बुधवार, 27 फ़रवरी 2008

करह धाम : जहां बहती है भक्ति की अविरल धारा

करह धाम : जहां बहती है भक्ति की अविरल धारा

 

                                  - ओ.पी. श्रीवास्तव,

    सहायक संचालक, जनसंपर्क मुरैना

 

मुरैना /  मुरैना जिला मुख्यालय से पन्द्रह किलोमीटर दूर स्थित सिध्द महात्माओं की तपोस्थली ''करह'' में पहले जहां हिंसक पशुओं का गर्जन लोगों को भयभीत किये रहता था, अब वहां भक्ति की अविरल धारा बह रही है और श्रध्दालुजनों का आना-जाना भी निर्भयता के साथ होने लगा है । पिछले पचास वर्ष से यहां लगातार राम नाम संकीर्तन चल रहा है । यह इसी का पुण्य प्रताप है कि कल का घनघोर जंगल आज प्रसिध्द '' धाम'' बन गया है ।

       कहा जाता है कि ''करह'' तीन सिध्दों के तप का जीवंत प्रतीक है । धनेले के महात्मा चेतनदास के एक शिष्य रामदास थे, जिन्हें ये रमुआ कह कर पुकारते थे । वे अपने रोजमर्रा के काम के साथ गुप्त साधना भी करते थे । एक बार उन्होंने आग को हाथों से उठा लिया । महात्मा चेतनदास की आज्ञा से इन्होंने करह की झाड़ी में आकर तपस्या करना शुरू कर दिया । मान्यता है कि यहां पहले से ही एक सिध्द बाबा रहा करते थे, जो '' तप '' के लिए आने वाले संत-महात्माओं की कठिन परीक्षायें लिया करते थे । '' रमुआ ''  की भी इन सिध्द बाबा ने परीक्षा ली और इस परीक्षा में उत्तीर्ण होने के बाद रमुआ ''सिध्द'' रामदास कहलाने लगे । उन्होंने यहां बरगद का पेड़ लगाया ,जो आज भी इनकी स्मृति को तरोताजा बनाये हुए है । रामजानकी जी के मंदिर की भी इन्होंने स्थापना कराई, जिसकी प्रतिमा बाद में इनके शिष्य जानकीदास धनेला लेकर चले गये , जो आज भी वहां स्थापित होकर नित्य पूजित हैं । यह भी माना जाता है कि सिध्द रामदास का '' कढाह'' सदैव अग्नि पर चढ़ा रहता था और हर आने-जाने वाले श्रृध्दालु को दूध का प्रसाद मिलता था । यही कढ़ाह बाद में कड़ाह हुआ और अन्तराल में '' करह '' नाम से विख्यात हुआ ।

       '' करह '' को '' धाम '' बनाने में पटिया वाले बाबा रामरतन दास महाराज अग्रणी हैं । सांक नदी के किनारे स्थित जरारा ग्राम के गुर्जर परिवार में जन्में रतनसिंह का प्रारंभ से ही धर्म के प्रति झुकाव था । बचपन में ही पिता चतुर्भुज सिंह का निधन हो जाने से इनका पालन पोषण मां विजय कुंवरि ने किया । रतन सिंह का मन घर द्वार में नहीं था । नूराबाद के सीताराम मंदिर में रहने वाले तपसी बाबा के सम्पर्क में आने पर इनका ''रामानुराग '' बढ़ गया और उन्हीं के आदेश पर ये करह में रामजानकी मंदिर के सामने पड़ी पटिया पर आकर तपस्या करने लगे । सिध्द बाबा कभी सर्प और कभी सिंह के रूप में आकर इन के साथ लीला किया करते थे । वर्षों पटिया पर तप करने के कारण ये ''पटिया वाले बाबा'' के नाम से प्रसिध्द हुए । इस क्षेत्र के लोग किसी भी काम की शुरूआत पटिया वाले बाबा के जयकारे से ही करते हैं । इनके एक शिष्य बाबा लखनदास थे, जो परमहंस वृति के थे और बाद में करह से टेकरी चले गये ।

       पटिया वाले महाराज के दूसरे शिष्य मोहन सिंह थे, जो रामदास महाराज के नाम से करह के तीसरे सिध्द के रूप में प्रसिध्द हुए । मोहन सिंह का जन्म ग्वालियर जिले के छीमका में हुआ । इनके पिता का नाम मुरली सिंह था और माता लक्ष्मी बाई थी। बचपन में मां का निधन हो जाने से पिता को इनके पालन पोषण में परेशानी आने लगी । पुलिस की नौकरी पर जाते समय वे इन्हें आंतरी के बाबा धरमदास जी के पास छोड़कर चले जाते थे।

बचपन में ही इन्हें हनुमान चालीसा और सुंदर कांड कंठस्थ था । बाबा धरमदास के सानिध्य से इनका रामानुराग बढ़ा । मोहनसिंह ने नूराबाद और मुरैना की कचहरी में नौकरी भी की, लेकिन वे नौकरी से मिलने वाला वेतन दीन दुखियों और साधुओं की सेवा में लगा देते थे । तपसी बाबा का भी इन पर विशेष स्नेह रहा । कहते हैं कि हरिध्दार के कुम्भ में इन्हें नारद जी ने दर्शन दिए और उनकी प्रेरणा से सन्यासी हो गये ।  ईश्वरीय प्रेरणा से करह आकर बाबा रामरतन दास जी का शिष्यत्व गृहण कर लिया और नाम मिला '' रामदास'' । बाबा रामरतन दास की गुरू आज्ञा पर बाबा रामदास ने बड़ोखर हनुमान जी की तीन वर्ष कठोर साधना की और हनुमान जी का साक्षात्कार किया । बड़े महाराज के आदेश पर इन्होंने श्री विजय राघव सरकार की स्थापना कराई और पहली बार करह धाम पर सम्बत 2001 में विशाल यज्ञ कराया , जिसमें सिध्द संत श्री हरिबाबा, उडिया बाबा, आदि विभूतियों सहित एक हजार विद्वान संत महात्माओं ने भाग लिया । इस यज्ञ पर उस समय ढाई लाख रूपये का खर्च आया और यहीं से '' रामायणी बाबा श्री रामदास जी करहवाले प्रसिध्द हो गये । यह भी मान्यता है कि यज्ञ में घी कम पड़ने पर बाबा के आदेश पर परिसर में स्थित सरयू कुंड के जल को कढाई में डाल कर मालपूये सेके गये और बाद में इस जल की पूर्ति के एवज में उतना ही घी सरयू कुंड में डाला गया । ऐसा भी माना जाता है कि इसके पानी में कुत्ता काटे के इलाज की तासीर है । पटिया बाले बाबा रामरतन दास महाराज की चरण पादुकाओं का नियमित पूजन यहां होता है और श्रृध्दालु जीवन की सफलता के लिए पादुका का चरणामृत लेते हैं तथा मनोकामना की पूर्ति के लिए धाम परिसर की परिक्रमा करते हैं । बाबा रामदास द्वारा प्रारंभ कराया गया रामकीर्तन एव रामकथा का अविरल क्रम 50 वर्षों से लगातार करह धाम पर चल रहा है । इन्होंने करह धाम पर मां भगवती के भव्य भवन के अलावा, तपो भूमि मंदिर, यज्ञ शाला, संत निवास, संकीर्तन भवन, गौशाला आदि का निर्माण कराया । इसके अलावा हनुमान गढ़ी का भव्य मंदिर एवं टेकरी पर दिव्यधाम श्री एकादश मुंखी हनुमान जी और मारकण्डेश्वर महादेव की प्राण प्रतिष्ठा कराई और भव्य मंदिर का निर्माणकराया । धनेला ग्राम के प्राचीन मंदिर का जीर्णोद्वार एवं मीरा नगर मुरार ग्वालियर में रामजानकी औरदेवी मां की प्राणप्रतिष्ठा भी कराई ।

