मंगलवार, 30 दिसंबर 2008

दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी (डीपीएल)

दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी (डीपीएल)

पृष्ठ भूमि

       दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी, केन्द्रीय संस्कृति मंत्रालय के तहत एक स्वायत्त संस्था है, जिसका संचालन दिल्ली लाइब्रेरी बोर्ड द्वारा होता है तथा इसका वित्तीय पोषण भारत सरकार करती है।  1951 में दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी (डीपीएल) को भारत सरकार द्वारा यूनेस्को की एक परियोजना के रूप में शुरू किया गया था। इसका उद्धाटन भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने किया था। इसकी शुरूआत पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन के सामने, पुरानी दिल्ली में एक छोटी लाइब्रेरी के रूप में हुई थी। इसके बाद से ये दिल्ली जैसे मेट्रो शहर में एक प्रमुख सार्वजनिक पुस्तकालय के रूप में विकसित हुई।

       दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी का समस्त दिल्ली में फैले क्षेत्रीय पुस्तकालयों, शाखाओं तथा उपशाखाओं, आरसी पुस्तकालयों, सामुदायिक पुस्तकालयों, संग्रह स्टेशनों, खेल पुस्तकालयों, चलते-फिरते पुस्तकालयों, ब्रेल लाइब्रेरी इत्यादि  का नेटवर्क है। पुस्तकालय के पास हिन्दी, अंग्रेजी, उर्दू, पंजाबी तथा अन्य भारतीय भाषाओं में लगभग सभी विषयों पर, 14 लाख से ज्यादा पुस्तकों का बहुत ही अच्छा संग्रह है। दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी 1954 अधिनियम के तहत पुस्तक एवं समाचार पत्र (सार्वजनिक पुस्तकालय) प्रदान  प्रावधानों का चौथा प्राप्ति पुस्तकालय है। यह पुस्तकालय दिल्ली वासियों को निशुल्क पुस्तकालय सुविधा प्रदान करता है। पुस्तकों का हस्तांतरण यहां की प्रमुख गतिविधियां हैं। यह पुस्तकालय बच्चों को भी अपनी सेवा देता है। तथा सांस्कृतिक कार्यक्रमों जैसे व्याख्यान, वाद-विवाद, प्रदर्शनी इत्यादि का भी आयोजन करता है। इस  लाइब्रेरी की प्रमुख विशेषता नेत्रहीन, कैदियों को अपनी सेवा देना तथा चलते-फिरते पुस्तकालय की सुविधा प्रदान करना है। दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी भारत में सबसे बड़ी सार्वजनिक पुस्तकालय प्रणाली है तथा दक्षिण-पूर्व एशिया में सबसे व्यस्त सार्वजनिक पुस्तकालय है।

उपलब्धियां तथा मुख्य बिन्दु

       डीपीएल तथा इसकी शाखाएं सप्ताह में छह दिन खुलती थी। अब यह सदस्यों के लिए सातों दिन खुली रहती हैं (रविवार सहित राजपत्रित अवकाश छोड़कर)। डीपीएल के सदस्य अब सप्ताह अंत (रविवार) को भी पुस्तक ले और लौटा सकते हैं।

निशुल्क इंटरनेट सेवा

              दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी (डीपीएल) सरोजनी नगर, केन्द्रीय लाइब्रेरी (एसपीमुखर्जी मार्ग) तथा पटेल नगर शाखाओं की लाइब्रेरी में उच्च गति की इंटरनेट सेवा सुविधा मुहैया करा रही हैं। इन शाखाओं की लाइब्रेरी में प्रत्येक में दस कम्प्यूटर टर्मिनल सदस्यों के इंटरनेट उपयोग के लिए रखे गये हैं। लाइब्रेरी के लिए ये बहुत सफल रहा है,  सभी टर्मिनल हमेशा व्यस्त रहते हैं। इसके अच्छे नतीजे को देखते हुए हमने शीघ्र ही इन शाखाओं में 10 टर्मिनल और लगाने का प्रस्ताव रखा है।

निशुल्क सीडी डीवीडी सदस्यों को उधार देना

       डीपीएल ने केन्द्रीय लाइब्रेरी (एसपीमुखर्जी मार्ग, पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन के सामने) में 24 अक्तूबर, 2008 से तथा 28 नवम्बर, 2008 से दक्षिण क्षेत्रीय लाइब्रेरी, सरोजनी नगर में सीडी डीवीडी निशुल्क उधार देना शुरू किया है। इस सेवा का विस्तार अब शीघ्र ही पटेल नगर शाखा तक किया जायेगा। इसमें अंग्रेजी, हिन्दी सिनेमा, शिक्षण, मनोरंजनात्मक तथा बच्चों के सीडी डीवीडी का संग्रह है।

डीपीएल का सूची पत्र आन लाइन

       डीपीएल ने अपना सूचीपत्र (ओपीएसी) कोहा ओपन सोर्स लाइब्रेरी आटोमेशन सापऊटवेयर के साथ आन लाइन पर उपलब्ध कराया।  लाइब्रेरी कंप्यूटराइजेशन के लिए कोहा 3.0 का नया रूपान्तर इस्तेमाल करने  का गौरव प्राप्त करने वाला डीपीएल भारत का पहला पुस्तकालय है। पूरे विश्व में तथा डीपीएल के 45,000 सदस्य अब डीपीएल के चालू सूची पत्र शीर्षक, विषय तथा लेखक के नाम से इंटरनेट पर हमारी वेबसाइट   .ड्डद्रथ्.ढ़दृध्.त्द  या   http://delhpubiclibrary.in   पर देख सकते हैं।

बाल इकाई का मरम्मत

       डीपीएल ने सरोजनी नगर, पटेल नगर तथा केन्द्रीय लाइब्रेरी शाखाओं  में अपनी बाल इकाई का मरम्मत किया है। इन शाखाओं में पुस्तकों, सीडी डीवीडी, फर्निचरों तथा बाल क्रीड़ाओं की पूरी नई संग्रह को जोड़ा गया है। डीपीएल के आधुनिकीकरण का कार्यक्रम इस वर्ष के शुरू में आरंभ किया गया तथा लोगों ने इस नई सेवा को उत्साहवर्धक रूप से सराहा है। बारी-बारी से इसे अब अन्य पुस्तकालयों में भी अपनाया जायेगा।

