रविवार, 12 जुलाई 2009

शिवपुरी में होती है मूंगफली की सर्वाधिक पैदावार

शिवपुरी में होती है मूंगफली की सर्वाधिक पैदावार

खेती में उन्नत बीजों का करें प्रयोग

ग्वालियर, 12 जुलाई 09/ मध्य प्रदेश की कुल मूंगफली पैदावार में सबसे बडा हिस्सा ग्वालियर संभाग के शिवपुरी जिले का रहता है जो लगभग 29 प्रतिशत है। शिवपुरी जिले को मूंगफली जिला बनाने के प्रयास किये जा रहे हैं। हाल ही में इस दिशा में एक करोड़ 25 लाख रूपये की योजना बनाकर राज्य शासन को भेजी जाने की जानकारी प्राप्त हुई। उल्लेखनीय है कि शिवपुरी में मूंगफली की औसत पैदावार 1489 किलोग्राम प्रति हैक्टर है जो प्रदेश की औसत पैदावार 1155 तथा राष्ट्रीय पैदावार 1364 किलोग्राम प्रति हैक्टर से भी अधिक है।

 

मध्यप्रदेश में मूंगफली की खेती

 

जिला

 

क्षेत्र

(000 हेक्टेयर)

 

शिवपुरी

 

64

 

29

 

छिन्दवाड़ा

 

28

 

13

 

बड़वानी

 

17

 

8

 

टीकमगढ़

 

16

 

7

 

झाबुआ

 

15

 

7

 

खरगौन

 

15

 

7

 

      मूंगफली शिवपुरी जिले की प्रमुख तिलहनी फसल है जिसे खरीफ में बोया जाता है । जिले मे मूंगफली की खेती परम्परागत ढंग से की जाती है । आम तौर पर मानसून वर्षा के साथ मूंगफली की बुआई प्रारम्भ हो जाती है। मूंगफली की स्थानीय किस्में जमीन पर फैलने वाली एवं देर से पकने वाली होने के कारण कम लाभकारी रहती है। इन कमियों को दूर करने की दिशा में कृषि वैज्ञानिक किसानों को मूंगफली की जल्दी पकने वाली किस्मों का उपयोग करने की सलाह देते हैं । मूंगफली फसल का राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान केन्द्र जूनागढ़ गुजरात में हैं । जहाँ से अच्छी वैरायटी के मूंगफली बीज प्राप्त किये जा सकते हैं। पानी की अच्छी निकासी वाली हल्की से मध्यम किस्म की रेतीली, कछारी या दोमट भूमि मूँगफली की खेती हेतु सर्वथा उपयुक्त रहती है। उन्नत किस्म के स्वस्थ बीजों से अच्छी पैदावार प्राप्त होती है।

टी-124 तथा टी.बी.26 नई अधिक उत्पादक किस्में हैं जिन्हें खरीफ व ग्रीष्मऋतु में आसानी से उगाया जा सकता है। मानसून की बरसात से मूंगफली की बुआई प्रारम्भ हो जाती है । कतार से कतार की दूरी एक फुट तथा पौधों के बीच की दूरी चार-चार इंच रखी जाती है । फसल को बीमारी से बचाने और अच्छे अकुंरण के लिए फफूंदनाशक दवा से बीज उपचार करना जरूरी है । बोने के पहले 3 ग्राम थीरम या एण्डोफिल एम-45 या 2 ग्राम बावस्टिन दवा प्रति किलोग्राम बीज के हिसाब से बीज उपचार किया जावे।

      फफूंदनाशक दवा उपचार के बाद बोने के ठीक पहले बीजों में राइजोबियम का टीका (जीवाणु खाद) लगाना बहुत लाभदयक माना गया है। प्रति हैक्टर 500 ग्राम की दर से कल्चर का उपयोग करें। बीज (दानों) पर पानी के छीटें लगाकर कल्चर मिलायें और तत्काल बोनी करें। कल्चर उपचारित बीजों को धूप में नहीं सुखायें। औसतन एक हैक्टर में एक क्विंटल से सवा किवंटल तक बीज बोया जाता है।