       '' करह धाम ' की गौशाला में लगभग पांचसौ गायों की सेवा का क्रम आज भी जारी है । साथ ही अशक्त रोगियों की चिकित्साहेतु सुविधा युक्त अस्पताल है । 26 मार्च 2004 को परम पूज्य महाराज श्री रामदास जी के साकेतबास उपरांत श्री विजय राघव सरकार ट्रस्ट की अध्यक्ष अनन्त श्री विभूति किशनदासी बाई महाराज है और बाबा रामचरण दास (फलाहारी बाबा ) मठाधीश हैं ।

       प्रतिवर्ष माघ महीना की पूर्णिमा से फाल्गुन माह की नवमीं तक यहां ''सियपिय मिलन मेला'' लगता है। इस वर्ष  21 फरवरी से प्रारंभ हुआ यह मेला 29 फरवरी तक चलेगा । जिला प्रशासन द्वारा मेला में आने-जाने वाले श्रृध्दालुओं की सुरक्षा और अन्य आवश्यक सुविधाओं की पर्याप्त व्यवस्था की गई है। मेला में 101ब्राह्मण भगवत कथा कर रहे हैं। प्रांगण के वाहर एक विशाल मंच से प्रकांड विद्वानों के प्रवचन चल रहे हैं और हजारों लोग प्रतिदिन भंडारा पा रहे हैं ।

बजट कैसे तैयार होता है?

बजट कैसे तैयार होता है?

अवनीश कुमार मिश्र  **दैनिक भास्कर के राष्ट्रीय संस्करण में कार्यकारी सम्पादक।

       बजट प्रक्रिया एक व्यापक प्रयास है। इस प्रयास के विभिन्न चरण होते हैं, और प्रत्येक चरण की शुरूआत बजट निर्माण प्रक्रिया के अलग अलग चरण में होती है। इस आलेख में हम भारत सरकार की बजट प्रक्रिया के सूक्ष्म बिंदुओं पर विचार करेंगे।

बजट के दो पहलु

       पारिवारिक बजट की ही तरह आम बजट के भी दो भाग होते हैं : राजस्व यानी आय और व्यय। विभिन्न केन्द्रीय करों से राजस्व का मूल्यांकन राजस्व विभाग का मुख्य कार्य होता है, जबकि अगले वर्ष के लिए विभिन्न व्यय शीर्षों के अंतर्गत खर्च का अनुमान लगाना व्यय विभाग का काम है। व्यय विभाग सार्वजनिक क्षेत्र के प्रतिष्ठानों के संसाधनों का मूल्यांकन भी करता है। बजट प्रभाग आर्थिक कार्य विभाग का एक हिस्सा है। समग्र बजट निर्माण प्रक्रिया में समन्वय वित्त सचिव द्वारा किया जाता है। यह सभी वित्त मंत्री को जानकारी देते हैं और समय समय पर उनसे निर्देश प्राप्त करते हें। मुख्य आर्थिक सलाहकार इस प्रक्रिया में संबध्द विभागीय अधिकारियों की सहायता करता है।

क) संसाधन पक्ष :

कर प्राप्तियों के अलावा बजट में शामिल किए जाने वाले राजस्व के अन्य स्रोतों में सार्वजनिक क्षेत्र के प्रतिष्ठानों द्वारा सरकार की हिस्सेदारी के लिए दिए जाने वाले लाभांश शामिल हैं। इनमें अंतरिम लाभांश और सरकारी शेयरों के विनिवेश से प्राप्त पूंजी भी शामिल होती है। इसके अलावा विश्व बैंक, एशियाई विकास बैंक आदि अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियों से लिए गए ऋण भी विभिन्न मंत्रालयों के अंतर्गत विभिन्न कार्यक्रमों के सकल बजटीय संसाधनों के मूल्यांकन में शामिल किए जाते हें। प्रचालनगत अधिशेष और उधार ली गयी राशि सहित सार्वजनिक क्षेत्र के प्रतिष्ठानों के संसाधन भी सकल बजटीय संसाधनों के महत्तवपूर्ण घटक होते हैं। वे अपनी योजनाओं के लिए वित्त व्यवस्था करते हैं। सार्वजनिक क्षेत्र के प्रतिष्ठानों की योजनाओं के वित्त पोषण के बारे में सामान्य नीति यह रही है कि वे स्वयं के संसाधनों से धन जुटाते हैं किंतु योजना आयोग की सिफारिशों के आधार पर कुछ नीतिगत और आर्थिक दृष्टि से महत्तवपूर्ण क्षेत्रों के लिए बजटीय सहायता दी जाती है। बजटीय संसाधनों का यह आंतरिक और बाहरी मूल्यांकन व्यय विभाग द्वारा किया जाता है। यह वास्तव में कुल योजना संसाधनों का एक हिस्सा होता है और बजटीय दस्तावेज में भी इसे व्यक्त किया जाता है।

सार्वजनिक क्षेत्र के प्रतिष्ठानों की आय का अनुमान लगाने के लिए सरकार इन प्रतिष्ठानों के मुख्य प्रबंधन निदेशकों या वित्तत निदेशकों को नॉर्थ ब्लॉक में आमंत्रित करती है। वित्त मंत्रालय का एक संयुक्त सचिव स्तर का अधिकारी प्रत्येक प्रतिष्ठान के अध्यक्ष के साथ बैठक करता है और राजस्व का अनुमान लगाता है। वह इस जानकारी को राजस्व सचिव के पास भेजता है जो इसे वित्त सचिव को देते हैं। यह प्रक्रिया आम तौर पर अगस्त-सितम्बर में शुरू हो जाती है। यह राजस्व योजना खर्च का हिस्सा होता है।

इसके बाद सरकार के मंत्रालयों की भूमिका शुरू होती है। प्रत्येक मंत्रालय का एक वित्तीय सलाहकार होता है। वित्तीय सलाहकार को वित्त मंत्रालय द्वारा बुलाया जाता है और उसके मंत्रालय को आबंटित धन राशि के व्यय के बारे में पूछा जाता है। आम तौर पर मंत्रालय आबंटित धन को पूरा खर्च कर पाने में सक्षम नहीं होते, लेकिन कुछ मंत्रालय ऐसे भी होते हैं जो आबंटित धन से अधिक धन खर्च करते हैं। विभिन्न मंत्रालयों से मिली जानकारी के अनुसार संशोधित अनुमान तैयार किए जाते हैं। संशोधित अनुमान का अर्थ है मंत्रालय को वास्तव में कितने धन की आवश्यकता है ? व्यय प्रबंधन के हिस्से के रूप में सरकार ने विभिन्न मंत्रालयों को निर्देश जारी किए हैं कि वे तिमाही खर्च का ब्यौरा तैयार करें और अंतिम तिमाही में सारा खर्च एक साथ करने की प्रवृत्तित से बचें। संशोधित अनुमान स्तर पर अतिरिक्त धन भी प्रदान किया जाता है। अगले वर्ष के लिए अपेक्षित गैर योजना खर्च के अनुमान अत्यंत महत्तवपूर्ण होते हैं। बाद में वित्त मंत्रालय द्वारा निर्देशित सकल बजटीय सहायता के आधार पर योजना आयोग द्वारा योजना आबंटन किए जाते हैं। यह प्रक्रिया अक्टूबर-दिसम्बर में प्रारंभ होती है।