       लोगों को स्मरण दिला दें कि डीपीएल द्वारा दी जा रही सभी सेवाएं लाइब्रेरी के सदस्यों के लिए निशुल्क है। सदस्य के रूप में नामांकन की प्रक्रिया बहुत ही सरल है। नामांकन तथा अन्य जानकारियों के लिए आप हामरी वेबसाइट या   http://www.dpl.gov.in   देख सकते हैं। या अपने नजदीक के पुस्तकालय में जा सकते हैं।

 

2008 के दौरान सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय की प्रमुख पहल

2008 के दौरान सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय की प्रमुख पहल

 

सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय

वर्षांत समीक्षा : 2008

सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने इस वर्ष के दौरान जनता तक सूचना के निर्बाध प्रवाह को सुनिश्चित करने के लिए और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर विषय की गुणवत्ताा और प्रसारण सिग्नलों के अभिग्रहण को भी सुनिश्चित करने के लिए अनेक नीतिगत पहल एवं कारगर उपाय किए हैं। प्रमुख पहलों में शामिल हैं :

इंटरनेट प्रोटोकॉल टीवी पर नीति

सरकार द्वारा इस वर्ष 8 सितंबर को इंटरनेट प्रोटोकॉल टीवी (आई पी टीवी) पर नीति की घोषणा की गयी थी। इसने दूरसंचार नेटवर्कों के माध्यम से लगभग 400 स्वीकृत सेटेलाइट टीवी चैनलों के सिग्नलों के वितरण के दूसरे स्वरूप के लिए दरवाजों को खोल दिया। यह ग्राहकों की नयी एवं पारस्परिक सेवाओं (सहभागी सेवाओं) की मांग को पूरा करने के लिए संवर्धित मूल्यों के साथ भारतीय दर्शक को एक नया डिजिटल दृश्य अनुभव प्रदान करती है। यह ब्रॉडकास्टरों और प्लेटफॉर्म सर्विस प्रोवाइडरों (सेवा प्रदानकत्तर्ााओं) दोनों के लिए विभिन्न व्यापारिक मॉडलों के निर्माण के लिए बढ़ते अवसरों को भी लेकर आयी है। आई पी टी वी पर नीति संबंधित मामलों पर ज्यादा स्पष्ट है। टेलीकॉम ऑपरेटर और केबल ऑपरेटर दोनों ही आई पी टी वी सेवाएँ प्रदान कर सकते हैं जिसे उनके संबंधित लाइसेंसिंग शत्तर्ाों के आधार पर विनियमित किया जाएगा। इस नीति के तहत विषय को केबुल अधिनियम में निर्दिष्ट कार्यक्रम एवं विज्ञापन कोडों के आधार पर किया जाएगा, जो अश्लील विषय समेत अनेक आशंकाओं को दूर करेगा। यह विषय कोडों के उल्लंघन की जिम्मेदारी को परिभाषित करती है और यह बताती है कि उल्लंघन करने वालों से कैसे निपटा जाएगा और यह राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित चिंताओं का भी ख्याल रखती है। यह नीति आई पी टी वी सेवा प्रदान करने वाले लाइसेंस प्राप्त टेलीकॉम ऑपरेटरों को विषय सामग्री प्रदान करने के लिए ब्राडकास्टरों के साथ-साथ बहु प्रणाली संचालकों (मल्टी सिस्टम ऑपरेटरों) और केबल ऑपरेटरों को भी सक्षम बनाती है। यही नीति समाचार एवं समसामयिकी को छोड़कर आई पी टी वी सेवा प्रदानकत्तर्ााओं को अपना विषय तैयार करने की भी शक्ति प्रदान करती है। ब्रॉडबैंड की सघनता के विस्तार के लिए सरकार की प्रतिबध्दता के साथ आई पी टी वी  विषय सामग्री के वितरण में एक बड़ी भूमिका निभाएगा।

केबुल सेवाओं का डिजिटलीकरण

केबुल सेवाओं के डिजिटलीकरण के लिए एक उपयुक्त नियामक ढांचा तैयार करने के लिए सरकार कार्य कर रही है। ग्राहकों की संख्या को कम करके बताने और केबुल ऑपरेटरों द्वारा खास तौर पर टी आर पी शहरों में परिसंचरण शुल्क लगाने जैसी समस्याओं से छुटकारा पाने में यह एक मुख्य घटक है। भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (टी आर ए आई) का आकलन है कि वर्तमान में लगभग 6000 समरूप केबुल के एकतरफा समरूप केबल नेटवर्क से एकतरफा डिजिटल केबुल नेटवर्क में परिवर्तन की लागत 15,000 करोड़ रुपये होगी। अगर केबल नेटवर्कों को दो तरफा 750-850 मेगाहर्ट्ज ब्रॉडबैंड डिजिटल केबुल नेटवर्कों में परिवर्तित करना हो तो इस उन्नयन प्रक्रिया की लागत लगभग 64,000 करोड़ रुपये होगी। हेड इंड इन द स्काई (एच आई टी एस) की शुरुआत एक ऐसा नीतिगत पहल है जो निवेश को आवश्यक 15000 करोड़ रुपये से नीचे लाकर कुछ आवर्ती लागत के साथ लगभग 1200 करोड़ रुपये तक ला सकता है।

एक दूसरी पहल जिस पर विचार किया जा रहा है वह भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) की केबुल सेवाओ ंकी पुनर्संरचना पर हाल में की गयी सिफारिशों पर आधारित है। 5 वर्षों की समय अवधि की सिफारिश का प्रस्ताव किया गया है जिसके तहत ग्रामीण क्षेत्रों में ब्रॉडबैंड सेवाओं को प्रदान करने के लिए दो तरफा केबुल नेटवर्कों को स्थापित करने के लिए लाइसेंस फीस से और यूनिवर्सल सर्विस ऑब्लीगेशन फंड के सहयोग से मौजूदा और नये मल्टी सिस्टम ऑपरेटरों और लोकल केबुल ऑपरेटरों को डिजीटलीकरण करना होगा। पांच वर्षों की अवधि के बाद समरूप सेवाओं के लिए केबुल संचालन के लिए कोई नया लाइसेंस नहीं दिया जाएगा। ट्राई ग्रूप की सलाह पर मंत्रालय कंडीशनल एक्सेस सिस्टम (सी ए एस) क्षेत्र का पहले दिल्ली, मुम्बई और कोलकता के शेष हिस्सों में विस्तार के लिए भी कार्य कर रहा है। कर और शुल्क संरचना के पुनर्गठन के द्वारा सेट टॉप बॉक्स की लागत को नीचे लाने के लिए उपायों पर विचार किया जा रहा है।

