रविवार, 21 सितंबर 2008

ग्राम यात्रा-1: चम्बल के गाँवों में जान लेवा है भूख, कुपोषण और बीमारी, मरे सैकड़ों बिन भोजन बिन इलाज और दवा के - सरकारी दावे सरासर झूठ

ग्राम यात्रा-1: चम्बल के गाँवों में जान लेवा है भूख, कुपोषण और बीमारी, मरे सैकड़ों बिन भोजन बिन इलाज और दवा के - सरकारी दावे सरासर झूठ

ग्राम यात्रा

ऑंखों देखी विशेष रपट भाग-1

नरेन्द्र सिंह तोमर ''आनन्द''

लेखक ने इस आलेख को लिखने से पूर्व कई गाँवों और ग्राम पंचायतों में रह कर रूक कर सब कुछ ऑंखों से देखा है

यू तो अब काम की व्यस्तता से गाँवों की ओर जाना कम ही हो पाता है, लेकिन सरकारी बिजली कटौती की विशेष कृपा और अपनी ताई के निधन के कारण फिर एक अन्तराल बाद मुझे अपने गाँव जाना पड़ा !

मेरी ताईयों व ताऊओं की संख्या काफी लम्बी है, चूंकि कुटुम्ब व परिवार बड़ा है तो संख्या लम्बी ही होनी है ! किसी जमाने में हमारे इन ताऊ का आसपास के एरिया में बड़ा चलताड़ा था, उनके नाम की तूती बोलती थी और पत्ते भी उनके हुकुम से हिला करते थे !

समय चक्र के चलते गरीबी और लाचारी के साथ मजबूरीयों ने उन्हें कमजोर भी कर दिया और ताई के शोक में शामिल होने जब मैं अपने माता पिता और परिवार के साथ गाँव पहुँचा कुछ हैरत अंगेज व दिल व दिमाग को झकझाोर देने वाली बातों ने मेरे अंतस को हिला दिया !

अपने काम के वक्त में मैंने शायद हजारों गरीबों या मजबूरों की मदद की होगी लेंकिन अपने ही परिवार में घटी इस घटना और उसका पृष्ठ वृतान्त सुन कर मेरा हृदय काँप गया ! हालांकि मुझे यह सब वृतान्त कई कारण्ाों से पता नहीं लग पाया, और मैं सोचता रहा कि सारे शासन और प्रशासन को पता है कि मेरा गाँव कहाँ है, और वहाँ सब वैसे ही ठीक ठाक आटोमेटिक ही चल रहा होगा ! इसलिये अत्यधिक निश्चिन्तता और लापरवाही के साथ उदासीनता भी मैंने अपने गाँव और गाँव पंचायत के प्रति बरती !

लेकिन अपनी ताई (गरीब ताई ) की मृत्यु की पूरी दास्तान मैंने सुनी तो न केवल मैं चौंक गया बल्कि मुझे स्वत: ही अन्य लोगों की चिन्ता और परेशानी ने घेर लिया मैंने फिर सारे अपने कार्य छोड़ कर, गाँव और निवासीयों तथा आसपास के गाँवों की पड़ताल और खैर खबर लेना ही उचित समझा !

हालांकि सबसे सब प्रकार की बातें हुयीं, दुख तकलीफ, परेशानीयों की भी सरकारी व्यवस्थाओं और उसके फर्जीवाड़े की करम कहानी ऑंखों देखी, बिजली के हालात वहाँ रहकर वहीं देखे और महसूस किये, छोटी बातों से लेकर बड़ी बातों तक सब पर चर्चायें और विचार विमर्श हुये, राजनीतिक बाते भी हुयीं यानि कुल मिला कर सम्पूर्ण और समग्र यात्रा मेरी स्वर्गवासी ताई ने करवा दी, सबसे मिलवा दिया और सब कुछ ताजा करवा दिया ! सारी स्मृतियां तरोताजा कर ग्राम और पंचायत वासीयों के लिये उम्मीद के कई दिये जल गये, वे सदा ही मुझसे कुछ अधिक ही उम्मीदेंं रखते आये हैं ! सबने सब कुछ खुल कर कहा ! मैं उन साौभाग्यशालीयों में हूँ जिसे अपने गाँ, कुटुम्ब, परिवार और पंचायत का विशेष आशीष व स्नेह आजीवन प्राप्त होता रहा है, लेकिन अबकी बार मुझे स्वयं ही पर क्रोध आया कि पूरे साल डेढ़ साल बाद गाँव का चक्कर मारा, तब तक वहाँ बहुत कुछ उलट पुलट हो चुका था ! यद्यपि गाँव से सप्ताह या दो सप्ताह में कोई न कोई चक्कर मार ही जाता है, और मैं हल्की फुल्की खैर खबर लेकर अपने काम में जुटा रहता हूँ, अव्वल तो बिजली न रहने का भय रहता है, फिर फटाफट बहुत काम निपटा डालने की जल्दी सो मामूली खैरियत के बाद आगे अधिक चर्चा नहीं करने की इस आदत पर मुझे काफी रंज महसूस हुआ !

खैर किस्सा यूं हैं कि, ताई का निधन (हालांकि वे वृध्द थीं) गरीबी, भूख और बीमारी से हो गया !

मरते मरते ताई भूखीं मर गयीं, न भोजन न पानी ! बीमारी ने जान ली, इलाज चिकित्सा और दवायें नहीं मिलीं ! कई दिन लाचार बीमार और मजबूरी के चलते अभावों में ही तड़प तड़प कर ताई के प्राण निकल गये !

मेरे गाँव से ठीक चार खेत दूर यानि एक दो फर्लांग भर की दूरी पर निकट के ही गाँव में लगभग 30-35 साल पुराना प्राथमिक चिकित्सा केन्द्र है, और अम्बाह तहसील नामक शहर की दूरी 4 किलो मीटर है यानि सवा कोस की दूरी पर है ! गाँव से लगभग आधा किलोमीटर दूर पहुँच मार्ग यानि पक्की सड़क भी है ! और गाँव में पढ़े लिखे लगभग सभी है यानि 90 फीसदी हैं !

गाँव के अन्य हालात तो इस रपट आलेख के अगले भागों में जिक्र में खुद ब खुद आयेंगें लेकिन खास बात ये है कि गाँव में असल बेहद गरीब परिवार लगभग 60 फीसदी है, और गरीबी रेखा में असल में अंकित परिवार केवल पाँच फीसदी हैं ! गरीबों के पास गरीबी रेखा में नाम लिखाने को पैसे नहीं हैं इसलिये न उनके नाम गरीबी रेखा में हैं, न और न सरकार उन्हें गरीब मानती है, वस्तुत: न उनके पास पहनने को कपड़े हैं, न खाने को रोटी और न रहने को मकान न इलाज या दवा के लिये पैसे !

ताई स्वर्गवासी होकर कई सवाल छोड़ गई, कई यक्ष प्रश्न दे गयी ! ताई की मौत एक किस्सा न बन कर रह जाये, अफसानों में खो न जाये इससे पहले ही ताई कई कथाओं को भी अपने अन्दर समेट ले गयी !

ताई की कहानी में मुंशी प्रेमचन्द की बूढ़ी काकी नामक कहानी की काकी या ताई भी शामिल है तो बागवान फिल्म के अमिताभ बच्चन और हेमामालिनी के बंटवारे का किस्सा भी शामिल है !