वित्त मंत्रालय के राजस्व विभाग के अंतर्गत दो बोर्ड हैं- केन्द्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) और केन्द्रीय उत्पाद एवं सीमा शुल्क बोर्ड (सीबीईसी)। जनवरी के मध्य तक ये बोर्ड 31 दिसम्बर तक की गयी कर वसूली के आंकड़े उपलब्ध कराते हैं। शेष तीन वर्षों के लिए कर वसूली का अनुमान पिछली प्रवृत्तिायों के आधार पर लगाया जाता है। बोर्ड अगले वित्ता वर्ष में प्राप्त होने वाले कर के अनुमान भी लगाता है। बजट निर्माण की निष्ठा इन अनुमानों, विशेषकर एफआरबी अधिनियम द्वारा लागू किए गए राजकोषीय अनुशासन के वास्तविक स्वरूप पर निर्भर करती है। पिछले दो तीन वर्षों के दौरान यह अच्छी बात रही है कि इन अनुमानों में बहुत अधिक अंतराल नहीं रहा है।

ख) व्यय पक्ष

इन सब गतिविधियों के समानांतर योजना आयोग स्थिति का जायजा लेने की कवायद भी करता है। आयोग सितम्बर-अक्टूबर के महीने में अलग अलग मंत्रालयों के साथ बैठकें करता है और मंत्रालयों की जारी परियोजनाओं की समीक्षा करता है तथा उनके लिए आवंटन पर विचार करता है। आयोग कुछ कार्यक्रमों को बंद करने अथवा एक जैसे दो कार्यक्रमों का विलय करने जैसे निर्णय कर सकता है। इस प्रकार योजना बजट का अनुमान तैयार किया जाता है। योजना आयोग वित्ता मंत्रालय को यह जानकारी देता है कि उसे अगले वित वर्ष के लिए योजना कार्यक्रमों को संचालित करने के लिए कितने दिन की आवश्यकता है वित्त मंत्री और योजना आयोग के उपाध्यक्ष मांग पर विस्तार से विचार करते हैं। इस प्रकार योजना खर्च का ब्यौरा तैयार किया जाता है। विभिन्न मंत्रालयों से भी उनकी धन की जरूरतों के बारे में पूछा जाता है। यह जानकारी बजट अनुमान का हिस्सा होती है।

इस प्रक्रिया के साथ-साथ आर्थिक कार्य विभाग व्यापार संगठनों, उद्योग मंडलों, अर्थशास्त्रियों और अन्य संगठनों के प्रतिनिधियों के साथ बैठक भी आयोजित करता है। बजट निर्माण की प्रक्रिया में विभिन्न सम्बध्द पक्षों के सुझावों को ध्यान में रखा जाता है।

वित्ता मंत्री अपने सहयोगियों के साथ मिलकर निर्णय करते हैं।

उपरोक्त गतिविधियों के पूरी होने के बाद वित्ता मंत्री यह अनुमान लगाने की स्थिति में होते हैं कि उन्हें करों से कितना प्राप्त होगा और आने वाले वित्ता वर्ष में कितना धन खर्च करने की आवश्यकता होगी। वित्ता मंत्री कुछ और भी दबाव होते हैं। उन्हें एफआरबीएम अधिनियम का पालन करने और राजाकोषीय घाटे में कमी लाने की आवश्यकता पड़ती है। इन सब बातों को ध्यान में रखकर वित्तत मंत्री अपने सहयोगियों के साथ मिलकर यह निर्णय करते हैं कि अधिक कर वसूली के लिए कुछ नए कर लगाए जायें या नहीं और कर का आधार कैसे व्यापक बनाया जाये ताकि अधिक राजस्व प्राप्त हो सके। ऐसा करते समय विभिन्न हित समूह के सुझावों को भी ध्यान में रखा जाता है।

सकल घरेलू उत्पाद का मूल्यांकन

राजस्व विभाग और आर्थिक कार्य विभाग मिलकर अगले वर्ष के लिए जीडीपी का मूल्यांकन करते हैं। आम तौर पर सकल घरेलू उत्पाद में न्यूनतम वृध्दि का अनुमान व्यक्त किया जाता है। सकल घरेलू उत्पाद में वास्तविक वृध्दि का अर्थ है मुद्रास्फीति के आंकड़ों में से सकल घरेलू उत्पाद की न्यूनतम वृध्दि दर को घटाना ।

वित्ता मंत्री का बजट भाषण

इसके बाद बारी आती है बजट भाषण की। इसे अंतिम क्षण में तैयार किया जाता है। 15 फरवरी के आसपास कुछ बजटीय दस्तावेज लगभग पूरे हो चुके होते हैं। इनका प्रकाशन स्वयं नॉर्थ ब्लॉक में स्थित एक प्रेस में किया जाता है। सुरक्षा एजेंसियां प्रेस को घेरे रहती है और प्रवेश प्रतिबंधित होता है।

संसद में वित्ता मंत्री के बजट भाषण का दिन

फरवरी की आखिरी तारीख को वित्ता मंत्री लोकसभा में बजट भाषण देते हैं। इसके बाद बजट दस्तावेज उपलब्ध हो जाते हैं। इन्हें वेबसाइट www.finmin.nic.in पर भी प्रदर्शित किया जाता है। वर्ष 2008 चूंकि लिप वर्ष है इसलिए संसद में बजट 29 फरवरी को प्रस्तुत किया जायेगा।

।आर्थिक सर्वेक्षण और केन्द्रीय बजट प्रस्तुतिकरण की प्रक्रिया और ये दस्तावेज किस प्रकार आम लोगों तक पहुंचते हैं, इस बारे में पत्र सूचना कार्यालय द्वारा 15 फरवरी 2008 को एक कार्यशाला आयोजित की गयी। तत्सम्बन्धी प्रस्तुतिकरण पीआईबी वेबसाइट www.pib.nic पर उपलब्ध है।

**दैनिक भास्कर के राष्ट्रीय संस्करण में कार्यकारी सम्पादक।

**वरिष्ठ पत्रकार

 

