गुरुवार, 29 जनवरी 2009

मुम्बई विस्फोटों के बाद सतर्कता और सजगता पर जोर

मुम्बई विस्फोटों के बाद सतर्कता और सजगता पर जोर

किसी समाज का विकास सुनिश्चित करने के लिए निरापद और सुरक्षित वातावरण अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है। समय-समय पर आतंकवादी तत्वों ने अपनी हिंसक कार्यवाइयों के जरिये हमार देश के विभिन्न भागों में शांति भंग करने की कोशिश की है। इस तरह की घटनाओं के कारण निर्दोष लोगों की जाने गईं और सार्वजनिक तथा निजी सम्पत्ति का विनाश हुआ। निरापद और सुरक्षित आंतरिक वातावरण की सर्वोपरि आवश्यकता के महत्त्व को ध्यान में रखते हुए सरकार आतंकवादी तत्वों की विध्वंसकारी गतिविधियों को नियमित करने के लिए सरकार अनेक कदम उठाती रही है । पिछले वर्ष नवम्बर में देश कीवित्तीय राजधानी मुम्बई में कायरतापूर्ण हमलों ने देश को झकझोर दिया । इन हमलों के कारण लोगों में न केवल जागरूकता पैदा हुई अपितु परिणामोन्मुख तरीके से सुरक्षा उपकरणों को और अधिक सशक्त बनाने की आवश्यकता रेखांकित हुई ।

       नई दिल्ली में हाल ही में आंतरिक सुरक्षा के बारे में आयोजित मुख्यमंत्रियों के सम्मेलन मे आतंकवादी खतरे से निबटने की रूपरेखा तैयार की गयी । उन्होंने राष्ट्र के लिए दो लक्ष्य निर्धारित किए । पहला दिनोंदिन बढती ज़ा रही अत्याधुनिक आतंकवादी धमकी से निबटने के लिए तैयारी का स्तर ऊंचा करना और दूसरा, किसी आतंकवादी खतरे या आतंकवादी धमकी की अनुक्रिया की गति या निर्णयात्मकता को और अधिक बढाना । इन दोनों लक्ष्यों को हासिल करने के लिए मुम्बई की घटनाओं के बाद सरकार ने अनेक कदम उठाए हैं ।

बहु-माध्यम केन्द्र

          आतंकवाद से संबंधित सभी खुफिया मामलो से निबटने के लिए 2001 में बनाये गये बहु-माध्यम केन्द्र को पुन:स्थापित और सशक्त किया गया । पहली जनवरी, 2009 से इस केन्द्र ने 24ग्7 आधार पर कार्य प्रारम्भ किया और अब राज्यों तथा केन्द्रशासित प्रदेशों की सरकारी की एजेंसियों के साथ खुफिया जानकारी का आपस में आदान-प्रदान करने के लिए वह बाध्य है । इसी प्रकार अन्य सभी एजेंसियां बहु-माध्यम केन्द्र के साथ खुफिया जानकारी का आपस में आदान-प्रदान करने के लिए बाध्य हैं । कई राज्यों में बहु-माध्यम केन्द्र की सहायक शाखाएं भी कायम की गयी हैं । केन्द्र और राज्य स्तरों पर पूर्ण विश्वसनीय सम्पर्क कायम करने के लिए कार्रवाई शुरू कर दी गयी है ।

विधायी उपाय

       राष्ट्रीय जांच एजेंसी अधिनियम, गैर-कानूनी गतिविधियां (निरोधक( संशोधन अधिनियम तथा आपराधिक दंड - प्रक्रिया (संशोधन( अधिनियम बनाए गए हैं । सरकार ने केन्द्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (अधिनियम( अध्यादेश भी जारी किया गया है । यह भी प्रावधान किया गया है कि जहां भी ऐसी कोई गिरपऊतारी या बरामदगी होगी, इस तरह की व्यक्तियोंवस्तुएंदस्तावेजों को जब्त किया जाता है, बगैर देरी किए, ऐसे निकटतम पुलिस थाने में में जमा कर दिया जाए जो कानून के प्रावधानों के अनुसार उस पर कार्रवाई करे। आतंकवादी अधिनियम की परिभाषा व्यापक बनाई गई है और एआरसी की सिफारिशों को ध्यान में रखते हुए इसके तहत अनेक अतिरिक्त विशिष्ट अपराधों को विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय नियमों आदि, आतंकवाद के सिलसिले भर्ती, प्रशिक्षण और आतंकवाद के लिए वित्त उपलब्ध कराने सहित प्रावधानों आदि को शामिल किया गया है।

