मंगलवार, 29 जुलाई 2008

GWALIOR TO REGAIN GOLDEN PAST IN INDUSTRY,C.M. ANNOUNCES TO PLACE GWALIOR IN ‘C’ CATEGORY,12 MoUs WORTH RS. 32,000 CRORE INKED AT INVESTORS MEET

GWALIOR TO REGAIN GOLDEN PAST IN INDUSTRY

C.M. ANNOUNCES TO PLACE GWALIOR IN 'C' CATEGORY

12 MoUs WORTH RS. 32,000 CRORE INKED AT INVESTORS MEET

 

Gwalior: July 29, 2008

 

The Chief Minister Shri Shivraj Singh Chouhan, while inaugurating the Investors' Meet here today said that concerted efforts would be made to restore the golden past of Gwalior in industry. He announced that with a view to accelerating the pace of industrialization in Gwalior region, Gwalior would be placed in "C" categry.The Chief Minister also announced that for the facility of the entrepreneurs of Gwalior region the Udyog Mitra Yojana would be extended for another six years.

A total of 12 Memoranda of Understanding (MoUs) were signed for investment of Rs. 32,000 crore on the occasion. Besides, Japan External Trade Organization (Jetro) singed an MoU for Delhi-Mumbai Industrial Corridor.

Prominent among those present on the occasion included the Minister for Industries Shri Jayant Malaiya, Minister for Water Resources Shri Anup Mishra, Minister for Urban Administration and Development Shri Narottam Mishra, Minister for Panchayts and Rural Development Shri Rustam Singh, Minister of State for Revenue Shri Narayan Singh Kushwah, State BJP President Shri Narendra Singh Tomar, Member of Parliament Smt. Yashodhara Raje Scindia ,Mayor Shri Vivek Narayan Shejwalkar, MLA Shri Dhyanendra Singh, chairman of Laghu Udyog Nigam Shri Vipin Dixit, Chief Secretary Shri R.C. Sahni, eminent industrialists Shri V.N. Dhoot, Shri Raghupati Singhania, Shri Senapati, Shri Sajjan Jindal, Shri Vinod Mittal, Shri Pankaj Munjal, Shri H. Ikava and others.

The Chief Minister said that Delhi may be the capital of the country but endowed with immense natural resources, natural beauty and rich archaeological and cultural heritage Madhya Pradesh is the Heartland of the country. He said that till a few years back Madhya Pradesh was considered an industrially backward state due to lack of proper infrastructure. Realizing the importance of infrastructure the present government has paid utmost attention to this sector. As a result of this over 40 thousand km long quality roads have been constructed in the state. Madhya Pradesh is better placed in comparison to many other states in respect of power supply. Power generation capacity has been increased by 2950 MW over last four and half years in the state. Besides, irrigation potential has been created for additional 13 lakh hectare during the period. He said that modern methods of agriculture are being promoted in the state to make agriculture a lucrative proposition. He said that peace and order or a prerequisite for development and Madhya Pradesh is an island of peace.

The Chief Minister said that investors' meets are not a political ritual for the present state government. It is all serious about it. As a result of this initial work on 95 percent of the 241 MoUs signed for investment of Rs. 2 lakh 77 thousand crore has already begun. Many industries have already gone into production. He said that Investment Facilitation Bill has already been passed in the state. The SEZ Act 2003 for Indore has been extended to entire state.

Referring to geographical condition of Gwalior region the Chief Mistier said that it is well connected by air, road and rail and its proximity to country's capital Delhi is an added benefit. Therefore, investing in this region would be profitable. He called upon the industrialists to invest in this region, thereby earning profit and helping the state government in development of the state. He said that now the ravines of Gwalior region would no longer produce dacoits, but Jatropha. He invited the industrialists to invest in textiles, food processing and real estate sectors here.

The Minister for Industries Shri Jayant Malaiya said that this Investors' Meet is another step forward towards making Madhya Pradesh a leading state of the country. He said that this meet would add new dimensions to development of this region. The Minister said that a congenial atmosphere has been created for rapid industrialization over last four and half years in the state. The industry-friendly policy of the state government has attracted investors from all over the country and the world. Now Madhya Pradesh has emerged as an ideal investment destination in the country.

Shri Malaiya said that excellent infrastructure would be developed to boost industrialization and export in Gwalior region. He said that Gwalior has immense possibilities for expansion of BPO services due to growing population pressure in Delhi. He said that a Habitat Centre is being established in Gwalior in seven and half acre which would throw open employment for a large number of youth.

Principal Secretary, Industries Shri Satyaprakash and Managing Director of Industries Development Corporation Shri Praveen Garg also spoke on the occasion.

It may be mentioned there that out of the MoUs signed today, MoUs worthy Rs. 2855 crore were for Gwalior region. A Rs. 1300 crore cement plant, a Rs. 1000 crore real estate unit, a Rs. 105 crore sponge iron unit and a Rs. 450 crore bio energy unit would be set up in this region.

D.K. Malviya     

 

हास्‍य/व्‍यंग्‍य जहँ जहँ चरण पड़े सन्‍तन के, तहँ तहँ बंटाढार भये...... नरेन्‍द्र सिंह तोमर ''आनन्‍द''

हास्‍य/व्‍यंग्‍य

जहँ जहँ चरण पड़े सन्‍तन के, तहँ तहँ बंटाढार भये......

नरेन्‍द्र सिंह तोमर ''आनन्‍द''

गोया किस्‍मत को किसी से दुश्‍मनी हो तो क्‍या कहिये । अपने मुरैना पुलिस में एक मंझले सिपाही (हमारे लालू प्रसाद जी सी.एस.पी. कों मंझला सिपाही बोला करते हैं) के न जाने दिन खोटे हैं, कि न जाने ग्रह हाथ धो कर या नहा धो कर उनके पीछे पड़ गये हैं ।

हमारे मंझले सिपाही की मेष राशि है, और मेष राशि में इन दिनों भारी उथलपुथल मची है । मेष राशि वाले अशोक अर्गल ने मेष राशि वाले ठाकुर अमर सिंह से पंगा ले लिया ।

अर्गल को मुरैना आना था, कैसे नहीं आते उनका घर जो दत्‍तपुरा में ठहरा । हमारे कलेक्‍टर साहब ने आफ्टर उपद्रव ठोक ठोक (क्‍या ठोका ये न पूछिये) के कहा कि अरे भाई उनका घर है घर भी नहीं आने दोगे क्‍या ।

टी.आई. के.डी.सोनकिया ने भी जम कर ठोक पीट (क्‍या ठोका पीटा ये न पूछिये) कर कहा ठोक दो सालों पर, हरामजादों पर मामले, इतना भीतर डाल दो कि साले जनम भर याद करें, करो भीतर निकलने नहीं चाहिये बाहर ।

अब भईया अर्गल मो भभ्‍भर मचा आया दिल्‍ली में, हमने भी देखा था टी.वी. पर कइसा नोट लहरा रहा था, इण्‍टरनेशनल हस्‍ती बन रहा था, सरकार गिरा रहा था । पठ्ठे ने ऐसे नोट हवा में उछाले थे जैसे ससुरे एक करोड़ नहीं एक एक के सौ नोट हों, अइसे फेंक आया संसद में जैसे ऐसे और इजने नोटों का तकिया तो उसके नौकर भी नहीं लगाते हों ।

