गुरुवार, 30 जुलाई 2009

सेमरिहा के किसानों की जीवन रेखा है जैविक खेती- आलेख, जे. पी. धौलपुरिया

सेमरिहा के किसानों की जीवन रेखा है जैविक खेती

----------------------------- आलेख, जे. पी. धौलपुरिया,

उप संचालक, जिला जन सम्पर्क कार्यालय, शहडोल म. प्र.

 

कृषि उत्पादन बढ़ाने के साथ-साथ किसानों के कल्याण का सपना संजोकर दो साल पहले शुरू की गई जैविक खेती की योजना शहडोल जिले के ग्राम सेमरिहा के किसानों की जीवन रेखा बन गई है। रासायनिक खेती छोड़कर जैविक खेती अपनाने से सुर्खियों में आया सेमरिहा गांव पूरी तरह जैविक खेती का गांव बन गया है ।

       रासायनिक खाद से भूमि की उर्वरा शक्ति में हुई कमी और इस शक्ति को पुन: प्रदान करने के लिए भूमि में जैविक खेती ने गांव के सभी किसानों का ध्यान खींचा। रासायनिक खाद पर निर्भर खेती को सरकारी मदद से बने वर्मी टांकों से जैविक खाद का मिलना सुनिश्चित होने से सेमरिहा क्षेत्र किसानी हलकों में तेजी से उभरता चला गया । कृषि उत्पादकता वाले जिले के प्रमुख क्षेत्रों में जैविक खेती की बदौलत सेमरिहा क्षेत्र ने अपनी विशेष पहचान बनाई है। जैविक खेती से जहां कृषि उत्पादन में आशातीत वृध्दि हुई और फसल चक्र में परिवर्तन आया, वहीं किसानों के घरों में आर्थिक सम्पन्नता आने से उनके जीवन में खुशहाली आई है । शहडोल से 90 कि. मी. दूर छत्तीसगढ़ सीमा के पास आदिवासी वाहुल्य सेमरिहा गांव में 75 लघु कृषकों के घर हैं । जिनके पास करीब 100 एकड़ कृषि भूमि है । यहां के किसान खेती के लिए वर्षा पर निर्भर होने के साथ-साथ रासायनिक उर्वरकों पर निर्भर  थे । किसानों की माली हालत ठीक नहीं थी । वर्षा हो जाने से उनके खेतों में थोड़ा-बहुत जो अन्न हो जाता था, उससे और दिहाड़ी से वह अपनी आजीविका चला रहे थे । लिहाजा कृषि की बढ़ी लागत उनके लिए मुनाफे का सौदा नहीं थी ।

       सेमरिहा की खेती वर्षा और रासायनिक उर्वरक और कीटनाशक की बढ़ती कीमतों के कारण संकट की मार झेल रही थी, तब गांव के किसानों ने समस्या की जड़ को ही खत्म करने का फैसला लिया । उनका रासायनिक खेती से मोह भंग हो चुका था और वे इसकी खेती से दूर हो जाना चाहते थे। वहां के किसानें ने रासायनिक उर्वरक के वैकल्पिक स्त्रोत जैविक खाद के बारे में सुन रखा था और उन्होंने इसे आजमाने का फैसला लिया । कृषि विशेषज्ञों ने भी उन्हें समझाया कि कहने को तो रासायनिक खाद का इस्तेमाल उत्पादकता को बढ़ाता है, जबकि इसके उलट वह लम्बे दौर में मिट्टी के स्वास्थ्य को प्रभावित करता है, जिससे उर्वरता के साथ-साथ उत्पादन स्तर में गिरावट आती है। उनका जैविक खेती का दौर 2007 में उस वक्त शुरू हुआ, जब उन्होंने जैव उर्वरक का उत्पादन लेना शुरू किया, जिसके लिए राज्य सरकार के कृषि विभाग ने सात किसानों के यहां वर्मी टांके बनवाए और उन्हें केंचुआ दिलाया । अहममोड़ उस समय आया, जब आजीविका परियोजना ने 17 किसानों के यहां और कृषि विभाग ने 18 किसानों के यहां और वर्मीटांके बनवाए तथा केंचुआ उपलब्ध कराए । इस साल आजीविका परियोजना ने 25 किसानों के यहां वायोगैस संयत्र भी लगवाए हैं ।

       किसानों ने केंचुआ खाद का उत्पादन कर उसका अपने खेतों में इस्तेमाल करना जो शुरू किया कि असिंचित क्षेत्र होने के बावजूद उनका उत्पादन तीन गुना तक बढ़ गया, जिसके कारण जैविक खाद उनकी जरूरत बन गया । जो किसान इसका उत्पादन नहीं कर रहे थे, वे दूसरों से खरीदकर इसका अपने खेतों में इस्तेमाल करने लगे । कृषि विभाग के नुमाइन्दों ने सिंथेटिक उर्वरक के स्थान पर जैव उर्वरकों की ओर किसानों का रूख क्या मोड़ा कि पूरा सेमरिहा गांव ही जैविक खेती का गांव बन गया और वहां के काश्तकारों की तकदीर ही बदल गई । वे तीन फसलें  लेने लगे । जिसमें से एक सब्जी की फसल भी शामिल है । जैविक खाद से उपजी उनकी सब्जी को बाजार में लोग हाथोंहाथ खरीद लेते हैं । 

 

गांव में आये इस बदलाव पर शहडोल के उप संचालक कृषि श्री के. एस. टेकाम कहते हैं,'' कृषि विभाग ने सेमरिहा गांव का शतप्रतिशत जैविक खेती के लिए चयन किया था । इसके लिए काश्तकारों के घरों में वर्मी टांकें बनवाए गए । '' गांव के काश्तकार श्री चन्द्रभान सिंह बताते हैं, '' पहले इतनी गरीबी थी कि घर में एक टाइम चूल्हा जलता था । गुजारे के लिए मजदूरी पर जाना पड़ता था । आज दोनों वक्त भोजन कर रहे हैं और जीवन अच्छी तरह बीत रहा है । '' वे जैविक खेती के फायदे कुछ यों बताते हैं,'' रासायनिक खाद से खरपतवार होते थे और जमीन कड़ी रहती थी और उपज भी कम आती थी तथा जमीन पानी भी अधिक सोखती थी । जैविक खेती से उत्पादन दो से तीन गुना बढ़ गया है । पानी कम लगता है, जमीन मुलायम हो गयी है तथा खरपतवार  नहीं होता तथा जमीन की उर्वरा शक्ति बढ़ रही है । रासायनिक खाद व कीटनाशकों पर खर्च होने वाली राशि भी बच रही है।''

       सेमरिहा के काश्तकार अपने खेतों में सिर्फ जैव उर्वरक ही इस्तेमाल नहीं करते, बल्कि वे कीटनाशक के रूप में नीम की नीबोली और उसकी पत्ती, करंज की पत्ती, वेशरम की पत्ती या अकमन की पत्ती को सड़ाकर बनाए गए अर्क का भी इस्तेमाल करते हैं । इस तरह वहां के काश्तकार जैविक खेती युग में जी रहे हैं । सेमरिहा गांव के चारों ओर बनाए गए वर्मी टांके जैविक खेती की ओर बढ़े कदमों की याद दिलाते हैं । काश्तकार नई तकनीक अपनाकर उपलब्ध भूमि से प्रति इकाई कृषि उत्पादन में वृध्दि कर सकें, इसके लिए राज्य सरकार का कृषि विभाग भी सक्रिय है ।

 

 

मंगलवार, 28 जुलाई 2009

आत्मनिर्भरता ने आखिर बना ही दिया निर्धन महिलाओं को अपने परिवार का सहारा

आत्मनिर्भरता ने आखिर बना ही दिया निर्धन महिलाओं को अपने परिवार का सहारा

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शहडोल 27 जुलाई 2009. उन महिलाओं की पृष्ठभूमि मध्य प्रदेश के शहडोल जिले में झगरहा गांव और उनके शुरूआती तंगहाल जीवन को देख कोई नहीं कह सकता था कि वे कभी सफल होंगी । आर्थिक अभावों और बिरादरी की आलोचना झेलने के बावजूद अपना मुकाम हासिल करने के लिए अपना जुनून बरकरार रखते हुए ये महिलाएं इनदिनों केंचुआ खाद से अपने सुनहरे भविष्य का तानाबाना बुनने में जुटी हैं ।

