रविवार, 28 दिसंबर 2008

फूलों की खेती में रोजगार के अवसर

फूलों की खेती में रोजगार के अवसर

रोजगार समाचार (भारत सरकार) से साभार

सुन्दर फूलों के लिए इनके पौधों को उगाना फूलों की खेती अथवा पुष्पोत्पादन कहलाता है। सामाजिक और धार्मिक मूल्यों के प्रति मानवीय अभिरुचि में परिवर्तन के कारण दिन-ब-दिन फूलों की मांग बढ़ रही है। फूलों का अब भारत में लगभग सभी समारोहों में इस्तेमाल होने लगा है, जिसकी वजह से इनकी घरेलू मांग में तीव्रता से वृदि हो रही है। कट-फ्रलावर की अंतर्राष्ट्रीय मांग, विशेष तौर पर क्रिसमस और वेलेंटाइन डे के दौरान बहुत अधिक बढ़ जाती है।
गुलाब, गेरबेरा, कार्नेशन, क्रिजेन्थेयॅम, आर्किड्स ग्लैडियोलस तथा कुमुदिनी आदि की जबर्दस्त
मांग है। पफूल उद्योग की वार्षिक वृदि क्षमता करीब 25 - 30 है। इस तीव्र वृदि का आधार
इसकी निर्यात क्षमता है। इसका बाजार बहुत व्यापक है तथा भारतीय कट-फ्रलावर के निर्यात
की क्षमता की कोई सीमा नहीं है।
भारत एक सामान्य उष्णकटिबंधी देश होने के कारण, यह एक सजावटी पौधें का खजाना है।
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पफूल उत्पादन बाजार व्यापार करीब 125,000 करोड़ रु. रहने का
अनुमान लगाया गया है जिसमें से कट फ्रलावर का हिस्सा करीब 80,000 करोड़ रु. का है।
इसमें से, भारत का व्यापार केवल 300 करोड़ का है। अतः अंतर्राष्ट्रीय बाजार में इसका हिस्सा
बढ़ाने की अच्छी संभावना है।
फूलों की खेती खुले स्थान में अथवा पॉलीहाउस में की जा सकती है। हालांकि,पॉलीहाउस में की जाने वाली खेती को वरीयता दी जाती है क्योंकि इससे कृत्रिम रूप से नियंत्रण पर्यावरण उपलब्ध् होता है जिसमें रोगों, कीटों, उच्च तापमान, अत्यधिक रोशनी, भारी वर्षा आदि के खतरे न्यूनतम हो
जाते हैं अतः फूलों का उत्पादन हर मौसम में पूरे वर्ष किया जाता है। पॉलीहाउसिस में
फूलों का उत्पादन दो प्रकार से होता है :-
क. मृदा खेती : पौधे मिट्टी में उगाए जाते हैं।
ख. मिट्टी रहित/हाइड्रोपोनिक कल्चर :
पौधें को बगैर मिट्टी के, बर्तनों में उगाया जाता है। बर्तनों में मिट्टी के स्थान पर धूल/रेता,
कोको-पिट आदि का प्रयोग किया जाता है। बाहर से पाइप या ड्रिप के जरिए पोषक तत्वों
तथा पानी की आपूर्ति की जाती है। हाइड्रोपोनिकली उत्पादित फूलों की गुणवत्ता अच्छी है तथा
बाजार में अधिकतम मूल्य प्राप्त होता है। फूलों की खेती उद्योग को निम्नलिखित व्यक्तियों की
आवश्यकता होती है :-
क. कुशल कामगार : मैनुअल कार्य में प्रशिक्षित व्यक्ति, जैसे कि फूलों की कटिंग,
कटाई, पैकेजिंग, परिवहन तथा शीतल जगहों पर भण्डारण कार्य में दक्ष।
ख. कनिष्ठ तकनीशियन : 10 वीं पास साथ में फूलों की खेती, हाइड्रोपोनिक/मृदा संस्कृति,