हेड इंड इन द स्काई (एच आई टी एस)

अल्प समय के केबुल ऑपरेटरों के डिजिटल मोड की सेवा में परिवर्तन में मुख्य घटक वह निवेश है जो डिजिटल हेड इंड, कंडीशनल एक्सेस सिस्टम और शॉर्ट मैसेजिंग सर्विस (एस एम एस) की स्थापना के लिए आवश्यक होती है। हेड इंड इन द स्काई मोड की सेवा अल्प समय के केबुल ऑपरेटरों के लिए इन लागतों को नीचे ला सकता है और इस प्रकार परिवर्तन की प्रक्रिया को तेज कर सकता है। एक नीति की शुरुआत के लिए हेड इंड इन द स्काई पर ट्राई की सिफारिशों पर मंत्रालय में विचार किया जा रहा है। हेड इंड इन द स्काई नीति का विस्तृत खांका पहले ही सार्वजनिक क्षेत्र में विचाराधीन है जिसका लक्ष्य है ग्रामीण क्षेत्रों में केबुल बाजार का और विस्तार करना क्योंकि सेट टॉप बॉक्सों की घटी कीमत की अव्यवहार्यता के कारण इन क्षेत्रों में केबुल की सुविधा नहीं है। इससे केबुल बाजार और मजबूत होगा और निवेशों पर वापसी में सुधार लाकर और निवेशों को आकर्षित किया जा सकेगा।

मोबाइल टीवी

मोबाइल टीवी की अपार क्षमता और उद्योग जगत द्वारा दिखायी गयी रुचि के कारण सूचना व प्रसारण मंत्रालय ने ट्राई से हित धारकों के साथ उचित परामर्श के बाद अपनी सिफारिशों को भेजने का अनुरोध किया था। उस वक्त से ट्राई ने अपनी सिफारिशें  भेजी हैं जो सरकार के परीक्षण के अंतर्गत हैं। मंत्रालय मोबाइल टीवी ट्रांसमिशन के लिए विभिन्न ब्रॉडकास्टिंग प्रौद्योगिकी के लिए फील्ड ट्रायलों को अनुमति देने पर भी विचार कर रहा है।

डी टी एच सेवा

डायरेक्ट टू होम (डी टी एच) सेवा ग्राहकों के भवनों में सीधे टीवी सिग्नलों को प्रदान करने के लिए एक उपग्रह प्रणाली का प्रयोग करते हुए के यू बैंड में बहु चैनल कार्यक्रमों के वितरण के लिए भेजता है। डायरेक्ट टू होम ग्राहकों को भौगोलिक सचलता का लाभ प्रदान करता है यानि कि अगर एक ग्राहक डी टी एच हार्डवेयर एक बार खरीदने के बाद उसका प्रयोग भारत में कहीं भी कर सकता है। प्रसार भारती के द्वारा प्रस्तुत डी डी डायरेक्ट प्लस भारत का पहला और एकमात्र एफ टी ए डायरेक्ट टू होम सेवा है। इसके अलावा मेसर्स डिश टीवी, टाटा स्काई, सन डायरेक्ट टीवी, रिलायंस बिग टीवी, भारती टेलीमीडिया और भारत बिजनेस चैनल अन्य निजी व्यावसायिक डी टी एच सेवा संचालक है।

सेटेलाइट रेडियो सर्विस

मंत्रालय में सेटेलाइट रेडियो पर ट्राई की सिफारिशों पर विचार किया गया और एक प्रारूप नीति तैयार की गयी और उसे सिफारिशों के लिए ट्राई के पास भेजा गया। प्रारूप नीति पर ट्राई की सिफारिशों को प्राप्त कर लिया गया है और सरकार इन पर अपने विचार बनाने की प्रक्रिया में हैं।

वर्तमान कार्यक्रम की समीक्षा के लिए सूचना व प्रसारण सचिव की अध्यक्षता वाली समिति द्वारा एक प्रारूप विषय कोड बनाया गया और विज्ञापन कोडों को मंत्रालय की वेबसाइट पर लगाया गया। ब्रॉडकास्टिंग संगठनों, सिविल सोसायटी ग्रूपों और उपभोक्ता फोरमों इत्यादि की प्रतिक्रियाओं पर विचार करने के बाद इस समिति ने 05.03.2008 को सरकार को अंतिम रिपोर्ट सौंप दी।

टीवी न्यूज चैनलों के लिए एक प्रतिनिधि संगठन, न्यूज ब्रॉडकास्टर्स एसोसियेशन (एन बी ए) ने विवाद निपटारा प्राधिकरण के लिए नियमावलियों और आचरण संहिता को मंत्रालय को सौंप दिया जिसने स्व विनियमन आधार पर 2 अक्टूबर, 2008 से कार्य करना शुरू कर दिया। न्यूज ब्रॉडकास्टर्स एसोसियेशन का मूल रूप से निर्माण इसलिए किया गया था क्योंकि न्यूज ब्रॉडकॉस्टर्स सरकार द्वारा तैयार किए गए किसी भी प्रकार के विनियमन या विषय संहिता के खिलाफ थे। समरूप तरीके से केबुल टीवी नेटवर्कों के नियमों के उल्लंघन को देखने के लिए राज्य स्तरीय और जिला स्तरीय निगरानी समितियों के लिए विस्तृत नियमावलियों को तैयार किया गया। इन समितियों में इनके अलावा महिलाओं के लिए काम करने वाले शीर्ष गैर सरकारी संगठनों के प्रतिनिधियों, शिक्षाविदों, मनोवैज्ञानिकों और समाजशास्त्रियों को शामिल किया जाएगा।

निजी टीवी चैनलों को जिन कार्यक्रम और विज्ञापन कोडों के प्रावधानों को भारत में टीवी चैनलों के संचालन के लिए दी गई अनुमति के अनुसार चलने के लिए और खासतौर पर अभद्र विषय के अवयस्कों पर पड़ने वाले प्रभाव का ध्यान रखने के सामान्य परामर्श#चेतावनी दी जाती है।