आपराधिक दंड प्रक्रिया संहिता (संशोधन) अधिनियम 2008

       अन्य बातों के अलावा राज्य सरकारों द्वारा पीड़ितों के लिए क्षतिपूर्ति की एक व्यापक योजना बनाई गई है ताकि ऐसे अपराधों में, जिसमें सात वष तक कारावास दंड दिया जाता है, मामलों के बार-बार स्थगन के कारण मुकदमों के शीघ्र निबटान की कठिनाइयों, श्रब्य-दृश्य माध्यमों के जरिए पुलिस द्वारा अभियुक्त और गवाहों के बयानों की रिकार्डिंग के प्रावधन को उपलब्ध कराने और वीडियो कान्फ्रेंसिंग के माध्यम से न्यायिक हिरासत में अभियुक्त को और अधिक समय तक रखे रहने जैसी परेशानियों से क्षतिपूर्ति के लिए योजना बनाने का प्रावधान है।

केन्द्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (संशोधन) अध्यादेश 2009

       निजी और संयुक्त उद्यम के उद्योगों ने अर्थव्यवस्था की वृध्दि में पर्याप्त योगदान किया है, लेकिन आतंकवादी तत्वों की बढती हुई गतिविधियों के कारण भी सुरक्षा का आश्वासन चाहते हैं। इसलिए सीआईएसएफ अधिनियम 1968 के सम्बध्द अंशों में संशोधन किया गया है जिससे लागत पुनर्भुगतान आधार पर निजी क्षेत्र और संयुक्त उद्यमों को भी सुरक्षा के लिए सीआईएसएफ को तैनात करने के प्रावधान को लागू किया जा सकता है। इससे धमकी का अनुमान लगाकर उसके अनुसार निजी और संयुक्त क्षेत्र के उद्यमों के लिए सीआईएसएफ की तैनाती का प्रावधान शामिल किया जा सके।

तटवर्ती भागों की सुरक्षा

       मुम्बई में हुए आतंकवादी हमलों ने देश की समुद्री तट रेखा की सुरक्षा व्यवस्था की ओर हमारा ध्यान और अधिक आकृष्ट किया है। जनवरी, 2005 में मंत्रिमंडल समिति ने एक तटवर्ती सुरक्षा स्कीम तैयार करके उसकी स्वीकृति दी थी, उस पर पांच वर्षों से अधिक समय तक 400 करोड़ रुपये का गैर-आवर्ती व्यय तथा ईंधन, जहाजों की मरम्मत एवं रख-रखाव तथा जहाजों की मरम्मत और कार्मिकों के प्रशिक्षण पर 151 करोड़ रुपये की आवर्ती व्यय का प्रावधान किया गया है।

       समुद्रतटीय सुरक्षा स्कीम के अंतर्गत 73 तटीय सुरक्षा स्कीम 73 तटवर्तीय पुलिस थाने, 97 चेक पोस्ट, 58 आउटपोस्ट तथा 30 संरचनात्मक बैरकों के निर्माण की स्वीकृति दी गई है। पुलिस थाने को 204 गश्ती बोट उपलब्ध कराई जाएंगी जो आधुनिक नौवहन तथा समुद्री जहाज और सम्बध्द उपकरणों से सज्जित होगी। 153 जीपों तथा 312 मोटर साइकिलों के लिए भी अनुमोदन कर दिया गया है। प्रत्येक पुलिस के लिए कम्प्यूटरों और अन्य उपकरणों के लिए 10-10 लाख रुपये की एकमुश्त रकम उपलब्ध कराई जाएगी।