पैकेजिंग तथा भण्डारण, पाइपलाइनों के निर्माण तथा अनुरक्षण, स्प्रिंकलर, ड्रिप, शीत भण्डारण आदि तकनीकों में 6 माह से एक वर्ष का प्रशिक्षण।
ग. वरिष्ठ तकनीशियन/पुष्पोत्पादक : इस पद हेतु अनिवार्य योग्यता है कृषि/फूलों की
खेती/वनस्पति विज्ञान में बी.एससी. के साथ पॉलीहाउस/ग्रीनहाउस, ड्रिप सिंचाई तथा फर्टिगेशन, हाइड्रोपॉनिक कल्चर, परिवहन, बिक्री, विपणन तथा निर्यात में विशेषज्ञता होनी चाहिए। कम्प्यूटर का ज्ञान वांछनीय है।
घ. वैज्ञानिक/वैज्ञानिक अधिकारी/प्रबंधकः कृषि/फूल उत्पादन/सूक्ष्मजीवविज्ञान/वाइरोलॉजी के क्षेत्र में एम.एससी./पी. एचडी. के साथ-साथ पॉलीहाउस/ग्रीन हाउस, सिंचाई और फर्टिगेशन, हाइड्रोपॉनिक
कल्चर, बिक्री, विपणन तथा निर्यात में विशेषज्ञता होनी चाहिए।
स्वरोजगार के अवसर
इस क्षेत्र में स्वरोजगार की अच्छी संभावनाएं हैं। सीमित संसाधनों के साथ लघु फूल उत्पादन
उद्योग स्थापित किए जा सकते हैं जो कि एक लाभकारी रोजगार हो सकता है। इस उद्योग में
बहुत अच्छी रोजगारपरक और विदेशी मुद्रा अर्जित करने की क्षमता है।

भारत में फूलों की खेती से संबंधित कुछ उद्योगों की सूची जिनमें रोजगार उपलब्ध् हो सकता है :
पुडुमजी प्लांट लैबोरेटरीज् लिमि. पुणे।
शारदा फार्म्स, नासिक।
साहिल एग्रो एंड फार्म प्रॉडक्ट, 24 - कापसहेड़ा, दिल्ली।
अल-फलाह ब्लॉसम्स लिमिटेड, ए-22,ग्रीन पार्क, अरविंदो मार्ग, नई दिल्ली।
श्रेयस ब्लूम्स, रघु गंज, चावड़ी बाजार,दिल्ली।
इंडस फ्रलोरीटैक लिमि., हैदराबाद।
जगदम्बी एग्री जेनेटिक लिमि., हैदराबाद।
नेहा इंटरनेशनल लिमि. पुणे।
परेज् एग्रो-विजन लिमि., पुणे।
एडेन पार्क एग्रो प्रोडक्टस ;प्रा. लिमि.
एग्री-एक्सपो बायोटैक ;आई लिमि.,बाम्बे।
नागार्जुन एग्रीटैक लिमि., बंगलौर।
ग्लोबल इंडस्ट्रीज् लिमि., दिल्ली।
श्री वासवी फ्रलोटेक्स लिमि., बंगलौर।
नाथ बायोटैक लिमि., औरंगाबाद।
वरलाक एग्रोटैक प्रा. लिमि., बंगलौर।
एडेन एग्रो फ्रलोरा ;एथोप, बंगलौर।
टर्बो इंडस्ट्रीज लिमि., पंजाब।
फ्रलोरेंस फ्रलोरा, कृष्णा अपार्ट, बासप्पा रोड, बंगलौर।
होरिजोन फ्रलोरा ;आई लिमि., इंडुरी, पुणे।
सेन्चुरी फ्रलावर्स, पुणे।
बिरला फ्रलोरीकल्चर, श्रीगांव, पुणे।
कूपर एग्रो प्रॉडक्ट्स ;प्रा. लिमि. साहने सुजानपार्क, पुणे।
कुमार बायोटैक, पुणे।
समर्थ ग्रीनटैक, भवानी पेठ, पुणे।
डेक्कन फ्रलोरा बेस, पुणे।
फूलों की खेती से संबंधित पाठ्यक्रम
संचालित करने वाले संस्थानों/विश्वविद्यालयों की सूची
आईएआरआई, नई दिल्ली।
राष्ट्रीय मशरूम अनुसंधन एवं प्रशिक्षण केंद्र, सोलन, हि.प्र.।
असम कृषि विश्वविद्यालय, जोरहाट।
बिरसा कृषि विश्वविद्यालय, रांची।
राजेंद्र कृषि विश्वविद्यालय, पूसा, समस्तीपुर।
हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार।