       पहले झगरहा के बेहद गरीब परिवारों से ताल्लुक रखने वाली इन दस महिलाओं का चेहरा घूंघट में और कदम घर की चौखट के अन्दर रहा करते थे । लेकिन इन महिलाओं को रोजगार से जोड़ने और कृषि क्षेत्र में कम लागत में भरपूर उत्पादन लेने के मकसद से कृषि विभाग ने 2004 में इन दस सदस्यीय महिलाओं का कृष्णा स्वसहायता समूह बनवाया । समूह के जरिए इस तरह काम करना शुरू-शुरू में तो इनके पतियों को नहीं भाया और उन्होंने इनका विरोध किया । गांववालों को भी उनका घूंघट से चेहरा बाहर निकालकर यों आत्मनिर्भर होना रास नहीं आया । लेकिन महिलाओं के आगे उनकी एक नहीं चली और महिलाओं ने घर की चौखट के बाहर कदम रख ही दिए और घूंघट से चेहरा बाहर निकाल लिया ।

       कृषि विभाग ने उन्हें केंचुआ खाद उत्पादन तथा मौसमी फसलें लेने का प्रशिक्षण दिलाया और उनके घरों में वर्मी टांके बनवाए तथा उन्हें केंचुआ उपलब्ध कराए । महिलाओं के दिन तब पलटे, जब उन्हें केंचुआ खाद से आमदनी होने लगी । जो पति कभी उनका विरोघ किया करते थे, फिर वही उनके सहयोगी बन गए और उनके काम में हाथ बंटाने लगे । वे दिन भी थे, जब उनके पतियों को परिवार की जरूरतों की पूर्ति के लिए साहूकारों की डयोढ़ी पर कर्ज लेने जाना पड़ता था और उन्हें कर्ज के भंवर में निरंतर गोते लगाते रहना पड़ता था ।

       लेकिन अब उन्हें साहूकारों की जरूरत नहीं रही । अब वे महिलाएं अपने स्वसहायता समूह से ही कर्ज ले लेती हैं । उनकी गांठ में चार पैसे हो जाने से अब उनका परिवार अच्छी तरह खा-पी और पहन -ओढ़ रहा है । उन्होंने अपने मकान के पिछबाड़े के हिस्से को केंचुआ खाद इकाई में तब्दील कर दिया है । सरकारी मदद से शुरू हुआ उनका यह उपक्रम पारिवारिक कारोबार में तब्दील हो गया और वे हर माह तीन-चार क्विंटल केंचुआ खाद का उत्पादन कर लेती हैं । वे केंचुआ खाद बेचने के साथ-साथ अपने पुरखों की खेती की थोड़ी-बहुत जमीन पर भी बचे खाद का इस्तेमाल कर लेती हैं । कृषि विभाग से  सीखी उन्नत तकनीक से वे खेती भी कर रही हैं ।

       कइयों के लिए उनकी सफलता चकरानेवाली हैं, क्योंकि समूह प्रति वर्ष केंचुआ खाद और केंचुओं की बिक्री से डेढ़-डेढ़ लाख रूपये कमा लेता हैं । समूह की हर माह नियमित बैठक होती है । गांववाले समूह की महिलाओं को केंचुआवाली बड़ी नेता कहकर संबोधित करने लगे हैं । ये महिलाएं समाज में बदलते  मूल्यों और लोगों की संकुचित सोच के बावजूद अपनी मंजिल तलाशकर समाज को नई दिशा दे रही हैं । पारिवारिक या सामाजिक सरोकार निभाने में लिंग भेद आड़े नहीं आता । इस बात को इन महिलाओं ने सच कर दिखाया है । वे न केवल अपने परिवार की आमदनी बढ़ाने में योगदान दे रही हैं, बल्कि समाज की भलाई के बारे में भी सोच रही हैं । स्वरोजगार से आत्मनिर्भर होकर ये महिलाएं हर माह अच्छा खासा कमा लेती हैं । उनका केंचुआ खाद छत्तीसगढ़ तक जा रहा है । कुल मिलाकर उनका खाद और केंचुआ कई शहरों में अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहा है । वे खाद की गुणवत्ता पर विशेष ध्यान देती हैं तथा उसकी कीमत भी कम रखी गई है। समूह की अध्यक्ष श्रीमती राधा विश्वकर्मा अपने मोबाइल 9630892207 पर  खाद का आर्डर बुक करती हैं ।

       समूह की अध्यक्ष श्रीमती राधा विश्वकर्मा कहती हैं कि सरकार ने तो हमारी बुध्दि खोल दी, जो आज हम अपने पैरों पर खड़े हैं और बड़े-बड़े अधिकारियों से बातें कर लेते हैं । समूह की कोषाध्यक्ष श्रीमती रूकमणी बताती हैं कि समूह से हमारी जिन्दगी बदल गई । समूह की सचिव सुमन केवट पिछली परिस्थितियों को याद करके बताती हैं,'' पहले हमारे सामने बहुत मुसीबतें थी । अब जिन्दगी अच्छी तरह चल रही है ।''

       कृषि विभाग के उप संचालक श्री के. एस. टेकाम कहते हैं कि समूह से जुड़ी महिलाओं को गांव में ही रोजगार मुहैया कराने के मकसद से पहल की गई है । विभाग ने इस गांव को गोद लिया था, जिससे उन्हें कम लागत में कृषि उत्पादन लेने का तकनीकी ज्ञान दिया जा सके । अपने मकसद में यह योजना कामयाब रही है ।

       आज ये महिलाएं अपनी मेहनत के बलबूते रोजगार के लिए लालायित गांव की गरीब महिलाओं की प्रेरणास्त्रोत बनी हुई हैं । उनकी आमदनी से प्रेरित होकर गांव में महिलाओं के तीन स्वसहायता समूह और बन गए हैं । कृष्णा स्वसहायता समूह की महिलाएं अपने कारोबार को 10 लाख रूपये तक सालाना पहुंचाना चाहती हैं । सरकारी मदद से अपनी राह खुद बनाने वाली इन महिलाओं के लिए सफलता का मूलमंत्र संघर्ष है ।

 

रविवार, 26 जुलाई 2009

लक्ष्मीबाई राष्ट्रीय शारीरिक शिक्षा विश्वविद्यालय

लक्ष्मीबाई राष्ट्रीय शारीरिक शिक्षा विश्वविद्यालय

 

v                जयंत सिंह तोमर

 

 


v                  लेखक - लक्ष्मीबाई राष्ट्रीय शारीरिक शिक्षा विश्वविद्यालय,ग्वालियर में व्याख्याता है ।

 

 

'बुंदेले हर बोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी

खूब लड़ी मर्दानी, वो तो झाँसी वाली रानी थी ।'

       प्रसिध्द कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान की कविता की ये पंक्तियां सभी के मन में सन् 1857 की अमर बलिदानी वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई का ओजपूर्ण चित्र खींचती है। ग्वालियर में अंग्रेज फौज से लड़ते हुये देश की स्वतंत्रता की खातिर झांसी की रानी ने अपने प्राण न्यौछावर कर दिये । सौ वर्ष बाद जब स्वाधीन भारत ने प्रथम स्वाधीनता संग्राम का शताब्दी वर्ष मनाया तो यह तय किया गया कि ग्वालियर में झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की स्मृति में एक शारीरिक शिक्षा महाविद्यालय स्थापित किया जायेगा ।