       हाल में सम्बध्द राज्यों एवं मंत्रालयोंएजेंसियों के साथ अनेक उच्चस्तरीय समीक्षा बैठकें कराई गईं जिनमें समुद्रतटीय सुरक्षा और मजबूत बनाने के लिए आवश्यक कदम उठाने और अंतर्राज्यीय गिरोहों की पहचान करके उन्हें पूरा करने के लिए उनके खिलाफ जरूरी कारवाई करने का निश्चय किया गया। इनमें मछली पकड़ने वाले तथा अन्य जहाजों एवं नौकाओं का अनिवार्य रूप से पंजीकरण कराने, मछुआरे के लिए पहचान पत्र जारी करने तथा टोही जहाजों और निगरानी प्रणालियों की व्यवस्था आदि शामिल हैं।

राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड व्यवस्था

       देश के विभिन्न भागों मे राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड की व्यवस्था कायम करने का केन्द्र सरकार का प्रस्ताव है। कोलकात्ता, मुम्बई, चेन्नई और हैदराबाद में मुख्य केन्द्र स्थापित किए जाएंगे। कुछ अन्य नगरों में रक्षाबलों द्वारा प्रशिक्षित आतंकवाद -विरोधी बल उपलब्ध कराये जाएंगे। उदाहरणार्थ, बंगलुरू को सेना की विशिष्ट यूनिटों की सुविधा दी जाएगी। राज्य सरकारों से आग्रह किया गया है कि इस मामले में अपने यहां के आतंकवाद- निरोधक बलों का कुछ योगदान करके आवश्यक पूर्ति करें। ऐसे कर्मचारियों की नियुक्ति एवं प्रशिक्षण के मामले में केन्द्र सरकार राज्यों की सहायता करेगी। देश के विभिन्न भागों में 20 उपद्रव-विरोधी तथा आतंक-विरोधी स्कूलों की स्थपना का कार्य प्रगति पर है इनमें राज्य पुलिस बलों की कमांडो यूनिटों को प्रशिक्षण देने का कार्यक्रम चल रहा है।

       सरकार तैयारियों के स्तर में वृध्दि के लिए और उपाय कर रही है और आतंकवाद की चुनौती का सामना करने के लिए और भी आवश्यक कार्रवाई कर रही है। लेकिन इन सभी उपायों का अपेक्षित परिणाम तभी मिल सकेगा जब इस दिशा में मिलजुलकर समग्र प्रयास किया जाए। राज्य सरकारों, गैर-सैनिक सामाजिक संगठनों तथा सभी लोगों को एकजुट होकर यह सुनिश्चित करना होगा कि आतंकवादियों के मंसूबे पूरे न होने पाएं। मुम्बई में हुए आतंकवादी हमलों की प्रतिक्रियास्वरूप हमारी एकजुटता और बढे अौर आतंकवादियों के खिलाफ हमारा मोर्चा अत्यधिक प्रभावशाली हो।

केन्द्रीय गृह सचिव, गृह मंत्रालय

 

सोमवार, 26 जनवरी 2009

नौजवानों में एक जज्बा है भारत मां की रक्षा का

नौजवानों में एक जज्बा है भारत मां की रक्षा का

सेना मे भर्ती होने आये नौजवानों से बातचीत

ग्वालियर 23 जनवरी 09। भारत मां की रक्षा के लिये वैसे तो देश भर के े हजारों जवान भारत की सीमाओं पर तैनात है किन्तु भारत मां की रक्षा के लिये मुरैना भिण्ड जिले के नौजवानों में आज भी वहीं कुर्वानी का जज्बा है कि वे देश की सीमाओं पर तैनात हों और देश की रक्षा कर सके। यह उनके लिये गर्व की बात है।

       आज ग्वालियर में सेना में भर्ती होने आये कुछ नौजवानों से बातचीत की गई। उनमें शिवपुरी जिले के पिछोर तहसील के सुजावल ग्राम के निवासी बासुदेव कुमार शर्मा का कहना था कि वह देश की सुरक्षा के लिऐ सेना में आर्टिलरी में तोपची बनना चाहता है। उसका चचेरा भाई भी फौज में तैनात है। 22 वर्षीय उमाशंकर कुशवाह शिवपुरी जिले के डाबरदेई गांव का  निवासी है वह क्लर्क बनना चाहता है क्योंकि उसने प्राइवेट क्लर्क के रूप में काम भी किया है।

