शुक्रवार, 30 अप्रैल 2010

मध्‍यप्रदेश में भारी राजनैतिक उथल पुथल के आसार

मध्‍यप्रदेश में भारी राजनैतिक उथल पुथल के आसार

भोपाल 1 मई 10, आने वाले दो तीन हफ्ते के दरम्‍यांन मध्‍यप्रदेश में सत्‍तारूढ़ भारतीय जनतापार्टी और मुख्‍य विपक्षी दल कॉंग्रेस में भारी राजनीतिक उथल पुथल और परिवर्तन के आसार नजर आ रहे हैं । जहॉं भारतीय जनता पार्टी का नया प्रदेश अध्‍यक्ष बनना है वहीं कॉंग्रेस भी अपने पदाधिकारीयों, रणनीति और ढांचे में तगड़ा फेर बदल कर सीधा हमला प्रदेश की भाजपा सरकार पर बोलने जा रही है । दूसरी ओर उमा भारती की भाजपा में वापसी लगभग तय हो गयी है । जहॉं म.प्र. के मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह, नरेन्‍द्र सिंह तोमर, प्रभात झा की तिकड़ी अपने हिसाब से गोटियां बिछाने में लगी है वहीं इनके विरोधी भी तेज गति से मुखर व सक्रिय हो गये हैं ।

उमा भारती की भाजपा में वापसी को तिकड़ी के लिये शुभ शकुन नहीं माना जा रहा, फिलहाल तिकड़ी और विरोधियों सबकी नजर दस समय नये प्रदेश अध्‍यक्ष पर है, यदि तिकड़ी विरोधी प्रदेश अध्‍यक्ष बनता है तो शिवराज सिंह की बेलगाम सरकार को लगाम लग जायेगी वहीं संभव है कि पार्टी के मुखिया परिवर्तन के कुछ समय बाद म.प्र. सरकार का भी नेतृत्‍व परिवर्तन कर दिया जाये ।

यदि तिकड़ी का कोई आदमी म.प्र. में भाजपा का प्रदेश अध्‍यक्ष बनता है तो कांग्रेस अपने फोरम में लौटने की तैयारी के साथ शिवराज सरकार के लिये न केवल मुसीबतें पैदा करेगी वरन जल्‍द से जल्‍द शिवराज सरकार को अलविदा कहने का अभियान छेड़ेगी । दोनों ही सूरतों में कयास हैं कि आने वाले कुछ हफ्ते म.प्र. में भारी राजनीतिक उथल पुथल और परिवर्तन वाले रहेंगें ।   

 

 

रविवार, 25 अप्रैल 2010

खेल को खेल ही रहने दो....तनवीर जांफरी

खेल को खेल ही रहने दो....

तनवीर जांफरी

 (सदस्य, हरियाणा साहित्य अकादमी, शासी परिषद)

email: tanveerjafri1@gmail.com  163011, महावीर नगर,     Phone Ñ ®v|v-wzxz{w}  मो: 098962-19228

tanveerjafri58@gmail.com

ttanveerjafriamb@gmail.com

 