      ग्वालियर नगर के प्रथम महापौर पहाड़गढ़ के राजा पंचमसिंह की इस संस्था की स्थापना में बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका रही । वे स्वयं एक अच्छे निशानेबाज थे । रियासत के दौर में जहां घुड़दौड़ व पोलो का मैदान था, वहीं इस संस्था की शुरूआत हुई । भारत के श्रेष्ठ शारीरिक शिक्षाविद् प्रो. पी एम जोसेफ इस संस्था के पहले प्रिंसिपल नियुक्त किये गये । शारीरिक शिक्षा के क्षेत्र में केवल पी.एम.जोसेफ ही हैं, जिन्हें पद्मश्री अलंकरण से नवाजा गया। इस संस्थान का प्रारंभ विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन से सम्बध्द महाविद्यालय के रूप में हुआ । ग्वालियर में जीवाजी विश्वविद्यालय की स्थापना के बाद सन् 1964 में यह उसके अन्तर्गत आ गया । राष्ट्रीय महत्व को ध्यान में रखते हुये सन् 1973 में इसका नामकरण लक्ष्मीबाई राष्ट्रीय शारीरिक शिक्षा महाविद्यालय (एलएनसीपीई) किया गया । सन् 1982 में ' स्वायत्तशासी ' संस्था का दर्जा  हासिल करने के बाद सितम्बर 1995 में इसे सम विश्वविद्यालय का दर्जा प्रदान किया गया । विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने 14 जनवरी 2009 को इसे पूर्ण विश्वविद्यालय का दर्जा प्रदान किया ।

      लक्ष्मीबाई रष्ट्रीय शारीरिक शिक्षा विश्वविद्यालय में इस समय सात विभाग संचालित हैं। टीचर एज्यूकेशन विभाग में चार वर्षीय बैचलर आफ फिजीकल एज्यूकेशन (बीपीई) व दो वर्षीय पाठयक्रम मास्टर आफ फिजीकल एज्यूकेशन (एमपीई) संचालित है । रिसर्च डेवलपमेंट एंड एंडवांस्ड् स्ट्डीज डिपार्टमेंट में एम-फिल व पीएचडी की उपाधि प्रदान की जाती है । खेल प्रबंधन व खेल पत्रकारिता विभाग अपेक्षाकृत नया विभाग है । समाचार पत्र, रेडियो, टेलीविजन व वेब माध्यमों में खेल पत्रकारिता के विस्तृत होते क्षेत्र को ध्यान में रखते हुये प्रशिक्षित खेल पत्रकार तैयार करने के लिये यहां खेल पत्रकारिता में एक वर्षीय पीजी डिप्लोमा पाठयक्रम चलाया जा रहा है । ऐसा ही एक पाठयक्रम खेल प्रबंधन के क्षेत्र में भी संचालित है।

      प्रशिक्षण एवं दक्षता विभाग (कोचिंग एंव फिटनेस) क्रीड़ा प्रशिक्षण में पीजी डिप्लोमा व सर्टिफिकेट कोर्स संचालित करता है । युवा कार्यक्रम एवं खेल विभाग साहसिक खेल एवं पर्यटन प्रबंधन में  (एकवर्षीय) स्नातकोत्तर पत्रोपाधि प्रदान करता है ।  स्वास्थ्य विज्ञान एवं योग विभाग, वैकल्पिक चिकित्सा, योग व फिटनेस मैनेजमेंट आदि विषयों में विभिन्न पाठयक्रम संचालित करता है । कम्प्यूटर विज्ञान एवं अनुप्रायोगिक सांख्यिकी विभाग, सूचना प्रौद्योगिकी  व सांख्यिकी के पाठयक्रम संचालित करता है ।

      वर्तमान में कुलपति मेजर जनरल एस.एन मुखर्जी के कार्यकाल में इस राष्ट्रीय महत्व की संस्था की छवि में बहुत निखार आया है । उनके कार्यकाल की सबसे बड़ी उपलब्धि है इस संस्थान का डीम्ड यूनीवर्सिटी से पूर्ण विश्वविद्यालय में तब्दील होना । इन्हीं के कार्यकाल में प्रथम प्रचार्य पीएम जोसेफ की स्मृति में एक खूबसूरत केन्द्रीय ग्रंथालय भी स्थापित हुआ है । शारीक्षिक शिक्षा व खेलकूद से संबंधित यह देश का एक मात्र ग्रंथालय है जिसे कम्प्यूटरीकृत कर अत्याधुनिक स्वरूप दिया जा रहा है ।

      एलएनयूपीई में सेना द्वारा प्रायोजित खिलाड़ियों के प्रशिक्षण के लिये विशेष पाठयक्रम आयोजित किये जाते हैं । बकौल मेजर जनरल एस एन मुखर्जीं एलएनयूपीई लंबे समय तक एशिया की सर्वश्रेष्ठ संस्थाओं में शुमार होती रही है । अब हम इसे विश्वस्तर की श्रेष्ठ संस्था बनाने के लिये युध्दस्तर पर प्रयासरत हैं । विस्तार देने के लिये हाल में गुवाहाटी व देहरादून में एलएनयूपीई के दो केन्द्र भी स्थापित किये गये हैं ।

      ' ोस्वामी तुलसीदास ने रामचरित मानव में निरोगी काया को पहला सुख बताया है । कहा भी जाता है कि ' तंदुरूस्ती हजार नियामत' इसी आदर्श को धारण किये हुये एलएनयूपीई अब ' फिट पीपुल- फिट नेशन ' का मूलमंत्र देश के जनसाधारण के बीच ले जाने के लिये प्रयासरत है ।

 

एलएनयूपीई के सितारे

       लक्ष्मीबाई राष्ट्रीय शारीरिक शिक्षा विश्वविद्यालय यों तो मूलरूप से खेल व शारीरिक शिक्षा के प्रशिक्षक तैयार करने का केन्द्र है, इसके बावजूद स्थापना के 52 वर्षों में यहां के कई शिक्षक व विद्यार्थियों ने खेल के क्षेत्र में महत्वपूर्ण उपलब्धियां, पुरस्कारों के रूप में हासिल की हैं । इनमें से कुछ महत्वपूर्ण नाम इस प्रकार हैं:-

नाम                 अवार्ड          क्षेत्र

1-डा.पी एम जोसफ      पद्मश्री          शारीरिक शिक्षण

2- डा. अजमेर सिंह      अर्जुन अवार्ड     ट्रैक एंड फील्ड

3- प्रो. करन सिंह       द्रोणाचार्य अवार्ड  ट्रैक एंड फील्ड

4- कल्पना देवनाथ      अर्जुन अवार्ड     जिम्नास्टिक

5- ब्रिगेडियर लाभ सिंह   अर्जुन अवार्ड     ट्रैक एंड फील्ड

6- विजय सिंह चौहान    अर्जुन अवार्ड     डेलाथेलान

 

शुक्रवार, 24 जुलाई 2009

टूटने लगा है नरेन्द्र मोदी का तिलिस्म

टूटने लगा है नरेन्द्र मोदी का तिलिस्म

निर्मल रानी email: nirmalrani@gmail.com nirmalrani2000@yahoo.co.in nirmalrani2003@yahoo.com 163011, महावीर नगर,  अम्बाला शहर,हरियाणा। फोन-98962-93341

 

       लोकसभा के हाल में हुए चुनावों में भारतीय जनता पार्टी के नेताओं के एक वर्ग द्वारा जिस प्रकार गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी का नाम देश के भावी प्रधानमंत्री के रूप में उछाला गया था, उससे कम से कम इस बात का अंदांजा तो लगाया ही जा सकता है कि भाजपा नरेन्द्र मोदी पर कितना भरोसा करती है। निश्चित रूप से 2002 में गुजरात में हुए साम्प्रदायिक दंगों के बाद नरेन्द्र मोदी भाजपा के एक आक्रामक एवं करिश्माई नेता के रूप में उभरे थे। खांटी हिन्दुत्व की विचारधारा के समर्थक भाजपा नेता, नरेन्द्र मोदी को भाजपा के भविष्य के रूप में देख रहे थे। परन्तु लोकसभा चुनाव परिणाम आने के बाद ऐसा प्रतीत हो रहा है कि भाजपा के इस करिश्माई नेता का तिलिस्म अब टूटने लगा है। अत्याधिक आत्मविश्वास से भरे मोदी समर्थक जो कल तक उन्हें देश का भावी प्रधानमंत्री समझने जैसी ंगलतंफहमी का शिकार थे, वही लोग अब इस बात को लेकर चिंतित हैं कि मोदी की गुजरात सरकार का भविष्य अब क्या होगा।