अर्गल पर उस बखत पूरे मुरैना को भयंकर गुस्‍सा आया, लोग बोले, जे तो पगलियाय गयो (ये तो पागल हो गया है) जे तो नोट ऐसे दिखाय रहो है जैसे पैसा कछू होतुई नानें (ये तो नोट इस तरह दिखा रहा है जैसे पैसा कुछ होता ही नहीं ) झां सारो सौ सौ पचास पचास कें काजें मत्‍तो, अब जि करोड़नि फेंकवे चिपटो ऐ । अये ला हमनिई दे दे, अये जा में ते दस लाखई दे दे तो हम तर जागें, अये पागल मुरैना लिआ दस बीसनि के भले हें जागें ।

खैर ये तो '' सीन ऑफ इवेण्‍ट जस्‍ट हैपन्‍ड'' था ।

पर अर्गल दिल्‍ली में क्‍या कर आये, ये उतना महत्‍वपूर्ण नहीं था, खास बात थी कि अब चम्‍बल में क्‍या करेंगें ।

चम्‍बल में जल्‍दी ही अर्गल आउट ऑफ डेट यानि एक्‍सपायर्ड डेट की दवा बन जायेगें । दर असल अर्गल रिजर्व कोटे के हैं, वे बकाया दोंनों भी रिजर्व कोटे से आते हैं जो अर्गल काण्‍ड में शामिल थे । और अब इनकी सीटें नये परिसीमन में खत्‍म होकर सामान्‍य हों गयीं हैं । अब ये अपने अंतिम कार्यकाल की अंतिम घडि़यां गिन रहे हैं । वह तो भला हो यूपीए सरकार का कि इन एक्‍सपायर हो रहे सांसद महोदय के संसदीय दिये में तेल डाल कर कुछ और दिनों का जीवन दान दे दिया वरना अब तक तो एक्‍स्‍पायर हो चुके होते । और अंतकाल प्राप्‍त सांसद सूची में दर्ज हो गये होते ।

पर ये भी उतना महत्‍वपूर्ण नहीं था कि अर्गल का करेंगें । महत्‍वपूर्ण था कि अर्गल मुरैना आयेंगें तो का होगा ।

लोग अर्गल को पूजेंगें कि पन्हियायेंगें । ये टेंशन तो सबको ही खाये जा रहा था । ऊपर से अर्गल की अगवानी के लिये कांग्रेस ने मुँह काला करने का और समाजवादी वालों ने जूतों से मारने का ऐलान करके इस टेंशन का ब्‍लडप्रेशर बहुत हाई कर दिया था । शहर को टेंशन, जिले को टेंशन, चम्‍बल को टेंशन, म.प्र. को टेंशन, प्रशासन को टेंशन, पुलिस को टेंशन, और पत्रकारों को वैसे ही चौबीस घण्‍टे टेंशन रहता है अबकी बार फिर टेंशन ।

टेंशन में टेंशन तब ज्‍यादा हो गया जब मुरैना के मंझले सिपाही को उसी के उसी दिन चार्ज दिलाया गया, अब कहावत है कि जहँ जहँ चरण पड़े सन्‍तन के..... इधर मंझले सिपाही ने चार्ज लिया उधर अर्गल का आगमन हो गया ।

पहले पहाड़गढ़ में पंगा कर आये थे, ठाकुरों के दुश्‍मन नंबर एक हैं, ठाकुर नजर आते ही मंझले सिपाही की ऑंखों में खून खौल जाता है, और उसका एनकाउण्‍टर ठोक देते हैं, ठाकुर तो समूची सरकार के ही दुश्‍मन हैं, एक दिन पहले चम्‍बल से सारे ठाकुर अफसर और कर्मचारी हटा दिये गये,बाद बकाया सस्‍पैण्‍ड कर डाले, दूसरे दिन ही तीन दर्जन ठाकुरों (तंवरघारीयों) को जिला बदर की सूची निकाल डाली, सो ठाकुर विरोधीयों को तो चार्ज ए बादशाही होना ही थी, यह हैरत की बात नहीं थी । हैरत की बात ये थी कि पठ्ठे ने चार्ज लिया और पंगा भी हुआ और दंगा भी ।

कांग्रेस में जितने भी ठाकुर थे सबके खिलाफ आनन फानन में अपराध भी दर्ज कर दिये । मजे की बात ये कि सबमें अधिकांश लगभग 90 फीसदी ठाकुर ही मुल्जिम बने ।

शहर कोतवाल साहब पहले से ही ठाकुरों के दुश्‍मन थे अब मंझले सिपाही भी ठाकुरों के दुश्‍मन तो जो होना था, अगर शिल्‍पा शेट्टी की सभ्‍य भाषा में कहें तो '' जरा ज्‍यादा ही हो गया ''

पर हमारे मंझले सिपाही का कोई पैर तो देखो, साला कई महीनों से भारी चल रहा है, उनका पॉव भारी होना पूरे पुलिस डिपार्टमेण्‍ट के लिये मुसीबत बन गया है, वे जहॉं भी पॉंव धरते हैं पंगा और दंगा अपने आप ही हो जाता है । बेचारे इतने समय से बगैर नहाये धोये, बगैर मंजन अंजन के घूम रहे हैं कोई तो इलाज बताईये ।

रविवार, 27 जुलाई 2008

भेंट चढ़ाने के बाद ही मंजूर होते हैं सब्सिडी के प्रकरण

भेंट चढ़ाने के बाद ही मंजूर होते हैं सब्सिडी के प्रकरण

-दास्तां-ए-उद्योग विभाग

मुरैना, 24 जुलाई। मुरैना का जिला उद्योग विभाग भारी भ्रष्टाचार का केन्द्र बन गया है। यहॉ बगैर लेन - देन के कोई प्रकरण मंजूर नहीं किए जाते है। जो हितग्राही पैसे देने में असमर्थता जताता है। इसके प्रकरण को यह कहकर टाल दिया जाता है कि तारीख निकल चुकी है। आखिरकार भेंट चढ़ाने के बाद ही प्रकरण मंजूर होता है।

       उल्लेखनीय है कि निजी व्यवसाय हेतु केन्द्र व राज्य सरकारों द्वारा तमाम सारी योजनाऐं चलाईं जा रहीं है। जिन पर अलग अलग योजनाओं के तहत बैंकों द्वारा कर्ज प्रदान किया जाता है। इसके साथ ही इन योजनाओं पर सरकार द्वारा उद्योग विभाग के माध्यम से हितग्राहियों को सब्सिडी भी प्रदान की जाती है। यह सब्सिडी विभिन्न बैंकों द्वारा उद्योग विभाग को भेजे गए प्रकरणों पर मंजूर होती है। विभाग द्वारा प्रधानमंत्री रोजगार योजना (पीएमआरवाई), दीनदयाल रोजगार योजना एवं रानी दुर्गावती रोजगार योजना के तहत छूट का पैसा दिया जाता है। हालांकि केन्द्र सरकार द्वारा हाल ही में प्रधानमंत्री रोजगार योजना को बंद कर दिया है। जिससे बेरोजगारों को काफी निराशा हुई हैं। उल्लेखनीय है कि बेरोजगारों को प्रकरण तैयार कराने में तीन सौ से पांच सौ तक खर्च हो जाते हैं। रही सही कसर बाबू लोग पूरी कर देते हैं। इसके बाद भी यह जरूरी नहीं कि उनके प्रकरण मंजूर ही हो जाऐंगे। अलग-अलग योजनाओं में उद्योग विभाग में दो हजार से अधिक प्रकरण आते हैं। जिनमें से 25-30 प्रतिशत तक प्रकरण मंजूर हो पाते हैं।

