बुधवार, 27 फ़रवरी 2008

केन्द्रीय बजट-कर मामले

केन्द्रीय बजट-कर मामले

क्या वित्त मंत्री वर्ष 2008-09 के बजट में करों में कटौती करेंगे, यह सवाल आज सभी के मस्तिष्क में घूम रहा है, चाहे वे कम्पनी क्षेत्र में हों, व्यावसायिक हों अथवा 'आम आदमी'। बजट से पहले के माहौल में अटकलें लगाई जा रही है कि बजट लुभावना होगा या मौजूदा वैश्विक आर्थिक परिदृश्य को देखते हुए संतुलित रखा जायेगा। किसी भी सरकार के लिए राजस्व का मुख्य स्रोत कराधान होता है, जिसे छेड़ना किसी भी वित्त मंत्री के लिए कठिन कार्य है। प्रत्यक्ष कर वसूली में प्रफुल्लता की स्थिति है लेकिन परोक्ष कर का परिदृश्य उतना अनुकूल दिखाई नहीं देता। कराधान योजनाओं को अंतिम रूप देने में सीमा शुल्क राजस्व में बढ़ोतरी की दर में मंदी और उत्पाद राजस्व में कमी स्वाभाविक रूप से वित्त मंत्री के समक्ष मुख्य समस्याएं हैं। इस तरह उम्मीद की जा रही है कि वित्त मंत्री प्रत्यक्ष और सेवा करों के जरिये आय बढ़ाने पर अधिक ध्यान केन्द्रित करेंगे।

       किंतु, यह भी विचारणीय होगा कि वित्त मंत्री अर्थव्यवस्था में तीव्र विकास की पृष्ठभूमि में बजट पेश करने जा रहे हैं, तो क्या यह सुकून रूपी घटक बजट में कोई भूमिका अदा नहीं करेगा। पिछले वर्ष सकल घरेलू उत्पाद में 9.4 प्रतिशत की वृध्दि दर दर्ज हुई है, जिसे देखते हुए 2007-2008 के दौरान भी वृध्दि दर 9 प्रतिशत से उपर रहने की संभावना है। वार्षिक मुद्रास्फीति की दर, जो थोक मूल्य सूचकांक पर आंकी जाती है, उसके 4 से 5 प्रतिशत के बीच रहने की संभावना है। दूसरी ओर, भारत में अनाज का उत्पादन चालू वित्त वर्ष के दौरान 20 करोड़ टन होने का अनुमान है। इससे खाद्य सुरक्षा को लेकर सुकून घटक और बढ़ने की उम्मीद है। भारत वैश्विक स्थितियों खासकर कच्चे तेल की आसमान छूती कीमतों से अलग-थलग नहीं रह सकता।

       राजकोषीय स्थिति में भी सुधार हुआ है। सकल घरेलू उत्पाद से सम्बध्द कुल राजकोषीय घाटे में 2006-07 में पर्याप्त गिरावट आयी है और 2007-08 में भी इसमें और कमी आने की संभावना है। चालू वित्त वर्ष के दौरान इसके सकल घरेलू उत्पाद के 2.6 प्रतिशत पर पहुंच जाने की उम्मीद है, जो अनुमानित 3.3 प्रतिशत की तुलना में 70 आधार अंक कम होगा। राजस्व घाटे में भी सुधार हुआ है और यह सकल घरेलू उत्पाद के करीब 0.9 प्रतिशत के आसपास रहने की उम्मीद है, जो 2007-08 के बजट में लक्षित 1.5 प्रतिशत की तुलना में 60 आधार अंक कम होगा। सरकार को उम्मीद है कि वह 2008-09 के अंत तक राजस्व घाटे को शून्य पर पहुंचाने का लक्ष्य हासिल कर लेगी। वर्ष 2008-09 राजकोषीय उत्तरदायित्व एवं बजट प्रबंधन अधिनियम 2003 का अंतिम वर्ष होगा।