       क्रिकेट हालांकि भारतीय जनमानस का लोकप्रिय खेल ारूर रहा है। परंतु इसमें भी कोई दो राय नहीं कि देश में दूरदर्शन के पांव पसारने के  बाद तथा उसके पश्चात कुछ वर्षों से प्राईवेट टी वी चैनल्स की भरमार के बाद तो गोया ऐसा लगता है कि देश का अब कोई भी व्यक्ति ऐसा नहीं रह गया जो क्रिकेट के खेल के विषय में कुछ न कुछ दिलचस्पी न रखता हो। क्रिकेट को लेकर एक नकारात्मक बात ारूर सुनी जाती थी कि पहले 6 दिन तक चलने वाला टेस्ट मैच दर्शकों का अत्याधिक समय व पैसा ंखराब करता था। और यही दर्शक स्वयं को उस समय मायूस सा भी महसूस करते थे जबकि 6 दिन खेले जाने के बाद भी वह मैच हार-जीत के ंफैसले के बगैर ही ड्रा हो जाया करता था। संक्षेप में हम यूं समझ सकते हैं कि पहले इस मनोरंजनपूर्ण खेल में भी नीरसता का भी ाबरदस्त समावेश था। कुछ समय बाद एकदिवसीय क्रिकेट मैच शुरु हुए। उसके पश्चात ंफिंफ्टी-ंफिंफ्टी और टवेंटी-टवेंटी जैसे आकर्षक, आक्रामक, मनोरंजक एवं परिणामदायक क्रिकेट का सिलसिला शुरु हुआ। निश्चित रूप से कम समय में भरपूर मनोरंजन व हारजीत का परिणाम देने वाले इस प्रकार के आधुनिक क्रिकेट ने आम लोगों का इस ंकद्र मन मोह लिया कि क्रिकेट की हर ख़ासो-आम से गहरी 'रिश्तेदारी' स्थापित हो गई। क्रिकेटके इस नए स्वरूप ने न केवल क्रिकेट को ग्लैमरस बना दिया बल्कि इसने क्रिकेट खिलाड़ियों को भी दुनिया के समक्ष एक स्टार के रूप में स्थापित कर दिया। और आगे चलकर इसी ग्लैमर से जुड़ गया विज्ञापन कारोबार,पैसा,सट्टा,मैच ंफिक्सिंग,कारपोरेट जगत वग़ैरह-वग़ैरह....।

            अभी भारत में  आम लोगों पर  क्रिकेट का जुनून पूरी तरह चढ़ा ही था कि भारतीय क्रिेकेट कंट्रोल बोर्ड के साथ-साथ एक और क्रिकेट संगठन सामने आया आई पी एल अर्थात इंडियन प्रीमियर लीग। अपने नए तेवर और नए अंदाा के साथ-साथ आई पी एल ने क्रिकेट प्रेमियों के समक्ष खेल के साथ-साथ कुछ और नई चीों पेश कीं। यानि न तो 6 दिवसीय क्रिकेट, न एक दिवसीय, न तो ंफिंफ्टी-ंफिंफ्टी और न ही टवंटी-टवेंटी। टीम का स्वरूप भी पारंपरिक ंकतई नहीं। अर्थात् एक टीम में कई देशों के प्रमुख खिलाड़ियों को आप खेलते हुए देख सकते हैं। इसमें मैच की समय सीमा मात्र तीन घंटे की निर्धारित की गई है। आई पी एल ने अपने साथ सीधे तौर पर देश के बड़े से बड़े  कारपोरेट हाऊस,ंफिल्म स्टार,उद्योगतियों तथा राजघराने के लोगों को जोड़ने का भी सफल प्रयास किया है। ााहिर है ऐसी नामी-गिरामी हस्तियों के क्रिकेट के साथ सीधे तौर पर जुड़ने से तथा मैच के दौरान क्रिकेट टीम के मालिक या शेयर होल्डर की हैसियत से उनकी स्टेडियम में उपस्थिति भी दर्शकों के लिए आकर्षण बनी रहती है। क्रिकेट व दर्शकों के मध्य मनोरंजन को और अधिक ग्लैमरस करने हेतु चियर्स गर्ल्स का प्रदर्शन भी भारत में आई पी एल में ही पहली बार आामाया गया। कुल मिलाकर हम कह सकते हैं कि आई पी एल ने क्रिकेट,कारपोरेटस, उद्योगपति, ंफिल्म स्टार तथा मनोरंजन के बीच जो नया रिश्ता ंकायम किया है निश्चित रूप से भारतीय जनता ने विशेषकर क्रिकेट प्रेमियों ने इसकी भरपूर सराहना की है।

