गुरुवार, 15 अप्रैल 2010

दिग्विजय सिंह: उन्‍हें बोलने दीजिये, आप सुन लीजिये, सुन तो लीजिये फिर आपको जो करना है करिये

दिग्विजय सिंह: उन्‍हें बोलने दीजिये, आप सुन लीजिये, सुन तो लीजिये फिर आपको जो करना है करिये

नरेन्‍द्र सिंह तोमर '''आनंद''

पिछली केन्‍द्र सरकार भी कांग्रेस की ही थी , संसद का प्रसंग है लोकसभा में परमाणु करार के ऊपर बहस चल रही थी , विपक्षी हो हल्‍ला मचा रहे थे, कांग्रेस सांसद राहुल गांधी लीलीवती कलावती का सत्‍यनारायण कथा का प्रसंग बांच रहे थे , शोरगुल बढ़ता देख राहुल गांधी बड़ी शालीनता से बोले - देखिये आप मुझे सुन तो लीजिये, सुन तो लीजिये मुझे बोलने दीजिये, आपको ठीक लगे तो या न ठीक लगे तो जैसा भी हो आप वैसा कीजिये पर सुन लीजिये । मैच का सीधा प्रसारण दूरदर्शन पर सार्वजनिक तौर पर चल रहा था और पूरा देश टकटकी लगा कर दूरदर्शन पर संसदिया कुश्‍ती को निहार रहा था ।

आज लोकसभा नहीं लोकराष्‍ट्र के समक्ष केवल बोलने वाला बदला है, बात जस की तस है, माहौल माया भी जस की तस है , सरकार के खिलाफ किसी ने बोलने की हिमाकत की है, सच बोलने की जुर्रत की है और शर्म की बात ये है कि वह नालायक घर का ही आदमी है , कांग्रेस का ही नेता है ... चुल्‍लू भर पानी में डूब मरने वाला सीन है । चिदम्‍बरम कठघरे में... रिंग मास्‍टर है दिग्विजय सिंह ।

दिग्विजय सिंह किसी चीनी के बतासे का नाम नहीं कि गपक कर लीलना इतना आसान हो, दिग्विजय सिंह ने राजनीतिक कारीगरी अपने गुरू अर्जुन सिंह से सीखी है , और अर्जुन सिंह अपने जमाने के जाने माने राजनीतिक चाणक्‍य रहे हैं । दिग्विजय सिंह ने लगातार दो सत्‍ता काल म.प्र. में चलाये हैं पूरे दस साल कूटनीतिक राज्‍य काल पूर्ण किया है । संयोगवश उनका सत्‍ता काल मुझे देखना और भोगना नसीब हुआ है , मुझे उनकी क्षमतायें, कमजोरियां अधिक बेहतर पता हैं । दिग्विजय सिंह कभी क्रोधित हुये हों, आपे से बाहर हुये हो मैंने कभी नहीं सुना, मैंनें उन्‍हें सदा हॅसमुख और प्रसन्‍नचित्‍त देखा सुना है । ऐसी कूटनीतिक सत्‍ता चलाई कि सम्‍पूर्ण म.प्र. जिसमें वर्तमान छत्‍तीसगढ़ भी शामिल है में कोई नक्‍सली पत्‍ता भी नहीं खड़का । दिग्विजय सिंह नक्‍सली सर्जरी और नक्‍सली इलाकात व हालात के बेहतर जानकार हैं । ऐसे में उनके लेख को या उनकी बातों को हवा में तो कतई नहीं उड़ाया जा सकता ।

अभी सुबह फेसबुक पर कांग्रेस के अधिकृत समूह का एक संदेश पढ़ रहा था जिसमें सूचित किया जा रहा था कि दिग्विजय सिंह को सार्वजनिक तौर पर बोलने से कांग्रेस द्वारा मना किया गया है । और वगैरह वगैरह बिजली नहीं थी मोबाइल पर ही हेडलाइन पढ़ कर छोड़ दिया । लेकिन मेरे मन में सवाल आया कि आखिर ऐसा क्‍या हुआ कि कांग्रेस को दिग्विजय सिंह जैसे खुशमिजाज मिलनसार और भले आदमी का टेंटुआ दबाने को मजबूर होना पड़ा । और बोलती बन्‍द रखने के निर्देश देने पड़े , मैंने खोजना शुरू किया तो फेसबुक पर ही भाई आलोक तोमर के डेट लाइन इण्डिया में प्रकाशित एक आलेख पर नजर पड़ी उसे पूरा पढ़ा तो माजरा समझ आया । हालांकि रात को विदेश से मेरी एक महिला मित्र ने कुछ संकेत मुझे भेजे थे लेकिन मैं खुल कर उसे समझ नहीं पाया, उन्‍होंनें आलेख की कटिंग भी पोस्‍ट की लेकिन अधिक ज्‍यादा मेरे पल्‍ले पड़े नहीं पड़ा । फिर भी नक्‍सलवाद की समस्‍या पर और चिदम्‍बरम व केन्‍द्र सरकार पर जो मेरे मन में था मैंने कह दिया । अब यह संयोग की बात है कि दिग्विजय सिंह ने जो भी लिखा होगा उससे मेरी राय बहुत हद तक संयोगवश ही पूरी तरह मेल खा गई ।