और सबसे बड़ी कहानी जो ताई छोड़ गयी वह सरकार की सच्चाई को चीख चीख कर बता गयी ! गरीबी, बीमारी, लाचारी, ग्रामीण जिन्दगी तथा जीवन मृत्यु के दरम्यां झेलते भारतीय जीवन और गाँवों में वृध्दों की दशा एवं खोखले सरकारी तमाशे का रंगमंच दिखा गयी !

इसके बाद कई ताईयों और ताऊओं से मिला, लगभग सबकी एक ही कहानी बस एक सी ही जिन्दगी और एक सी लाचारी, एक सी बीमारी, एक सा दुख ! कहीं कुछ भी फर्क नहीं , बस ताई चली गयी और वे अपने जाने की बाट जोह रहे हैं, न सरकार से उम्मीद न कोई शिकवा, मुकद्दर के लेख को ही सरकार माने बैठे लोगों को यह पता ही नहीं कि उन्हें क्या मदद कहाँ से और कैसे मिल सकती है, अधिकारी बने बैठे लोकसेवकों से सेवा कैसे ले सकते हैं ! शिकायत किसकी और कहाँ कर सकते हैं !

संयोगवश यूं ही अपनी आदत के चलते मैं कुछ सरकारी किताबें '' आगे आयें लाभ उठायें'' इस किताब में सरकारी योजनायें और उनसे फायदे उठाने के तरीके दिये हैं, और म.प्र. में शिवराज सिंह द्वारा अब तक आयोजित विभिन्न पंचायतों का विवरण देने वाली किताबों की पाँच छह प्रतियां यह सोच कर ले गया था, कि जो भी जरूरतमन्द होंगें मैं उनमें यह किताबे बाँट दूंगा !

लेकिन किताबों को देखते ही वहाँ मारामार शुरू हो गयी किताबे कम थीं और जरूरतमन्द ज्यादा सो सब उलझ पड़े कि यह उसे मिल जायें ! मैं उलझन में था कि ऐसी अवस्था में क्या किया जाये, फिर मैंने वैकल्पिक व्यवस्था कि भई कुछ लोग जो सबसे ज्यादा जरूरत मन्द हैं और जो दूसरों को भी रास्ता बतायें तथा दूसरों का भी भला करते हों वे लोग एक एक किताब ले लो ! बाद बकाया को मैं जब फिर आऊंगा तो सबको दूंगा ! अगर ऐसे बाँटी जाये ंतो दस बीस हजार किताबे तो अकेले मेरी पंचायत में ही बँट जायेंगीं और मेरे पास थीं ही कुल दस दस किताबे उनमें से आधी मैं पहले ही कहीं और दूसरे गाँव वालों को बाँट आया था, बची हुयी इधर ले आया था ! जैसे तैसे किसी को पंचायतों की किसी को आगे आये लाभ उठायें दे कर बकाया आश्वासन देकर मैंने अपना पिण्ड छुटाया !

लोग किताबे देख कर आश्चर्यचकित थे, उनमें लिखीं योजनाओं और जानकारीयों को पढ़ जान कर विस्फारित थे (बात केवल आठ दिन पुरानी है) !  उन्हें अभी तक पता ही नहीं था कि कौनसी योजनायें सरकार चला रही है, और उनसे कैसे फायदा उठाया जाता है ! सरकार क्या क्या उनके हित के फैसले ले रही है, क्याा क्या घोषणायें कर रही हैं ! अब जब उन्हें बुनियादी जानकारी ही नहीं है, तो सोचने वाली बात है कि फिर वे फायदा कैसे उठा सकते हैं, कैसे उसकी मानीटरिंग कर सकते हैं ! कैसा लोकतंत्र, कैसा आम आदमी का राज कैसी गरीब की सरकार ?

गाँव में अखबार आजादी के 62 साल गुजरने के बाद भी आज तक नहीं पहुँचते, गाँव तो छोड़िये, ग्राम पंचायत तक नहीं पहुँचते ! गाँवों में बिजली है ही नहीं सो टी.वी कबाड़खानों या भुस रखने की जगह यानि भुसेरों में पड़ें चूहों के बिल में तब्दील हो गये हैं यानि गांवों में अब टी.वी नहीं देखा जाता !  अब बताओं कि संचार व सूचना से शून्य होकर सत्ररहवीं अठारहवीं शताब्दी के इन गाँव को को विकास की परिभाषा और आयाम आज तक छू ही नहीं सके !

गाँव वाले बताते हैं सूचना का अधिकार कभी किसी के मुँह सुना तो हैं पर पता नहीं ये क्या होता है, हमें नहीं पता इसका क्या फायदा है, हमें नहीं मालुम हमारी पंचायत में कौनसी योजनायें चल रहीं हैं, पंच और सरपंचों को भी नहीं मालुम , वे भी कुछ नहीं बताते ! क्या हमारे गाँव में भी सूचना का अधिकार चलता है, चलता है तो यह क्या होता है इसमें कितना अनुदान मिलता है, भैंस के लिये मिलता है कि बीज के लिये ! क्या सूचना का अधिकार योजना हमारी पंचायत में भी चलती है, चलती है तो इसका फार्म कैसे भरेगा और कित्ते पैसे मिलेंगें ! वगैरह वगैरह !

मैंने पूछा रोजगार गारण्टी योजना कैसी चल रही है ? गाँव वाले बोले ये कहाँ चलती है, दिल्ली या भोपाल में होगी ! जाको झां कितऊं अतो पतो नानें (इसका यहाँ कोई अता पता नहीं है) मैंने कहा अरे भई किसी के जॉब कार्ड तो बने होंगें, किसी को रोजगार तो मिला होगा ! गाँव वाले बोले जब झाां चलिई नाने रई तो का बतामें (जब यहाँ चल ही नहीं रही तो फिर क्या बतायें) मैंने कहा कि पंचायत सचिव आपको कुछ नहीं बताता, कोई आपके यहां सर्वे करने नहीं आया !

ग्रामीणों ने उत्तर दिया कि सेकेटटरी भजाय देतु हैं (सेक्रेट्री भगा देता है) झां कैसीऊ कोऊ वर्वे फर्वे नाने भई, भईअऊ होगी तो वैंसेई फर्जी भलेईं कर लई होगी के फिर जिनने (कुछ लोगों के नाम लेते हैं) फर्जी लिखवाय डारें होंगें जेई सारे दलाल हैं सिग गाम को पैसा मिल जुल के खाय जातें !

मैंने पूछा कि रोजगार गारण्टी का कोई काम यहाँ चल रहा है क्या ? या कभी चला है क्या ? ग्रामीणों ने कहा नानें झां ना कभऊं चलो ना चल रहो !

 

क्रमश: अगले अंक में जारी .........