शेरे कश्मीर कृषि विश्वविद्यालय, श्रीनगर।
कृषि विज्ञान विश्वविद्यालय, बंगलौर।
केरल कृषि विश्वविद्यालय, त्रिशूर।
महात्मा फुले कृषि विद्यापीठ, राहुरी, अहमदनगर।
डॉ. पंजाबराव देशमुख कृषि विद्यापीठ,अकोला।
केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, इम्फाल।
जी.बी. पंत कृषि और टैक. विश्वविद्यालय पंतनगर।
आचार्य एनजी रंगा आन्ध्र प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय, हैदराबाद।
कृषि विज्ञान विश्वविद्यालय, धनबाद।
हिमाचल प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय,पालमपुर।
नरेंद्र देव कृषि एवं टैक. विश्वविद्यालय,फैजाबाद।
पंजाब कृषि विश्वविद्यालय, लुधियाना।
राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय, बीकानेर।
तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय, कोयम्बत्तूर।
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली।
सीएस आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, कानपुर।
प्लान्ट टिशू कल्चर एवं माइक्रो प्रोपेगेशन के क्षेत्र में रोजगार के अवसर
पादप टिशू कल्चर एक ऐसी तकनीक है जिसके जरिए कोशिका, ऊतक, अंगों और जहां तक कि पूरे पौधे को अपनी इच्छानुसार पूरे साल मौसम संबंधी सीमाओं से ऊपर उठकर प्रयोगशाला में उगाया जा सकता है। गुणन की यह तीव्र पदति है और इससे समय, धन तथा स्थान की बचत होती है। थोड़े
से ही क्षेत्र में बड़ी संख्या में पौधे उगाए जा सकते हैं। यह पदति विशेष तौर पर पौधें के
प्रजनन के लिए बहुत महत्वपूर्ण है जिसमें जीवनक्षम बीजों/प्रजनक के अभाव में प्राकृतिक
प्रजनन कठिन है। इस तरह यह पौधें के प्रजनन तथा संरक्षण के लिए सामान्य तौर पर तथा
विशेष तौर पर पौध प्रजातियों के लिए एक शक्तिशाली माध्यम है।
प्लान्ट टिशू कल्चर प्लान्ट बायोटेक्नोलॉजी के लिए आधार तैयार करती है, जिसके जरिए उच्च
खेती और आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण पौधें को विकसित किया जा सकता है। इस तकनीक का
जैव-प्रौद्योगिकी के निम्नलिखित क्षेत्रों में प्रयोग किया जा सकता है :-
फसल सुधार की प्रजनन तकनीक में तेजी लाने के लिए अगुणित पौधें का उत्पादन।
नए जिनोटाइफ/प्रजातियों के तीव्र विकास हेतु प्रोटोप्लास्ट कल्चर।
ट्रांसजेनिक पौधें का विकास।
उत्परिवर्ती का सुधार तथा चयन।
लघु परिवर्ती उत्पादन।
औषधीय वस्तुओं, जैव रसायनों तथा वेक्सीन का उत्पादन।
विभिन्न तरह की पौधा प्रजातियों का संरक्षण।
दैहिक भ्रूणों तथा कृत्रिम बीजों का उत्पादन।
प्रजनन।
क्लोन प्रजनन हेतु टिशू कल्चर तकनीक को सूक्ष्म प्रजनन कहा जाता है और यह सर्वाधिक उन्नत तथा प्लान्ट टिशू कल्चर का सर्वाधिक महत्वपूर्ण क्षेत्र माना जाता है। इस तकनीक के जरिए