एक विशेष सुविधा इलेक्ट्रिक मीडिया मॉनिटरिंग सेंटर की स्थापना की गयी जो
09.06.2008 से प्रभाव में है ताकि भारत में प्राप्त किए जाने वाले ब्रॉडकास्ट सिग्नलों को लगातार रिकार्ड किया जा सके। शुरुआत में 100 टीवी चैनलों की निगरानी की जाती है और वर्तमान वित्ताीय वर्ष के दौरान 300 टीवी चैनलों की निगरानी की व्यवस्था करने का प्रस्ताव है।

अभी तक अनुमति प्राप्त टीवी चैनलों की संख्या का सारांश इस प्रकार है :

निजी टीवी चैनलों की कुल संख्या          :     417

निजी चैनल (अपलिंक्ड)                 :     357 (197 न्यूज चैनल # 160 गैर न्यूज व करंट अफेयर्स चैनल)

डाउनलिंक्ड टीवी चैनलों की संख्या          :     60 (13 न्यूज चैनल #47 गैर न्यूज व करंट अफेयर्स चैनल)

दूरदर्शन व संसदीय चैनल                :     33

कश्मीर चैनल के विषय में सुधार के लिए जम्मू एवं कश्मीर के लिए 300 करोड़ रुपये तक के एक विशेष पैकेज को मंजूर किया गया है।

महत्वपूर्ण घटनाओं का कवरेज

आर्थिक मामलों पर मंत्रिमंडलीय समिति ने कामनवेल्थ यूथ गेम्स पुणे 2008 और कामनवेल्थ गेम्स दिल्ली 2010 के कवरेज के लिए मेजवान ब्रॉडकास्टर के रूप में प्रसार भारती और प्रेस अंग के रूप में पत्र सूचना कार्यालय के प्रस्ताव को मंजूर कर लिया। कामनवेल्थ यूथ गेम्स, पुणे 2008 का प्रसार भारती द्वारा उसके आंतरिक संसाधनों द्वारा विस्तार से कवरेज किया गया जिसे काफी सराहना मिली।

एफ एम रेडियो

इस वर्ष के दौरान मंत्रिमंडल ने निजी एजेंसियों (चरण - क्ष्क्ष्) के माध्यम से एफ एम रेडियो ब्रॉडकास्टिंग सर्विसेज के विस्तार पर नीति के आंशिक सुधार में शेयरों के स्थानांतरण द्वारा कंपनियों के विलय#विसम्बध्दन#एकीकरण और सहायकों के निर्माण के लिए एफ एम ब्रॉडकास्टिंग कंपनियों को अनुमति के अनुदान को मंजूरी दे दी। देश के 83 शहरों में कुल 241 निजी एफ एम चैनल चल रहे हैं। वर्तमान वर्ष के दौरान
40.5 करोड़ रुपये समेत निजी एफ एम चैनलों से लाइसेंस फीस के द्वारा 1609 करोड़ रुपये की कुल राशि प्राप्त की गयी। सरकार ने ट्राई को एफ एम चरण - क्ष्क्ष्क्ष् की नीति पर अपने विचारों के बारे में बता दिया है और इसकी सिफारिश मांगी है।

कम्यूनिटी रेडियो

इस वर्ष के दौरान कम्यूनिटी रेडियो पर नीति को उदारीकृत किया गया ताकि जन समाज और उन स्वैच्छिक संगठनों को भी इसके दायरे में लाया जा सके जो लाभ के लिए नहीं काम करते हैं। पहले सिर्फ शैक्षिक संस्थानों को कम्युनिटी रेडियो स्थापित करने की अनुमति दी गयी थी। विकास एवं सामाजिक परिवर्तन के मुद्दे पर जन समाज की ज्यादा भागीदारी को अनुमति देने के दृष्टिकोण से सरकार द्वारा इस नीति का उदारीकरण किया गया।

54वां राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार

वर्ष 2006 के लिए 54वां राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार भारत की राष्ट्रपति द्वारा सितंबर,2008 में प्रस्तुत किया गया। सर्वोत्ताम फिल्म का पुरस्कार मलयाली फिल्म 'पुलीजनम' को मिला। सर्वोत्ताम अभिनेता का पुरस्कार श्री सौमित्र चटर्जी और सर्वोत्ताम अभिनेत्री का पुरस्कार सुश्री प्रियामणि को मिला। बाल कलाकार दिव्या चाफडकर को सर्वोत्ताम बाल कलाकार का पुरस्कार मिला। वर्ष 2007 के लिए दादा साहब फाल्के पुरस्कार फिल्म निर्देशक श्री तपन सिन्हा को दिया गया। भारत की आजादी की 60वीं वर्षगांठ की यादगारी में लाइफ टाइम एचीवमेंट अवार्ड (जीवन पर्यंत उपलब्धि पुरस्कार) दिलीप कुमार, लता मंगेशकर, तपन सिन्हा ओर बी. सरोजा देवी को दिया गया।

भारत का 39वां अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह

भारत का 39वां अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह गोवा में 22.11.2008 से 02.12.2008 तक आयोजित किया गया। अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह के साथ ही राष्ट्रीय फिल्म-विकास निगम (एन एफ डी सी) ने फिल्म उद्योग के लिए एक व्यापारिक प्लेटफॉर्म फिल्म बाजार आयोजित किया गया।

आजादी एक्सप्रेस

1857 के 150 वर्ष, आजादी के 60 वर्ष और शहीद भगत सिंह की जन्म शताब्दी के स्मरण में मोबाइल ट्रेन प्रदर्शनी की यात्रा 28 सितंबर, 2007 को शुरू हुई थी जो 70 स्थानों से होकर मई, 2008 में अपने अंतिम गंतव्य स्थल पर पहुँच कर संपन्न हुई। विज्ञापन एवं दृश्य प्रचार निदेशालय एवं संस्कृति मंत्रालय के माध्यम से मंत्रालय द्वारा इस प्रतिष्ठित परियोजना का क्रियान्वयन किया गया। ग्यारह कोचों वाली प्रदर्शनी ने तस्वीरों, चित्रों, कट आउटों, स्क्रॉलरों व ऑडियो-वीडियो के माध्यम से हमारे इतिहास के 150 वर्षों का चित्रण किया।