गुरुवार, 18 सितंबर 2008

मुरैना में इस साल तीन गुना ज्‍यादा गिरा पानी, औसत से अधिक एक हजार मि.मी. हुयी वर्षा

मुरैना में इस साल तीन गुना ज्‍यादा गिरा पानी, औसत से अधिक एक हजार मि.मी. हुयी वर्षा

मुरैना 17 सितम्बर 08/ मुरैना जिले में 1 जून से अभी तक 975.2 मि.मी. औसत वर्षा दर्ज की जा चुकी है, जो गत वर्ष इसी अवधि में हुई 383.3 मि.मी. वर्षा से 591.9 मि.मी अधिक है । जिले में वार्षिक औसत वर्षा 706.9 मि.मी. से 268.3 मि.मी. अधिक वर्षा इस वर्ष अभी तक हो चुकी है ।

       अधीक्षक भू- अभिलेख के अनुसार वर्षा मापी केन्द्र पोरसा में 1033.4 मि.मी., अम्बाह में 1221 मि.मी. , मुरैना में 860 मि.मी जौरा में 838 मि.मी. , कैलारस में 961.3 मि.मी. और सबलगढ़ में 938 मि.मी. वर्षा रिकार्ड की गई ।

 

आतंकवाद की छाया में साम्प्रदायिक सौहार्द की मिसाल पेश करते भारतीय त्यौहार

आतंकवाद की छाया में साम्प्रदायिक सौहार्द की मिसाल पेश करते भारतीय त्यौहार

तनवीर जांफरी

(सदस्य, हरियाणा साहित्य अकादमी, शासी परिषद) email:  tanveerjafri1@gmail.com tanveerjafri58@gmail.com  tanveerjafriamb@gmail.com  22402, नाहन हाऊस

अम्बाला शहर। हरियाणा फोन : 0171-2535628  मो: 098962-19228

 

       देश की राजधानी दिल्ली आतंकवादियों द्वारा किए गए सिलसिलेवार बम धमाकों से गत् 13 सितम्बर की सायम काल उस समय फिर दहल उठी जबकि मानवता के इन दुश्मनों ने राजधानी के तीन प्रमुख स्थानों कनॉट प्लेस, करोल बांग व ग्रेटर कैलाश में बम धमाके कर दो दर्जन से अधिक बेगुनाह लोगों की जान ले ली। इन धमाकों में लगभग 150 लोग बुरी तरह ंजख्मी भी हो गए। ऐसा ही जघन्य अपराध इन आतंकवादियों द्वारा गत् वर्ष भी त्यौहारों के इन्हीं अवसर पर किया गया था। हालांकि इन मानवता के दुश्मनों का मंकसद त्यौहारों के दिनों में देश में अशांति पैदा करना तथा साम्प्रदायिक तनाव पैदा करना है। परन्तु इसके विपरीत उत्सव व त्यौहारों के लिए पूरे विश्व में प्रसिद्ध भारतवर्ष में इन दिनों विभिन्न सम्प्रदायों के त्यौहारों का सिलसिला पूरे हर्षोल्लास के साथ पूर्ववत जारी है। हिन्दू समुदाय के लोगों ने गत् दिनों अपने धार्मिक पर्व गणेश पूजा का आयोजन बड़े पैमाने पर पूरे श्रद्धा व उल्लास के साथ किया तो देश का मुस्लिम समुदाय भी पवित्र रमंजान के महीने रोंजा (व्रत) रखने में व्यस्त रहा। आगामी दिनों में भी भारत में दशहरा, दुर्गापूजा तथा ईद जैसे प्रमुख त्यौहार मनाए जाने की तैयारियां ंजोर शोर से चल रही हैं। अनेकता में एकता की विश्वव्यापी मिसाल पेश करने वाले इस देश में जहां प्रत्येक समुदायों के लिए उनके अपने त्यौहार धार्मिक महत्व से जुड़े होते हैं, वहीं यही त्यौहार साम्प्रदायिक सौहार्द्र एवं सर्वधर्म सम्भाव की भी ऐसी अनूठी मिसाल पेश करते हैं जिसका मुंकाबला शायद दुनिया का कोई भी देश नहीं कर सकता। इसमें आश्चर्य की बात यह है कि भारत में साम्प्रदायिक सद्भाव की ऐसी मिसालें तब भी देखने को मिलती हैं जबकि आतंकवादी व साम्प्रदायिक शक्तियां अपने साम्प्रदायिक दुर्भाव फैलाने के नापाक मिशन में दिन-रात लगी हुई हैं। आईए लेते हैं भारतीय साम्प्रदायिक सौहार्द्र से जुड़ी हुई ऐसी ही कुछ घटनाओं का एक जायंजा।

              हरियाणा के बराड़ा ंकस्बे में जहां कि गत् वर्ष देश का सबसे ऊंचा रावण बनाए जाने का कीर्तिमान स्थापित किया गया था, वहीं स्थानीय रामलीला क्लब द्वारा इस वर्ष पुन: रावण की ऊंचाई को लेकर विश्व कीर्तिमान स्थापित करने की तैयारी की जा रही है। क्लब के संस्थापक अध्यक्ष राणा तेजिन्द्र सिंह चौहान अपने सैकड़ों साथियों के साथ विश्व के सबसे ऊंचे रावण को बनाए जाने की तैयारी में गत् 3 माह से जुटे हुए हैं। इस परियोजना में उनका साथ देने के लिए आगरा से आया हुआ है मोहम्मद उस्मान का एक मुस्लिम परिवार। अपने घर से लगभग 500 किलोमीटर की दूरी तय कर के मोहम्मद उस्मान अपनी पत्नी व बच्चों समेत गत् तीन माह से बराड़ा ंकस्बे में तेजिन्द्र सिंह चौहान के विशेष अतिथि के रूप में रह रहे हैं। मोहम्मद उस्मान की भी हार्दिक इच्छा है कि राष्ट्रीय कीर्तिमान स्थापित करने के बाद विश्व कीर्तिमान स्थापित करने में भी वे तेजिन्द्र चौहान के इस महत्वाकांक्षी मिशन में उनके सहयोगी बने रहें। इस विशालकाय रावण के निर्माण के दौरान पवित्र रमंजान का महीना भी गुंजरा। मोहम्मद उस्मान व उनका परिवार नियमित तौर पर रोंजा रखता है। उनके रोंजे की पूरी व्यवस्था बड़े ही आदर व आस्था के साथ तेजिन्द्र चौहान द्वारा की जाती है। इतना ही नहीं बल्कि रमंजान की शुरुआत में जब मोहम्मद उस्मान की पत्नी को ंकुरान शरींफ की ंजरूरत महसूस हुई तो चौहान द्वारा स्वयं बांजार जाकर धार्मिक पुस्तकों की दुकान से ंकुरान शरींफ मुहैया कराया गया तथा उनकी धार्मिक ंजरूरतों व इच्छाओं की पूर्ति की गई। स्वयं मोहम्मद उस्मान का यह मानना है कि तेजिन्द्र चौहान द्वारा निर्देशित रावण का निर्माण करने हेतु बराड़ा आने पर उन्हें जो मान-सम्मान व सत्कार मिलता है तथा यहां जिस धार्मिक स्वतंत्रता का उन्हें यहां एहसास होता है, वह एहसास शायद उन्हें अपने समुदाय के लोगों के साथ    रहकर भी नहीं हो पाता। यही वजह है कि चौहान के निमंत्रण पर मोहम्मद उस्मान प्रत्येक वर्ष अपने सहयोगी मुस्लिम कारीगरों व अपने पूरे परिवार के साथ बराड़ा चले आते हैं। इस विषय पर तेजिन्द्र चौहान का कहना है कि वे मोहम्मद उस्मान व उनके परिजनों की धर्म संबंधी आवश्यकताओं की पूर्ति कर तथा उसमें भागीदार बनकर महंज अपनेर् कत्तव्यों का पालन करते हैं तथा 'अतिथि देवो भव' की भारतीय परम्परा का निर्वाहन करते हैं। चौहान का कहना है कि उनकी कोशिश है कि उनके कला निर्देशन व संरक्षण में मोहम्मद उस्मान के परिश्रम के परिणामस्वरूप तैयार होने वाले इस विशालकाय रावण का नाम गिनींज बुक ऑंफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज हो जाए। यदि ऐसा हो सका तो हरियाणा के बराड़ा ंकस्बे में इस वर्ष दशहरे पर तैयार किया जाने वाला रावण का पुतला न केवल ऊंचाई व भारी भरकमपन में विश्व कीर्तिमान स्थापित करेगा बल्कि भारतीय साम्प्रदायिक सौहार्द्र के क्षेत्र में भी यह अपनी अनूठी मिसाल स्वयं पेश करेगा।