       20 वर्षीय करैरा तहसील के झण्डा गांव के निवासी सतेन्द्  िंह तोमर का कहना था कि वह ईमानदार रह सके इसलिये फौज में नौकरी करना चाहता है वह मूलत: किसान का बेटा है उसके दो भाई और तीन बहिनें हैं

       ग्वालियर के सेना के मेजवान भर्ती अधिकारी कर्नल अरूण यादव ने बताया कि 19 जनवरी से सेना में भर्ती की जा रही है और 25 जनवरी तक जारी रहेगीै। इस भर्ती प्रक्रिया के लिए रायपुर से कर्नल गुजराल, भोपाल से कर्नल सत्येन्द्र कौशल जवानों की भर्ती कराने हेतु ग्वालियर आये हैं। भर्ती प्रक्रिया में पूर्ण पारदर्शिता का पालन किया जा रहा है।

       कर्नल यादव ने बताया कि 19 जनवरी को नर्सिंग सहायक को छोडकर अन्य तकनीकी ट्रेड में 12 जिलों के नवयुवकों की भर्ती की जा रही है। 19 जनवरी को 1100 नवयुवक शामिल हुए जिनमें 963 युवक दौड़ में शामलि होने योग्य पाये गये। जिनमें से 476 ने सुनिश्चित समय सीमा में दौड़ पूरी की। उनमें से 205 नवयुवकों को मेडीकल जांच के लिए अनुशंसित किया गया।

20 जनवरी को भिण्ड व श्योपुर जिले से 5500 नौजवान भाग लेने आये जिनमें से 4100 नौजवान दौड में शामिल होने योग्य पाये गये। इनमें 546 भिण्ड जिले के व 9 श्योपुर जिले के नवयुवक पास हुए (कुल 555 पास हुए) जिनमें से 319 को मेडिकल परीक्षण हेतु अनुशंसित किया गया। 21 जनवरी को पन्न, छतरपुर व दतिया व दमोह जिलों से 1100 नवयुवक भर्ती में शामिल हुए उनमें से 697 युवक दौड़े जिनमें से 204 युवक पास हो सके तथा इनमें से 130 युवकों को मेडिकल परीक्षण हेतु भेजा गया।

22 जनवरी को मुरैना जिले से 6 हजार युवक सेना में भर्ती होने की तमन्ना लेकर आये जिनमें से 4325 युवकों ने दौड़में भाग लिया उनमें से 586 युवक पास हुए जिनमें से 397 युवको को मेडिकल परीक्षण हेतु भेजा गया। इसी प्रकार 23 जनवरी को टीकमगढ़ , शिवपुरी एवं अशोकनगर जिलों के युवकों की भर्ती की गई। आज 1500 नवयुवक भर्ती होने आये जिनमें से 1074  युवकों को दौड़ के योग्य पाया गया जिनमें से 283 नवयुवक पास हो सके। मेडीकल परीक्षण हेतु भेजे जाने की प्रक्रिया अभी जारी है।

 

कृषि विश्वविद्यालय में तुअर के संकर बीज का प्रथम उत्पादन

कृषि विश्वविद्यालय में तुअर के संकर बीज का प्रथम उत्पादन

ग्वालियर 23 जनवरी 09। दुनिया में पहली बार तैयार किये गये तुअर के प्रथम संकर बीज का उत्पादन कार्यक्रम राजमाता विजयराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय ग्वालियर के प्रक्षेत्र पर किया जा रहा है। आई सी पी एल. -2671नामक इस संकर तुअर से किसानों की उपज में 60 प्रतिशत तक वृध्दि हो सकेगी।