ऋतुकाल की सीमाओं की बाधा से रहित पूरे वर्ष सीमित स्थान में बड़ी संख्या में पौधें को प्रजनित किया जा सकता है। इस तरह विकसित किए गए पौधे रोगमुक्त और अपने कुल की तरह ही होते हैं। प्राकृतिक प्रजनन के जरिए प्रमुख पौधों के चारित्रिक गुणों में परिवर्तन होता रहता है जिसकी वजह
से उसकी किस्म की श्रेष्ठता में कमी होती रहती है। लेकिन सूक्ष्म प्रजनन प्रक्रिया में प्रमुख पौधे के सभी गुणों को उसके कुल के अनुरूप बनाए रखा जा सकता है। इस तरह सूक्ष्म प्रजनन प्लान्ट टिशू कल्चर के क्षेत्र में सर्वाधिक व्यावसायिक प्रक्रिया है जिसमें बड़ी संख्या में रोजगार के अवसर खुले हैं।
प्लान्ट टिशू कल्चर संगठनों में सामान्यतः तीन प्रकार के रोजगार के अवसर उपलब्ध् हैं :-
पद : क कनिष्ठ तकनीशियन
अनिवार्य योग्यता : 12 वीं कक्षा, साथ में टिशू कल्चर तकनीकों में छह माह का प्रशिक्षण।
पद : ख वरिष्ठ तकनीशियन/तकनीकी सहायक
अनिवार्य योग्यता : प्लांट टिशू कल्चर को प्रमुख विषय के रूप में रखते हुए जैव-प्रौद्योगिकी/
वनस्पति विज्ञान में बीएससी.
पद : ग वैज्ञानिक अधिकारी/वैज्ञानिक
अनिवार्य योग्यता : प्लांट टिशू कल्चर में विशेषज्ञता के साथ जैव-प्रौद्योगिकी में बी.टैक/ एम.एससी.
प्लान्ट टिशू कल्चर के क्षेत्र में एम.टैक ;बायोटैक/पीएच.डी वांछनीय है।
कुछेक संगठनों के नाम नीचे दिए गए हैं, जिनमें प्लान्ट टिशू कल्चर में कॅरिअर शुरू किया जा
सकता है :-
क अनुसंधान संस्थान :
अ. सरकारी : सीएसआईआर,आईआईएचआर, आईएआरआई,आईसीएआर, डीआरडीओ, बीएआरसी
आदि की अनुसंधान स्थापनाएं। कुछेक अच्छे संस्थान हैं-क्षेत्रीय पादप संसाधन केंद्र, भुवनेश्वर, राष्ट्रीय रासायनिक प्रयोगशाला, पुणे, राष्ट्रीय वनस्पतिक अनुसंधान संस्थान, लखनऊ, राष्ट्रीय पादप आनुवंशिकी संसाधन ब्यूरो, नई दिल्ली, रबड़ अनुसंधान संस्थान, केरल,गन्ना अनुसंधान संस्थान, कोयम्बत्तूर,
केंद्रीय औषधि तथा सुगंधित पौधा संस्थान,लखनऊ आदि।
ब. प्राइवेट : कुछेक निजी संस्थान, जहां पर कॅरिअर शुरू किया जा सकता है :- थापर कारपोरेट आर एंड डी सेंटर, पटियाला, एसपीआईसी विज्ञान फाउण्डेशन, चेन्नै,ईआईडी पैरी एंड कं. बंगलौर, एक्सल
आई लिमिटेड, बंबई, हिंदुस्तान लीवर लि., बाम्बे, इंडो-अमेरिकन हाइब्रीड सीड्स, बंगलौर, रैलीज ;आई लि. बंगलौर,टाटा टी, केरल, बायो-कंट्रोल रिसर्च लैब ;कीट नियंत्रण ;आई लि., बंगलौर, डीजे हैचरीज, बंगलौर आदि।
ख विश्वविद्यालय : लगभग सभी भारतीय विश्वविद्यालयों में प्लान्ट टिशू कल्चर तकनीशियनों, वैज्ञानिकों तथा शिक्षकों की आवश्यकता होती है।
ग टिशू कल्चर उद्योग/वाणिज्यिक सूक्ष्मप्रजनन प्रयोगशाला : भारत में बहुत से प्लान्ट टिशू कल्चर उद्योग हैं, जो तकनीशियनों और वैज्ञानिक अधिकारियों की नियुक्तियां करते हैं। इन कुछेक