              इसी प्रकार गणेश पूजा का त्यौहार भी प्रत्येक वर्ष की भांति इस वर्ष भी साम्प्रदायिक सद्भाव के अनूठे उदाहरण पेश कर रहा है। जहां भारतीय सिनेमा के प्रसिद्ध नायक सलमान ंखान प्रत्येक वर्ष की भांति इस वर्ष भी गणेश पूजा के अवसर पर भक्ति भाव में सराबोर नंजर आए, वहीं देश के कई हिस्सों में ऐसे गणेशोत्सव भी मनाए गए जिनकी अधिकांश व्यवस्था मुस्लिम समुदाय के लोगों द्वारा की गई। इतना ही नहीं बल्कि दिल्ली में हुए बम धमाकों के बावजूद देश में गणेश पूजा के अनेकों आयोजन ऐसे भी हुए जिसमें मुसलमानों द्वारा गणेश प्रतिमा अपने घरों में स्थापित की गई तथा उनका पूजा पाठ किया गया। दिल्ली के धमाकों को साम्प्रदायिक सौहार्द्र पर बदनुमा दांग बताते हुए गणेश प्रतिमा विसर्जन में इसी वर्ष मुस्लिम समुदाय के लोगों ने बड़ी संख्या में भाग लिया। एक और प्रसिद्ध ंफिल्म अभिनेता शाहरुंख ंखान भी हिन्दू व मुस्लिम धर्मों के लगभग सभी त्यौहार स्वयं बड़े जोश व उत्साह के साथ मनाते हैं। होली दिवाली तथा ईद बंकरीद जैसे सभी त्यौहारों को अपने परिजनों एवं मित्रों के साथ मनाकर वे सच्चे भारतीय होने का अनूठा उदाहरण प्रस्तुत करते हैं।

              ऐसा नहीं है कि सर्वधर्म सम्भाव या साम्प्रदायिक सौहार्द्र से ओत-प्रोत उक्त आयोजन केवल सम्पन्न व्यक्तियों अथवा प्रसिद्ध हस्तियों द्वारा ही किए जाते हैं। बल्कि ंगरीबी, बदहाली व बेबसी से जूझते हुए लोगों के मध्य भी ऐसी भावना भारत में देखी जा सकती है। उदाहरण के तौर पर भारत के बिहार राज्य के 19 ंजिले इस वर्ष बिहार की कोसी नदी के तटबंध टूट जाने के कारण आई प्रलयकारी बाढ़ से प्रभावित हैं। इस बाढ़ के दौरान प्रभावित लोगों ने बिना किसी धार्मिक भेदभाव के एक दूसरे धर्म के लोगों को न केवल सहयोग व संरक्षण दिया बल्कि उनकी धार्मिक गतिविधियों में भी परस्पर सहयोगी रहे। अनेक स्थानों पर प्रलयकारी बाढ़ से शीघ्र निजात पाने के लिए पूजा पाठ करने व दुआएं आदि मांगने के सामूहिक तौर पर आयोजन किए गए। एक ही छत के नीचे हिन्दू समुदाय द्वारा भजन पूजन करने तथा मुसलमानों द्वारा नमांज पढ़कर ंखुदा से दुआ मांगने के नंजारे देखने को मिले। यही नहीं रमंजान के महीने में आई इस बाढ़ में मुस्लिम भाईयों के रोंजा रखने संबंधी ंजरूरतों को पूरा करने में भी हिन्दू समुदाय ने बढ़ चढ़कर भाग लिया। कई स्थानों पर तो हिन्दू समुदाय के लोगों द्वारा भी रमंजान में रोंजा (व्रत) रखे जाने के समाचार प्राप्त हुए हैं।

              भारत में तेंजी से फैलता जा रहा आतंकवाद तथा इन आतंकवादी घटनाओं में अधिकांशतय: मुस्लिम समुदाय के लोगों के सम्मिलित होने के समाचार तथा इसके जवाब में गुजरात राज्य की तंर्ज पर भारत की हिन्दुत्ववादी शक्तियों द्वारा किए जाने वाले साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण के घिनौने प्रयास और इन सबके बीच देश में साम्प्रदायिक सौहार्द्र की मिसाल पेश करने वाली उपरोक्त घटनाएं यह समझ पाने के लिए कांफी हैं कि रामानन्द, कबीर, नानक, चिश्ती, ंखुसरु, साईं बाबा, ंफरीद व बुल्लेशाह की इस पावन धरती पर साम्प्रदायिक दुर्भावना फैलाने की साम्प्रदायिक शक्तियों अथवा आतंकवादियों द्वारा कितनी ही कोशिशें क्यों न की जाएं। किन्तु सन्तों व ंफंकीरों के इस देश में साम्प्रदायिक सौहार्द्र की जड़ें इतनी गहरी हैं कि उन्हें कोई भी आतंकवादी अथवा साम्प्रदायिक संगठन हिला नहीं सकता।

                                                                                           तनवीर जांफरी  

देश की एकता व अखण्डता को चुनौती देने वाले ढोंगी नेताओं से सावधान

देश की एकता व अखण्डता को चुनौती देने वाले ढोंगी नेताओं से सावधान

निर्मल रानी

163011, महावीर नगर,  अम्बाला शहर,हरियाणा। फोन-09729229728 email: nirmalrani@gmail.com

 

       दुनिया के किसी भी स्वच्छ लोकतंत्र में 'अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता' का अपना अलग ही महत्व होता है। जिस लोकतांत्रिक देश में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का गला घुटने लग जाए, उसे लोकतंत्र नहीं बल्कि तानाशाह शासन या अलोकतांत्रिक व्यवस्था का नाम दे दिया जाता है। देशवासी भली-भांति उस राजनैतिक घटनाक्रम से परिचित है जबकि 1975 में देश में आपातकाल की घोषणा की गई थी। इस दौरान जहां अन्य तमाम कड़े ंफैसले लिए गए थे, वहीं मीडिया को भी नियंत्रित रखने हेतु कई कड़े नियम लागू किए गए थे। हमारे देश में आपातकाल का विरोध करने वालों ने तत्कालीन सरकार पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का गला घोंटने का आरोप लगाया था। इसका परिणाम यहां तक हुआ था कि आपातकाल लागू करने वाली तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी व उनकी सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी को स्वतंत्रता के पश्चात पहली बार भारतीय मतदाताओं ने सत्ता से बेदंखल कर दिया था। यही वह दौर था जबकि इंदिरा गांधी जैसी तेंज तर्रार, दूर दृष्टि रखने वाली महिला को एक तानाशाह शासक होने का प्रमाण पत्र भी उनके विरोधियों द्वारा जारी कर दिया गया था।