      मूंगफली में तेल की मात्रा बढ़ाने के लिए जिप्सम का उपयोग लाभदयक पाया गया है। इसके लिए प्रति हेक्टर 20-25 किलो ग्राम जिप्सम खाद बोने के 20-25 दिन पहले खेत में डालकर अच्छी तरह मिला दें। खेत की तैयारी के समय देसी अथवा गोबर खाद 200 क्विंटल प्रति हैक्टर की दर से डालें। इसके अलावा उर्वरक के रूप में 20 किलो ग्राम नत्रजन, 60-80 किलोग्राम स्फुर और 20 किलो ग्राम पोटाश प्रति हैक्टर के हिसाब से बोनी के पूर्व खेत में डालें। स्फुर तत्व की कमी वाले क्षेत्र में 80 किलो ग्राम स्फुर डालना चाहिए। साथ ही गंधक एवं जिंक सल्फेट 25 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर का प्रयोग कर अच्छा उत्पादन लिया जा सकता है ।

      फसल बोने के 10 दिन बाद दो-तीन निंदाई -गुड़ाई करें । ताकि खरपतवारों की समुचित रोकथाम की जा सके । नींदानाशक दवाओं के उपयोग से खरपतरवारों का नियंत्रण करने के लिए अकुंरण के पहले पेन्डीमेथालिन या मेटोलाक्लोर या एलाक्लोर एक कि.ग्रा.  प्रति हैक्टर सक्रिय तत्व अथवा बोने से पूर्व (खेती की आखिरी वखरनी पर) फ्लूक्लोरालिन 1.10 कि.ग्रा.प्रति हैक्टर सक्रिय तत्व की मात्रा को 600 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें इस दवा को बोनी के पूर्व खेत में बखर से मिलाना चाहिए । एक माह की फसल होने पर (अन्तिम निंदाई के समय) रीजर द्वारा पौधों पर मिटटी चढ़ायें । इससे फलियों को बढ़ने में मदद मिलेगी । ध्यान रखें कि बोने के 6 सप्ताह बाद निंदाई -गुड़ाई न करें । सितम्बर अथवा अक्टूबर माह में जब फलियों में दाने पकने की अवस्था हो, वर्षा न होने या कम होने की स्थिति में एक या दो बार सिंचाई करें । इससे पैदावार अच्छी मिलती है ।

      थ्रिप्स, सफेद मक्खी एवं लीफ माइनर आदि कीट के प्रकोप से बचाव के लिये डाइमिथोयट 30 ई.सी.650 मि.ली.हैक्टर अथवा क्यूनलफास 25 ई.सी.का 700 मि.ली.या मोनोक्रोटोफास 36 एम.एल.600 मि.ली. प्रति हैक्टर का छिड़काव करना चाहिए । लाल बालों वाली इल्ली के लिए मिथाइल पैराथियान 2 प्रतिशत चूर्ण का 25 से 30 किलोग्राम प्रति हैक्टर प्रारंभिक अवस्था में भुरकाव या पैराथियान 50 ई.सी.का 700 से 750 मि.ली.हैक्टर के मान से छिड़काव करें । साथ ही प्रभावित पत्तियों को भी समय-समय पर नष्ट करते रहें ।

      सफेद ग्रब के लिए मिट्टी के छिपे भृगों को बाहर लाने के लए मई-जून के महीने में खेत की दो बार जुताई करना चाहिए । अगेती बुआई (10-20 जून के बीच ) करना चाहिए । समस्या वाले क्षेत्रों की मिट्टी में फोरेट 10 जी की 25 कि.ग्रा.प्रति हैक्टर या कारबोफ्यूरान  3 जी की 30 कि.प्रति हैक्टर की दर से डालना चाहिए । बीज को फफूंदनाशक उपचार से पहले क्लोरापाइरिफास 20 ई.सी.के साथ 12.5 मि.ली.प्रति किलो की दर से उपचार कर छाया में सुखा लेना चाहिए । इसके बाद बोनी करना चाहिए । फसल में टिक्का रोग की रोकथाम के लिए बोने के 4-5 सप्ताह से प्रारंभ कर पुन: दो-तीन सप्ताह के अन्तर से  बेविस्टीन 0.05 प्रतिशत तथा डायथेन एम- 45 0.2 प्रतिशत का छिडकाव करना चाहिए । कालर सड़न या शुष्क जड़ सड़न से बचाने के लिए बीज को 5 ग्राम थाइरम अथवा 3 ग्राम डाइथेन एम-45 या दो ग्राम बैक्स्टीन प्रति किलो ग्राम बीज की दर से उपचार करना चाहिए ।

 

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