              वास्तव में नरेन्द्र मोदी की कथित लोकप्रियता पर ग्रहण लगना तो उसी समय शुरु हो या था जबकि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने नरेन्द्र मोदी के बिहार में चुनाव प्रचार में आने पर अपनी अनिच्छा ंजाहिर की थी। नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल युनाईटेड की बिहार में सहयोगी पार्टी होने के कारण भाजपा को मजबूरन नीतीश कुमार की बात माननी पड़ी थी तथा मोदी, नीतीश की इच्छा के विरुद्ध चुनाव प्रचार हेतु बिहार नहीं जा सके। इसका परिणाम भी बिहार के चुनाव परिणामों पर सकारात्मक पड़ा। इसके पश्चात जब कुल चुनाव परिणाम घोषित हुए, तब यह देखने को मिला कि भाजपा के इस ंफायरब्राण्ड नेता ने पूरे देश में जिन लगभग 200 संसदीय सीटों के लिए जनसभाएं की थीं, उनमें से भाजपा केवल 18 सीटों पर ही विजयी हो सकी। पूरे देश में मोदी के प्रचार के ंफायदे की बात ही क्या करनी। स्वयं उनके अपने राज्य गुजरात में भी भाजपा को वैसे नतीजे नहीं मिल सके जिसकी कि पार्टी उम्मीद लगाए बैठी थी। पार्टी में प्रतीक्षारत प्रधानमंत्री लाल कृष्ण अडवाणी को राज्य की गांधीनगर सीट से पिछली बार की तुलना में कम वोट प्राप्त हुए तथा कुल विजयी मतों की संख्या भी पिछली बार से कांफी कम रही। पूरे गुजरात राज्य में भाजपा के पक्ष में हुए मतदान में लगभग 2 प्रतिशत मतों की गिरावट आई अर्थात् इन लोकसभा चुनावों में यह सांफ हो गया कि भाजपा के जो नेता मोदी से कुछ करिश्मा करने की आस पाले हुए थे, उन्हें मोदी की हंकींकत तथा जनता के मध्य मोदी के प्रति लगाव या दुराव का भली-भांति अंदांजा हो गया। चुनावों के बाद स्वयं मोदी मीडिया से यह कहते दिखाई दिए कि वह तो गुजरात के ही नेता बने रहने में संतुष्ट हैं। मीडिया ने स्वयं उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर निकलकर प्रचार करने हेतु बाध्य किया था। अर्थात् मोदी बैकंफुट पर जाते दिखाई दे रहे हैं।

              लोकसभा चुनावों में भाजपा को सत्ता के बजाए जब करारी हार का सामना करना पड़ा तो निश्चित रूप से पार्टी के नेताओं ने पार्टी की दुर्दशा के कारणों तथा उसके निवारण पर स्वाभाविक रूप से चर्चा, चिंतन तथा मंथन शुरु किया। इस मंथन में देखा गया कि महाराष्ट्र में भी पार्टी का प्रदर्शन पहले की तुलना में कम अच्छा था। यहां भी नंजर डाली गई तो नरेन्द्र मोदी को महाराष्ट्र में पार्टी के चुनाव इंचार्ज के रूप में पाया गया। पार्टी ने तत्काल नरेन्द्र मोदी के स्थान पर महाराष्ट्र के ही गोपीनाथ मुंडे को राज्य का प्रभारी बना दिया। इसे भी मोदी के टूटते तिलिस्म का ही एक हिस्सा कहा जा सकता है।

              पिछले दिनों गुजरात राज्य में ंजहरीली शराब पीने से लगभग 150 लोग काल की गोद में समा गए। पूर्ण श्राबबंदी वाले गुजरात राज्य में पहले भी कई बार ऐसी घटनाएं हो चुकी हैं परन्तु इतनी बड़ी संख्या में लोगों का एक साथ मरना वास्तव में चिंता का विषय है। इस हादसे ने नरेन्द्र मोदी को परेशानी में डाल दिया है। मीडिया ने इस हादसे के बाद जब गहनता से मामले की पड़ताल की, उससे   जो तथ्य सामने निकलकर आ रहे हैं, वे बड़े चौंकाने वाले हैं। कहा जा रहा है कि पूर्ण शराबबंदी वाले गांधी के इस गृहराज्य में शराब की कोई कमी नहीं है। कोई भी व्यक्ति घर बैठे जब चाहे अपनी मनपसंद ब्राण्ड की शराब मंगवा सकता है। देसी व कच्ची शराब बनाने का भी व्यापक नेटवर्क पूरे राज्य में सक्रिय है। अधिक पैसा कमाने की लालच में ंजहरीले रसायन की मिलावट का काम भी शराब मांफिया द्वारा शुरु किया जा चुका है जिसके परिणामस्वरूप इतना बड़ा हादसा गुजरात में देखना को मिला। कहा जा रहा है कि शराब के इस उत्पादन व पड़ोसी राज्यों से शराब तस्करी जैसे अवैध धंधे में शराब मांफिया की पुलिस तथा सत्तारूढ़ नेताओं से सीधे सांठगांठ है। यदि गुजरात के कांग्रेस नेताओं की बात मानी जाए तो शराब का यह पूरा नाजायंज धंधा भाजपा के लोग धनार्जन के उद्देश्य से मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी के संरक्षण में उनके इशारे पर ही कर रहे हैं। यह आरोप कितना सही है और कितना ंगलत तथा ंजहरीली शराब प्रकरण के लिए मोदी सरकार व प्रशासन कितना ंजिम्मेदार है, यह भविष्य में गुजरात में होने वाले विधानसभा चुनावों में ही पता चल सकेगा। परन्तु इतना ंजरूर है कि इस घटना से मोदी की साख को गहरा धक्का लगा है।

              नरेन्द्र मोदी के तिलिस्म को एक और करारा झटका उनके राज्य गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र के मुख्य नगर जूनागढ़ में हुए स्थानीय निकाय के चुनाव परिणामों से लगा है। यहां 51 सदस्यीय नगर पालिका में कांग्रेस को 26 सीटें प्राप्त हुई जबकि भाजपा को मात्र 21 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा। इन चुनावों में भाजपा ने कुछ नए प्रयोग भी किए थे। इसके अन्तर्गत कांग्रेस की तंर्ज पर भाजपा ने भी 30 वर्तमान सभासदों के टिकट काटकर उनके स्थान पर 24 नए तथा युवा चेहरों को चुनाव मैदान में उतारा था। पार्टी ने इस बार जूनागढ़ में 5 मुस्लिम उम्मीदवारों को भी चुनाव लड़ाया था। परन्तु यह सभी उम्मीदवार कांग्रेस के उम्मीदवारों से बुरी तरह पराजित हुए। जूनागढ़ के स्थानीय निकाय के चुनाव परिणामों के विषय में भी विशेषकों का यह मानना है कि यहां भी नरेन्द्र मोदी का अहंकार तथा अत्याधिक आत्मविश्वास उन्हें ले डूबा। नरेन्द्र मोदी का नाम कुछ लोगों द्वारा भावी प्रधानमंत्री के तौर पर क्या उछाल दिया गया गोया मोदी स्वयं को एक ऐसा ंकद्दावर नेता समझने लगे कि उन्होंने जूनागढ़ नगरपालिका चुनावों में प्रचार हेतु जाने की ंजहमत ही गवारा नहीं की। पार्टी को अत्यधिक आत्मविश्वास था कि नरेन्द्र मोदी के नाम, उनके चित्र तथा उनके मुखौटों मात्र से ही वे जूनागढ़ निकायों का चुनाव जीत लेंगे। परन्तु आंखिरकार यहां भी मोदी का तिलिस्म चकनाचूर होते दिखाई दिया।