              क्या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार भारत जैसे बहुभाषी व बहुआयामी देश में कारगर प्रतीत होता है। अभी पिछले दिनों अमरनाथ श्राईन बोर्ड को जम्मु-कश्मीर सरकार द्वारा आबंटित की गई मामूली सी ंजमीन के मुद्दे को लेकर 'अभिव्यक्ति' का बांजार ंखूब गर्म देखा गया। कहीं सीमा पार चले जाने की धमकियां सुनने को मिलीं तो कहीं अलगाववादी विचार रखने वाले नेताओं द्वारा इसे 1947 के विभाजन जैसा माहौल बताया जाने लगा। मतों के ध्रुवीकरण के मद्देनंजर न सिंर्फ घाटी के क्षेत्रीय नेताओं द्वारा बल्कि साम्प्रदायिकता की आग में अपनी राजनैतिक रोटी सेंकने वाले तथाकथित राष्ट्रवादी नेताओं द्वारा भी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर ऐसे ंजहर बोए जाने लगे जिसका नकारात्मक प्रभाव पूरे देश पर पड़ सकता था। परन्तु जैसा कि हमेशा होता आया है, भारत माता की रक्षा उसी ईश्वीरीय शक्ति ने की तथा अमरनाथ श्राईन बोर्ड की ंजमीन को लेकर लगी आग जोकि बुझती हुई प्रतीत नहीं हो रही थी आंखिरकार किसी समझौते पर पहुंचकर नियंत्रित हो गई। जबकि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के पैरोकार तथा सौदागर इस मुद्दे को राष्ट्रीय मुद्दा बनाकर इसे पूरी हवा देना चाह रहे थे। और कोई आश्चर्य नहीं कि आगामी लोकसभा चुनावों के दौरान स्वयं को राष्ट्रवाद का स्वयंभू ठेकेदार समझने वाली देश की एक पार्टी इस मुद्दे का प्रयोग अभी भी अपने राजनैतिक हित साधने के लिए करे।

              उड़ीसा लगभग एक माह तक साम्प्रदायिकता की आग में जलता रहा। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की आड़ में ही उस राज्य में ईसाई मिशनरियों द्वारा बड़े पैमाने पर धर्म परिवर्तन कराए जाने के आरोप हिन्दुत्ववादी संगठनों द्वारा लगाए जाते रहे हैं। हिन्दू नेता लक्ष्मणानंद सरस्वती की हत्या के पश्चात उड़ीसा के कंधमाल क्षेत्र में हिंसा का तांडव शुरु हो गया था। हिन्दुत्ववादी संगठनों का आरोप था कि धर्म परिवर्तन को रोकने के मिशन में लगे लक्ष्मणानंद सरस्वती की हत्या के पीछे उग्र ईसाई संगठनों का हाथ है। जबकि एक माओवादी संगठन द्वारा इस हत्या की ंजिम्मेदारी अपने ऊपर ली गई। इस प्रकरण में भी 'अभिव्यक्ति' का बांजार पूरी तरह गर्म रहा। हिन्दुत्ववाद के नाम पर ंजहर उगलने में महारत रखने वाले प्रवीण तोगड़िया ने कंधमाल जाकर अपनी 'विशेष स्वतंत्र अभिव्यक्ति' के

माध्यम से वह गुल खिलाया कि सैकड़ों ंगरीब व बेगुनाह लोग जाने से मारे गए तथा अपने घरों से बेघर होकर शरणार्थी शिविरों में रहने के लिए मजबूर हो गए। इसी प्रकरण में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने भी अपने दूरगामी लक्ष्य व प्रतिक्रिया के मद्देनंजर माओवादियों द्वारा लक्ष्मणानंद सरस्वती की हत्या की ंजिम्मेदारी लेने को ंगलत करार दिया तथा ईसाई संगठनों पर ही उनकी हत्या करने का संदेह जताया।

              और अब भारत की आर्थिक राजधानी मुम्बई इसी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दंश झेल रही है। 'अभिव्यक्ति' करने वाले हैं मुंबई के तथाकथित स्वयंभू स्वामी ठाकरे परिवार विशेषकर महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के मुखिया राज ठाकरे। उनकी इस ंजहरीली अभिव्यक्ति के निशाने पर हैं उत्तर भारतीय विशेषकर उत्तर प्रदेश व बिहार के लोग। राज ठाकरे क्षेत्रवाद का ंजहर बोकर अपनी ंजहरीली अभिव्यक्ति के माध्यम से मराठों के दिल में उत्तर भारतीयों के प्रति नंफरत पैदा करना चाह रहे हैं। इसका कारण यह ंकतई नहीं है कि उन्हें मुम्बई या महाराष्ट्र से गहरा लगाव है बल्कि उनकी इस चाल का मंकसद बहुसंख्य मराठा मतों पर अपना अधिकार जमाना मात्र है। ठाकरे परिवार ने मराठों के कल्याण के लिए कोई अभूतपूर्व कार्य किया हो, ऐसा कुछ भी नहीं। मात्र अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की आड़ में उत्तर भारतीयों को गालियां देकर ठाकरे परिवार के लोग मराठों के दिलों में अपनी जगह बनाने का प्रयास कर रहे हैं। राज ठाकरे की हरकतें तो देखते ही बन पड़ती हैं। सार्वजनिक रूप से वे जिसकी चाहते हैं नंकल उतारने लग जाते हैं, जिसकी चाहें वे बोली बोलने लग जाते हैं तो कभी किसी को गालियां देने लग जाते हैं। मुम्बई में दुकानदारों, व्यवसायिक प्रतिष्ठानों तथा कार्यालयों पर लगने वाले साईनबोर्ड किस भाषा में हों, इसकी इजांजत राज ठाकरे से लेनी पड़ेगी। मुम्बई में किसी कलाकार की ंफिल्म कब चलनी है और कब नहीं, यह भी राज ठाकरे की कृपादृष्टि पर ही निर्भर करता है। अपनी राजनैतिक हैसियत व अपने ंकद को नापे तोले बिना जिस कलाकार अथवा नेता को चाहें, राज ठाकरे क्षण भर में अपमानित कर सकते हैं। और यह सब मात्र 'अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता' के नाम पर खेले जाने वाले ंखतरनाक खेल हैं।

              गत् दिनों जब राज ठाकरे को उन जैसी रूखी भाषा में मुम्बई के संयुक्त पुलिस कमीश्र के एल प्रसाद द्वारा सांफ शब्दों में यह जवाब दिया गया कि 'मुम्बई किसी के बाप की नहीं है' तो राज ठाकरे तिलमिला उठे। आंध्र प्रदेश के नेल्लोर के 1982 बैच के आई पी एस अधिकारी प्रसाद द्वारा मुम्बई की ंकानून व्यवस्था के मद्देनंजर की गई यह 'अभिव्यक्ति' तो कोई इतनी ंगलत एवं कष्टदायक नहीं थी कि राज ठाकरे तिलमिला उठें। परन्तु राज ठाकरे को पुलिस कमीश्र प्रसाद का यह दो टूक बयान नहीं भाया। उन्होंने प्रसाद को नौकरी छोड़कर मैदान में आने की चुनौती दे डाली। इससे सांफ ंजाहिर होता है कि एक तथाकथित नेता होने के नाते राज ठाकरे को तो यह अधिकार है कि वे जब और जिसे चाहें और जिस भाषा में चाहें अपमानित कर दें। परन्तु ंकानून व्यवस्था बनाए रखने के मद्देनंजर यदि एक पुलिस अधिकारी खरी-खरी सुना दे तो वह ठाकरे को ंकतई बर्दाश्त नहीं है।