केन्द्रीय बजट-कर मामले

केन्द्रीय बजट-कर मामले

क्या वित्त मंत्री वर्ष 2008-09 के बजट में करों में कटौती करेंगे, यह सवाल आज सभी के मस्तिष्क में घूम रहा है, चाहे वे कम्पनी क्षेत्र में हों, व्यावसायिक हों अथवा 'आम आदमी'। बजट से पहले के माहौल में अटकलें लगाई जा रही है कि बजट लुभावना होगा या मौजूदा वैश्विक आर्थिक परिदृश्य को देखते हुए संतुलित रखा जायेगा। किसी भी सरकार के लिए राजस्व का मुख्य स्रोत कराधान होता है, जिसे छेड़ना किसी भी वित्त मंत्री के लिए कठिन कार्य है। प्रत्यक्ष कर वसूली में प्रफुल्लता की स्थिति है लेकिन परोक्ष कर का परिदृश्य उतना अनुकूल दिखाई नहीं देता। कराधान योजनाओं को अंतिम रूप देने में सीमा शुल्क राजस्व में बढ़ोतरी की दर में मंदी और उत्पाद राजस्व में कमी स्वाभाविक रूप से वित्त मंत्री के समक्ष मुख्य समस्याएं हैं। इस तरह उम्मीद की जा रही है कि वित्त मंत्री प्रत्यक्ष और सेवा करों के जरिये आय बढ़ाने पर अधिक ध्यान केन्द्रित करेंगे।

       किंतु, यह भी विचारणीय होगा कि वित्त मंत्री अर्थव्यवस्था में तीव्र विकास की पृष्ठभूमि में बजट पेश करने जा रहे हैं, तो क्या यह सुकून रूपी घटक बजट में कोई भूमिका अदा नहीं करेगा। पिछले वर्ष सकल घरेलू उत्पाद में 9.4 प्रतिशत की वृध्दि दर दर्ज हुई है, जिसे देखते हुए 2007-2008 के दौरान भी वृध्दि दर 9 प्रतिशत से उपर रहने की संभावना है। वार्षिक मुद्रास्फीति की दर, जो थोक मूल्य सूचकांक पर आंकी जाती है, उसके 4 से 5 प्रतिशत के बीच रहने की संभावना है। दूसरी ओर, भारत में अनाज का उत्पादन चालू वित्त वर्ष के दौरान 20 करोड़ टन होने का अनुमान है। इससे खाद्य सुरक्षा को लेकर सुकून घटक और बढ़ने की उम्मीद है। भारत वैश्विक स्थितियों खासकर कच्चे तेल की आसमान छूती कीमतों से अलग-थलग नहीं रह सकता।

       राजकोषीय स्थिति में भी सुधार हुआ है। सकल घरेलू उत्पाद से सम्बध्द कुल राजकोषीय घाटे में 2006-07 में पर्याप्त गिरावट आयी है और 2007-08 में भी इसमें और कमी आने की संभावना है। चालू वित्त वर्ष के दौरान इसके सकल घरेलू उत्पाद के 2.6 प्रतिशत पर पहुंच जाने की उम्मीद है, जो अनुमानित 3.3 प्रतिशत की तुलना में 70 आधार अंक कम होगा। राजस्व घाटे में भी सुधार हुआ है और यह सकल घरेलू उत्पाद के करीब 0.9 प्रतिशत के आसपास रहने की उम्मीद है, जो 2007-08 के बजट में लक्षित 1.5 प्रतिशत की तुलना में 60 आधार अंक कम होगा। सरकार को उम्मीद है कि वह 2008-09 के अंत तक राजस्व घाटे को शून्य पर पहुंचाने का लक्ष्य हासिल कर लेगी। वर्ष 2008-09 राजकोषीय उत्तरदायित्व एवं बजट प्रबंधन अधिनियम 2003 का अंतिम वर्ष होगा।

       किंतु सुधार का सबसे महत्वपूर्ण और उल्लेखनीय स्रोत केन्द्रीय करों की वसूली के रूप में सामने आया है। मुख्य रूप से व्यक्तिगत और कम्पनी करों की वसूली में खासा इजाफा हुआ है। प्रत्यक्ष कर राजस्व 3,25,000 करोड़ रुपये रहने का अनुमान है, जो बजट अनुमानों की तुलना में 68,000 हजार करोड़ रुपये अधिक होगा। परोक्ष कर राजस्व भी बजट अनुमानों की तुलना में करीब 4,000 करोड़ रुपये अधिक रहने का अनुमान है। अर्थशास्त्रियों का अनुमान है कि राजस्व वसूली में अभूतपूर्व बढ़ोतरी का श्रेय कर की दरों में उदारता, करदाताओं के व्यवहार में परिवर्तन, कर कानून आसान होने से उनका बेहतर अनुपालन किया जाना और आय कर विभाग के प्रौद्योगिकी संचालित होने को जाता है। प्रौद्योगिकी कर दाताओं के अधिक अनुकूल सिद्व हुई है।

इस अनुकूल स्थिति को कृषि की हालत क्षति पहुंचा सकती है, क्योंकि इस क्षेत्र में विकास की दर बहुत नीचे चली गयी है। रुपये का बढ़ता मूल्य भी चिंता का एक और विषय है। इससे निर्यातकों को नुकसान पहुंचा है। इसका दुस्प्रभाव विनिर्माण क्षेत्र सहित कई क्षेत्रों पर पड़ा है। कर राजस्व में विनिर्माण क्षेत्र का भारी योगदान होता है। इसी तरह आई टी सेवाओं पर भी इसका असर पड़ेगा। विकास के इस परिदृश्य में रूकावट की आशंका वाले अन्य क्षेत्रों में ढांचागत अड़चनें, परिसम्पत्तिायों के ऊंचे मूल्य, विशेषकर अंतर्राष्ट्रीय बाजार में आवास की आसमान छूती कीमतें, बढ़ता व्यापार घाटा और वैश्विक वित्ताीय बाजार में उठा पटक शामिल है।

इस पृष्ठभूमि के साथ वित्ता मंत्री पर करों के संदर्भ में अधिक लोक लुभावन बजट पेश करने का दबाव रहेगा। उद्योग और अर्थशास्त्रियों ने सुझाव दिया है कि कर का आधार व्यापक बनाया जाये और कर वंचन पर नियंत्रण करके कर राजस्व में वृध्दि की जाये। उन्होंने प्रत्यक्ष कर कानूनों के प्रावधानों को युक्तिसंगत बनाने की भी मांग की है। सब कुछ ठीक ठाक चलते किसी वित्ता मंत्री से करों में कटौती की उम्मीद नहीं की जा सकती, लेकिन फिर भी अर्थशास्त्रियों को लगता है कि करों की दरों में जहां कहीं उचित हो, कमी की जानी चाहिए लेकिन ऐसा करते समय कड़ा राजकोषीय प्रबंधन बनाए रखा जाना चाहिए।

व्यक्तिगत आय कर

       कर दाताओं के आधार में बढ़ोतरी की तत्काल आवश्यकता को स्वीकार करते हुए अर्थशास्त्रियों का सुझाव है कि कुछ व्यक्तियों से कर की अधिक राशि वसूल करने के बजाय अधिक व्यक्तियों से थोड़ी -थोड़ी राशि वसूल की जानी चाहिए। अर्थशास्त्रियों ने वित्त मंत्री को यह सुझाव भी दिया है कि वे व्यक्तिगत आयकर को न छेड़ें। इसके स्थान पर उन्होंने सुझाव दिया है कि राजस्व की बढ़ी हुई राशि का इस्तेमाल बुनियादी ढांचे पर खर्च में बढ़ोतरी के लिए किया जाये और प्रत्यक्ष करों को युक्तिसंगत बनाया जाये।

