मंगलवार, 16 दिसंबर 2008

यूं ही कोई बेवंफा नहीं होता........

यूं ही कोई बेवंफा नहीं होता........

निर्मल रानी 163011, महावीर नगर,  अम्बाला शहर,हरियाणा। फोन-09729229728  

 

       हरियाणा की राजनीति के दिग्गज, राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री चौधरी भजन लाल के बड़े बेटे चन्द्रमोहन जो आजकल स्वयं को चन्द्रमोहन के बजाए चांद मोहम्मद कहलवाना पसंद कर रहे हैं, इन दिनों अपने प्रेम प्रकरण एवं तथाकथित धर्म परिवर्तन को लेकर मीडिया की सुंखर्ियों में छाए हुए हैं। विशेषकर हरियाणा की जनता चन्द्रमोहन से जुड़ी ंखबरों में लगभग उतनी ही दिलचस्पी ले रही है जितनी कि मुम्बई आतंकवादी हमले को लेकर भारत व पाक के बीच होती नित्य नई प्रगति से जुड़ी ंखबरों में ली जा रही है। जैसा कि सर्वविदित है कि चन्द्रमोहन गत् दीपावली के समय से रहस्यमयी ढंग से अदृश्य हो गए थे। मीडिया में तत्काल यह ंखबरें भी छपी थीं कि हरियाणा के उपमुख्यमंत्री चन्द्रमोहन लापता हैं। परन्तु गत् सप्ताह उन्होंने अपने प्रकट होने के साथ-साथ एक ऐसा रहस्योद्धाटन भी किया जिससे कि न सिंर्फ राजनैतिक बल्कि प्रदेश के सामाजिक हल्के भी आश्चर्यचकित हो गए। चन्द्रमोहन ने घोषणा की कि उन्होंने इस्लाम धर्म कुबूल कर लिया है तथा उनका नया नाम चांद मोहम्मद है। उनके साथ उनकी नई नवेली धर्मपत्नी भी अचानक प्रकट हुईं। इनका वास्तविक नाम अनुराधा बाली बताया जा रहा है। इन्होंने भी अपना धर्म परिवर्तन करने तथा अपना नया नाम ंफिंजा मोहम्मद होने की बात कही है। यहां यह भी ंकाबिलेंगौर है कि इस विस्ंफोटक रहस्योद्धाटन से पूर्व चन्द्रमोहन हरियाणा के उपमुख्यमंत्री के पद पर शोभायमान थे जबकि उनकी माशूंका अनुराधा बाली पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट में उपमहाधिवक्ता के पद पर आसीन थी। इन दोनों को अपने प्रेम प्रसंगों में सफलता अवश्य मिल गई हो परन्तु दोनों को ही उनके अपने सम्मानित एवं महत्वपूर्ण पदों से तत्काल हटा दिया गया है।

              उधर चन्द्रमोहन की पारिवारिक सूरतेहाल यह बताई जा रही है कि इस ंखबर के आते ही चौधरी भजन लाल ने चन्द्रमोहन को अपनी सम्पत्ति से बेदंखल करने की घोषणा कर दी है तथा उनकी पहली पत्नी सीमा बिश्ोई तथा उससे हुए बच्चों को अपना संरक्षण प्रदान करने का ऐलान किया है। इस विषय पर आगे चर्चा चलाने से पूर्व चन्द्रमोहन के व्यक्तित्व संबंधी एक उदाहरण का उल्लेख करना ंजरूरी है। हरियाणा के पंचकुला क्षेत्र से लगातार 4 बार विधायक चुने जाने वाले चन्द्रमोहन की लोकप्रियता, उनकी सानता, मतदाताओं तथा आम जनता का उनके प्रति स्नेह का अंदांजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अभी कुछ वर्ष पूर्व पंचकुला के एक ऐसे व्यवसायी ने चन्द्रमोहन के प्रति अपनी गहन आस्था व्यक्त करते हुए कांग्रेस पार्टी का दामन थाम लिया था जोकि गत् तीन दशकों से राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का सदस्य था तथा हमेशा से ही कांग्रेस के विरोध में मतदान करता चला आ रहा था। उस व्यवसायी ने सांफ शब्दों में कहा था कि चूंकि उसने अपने पूरे जीवन में चन्द्रमोहन जैसा शरींफ, होनहार, योग्य, ईमानदार, कर्मठ तथा मधुर वचन बोलने वाला राजनीतिज्ञ नहीं देखा इसलिए वे उनके व्यक्तित्व से प्रभावित होकर संघ परिवार से नाता तोड़कर चन्द्रमोहन के नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी की सदस्यता ग्रहण कर रहे हैं। परन्तु आंखिर अचानक ऐसा क्या हो गया कि चन्द्रमोहन जैसे सूझबूझ रखने वाले होनहार एवं समझदार राजनैतिक व्यक्ति को एक ऐसा ंकदम उठाना पड़ा जिसके बदले में उन्हें सर्वत्र आलोचना का ही शिकार होना पड़ रहा है। वैसे तो बशीर बद्र साहब ंफरमाते हैं कि:-