             जो लोग आई पी एल तथा इसके वजूद के  विषय में थोड़ा बहुत दिलचस्पी रखते हैं वे आई पी एल के सूत्रधार तथा आई पी एल कमिश्र ललित मोदी को भी ारूर जानते होंगे। देश के एक प्राचीन उद्योगपति घराने अर्थात् गूजरमल मोदी यानि मोदी नगर ंकस्बे के संस्थापक के पौत्र ललित मोदी निश्चित रूप से आई पी एल आयोजन के मास्टर मांईंड रहे हैं। परंतु पिछले दिनों जब इसी आई पी एल ने एक केंद्रीय विदेश राय मंत्री शशी थरूर की कुर्सी की 'बलि' ले ली उस समय एक बार फिर भारतीय क्रिकेट प्रेमियों को गहरा झटका लगा तथा जो मीडिया क्रिकेट में  कम दिलचस्पी लेता था उसे भी आई पी एल, ललित मोदी,शशी थरूर तथा इनसे जुड़े विवादित मुद्दों व इनकी गहराई में झांकने का अवसर मिल गया। परिणामस्वरूप देश की संसद  के दोनों सदनों से लेकर आम जनता के मुंह तक बस एक ही विवाद सुनने को मिला और वह था आई पी एल से जुड़ा मोदी -थरूर विवाद। इस विवाद की असली वजह क्या थी यह तो ललित मोदी शशी थरूर  तथा इससे जुड़ी एक और विवादित शख्सियत सुनंदा पुष्कर को पता होगी। परंतु इस विषय में जो कुछ सामने नार रहा है तथा देखा सुना जा रहा है वही अपने आप में कम चिंताजनक शर्मनाक नहीं है।

            इन विवादों में अब तक जो कुछ सामने आया है उनमें भारतीय विदेश राय मंत्री शशी थरूर का एक महिला के साथ अंतरंग संबंध होना, उसके नाम से एक बड़ी रंकम आई पी एल की कोच्चि क्रिकेट टीम में लगी होना  तथा भरपूर दौलत का वारा-न्यारा करने वाले इस टूर्नामेंट का आयकर विभाग की आंखों में धूल झोंकना जैसी बातें मुख्य रूप से शामिल हैं। इंटरनेट के माध्यम से चलने वाली टि्वटर नामक एक सोशल नेटवर्किंग साईट पर यदि मोदी बनाम शशी थरूर 'जंग' न छिड़ी होती तो शायद देश के लोगों को अभी तक यह भी न पता चल पाता कि ललित मोदी कौन हैं, इनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि क्या है तथा यह कैसे चरित्र के स्वामी हैं। इन दोनों के मतभेदों से ही यह भी ााहिर हुआ कि शशी थरूर की ािंदगी में उनकी तीसरी हमसंफर बनने की बाट जोह रही सुनंदा पुष्कर नाम की भी कोई हसीना इस देश में रहती है। इस विवाद ने ही हमें यह जानने का मौंका दिया कि शशी थरूर एक शिक्षित,बुध्दिजीवी, बेबाक तरींके से अपने विशेष अंदाा में अपनी बात रखने वाले नेता मात्र ही नहीं बल्कि एक आशिक़ मिज़ाज,हुस्न परस्त तथा अपनी महिला मित्र के आर्थिक हितों का भी बंखूबी ध्यान रखने वाले एक दिलफेंक नेता भी हैं। शायद उनकी यह आशिक़ी व बेबाकी प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह व यू पी ए प्रमुख सोनिया गांधी को नहीं भाई इसीलिए शशी थरूर को विदेश राय मंत्री के पद से इन्हीं विवादों के चलते इस्तींफा तक देना पड़ा।

            इसी विवाद ने हमें ललित मोदी के बचपन से लेकर अब तक का पूरा परिचय भी करा दिया। देश के विकास में मोदी घराने का निश्चित रूप से बहुत बड़ा योगदान है। अत:ललित मोदी की किसी नकारात्मक कारगाुारी का ािम्मा मोदी परिवार पर मढ़ना तो ंकतई मुनासिब नहीं है। परंतु ललित मोदी की जवानी की कुछ घटनाओं तथा उनकी शादी के मुद्दे को लेकर जो ख़बरें मीडिया में प्रकाशित हो रही हैं वे यंकीनन शर्मसार करने वाली हैं। परंतु इन सब के बावजूद ललित मोदी को आई पी एल का सुत्रधार एवं एक करिश्माई आयोजक मानने से संभवत: कोई इंकार नहीं कर सकता। फिर भी जब मोदी-थरूर विवाद इतना बढ़ गया है कि थरूर की विदेश मंत्री पद से छुट्टी तक हो चुकी हैे। अत: ऐसे में ललित मोदी की अपनी 'कुसी' अर्थात् आई पी एल कमिश्र के उनके पद पर भी आंच पहुंचना लाामी है। ऐसा प्रतीत हो रहा है कि सुनंदा की आशिक़ी की आग में केवल शशी थरूर ही नहीं झुलसे हैं बल्कि इसकी सेक से ललित मोदी भी नहीं बच पाएंगे।

