रविवार, 10 फ़रवरी 2008

शहरों को सुधारने की कोशिश

शहरों को सुधारने की कोशिश

डॉ. विजय अग्रवाल*

 

       अब तक यही कहा जाता रहा है, जो काफी कुछ अभी तक सही भी है कि भारत गाँवों का देश है। लेकिन इसे हम कब तक कह पायेंगे, ऑंकड़े हमें सचेत करते जान पड़ते हैं। सन् 1901 में जहाँ सौ लोगों में से केवल बारह लोग शहर में रह रहे थे, सौ साल बाद सन् 2001 में यह ऑंकड़ा सौ के पीछे 38 लोगों का हो गया है। अगर आजादी के बाद के ऑंकड़ों को देखें, तो सन् 1951 में यह ऑंकड़ा 21 लोगों का था। तुलनात्मक दृष्टि से सन् 1951 और 2001 के बीच देश की कुल जनसंख्या में जहा 2.8 गुना की वृध्दि हुई, वहीं शहरी जनंसख्या में वृध्दि 4.6 गुना हुई। यदि शहरी आबादी में वृध्दि का पैटर्न वर्तमान जैसा ही रहा, तो अगली जनगणना तक भारत की आधी आबादी शहरी हो जाने में कोई आशंका नजर नहीं आती।

       वैसे भी संयुक्त राष्ट्र संघ ने हाल ही में जो विश्व जनसंख्या रिपोर्ट जारी की है, उसके अनुसार इतिहास में पहली बार शहरी लोगों की संख्या ग्रामीण लोगों से ज्यादा हो गई है। इस रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि भारत में यह स्थिति सन् 2030 तक आ जायेगी।

       शहरों में बढने वाली इस आबादी के कई आयाम हैं। जो कस्बे थे, और जहाँ उद्योग और व्यापार की थोड़ी भी संभावना बनी, उसके आसपास के गाँव के लोगों ने इस कस्बे को शहर और फिर शहर को नगर में तब्दील कर दिया। शहर के लोग नगर को गये, और नगर के लोग बड़े नगरों को। सन् 1951 में देश में केवल 5 महानगर थे। सन् 1991 में जहाँ महानगरों की संख्या बढक़र 23 हुई, वहीं 2001 में यह 35 हो गई। यही नहीं, आज देश में कुल 5161 नगर हैं। इन ऑंकड़ों से शहरीकरण की तेज रपऊतार का अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है।

       इसमें कोई दो मत नहीं कि अनेक प्रयासों के बावजूद आज भी भारत के ही नहीं, बल्कि दुनिया के अधिकांश देशों में शहर आकर्षण का केन्द्र बने हुए हैं। आकर्षण के इस केन्द्र के तीन सबसे प्रमुख बिंदु हैं। पहला है- शहरों में जीवन-यापन के साधनों का उपलब्ध हो जाना। अधिकांशत: कृषि, और वह भी वर्षा पर आधारित परम्परागत कृषि प्रणाली में अपने यहाँ के लोगों को बारहों महिने व्यस्त रख पाने की क्षमता नहीं है।

       दूसरा है, शहरों में शिक्षा, स्वास्थ्य एवं मनोरंजन जैसी सुविधाओं की मौजूदगी। थोड़ी सी ऊँची और बेहतर शिक्षा तथा थोड़ी सी भी गंभीर बीमारी की स्थिति में ग्रामीणों को शहरों का रूख करना पड़ता है।

       और तीसरा, जो भारतीय जातिगत संरचना वाले समाज में दिखाई पड़ती है, वह है गाँव के जातिगत तिरस्कार तथा सामंतीय त्रास से मुक्ति पाने के लिए शहरों के शरणागत होना। हालांकि ये लोग अपने गाँव से शहर आने पर दुखी होते हैं, और एक अजीब तरह के अकेलेपन और अजनबियत का संत्रास भोगते हैं, किंतु उन्हें यहाँ का यह संत्रास वहाँ की तुलना में कम ही मालूम पड़ता है।

       कहने का अर्थ यह कि आज विकास के स्वरूप, विकास की गति और विकास की दिशा ने जो रूख ले लिया है, उसके कारण शहरों की बढती हुई आबादी को रोक पाना उतना आसान नहीं रह गया है। वैसे भी एक औद्योगीकृत समाज की नियति उसके शहरी बनते चले जाने की ही होती है।

       ऐसी स्थिति में अधिक व्यावहारिक यही होगा कि शहरों को इस लायक बनाया जाये कि वे आबादी के इस बोझ को सह सकें। दूसरा यह कि गाँवों का इस तरह विकास किया जाये कि वहाँ से आबादी के स्थानान्तरण की रपऊतार धीमी हो सके।

       भारत सरकार इन दोनों ही सिध्दांतों को लेकर चल रही है। पिछले दो सालों से केन्द्र सरकार ने जो न्नभारत निर्माण अभियान न्न योजना शुरू की है, उसका मुख्य उद्देश्य जहाँ गाँवों में सिंचाई और बिजली उपलब्ध कराकर उनकी अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाना है, वहीं सड़क तथा टेलिफोन जैसी आधुनिक एवं जरूरी सुविधाओं से उन्हें जोड़ना भी है। इससे शहरों की ओर उनके अनावश्यक पलायन को रोकने में मदद मिल सकेगी। इसी दौरान केन्द्र सरकार ने जवाहरलाल नेहरू शहरी नवीनीकरण योजना शुरू की है। इस योजना के अन्तर्गत देश के 66 नगरों को रखा गया है। इसका मुख्य उद्देश्य इन बड़े नगरों में भविष्य की संभावनाओं को देखते हुए पर्यावरण, परिवहन, प्रदूषण, जलनिकासी, आवास, नागरिक सुविधायें, पाकिर्गं, सफाई तथा अन्य आवश्यक सुधारपरक तथ्य उपलब्ध कराने हैं। इन कार्यों पर आने वाले खर्च का एक बड़ा भाग केन्द्र सरकार राज्यों को दे रही है।

       भारत सरकार के शहरी विकास मंत्रालय ने नगरों की समस्याओं को ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना में प्राथमिकता दी है। इस योजना में तीव्र, व्यापक और सर्वनिहित शहरी विकास पर जोर दिया गया है। एक राष्ट्रीय शहरीकरण नीति बनाने का भी निर्णय लिया गया है। इसके अतिरिक्त देश की सभी मास्टर योजनाओं की समीक्षा भी की जायेगी।

       हाल ही में केन्द्र सरकार ने शहरी ढाँचागत विकास के लिए संसाधन जुटाने की दृष्टि से कुछ वित्तीय प्रोत्साहन भी दिए हैं। इनमें करमुक्त म्युनिसिपल बाण्ड जारी करना, बुनियादी सुविधाओं के अंतर्गत जलापूर्ति और साफ-सफाई का दायरा बढाना, शहरी बुनियादी ढाँचें में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को उदार बनाना तथा आयकर एवं उत्पाद शुल्क में छूट देना आदि शामिल हैं।

       निश्चित रूप से भारत के शहरीकरण को एक निश्चित स्वरूप और व्यवस्था देने में ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना की अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका होगी।

डॉ. विजय अग्रवाल- पत्र सूचना कार्यालय, भोपाल के अपर महानिदेशक हैं।

 

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