                     कुछ तो मजबूरियां रही होंगी। यूं कोई बेवंफा नहीं होता॥

              परन्तु आंखिर क्या हो सकती है ऐसी मजबूरी जिसने समाज, परिवार, प्रतिष्ठा, पद, राजनैतिक भविष्य, मान-मर्यादा, अपने क्षेत्र के मतदाताओं से निरंतर मिलने वाला अथाह प्रेम आदि सब कुछ दांव पर लगाकर स्वयं को एक चटपटेदार समाचार का सूत्रधार बनाकर रख दिया। ंजाहिर है जहां चन्द्रमोहन द्वारा अपना धर्म परिवर्तन करने तथा साथ ही साथ दूसरी शादी किए जाने की चर्चा में दिलचस्पी लेने वाले लोग इस बात को लेकर भी स्तब्ध हैं कि आंखिर चन्द्रमोहन जैसे समझदार व्यक्ति को इतना बड़ा ंकदम उठाने के लिए क्योंकर मजबूर होना पड़ा। एक राजनैतिक विशेषक होने के नाते मेरा भी यह मानना है कि  चन्द्रमोहन बड़े राजनैतिक परिवार के सदस्य, उपमुख्यमंत्री, एक पति, एक पिता आदि जो कुछ भी थे परन्तु इस वास्तविकता से कौन इंकार कर सकता है कि वे सबसे पहले एक साधारण इंसान भी हैं तथा आम लोगों की तरह उनके भीतर भी साधारण इंसानों की तरह वैसा ही दिल था जोकि आमतौर पर अति संवेदनशील लोगों में होता है। यदि उनकी पारिवारिक परिस्थितियों पर नंजर डाली जाए तो हम देखते हैं कि अभी कुछ वर्ष पूर्व ही चन्द्रमोहन के बड़े बेटे का निधन हो गया था। यह दु:ख उनके लिए कोई छोटा-मोटा सदमा नहीं था। बल्कि इस सदमे ने उन्हें भीतर ही भीतर तोड़कर रख दिया था। उधर उनकी पत्नी सीमा बिश्ोई तथा इनके दो और बच्चे चन्द्रमोहन के बजाए अपने दादा भजन लाल से अधिक प्रभावित थे। दूसरी ओर चौधरी भजन लाल अपने राजनैतिक उत्तराधिकारी के रूप में अपने छोटे बेटे कुलदीप बिश्ोई को 'प्रोजेक्ट' कर रहे थे। ंजाहिर है बड़े बेटे होने के नाते चन्द्रमोहन के दिल में उत्तराधिकारी न बनने की कसक का उठना भी स्वाभाविक है।