            अब रहा सवाल आयकर विभाग की आंखों में धूल झोंकने का तो इस बड़े ंफर्ाीवाड़े का खुलासा तो आयकर विभाग द्वारा अपनी जांच पूरी करने के बाद ही किया जाएगा। परंतु इस संबंध में एक बात तो कही ही जा सकती है कि जिस खेल को बढ़ावा देने तथा जिस खेल में आयकर,मनोरंजन कर तथा बिक्रीकर जैसे करों की छूट की बात की जा रही है, आई पी एल दरअसल अब उस प्रकार का खेल ही नहीं रहा। जो क्रिकेट आई पी एल के रूप में हाारों करोड़ रुपये का मात्र तीन घंटों में वारा-न्यारा कर देता हो उसे आयकर द्वारा छूट दिए जाने का सवाल ही नहीं पैदा होना चाहिए। भारत सरकार तथा राय की सरकारें जहां अपनी आय के स्त्रोत को बढ़ाने के लिए तरह-तरह के उपायों की तलाश करती रहती हैं वहीं आई पी एल द्वारा आयकर विभाग को आयकर के नाम पर ठेंगा दिखाना या मात्र आयकर बचाने के लिए ंकानूनी दांवपेंच का सहारा लेना बिल्कुल अनुचित है।

            बहरहाल क्रिकेट की आड़ में धन,हुस्न, व्यापार,वर्चस्व तथा सत्ता का जो खेल खेला जा रहा है उसने क्रिकेट को तो शर्मसार किया ही है साथ ही साथ इससे कई संफेदपोश लगने वाले चेहरे भी बेनंकाब हुए हैं। शशी थरूर के बाद अब केंद्रीय मंत्री शरद पवार एवं प्रफुल्ल पटेल तथा इनके परिवार के सदस्यों के नाम भी आई पी एल से लाभ अर्जित करने वाले नेताओं में लिए जाने लगे हैं।  इन चेहरों के बेनंकाब होने के बाद आई पी एल नेटवर्क अब पूरी तरह सांफ सुथरा हो गया है यह भी नहीं कहा जा सकता। परंतु यदि क्रिकेट को मात्र क्रिकेट के रूप में तथा मनोरंजन के माध्यम के रूप में देखना है तो इसे राजनीति व राजनीतिज्ञों से मुक्त कर केवल क्रिकेट के जानकारों के हाथों में सौंपना ही मुनासिब होगा। अन्यथा आश्चर्य में डालने वाले इससे भी गंभीर रहस्योदघाट्न की संभावनाएं भविष्य में भी बनी रह सकती हैं।                तनवीर जांफरी

 

शनिवार, 24 अप्रैल 2010

आलेख- साधू-संतों के 'कारनामों' से शर्मसार हुआ महाकुंभ 2010- निर्मल रानी

आलेख- साधू-संतों के 'कारनामों' से शर्मसार हुआ महाकुंभ 2010

निर्मल रानी

163011, महावीर नगर अम्बाला शहर,हरियाणा। फोन-0171- 2535628   

email:  nirmalrani@gmail.com

 

       हिंदू धर्म की मान्याताओं के अनुसार सहस्त्राब्दियों पूर्व देवताओं तथा असुरों के मध्य हुए सागर मंथन के परिणामस्वरूप अमृत की कुछ बूंदे जिन चार प्रमुख स्थलों पा ज गिरी थीं उनमें प्रयागराज(इलाहाबाद  )हरिद्वार, उौन तथा नासिक स्थान शामिल थे। इसी अवसर की स्मृति में प्रत्येक 12 वर्ष पर उक्त चारों तीर्थ स्थलों पर बारी-बारी से महाकुंभ का आयोजन किया जाता है। जबकि प्रत्येक तीन वर्ष पर क्रमबध्द रूप में इन्हीं स्थानों पर कुंभ मेला भी आयोजित होता है। वैसे तो कुंभ का आयोजन राष्ट्रीय स्तर पर श्रध्दालुओं को आकर्षित करता है। परंतु महाकुंभ एक ऐसा आयोजन है जो केवल भारत वर्ष के हिंदु समाज को ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया के सभी धर्मों और समुदायों के लोगों को तथा अंतर्राष्ट्रीय मीडिया को भी अपनी ओर खींचता है। नि:संदेह महाकुंभ में शिरकत करने वाली साधु-संतों की विशाल भीड़ तथा उनके  दर्शन को आए श्रध्दालुओं का असीमित हुजूम कुंभ के अतिरिक्त पूरी दुनिया में कहीं और देखने को नहीं मिलता। कहा जा सकता है कि धर्म,श्रध्दा,आस्था  तथा विश्वास का इतना बड़ा प्रदर्शन तथा आयोजन विश्व में अन्यत्र कहीं भी नहीं होता। इस वर्ष 2010 में हरिद्वार में आयोजित हुआ महाकुंभ भी श्रध्दा और विश्वास का एक ऐसा ही समागम था जो पिछले दिनों लगभग 4 महीने निरंतर चलने के बाद सम्पन्न हुआ।