       किंतु सुधार का सबसे महत्वपूर्ण और उल्लेखनीय स्रोत केन्द्रीय करों की वसूली के रूप में सामने आया है। मुख्य रूप से व्यक्तिगत और कम्पनी करों की वसूली में खासा इजाफा हुआ है। प्रत्यक्ष कर राजस्व 3,25,000 करोड़ रुपये रहने का अनुमान है, जो बजट अनुमानों की तुलना में 68,000 हजार करोड़ रुपये अधिक होगा। परोक्ष कर राजस्व भी बजट अनुमानों की तुलना में करीब 4,000 करोड़ रुपये अधिक रहने का अनुमान है। अर्थशास्त्रियों का अनुमान है कि राजस्व वसूली में अभूतपूर्व बढ़ोतरी का श्रेय कर की दरों में उदारता, करदाताओं के व्यवहार में परिवर्तन, कर कानून आसान होने से उनका बेहतर अनुपालन किया जाना और आय कर विभाग के प्रौद्योगिकी संचालित होने को जाता है। प्रौद्योगिकी कर दाताओं के अधिक अनुकूल सिद्व हुई है।

इस अनुकूल स्थिति को कृषि की हालत क्षति पहुंचा सकती है, क्योंकि इस क्षेत्र में विकास की दर बहुत नीचे चली गयी है। रुपये का बढ़ता मूल्य भी चिंता का एक और विषय है। इससे निर्यातकों को नुकसान पहुंचा है। इसका दुस्प्रभाव विनिर्माण क्षेत्र सहित कई क्षेत्रों पर पड़ा है। कर राजस्व में विनिर्माण क्षेत्र का भारी योगदान होता है। इसी तरह आई टी सेवाओं पर भी इसका असर पड़ेगा। विकास के इस परिदृश्य में रूकावट की आशंका वाले अन्य क्षेत्रों में ढांचागत अड़चनें, परिसम्पत्तिायों के ऊंचे मूल्य, विशेषकर अंतर्राष्ट्रीय बाजार में आवास की आसमान छूती कीमतें, बढ़ता व्यापार घाटा और वैश्विक वित्ताीय बाजार में उठा पटक शामिल है।

इस पृष्ठभूमि के साथ वित्ता मंत्री पर करों के संदर्भ में अधिक लोक लुभावन बजट पेश करने का दबाव रहेगा। उद्योग और अर्थशास्त्रियों ने सुझाव दिया है कि कर का आधार व्यापक बनाया जाये और कर वंचन पर नियंत्रण करके कर राजस्व में वृध्दि की जाये। उन्होंने प्रत्यक्ष कर कानूनों के प्रावधानों को युक्तिसंगत बनाने की भी मांग की है। सब कुछ ठीक ठाक चलते किसी वित्ता मंत्री से करों में कटौती की उम्मीद नहीं की जा सकती, लेकिन फिर भी अर्थशास्त्रियों को लगता है कि करों की दरों में जहां कहीं उचित हो, कमी की जानी चाहिए लेकिन ऐसा करते समय कड़ा राजकोषीय प्रबंधन बनाए रखा जाना चाहिए।

व्यक्तिगत आय कर

       कर दाताओं के आधार में बढ़ोतरी की तत्काल आवश्यकता को स्वीकार करते हुए अर्थशास्त्रियों का सुझाव है कि कुछ व्यक्तियों से कर की अधिक राशि वसूल करने के बजाय अधिक व्यक्तियों से थोड़ी -थोड़ी राशि वसूल की जानी चाहिए। अर्थशास्त्रियों ने वित्त मंत्री को यह सुझाव भी दिया है कि वे व्यक्तिगत आयकर को न छेड़ें। इसके स्थान पर उन्होंने सुझाव दिया है कि राजस्व की बढ़ी हुई राशि का इस्तेमाल बुनियादी ढांचे पर खर्च में बढ़ोतरी के लिए किया जाये और प्रत्यक्ष करों को युक्तिसंगत बनाया जाये।

आगामी बजट से आकांक्षाओं के बीच यह उम्मीद भी की जा रही है कि कर दाताओं की औसत वार्षिक बचत में बढ़ोतरी को देखते हुए कर छूट के लिए बचत की अधिकतम सीमा 20 प्रतिशत बढ़ाकर एक लाख 20 हजार रुपये की जानी चाहिए। 2008-09 के बजट में व्यक्तिगत कर पर छूट की सीमा 1.1 लाख से बढ़ाकर 1.25 लाख किए जाने की भी उम्मीद है। किंतु डेढ़ लाख रुपये तक की आय पर आय कर की दर 10 प्रतिशत जारी रखे जाने की उम्मीद है।