उद्योगों की सूची इस प्रकार हैं :-
पुदुमजी प्लान्ट लैबोरेट्रीज, पुणे।
नाथ बायोटैक लि., औरंगाबाद,महाराष्ट्र।
इंडो-अमेरिकन हाईब्रीड सीड्स,बंगलौर।
नोवर्तिस आई लि., मुंबई।
ए.वी. थॉमस एंड कम्पनी, कोचिन।
हैरिसन एंड मालबरम लि., बंगलौर।
बीना नर्सरी ;प्रा. लि., त्रिवेंद्रम।
स्पाइस एग्रो बायोटैक, कोयम्बत्तूर।
पायनियर सीडस कं. लि., दिल्ली।
इंटर-कांटिनेंटल स्टर्लिंग, अहमदाबाद।
इंडो-डच,फरीदाबाद।
कालिंदी बायोटैक, ऋषिकेश।
एग्रीजीन इंटरनेशनल प्रा. लि., शिमला।
महाराष्ट्र हाईब्रीड सीडस कं. लि.,मुंबई।
जैन इरिगेशन सिस्टम्स लि., जलगांव।
आईटीसी एग्रो टैक लि., सिकंदराबाद।
स्वरोजगार के अवसर
रोगमुक्त तथा उत्तम गुणवत्ता के पौधें की बढ़ती मांग ने टिशू कल्चर और सूक्ष्म प्रजनन के क्षेत्र में स्वरोजगार की संभावनाओं को चार चांद लगा दिए हैं। टिशू कल्चरड पौधें की निर्यात की भी अच्छी क्षमता है। सीमित संसाधनों के साथ भी लघु सूक्ष्म प्रजनन इकाई की स्थापना की जा सकती है
जिसमें संबंधित व्यक्ति अच्छे रोजगार के साथ-साथ समाज में नाम भी कमा सकता है।जैव-प्रौद्योगिकी/प्लान्ट टिशू कल्चर तथा सूक्ष्म प्रजनन के क्षेत्र में पाठ्यक्रम संचालित करने वाले कुछ
विश्वविद्यालय/संस्थानों की सूची :-
आईआईटी खडगपुर, दिल्ली, बंबई।
अन्ना विश्वविद्यालय, चेन्नै।
वीआईटी, वेल्लूर, तमिलनाडु।
बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी।
देवी अहिल्या विश्वविद्यालय, इंदौर।
जीबी पंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, पंतनगर, उत्तरांचल।
गोवा विश्वविद्यालय, गोवा।
वनस्थली विद्यापीठ, राजस्थान।
कालीकट विश्वविद्यालय, कोझीकोड।
गुरुनानक देव विश्वविद्यालय, अमृतसर।
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली।
एमएस यूनिवर्सिटी बड़ोदा, बड़ोदरा।
मदुरै कामराज यूनिवर्सिटी, मुदरै।
बिरसा कृषि विश्वविद्यालय, रांची।
विनोबा भावे विश्वविद्यालय, हजारीबाग।
तेजपुर विश्वविद्यालय, तेजपुर।
जम्मू विश्वविद्यालय, जम्म तवी।
पांडिचेरी विश्वविद्यालय, पांडिचेरी।
हैदराबाद विश्वविद्यालय, हैदराबाद।
तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय,कोयम्बत्तूर।
पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय,रायपुर।
हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय, शिमला।
पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़।
मैसूर विश्वविद्यालय, मैसूर।
महात्मा गाँधी विश्वविद्यालय, कोट्टयम।
कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय,कुरुक्षेत्र।
केरल विश्वविद्यालय, त्रिवेंद्रम।
आईएआरआई, नई दिल्ली।

 

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