       जानकारी देते हुए विश्वविद्यालय के संचालक प्रक्षेत्र डॉ. एच एस. यादव ने बताया कि तुअर में पहली बार संकर बीज का उत्पादन विश्वविख्यात, इक्रीसेट हैदरवाद के द्वारा वर्षों के अनुसंधान के आधार पर करना संभव हुआ है। जीवद्रवीय नरवधन्ता आधारित तकनीक से इसका विकास हुआ है। कुलपति प्रोफेसर विजय सिंह तोमर एवं संचालक अनुसंधान डॉ. एस के. श्रीवास्तव के मार्गदर्शन में इक्रीसेट के सहयोग से कृषि विश्वविद्यालय ग्वालियर के द्वारा बड़े पैमाने पर अपने यहां इसका बीजोत्पादन कार्यक्रम लिया गया है। तुअर के इस नये संकर बीज को बोकर किसान अपनी फसल में 60 प्रतिशत तक की वृध्दि प्राप्त कर सकते हैं। यह संकर किस्म का बीज 180 दिन में पकने वाली है तथा उखटा रोग प्रतिरोधी होने से भी किसानों के लिए उपयोगी हो सकती है। उन्होंने बताया कि प्रक्षेत्र प्रभारी डॉ. सुधांषु जैन की देखरेख में इसके जनक लगाये गये हैं। तथा अप्रेल-मई में किसानों के लिए संकर बीज उपलब्ध होने की संभावना है। कृषि प्रक्षेत्र पर हो रहे इस बीजोत्पादन के लिए कुलपति डॉ. तोमर ने वैज्ञानिकों की सराहना करते हुए आशा व्यक्त की कि तुअर का प्रथम संकर बीज क्षेत्रीय किसानों को विशेष लाभकारी होगा।

 

मंगलवार, 20 जनवरी 2009

ई शासन- सवालों व संभावनाओं और घने बादलों के पीछे चमकता भारत का भविष्‍य का सूर्य

ई शासन- सवालों व संभावनाओं और घने बादलों के पीछे चमकता भारत का भविष्‍य का सूर्य

नरेन्‍द्र सिंह तोमर ''आनन्‍द''

किश्‍तबद्ध आलेख भाग-1

भारत में महाराजा विक्रमादित्‍य का साम्राज्‍य रहा हो या कौटिल्‍य चाणक्‍य के समय की शासन प्रणाली रही हो या फिर राजा राम का राम राज्‍य हो सभी ऐतिहासिक तथ्‍य कम से कम भारत में एक सर्वोत्‍तम सुशासन प्रणाली के पूर्व से अवस्थित रहने की ओर ही संकेत करते हैं ।

सुशासन, पारदर्शिता, न्‍यायप्रियता और दूध का दूध और पानी का पानी, सत्‍यवादिता, निष्‍पक्ष कर्म जैसी मूल बातें भारत की आत्‍मायें हैं और इनके बगैर भारतवर्ष की कल्‍पना असंभव है ।

कोई कितना भी झुठलाये और कितना भी बल और छल के साथ सम्‍पूर्ण ताकतवर होकर भारत की इन मूल भावनाओं को धक्‍का देकर कितना भी भ्रष्‍टाचार फैलाता फिरे या जानकारीयों व सूचनाओं को अपारदर्शी बना कर पारदर्शिता पर कुहासा फैलाये कितना भी अन्‍याय की शक्ति का महिमा बखान करता फिरे अंतत: उसे मात ही खानी पड़ेगी । सत्‍य, न्‍यायप्रियता और सुशासन, ईमानदारी, परहितवाद आतिथ्‍य जैसी परम्‍परायें व संस्‍कार भारत की आत्‍मा में ही केवल नहीं रचते बसते अपितु रग रग में विद्यमान हैं ।

भारत में लंकाधीश रावण का भी साम्राज्‍य का भी इतिहास है तो कंस के अत्‍याचारों की कथायें भी विद्यमान हैं, दुर्योधन के अन्‍यायी कृत्‍यों की कथाओं से भारत का इतिहास भरा है तो कहीं आल्‍हा जैसे महाकाव्‍य में छल कपट और कूटनीति जैसे दुश्‍चारित्रिक उपाख्‍यान भरे हैं तो इन्‍हीं के साथ हमारा विलक्षण व अद्वितीय इतिहास सत्‍य की असत्‍य पर विजय, अन्‍याय पर न्‍याय का अंतत: साम्राज्‍य, कुशासन पर सुशासन का राज्‍य, राम की रावण पर विजय, कृष्‍ण की कंस पर विजय, पाण्‍डवों की कौरवों पर विजय, आल्‍हा, ऊदल, मलखान, इंदल जैसे वीरों की विजय कथायें भी भारत की असल आत्‍मा का ही बोध करातीं हैं । भारत में अँधेरे के राज, असत्‍य के साम्राज्‍य और अन्‍याय की आंधीयाँ आते जाते रहे हैं इनसे प्रकाश, सत्‍य और न्‍याय का युद्ध युगों से चला आ रहा है, वे भी युग युग में प्रकट हुये तो वे भी हर युग में आये । यानि दोनों शक्तियों का अस्तित्‍व और संघर्ष भारत में युगों से होता आया है । बस राक्षस और दैत्‍य अपने नाम और रूप बदल बदल कर आते रहे इसी प्रकार राम और कृष्‍ण भी इनसे लड़ने हर युग में नाम और रूप बदल बदल कर आते रहे ।