सार्वजनिक सूचना अभियान

पत्र सूचना कार्यालय सरकार के फ्लैगशिप कार्यक्रमों के बारे में ज्यादा जागरुकता पैदा करने के लिए समस्त भारत में सार्वजनिक सूचना अभियान आयोजित कर रहा है। इन अभियानों में सरकार की विकास स्कीमों पर प्रकाश डाला जाता है। सूचना एवं प्रसारण की अन्य मीडिया इकाइयों के माध्यम से प्रचार प्रयासों को पूरा किया जाता है। यह रिपोर्ट लिखे जाने तक देश भर में कुल 234 सार्वजनिक सूचना अभियान आयोजित किए गए हैं।

प्रिंट मीडिया नीति

विदेशी निवेश के साथ या उसके बिना भारतीय प्रकाशकों द्वारा समाचार एवं समसामयिकी श्रेणी में पड़ने वाली रिपोर्टों यानि कि सार्वजनिक समाचारों और सार्वजनिक समाचारों पर टिप्पणियों को प्रकाशित करने वाले विदेशी पत्रिकाओं के भारतीय संस्करण को अनुमति देने का भी निर्णय लिया। ऐसे संस्करणों के प्रकाशक 26 प्रतिशत तक विदेशी निवेश प्राप्त कर सकते हैं। कुल विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (जिसमें प्रवासी भारतीयों, भारतीय मूल के लोग के विदेशी प्रत्यक्ष निवेशों और मान्यता प्राप्त विदेशी संस्थागत निवेशों द्वारा विभागीय निवेशों को साथ शामिल किया गया है) सूचना व प्रसारण मंत्रालय द्वारा समय-समय पर जारी किए गए विदेशी प्रत्यक्ष निवेशो ंकी रूपरेखा के प्रावधानों के अनुसार 26 प्रतिशत तक है।

इन नियमों के उद्देश्य से निकाली गयी पत्रिका को 'सार्वजनिक समाचारों पर टिप्पणियों और सार्वजनिक समाचारों को गैर-प्रतिदिन आधार पर निकाली गयी पत्रिका के प्रकाशन' के रूप में परिभाषित किया जाता है।

विज्ञापनों के लिए विदृप्रनि (डी ए वी पी) दरों का संशोधन

मंत्रालय ने इस वर्ष के दौरान वि दृ प्र नि (डी ए वी पी) विज्ञापनों की मौजूदा दरों में 24 प्रतिशत की वृध्दि की है जो 1 सितंबर, 2008 को या उसके बाद जारी किए गए विज्ञापनों पर लागू होगा। वि दृ प्र नि के पैनल पर सभी समाचार पत्रों एवं पत्रिकाओं को संशोधित दरों के अंतर्गत शामिल किया गया है।

इस निर्णय से 4000 से अधिक समाचार पत्र एवं पत्रिकाएँ लाभान्वित होंगी। लघु एवं मध्यम समाचार पत्रों को सबसे अधिक लाभ पहुँचेगा क्योंकि इन श्रेणियों के समाचार पत्रों के लिए जारी किए जाने वाले विज्ञापनों का प्रतिशत पहले बढ़ा दिया गया था।

वि दृ प्र नि की विज्ञापन नीति का संशोधन

लघु एवं क्षेत्रीय समाचार पत्र उद्योग की मदद के लिए सरकार प्रेस विज्ञापन नीति में पहले ही परिवर्तन ला चुकी है। मौद्रिक रूप में छोटे समाचार पत्रों के लिए विज्ञापनों की मात्रा को बढ़ाकर 10 प्रतिशत से 15 प्रतिशत कर दिया गया और मध्यम समाचार पत्रों के लिए इसे 30 प्रतिशत से बढ़ाकर 35 प्रतिशत कर दिया गया।

बोडो, डोगरी, गढ़वाली, खासी, कश्मीरी, कोंकणी, मैथिली, मणिपुरी, मिजो, नेपाली, राजस्थानी, संस्कृत, संथाली, सिंधी, उर्दू और जनजातीय भाषाओं में क्षेत्रीय भाषा समाचार पत्रों के लिए न्यूनतम प्रकाशन अवधि की आवश्यकता को 36 महीने से घटाकर सिर्फ 6 महीने कर दी गयी। पिछड़े, दूरस्थ पर्वतीय क्षेत्रों और सीमा क्षेत्रों और जम्मू-कश्मीर, अंडमान निकोबार और 8 पूर्वोत्तार राज्यों से प्रकाशित सभी भाषाओं के सभी समाचार पत्रों को ऐसी ही छूट दी गयी। जो समाचार पत्र अपने प्रकाशन के एक वर्ष के भीतर ही एक लाख प्रति की बड़ी संख्या प्राप्त कर लेते हैं, अब उन पर ही एक वर्ष के प्रकाशन के बाद पैनल में शामिल करने के लिए विचार किया जाता है ताकि सरकार अपने संदेशों के लिए पाठकों की इस विशाल संख्या को न खो दे। उर्दू समाचार पत्रों को बढ़ाये गए समर्थन को प्रिंट विज्ञापन के लिए कुल आबंटन का 3.54 प्रतिशत निर्धारित करके सुनिश्चित कर दिया गया है।

 