              कश्मीर से कन्याकुमारी तक महबूबा मुंफ्ती व राज ठाकरे जैसे और भी कई ऐसे नेता देखे जा सकते हैं जोकि राष्ट्रीय स्तर पर अपनी न तो कोई पहचान रखते हैं, न ही उनकी राजनैतिक गतिविधियां यह दर्शाती हैं कि उनमें सम्पूर्ण राष्ट्र के प्रति कोई लगाव है। यदि हमें देश की एकता व अखण्डता को ंकायम रखना है तो ऐसी सीमित सोच रखने वाले स्वार्थी एवं ढोंगी नेताओं के राजनैतिक हथकंडों से हमें सावधान रहना होगा। हमें बड़ी सूक्ष्मता से इस बात पर नंजर रखनी होगी कि ऐसे नेता कब और क्या वक्तव्य दे रहे हैं और उनकी इस 'अभिव्यक्ति' के पीछे छुपा हुआ असली मंकसद क्या है? वह जो सुनाई दे रहा है और दिखाई नहीं दे रहा या फिर वास्तव में वह जो दिखाई बिल्कुल नहीं पड़ रहा अर्थात् सत्ता का सीधा रास्ता और वह भी नंफरत, दुर्भावना, दंगों व ंफसादों के रास्ते से होता हुआ।       निर्मल रानी

 

देश की एकता व अखण्डता को चुनौती देने वाले ढोंगी नेताओं से सावधान

देश की एकता व अखण्डता को चुनौती देने वाले ढोंगी नेताओं से सावधान

निर्मल रानी

163011, महावीर नगर,  अम्बाला शहर,हरियाणा। फोन-09729229728 email: nirmalrani@gmail.com

 

       दुनिया के किसी भी स्वच्छ लोकतंत्र में 'अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता' का अपना अलग ही महत्व होता है। जिस लोकतांत्रिक देश में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का गला घुटने लग जाए, उसे लोकतंत्र नहीं बल्कि तानाशाह शासन या अलोकतांत्रिक व्यवस्था का नाम दे दिया जाता है। देशवासी भली-भांति उस राजनैतिक घटनाक्रम से परिचित है जबकि 1975 में देश में आपातकाल की घोषणा की गई थी। इस दौरान जहां अन्य तमाम कड़े ंफैसले लिए गए थे, वहीं मीडिया को भी नियंत्रित रखने हेतु कई कड़े नियम लागू किए गए थे। हमारे देश में आपातकाल का विरोध करने वालों ने तत्कालीन सरकार पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का गला घोंटने का आरोप लगाया था। इसका परिणाम यहां तक हुआ था कि आपातकाल लागू करने वाली तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी व उनकी सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी को स्वतंत्रता के पश्चात पहली बार भारतीय मतदाताओं ने सत्ता से बेदंखल कर दिया था। यही वह दौर था जबकि इंदिरा गांधी जैसी तेंज तर्रार, दूर दृष्टि रखने वाली महिला को एक तानाशाह शासक होने का प्रमाण पत्र भी उनके विरोधियों द्वारा जारी कर दिया गया था।

              क्या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार भारत जैसे बहुभाषी व बहुआयामी देश में कारगर प्रतीत होता है। अभी पिछले दिनों अमरनाथ श्राईन बोर्ड को जम्मु-कश्मीर सरकार द्वारा आबंटित की गई मामूली सी ंजमीन के मुद्दे को लेकर 'अभिव्यक्ति' का बांजार ंखूब गर्म देखा गया। कहीं सीमा पार चले जाने की धमकियां सुनने को मिलीं तो कहीं अलगाववादी विचार रखने वाले नेताओं द्वारा इसे 1947 के विभाजन जैसा माहौल बताया जाने लगा। मतों के ध्रुवीकरण के मद्देनंजर न सिंर्फ घाटी के क्षेत्रीय नेताओं द्वारा बल्कि साम्प्रदायिकता की आग में अपनी राजनैतिक रोटी सेंकने वाले तथाकथित राष्ट्रवादी नेताओं द्वारा भी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर ऐसे ंजहर बोए जाने लगे जिसका नकारात्मक प्रभाव पूरे देश पर पड़ सकता था। परन्तु जैसा कि हमेशा होता आया है, भारत माता की रक्षा उसी ईश्वीरीय शक्ति ने की तथा अमरनाथ श्राईन बोर्ड की ंजमीन को लेकर लगी आग जोकि बुझती हुई प्रतीत नहीं हो रही थी आंखिरकार किसी समझौते पर पहुंचकर नियंत्रित हो गई। जबकि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के पैरोकार तथा सौदागर इस मुद्दे को राष्ट्रीय मुद्दा बनाकर इसे पूरी हवा देना चाह रहे थे। और कोई आश्चर्य नहीं कि आगामी लोकसभा चुनावों के दौरान स्वयं को राष्ट्रवाद का स्वयंभू ठेकेदार समझने वाली देश की एक पार्टी इस मुद्दे का प्रयोग अभी भी अपने राजनैतिक हित साधने के लिए करे।

              उड़ीसा लगभग एक माह तक साम्प्रदायिकता की आग में जलता रहा। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की आड़ में ही उस राज्य में ईसाई मिशनरियों द्वारा बड़े पैमाने पर धर्म परिवर्तन कराए जाने के आरोप हिन्दुत्ववादी संगठनों द्वारा लगाए जाते रहे हैं। हिन्दू नेता लक्ष्मणानंद सरस्वती की हत्या के पश्चात उड़ीसा के कंधमाल क्षेत्र में हिंसा का तांडव शुरु हो गया था। हिन्दुत्ववादी संगठनों का आरोप था कि धर्म परिवर्तन को रोकने के मिशन में लगे लक्ष्मणानंद सरस्वती की हत्या के पीछे उग्र ईसाई संगठनों का हाथ है। जबकि एक माओवादी संगठन द्वारा इस हत्या की ंजिम्मेदारी अपने ऊपर ली गई। इस प्रकरण में भी 'अभिव्यक्ति' का बांजार पूरी तरह गर्म रहा। हिन्दुत्ववाद के नाम पर ंजहर उगलने में महारत रखने वाले प्रवीण तोगड़िया ने कंधमाल जाकर अपनी 'विशेष स्वतंत्र अभिव्यक्ति' के

माध्यम से वह गुल खिलाया कि सैकड़ों ंगरीब व बेगुनाह लोग जाने से मारे गए तथा अपने घरों से बेघर होकर शरणार्थी शिविरों में रहने के लिए मजबूर हो गए। इसी प्रकरण में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने भी अपने दूरगामी लक्ष्य व प्रतिक्रिया के मद्देनंजर माओवादियों द्वारा लक्ष्मणानंद सरस्वती की हत्या की ंजिम्मेदारी लेने को ंगलत करार दिया तथा ईसाई संगठनों पर ही उनकी हत्या करने का संदेह जताया।