वर्तमान परिप्रेक्ष्‍य में दैत्‍यों और राक्षसों ने कुशासन, भ्रष्‍टाचार और अन्‍याय अत्‍याचार के रूप में अपना राज कायम किया है और अपारदर्शिता के मायाजाल में अपने पापों को ढंकने के बेहतरीन इंतजामात के साथ ताकि लम्‍बे समय तक इनके पापों और कुकर्मों के भेद न खुल सकें ।

ई शासन और कुशासन का युद्ध

जैसा कि ऊपर दृष्‍टान्‍तात्‍मक विवरण से इतना तो स्‍पष्‍ट हो ही गया होगा कि सतयुग, त्रेता और द्वापर युग के दैत्‍यों और राक्षसों ने कलयुग में कई रूपों में जन्‍म ले लिया है और निरीह जनता यानि आम आदमी को सताने और उसका रक्‍त पीने व चूसने का काम करने इन ताकतों का अंदाज और स्‍टायल भी नया और आधुनिक यानि मायावी है या‍नि कहीं भ्रष्‍टासुर दो रूपये से लेकर करोड़ों तक के भ्रष्‍टाचार से जनता का लहू चूसने में लगा है तो कहीं कहीं आतंकासुर और बमासुर जगह जगह खून की नदियॉं बहातें फिर रहे हैं, कहीं दूसरी जगह इनका अवतार अन्‍यायासुर के रूप में हुआ है जो फर्जी केसों में लोगों को फंसाने से लेकर फांसी के फन्‍दे से हलाल करने में या जेल में सड़ा सड़ा कर कष्‍ट पीड़ा देने के कारोबार में लगे हैं ।

कहीं तो ठेकासुर चन्‍द चॉंदी के सिक्‍कों के लिये या घर परिवारी भाई भतीजों के कल्‍याण के लिये ठेके बांटने में लगे हैं । कही कहीं दैत्‍यराजों के अवतार बकासुरों यानि बक बक कर भाषण झाड़ू फर्जी खोखले वादासुर नेताओं के रूप में जनम पड़े हैं । कुल मिला कर आप अपने आप को कहीं बलात्‍कासुर तो कहीं भ्रष्‍टासुर या अफवाहासुर किसी न किसी असुर से घिरा पायेंगें कहीं चुगली करते चुगलासुर तो कहीं भ्रष्‍टाचार कर अपारदर्शिता की आड़ में खाये पीये को हजम करते जुगाली करते डकारासुर नजर आयेंगें । इन चौतरफा असुरों की भीड़ के बीच भी आम आदमी जिन्‍दा है, भारत जिन्‍दा है यह हैरत की बात है, विलक्षण बात है ।

विलक्षण के साथ हैरत अंगेज यह भी है कि एक भ्रष्‍टासुर दूसरे भ्रष्‍टाचारासुर का वक्‍त पड़ने पर खून पीने से बाज नहीं आता । यानि सिपाही भी टी.आई. से रिश्‍वत पा जाता है ।

फिर भी भारत जिन्‍दा है हैरत अंगेज है, भारतवासी जिन्‍दा हैं करिश्‍मा है । फिर भी भारत लड़ रहा है यह काबिले तारीफ है । आखिर क्‍यों न हो श्रीकृष्‍ण ने कहा कि '' यदा यदा हि धर्मस्‍य ग्‍लानिर्भवति भारत........संभवामि युगे युगे ''