आगामी बजट से आकांक्षाओं के बीच यह उम्मीद भी की जा रही है कि कर दाताओं की औसत वार्षिक बचत में बढ़ोतरी को देखते हुए कर छूट के लिए बचत की अधिकतम सीमा 20 प्रतिशत बढ़ाकर एक लाख 20 हजार रुपये की जानी चाहिए। 2008-09 के बजट में व्यक्तिगत कर पर छूट की सीमा 1.1 लाख से बढ़ाकर 1.25 लाख किए जाने की भी उम्मीद है। किंतु डेढ़ लाख रुपये तक की आय पर आय कर की दर 10 प्रतिशत जारी रखे जाने की उम्मीद है।

सरकार की इस घोषणा को देखते हुए कि वह कर अनुपालन के मुद्दों पर अधिक जोर देगी, बजट में व्यक्तिगत आय कर की अधिकतम दर में बढ़ोतरी होने की संभावना नहीं है। इससे स्वैच्छिक कर अनुपालन को भी प्रोत्साहन मिलेगा। व्यक्तिगत आय कर की अधिकतम दर 30 प्रतिशत के आसपास रहने की संभावना है किंतु कर दाताओं का आधार व्यापक नहीं है क्योंकि आबादी का बड़ा हिस्सा गरीबी रेखा से नीचे गुजर बसर करता है।

       किंतु, पिछले कुछ वर्षों के दौरान आर्थिक विकास में निरंतर बढ़ोतरी के कारण सरकार करीब आठ लाख नए कर दाताओं को कर के दायरे में लाने में सफल रही है। यह समझा जा रहा है कि वार्षिक आय विवरणी और स्थायी लेखा संख्या (पैन) के दायरे में अधिक से अधिक लेन-देन शामिल किए जा सकेंगे। अन्य उपायों में कम्प्यूटर की सहायता से आयकर विवरणी की नयी जांच-प्रणाली की स्थापना शामिल है। कर का दायरा बढ़ाने की दिशाम में एक और महत्वपूर्ण उपाय है। कम्पनियों के मामले में स्रोत पर कर कटौती लागू करना। सरकार सभी कर गणनाओं के लिए पैन (स्थायी लेखा संख्या) पहले ही अनिवार्य बना चुकी है। अब वह एक नया टैक्स कोड विकसित करने के प्रयास कर रही है ताकि समग्र संरचना को सरल बनाया जा सके। फ्रिन्ज बेनिफिट (यानी छिटपुट लाभ) टैक्स को भी सुदृढ़ बनाने की आवश्यकता है।

कृषि

       अर्थव्यवस्था में कृषि क्षेत्र को दुर्बल बिन्दुओं में से एक समझा जा रहा है। इसे देखते हुए यह उममीद है कि 2008-09 के बजट में कृषि को विशेष ध्यान दिए जाने वाले क्षेत्रों में शामिल किया जायेगा। निजी निवेशकों द्वारा निवेश आकर्षिैत करने के अभियान में वित्त मंत्री पर यह दबाव डाला गया है कि वे कोल्ड चेन प्रतिष्ठान (शीत भंडार प्रतिष्ठान) जैसी योजनाओं के लिए कर अवकाश का प्रावधान करें। कृषि अर्थशास्त्री भी यह चाहते हैं कि कृषि विस्तार सेवाओं के लिए कर में कटौती की जाये।

सूचना प्रौद्योगिकी

       वर्ष 2007-08 के बजट प्रस्तावों से आईटीबीओ उद्योगों के लिए सुविधाएं बढ़ाने की बजाय कठिनाईयां अधिक पैदा हुई। 2007-08 के बजट का नकारात्मक पक्ष यह था कि आईटी कम्पनियों को टैक्स के दायरे में लाया गया और उनके ई एस ओपीज पर एफबीटी (कर) लगाया गया। लाभांश वितरण कर में 2.5 प्रतिशत वृद्वि की गयी। व्यक्तिगत कर दाताओं के लिए आकर्षक छूट नहीं दी गयी बल्कि नया शिक्षा उप कर (एक प्रतिशत) और मकानों पर सेवा कर लगा दिया गया, जिनका इस्तेमाल वाणिज्यिक कार्यालय परिसर के रूप में किया जा रहा है। इन प्रावधानों से नियोक्ताओं के लिए प्रति कर्मचारी सीटीसी (कोस्ट टू कम्पनी) खर्च बढ़ जाता है।

       एक और मांग यह रही है कि आई टी क्षेत्र को बीपीओ उद्योग से अलग किया जाये। आई टी क्षेत्र 30 वर्ष से कर अवकाश का लाभ उठा रहा है, जबकि बीपीओ उद्योग 5 वर्ष पुराना होने के नाते यह लाभ बहुत कम समय के लिए उठा पाया है। आई टी क्षेत्र का काम निश्चित रूप से बिना कर रियायतों के चल सकता है, किन्तु बीपीओ उद्योग से कर रियायतें वापस लेने की स्थिति में उस पर दुष्प्रभाव पड़ेगा। कर रियायतें वापस लेने से भारत के सॉफ्टवेयर प्रौद्योगिकी पार्कों (एसटीपीआई) पर भी विपरीत असर पड़ेगा।

       आई टी उद्योग के अपने बजट पूर्व ज्ञापन में बीपीओज को आई टी से अलग करने, और सेवा कर, एफ बी टी, ईएसओपी, कर योग्य सुविधाओं के रूप में एमएटी जैसे कर समाप्त करने की मांग की है। उन्होंने 10ए के अधीन कर अवकाश कम से कम 5 वर्ष के लिए जारी रखने और एसटीपीआई कर अवकाश 2009 के बाद 10 या उससे अधिक वर्षों के लिए आगे बढ़ाने की मांग की है।

दूर संचार

       भारत में दूर संचार कम्पनियों को विभिन्न प्रकार के शुल्कों और करों का बोझ सहन करना पड़ रहा है। वे चाहती है कि 2008-09 के बजट में उनका यह बोझ कम किया जाये। यह उद्योग चाहता है कि केवल एक शुल्क लगाकर अधिक पारदर्शी प्रणाली अपनायी जानी चाहिए। लाइसेंस शुल्क देश भर में विषमतापूर्ण है, जिसे हटाए जाने की आवश्यकता है। इसके स्थान पर दूर संचार कम्पनियां देश भर में 6 प्रतिशत की दर से एक समान लाइसेंस शुल्क लगाए जाने के पक्ष में है।

हाइड्रो कार्बन

       ऊर्जा क्षेत्र के लिए मंजूर किए गए कर प्रोत्साहनों के ही समान रियायतें हाइड्रो कार्बन क्षेत्र के लिए भी मंजूर की गयी है। इस बीच भारतीय उद्योग समय समय पर लगाए जाने वाले विभिन्न उपकरों और शुल्कों के प्रति चिंतित रहा है। उदाहरण के लिए सरकार द्वारा मोटर वाहनों, खनिज तेल और पॉलिस्टर फिलामेंट यार्न जैसी चुनी हुई वस्तुओं पर राष्ट्रीय आपदा आकस्मिता शुल्क (एनसीसीडी) लगाया गया है। कर विशेषज्ञों का मानना है कि एनसीसीडी की अंतर्राष्ट्रीय बाजार में खनिज तेल के मूल्यों में बेतहाशा बढ़ोतरी को देखते हुए एनसीसीडी में काफी बढ़ोतरी हुई है। इसलिए सरकार के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वह उत्पाद और सीमा शुल्क ढांचे को पेट्रोल और डीजल आयात के मामले में युक्तिसंगत बनाए।