              मोदी के इस टूटते व बिखरते तिलिस्म को न तो संघ परिवार बचा पा रहा है, न ही वाईब्रेंट गुजरात। यहां तक कि लोकसभा चुनावों से पूर्व टाटा की नैनो कार जैसी देश की अतिमहत्वपूर्ण परियोजना को गुजरात में स्थापित कराने के बावजूद मोदी को जनता द्वारा कोई सकारात्मक संदेश नहीं दिया जा रहा है। हां यदि मोदी को आसमान पर चढ़ाने वाले अथवा देश का भावी प्रधानमंत्री बताने वाले कुछ लोग हैं तो वे या तो देश के कुछ इक्का-दुक्का उद्योगपति हैं जो या तो ंगलती से उन्हें देश का भावी प्रधानमंत्री बता चुके हैं अथवा किसी भूल या ंगलतंफहमी के चलते या फिर समय व अवसर की विवशता के कारण उन्हें ऐसा कहना पड़ा हो। परन्तु ऐसा भी संभव है कि यह उद्योगपति आज स्वयं अपने दिए गए बयानों पर पछता रहे हों। और या तो भाजपा के ही कुछ ऐसे लोग जो हमेशा ही आसमान से तारे तोड़कर लाने जैसे न जाने कौन-कौन से सपने देखते रहते हैं, वे मोदी को पार्टी या देश का भविष्य मान रहे हों।

              जहां तक देश की आम जनता व मतदाताओं का प्रश् है तो उसने तो मोदी के प्रति अपने रुंख का इंजहार कर ही दिया है तथा जूनागढ़ जैसे चुनाव परिणामों के माध्यम से करती ही जा रही है। अब देखना यह है कि अपने चिर-परिचित ंफायरब्राण्ड तेवर, अपनी आक्रामक शैली, शब्दबाण छोड़ने की उनक पारंपरिक कला आदि पर वे बरंकरार रहते हैं या फिर समय की नब्ंज को पहचानते हुए वर्तमान केंचुल को उतार फेंकने व नए केंचुल में जा बसने की जुगत भिड़ाते हैं, यह ंगौर करने योग्य होगा। जहां तक वर्तमान समय का प्रश् है तो इस समय तो निश्चित रूप से नरेन्द्र मोदी का तथाकथित करिश्माई तिलिस्म दिन-प्रतिदिन टूटता व बिखरता ही जा रहा है। और यह इबारत केवल जूनागढ़ या गुजरात शराब कांड से ही नहीं बल्कि स्वयं मोदी के चेहरे पर भी लिखी देखी जा सकती है।               निर्मल रानी

 

कलाम की तलाशी: सुलगते सवाल

कलाम की तलाशी: सुलगते सवाल

तनवीर जांफरी  (सदस्य, हरियाणा साहित्य अकादमी, शासी परिषद) , email:  tanveerjafri1@gmail.com  tanveerjafri58@gmail.com tanveerjafriamb@gmail.com 163011, महावीर नगर, अम्बाला शहर। हरियाणा  फोन : 0171-2535628  मो: 098962-19228

 

       कौंटिनेंटल एयरलाईंज नामक अमेरिकी विमान कंपनी के सुरक्षाकर्मियों द्वारा गत् 21 अप्रैल को नई दिल्ली स्थित इंदिरा गांधी अन्तर्राष्ट्रीय हवाईअड्डे पर भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ ए पी जे अब्दुल कलाम की उस समय गहन तलाशी ली गई जबकि वे अपनी अमेरिका यात्रा शुरु करने जा रहे थे। डॉ कलाम ने अपने चिर-परिचित विनम्र स्वभाव, उदारता व सहजता का परिचय देते हुए अमेरिकी सुरक्षा कंपनी द्वारा निर्देशित सभी सुरक्षा मापदंडों का पूरा पालन किया। जबकि दूसरी ओर इस अमेरिकी जांच कंपनी के कर्मचारियों ने पूर्व भारतीय राष्ट्रपति डॉ कलाम के प्रति पूरे अविश्वास का परिचय देते हुए उनकी साधारण या शायद उससे भी घटिया तरींके से तलाशी ली। कलाम के जूते उतरवाए गए तथा जूतों की ऐसे जांच की गई गोया इनमें कोई बम या मादक पदार्थ रखे गए हों। उनकी जेब, पर्स यहां तक कि मोबाईल तक की गहन जांच की गई। नि:संदेह डॉ कलाम इस समय आम भारतीयों के लिए सबसे महान आदर्श पुरुष हैं। वे एक महान वैज्ञानिक, मिसाईल मैन, भारत रत्न होने के साथ-साथ 'जनता के राष्ट्रपति' के रूप में भी देखे जाते हैं। अत: उनके साथ भारत की राजधानी में एक अमेरिकी विमानन कंपनी के सुरक्षाकर्मियों द्वारा तलाशी लिए जाने पर आम भारतीयों में क्रोध व उत्तेजना का पैदा होना निश्चित रूप से एक स्वाभाविक प्रतिक्रिया है। ंखासतौर पर आम लोगों में यह जानकर अधिक ंगुस्सा पैदा हुआ है कि सुरक्षाकर्मियों ने डॉ कलाम का पूर्व भारतीय राष्ट्रपति के रूप में परिचय पाने के बावजूद ऐसा क्यों किया। कलाम के तलाशी प्रकरण को लेकर देश में अच्छी ंखासी बहस छिड़ गई है। यहां तक कि भारतीय संसद में भी इस विषय पर कांफी हंगामा हुआ है। इस प्रकरण को लेकर तरह-तरह के मत व्यक्त किए जा रहे हैं।

              हालांकि कौंटिनेंटल एयरलाईंज द्वारा इस विषय पर डॉ कलाम से मांफी मांगने की बात कहकर मामले को रंफा-दंफा करने की कोशिश की जा रही है। परन्तु आम भारतीय यह सवाल ंजरूर कर रहा है कि आंखिर डॉ कलाम की तलाशी सुरक्षा मापदंडों के तहत ली गई है या भारत को नीचा दिखाने का यह एक चिर-परिचित तरींका था। जब अमेरिकी सुरक्षा कंपनी अपने बचाव में यह बात कहती है कि उसने अपने सुरक्षा मापदंडों के अन्तर्गत ही डॉ कलाम की तलाशी ली तो भारतीय जनता को निश्चित रूप से इस कंपनी से यह पूछने का अधिकार है कि क्या यह कंपनी जॉर्ज बुश तथा बिल क्लिंटन जैसे अमेरिकी पूर्व राष्ट्रपतियों की भी इसी प्रकार और इसी अंदांज से तलाशी ले चुकी है। यदि हां तो इस कंपनी को इसके प्रमाण देने होंगे। यदि यह कंपनी ऐसे प्रमाण उपलब्ध करा देती है तो निश्चित रूप से भारतीय नागरिक इस अमेरिकी सुरक्षा एजेंसी कीर् कत्तव्य पालना के ंकायल हो जाएंगे। और यदि यह मापदंड बुश व क्लिंटन जैसे अमेरिका पूर्व राष्ट्रपतियों के अतिरिक्त अन्य अति विशिष्टि लोगों के लिए हैं तो नि:संदेह यह आपत्तिजनक है तथा भारत जैसा देश इसे अपनी तौहीन समझता है।

              कलाम के तलाशी प्रकरण को लेकर कुछ तकनीकी एवं विरोधाभासी ंखामियां भी दिखाई दे रही हैं। जैसे कि भारतीय नागरिक उड्डयन मंत्रालय द्वारा जारी की गई अति विशिष्ट लोगों की वह सूची जिसमें सुरक्षा प्रोटोकॉल के तहत जिन विशिष्ट लोगों को साधारण सुरक्षा दायरे से मुक्त रखा गया है, उनमें अन्य अतिविशिष्ट व्यक्तियों के अतिरिक्त भारत के पूर्व राष्ट्रपति भी शामिल हैं। जबकि कौंटिनेंटल एयरलाईंज को सुरक्षा देने वाली अमेरिकी सुरक्षा एजेंसी की ओर से उसे मिलने वाली प्रोटोकॉल सूची में भारत के पूर्व राष्ट्रपति का नाम नहीं है। अब प्रश् यह है कि अमेरिकी सुरक्षा एजेंसी किस प्रोटोकॉल सूची का पालन करे। भारतीय नागरिक उड्डयन मंत्रालय द्वारा जारी प्रोटोकॉल सूची का या अपनी कंपनी द्वारा उपलब्ध कराई गई सूची का?