 उधर दीनदयाल रोजगार योजना सभी वर्गो के लिए संचालित है, इसमें 30 प्रतिशत तक छूट दी जाती है। इस योजना के तहत 50 लाख तक के प्रकरण मंजूर किए जाते है। नियमानुसार जिला उद्योग विभाग में कोई प्रकरण आने पर उसे एक निश्चित निर्धारित प्रक्रिया के तहत मंजूर किया जाता है। हालांकि इसकी मंजूरी एक कमेटी द्वारा की जाती है। लेकिन इसके इतर मुरैना के जिला उद्योग केन्द्र में सब्सिडी का प्रकरण मंजूर करने के लिए कोई नियम कानून नहीं है। यहां कई बार कोई प्रकरण महीनों तक पड़ा रहता है। लेकिन उसे मंजूर नहीं किया जाता। उधर कई बार ऐसा भी होता है कि किसी प्रकरण को कुछ ही दिनों में मंजूर कर लिया जाता है। खास बात यह है कि जिन लोगों के प्रकरण मंजूर नहीं होते है उनसे उक्त मद में पैसा नहीं होने या तारीख निकलने की बात कही जाती है। यही नहीं छूट की फाइलों को संबधित विभागों को बापस भेज दिया जाता है। बताया जाता है कि उद्योग विभाग में उन्हीं प्रकरणों को मंजूर किया जाता है, जिनमें पैसा दे दिया जाता है। प्रकरणों को मंजूर करने की रेट भी अलग-अलग है। इस भ्रष्टाचारी गंगा में नीचे से ऊपर तक के सभी विभागीय अधिकारी व कर्मचारी डुबकी लगाते हैं। कुछ महीने पहले करीब आधा दर्जन बेरोजगार युवकों ने आवेदन उद्योग विभाग में जमा किए थे। लेकिन उनके आवेदन अभी तक मंजूर नहीं हुए हैं। बंटी शर्मा, केशव सिंह गुर्जर, सुरेन्द्र सिंह गुर्जर, बिजेन्द्र शर्मा आदि ऐसे युवक हैं जिनके प्रकरण मंजूर नहीं हुए हैं। उधर इस सबंध में जब उद्योग विभाग के महाप्रबंधक आरएस पचौरी से पूछा गया तो उन्होंने बाहर होने की बात कही । इससे ऐसा प्रतीत होता है कि उन्हें भी इस सब घालमेल की जानकारी है।

 

शनिवार, 26 जुलाई 2008

सांसदों की रिश्‍वत काण्‍ड में मीडिया वार, फुसफसा रही है चम्‍बल की जनता : यह सांसद की फर्जी नौटंकी, रूस्‍तम सिंह के खिलाफ सी.बी.आई जॉंच की खबरों से मचा हड़कम्‍प

सांसदों की रिश्‍वत काण्‍ड में मीडिया वार, फुसफसा रही है चम्‍बल की जनता : यह सांसद की फर्जी नौटंकी

रूस्‍तम सिंह के खिलाफ सी.बी.आई जॉंच की खबरों से मचा हड़कम्‍प  

मुरैना 26 जुलाई 08, सांसदों को रिश्‍वत दिये लिये जाने को लेकर प्रमुख समाचार पत्र व अन्‍य मीडिया आमने सामने आ गये हैं । एक तरफ जहॉं भाजपा को निष्‍कलंक व दोष रहित कर लिखा जा रहा है वहीं, दूसरी ओर सांसद रिश्‍वत काण्‍ड के छींटे म.प्र. के मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और पंचरयत मंत्री रूस्‍तम सिंह के दामन पर भी पहुँच गये हैं ।

मीडिया का एक पक्ष जहॉं कांग्रेस सपा पर 500 से 600 करोड़ देकर सांसद खरीद कर विश्‍वास मत प्राप्‍त करने का दावा की खबरों को फ्रण्‍ट पेज शीर्षक देकर छाप रहा है, वहीं दूसरा पक्ष राष्‍ट्रीय रोजगार गारण्‍टी के पैसे का और म.प्र. के मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह का इसे प्रायोजित कार्यक्रम बता रहा है ।

मीडिया में ठने इस युद्ध को जनता बड़े मजे लेकर और चटखारे लेकर सुन पढ़ रही है ।

क्‍या कहते हैं चम्‍बलवासी

भाजपा के अधिकांश कार्यकर्ताओं सहित आम जनता की राय है कि सांसद अशोक अर्गल महाभ्रष्‍ट है, वह सौ पॉंच सौ रूपये छोड़ता नहीं, एक करोड़ पेश करने के बदले जरूर उसे भाजपा के मंत्री और मुख्‍यमंत्री ने दस करोड़ दिये होंगें तथा विधायक के टिकिट दिलाने का वायदा किया होगा ( मुरैना संसदीय क्षेत्र अब अनारक्षित हो गया है अत: अशोक अर्गल का राजनीतिक कैरियर समाप्‍त होने जा रहा है, और वह अम्‍बाह विधानसभा से विधायक बनने के लिये फड़फड़ा रहे हैं, लेकिन वहॉं पहले से ही भाजपा के कद्दावर दावेदार हैं, मुशीलाल पूर्वमंत्री वर्तमान एग्रो अध्‍यक्ष, संध्‍याराय दिमनी वर्तमान विधायक यह सीट भी सामान्‍य हो गयी है इसलिये संध्‍याराय ने भी अम्‍बाह विधानसभा पर टिकिट का दावा ठोंका है, बंशीलाल वर्तमान अम्‍बाह विधायक) सबक पत्‍ता साफ करने के लिये अशोक अर्गल ने तुरूप का इक्‍का फेंका है और दस करोड़ मिले सो अलग ।

मजे की बात यह है कि यह खबर और कोई नहीं भाजपा के ही कार्यकर्ता जनता में फैलाने में लगे हैं और अशोक अर्गल के धुर विरोधी भाजपा नेता खुलकर सामने आ गये  हैं । दूसरी ओर पंचायत मंत्री रूस्‍तम सिंह के विरूद्ध रोजगार गारण्‍टी योजना और पीएमजीएसवाय में हुये भ्रष्‍टाचार के मामलों में सी.बी.आई. जॉंच शुरू होने की खबर भी भाजपाईयों द्वारा फैलाने से हड़कम्‍प मच गया है, उल्‍लेखनीय है कि स्‍रूतम सिंह और अशोक अर्गल परम मित्र होकर दॉंत काटी रोटी है, अशोक अर्गल काण्‍ड में उनका नाम भी इसके चलते लोगों ने घसीट लिया है, दूसरी ओर अशोक अर्गल पर पहले से ही दर्ज अपराधों और न्‍यायालय से फरारी के मामले भी उछल उछल कर सामने आ रहे हैं । अशोक अर्गल को बाप दादों के जमाने से ही रिश्‍वतखोर (उल्‍लेखनीय है कि अशोक अर्गल के पिता स्‍व. छविराम अर्गल तत्‍कालीन सांसद ने 1979 में चौधरी चरण सिंह पर भी इसी प्रकार साढ़े चार लाख रूपये की रिश्‍वत देने का आरोप लगाया था । ) कहा जा रहा है ।