धर्मार्थ संस्थान

       धर्मार्थ संस्थानों को दी जा रही आयकर में छूट वापस लिए जाने की संभावना है। इसकी वजह यह है कि धर्मार्थ के बहाने इन संगठनों के धारा 12ए के अंतर्गत पंजीकरण कराके धन के दुरुपयोग की गतिविधियों में शामिल होने की आशंका है।

पूंजी कारोबार कर

       काले धन का कारोबार निरंतर एक बड़ा मुद्दा रहा है, इसलिए समझा जा रहा है कि सरकार 2008-09 के बजट में पूंजी कारोबार कर (सीटीटी) शुरू करने पर विचार कर रही है। यह कर सम्बध्द राज्य में प्रचलित ''सर्कल दर'' के अनुसार लगाया जायेगा।

       इस कदम से सरकारी खजाने को लाभ होने की संभावना है। सम्पत्ति बाजार या रीयल एस्टेट उद्योग इस समय तेजी पर है। इसे देखते हुए पूंजी कारोबार कर से काले धन को बाहर लाने में भी मदद मिलेगी।

विशेष संवाददाता, स्टेट्समेन

 

मंगलवार, 26 फ़रवरी 2008

ब्‍लैक में बिकने लगा माल बजट से पहले, शहर से गायब हुयीं कई चीजें

ब्‍लैक में बिकने लगा माल बजट से पहले, शहर से गायब हुयीं कई चीजें

संजय गुप्‍ता मांडिल (ब्‍यूरो चीफ) एवं अतर सिंह डण्‍डोतिया (तहसील संवाददाता)

मुरैना 27 फरवरी । 26 तारीख को रेल बजट आने से पहले ही मुरैना शहर में अचानक कई चीजों का टोटा पड़ गया है और अचानक ही बाजार से गायब हो गयीं है ।

बजट की आस में कई चीजों का जहॉं व्‍यापारीयों ने भारी स्‍टाक जमा कर लिया है वही अनेक किराना दूकानों से आम उपयोग की दैनिक उपभोक्‍ता वस्‍तुयें शहर से एकदम गायब हो गयीं हैं । 26 फरवरी को सारे दिन बाजार में भारी अफरा तफरी मची रही । और छोटी छोटी चीजें भी इक्‍की दुक्‍की ही कहीं कहीं ही मिलीं वह भी भारी ब्‍लैक में ।

जहॉं लोगों को बीड़ी और सिगरेट के दर्शन दुर्लभ हो गये वहीं माचिस की एक डिब्‍बी दो रूपये से लेकर पॉंच रूपये तक में मिली । सबसे अधिक हालत खराब सिगरेट के उपभोक्‍ताओं की रही, शहर से गोल्‍ड फलेक, फोरस्‍क्‍वेयर, विल्‍स और अन्‍य कई ब्राण्‍ड पूरी तरह लापता हो गये हैं । सिगरेट की डिब्बियों की जगह केवल एक या दो सिगरेटें ही बहुत ढूंढ़ने पर लोगों को मिल सकीं । सिगरेटों का अचानक शहर से गायब होना पहले तो लोगों को समझ ही नहीं आया लेकिन बाद में जब कुछ दूकानदारों ने कहा कि बजट की वजह से बाजार से चीजें गायब हुयीं है तो लोगों को असल वजह समझ आयी ।

सिगरेट के उपभोक्‍ता जहॉं काफी आक्रोशित नजर आये वहीं ग्‍वालियर टाइम्‍स के कार्यालय पर अनेक उपभोक्‍ताओं ने आकर शिकायतें दर्ज करायीं कि जानबूझ कर दूकानदारों ने भारी स्‍टाक जमा कर दाम बढ़ने की आस में सिगरेटों की बिक्री रोक दी है ।

वहीं बीड़ी, माचिस, चाय की पत्‍ती, और तम्‍बाखू, इलेक्‍ट्रानिक आयटम, और शक्‍कर, केरोसीन तथा नहाने के साबुन कपड़े धोने का वाशिंग पावडर, सर्फ आदि कई वस्‍तुयें बाजार से गायब होकर भारी ब्‍लैक में बिकीं ।

कमिश्‍नर और कलेक्‍टर की नाक के नीचे चला ब्‍लैक बाजार

मजे की बात यह है कि शहर मुरैना में कमिश्‍नरी और कलेक्‍ट्रेट दोनों कायम हैं और उनके ऐन ओर पास ही वस्‍तुओं की कृत्रिम कमी दिखा कर सिगरेटों तथा अन्‍य वस्‍तुओं की कीमत जम कर तीन गुनी से लेकर छ: गुनी तक वसूलीं जा रहीं हैं । बजटपूर्व के हालात देख कर बड़ी आसानी से कहा जा सकता है कि लोगों में मुनाफाखोरी और ब्‍लैकमार्केटिंग का कितना तेज जज्‍बा है । वैसे ही जहॉं शहर पहले से ही नकली माल की चपेट में था और नामी गिरामी लगभग सभी ब्राईट मुरैना शहर में ही बनाये जा रहे और लेबल चस्‍पा हो रहे थे वहीं अब ऊपर से ब्‍लैक मार्केटिंग ने लोगों की एकदम कमर ही तोड़ दी है ।   

 

गुरुवार, 21 फ़रवरी 2008

हीरों के उत्पादन ने बनाए कई लखपति चमक बरकरार है पन्ना के हीरा खनिक क्षेत्र की

हीरों के उत्पादन ने बनाए कई लखपति चमक बरकरार है पन्ना के हीरा खनिक क्षेत्र की

 

पन्ना 12 फरवरी/ अंतरराष्ट्रीय मानचित्र पर डायमण्ड सिटी के रूप में पहचान बना चुके पन्ना ने हीरा उथली खदानों के जरिए तमाम लोगों की तकदीर ही नहीं, उनके जीवन की तस्वीर भी बदल दी है। बेरोजगारों और जरूरतमंदों की माली हालत सुधारने के लिए राज्य सरकार के खनिज विभाग द्वारा हीरा उथली खदानों के पट्टों को बढ़ावा देने से कई लोग लखपति बन गए हैं।

 

              ये हीरा खदानें पूंजी निर्माण और रोजगार सृजन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। कई ऐसे हीरा उत्पादक हैं, जिनने हीरा उत्पादन से हुई आय से अपनी इच्छानुसार उद्योग स्थापित कर लिए हैं। पन्ना के हीरों ने तमाम बेरोजगारों की जिन्दगी संवारते हुए अपने उत्पादन का एक लम्बा फासला तय किया और इस यात्रा में पन्ना ने हीरा नगर के रूप में दुनिया में अपनी साख बनाई। दूसरों के घरों को रोशन करने में यहॉ के हीरों की चमक आज भी बरकरार है। इसलिए इस शहर को देश के प्रमुख हीरा उत्पादक केन्द्र होने का भी गौरव मिला है।