              और अब भारत की आर्थिक राजधानी मुम्बई इसी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दंश झेल रही है। 'अभिव्यक्ति' करने वाले हैं मुंबई के तथाकथित स्वयंभू स्वामी ठाकरे परिवार विशेषकर महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के मुखिया राज ठाकरे। उनकी इस ंजहरीली अभिव्यक्ति के निशाने पर हैं उत्तर भारतीय विशेषकर उत्तर प्रदेश व बिहार के लोग। राज ठाकरे क्षेत्रवाद का ंजहर बोकर अपनी ंजहरीली अभिव्यक्ति के माध्यम से मराठों के दिल में उत्तर भारतीयों के प्रति नंफरत पैदा करना चाह रहे हैं। इसका कारण यह ंकतई नहीं है कि उन्हें मुम्बई या महाराष्ट्र से गहरा लगाव है बल्कि उनकी इस चाल का मंकसद बहुसंख्य मराठा मतों पर अपना अधिकार जमाना मात्र है। ठाकरे परिवार ने मराठों के कल्याण के लिए कोई अभूतपूर्व कार्य किया हो, ऐसा कुछ भी नहीं। मात्र अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की आड़ में उत्तर भारतीयों को गालियां देकर ठाकरे परिवार के लोग मराठों के दिलों में अपनी जगह बनाने का प्रयास कर रहे हैं। राज ठाकरे की हरकतें तो देखते ही बन पड़ती हैं। सार्वजनिक रूप से वे जिसकी चाहते हैं नंकल उतारने लग जाते हैं, जिसकी चाहें वे बोली बोलने लग जाते हैं तो कभी किसी को गालियां देने लग जाते हैं। मुम्बई में दुकानदारों, व्यवसायिक प्रतिष्ठानों तथा कार्यालयों पर लगने वाले साईनबोर्ड किस भाषा में हों, इसकी इजांजत राज ठाकरे से लेनी पड़ेगी। मुम्बई में किसी कलाकार की ंफिल्म कब चलनी है और कब नहीं, यह भी राज ठाकरे की कृपादृष्टि पर ही निर्भर करता है। अपनी राजनैतिक हैसियत व अपने ंकद को नापे तोले बिना जिस कलाकार अथवा नेता को चाहें, राज ठाकरे क्षण भर में अपमानित कर सकते हैं। और यह सब मात्र 'अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता' के नाम पर खेले जाने वाले ंखतरनाक खेल हैं।

              गत् दिनों जब राज ठाकरे को उन जैसी रूखी भाषा में मुम्बई के संयुक्त पुलिस कमीश्र के एल प्रसाद द्वारा सांफ शब्दों में यह जवाब दिया गया कि 'मुम्बई किसी के बाप की नहीं है' तो राज ठाकरे तिलमिला उठे। आंध्र प्रदेश के नेल्लोर के 1982 बैच के आई पी एस अधिकारी प्रसाद द्वारा मुम्बई की ंकानून व्यवस्था के मद्देनंजर की गई यह 'अभिव्यक्ति' तो कोई इतनी ंगलत एवं कष्टदायक नहीं थी कि राज ठाकरे तिलमिला उठें। परन्तु राज ठाकरे को पुलिस कमीश्र प्रसाद का यह दो टूक बयान नहीं भाया। उन्होंने प्रसाद को नौकरी छोड़कर मैदान में आने की चुनौती दे डाली। इससे सांफ ंजाहिर होता है कि एक तथाकथित नेता होने के नाते राज ठाकरे को तो यह अधिकार है कि वे जब और जिसे चाहें और जिस भाषा में चाहें अपमानित कर दें। परन्तु ंकानून व्यवस्था बनाए रखने के मद्देनंजर यदि एक पुलिस अधिकारी खरी-खरी सुना दे तो वह ठाकरे को ंकतई बर्दाश्त नहीं है।

              कश्मीर से कन्याकुमारी तक महबूबा मुंफ्ती व राज ठाकरे जैसे और भी कई ऐसे नेता देखे जा सकते हैं जोकि राष्ट्रीय स्तर पर अपनी न तो कोई पहचान रखते हैं, न ही उनकी राजनैतिक गतिविधियां यह दर्शाती हैं कि उनमें सम्पूर्ण राष्ट्र के प्रति कोई लगाव है। यदि हमें देश की एकता व अखण्डता को ंकायम रखना है तो ऐसी सीमित सोच रखने वाले स्वार्थी एवं ढोंगी नेताओं के राजनैतिक हथकंडों से हमें सावधान रहना होगा। हमें बड़ी सूक्ष्मता से इस बात पर नंजर रखनी होगी कि ऐसे नेता कब और क्या वक्तव्य दे रहे हैं और उनकी इस 'अभिव्यक्ति' के पीछे छुपा हुआ असली मंकसद क्या है? वह जो सुनाई दे रहा है और दिखाई नहीं दे रहा या फिर वास्तव में वह जो दिखाई बिल्कुल नहीं पड़ रहा अर्थात् सत्ता का सीधा रास्ता और वह भी नंफरत, दुर्भावना, दंगों व ंफसादों के रास्ते से होता हुआ।       निर्मल रानी

 

मंगलवार, 16 सितंबर 2008

संसाधनों की कमी की आड़ में रोगी को इलाज से इंकार नहीं किया जा सकता - भारत के मुख्य न्यायाधिपति जस्टिस श्री बालाकृष्णन

संसाधनों की कमी की आड़ में रोगी को इलाज से इंकार नहीं किया जा सकता - भारत के मुख्य न्यायाधिपति जस्टिस श्री बालाकृष्णन

प्रतिबध्दता  और संवेदनशीलता से ही कार्यक्रमों की सफलता निर्भर -म.प्र. के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस श्री पटनायक

''स्वास्थ्य का अधिकार'' कार्यशाला का समापन

 

भोपाल : 14 सितम्बर  2008

 

उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधिपति जस्टिस श्री के.जी. बालाकृष्णन ने कहा है कि अस्पतालों में संसाधनों की कमी की आड़ में कोई भी सरकार रोगी को इलाज से मना नहीं कर सकती। इस संबंध में सर्वोच्च न्यायालय ने एक विशेषज्ञ समिति से जांच करवाई थी। समिति ने अपनी रिपोर्ट में अस्पतालों में सुविधाएं बढ़ाने एवं विभिन्न अस्पतालों में ऐसी संवाद प्रणाली बनाने का सुझाव दिया था जिससे रोगियों को तत्परता से चिकित्सा उपकरण, एम्बुलेंस और डॉक्टर की सेवाएं उपलब्ध हो सकें।  जस्टिस बालाकृष्णन ने यह बात आज यहां म.प्र. मानव अधिकार आयोग द्वारा आयोजित '' स्वास्थ्य के अधिकार'' कार्यशाला के समापन सत्र में कही। इस अवसर पर म.प्र. उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस श्री  ए.के. पटनायक, म.प्र. मानव अधिकार आयोग के अध्यक्ष जस्टिस श्री डी.एम. धर्माधिकारी, सर्वोच्च न्यायालय के सेवा निवृत्त न्यायाधीश जस्टिस श्री पी.पी. नावलेकर, सदस्य द्वय जस्टिस श्री नारायण सिंह 'आजाद' और श्री विजय शुक्ल मुख्य रुप से उपस्थित थे।