अमूमन चम्‍बल की जनता में अशोक अर्गल के खिलाफ भारी गुस्‍सा और आक्रोश है, खेतों से खलिहान तक, चौराहों से चौपाल तक इस समय अशोक अर्गल को गरियाया जा रहा है । लोग मानने को तैयार नहीं हैं कि अशोक अर्गल ईमानदार है और फर्जी नौटंकी नहीं रच सकते । ससंदीय घटनाक्रम को लोगों की नजर में टिकिट और पैसे के लिये की गयी फर्जी नौटंकी कहा जा रहा है । उल्‍लेखनीय है अशोक अर्गल अम्‍बाह विध्‍धनसभा के अतिरिक्‍त भिण्‍ड दतिया संसदीय सीट से भी टिकिट पाने के इच्‍छुक हैं ।

शुक्रवार, 25 जुलाई 2008

(विशेष्‍ा आलेख ) ग्वालियर इन्वेस्टर्स मीट// 29-30 जुलाई पर विशेष// मध्यपप्रदेश के औद्योगिक परिदृश्य में जुड़ रहे हैं नित-नये प्रतिमान

(विशेष्‍ा आलेख ) ग्वालियर इन्वेस्टर्स मीट// 29-30 जुलाई पर विशेष// मध्यपप्रदेश के औद्योगिक परिदृश्य में जुड़ रहे हैं नित-नये प्रतिमा

बीसवी सदी के आरंभ से

बड़े  उद्योगों में सबसे पहले कलकत्ता के बिड़ला बन्धुओं द्वारा सन् 1921 में जीवाजी राव कॉटन मिल्स लिमिटेड की नीव रखी । बाद में सन् 1930 में सेठ मोतीलाल अग्रवाल मिल्स लिमिटेड, 1943 में आदर्श क्लाथ मिल्स और 1947 में ग्वालियर रेयान की स्थापना हुई । इनके अलावा 1950 में ग्वालियर इंजीनियरिंग वर्कर्स, 1910 में ग्वालियर पॉटरीज और बीसवी सदी के आरंभ में ही  द ग्वालियर लेदर फेक्ट्री, टैनरी एंड टेंट फैक्ट्री की स्थापना हुई। शासकीय प्रादेशिक मुद्रणालय सन् 1951 में, जेबी मंगाराम बिस्कुट फेक्ट्री व सन् 1933 के आसपास ही इम्पीरियल मेच कम्पनी लश्कर की स्थापना हुई ।

भौगोलिक स्थिति एवं सम्पर्क

       ग्वालियर परिक्षेत्र में दो राजस्व संभाग ग्वालियर एवं चम्बल में शामिल है। ग्वालियर संभाग में  ग्वालियर सहित शिवपुरी, गुना, दतिया एवं अशोकनगर जिले है तथा चम्बल संभाग में भिण्ड, मुरैना एवं श्योपुर जिले है। परिक्षेत्र के सीमाएॅ गुना से मालवा को दतिया से बुन्देलखण्ड को भिण्ड से उत्तरप्रदेश के गंगा यमुना के मैदानी भाग तथा मुरैना एवं श्योपुर से राजस्थान को जोडती है। परिक्षेत्र का मुख्यालय ग्वालियर, देश की राजधानी दिल्ली से 325 किलोमीटर की दूरी पर दिल्ली-भोपाल के मध्य क्षेत्र एवं आगरा-मुंबई राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक - 3 तथा नॉर्थ साउथ कोरीडोर पर स्थित है।

ऐतिहासिकता एवं संस्कृति

ग्वालियर देश के उत्तर मध्य क्षेत्र का ऐतिहासिक सांस्कृतिक शहर है। यह परिक्षेत्र ऐतिहासिक रूप से अपने गौरव एवं समृध्दशाली परम्पराओं के लिये विख्यात रहा है जिसका उदाहरण 15वी सदी में यहां निर्मित महाराजा मानसिंह तोमर का दुर्ग है जो ग्वालियर किले के नाम से विख्यात है। इस परिक्षेत्र में ग्वालियर किले के अतिरिक्त अन्य ऐतिहासिक धरोहरों में शिवपुरी जिले में नरवर का किला,  गुना में चन्देरी का किला,  दतिया में दतिया का किला भिण्ड में भिण्ड एवं अटेर का किला प्रसिध्द है। यह गालव ऋषि की तपोभूमि एवं संगीत सम्राट तानसेन की नगरी के रूप में प्रसिध्द है। भारतीय शास्त्रीय संगीत में ग्वालियर घराना एक अलग पहचान रखता है।

       मध्यप्रदेश के औद्योगिक परिदृश्य में नित-नये प्रतिमान जुड़ रहे हैं । राज्य सरकार ने देशी-विदेशी निवेशकों को मध्यप्रदेश की सरजमी पर लाकर निवेश प्रोत्साहन के लिये वर्ष 2006 में नई दिल्ली से 'डेस्टीनेशन मध्यप्रदेश ' के रूप में जो मुहिम शुरू की थी , वह इन्वेस्टर्स मीट खजुराहो, ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट इन्दौर, इन्वेस्टर्स मीट जबलपुर एवं बुंदेलखंड इन्वेस्टर्स मीट सागर होती हुई 29-30 जुलाई को ग्वालियर पहुंच रही है । इससे पहले इस मुहिम ने सिंगापुर, मलेशिया, लंदन, न्यूयार्क, शिकागो, लास एंजेल्स, सेंट लुई के अलावा मुम्बई व बैगलौर का रास्ता भी तय किया है । राज्य सरकार द्वारा पिछले चार वर्षों से किये जा रहे प्रयासों की बदौलत प्रदेश में न केवल भारी पूंजी निवेश हुआ है बल्कि दिग्गज उद्योगपतियों की निगाहें मध्यप्रदेश पर टिकी हैं । राज्य सरकार की कोशिशों से देश-विदेश की जानी मानी और बड़ी-बड़ी कम्पनी व औद्योगिक समूहों ने दो लाख 76 हजार 550 करोड़ रूपये निवेश के 241 एमओयू पर हस्ताक्षर भी किये । प्रदेश में कई स्थानों पर उद्योग की शक्ल ले रहे ये कारखाने में सफलता की कहानी खुद बयान कर रहे हैं । प्रदेश में निवेश के लिये आगे आई दिग्गज कम्पनियों में अनिल धीरूभाई अम्बानी समूह, बिड़ला कार्पोरेशन, एसीसी, सांघी, ट्रायडेंट, प्रिज्म सीमेंट, ल्यूगान चीन, एस्सार, एसकेएस पावर, जिम्बोविस पावर, दावत फूड, जेनपेक्ट, इंपीसट, सिनटिव फिनलैंड, बीएलए पावर, यूरो बांड, पार्श्वनाथ, मेघालय सीमेंट, वेली आयरन एंड स्टील्स, टाटा मेटेलिका, व एएसआई सीमेंट आदि शामिल हैं।

ग्वालियर में औद्योगिक निवेश क्यों ?