 

              मजे की बात यह है कि पन्ना जिला सहित देश के विभिन्न हिस्सों से यहां आए लोगों ने उथली हीरा खदानें शुरू कीं। कई मायनों में खदानों का जोखिम उठाने का चलन उन खदान लेने वालों के लिए बिल्कुल सही साबित होता है, जो पन्ना की हीरा खदान आने के लिए अपना सब कुछ दाव पर लगा देते हैं। जिला हीरा अधिकारी श्री जे0के0 सोलंकी ने बातचीत में कहा कि अगर आपके खून में जोखिम लेने का हौंसला है, तो खदानों में बहुत मौके हैं। साथ ही यहॉ की मामूली शुल्क पर पट्टे देने की व्यवस्था उद्यमशीलता को बढ़ावा देती है। श्री सोलंकी का यह भी कहना था कि वर्ष 2000-01 से वर्ष 2007-08 के आठ वर्षों के बीच पन्ना जिले की उथली खदानों से कुल 2949.66 कैरेट के 5220 हीरों का उत्पादन हुआ। इनकी कीमत 1 करोड 78 लाख 76 हजार 339 रूपये होती है।   उथली हीरा खदानों ने इस अवधि में 55 हजार 330 लोगों को रोजगार दिया और खनिज विभाग ने उथली हीरा खदानों से 49 लाख 76 हजार 956 रूपये तथा पन्ना जिले में कार्यरत राष्ट्रीय खनिज विकास निगम से 21 करोड़ 66 लाख 5 हजार 848 रूपये का राजस्व प्राप्त किया। उथली हीरा खदानों से उत्पादित हीरों की यहां बाकायदा नीलामी होती है। इस नीलामी में दूर-दूर से हीरा व्यापारी भाग लेने पन्ना आते हैं।

 

              हीरों के उत्पादन के प्रति लोगों की बढ़ती रूचि के कारण वर्ष 2000-01 मेें खदान लेने वाले कुछ ज्यादा ही रहे। इस वर्ष 21 लाख 53 हजार 340 रूपये मूल्य के 442.07 कैरेट के 834 हीरों का उत्पादन हुआ। हीरा अधिकारी श्री सोलंकी बताते हैं कि इसके मुनाफे को देखते हुए देश के कई हिस्सों से बड़ी संख्या में लोग हीरा खदानों के पट्टे लेकर हीरों का उत्पादन लेने के लिए आगे आने लगे। जिससे वर्ष 2001-02 में 27 लाख 51 हजार 226 रूपये मूल्य के 395.41 कैरेट के 642 हीरों, वर्ष 2002-03 में 14 लाख 49 हजार 719 रूपये मूल्य के 252.94 कैरेट के 395 हीरों का, वर्ष 2003-04 में 8 लाख 86 हजार 528 रूपये मूल्य के 246.43 कैरेट के 321 हीरों, वर्ष 2004-05 में 12 लाख 39 हजार 464 रूपये मूल्य के 246.64 कैरेट के 447 हीरों, वर्ष 2005-06 में 15 लाख 6 हजार 144 रूपये मूल्य के 393.57 कैरेट के 850 हीरों, वर्ष 2006-07 में 30 लाख 26 हजार 480 रूपये मूल्य के 480.29 कैरेट के 867 हीरों का उत्पादन हुआ तथा वर्ष 2007-08 में अब तक 48 लाख 63 हजार 438 रूपये मूल्य के 492.31 कैरेट के 864 हीरों की बिक्री हो चुकी है। इस तरह हीरों के उत्पादन से कई लोग लखपति बन गए हैं।

 

बुधवार, 20 फ़रवरी 2008

सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने टी वी चैनलों के लिए राज्य और जिला निगरानी समितियों के लिए दिशा निर्देश जारी किए

सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने टी वी चैनलों के लिए राज्य और जिला निगरानी समितियों के लिए दिशा निर्देश जारी किए

सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने निजी चैनलों में राज्य और जिला निगरानी समितियों की भूमिका को स्पष्ट करने के लिए दिशा-निर्देश जारी किए हैं। भारत सरकार के सितम्बर, 2005 के आदेशानुसार, जिला और राज्य स्तरीय निगरानी समितियों का गठन केबल टेलिविजन नैटवर्क‑(विनियम)अधिनियम, 1995 को लागू करने के लिए किया गया था। ये नये दिशा-निर्देश समितियों की प्रभावी कार्य प्रणाली को सुनिश्चित करने हेतु जारी किए गये हैं। इन दिशा-निर्देशों के मुख्य प्रावधान इस प्रकार से हैं-

जिला स्तरीय समिति का कार्यक्षेत्र

¯ केबल टेलिविजन पर प्रसारित सामाग्री के संबंध में शिकायत दर्ज कराने के लिए लोगों को एक मंच प्रदान करना और निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार कार्यवाही करना।

¯ केबल टेलिविजन नैटवर्क अधिनियम,1995 के प्रवर्तन हेतु अधिकृत अधिकारियों द्वारा उठाए गये कदमों की समीक्षा करना।

¯ यदि कोई कार्यक्रम आम व्यवस्था को प्रभावित कर रहा है अथवा किसी समुदाय में बड़े स्तर पर रोष पैदा करता हो तो उससे राज्य और केन्द्र सरकार को शीघ्र अवगत कराना।

¯ केबल टेलिविजन चैनलों द्वारा स्थानीय स्तर पर दिखाए जा रहे विषयों पर नजर रखना और अधिकृत अधिकारियों के माध्यम से यह सुनिश्चित करना कि कोई भी अनाधिकृत और पायरेट चैनल कार्यक्रमों और खबरों का प्रसारण तो नहीं कर रहा है यदि केबल टेलिविजन संचालकों द्वारा इसका प्रसारण किया जा रहा है तो इसे स्थानीय घटनाओं के प्रसारण से रोकना और इनको संतुलित तरीके से इस प्रकार प्रसारित करना कि इससे किसी भी समुदाय की भावनाओं को चोट ना पहुंचे।

¯ केबल नैटवर्क पर उपलब्ध नि:शुल्क चैनलों और अधिसूचित चैनलों की उपलब्धता की निगरानी करना।

दिशा निर्देशित कार्यप्रणाली

¯ जिला स्तर पर एक केन्द्रीय अधिकारी के नेतृत्व में एक शिकायत प्रकोष्ठ की स्थापना की जानी चाहिए और निगरानी समिति के गठन और इसकी कार्यप्रणाली के बारे में व्यापक स्तर पर प्रचार के अलावा इसकी जानकारी को राज्यों और संघ शासित प्रदेशों की बेवसाईट पर भी उपलब्ध कराना चाहिए।

¯ केबल टी वी नैटवर्क द्वारा विषय से संबंधित शिकायत को अपने स्तर पर सुलझाने के मामले में समिति उस कार्यक्रम और विज्ञापन की वीसीडी और फुटेज मंगा सकती है जिसके लिए शिकायत की गई और इससे संबंधित शिकायत के आधार पर यह तय कर सकती है कि इसमें नियमों और मानदंडों का उल्लघन तो नहीं किया गया है। अगर किसी मामले में समिति को यह लगता है कि नियमों का उल्लंघन किया गया है तो अधिकृत अधिकारी अधिनियम के मुताबिक कार्यवाही कर सकता है।