              911 जैसे आतंकी हमले के बाद बुरी तरह से भयभीत अमेरिका अब इतना चौकस हो गया है कि उसे हर समय हर ओर से आतंकी हमले का भय सताए रहता है। शायद उसकी इसी ंजबरदस्त चौकसी का ही परिणाम है कि आतंकियों की तमाम सांजिशों के बावजूद 911 के बाद आज तक अमेरिका पर दूसरा कोई आतंकी हमला नहीं हुआ। परन्तु इस चौकसी की आड़ में अन्य देशों के अतिविशिष्ट व्यक्तियों को अपमानित भी नहीं किया जाना चाहिए। 2003 में भी भारतीय रक्षा मंत्री जॉर्ज ंफर्नांडिस की अमेरिका में कपड़े   उतरवाकर दो बार तलाशी ली गई थी। गत् वर्ष अक्तूबर में भारतीय लोकसभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी ने अपनी लंदन यात्रा केवल इसलिए रद्द कर दी थी क्योंकि हीथ्रो हवाईअड्डे पर उनकी तलाशी ली जानी थी। वित्तमंत्री प्रणव मुखर्जी को भी गत् वर्ष अपनी मॉस्को यात्रा के दौरान जांच दायरे से होकर गुंजरना पड़ा था। सवाल यह है कि जब भारत के अतिविशिष्ट व्यक्तियों पर दुनिया के स्वयं को असुरक्षित महसूस करने वाले देश विश्वास नहीं करते फिर आंखिर भारत सरकार भी सुरक्षा के वैसे ही कड़े मापदंड क्यों नहीं अपनाती? हमारे देश में भी भारतीय संसद आतंकियों का निशाना बन चुकी है। मुंबई हमलों के बाद और भी स्पष्ट हो गया कि देश का कोई भी अतिसुरक्षित अथवा संवेदनशील स्थान आतंकियों के निशाने से अछूता नहीं है। ऐसे में भारत को भी अपने सुरक्षा मापदंड वैसे ही कड़े कर देने चाहिए। फिर चाहे हमारे देश में हिलेरी क्लिंटन आएं या बिल क्लिंटन, हमें उनके साथ भी सुरक्षा के वही मापदंड अपनाने चाहिएं जोकि अमेरिकी सुरक्षा एजेंसी डॉ कलाम जैसे भारतीय नेताओं के साथ अपनाती है।

              भारतीय संसद में भी कलाम के तलाशी प्रकरण पर अच्छा ंखासा हंगामा हुआ। एक सांसद ने कलाम को राष्ट्र का गौरव बताते हुए उनके तलाशी प्रकरण को पूरे देश का अपमान बताया। वामपंथी सांसद सीताराम येचुरी ने तो सदन में सांफतौर से यह आरोप लगाया कि चूंकि उनके नाम के साथ 'अब्दुल' शब्द लगा था इसलिए उनकी तलाशी ली गई। येचुरी के कहने का मतलब सांफ था कि चूंकि डॉ कलाम मुस्लिम थे इसलिए शक की बिना पर अमेरिकी एजेंसियों ने उन्हें अपमानित किया। अमेरिकी सुरक्षा एजेंसियों ने डॉ कलाम की तलाशी उनके नाम के परिणामस्वरूप ली अथवा यह उनका नियमित जांच तरींका था? यह अलग बात है। परन्तु इस बात से तो इन्कार किया ही नहीं जा सकता कि 911 के बाद अमेरिका में मुस्लिम समुदाय के लोगों को संदेह की नंजर से देखा जाने लगा है। भारत के कई अत्यन्त प्रतिष्ठित मुस्लिम विद्वानों को अमेरिका पहुंचने के बाद वहां के हवाईअड्डे से ही भारत वापस भेजा जा चुका है। ऐसी कई घटनाएं सुनी जा चुकी हैं जिनसे यह पता चलता है कि अमेरिकी सुरक्षा एजेंसियां मुस्लिम नाम रखने वालों, इस्लामी तौर तरींके का पहनावा धारण करने वालों या दाढ़ी रखने वालों के साथ विशेष सुरक्षा उपाय अपनाती हैं तथा उनपर अपनी पैनी नंजर रखती हैं। अब यहां एक प्रश् यह भी है कि मुसलमानों को इस संदेहपूर्ण स्थिति तक पहुंचाने का ंजिम्मेदार कौन है?

              इस प्रकरण पर एक और अंतिम बात यह ंजरूर कहना चाहूंगा कि उपरोक्त सभी वास्तविकताओं के बावजूद यह भी एक बड़ी सच्चाई है कि हमारे नेता ऐसे मुद्दों की गहरी तलाश में रहते हैं जोकि उन्हें राजनीति करने का अवसर दे सकें। शायद इस मामले में भी कुछ ऐसा ही है। तलाशी प्रकरण ने स्वयं डॉ कलाम को शायद इतना आहत नहीं किया होगा जितना कि हमारे देश के कुछ नेता इस मामले से आहत दिखाई दिए हैं। नेताओं द्वारा ही डॉ कलाम की तलाशी पर विरोधस्वरूप जो शब्द अपनाए गए, उसमें इस घटना को देश का अपमान, भारतीय स्वाभिमान पर हमला, देश का अनादर, दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र का अपमान और न जाने क्या-क्या बताया गया। हमें याद रखना चाहिए कि भारत वह देश है जहां मान व अपमान की चिंता किए बिना क्या राष्ट्रपति तो क्या प्रधानमंत्री सभी पंक्तिबद्ध होकर मतदान करते हैं। डॉ मनमोहन सिंह जैसे भारतीय प्रधानमंत्री ने लाईन में खड़े होकर अपना ड्राइविंग लाईसेंस नवनीकरण करवाने में कोई अपमान महसूस नहीं किया।

              दरअसल देश और देशवासी स्वयं को उस समय अधिक अपमानित महसूस करते हैं, जब भारतीय नेता विदेशों में जाकर ंगरीबों से लूटा हुआ काला धन जमा कराते हैं। देश स्वयं को तब अधिक अपमानित महसूस करता है जब किसी राष्ट्रीय राजनैतिक दल का प्रमुख अथवा कोई केंद्रीय मंत्री रिश्वत की रंकम हाथों में लिए हुए कैमरे के सामने रंगेहाथों पकड़ा जाता है। देश उस समय अपनी तौहीन ंजरूर महसूस करता है, जब संसद भवन में सांसदों द्वारा नोट के बंडल उछाले जाते हैं। देश के लिए वह अधिक अपमानजनक घड़ी होती है जब कोई सांसद सदन में प्रश् पूछने के बदले रिश्वत वसूलता है। देश और देशवासी उस समय वास्तव में अपना सिर शर्म से झुका महसूस करते हैं जबकि भारतीय संसद में भ्रष्ट, चोर उचक्के, अपराधी तथा मांफिया चुनावों में विजयी होकर संसद की गरिमा पर धब्बा लगाते हैं। अमेरिकी सुरक्षा एजेंसियों को क्या कहा जाए, यह तो शायद अमेरिका की नीतियों में शामिल हैं कि वे स्वयं चाहे किसी पर विश्वास करें या न करें, परन्तु उनपर सबको विश्वास करना ही होगा। यदि अमेरिकी सोच ऐसी न होती तो वे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की राजघाट स्थित समाधि पर अमेरिकी कुत्तों से तलाशी न करवाते। वैसे भी जब कभी भी कोई अमेरिकी विशिष्ट या अतिविशिष्ट व्यक्ति भारत आता है तो उसकी सुरक्षा की पूरी ंजिम्मेदारी भी अमेरिका स्वयं उठाता है। भारतीय सुरक्षा एजेंसियों को तो तीसरे घेरे में शामिल किया जाता है। विश्वास और अविश्वास के इस अंतर को बदलने के लिए ठोस ंकदम उठाने, भरपूर इच्छाशक्ति दिखाने तथा दुम हिलाने की प्रवृत्ति को त्यागने की सख्त जरूरत है।