       इसी माह 29-30 जुलाई को आयोजित होने जा रही इन्वेस्टर्स मीट की मेजबानी ग्वालियर को सौंपना प्रदेश सरकार का दूरदर्शितापूर्ण कदम है। इसकी वजह साफ है ग्वालियर अंचल उन सभी संभावनाओं से परिपूर्ण है जो निवेशकों के लिये आदर्श कही जाती है । कहने का आशय है ग्वालियर अचंल जहां रेल, सड़क, हवाई मागों से देश की राजधानी सहित प्रमुख शहरों से सीधा जुड़ा है वहीं कच्चे माल की प्रचुर मात्रा में उपलब्धता, कुशल मानव संसाधन, समृध्द सांस्कृतिक विरासत, नैसर्गिक व ऐतिहासिक पर्यटन स्थल, उत्तम पर्यावरण, ठोस औद्योगिक आधार व तेजी से विकसित हो रही अधोसरंचना  एवं निवेश की कम लागत निवेशकों के लिये अनुकूल परिस्थितियां पैदा करती हैं ।

 अबुल फजल भी प्रभावित था ग्वालियर की समृध्द औद्योगिक  विविधिता से

       ग्वालियर अचंल में प्राचीनकाल से ही कच्ची सामग्री के औद्योगिक उपयोग के प्रमाण मिलते हैं । विशेषकर बलुआ पत्थर, मिट्टी, गेरू,  और कांच बनाने की बालू की दृष्टि से यह क्षेत्र समृध्द रहा है । प्राचीन काल में यहां कच्चा लोहा भी पर्याप्त मात्रा में पया जाता था । आईने अकबरी के लेखक और शंहशाह अकबर के नवरत्नों में से एक अबुल फजल ने भी एक जगह जिक्र किया है कि ग्वालियर कच्चा लोहा और लाल मिट्टी के लिये प्रसिध्द है । ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि मुगलकाल में इस जिले में लोहा गलाने का उद्योग अपनी पूरी समृध्दि पर था । इस बात की पुष्टि छतरपुर जिले में बिजावर कस्बे का एक भाग है जो ग्वालियर का गंज कहलाता था । वहां ग्वायिलर के मुसलमान समुदाय के लोग लोहे का व्यापार करते थे । जिले के खनिज संसाधनों में बलुआ पत्थर सबसे महत्वपूर्ण है । बिजावर व विन्ध्य पर्वतमालाओं में विभिन्न प्रकार के बलुआ पत्थर मिलते हैं जो रंग, परतों की श्रेष्ठता और कठोरता की दृष्टि से भिन्न होते हैं । ग्वालियर में बलुआ पत्थर सबसे पहले सागर ताल के पास निकले गये । बेला की बावड़ी सातऊ और आंतरी में मिट्टी मिलती है । जिसका उपयोग ग्वालियर पॉटरीज द्वारा चीनी मिट्टी के बर्तन बनाने में किया जाता रहा है । ग्वालियर मालाओं में चूने का पत्थर भी पाया जाता है । इस क्षेत्र में बहुतायत में पाये जाने वाला बलुआ पत्थर मुगलकाल के पूर्व से ही भवन निर्माण की महत्वपूर्ण सामग्री रही । अलंकृत पटिया बनाते समय और मूर्ति आदि उत्कीर्ण करते समय बलुआ पत्थर का उपयोग करने में कलाकार की श्रेष्ठता उस काल की पुरानी इमारतों और मकबरों में प्रमाणित होती है । कला की ऐसी ही श्रेष्ठता का उदाहरण ग्वालियर में गौस मुहम्मद का मकबरा है,जो आज भी अच्छी हालत में मौजूद है । सन् 1835-36 में ग्वालियर जिले के भ्रमण पर आये कर्नल स्लीमेन ने भी अंतरी (आंतरी) में पर्याप्त मात्रा में निर्मित नमक मिलने और यहां की नमक बनाने की विधि का उल्लेख अपनी पुस्तक में किया है ।

बीसवी सदी के आरंभ से ही मिला उद्योगों को प्रोत्साहन

       ग्वालियर रियासत के तत्कालीन शासकों ने भी उद्योगों को खूब प्रोत्साहन दिया। ग्वालियर में सन् 1920 में एक औद्योगिक विकास मंडल की स्थापना की गई। उद्योगों की स्थापना के लिये विशेष रियायत देने के अलावा उद्योगों के विकास के लिये महत्वपूर्ण पहलू विद्युत शक्ति की उपलब्धता भी है । ग्वालियर जिले में विद्युत आपूर्ति का सबसे पहला साधन थर्मल इकाई थी जो 1905 में  स्थापित की गई थी। वर्तमान बिजली घर की अधार शिला 1929 में रखी गई ।

       बड़े  उद्योगों में सबसे पहले कलकत्ता के बिड़ला बन्धुओं द्वारा सन् 1921 में जीवाजी राव कॉटन मिल्स लिमिटेड की नीव रखी । बाद में सन् 1930 में सेठ मोतीलाल अग्रवाल मिल्स लिमिटेड, 1943 में आदर्श क्लाथ मिल्स और 1947 में ग्वालियर रेयान की स्थापना हुई । इनके अलावा 1950 में ग्वालियर इंजीनियरिंग वर्कर्स, 1910 में ग्वालियर पॉटरीज और बीसवी सदी के आरंभ में ही  द ग्वालियर लेदर फेक्ट्री, टैनरी एंड टेंट फैक्ट्री की स्थापना हुई। शासकीय प्रादेशिक मुद्रणालय सन् 1951 में, जेबी मंगाराम बिस्कुट फेक्ट्री व सन् 1933 के आसपास ही इम्पीरियल मेच कम्पनी लश्कर की स्थापना हुई ।

       बड़े-बड़े उद्योगों के अलावा लघु उद्योग भी ग्वालियर अंचल में खूब फले-फूले हैं । सन् 1920 में स्थानीय ईस्ट इंडिया लिमिटेड व अमृतसर कारपेट कपनी ने गलीचे बनाने के कारखाने सफलतापूर्व चलाये। इनके अलावा होजरी उद्योग, चावल दाल व तेल मिल, 1947 में स्थापित गंगवाल फाउंड्री, सन् 1907 में स्थापित ताम्बट इंजीनियरिंग एंड फाउंड्री वर्क्स , ग्वालियर अम्ब्रेला फेक्ट्री, आरा मिल, हाथ करघा बुनाई, लकड़ी व फर्नीचरण निर्माण, पीतल तांबे का काम, चमड़े का सामान, रंगाई और छपाई पत्थर खुदाई कार्य, बांस कार्य , कुटीर हस्त शिल्प और पेपरमेशी के खिलौने भी प्रमुखता से बनाये जाते थे । सन् 1915 में ग्वालियर नगर में मिट्टी और कागज की लुगदी से बनाई जाने वाली 26 इकाईयां कार्यरत थी। इसके अलावा अन्य विविध कुटीर उद्योग ग्वालियर में संचालित थे । हालांकि देश काल परिस्थितियों की वजह से ग्वालियर की समृध्द औद्योगिक  विरासत का काफी हृास हो गया है। किन्तु इस अचंल में आज भी वो सारी परिस्थितियां मौजूद हैं, जिनसे यहां के औद्योगिक परिवेश को पुन: ऊचाईयां प्रदान की जा सकती है। राज्य सरकार ने यहां इन्वेस्टर्स मीट आयोजित करने का निर्णय लेकर ग्वालियर अंचल के औद्योगिक परिदृश्य की गरिमा को न केवल पुन: बहाल करने वरन् इसे और ऊंचाई देने की ओर कदम बढ़ा दिये हैं ।

 