¯ यदि शिकायत राष्ट्रीय अथवा क्षेत्रीय चैनल के संदर्भ में है तो समिति को अपनी सिफारिशें राज्य स्तरीय निगरानी समिति के माध्यम से इस मामले को सुलझाने के लिए भारत सरकार को भेजना चाहिए।

¯ यदि किसी मामले में ऐसा देखा जाता है कि केबल नैटवर्क संचालक निर्धारित चैनलों को नहीं दिखा रहा है अथवा उनका दृश्य और श्रव्य स्तर पर घटिया प्रसारण कर रहा है तो समिति अधिकृत अधिकारी के माध्यम से केबल नैटवर्क को उन्नत प्रसारण के लिए निर्देश दे सकता है और और यदि आवश्यक हो तो धारा 2 के अंतर्गत कोई अन्य कार्यवाही कर सकता है।

राज्य स्तर निगरानी समिति

केबल टी वी नैटवर्क नियमों को लागू करने के लिए राज्य और जिला स्तर समितियों का गठन किया गया लेकिन राज्य स्तर समिति के गठन को निर्दिष्ट नहीं किया गया। राज्य स्तर पर गठित समिति इस प्रकार से है-

1 राज्य सूचना और जनसंपर्क सचिव, - अध्यक्ष

2 राज्य पुलिस महानिदेशक के प्रतिनिधि - सदस्य

3 राज्य समाज कल्याण विभाग सचिव - सदस्य

4 राज्य महिला और बाल विकास सचिव - सदस्य

5 महिलाओं के लिए कार्य कर रहे राज्य के

प्रमुख गैर सरकारी संगठन (मुख्य सचिव द्वारा नामांकित) - सदस्य

6 शिक्षक, मनौवैज्ञानिक, समाजिक कार्यकर्ता

(प्रत्येक मुख्य सचिव द्वारा नामांकित) -सदस्य

7 राज्य निदेशक (सूचना) - सदस्य सचिव

कार्यप्रणाली

¯ जिला और स्थानीय समितियों के गठन और नियमित रूप से हो रही उनकी बैठक को देखना।

¯ यह निगरानी करना कि अधिकृत अधिकारी अपने कार्य को प्रभावी रूप ढंग ये कर रहे है या नहीं।

/ जिला और स्थानीय स्तर समितियों को सुझाव और दिशा -निर्देश देना

¯ जिला तथा स्थानीय स्तर की समितियों के द्वारा इसको भेजे गये मामलों पर निर्णय लेना।

¯ विज्ञापन एवं कार्यक्रम संहिता पर भारत सरकार के आदेशों के उल्लंघन के मामलों में राज्य के मुख्य सचिव के जरिए सूचना और प्रसारण मंत्रालय को उपग्रह चैनलों के खिलाफ शिकायत और कार्यवाही करने की सिफारिश करना।

यह महसूस किया गया है कि देश के अनेक भागों में उपरोक्त अधिनियम को ठीक से लागू नहीं किया जा रहा है जिसका कारण या तो जिला निगरानी समितियों की भूमिकाओं को ठीक से ना समझ पाना या अधिनियम के प्रावधानों को लागू करने के लिए उचित व्यवस्था का न होना है। जम्मू और कश्मीर के अलावा अन्य किसी राज्य में राज्य स्तरीय समिति के गठन की सूचना नहीं दी है। सूचना और प्रसारण मंत्रालय को लोगों के चैनलों और केबल संचालकों के खिलाफ अनचाहे कार्यक्रमों के विरूद्व प्राप्त होने वाली याचिकाओं में भी वृद्वि हो रही है।

 

 

परिसीमन को राष्ट्रपति की मंज़ूरी, बदल जायेगा परिदृश्‍य

परिसीमन को राष्ट्रपति की मंज़ूरी

बीबीसी हिन्‍दी से (यह समाचार बीबीसी हिन्‍दी की वेबसाइट से साभार लिया गया है)

अगले लोकसभा चुनावों से पहले भारत का राजनीतिक नक्शा बदला हुआ होगा क्योंकि राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने 24 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में परिसीमन को मंज़ूरी दे दी है.

यानी आगामी लोक सभा चुनाव नए संसदीय क्षेत्रों के दायरे में फ़ेरबदल करने के बाद कराए जाएंगे लेकिन पाँच राज्यों को इससे छूट रहेगी.

पूर्वोत्तर के चार राज्यों- असम, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर और नगालैंड में परिसीमन लागू नहीं होगा.

झारखंड में भी कार्रवाई पूरी नहीं हो पाने की वजह से यहाँ भी परिसीमन नहीं किया जा रहा है.

 परिसीमन का काम देश की 3, 726 विधानसभा सीटों और 513 संसदीय सीटों के लिए पूरा किया जा चुका है

 

फ़िलहाल पूर्वोत्तर के दो राज्यों मेघालय और त्रिपुरा में परिसीमन लागू नहीं होगा क्योंकि यहाँ जल्द ही विधानसभा चुनाव होने हैं और इन चुनावों के लिए तैयारियां तक़रीबन पूरी कर ली गईं हैं.

बाक़ी राज्यों में परिसीमन को 20 मार्च के बाद लागू किया जाएगा लेकिन, राष्ट्रपति की इस मंज़ूरी के बाद कर्नाटक में होने वाले विधानसभा चुनावों को लेकर सवाल उठने लगे हैं.

कर्नाटक में राष्ट्रपति शासन इसी साल मई के अंत तक ख़त्म हो रहा है और उससे पहले वहाँ चुनाव कराए जाने हैं.

दरअसल, चुनाव आयोग पहले ही संकेत दे चुका है कि उसे कर्नाटक में परिसीमन की कार्रवाई पूरी करने में कम से कम तीन महीने का समय और लगेगा.

परिसीमन की मुश्किलें

ग़ौरतलब है कि केंद्रीय मंत्रिमंडल ने पिछले हफ्ते ही परिसीमन की सिफ़ारिश राष्ट्रपति से की थी.

राष्ट्रपति भवन के प्रवक्ता के अनुसार परिसीमन को तत्काल प्रभाव से लागू किया जाएगा जिसके बाद संसदीय और विधानसभा क्षेत्रों की सीमाएं काफ़ी बदली हुई होंगी.

परिसीमन का काग़ज़ी काम देश की 3, 726 विधानसभा सीटों और 513 संसदीय सीटों के लिए पूरा किया जा चुका है लेकिन, इस परिसीमन ने देश के कई नेताओं के लिए मुश्किलें खड़ी कर दी हैं.

कई मशहूर राजनीतिक हस्तियों को अब अपने लिए नई सीटें तलाशनी होंगी क्योंकि परिसीमन से इनकी पारंपरिक सीटें अब आरक्षित सीटों में तब्दील हो गई हैं.

परिसीमन की गाज लोकसभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी, गृह मंत्री शिवराज पाटिल, भाजपा नेता कल्याण सिंह के अलावा अभिनेता से नेता बने धर्मेंद्र और राज बब्बर पर गिरी है.

इन सभी नेताओं की सीटें अब आरक्षित घोषित कर दी गई हैं.