रविवार, 28 दिसंबर 2008

फूलों की खेती में रोजगार के अवसर

फूलों की खेती में रोजगार के अवसर

रोजगार समाचार (भारत सरकार) से साभार

सुन्दर फूलों के लिए इनके पौधों को उगाना फूलों की खेती अथवा पुष्पोत्पादन कहलाता है। सामाजिक और धार्मिक मूल्यों के प्रति मानवीय अभिरुचि में परिवर्तन के कारण दिन-ब-दिन फूलों की मांग बढ़ रही है। फूलों का अब भारत में लगभग सभी समारोहों में इस्तेमाल होने लगा है, जिसकी वजह से इनकी घरेलू मांग में तीव्रता से वृदि हो रही है। कट-फ्रलावर की अंतर्राष्ट्रीय मांग, विशेष तौर पर क्रिसमस और वेलेंटाइन डे के दौरान बहुत अधिक बढ़ जाती है।
गुलाब, गेरबेरा, कार्नेशन, क्रिजेन्थेयॅम, आर्किड्स ग्लैडियोलस तथा कुमुदिनी आदि की जबर्दस्त
मांग है। पफूल उद्योग की वार्षिक वृदि क्षमता करीब 25 - 30 है। इस तीव्र वृदि का आधार
इसकी निर्यात क्षमता है। इसका बाजार बहुत व्यापक है तथा भारतीय कट-फ्रलावर के निर्यात
की क्षमता की कोई सीमा नहीं है।
भारत एक सामान्य उष्णकटिबंधी देश होने के कारण, यह एक सजावटी पौधें का खजाना है।
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पफूल उत्पादन बाजार व्यापार करीब 125,000 करोड़ रु. रहने का
अनुमान लगाया गया है जिसमें से कट फ्रलावर का हिस्सा करीब 80,000 करोड़ रु. का है।
इसमें से, भारत का व्यापार केवल 300 करोड़ का है। अतः अंतर्राष्ट्रीय बाजार में इसका हिस्सा
बढ़ाने की अच्छी संभावना है।
फूलों की खेती खुले स्थान में अथवा पॉलीहाउस में की जा सकती है। हालांकि,पॉलीहाउस में की जाने वाली खेती को वरीयता दी जाती है क्योंकि इससे कृत्रिम रूप से नियंत्रण पर्यावरण उपलब्ध् होता है जिसमें रोगों, कीटों, उच्च तापमान, अत्यधिक रोशनी, भारी वर्षा आदि के खतरे न्यूनतम हो
जाते हैं अतः फूलों का उत्पादन हर मौसम में पूरे वर्ष किया जाता है। पॉलीहाउसिस में
फूलों का उत्पादन दो प्रकार से होता है :-
क. मृदा खेती : पौधे मिट्टी में उगाए जाते हैं।
ख. मिट्टी रहित/हाइड्रोपोनिक कल्चर :
पौधें को बगैर मिट्टी के, बर्तनों में उगाया जाता है। बर्तनों में मिट्टी के स्थान पर धूल/रेता,
कोको-पिट आदि का प्रयोग किया जाता है। बाहर से पाइप या ड्रिप के जरिए पोषक तत्वों
तथा पानी की आपूर्ति की जाती है। हाइड्रोपोनिकली उत्पादित फूलों की गुणवत्ता अच्छी है तथा
बाजार में अधिकतम मूल्य प्राप्त होता है। फूलों की खेती उद्योग को निम्नलिखित व्यक्तियों की
आवश्यकता होती है :-
क. कुशल कामगार : मैनुअल कार्य में प्रशिक्षित व्यक्ति, जैसे कि फूलों की कटिंग,
कटाई, पैकेजिंग, परिवहन तथा शीतल जगहों पर भण्डारण कार्य में दक्ष।
ख. कनिष्ठ तकनीशियन : 10 वीं पास साथ में फूलों की खेती, हाइड्रोपोनिक/मृदा संस्कृति,
पैकेजिंग तथा भण्डारण, पाइपलाइनों के निर्माण तथा अनुरक्षण, स्प्रिंकलर, ड्रिप, शीत भण्डारण आदि तकनीकों में 6 माह से एक वर्ष का प्रशिक्षण।
ग. वरिष्ठ तकनीशियन/पुष्पोत्पादक : इस पद हेतु अनिवार्य योग्यता है कृषि/फूलों की
खेती/वनस्पति विज्ञान में बी.एससी. के साथ पॉलीहाउस/ग्रीनहाउस, ड्रिप सिंचाई तथा फर्टिगेशन, हाइड्रोपॉनिक कल्चर, परिवहन, बिक्री, विपणन तथा निर्यात में विशेषज्ञता होनी चाहिए। कम्प्यूटर का ज्ञान वांछनीय है।
घ. वैज्ञानिक/वैज्ञानिक अधिकारी/प्रबंधकः कृषि/फूल उत्पादन/सूक्ष्मजीवविज्ञान/वाइरोलॉजी के क्षेत्र में एम.एससी./पी. एचडी. के साथ-साथ पॉलीहाउस/ग्रीन हाउस, सिंचाई और फर्टिगेशन, हाइड्रोपॉनिक
कल्चर, बिक्री, विपणन तथा निर्यात में विशेषज्ञता होनी चाहिए।
स्वरोजगार के अवसर
इस क्षेत्र में स्वरोजगार की अच्छी संभावनाएं हैं। सीमित संसाधनों के साथ लघु फूल उत्पादन
उद्योग स्थापित किए जा सकते हैं जो कि एक लाभकारी रोजगार हो सकता है। इस उद्योग में
बहुत अच्छी रोजगारपरक और विदेशी मुद्रा अर्जित करने की क्षमता है।