              बात सिंर्फ यहीं ंखत्म नहीं होती, बल्कि हरियाणा में जब भूपेन्द्र सिंह हुड्डा को प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया गया तथा चौधरी भजन लाल ने विद्रोही स्वर बुलंद करने शुरु किए उसी समय कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने चौधरी भजन लाल को मुख्यमंत्री पद न दिए जाने के बदले में उनके दोनों पुत्रों को सम्मानपूर्ण स्थान देने का निर्णय करते हुए पहले तो कुलदीप बिश्ोई को भिवानी से कांग्रेस पार्टी का लोकसभा प्रत्याशी बनाया जबकि चन्द्रमोहन को हरियाणा सरकार के उपमुख्यमंत्री पद पर नियुक्ति दे दी। चन्द्रमोहन उपमुख्यमंत्री तो अवश्य बन गए परन्तु चौधरी भजन लाल व कुलदीप बिश्ोई द्वारा साथ ही साथ कांग्रेस की जड़ों को कमंजोर करने जैसा विद्रोही कार्य करना भी शुरु कर दिया गया। ऐसे में प्रदेश सरकार का सचेत रहना स्वाभाविक था। बावजूद इसके कि चन्द्रमोहन कहने को तो प्रदेश के उपमुख्यमंत्री थे परन्तु उनके अधिकार क्षेत्र अत्यंत सीमित थे। सम्भवत: एक साधारण मंत्री से भी सीमित। ऐसे में चन्द्रमोहन द्वारा राजनैतिक घुटन महसूस किया जाना भी एक स्वाभाविक सी बात थी। ंजाहिर है जब चन्द्रमोहन राजनैतिक रूप से होने वाली अपनी इस अवहेलना की जड़ों में झांकते होंगे तो उन्हें नंजर आता होगा अपने पिता और छोटे भाई द्वारा कांग्रेस के विरुद्ध अपनाया जाने वाला विद्रोही स्वर तथा साथ-साथ पिता व छोटे भाई के मध्य उत्तराधिकार सहित अन्य राजनैतिक मुद्दों पर बनने वाला पूर्ण सहमति का वातावरण। मेरे विचार से इन परिस्थितियों में चन्द्रमोहन ही नहीं कोई भी संवेदनशील व स्वाभिमानी व्यक्ति विचलित हुए बिना नहीं रह सकता।

              एक ओर तो चन्द्रमोहन अपनी पत्नी व बच्चों की ओर से अवहेलना का शिकार हो रहे थे तो दूसरी ओर पिता व भाई की ओर से भी उनके भीतर यही एहसास पैदा हो रहा था। ंजाहिर है यदि ऐसे उदास जीवन में आशा, विश्वास तथा अपनत्व की लौ जलाने वाली कोई उम्मीद नंजर आ जाए तो इसमें किसी भी इंसान को आंखिर कैसे और कितना दोषी ठहराया जा सकता है। निश्चित रूप से इस्लाम अपनाना या नाम परिवर्तन करने जैसी बातें तो महंज एक आडम्बर हैं। चूंकि हिन्दू मैरिज ऐक्ट एक साथ दो पत्नियां रखने की इजांजत नहीं देता इसलिए उन्हें इस्लाम की शरण में जाना पड़ा। हालांकि उनकी यह कोशिश भी वैधानिक नहीं है। क्योंकि ऐसे ही एक मामले में उच्चतम न्यायालय 1993 के अपने एक ंफैसले में यह व्यवस्था दे चुका है कि किसी शादीशुदा हिन्दू व्यक्ति द्वारा धर्म परिवर्तन कर दूसरी शादी किए जाने को वैध नहीं ठहराया जा सकता। लिहांजा चन्द्रमोहन प्रकरण के अदालत में जाने के बाद ऐसा नहीं लगता कि उन्हें ंकानूनी तौर पर राहत मिल सकेगी। परन्तु इतना ंजरूर है कि हुस्न और इश्ंक का जादू चन्द्रमोहन के सिर चढ़कर इस ंकद्र बोला कि वे भी विश्वामित्र की तरह स्वयं को इश्ंक और हुस्न के शिकंजे से मुक्त न रख सके। बंकौल शायर:-

   ये इश्क नहीं आसां, बस इतना समझ लीजे। इक आग का दरिया है और डूब के जाना है॥

              निश्चित रूप से चन्द्रमोहन ने इश्ंक रूपी उस आग के दरिया में तैरना शुरु कर दिया है जिसके परिणामस्वरूप उनकी पूर्व पत्नी व बच्चे उनसे रुष्ट हो चुके हैं। पिता ने सम्पत्ति से बेदंखल करने की घोषणा कर दी है तथा सभी संबंध विच्छेद करने की बात कही है। उपमुख्यमंत्री जैसा प्रतिष्ठापूर्ण पद छीना जा चुका है। अपने घर से बेघर हो चुके हैं। यहां तक कि अपने धर्म के बजाए दूसरे धर्म में संरक्षण पाने की कोशिश करनी पड़ रही है। सामाजिक व राजनैतिक हल्ंकों में आलोचना, निंदा तथा भर्त्सना का जो सिलसिला चल रहा है, वह अलग है। अब देखना यह है कि इश्ंक के दरिया में डुबकी लगाकर चन्द्रमोहन उंर्फ चांद मोहम्मद तथा उनकी नई हमसंफर अनुराधा उंर्फ ंफिंजा अपनी नई मंजिलों की दूरियां किन हालात में तय कर पाते हैं।           निर्मल रानी

 

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