                                                                                            तनवीर जांफरी

 

राष्‍ट्रपति से अब करिये सीधी शिकायत, राष्ट्रपति भवन का हेल्पलाइन पोर्टल शुरू

राष्‍ट्रपति से अब करिये सीधी शिकायत, राष्ट्रपति भवन का हेल्पलाइन पोर्टल शुरू

याहू हिन्‍दी से साभार

Jul 24, 07:37 pm

नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। गांव, शहर, जिला, राज्य और केंद्र सरकार से मायूस होकर राष्ट्रपति के दर पर फरियाद लेकर पहुंचने वाले अपनी शिकायतों पर कार्रवाई कुछ जल्दी होने की उम्मीद कर सकते हैं। राष्ट्रपति भवन इन शिकायतों को आनलाइन प्रणाली के तहत तत्काल संबंधित राज्य व मंत्रालय को भेजेगा और इन पर हुई कार्रवाई की स्थिति पर लगातार नजर रखेगा। शिकायतकर्ता को भी उसकी शिकायत पर हो रही कार्रवाई की जानकारी आनलाइन मिल जाएगी।

यह सब हेल्पलाइन पोर्टल http://helpline.rb.nic.in के जरिये होगा। राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल ने इस पोर्टल को लांच कर दिया है। पोर्टल पाटिल के राष्ट्रपति के तौर पर दो साल पूरा करने से एक दिन पहले जारी किया गया है। इस पोर्टल पर कोई भी व्यक्ति सीधे शिकायत दर्ज कर सकेगा। इसका फायदा यह होगा कि राज्य सरकारों या केंद्र की राष्ट्रपति भवन के प्रति जवाबदेही बढ़ेगी और शिकायतों पर टालमटोल करना उनके लिए मुश्किल होगा।

शिकायतकर्ता को संबंधित राज्य सरकार या केंद्र के संबंधित मंत्रालय या विभाग का ब्यौरा देकर शिकायत भेजनी होगी। इसके साथ ही शिकायतकर्ता को एक विशिष्ट नंबर मिल जाएगा। शिकायतकर्ता पोर्टल पर लागइन कर इस नंबर के जरिये यह जान सकेगा कि उसकी शिकायत पर क्या और किस स्तर पर कार्रवाई हुई।

हर शिकायत को संबंधित राज्य सरकार या केंद्रीय मंत्रालय को भेजा जाएगा। उस पर कार्रवाई का ब्यौरा संबंधित सरकार या मंत्रालय देगा। राष्ट्रपति भवन का सचिवालय समय-समय पर कार्रवाई की स्थिति पूछेगा। यह पूरी प्रक्रिया आनलाइन होगी। इस प्रणाली से राष्ट्रपति को भी उन शिकायतों का जवाब देने में सहूलियत रहेगी, जिन पर कार्रवाई की जानकारी मांगी जाती है।

राष्ट्रपति भवन को रोज करीब 750 शिकायतें मिलती हैं। इनमें 400 डाक, 300 ई-मेल और 50 फैक्स के जरिए पहुंचती हैं।

 

धान की मेडागास्कर विधि से बदली तकदीर

धान की मेडागास्कर विधि से बदली तकदीर

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शहडोल 24 जुलाई 2009. अनुसूचित जनजाति वर्ग में अत्यन्त पिछड़े बैगा जनजाति समुदाय के निर्धन और एक मामूली- से किसान धनीराम ने जब 2008 में शहडोल जिले के बुढ़ार जनपद के बिरूहली गांव में अपने परिवार की चार एकड़ जमीन पर मेडागास्कर विधि से धान की खेती करने का फैसला किया, तो उन्हें जरा भी एहसास नहीं था कि वे न केवल स्वयं  के लिए इस विधि से कई गुना अधिक उत्पादन लेने के रास्ते पर चल रहे हैं, बल्कि अन्य गांवों के तमाम किसानों के लिए भी ऐसी विधि की राह खोल रहे हैं और उनके लिए अधिक आमदनी की व्यवस्था कर रहे हैं ।

       इसके पहले जब सत्ताइस वर्षीय धनीराम अपने परिवार के साथ परम्परागत तरीके से छिटुआ विधि से धान, अरहर और उड़द की फसल लेते थे, तो उन्होंने इसी विधि से कृषि जगत में अपना भविष्य बनाने की कल्पना की थी । उनके परिवार के पास नौ एकड़ चौवीस डिसमिल जमीन थी । परम्परागत तरीके से बोवाई करने से वे कम मात्रा में ही धान ले पाते थे, जो ले देकर किसी तरह उनके परिवार के सालभर के खाने के उपयोग मे आ पाता था । लेकिन एक कृषि अधिकारी के कम बीज, कम पानी और कम समय में अधिक उत्पादन देने वाली मेडागास्कर यानि श्री विधि के प्रति जगाए अनुराग ने उनकी कैरियर संबंधी योजना को पलट दिया । कम उत्पादन देने वाली कृषि की परम्परागत विधि अपनाए रखने की जिन्दगी से उकताकर धनीराम ने 2008 में परम्परागत तरीका छोड़ दिया और उन्नत तकनीक की मेडागास्कर विधि से धान उत्पादन में कूद पड़े ।

उन्नत तकनीक से भरपूर उत्पादन और अधिक आमदनी के आकर्षण ने चार एकड़ के अपने पारिवारिक खेत में मेडागास्कर विधि से धान लगाने का उनका इरादा पुख्ता ही किया । कृषि विभाग ने उनके खेत के एक भूखण्ड पर इस विधि का प्रादर्शन डलवाया तथा अन्नपूर्णा योजना के तहत धान की हाई ब्रीड का डी.आर.एच.-775 नामक 12 किलोग्राम बीज उपलब्ध कराया । विभाग ने उन्हें तकनीकी मार्गदर्शन, कीटनाशक और खाद भी उपलब्ध कराया । मेडागास्कर तकनीक का इस्तेमाल करने से पहली बार में ही धनीराम ने 105 क्विंटल धान का उत्पादन लिया और उन्होंने एक लाख रूपये कमाए ।

इससे पहले उनका परिवार सालभर में घर में खाने लायक अन्न ही उगा पाता था । धनीराम को इस विधि में प्रबल संभावनाएं दिखीं । इस विध ने उनकी तकदीर बदल दी । उन्होंने उक्त राशि से खेत को ठीक कराया और खेत में ही एक मकान बना लिया । उन्होंने मोटर साइकिल खरीदने के लिए इसी राशि से धन मिलाया । आज गांव में उनका तेजी से फैलता मेडागास्कर का आधार उन्हें आशावादी बनाता है ।

उन्नत तकनीक से अचानक कई गुना अधिक उत्पादन लेने की खबर धीरे-धीरे बढ़ी और आसपास के कई गांवों में इस विधि के अपनाने से धान जगत में उफान आने के बाद धनीराम ने पीछे मुड़कर नहीं देखा । सरकार ने इस विधि को और बढ़ावा दिया । उत्पादन को बढ़ाने के लिए धनीराम ने इस साल आठ एकड़ में मेडागास्कर विधि से धान की रोपाई की है ।

