोहन सिंह जैसा विश्व का महान अर्थशास्त्री इस समय देश की बागडोर संभाल रहा हो। ऐसे में ंजरूरत इस बात की है कि जिस प्रकार अन्य कई प्रमुख एवं जटिल मुददों पर सर्वदलीय बैठकें आयोजित कर ऐसी समस्याओं से निपटने के सामूहिक रूप से उपाय तलाश किए जाते हैं ठीक उसी प्रकार सभी राजनैतिक दलों के नेता इस मुददे पर भी एकमत हों तथा आम आदमी को मंहगाई से निजात दिलाने में अपनी सकारात्मक भूमिका निभाएं। पूरे देश में व्यापक तौर पर छापेमारी किए जाने की भी सख्त ंजरूरत है। इस कार्य हेतु राज्य सरक ारें विशेष उपाय करें तथा ऐसे छापामार दस्ते गठित करें जो जमांखोरी के नेटवर्क को तत्काल ध्वस्त कर सके। अकारण ही किन्हीं वस्तुओं के दाम बढ़ाने वालों के  विरुद्ध भी सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए। विपक्षी दल भी मंहगाई के नाम पर की जाने वाली  घटिया व ओछी राजनीति से ंकतई बांज आएं। मंहगाई के मुददे पर मात्र कांग्रेस की नीतियों को ही ज़िम्मेदार ठहराने का विपक्षी दलों का प्रयास लोकसभा व विधानसभा के पिछले दिनों हुए चुनावों में पूरी तरह फेल हो चुका है। अत:भविष्य में भी मंहगाई रूपी लांछन न तो कांग्रेस पार्टी को नुंकसान पहुंचाने वाला दिखाई दे रहा है और न ही इस शोर-शराबे का कोई लाभ विपक्ष को मिलने की संभावना नंजरआ रही है। लिहांजा मेरे विचार से आम आदमी को मंहगाई से बचाने का सर्वोत्तम उपाय सर्व दलीय प्रयास ही रह जाता है। परंतु वह भी पूर्णतय: पारदर्शी,ईमानदाराना तथा ंजिम्मेदाराना होना चाहिए।

 

 

 

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