भौगोलिक स्थिति एवं सम्पर्क

       ग्वालियर परिक्षेत्र में दो राजस्व संभाग ग्वालियर एवं चम्बल में शामिल है। ग्वालियर संभाग में  ग्वालियर सहित शिवपुरी, गुना, दतिया एवं अशोकनगर जिले है तथा चम्बल संभाग में भिण्ड, मुरैना एवं श्योपुर जिले है। परिक्षेत्र के सीमाएॅ गुना से मालवा को दतिया से बुन्देलखण्ड को भिण्ड से उत्तरप्रदेश के गंगा यमुना के मैदानी भाग तथा मुरैना एवं श्योपुर से राजस्थान को जोडती है। परिक्षेत्र का मुख्यालय ग्वालियर, देश की राजधानी दिल्ली से 325 किलोमीटर की दूरी पर दिल्ली-भोपाल के मध्य क्षेत्र एवं आगरा-मुंबई राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक - 3 तथा नॉर्थ साउथ कोरीडोर पर स्थित है।

       ग्वालियर, देश के उत्तर मध्य क्षेत्र का प्रमुख शहर है । जो आगरा-झांसी के बीच मध्य-रेल्वे का प्रमुख स्टेशन एवं जंक्शन है । रेल यातायात की दृष्टि से ग्वालियर शहर मुंबई, चैन्नई, बैंगलोर, हैदराबाद, पूना, कोलकता, अहमदाबाद, जयपुर, अमृतसर, जम्मूतवी, विशाखापट्टनम, त्रिवेन्द्रम आदि शहरों से सीधा जुडा हुआ है।

       ग्वालियर राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक 3 एवं 92 पर स्थित होने के साथ साथ नॉर्थ साउथ कॉरीडोर ग्वालियर से गुजरता है। झांसी में नॉर्थ साउथ एवं ईस्ट वेस्ट कोरीडोर का जंक्शन है। राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक 92 ग्वालियर से इटावा, आगरा, कानपुर फोरलेन कोरीडोर को जोडता है । ग्वालियर एवं चम्बल संभाग के समस्त जिले रेल एवं सडक यातायात से जुडे है। ग्वालियर में नई दिल्ली ग्वालियर के बीच नियमित वायुयान सेवा उपलब्ध होने से यह देश के अन्य शहरों को भी जोडता है।

ऐतिहासिकता एवं संस्कृति

       ग्वालियर देश के उत्तर मध्य क्षेत्र का ऐतिहासिक सांस्कृतिक शहर है। यह परिक्षेत्र ऐतिहासिक रूप से अपने गौरव एवं समृध्दशाली परम्पराओं के लिये विख्यात रहा है जिसका उदाहरण 15वी सदी में यहां निर्मित महाराजा मानसिंह तोमर का दुर्ग है जो ग्वालियर किले के नाम से विख्यात है। इस परिक्षेत्र में ग्वालियर किले के अतिरिक्त अन्य ऐतिहासिक धरोहरों में शिवपुरी जिले में नरवर का किला,  गुना में चन्देरी का किला,  दतिया में दतिया का किला भिण्ड में भिण्ड एवं अटेर का किला प्रसिध्द है। यह गालव ऋषि की तपोभूमि एवं संगीत सम्राट तानसेन की नगरी के रूप में प्रसिध्द है। भारतीय शास्त्रीय संगीत में ग्वालियर घराना एक अलग पहचान रखता है।

वर्तमान उद्योग

       ग्वालियर अंचल के अन्तर्गत मुरैना के डेयरी प्रोडक्ट और सरसो का तेल पूरे देश में ख्याति प्राप्त है।  20वी सदी के अंत में ग्वालियर के समीप नवीन विकास केन्द्र बानमोर एवं मालनपुर-घिरोंगी औद्योगिक क्षेत्र के रूपमें विकसित हुए जिसमें देश के प्रतिष्ठित उद्योग समूह मसलन, केडबरी, गोदरेज, एस.आर.एफ., कोडक इंडिया, जमुना आटो, सूर्या रोशनी, फ्लेक्स, क्राम्पटन ग्रीव्ज, रेनवेक्सी, एटलस, विक्रम वूलन्स, नोवा, जे.के. टायर, पुन्ज एलाइड, कर्लआन आदि इकाईयां स्थापित है। प्रदेश में निजी क्षेत्र के प्रथम गैस आधारित केप्टिव पावर प्लांट - मालनपुर पावर लि. द्वारा मालनपुर में उद्योगों को विद्युत प्रदाय की जा रही है।

स्वास्थ्य

       ग्वालियर परिक्षेत्र के समस्त जिलों में जिला चिकित्सालय निर्मित है। इसके अतिरिक्त शहर में मेडीकल कॉलेज, प्रदेश के प्रथम मानसिक चिकित्सालय, कैन्सर चिकित्सालय, आधुनिकतम नर्सिंग होम के अतिरिक्त निजी क्षेत्र के बिरला हॉस्पिटल एवं मार्क हॉस्पिटल भी कार्यरत है। इन सभी चिकित्सालयों में आधुनिक पध्दतियों से इलाज की पूरी सुविधाएं उपलब्ध है।

आवास

       उच्च गुणवत्ता की आवासीय सुविधाओं हेतु मध्यप्रदेश हाउसिंग बोर्ड, ग्वालियर विकास प्राधिकरण, विशेष क्षेत्र विकास प्राधिकरण कार्यरत है । इसके अतिरिक्त देश की प्रमुख हाउसिंग कम्पनी जैसे सहारा, अंसल एसोकेम आदि यहां कार्यरत है ।

       ग्वालियर में लगभग 3000 हैक्टर क्षेत्र में काउन्टर मेगनेट सिटी का विकास, विशेष क्षेत्र विकास प्राधिकरण द्वारा किया जा रहा है जिसमें देश की ख्यातिप्राप्त विश्वविद्यालयों, खेल, इको टूरिज्म, गोल्फ कोर्स, मेडीकल हास्पिटल्स द्वारा भूमि प्राप्त करने के अनुबन्ध किये गये है । साडा द्वारा स्वयं भी आवासीय योजना के प्रथम चरण में 5500 भूखण्डों के आवास हेतु आवंटन किया गया है ।

औद्योगिक ग्रोथ सेंटर्स - ग्वालियर अंचल में औद्योगिक निवेश के लिए दस से अधिक बड़े बडे ग्रोथ सेंटर मौजूद है। जिनमें मालनपुर/घिरोंगी, बामोर, सिध्दगंवा, प्रतापपुरा, चैनपुरा,  आईआईडी, बीना, आईआईडी प्रतापपुरा, आईआईडी जडेरूआ, आईआईडी नादनटोला, फूड पार्क मालनपुर एवं स्टोन पार्क शामिल है। तकरीबन दो हजार 474 हेक्टयर क्षेत्र में फैले इन ग्रोथ सेंटर में वर्तमान में भी 598 हेक्टयर से अधिक भूमि आवंटन के लिए उपलब्ध है।