            नि:संदेह धर्म नगरी हरिद्वार इस आयोजन के दौरान पूरी तरह धार्मिक आस्था एवं विश्वास में डूबी नार आई। हालांकि श्रध्दालुओं की संख्या का कोई सही अंदााा नहीं हैे फिर भी एक अनुमान के अनुसार मेले के दौरान लगभग 5 करोड़ लोगों ने इस पावन अवसर पर पवित्र गंगा नदी में श्रध्दा की डुबकियां लगाई तथा देश-विदेश से आए अनेक वरिष्ठ एव विशिष्ठ,त्यागी एवं महात्यागी तथा सिध्द एवं महासिध्द साधु-संतों के दर्शन किए। परंतु बड़े दुख की बात यह है कि इस वर्ष के महाकुंभ को अपने आयोजन के दौरान देश के कई कोनाें से 'साधु संतों' के संबंध में जो नकारात्मक समाचार प्राप्त हुए वह यंकीनन न केवल धर्म तथा मानवता को शर्मसार करने वाले थे बल्कि इन समाचारों ने उस पावन महाकुंभ को भी कलंकित व शर्मसार कर दिया जिसका भक्तगण 12 वर्षों तक बेसब्री से इंताार करते हें।

            अभी मेला शुरु भी नहीं हुआ था कि दिल्ली में शिवमूर्ति द्विवेदी उंर्फ संत स्वामी भीमानंद उंर्फ इच्छाधारी संत के नाम से एक ऐसा तथाकथित ढोंगी बाबा बेनंकाब हुआ जिसने लोगों के कान ही खड़े कर दिए। बताया जा रहा है कि अभी तक पुलिस की गिरंफ्त में रहने वाला उक्त इच्छाधारी बाबा देश ही नहीं बल्कि दुनिया का सबसे बडा सेक्स रैके ट संचालित करता था। अपनी इसी गंदी व काली कमाई के  पैसों से वह कहीं मंदिर बनवाता तो कहीं अस्पताल बनाने की कोशिश करता तो कहीं ब्याज पर इन्हीं पैसों को चलाया करता था। बताया जा रहा है कि इसके नेटवर्क में सैकड़ों लड़कियां शामिल थीं जो इसके सेक्स रैकेट में इसकी सहयोगी थीं। कुछ लड़कियों का अपहरण किए जाने का भी इसपर आरोप है। अभी इच्छाधारी संत से जुड़ी  ख़बरें सुंखर्ियों में ही चल रही थीं कि इसी बीच दक्षिण भारत के प्रसिध्द शहर बैंगलोर में अपना एक आश्रम चलाने वाले युवा 'संत' नित्यानंद के चरित्र पर से भी पर्दा हट गया। स्वयं को भगवान का अवतार बताने वाला तथा सिध्द पुरुष बताने वाला यह तथाकथित संत भी सेक्स स्कैंडल में जा फंसा। दक्षिण भारत के कुछ टी वी चैनल्स द्वारा नित्यानंद की वह ंफिल्में प्रसारित कर दी गर्इं जो उसकी रति लीला के दौरान गुप्त रूप से बनाई गई थी। इस दुराचारी तथा कथित संत को गुजरात के 'दूरदर्शी' मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने तो भावी शंकराचार्य तथा शंकराचार्य की परंपरा का संत होने तक का प्रमाण पत्र जारी कर दिया था। परंतु दक्षिण भारत की एक अभिनेत्री तथा नित्यानंद की कुछ अन्य महिला मित्रों के साथ मनाई जा रही रासलीला की वीडियो ने उस ढोंगी संत की वास्तविकता उजागर कर दी। लगभग एक माह से भी अधिक समय तक पुलिस से लुक्का छिप्पी करने के बाद उसे आख़िरकार हिमाचल प्रदेश के सोलन ािले से एक गुप्त ठिकाने पर छिपे हुए गिरंफ्तार कर लिया गया। उधर जो श्रध्दालु इस पाखंडी व दुराचारी संत को आस्था स्वरूप अपना गुरु अथवा आदर्श पुरुष मानते थे उन्हीं लोगों के द्वारा उसके  बैंगलोर स्थिम आश्रम को तहस-नहस कर दिया गया। गोया महाकुंभ पर लगने वाले काले धब्बे का एक और भागीदार बना तथाकथित व्याभिचारी संत नित्यानंद।