अपनी इस उपलब्धि पर धनीराम उत्साह से भरे हुए हैं । धनीराम कहते हैं, '' य हमरे खातिर बहुत बड़ी  खुशी  केर बात आइ जउने क हम बताय नहीं सकी , एक वहउ दिन रहा, जब हम छिटुआ धान बोबत रहेन जउने मा सालभर के खातिर खाइ का अन्न पैदा नहीं कई पावत रहेन  '' । कृषि विभाग ने मेडागास्कर विधि को धनीराम के साथ-साथ कई अन्य किसानों के खेतों में भी आजमाया और वे सफलता की राह पर चल पड़े । वे इससे बेहतर किसी और तकनीक के बारे में नहीं सोच सकते । दिनोंदिन लोकप्रियता के शिखर को छू रही मेडागास्कर विधि के बारे में उप संचालक कृषि श्री के. एस. टेकाम कहते हैं, '' पारंपरिक धान की अपेक्षा मेडागास्कर पध्दति से धान की उपज में पचास से तीन सौ प्रतिशत तक अधिक उत्पादन लिया जा सकता है । ''

 

रविवार, 19 जुलाई 2009

भौगोलिक संकेत - किसानों तथा हस्तशिल्पकारों के लिए रास्ता

भौगोलिक संकेत - किसानों तथा हस्तशिल्पकारों के लिए रास्ता

 

राजीव जैन, निदेशक (मीडिया एवं संचार), पत्र सूचना कार्यालय, नई दिल्ली

भारत की विशाल जैव-विविधता तथा कृषि जलवायु स्थितियों ने विशेषकर ग्रामीण क्षेत्र में कृषि उत्पादों की अनेक किस्मों तथा स्थानीय संसाधनों एवं कौशल के अनोखेपन के लिए मंच तैयार किया है। भारतीय किसान तथा ग्रामीण शिल्पकारों को वस्त्र, हस्तशिल्प तथा अन्य पारंपरिक उत्पादों जैसे बनारसी साड़ी और मुजपऊफरपुर की लीचियों के उत्पादन में विशेषज्ञता हासिल है । अब चिन्ता का विषय यह है कि इन उत्पादों के उत्पादकों को अन्य क्षेत्रों व दूसरे देशों के मुकाबले उनके अनूठे उत्पादों का वाजिब मूल्य नहीं मिल पाता है । परिणामस्वरूप वास्तविक किसान अपने अनूठे उत्पाद के वाणिज्यिक लाभ से वंचित हो जाता है ।

       उत्पादों के अनूठेपन में और वृध्दि करने का एक प्रभावी रास्ता भौगोलिक संकेत (जीआई) प्राप्त करना है, जो कि एक बौध्दिक संपदा अधिकार है । जीआई किसी विशेष क्षेत्र में उत्पन्न उत्पाद की पहचान करता है । भौगोलिक उत्पत्ति के लिए गुणवत्ता, धारणा, छवि या अन्य लक्षण इस उत्पाद के अनिवार्य गुण होंगे । एक जीआई को उत्पाद के भौगोलिक मूल उद्गम को सूचित करने में सक्षम होना चाहिए,  जैसे प्रत्यक्ष रूप से दार्जिलिंग और अप्रत्यक्ष रूप से बासमती ।

       अन्य बौध्दिक संपदा अधिकारों की अपेक्षा, भौगोलिक संकेत (जीआई) उत्पादों के उत्पादकोंशिल्पकारों द्वारा स्थापित विधिक संगठन की संपदा है । अन्य क्षेत्रों में जो उत्पादक समान वस्तुओं का उत्पादन करते हैं उन्हें जीआई के उपयोग से अलग रखा जाना चाहिए ताकि वे उत्पादक जीआई के तहत संरक्षित उत्पादों की खूबी का अवैध रूप से फायदा न उठा सकें ।

       जीआई उत्पादों के अनूठेपन तथा उनकी गुणवत्ता के प्रति भी आश्वस्त करता है जिसके लिए उपभोक्ता तथा व्यापारी सामान्यतया भुगतान करते हैं । इसलिए जीआई अनूठे उत्पादों के उत्पादन में लगे उत्पादकों तथा शिल्पकारों की आय में वृध्दि कर सकता है ।

       यद्यपि भारत ने वस्तुओं के भौगोलिक संकेत (पंजीकरण एवं संरक्षण) अधिनियम, 1999 को लागू कर दिया है लेकिन सामान्यत: गरीब किसान तथा शिल्पकार जीआई के लाभों के बारे में नहीं जानते और न ही उत्पादक अपने उत्पादों के लिए जीआई पंजीकरण संख्या ही लेते हैं । अनूठे भौगोलिक उत्पादों के संरक्षण के लिए जीआई सुरक्षा के अभाव में उत्पादक तथा शिल्पकार अन्य क्षेत्रों में उनके अनोखे उत्पादों की छवि का मुक्त रूप से लाभ उठाने से रोकने के लिए कानूनी उपाय करने में अक्षम होते हैं । अधिकतर मामलों में ये लोग जीआई के लिए आवेदन पत्र भरने के लिए आवश्यक कानूनी कार्रवाई पूरा करने में अक्षम होते हैं ।

       भारत में जीआई पंजीकरण के लिए उपयुक्त उत्पादों के अधिकतर उत्पादक ग्रामीण क्षेत्र में रहते हैं जो कम शिक्षित और समाज के गरीब तबके से संबंध रखते हैं । उनके पास संसाधनों तथा क्षमताओं की कमी होती है । वे नहीं जानते कि कैसे जीआई पंजीकरण के लिए उत्पाद की भौगोलिक उत्पत्ति के आवश्यक गुणों का दस्तावेजीकरण किया जाए जो कि पंजीकरण के लिए मूलभूत अनिवार्यता है ।

       गरीब किसानों को छोड़ दें तो यह बेहद ही असामान्य बात है कि सक्षम जीआई उत्पादों के उत्पादक वस्तुओं के भौगोलिक संकेत (पंजीकरण तथा संरक्षण) अधिनियम, 1999 से लाभ उठाने में सक्षम होंगे । इसके परिणामस्वरूप हो सकता है कि वे उच्च आय प्राप्त करने के लिए अपने उत्पादों की वाणिज्यिक वृध्दि के अवसर ही गंवा दें । गरीब उत्पादकों तथा शिल्पकारों के समुदाय द्वारा अपने अनूठे उत्पादों के लिए जीआई सुरक्षा प्राप्त करने में सक्षम बनाने के उद्देश्य से वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय ने कुछ अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के साथ सहयोग से जीआई जागरूकता के लिए अनेक उपाय लागू किए हैं ।

       सरकार के हस्तक्षेपों के परिणामस्वरूप उत्पादकों तथा शिल्पकारों ने कुछ उत्पादों जैसे बनारसी साड़ी, उड़ीसा की पिपली एपलीक हथकरघा वस्तुएं तथा लखनऊ की चिकनकारी के लिए जीआई पंजीकरण के लिए आवेदन पत्र जमा कराए हैं । मुजपऊफरपुर की शाही लीची और भागलपुर सिल्क के कपड़ों के जीआई पंजीकरण के लिए भी कार्य आरंभ कर दिया गया है ।

       जीआई पंजीकरण के लाभों, विधिक पहलुओं तथा उत्पादनों के पंजीकरण तथा ब्राण्ड तैयार करने के लिए जीआई का उपयोग तथा इससे प्राप्त वाणिज्यिक लाभ के बारे में राज्य सरकार तथा अन्य हितधारकों के लिए एक जन चेतना अभियान की तत्काल जरूरत है । इसके लिए सरकारी अधिकारियों, कानूनी विशेषज्ञों तथा उत्पादकों को निकट लाने तथा इनके बीच संपर्क स्थापित करने की सख्त जरूरत है जिसके बिना हम सब नुकसान उठाते हैं ।

       उपर्युक्त चुनौतियों तथा अन्य चुनौतियों से निपटने के लिए उचित रणनीतियां जीआई में मौजूद वाणिज्यिक तथा आर्थिक क्षमता के दोहन में मील का पत्थर साबित हो सकती है । मध्यम तथा दीर्घ अवधि के लिए एक सतर्क एवं योजनाबध्द रणनीति की तत्काल जरूरत है ।