मामले का भूत टटोलते टटोलते मेरे दिमाग में कई विचार एक साथ उभरे कि अगर क्‍या दिग्विजय सिंह की जगह राहुल गांधी ने यह सब कहा होता तो क्‍या कांग्रेस राहुल गांधी का टेंटुआ दबाती और बोलती बन्‍द कराती, या फिर जब कांग्रेस अपने अंदर ही वाक् अभिव्‍यक्ति की स्‍वतंत्रता नहीं दे सकती तो देश को कैसे वाक् अभिव्‍यक्ति की स्‍वतंत्रता मिल पायेगी या कायम रह सकेगी, जब कि देश का संविधान इसकी गारण्‍टी देता है लेकिन मेरी समझ में इतना तो आ ही गया कि लेकिन कांग्रेस में इसकी गारण्‍टी नहीं है, आप नेता नहीं चमचे बने रहिये , चमचे बन कर चमचा हिलाते रहिये चमचे से नेता बनने की जुर्रत की तो नेता की बोलती बन्‍द करा दी जायेगी ।

खैर चमचागिरी तो कांग्रेस के गुप्‍त संविधान में न जाने कब से घुसी पड़ी है और काबिल नाकाबिल के बीच योग्‍यता का बहुत तगड़ा मापदण्‍ड बन कर काम कर रही है , लेकिन इस नये रूप में इसका प्रकट होना मुझे पहली बार देखने को मिला है । खैर फर्क क्‍या पड़ता है मुर्दे पे जैसा सौ मन काठ वैसा सवा सौ मन काठ , फिर भी मुर्दा करता ठाठ ।

अब राहुल की तरह फिर दिग्विजय को कहना पड़ेगा क्‍या कि बोल तो लेने दीजिये, पहले आप सुन तो लीजिये.... वे देश के सामने बोले देश की समस्‍या और सरकार की फेलुअरिटी पर बोले ... कांगेस को गर्व होना चाहिये था देश की सबसे बड़ी पंचायत में हमारे नेता बोले... खुल कर बोले जम कर बोले... लोकतंत्र की गौरव मयी परम्‍परा के अनुसार बोले, पार्टी के किसी अन्‍दरूनी मामले पर नहीं बल्कि सार्वजनिक रूप से जवाबदेह देश की सरकार के साधारण कामकाज पर बोले ।

लेकिन अफसोस देश की रेल के लिये रेल एन्जिन बनने का दावा करने वाली कांग्रेस का इंजन इतना घसीटूराम होगा मुझे यह जान सोच कर हैरत है । एक तो कांगेस में चमचागिरी भारी दूजी आपस की मारा मारी तीजी ठाकुरों के खिलाफ अन्‍दरूनी तीर तैयारी । वैसे भी अब राजनीति में राजपूतों को जिस कदर लतिया धकिया कर जलील धमील कर बाहर के रास्‍ते दिखाये जा रहे हैं , उससे इन राजपूत नेताओं को इतना समझ और तमीज तो अब आ ही जाना चाहिये कि हर संकट में राजपूत सम्‍मेलन बुला कर अपनी नींव पुख्‍ता करके समाज के खिलाफ या यूं कहिये कि समाज के लिये नहीं कुछ भी करने पर आखिर अंजाम कितने बुरे होते हैं, चाहे वे ठाकुर अमर सिंह हों, अर्जुन सिंह हो या दिग्विजय सिंह, नटवर सिंह या जसवन्‍त सिंह , सारे शेरों की जो हालात हजामत की गयी है उसके लिये आखिर कौन जिम्‍मेवार है । अब राष्‍ट्रीय जनता दल में ठाकुर रघुवंश प्रसाद सिंह बचे हैं सो वे भी कबहुं कभार लालू जी के खिलाफ बोलने लगते हैं, इन्‍तजार करिये वो कब बाहर आते हैं ।

वैसे भी पहले दर्जे की राजनीति में अब सिंह बचे ही कितने हैं सिंहों के शिकार पर तो सरकारी प्रतिबंध भी है लेकिन शेरों को गुलेलों से ढेर किया जा रहा है, है न मजे की बात ।

अर्जुन सिंह , दिग्विजय सिंह म.प्र. के ऐसे शेर हैं जो शिकार हो ही नहीं सकते ... विश्‍वास नहीं तो शिकार करके देख लीजिये आप उन्‍हें जलील कर सकते हैं .. अपने घर में किसी को भी जलील किया जा सकता है , आप उन्‍हें पद से उतार कर नीचे या पीछे धकेल सकते हैं ... राजनीतिक हत्‍या नहीं कर सकते , आप करते रहिये वे कभी नहीं मरेंगे । अर्लुन सिंह के बेटे अजय सिंह राहुल की लोकप्रियता का अंदाजा शायद अभी आपको नहीं होगा लेकिन मैं इशारे में बता देता हूं , अगर म.प्र. के विधान सभा चुनाव में कांग्रेस मुख्‍यमंत्री के रूप में अजय सिंह राहुल का नाम घोषित कर देती तो आज म.प्र. में कांग्रेस की सरकार होती सौ नहीं हजार फीसदी । क्‍या समझे, नहीं समझे, समझ जाओगे .... जय हिन्‍द          

 

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