ग्वालियर परिक्षेत्र में उपलब्ध प्रमुख औद्योगिक अधोसंरचना- इस अंचल के औद्योगिक क्षेत्रों में प्रमुख रूप से ग्वालियर जिले के अन्तर्गत महाराजपुरा, बाराघाटा, गोसपुरा, पुराना औद्योगिक क्षेत्र एवं सातऊ शामिल है । मुरैना जिले के अन्तर्गत मुरैना, कुठरावली केलारस, भिंड जिले में शहरी औद्योगिक संस्थान, दूग्ध चिलिंग प्लांट दबोह, शिवपुरी जिले में अर्ध्दशहरी औद्योगिक क्षेत्र , बड़ौदी, गुना जिले में औद्योगिक संस्थान व कुसुमौदा क्षेत्र शामिल है । इन केन्द्रों पर लगभग 43 हैक्टेयर भूमि उपलब्ध है जिसके लिये संबंधित जिला व्यापार एवं उद्योग केन्द्र से सम्पर्क किया जा सकता है ।

       अन्य महत्वपूर्ण अधोसंरचना के रूप में 25 हैक्टेयर क्षेत्र में आईटी पार्क विचाराधीन है । इसके अलावा एक हजार हैक्टेयर क्षेत्र में एसईजेड व साढ़े सात हैक्टेयर क्षेत्र में ग्वालियर पॉटरीज की भूमि पर हैवीटेट पार्क प्रस्तावित है । 

ग्वालियर परिक्षेत्र में उपलब्ध प्रमुख वनोपज एवं खनिज संसाधन

ग्वालियर  जिले में पत्थर (गौण), फर्शी पत्थर (गौण), लौह अयस्क, गेरू लाल मिट्टी (प्रमुख) खडिया (प्रमुख) मुरम (गौण) रेत (गौण) पाये जाते हैं । इसी प्रकार मुरैना में चूना पत्थर, सिलिका स्टोन, सेण्ड स्टोन, दतिया में बेस मेटल, ग्रेनाईट, शिवपुरी में पायरोफिलायट एवं डायस्पोर, सेंड स्टोन, ग्रेनाईट, बेस मेटल व अशोकनगर जिले में फर्शी पत्थर, रेत व मुरम खनिज प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं । वनोपज एवं हर्बल तेंदूपत्ता, आंवला, गोंद, खैर, आम, नीबू, अमरूद, अश्वगंधा, सन्तरा आदि का पर्याप्त मात्रा में मिलते हैं ।

कृषि एवं उद्यानिकी

       राई, सरसों, चावल, गेहूं, ज्वार, बाजरा, चना, तुअर, उडद, गन्ना, अलसी, मूंगफली, तिल्ली, सोयाबीन, अदरख, धनिया, मिर्ची, हल्दी, लहसून, आलू, मटर, आदि प्रमुख हैं ।

 

पर्यटन

ग्वालियर परिक्षेत्र गौरवशाली पुरासम्पदाओं के लिये विख्यात है । ग्वालियर जिले में ऐतिहासिक धरोहर के रूपमें ग्वालियर दुर्ग, तानसेन समाधि, मौहम्मद गौस का मकबरा, रानी लक्ष्मीबाई की समाधि, जय विलास पैलेस, शिवपुरी जिले में सिंधिया राजवंश की छत्रियां, एवं माधव नेशनल पार्क, नरवर का किला, गुना जिले में चन्देरी का किला, मुरैना जिले में ककनमठ, चौसठ योगिनी मंदिर, सिहोनिया, पढावली का शिव मंदिर लिखिछाछ पहाड़गढ़ में भी मवेटिका के सदृश्य पाषाण चित्रकला एवं चम्बल घडियाल सेंचुरी, भिण्ड में अटेर का किला दतिया का सात मंजिला महल, मुगल कालीन गोपेश्वर मंदिर एवं पीताम्बरा सिध्द पीठ एवं आदि प्रमुख पर्यटन स्थल है ।

परम्परागत उद्योग धंधे

ग्वालियर परिक्षेत्र में कालीन, हस्तशिल्प, पेपरमेसी व चन्देरी साडिया टैक्सटाईल का कार्य करनेवाले कुशल कारीगर ग्वालियर तथा गुना जिले में उपलब्ध हेै । ग्वालियर में बीडी तथा अगरबत्ती बनानेवाले श्रमिक प्रचुर मात्रा में है । इसके अलावा श्योपुर जिले में वुडन शिल्प के कारीगर उपलब्ध है ।

मानव संसाधन

अगस्त 2001 की स्थिति में ग्वालियर परिक्षेत्र की कुल जनसंख्या 76.64 लाख है। इसमें से औसत कार्यशील जनसंख्या लगभग 35 प्रतिशत है । कार्यशील जनसंख्या का 48 प्रतिशत कृषि , लगभग 20 प्रतिशत उद्योग एवं व्यवसाय व शेष 32 प्रतिशत मजदूर है ।

ग्वालियर परिक्षेत्र में जीवाजी विश्वविद्यालय ग्वालियर में वर्ष 1965-66 से स्थापित है । इसके अन्तर्गत आनेवाले महाविद्यालयों में चिकित्सा, इंजीनियरिंग, विधि, प्रबंधन, फार्मेसी, एप्लायड जियोलॉजी, एप्लायड कैमिस्ट्री, कम्प्यूटर एप्लीकेशन, सूचना विज्ञान प्रौद्योगिकी, वनस्पति विज्ञान, जीव विज्ञान, मनोविज्ञान, दर्शन, संस्कृत, भाषा विज्ञान, संगीत, लाइब्रेरी साइट आदि सेवाओं से प्रति वर्ष स्नातक एवं स्नातकोत्तर प्रशिक्षित युवक तैयार हो रहे है। ग्वालियर में राष्ट्रीय स्तर का फिजीकल एजूकेशन, होटल मैनेजमेंट एवं आई.आई.आई.टी.एम. संस्थान स्थापित है जिन्हें डीम्ड यूनीवर्सिटी का दर्जा प्राप्त है। इन संस्थानों से निकले प्रशिक्षित युवा उद्योग, सेवा, व्यवसाय एवं शिक्षा स्वास्थ्य, पर्यटन आदि सभी क्षेत्रों में निवेशकों को उपलब्ध है।

ग्वालियर में जीवाजी विश्वविद्यालय एवं उससे सम्बध्द विभिन्न महाविद्यालय जिसमें मुख्य रूपसे इंजीनियरिंग कॉलेज, मेडीकल कॉलेज है । जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय से सम्बध्द कृषि महाविद्यालय, शारीरिक शिक्षा महाविद्यालय जिसे डीम्ड विश्वविद्यालय का दर्जा प्रदान किया गया है । इंडियन इन्स्टीटयूट ऑफ इंजीनियरिंग एवं मैनेजमेंट, होटल एवं टूरिस्ट मैनेजमेन्ट, राजीव गांधी प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय से सम्बध्द महाविद्यालय एवं ग्वालियर दुर्ग पर स्थित सिंधिया स्कूल प्रमुख है। ग्वालियर में इंजीनियरिंग, प्रबंधन, चिकित्सा, आई.टी., विज्ञान, कला, फार्मेसी आदि प्रमुख शिक्षा क्षेत्रों में महाविद्यालय स्तर के लगभग 100 शिक्षण संस्थान है।

निवेश की संभावनाएं

खनिज आधारित-स्टोन कटिंग एवं पालिशिंग (स्टोन टाइल्स निर्माण ) स्टोन क्रेशर, लोह बेनीफिकेशन, इस्पात प्लान्ट ।

हर्बल एवं वनोपज आधारित- हर्बल प्रोसेसिंग, आयुर्वेदिक दवाईयां, हर्बल सौन्दर्य प्रसाधन, हर्बल कीट नाशक, वूडन आर्ट, बायो डीजल, शहद उत्पादन, मुरब्बा निर्माण, वूडन शिल्प ।