            इसी महाकुंभ के दौरान एक और दिल दहला देने वाली घटना प्रसिध्द 'संत' कृपालू जी महाराज के प्रतापगढ़ स्थित आश्रम में घटित हुई। कृपालू जी महाराज की धर्मपत्नी की बरसी के अवसर पर एक विशाल भंडारे का आयोजन किया गया। बताया जाता है कि इस भंडारे हेतु यह मनादी की गई थी कि इस अवसर पर भोजन के अतिरिक्त बर्तन तथा पैसा भी वितरित किया जाएगा। ंगरीब तबक़े के लोग लालचवश बड़ी संख्या में उनके आश्रम में जा पहुंचे। अपेक्षा से कहीं अधिक आई भीड़ को नियंत्रित करने हेतु आश्रम कर्मियों के पास कोई उपयुक्त व्यवस्था नहीं थी। परिणामस्वरूप वहां भगदड़ मच गई। इसी भगदड़ में 63 लोग अपनी जानों से हाथ धो बैठे जबकि लगभग 250 लोग घायल हो गए। इस घटना के बाद कृपालू जी पर भी उंगलियां उठनी शुरु हुई। दुर्भाग्यवश चूंकि यह हादसा भी महाकुंभ मेले के दौरान ही हुआ इसलिए उसकी काली छाया ने भी निश्चित रूप से महाकुंभ को दांगदार किया। प्रत्येक कुंभ एवं महाकुंभ जैसे अवसरों पर अपने प्रवचनों व सद्वचनों से भक्तजनों को सराबोर करने वाले संत आसाराम बापू भी कांफी लंबे समय से संदेह के घेरे में चल रहे हैं। ामीनों पर अवैध ंकबा,आश्रम में काला जादू करना तथा उन्हीं के आश्रम में रहने वाले कई बच्चों की संदिग्ध अवस्था में होने वाली मृत्यु तथा अब उन्हीं के आश्रम से मानव शरीर के अस्थिपिंजर मिलने के समाचार ने बापू आसाराम जैसी सम्मानित समझी जाने वाली 'संत' रूपी एक महान हस्ती को भी संदिग्ध कर दिया है। इस महाकुंभ के दौरान बापू आसाराम को भी भक्तजनों ने एक शुध्द एवं सिध्द संत के बजाए संदेहपूर्ण संत के रूप में देखा व सुना। निश्चित रूप से यह भी महाकुंभ के लिए एक गहरा आघात तथा श्रध्दालुओं के लिए एक बड़ा झटका था। इसके अतिरिक्त भी धर्मनगरी हरिद्वार से इस बार कई ऐसे समाचार मिले जो धार्मिक आस्था के साथ खिलवाड़ तथा भक्तजनों व श्रध्दालुओं के लिए धोखा साबित हो रहे थे। एक समाचार के अनुसार हरिद्वार में एक तथाकथित संत मेले से पूर्व विदेश यात्रा पर गया था। वहां से जब वह वापस लौटा तो अपने साथ एड्स जैसी बीमारी भी साथ लाया। यह बीमारी स्वयं उस तथाकथित संत के चरित्र का चित्रण करती है। इसी प्रकार एक समाचार के अनुसार एक एक वृध्द व बीमार व्यक्ति को मरणोंपरांत तपती धूप में आश्रम से बाहर उठाकर फेंक दिया गया। बताया जाता है कि मृतक व्यक्ति गत् दो दशकों से इसी आश्रम का भक्त तथ सेवादार था। आश्रम के विभिन्न आयोजनों में आश्रम संचालकों की मांग पर समय-समय पर वह हाारों रुपये भी दानस्वरूप देता रहता था। यही भक्त मेले के दौरान इसी आश्रम में चल बसा। मृतक की पत्नी ने आश्रम संचालकों से विनती की कि उसके परिजनों के यहां आने तक शव को आश्रम में ही रहने दें। परंतु उसके निवेदन को ठुकराते हुए वृध्द की लाश आश्रम संचालकों द्वारा सड़क पर फेंक दी गई। इस शव का बाद में आश्रम के समीप रहने वाले स्थानीय लोगों व राहगीरों ने अंतिम संस्कार किया तथा संस्कार से पूर्व उसके लिए तंबू तथा बर्फ़ का समुचित प्रबंध किया। आश्रम संचालकों द्वारा किया गया इस प्रकार का अधर्म भी महाकुंभ जैसे आस्थापूर्ण महापर्व पर कलंक ही माना जाएगा।