जस्टिस बालाकृष्णन ने कहा कि मानव अधिकारों की वैश्विक घोषणा में प्रत्येक व्यक्ति और उसके परिवार को अच्छे स्वास्थ्य के लिए भोजन, वस्त्र, हवा, सामाजिक सेवाएं तथा चिकित्सा सुविधाएं देने का उल्लेख है। उन्होंने कहा कि बेरोजगारी, बीमारी, अपंगता, वैधव्य, वृध्दावस्था और आजीविका की कमी की स्थिति में भी प्रत्येक मनुष्य को जीवन का अधिकार मिलता रहे उसके लिए उसका स्वास्थ्य अच्छा होना आवश्यक है। उन्होंने कहा कि इस दिशा में सर्वोच्च न्यायालय ने भी समय-समय पर विभिन्न प्रकरणों में दिए अपने निर्णयों में मनुष्य के स्वास्थ्य के अधिकार को आवश्यक माना है। जस्टिस बालाकृष्णन ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय ने एक प्रकरण में दुर्घटना में घायल व्यक्ति के चिकित्सकीय- विधिक प्रकरण में कोई अस्पताल अथवा डॉक्टर पीड़ित का इलाज करने से इन्कार नहीं कर सकता, ऐसा फैसला दिया है। इलाज से इंकार करना चिकित्सा आचार संहिता का उल्लंघन होगा। न्यायालय ने माना है कि ऐसा इन्कार व्यक्ति के जीवन और स्वतंत्रता की रक्षा के अधिकार का उल्लंघन है। न्यायालय के इस फैसले से अब लोगों को आपातकालीन चिकित्सा उपचार का अधिकार मिल गया है। श्री बालाकृष्णन ने अन्य प्रकरण का संदर्भ देते हुए कहा कि पारिश्रमिक लेकर किए गए रोग निदान और उपचार को अब उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम में ले लिया गया है। पारिश्रमिक लेकर दी गई चिकित्सा सेवा में लापरवाही एवं कमी की स्थिति में भी डॉक्टर एवं चिकित्सा संस्था के विरुध्द कार्रवाई की जा सकती है। इस विधिक प्रावधान से भी रोगियों के हित का संरक्षण हो सकेगा। जस्टिस बालाकृष्णन ने कहा कि पिछले वर्षों में सरकारों ने स्वास्थ्य सेवाओं के क्षेत्र में काफी संसाधन जुटाए हैं, निजी क्षेत्र में सर्वसुविधायुक्त अस्पताल खुलने लगे हैं, लेकिन ये सब सुविधाएं अभी तक केवल सम्पन्न वर्ग के लोगों को ही मिल रही हैं। सरकारों को ऐसे उपायों को भी अमल में लाना चाहिए जिससे गरीबों को भी इनका लाभ मिल सके। जस्टिस बालाकृष्णन ने कहा कि विगत दिनों प्रचार माध्यमों ने मानव अंगों के अवैध व्यापार की ओर ध्यान आकर्षित किया था। इसी प्रकार झोलाछाप डॉक्टरों और असुरक्षित परंपरागत दवाईयों के चलन की भी जानकारियाँ मिलती हैं। सरकारों को प्रशासनिक एवं विधिक प्रयास करके इन कमियों को दूर करने के प्रयत्न करने चाहिये। जस्टिस बालाकृष्णन ने कहा कि आज अनेक संक्रामक बीमारियाँ एक से दूसरे देश में जाने लगी हैं। कुछ वर्ष पूर्व मैड काऊ, सार्स और एवियन फ्लू रोगों के फैलने का पता चला था। एच.आई.व्ही. / एड्स की विकरालता भी कम नहीं हो रही है। इस स्थिति में मानव अधिकार की घोषणा को कम करके नहीं ऑकना चाहिए। दूसरे देशों से आने वाली नई बीमारियों की रोकथाम के लिए सरकारी, निजी और अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग से चिकित्सा प्रौद्योगिकी, दवाईयां और विशेषज्ञ चिकित्सा सेवाएं प्राप्त करने की कोशिश करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य के अधिकार को वैश्विक स्तर पर सार्थक अधिकार के रुप में स्वीकार करना होगा।

 मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस श्री ए.के. पटनायक ने कहा कि स्वास्थ्य का अधिकार एक नई सोच है। श्री पटनायक ने कहा कि यह एक नैसर्गिक सिध्दांत है कि बिना अच्छे स्वास्थ्य के कोई भी व्यक्ति अच्छा जीवन नहीं जी सकता। उन्होंने कहा कि मानव अधिकार के वैश्विक घोषणा में मनुष्य की स्वतंत्रता और गरिमा भी शामिल है। श्री पटनायक ने बेहतर स्वास्थ्य के लिए उपलब्ध विधिक प्रावधानों का उल्लेख किया। जस्टिस पटनायक ने कहा कि अस्पतालों द्वारा इलाज से इंकार करना मानव के जीवन के अधिकार का हनन है। उन्होंने बताया कि अच्छे स्वास्थ्य का स्वच्छ पर्यावरण से सीधा संबंध है। यदि आसपास का पर्यावरण साफ नहीं होगा तो लोगों का स्वास्थ्य भी अच्छा नहीं रह सकता। उन्होंने बताया कि मेरठ में एक पशुवध गृह के संबंध में उच्चतम न्यायालय ने निर्णय दिया था कि इस पशुवध गृह की स्थापना के कारण यदि पास में रहने वाले लोगों के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है तो वहां इसकी स्थापना नहीं की जा सकती। उन्होंने कहा कि कोई भी कार्यक्रम तब तक सफल नहीं हो सकता जब तक उसमें प्रतिबध्दता और संवेदनशीलता का भाव न हो। श्री पटनायक ने कहा कि सरकार को सतना में कुपोषण से हुई बच्चों की मृत्यु की ओर ध्यान देना चाहिए।

मध्यप्रदेश मानव अधिकार आयोग के अध्यक्ष जस्टिस श्री डी.एम. धर्माधिकारी ने कहा कि विलंबित और मंहगी न्याय प्रणाली तथा जटिल प्रशासनिक प्रक्रियाओं के कारण बड़ी संख्या में लोग अब अपनी तकलीफों के निदान के लिए मानव अधिकार आयोग में आ रहे हैं। आयोग में इन तकलीफज़दा लोगों की मदद की यथा संभव कोशिश की जाती है। श्री धर्माधिकारी ने आयोग के प्रति राज्य सरकार के सकारात्मक रुख की सराहना की। उन्होंने कहा कि आयोग न केवल व्यक्तिगत शिकायतों के निराकरण की पहल करता है बल्कि मानव के अन्न, पेयजल और स्वास्थ्य जैसे मसलों पर भी व्यापक लोकहित को ध्यान में रखते हुए जनमानस बनाने के प्रयास कर रहा है। श्री धर्माधिकारी ने कहा कि राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण ने भी आयोग द्वारा भेजे आवेदकों को बड़ी मदद की है। कतिपय मामलों में जहां आयोग की अनुशंसाओं को मान्य नहीं किया जाता, ऐसे मामले उच्च न्यायालय को संदर्भित करने हेतु विधिक सेवा प्राधिकरण को भेजे जाते हैं।

आयोग के आई.जी. श्री सुशोभन बॅनर्जी ने कार्यशाला के आयोजन का उद्देश्य स्पष्ट किया। संचालन उप सचिव श्री विजय चन्द्र ने किया। इस अवसर पर डी.जी.पी. श्री एस.के. राउत, आयोग के प्रमुख सचिव डॉ. ए.एन. अस्थाना, लोक स्वास्थ्य विभाग के प्रमुख सचिव श्री देवराज बिरदी, नेशनल ज्युडिशियल अकादमी के प्राध्यापक, प्रशिक्षु न्यायाधीश, जिला न्यायालय के न्यायाधीश, वरिष्ठ अधिवक्ता, गणमान्य नागरिक तथा राज्य प्रशासन और पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित थे।