कृषि एवं खाद्य प्रसंस्करण -    कृषि उपकरण निर्माण, जैविक खेती, मसाला प्रोसेसिंग, अदरक, धनिया, मिर्च के मसाले, सोया प्रोडक्ट, मैदा मिल, आटा, राइस, पोहा, आयल मिल, दाल मिल, बेकरी उत्पाद, पोटेटो प्रोडक्ट, शुगर मिल, दुग्ध उत्पाद, दुग्ध प्रसंस्करण, आइसक्रीम नमकीन आदि ।

मांग आधारित-इन्फारमेशन टेक्नालौजी, फार्मास्युटिकल्स, सॉल्वेन्ट एक्सटे्रेशन प्लान्ट, फूड प्रोसेसिंग पर्यटन-पर्यटन के क्षेत्र में हेरीटेज होटल, इको टूरिज्म, लाइट इन्जीनियरिंग, पावर जनरेशन, परिवहन सुविधायें, हैल्थ रिसोर्ट आदि क्षेत्र में निवेश की अपार संभावनाएं है ।

अधोसंरचना विकास -उद्योग नीति के अन्तर्गत ग्वालियर क्षेत्र में इलेक्ट्रॉनिक्स, आई.टी. एफएमसीजी, कमोडिटीज लाइट इन्जीनियरिंग एवं फूड प्रोसेसिंग के क्लस्टर को चिन्हिंत कर विकास की अपार संभावनायें है ।


 

ग्वालियर में उपलब्ध प्रमुख सुविधाएं

       यह संपूर्ण क्षेत्र (ग्वालियर जिला छोडकर) पिछडा श्रेणी '''' अन्तर्गत होने से उद्योगों को यहां अधिकत्तम अनुदान एवं सुविधाएं उपलब्ध हैं।

उद्योग मित्र प्रशासन-दस करोड तक के निवेश प्रस्तावों के अनुमोदन हेतु जिला साधिकार समिति गठित है ।  10 करोड से 25 करोड तक के निवेश प्रस्तावों के लिए राज्य स्तरीय तथा 25 करोड़ रूपये  से अधिक के प्रस्तावों के लिए शीर्ष स्तरीय साधिकार समितियॉ क्रियाशील है ।

रोजगार मूलक योजनाएं-उद्योग, सेवा, व्यवसाय के माध्यम से रोजगार दिलाने के लिए शासन द्वारा शिक्षित बेरोजगारों के लिए दीनदयाल रोजगार योजना तथा अनुसूचितजाति/जनजाति के उद्यमियों के लिए विशेष रानी दुर्गावती योजना संचालित है ।

मेगा प्रोजेक्ट को रियायती दरों पर भूमि-25. करोड से 500 करोड निवेश की बृहद परियोजनाओं को पात्रता अनुसार 5 एकड से 20 एकड तक तथा रूपये 500 करोड से अधिक की परियोजनाओं को और अधिक भूमि (प्रकरण अनुसार) आवंटन पर प्रीमियम में 75 प्रतिशत तक की छूट दी गयी है। अप्रवासी भारतीयों, शत-प्रतिशत निर्यातक इकाईयों के लिए मेगा प्रोजेक्ट निवेश सीमा रूपये 18.75 करोड है । खाद्य एवं कृषि प्रसंस्करण, दुग्ध प्रसंस्करण/उत्पादन हर्बल, वनोपज तथा बायो टेक्नालॉजी उद्योगों को 10 करोड रूपये निवेश करने पर मेगा प्रोजेक्ट सुविधाएं दी गयी हैं। 1000 से अधिक व्यक्तियों को प्रत्यक्ष रोजगार देने वाले उद्योगों को मेगा प्रोजेक्ट का दर्जा दिया जा कर पूंजी निवेश के बंधन से मुक्त रखा गया है ।

मंडी टैक्स में छूट -    खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों को मंडी टैक्स से छूट दी गयी है ।

प्रवेश कर मे छूट -    नई औद्योगिक इकाई को उसके कच्चेमाल के प्रथम क्रय की दिनांक से पांच वर्ष की कालावधि के लिए प्रवेश कर के भुगतान से पूर्णत: छूट प्राप्त है । पात्र उद्योगों को विस्तार पर भी यह छूट प्राप्त है ।

स्टाम्प डयूटी में छूट- नवीन उद्योग स्थापना, विस्तार, विविधीकरण या आधुनिकीकरण हेतु वित्तीय संस्थाओं से सावधि ऋण अभिप्राप्ति करने के संबंध में उद्योगपतियों द्वारा निष्पादित किये जाने वाले कब्जा रहित बंधक की लिखितों पर 100 प्रतिशत की छूट तथा पंजीयन शुल्क केवल एक रूपये प्रति हजार की दर से देय है । पात्र बी.आई.एफ.आर. इकाईयों तथा बंद बीमार उद्योगों के हस्तांतरण पर स्टाम्प डयूटी व पंजीयन शुल्क में छूट है।

टर्म लोन पर ब्याज अनुदान - पात्र उद्योगों को टर्म लोन पर 7 वर्ष तक 5 प्रतिशत ( 20.लाख तक) अनुदान । अनुसूचित जाति/जनजाति के तथा महिला उद्यमियों को 5 प्रतिशत की दर से 5 वर्ष तक सीमा बंधन रहित ब्याज अनुदान दिया जाता है।

उद्योग निवेश अनुदान योजना-  पात्र लघु उद्योगों को स्थायी पूंजी निवेश पर 15 प्रतिशत की दर से रूपये 15 लाख तक अनुदान । अनुसूचित जाति/जनजाति के तथा महिला उद्यमियों को अनुदान की  सीमा 17लाख 50 हजार रूपये है। 

परियोजना प्रतिवेदन प्रतिपूर्ति योजना - नये उद्योगों को परियोजना रिपोर्ट तैयार कराने पर हुए व्यय पर  3लाख तक अनुदान दिया जाता है ।

गुणवत्ता प्रमाणीकरण पर हुए व्यय की प्रतिपूर्ति- नवीन उद्योगों को मान्यता प्राप्त संस्था से गुणवत्ता प्रमाण पत्र प्राप्त करने पर हुए व्यय की 50 प्रतिशत, एक लाख तक प्रतिपूर्ति 

पेटेन्ट प्राप्त करने पर हुए व्यय की प्रतिपूर्ति - उद्योगों में शोध एवु अनुसंधान गतिविधियों को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से पेटेन्ट प्राप्त करने पर हुए व्यय की शत - प्रतिशत प्रतिपूर्ति अधिकतम  दो लाख की सीमा तक है ।

विद्युत शुल्क से छूट - उद्योगों को केप्टिव उपयोग हेतु विद्युत उत्पादन तथा गैर परम्परागत स्त्रोतों से विद्युत उत्पादन पर पात्रता अनुसार विद्युत डयूटी, विद्युत सेस की छूट ।

अन्य सुविधाएं- स्टोन पार्क तथा फूड पार्क में स्थापित होने वाली इकाईयों, हर्बल एवं फार्मास्युटिकल उद्योगों, टेक्सटाईल उद्योगों, बायो टेक्नालॉजी एवं आई.टी. उद्योगों को विशेष छूट । बीमार उद्योगों के पुनर्जीवन हेतु विशेष पैकेज ।