भारत में फूलों की खेती से संबंधित कुछ उद्योगों की सूची जिनमें रोजगार उपलब्ध् हो सकता है :
पुडुमजी प्लांट लैबोरेटरीज् लिमि. पुणे।
शारदा फार्म्स, नासिक।
साहिल एग्रो एंड फार्म प्रॉडक्ट, 24 - कापसहेड़ा, दिल्ली।
अल-फलाह ब्लॉसम्स लिमिटेड, ए-22,ग्रीन पार्क, अरविंदो मार्ग, नई दिल्ली।
श्रेयस ब्लूम्स, रघु गंज, चावड़ी बाजार,दिल्ली।
इंडस फ्रलोरीटैक लिमि., हैदराबाद।
जगदम्बी एग्री जेनेटिक लिमि., हैदराबाद।
नेहा इंटरनेशनल लिमि. पुणे।
परेज् एग्रो-विजन लिमि., पुणे।
एडेन पार्क एग्रो प्रोडक्टस ;प्रा. लिमि.
एग्री-एक्सपो बायोटैक ;आई लिमि.,बाम्बे।
नागार्जुन एग्रीटैक लिमि., बंगलौर।
ग्लोबल इंडस्ट्रीज् लिमि., दिल्ली।
श्री वासवी फ्रलोटेक्स लिमि., बंगलौर।
नाथ बायोटैक लिमि., औरंगाबाद।
वरलाक एग्रोटैक प्रा. लिमि., बंगलौर।
एडेन एग्रो फ्रलोरा ;एथोप, बंगलौर।
टर्बो इंडस्ट्रीज लिमि., पंजाब।
फ्रलोरेंस फ्रलोरा, कृष्णा अपार्ट, बासप्पा रोड, बंगलौर।
होरिजोन फ्रलोरा ;आई लिमि., इंडुरी, पुणे।
सेन्चुरी फ्रलावर्स, पुणे।
बिरला फ्रलोरीकल्चर, श्रीगांव, पुणे।
कूपर एग्रो प्रॉडक्ट्स ;प्रा. लिमि. साहने सुजानपार्क, पुणे।
कुमार बायोटैक, पुणे।
समर्थ ग्रीनटैक, भवानी पेठ, पुणे।
डेक्कन फ्रलोरा बेस, पुणे।
फूलों की खेती से संबंधित पाठ्यक्रम
संचालित करने वाले संस्थानों/विश्वविद्यालयों की सूची
आईएआरआई, नई दिल्ली।
राष्ट्रीय मशरूम अनुसंधन एवं प्रशिक्षण केंद्र, सोलन, हि.प्र.।
असम कृषि विश्वविद्यालय, जोरहाट।
बिरसा कृषि विश्वविद्यालय, रांची।
राजेंद्र कृषि विश्वविद्यालय, पूसा, समस्तीपुर।
हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार।
शेरे कश्मीर कृषि विश्वविद्यालय, श्रीनगर।
कृषि विज्ञान विश्वविद्यालय, बंगलौर।
केरल कृषि विश्वविद्यालय, त्रिशूर।
महात्मा फुले कृषि विद्यापीठ, राहुरी, अहमदनगर।
डॉ. पंजाबराव देशमुख कृषि विद्यापीठ,अकोला।
केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, इम्फाल।
जी.बी. पंत कृषि और टैक. विश्वविद्यालय पंतनगर।
आचार्य एनजी रंगा आन्ध्र प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय, हैदराबाद।
कृषि विज्ञान विश्वविद्यालय, धनबाद।
हिमाचल प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय,पालमपुर।
नरेंद्र देव कृषि एवं टैक. विश्वविद्यालय,फैजाबाद।
पंजाब कृषि विश्वविद्यालय, लुधियाना।
राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय, बीकानेर।
तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय, कोयम्बत्तूर।
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली।
सीएस आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, कानपुर।
प्लान्ट टिशू कल्चर एवं माइक्रो प्रोपेगेशन के क्षेत्र में रोजगार के अवसर
पादप टिशू कल्चर एक ऐसी तकनीक है जिसके जरिए कोशिका, ऊतक, अंगों और जहां तक कि पूरे पौधे को अपनी इच्छानुसार पूरे साल मौसम संबंधी सीमाओं से ऊपर उठकर प्रयोगशाला में उगाया जा सकता है। गुणन की यह तीव्र पदति है और इससे समय, धन तथा स्थान की बचत होती है। थोड़े
से ही क्षेत्र में बड़ी संख्या में पौधे उगाए जा सकते हैं। यह पदति विशेष तौर पर पौधें के
प्रजनन के लिए बहुत महत्वपूर्ण है जिसमें जीवनक्षम बीजों/प्रजनक के अभाव में प्राकृतिक
प्रजनन कठिन है। इस तरह यह पौधें के प्रजनन तथा संरक्षण के लिए सामान्य तौर पर तथा
विशेष तौर पर पौध प्रजातियों के लिए एक शक्तिशाली माध्यम है।
प्लान्ट टिशू कल्चर प्लान्ट बायोटेक्नोलॉजी के लिए आधार तैयार करती है, जिसके जरिए उच्च
खेती और आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण पौधें को विकसित किया जा सकता है। इस तकनीक का
जैव-प्रौद्योगिकी के निम्नलिखित क्षेत्रों में प्रयोग किया जा सकता है :-
फसल सुधार की प्रजनन तकनीक में तेजी लाने के लिए अगुणित पौधें का उत्पादन।
नए जिनोटाइफ/प्रजातियों के तीव्र विकास हेतु प्रोटोप्लास्ट कल्चर।
ट्रांसजेनिक पौधें का विकास।
उत्परिवर्ती का सुधार तथा चयन।
लघु परिवर्ती उत्पादन।
औषधीय वस्तुओं, जैव रसायनों तथा वेक्सीन का उत्पादन।
विभिन्न तरह की पौधा प्रजातियों का संरक्षण।
दैहिक भ्रूणों तथा कृत्रिम बीजों का उत्पादन।
प्रजनन।
क्लोन प्रजनन हेतु टिशू कल्चर तकनीक को सूक्ष्म प्रजनन कहा जाता है और यह सर्वाधिक उन्नत तथा प्लान्ट टिशू कल्चर का सर्वाधिक महत्वपूर्ण क्षेत्र माना जाता है। इस तकनीक के जरिए
ऋतुकाल की सीमाओं की बाधा से रहित पूरे वर्ष सीमित स्थान में बड़ी संख्या में पौधें को प्रजनित किया जा सकता है। इस तरह विकसित किए गए पौधे रोगमुक्त और अपने कुल की तरह ही होते हैं। प्राकृतिक प्रजनन के जरिए प्रमुख पौधों के चारित्रिक गुणों में परिवर्तन होता रहता है जिसकी वजह
से उसकी किस्म की श्रेष्ठता में कमी होती रहती है। लेकिन सूक्ष्म प्रजनन प्रक्रिया में प्रमुख पौधे के सभी गुणों को उसके कुल के अनुरूप बनाए रखा जा सकता है। इस तरह सूक्ष्म प्रजनन प्लान्ट टिशू कल्चर के क्षेत्र में सर्वाधिक व्यावसायिक प्रक्रिया है जिसमें बड़ी संख्या में रोजगार के अवसर खुले हैं।
प्लान्ट टिशू कल्चर संगठनों में सामान्यतः तीन प्रकार के रोजगार के अवसर उपलब्ध् हैं :-
पद : क कनिष्ठ तकनीशियन
अनिवार्य योग्यता : 12 वीं कक्षा, साथ में टिशू कल्चर तकनीकों में छह माह का प्रशिक्षण।
पद : ख वरिष्ठ तकनीशियन/तकनीकी सहायक
अनिवार्य योग्यता : प्लांट टिशू कल्चर को प्रमुख विषय के रूप में रखते हुए जैव-प्रौद्योगिकी/
वनस्पति विज्ञान में बीएससी.
पद : ग वैज्ञानिक अधिकारी/वैज्ञानिक
अनिवार्य योग्यता : प्लांट टिशू कल्चर में विशेषज्ञता के साथ जैव-प्रौद्योगिकी में बी.टैक/ एम.एससी.
प्लान्ट टिशू कल्चर के क्षेत्र में एम.टैक ;बायोटैक/पीएच.डी वांछनीय है।
कुछेक संगठनों के नाम नीचे दिए गए हैं, जिनमें प्लान्ट टिशू कल्चर में कॅरिअर शुरू किया जा
सकता है :-
क अनुसंधान संस्थान :
अ. सरकारी : सीएसआईआर,आईआईएचआर, आईएआरआई,आईसीएआर, डीआरडीओ, बीएआरसी
आदि की अनुसंधान स्थापनाएं। कुछेक अच्छे संस्थान हैं-क्षेत्रीय पादप संसाधन केंद्र, भुवनेश्वर, राष्ट्रीय रासायनिक प्रयोगशाला, पुणे, राष्ट्रीय वनस्पतिक अनुसंधान संस्थान, लखनऊ, राष्ट्रीय पादप आनुवंशिकी संसाधन ब्यूरो, नई दिल्ली, रबड़ अनुसंधान संस्थान, केरल,गन्ना अनुसंधान संस्थान, कोयम्बत्तूर,
केंद्रीय औषधि तथा सुगंधित पौधा संस्थान,लखनऊ आदि।
ब. प्राइवेट : कुछेक निजी संस्थान, जहां पर कॅरिअर शुरू किया जा सकता है :- थापर कारपोरेट आर एंड डी सेंटर, पटियाला, एसपीआईसी विज्ञान फाउण्डेशन, चेन्नै,ईआईडी पैरी एंड कं. बंगलौर, एक्सल
आई लिमिटेड, बंबई, हिंदुस्तान लीवर लि., बाम्बे, इंडो-अमेरिकन हाइब्रीड सीड्स, बंगलौर, रैलीज ;आई लि. बंगलौर,टाटा टी, केरल, बायो-कंट्रोल रिसर्च लैब ;कीट नियंत्रण ;आई लि., बंगलौर, डीजे हैचरीज, बंगलौर आदि।
ख विश्वविद्यालय : लगभग सभी भारतीय विश्वविद्यालयों में प्लान्ट टिशू कल्चर तकनीशियनों, वैज्ञानिकों तथा शिक्षकों की आवश्यकता होती है।
ग टिशू कल्चर उद्योग/वाणिज्यिक सूक्ष्मप्रजनन प्रयोगशाला : भारत में बहुत से प्लान्ट टिशू कल्चर उद्योग हैं, जो तकनीशियनों और वैज्ञानिक अधिकारियों की नियुक्तियां करते हैं। इन कुछेक