            और रही सही कसर 14अपैल को आयोजित हुए चौथे व अंतिम शाही स्नान के दौरान उस समय पूरी हो गई जबकि शाही स्नान के लिए जा रहे साधु-संतों के क़ाफ़िले में शामिल गाड़ी के नीचे आ जाने से तथा इस घटना के बाद मची भगदड़ के परिणामस्वरूप सात श्रध्दालु मारे गए। यह कैसी विडंबना है कि जिन साधु-संतों के दर्शन मात्र करने हेतु देश के कोने-कोने से बच्चे-बड़े, बूढ़े तथा औरतें ऐसे आयोजनों में पूरी भक्ति व श्रध्दा के साथ शिरकत करते हैं तथा तपती धूप व रेत में दिनभर खड़े होकर शाही स्नान में शिरकत करने जा रहे इन 'वैभवशाली' बाबाओं की एक झलक पाने को बेताब रहते हैं, उन्हीं संतों को गाड़ी श्रध्दालुओं की छाती पर चढ़कर आगे बढ़ेगी यह तो किसी भक्त ने सोचा भी नहीं होगा। अंतत: इस घटना के बाद श्रध्दालुओं का रोष फूट पड़ा तथा वहां मेले के अंतिम स्नान के अवसर पर अंफरा-तंफरी फैल गई। परिणामस्वरूप भगदड़ में 7 श्रध्दालू मारे गए।

            हां सुरक्षा तथा किसी प्रकार की आतंकी घटना को रोक पाने में अवश्य मेला प्रशासन सफल रहा। सुरक्षा एवं यातायात के जो उच्चस्तरीय प्रबंध किए गए थे, उनके परिणामस्वरूप मेला कुल मिलाकर प्रशासनिक दृष्टिकोण से शांतिपूर्ण रहा। इसे सुव्यवस्थित रखने का श्रेय निश्चित रूप से उत्तराखंड सरकार लेना चाहेगी। सुरक्षा व्यवस्था के तमाम दावों के बावजूद सैकड़ों श्रध्दालू ऐसे भी मिले जिन्होंने मेले के दौरान कई बार हरिद्वार की यात्रा विभिन्न वाहनों से की परंतु उनकी कहीं भी किसी भी सुरक्षा एजेंसी द्वारा कोई तलाशी नहीं ली गई। बहरहाल प्रशासन की चौकसी व श्रध्दालुओं व भक्तजनों के सहयोग व सहनशक्ति ने तो अवश्य इस महाकुंभ 2010 को सफलता की मंािल तक पहुंचा दिया। परंतु इस मेले से पूर्व तथा मेले के दौरान तथाकथित साधु-संतों के जो कारनामे उजागर हुए, उससे निश्चित रूप से महाकुंभ 2010 बेहद शर्मसार हुआ तथा भक्तजनों की आस्था व श्रध्दा बुरी तरह आहत हुई।                                                       निर्मल रानी