खैर श्रीकृष्‍ण तो फिलहाल आने से रहे आखिर आई.पी.सी. (भारतीय दण्‍ड संहिता) की पूरी 511 धारा श्रीकृष्‍ण पर लागू होती हैं । श्रीकृष्‍ण ने जो भी किया आई.पी.सी. में वह अपराध है, श्रीकृष्‍ण की श्रीमद्भागवत या हरिवंश पुराण या महाभारत उनके अपराधों का साक्ष्‍य प्रमाण संग्रह यानि अपराध शास्‍त्र है और अंग्रेजों ने सन 1860 में आई.पी.सी. बना डाली कि श्रीकृष्‍ण और उसकी विचारधारा को ब्‍लॉक करिये, क्‍योंकि उस समय देश में जितना भी क्रान्तिकारी पैदा हो रहा था, सबके सब श्रीकृष्‍ण की गीता पढ़ कर आ रहे थे और क्रान्ति, आजादी के नाम पर बगावत का झण्‍डा उठा लेते थे । अँग्रेजो के लिये श्रीकृष्‍ण को रोकना जरूरी था, श्रीकृष्‍ण की विचारधारा पर लगाम लगाना जरूरी था (श्रीकृष्‍ण की विचार धारा घोड़ा नहीं है भईये पर का करिये ये हमारी बोलचाल और बात समझाने का लहजा है भईये म.प्र. के भ्रष्‍टासुर कर्मचारीगण नोट करें, भईया हम अपने शब्‍द वापस नहीं लिया करते ) सो अँग्रेज आई.पी.सी. रच लाये, श्रीकृष्‍ण का अवतार प्रतिबंधित हो गया और यदा यदा हि धर्मस्‍य सदा के लिये ब्‍लॉक हो गया । चलो अँग्रेज भईयों को ये करना था ये उनकी मजबूरी थी लेकिन । श्रीकृष्‍ण को हम आज तलक राके हैं, उसे अवतार नहीं लेने दे रहे आज तक अँग्रेजों की बनाई आई.पी.सी. सन 1860 से देश चला रहे हैं । आजादी के 62 साल बाद भी अँग्रेजों के कानून से देश चला रहे हैं, हमारे पास कानून के नाम पर अँग्रेजों की सड़ी रद्दी कानूनी किताबों को उलटपुलट कर धूल झड़ाने (संशोधन) का काम केवल बचा है । अब सवाल ये है, कि फिर हम आजादी की लड़ाई किससे लड़ रहे थे अँग्रेजो से या अँगेजों की नीतियों व कानूनों के खिलाफ । अगर उनके कानून ठीक ठाक थे तो फिर अँग्रेजों को यहॉं से विदा करने की जरूरत ही क्‍या थी । जित्‍ते मुठ्ठी भर संशोधन हमने 62 साल में रचे उससे ज्‍यादा तो अँगेज केवल एक चार्टर से या एक नये कानून से कर देते । क्‍या सच में हम आजाद हो गये । हॉं हम आजाद हो गये लेकिन विरासत को सहेजे हैं, कानूनों के रूप में भी, वे भी देश में कृष्‍ण को जन्‍म नहीं लेने देना चाहते थे हम भी 62 साल से नहीं लेने दे रहे । हममें और अँग्रेजों में फर्क क्‍या है । यानि यहॉं भी कहीं न कहीं अंधकासुर छिपा बैठा है ।

खैर आप सोचिये अब ई शासन और सुशासन पर लिखना ही है तो यह आलेख किश्‍तबद्ध रूप में चलेगा आप तब तक इतने पर विचार करिये मैं दूसरी किश्‍त की तैयारी करता हूँ । इस आलेख के साथ आप मानसिक तैयारी व आत्मिक तैयारी के साथ मेरे साथ भारत में सुशासन या ई शासन लाने को तैयार रहिये मैं आपको बताऊंगा कि क्‍यों नहीं आ पा रहा सुशासन और क्‍यों नहीं लागू हो पा रहा ई शासन । लेकिन यदि हर भारतवासी ने यदि ठान लिया कि नहीं नहीं बस बहुत हो लिया अब तो सुशासन होना ही चाहिये, तो मैं कहता हूँ कि यह बहुत आसान है और महज हमसे चन्‍द कदम भर यह दूर है तथा केवल चन्‍द पलों की बात है ।    क्रमश: अगले अंक में जारी .............