उद्योगों की सूची इस प्रकार हैं :-
पुदुमजी प्लान्ट लैबोरेट्रीज, पुणे।
नाथ बायोटैक लि., औरंगाबाद,महाराष्ट्र।
इंडो-अमेरिकन हाईब्रीड सीड्स,बंगलौर।
नोवर्तिस आई लि., मुंबई।
ए.वी. थॉमस एंड कम्पनी, कोचिन।
हैरिसन एंड मालबरम लि., बंगलौर।
बीना नर्सरी ;प्रा. लि., त्रिवेंद्रम।
स्पाइस एग्रो बायोटैक, कोयम्बत्तूर।
पायनियर सीडस कं. लि., दिल्ली।
इंटर-कांटिनेंटल स्टर्लिंग, अहमदाबाद।
इंडो-डच,फरीदाबाद।
कालिंदी बायोटैक, ऋषिकेश।
एग्रीजीन इंटरनेशनल प्रा. लि., शिमला।
महाराष्ट्र हाईब्रीड सीडस कं. लि.,मुंबई।
जैन इरिगेशन सिस्टम्स लि., जलगांव।
आईटीसी एग्रो टैक लि., सिकंदराबाद।
स्वरोजगार के अवसर
रोगमुक्त तथा उत्तम गुणवत्ता के पौधें की बढ़ती मांग ने टिशू कल्चर और सूक्ष्म प्रजनन के क्षेत्र में स्वरोजगार की संभावनाओं को चार चांद लगा दिए हैं। टिशू कल्चरड पौधें की निर्यात की भी अच्छी क्षमता है। सीमित संसाधनों के साथ भी लघु सूक्ष्म प्रजनन इकाई की स्थापना की जा सकती है
जिसमें संबंधित व्यक्ति अच्छे रोजगार के साथ-साथ समाज में नाम भी कमा सकता है।जैव-प्रौद्योगिकी/प्लान्ट टिशू कल्चर तथा सूक्ष्म प्रजनन के क्षेत्र में पाठ्यक्रम संचालित करने वाले कुछ
विश्वविद्यालय/संस्थानों की सूची :-
आईआईटी खडगपुर, दिल्ली, बंबई।
अन्ना विश्वविद्यालय, चेन्नै।
वीआईटी, वेल्लूर, तमिलनाडु।
बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी।
देवी अहिल्या विश्वविद्यालय, इंदौर।
जीबी पंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, पंतनगर, उत्तरांचल।
गोवा विश्वविद्यालय, गोवा।
वनस्थली विद्यापीठ, राजस्थान।
कालीकट विश्वविद्यालय, कोझीकोड।
गुरुनानक देव विश्वविद्यालय, अमृतसर।
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली।
एमएस यूनिवर्सिटी बड़ोदा, बड़ोदरा।
मदुरै कामराज यूनिवर्सिटी, मुदरै।
बिरसा कृषि विश्वविद्यालय, रांची।
विनोबा भावे विश्वविद्यालय, हजारीबाग।
तेजपुर विश्वविद्यालय, तेजपुर।
जम्मू विश्वविद्यालय, जम्म तवी।
पांडिचेरी विश्वविद्यालय, पांडिचेरी।
हैदराबाद विश्वविद्यालय, हैदराबाद।
तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय,कोयम्बत्तूर।
पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय,रायपुर।
हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय, शिमला।
पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़।
मैसूर विश्वविद्यालय, मैसूर।
महात्मा गाँधी विश्वविद्यालय, कोट्टयम।
कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय,कुरुक्षेत्र।
केरल विश्वविद्यालय, त्रिवेंद्रम।
आईएआरआई, नई दिल्ली।