सरकार की इस घोषणा को देखते हुए कि वह कर अनुपालन के मुद्दों पर अधिक जोर देगी, बजट में व्यक्तिगत आय कर की अधिकतम दर में बढ़ोतरी होने की संभावना नहीं है। इससे स्वैच्छिक कर अनुपालन को भी प्रोत्साहन मिलेगा। व्यक्तिगत आय कर की अधिकतम दर 30 प्रतिशत के आसपास रहने की संभावना है किंतु कर दाताओं का आधार व्यापक नहीं है क्योंकि आबादी का बड़ा हिस्सा गरीबी रेखा से नीचे गुजर बसर करता है।

       किंतु, पिछले कुछ वर्षों के दौरान आर्थिक विकास में निरंतर बढ़ोतरी के कारण सरकार करीब आठ लाख नए कर दाताओं को कर के दायरे में लाने में सफल रही है। यह समझा जा रहा है कि वार्षिक आय विवरणी और स्थायी लेखा संख्या (पैन) के दायरे में अधिक से अधिक लेन-देन शामिल किए जा सकेंगे। अन्य उपायों में कम्प्यूटर की सहायता से आयकर विवरणी की नयी जांच-प्रणाली की स्थापना शामिल है। कर का दायरा बढ़ाने की दिशाम में एक और महत्वपूर्ण उपाय है। कम्पनियों के मामले में स्रोत पर कर कटौती लागू करना। सरकार सभी कर गणनाओं के लिए पैन (स्थायी लेखा संख्या) पहले ही अनिवार्य बना चुकी है। अब वह एक नया टैक्स कोड विकसित करने के प्रयास कर रही है ताकि समग्र संरचना को सरल बनाया जा सके। फ्रिन्ज बेनिफिट (यानी छिटपुट लाभ) टैक्स को भी सुदृढ़ बनाने की आवश्यकता है।

कृषि

       अर्थव्यवस्था में कृषि क्षेत्र को दुर्बल बिन्दुओं में से एक समझा जा रहा है। इसे देखते हुए यह उममीद है कि 2008-09 के बजट में कृषि को विशेष ध्यान दिए जाने वाले क्षेत्रों में शामिल किया जायेगा। निजी निवेशकों द्वारा निवेश आकर्षिैत करने के अभियान में वित्त मंत्री पर यह दबाव डाला गया है कि वे कोल्ड चेन प्रतिष्ठान (शीत भंडार प्रतिष्ठान) जैसी योजनाओं के लिए कर अवकाश का प्रावधान करें। कृषि अर्थशास्त्री भी यह चाहते हैं कि कृषि विस्तार सेवाओं के लिए कर में कटौती की जाये।

सूचना प्रौद्योगिकी

       वर्ष 2007-08 के बजट प्रस्तावों से आईटीबीओ उद्योगों के लिए सुविधाएं बढ़ाने की बजाय कठिनाईयां अधिक पैदा हुई। 2007-08 के बजट का नकारात्मक पक्ष यह था कि आईटी कम्पनियों को टैक्स के दायरे में लाया गया और उनके ई एस ओपीज पर एफबीटी (कर) लगाया गया। लाभांश वितरण कर में 2.5 प्रतिशत वृद्वि की गयी। व्यक्तिगत कर दाताओं के लिए आकर्षक छूट नहीं दी गयी बल्कि नया शिक्षा उप कर (एक प्रतिशत) और मकानों पर सेवा कर लगा दिया गया, जिनका इस्तेमाल वाणिज्यिक कार्यालय परिसर के रूप में किया जा रहा है। इन प्रावधानों से नियोक्ताओं के लिए प्रति कर्मचारी सीटीसी (कोस्ट टू कम्पनी) खर्च बढ़ जाता है।

       एक और मांग यह रही है कि आई टी क्षेत्र को बीपीओ उद्योग से अलग किया जाये। आई टी क्षेत्र 30 वर्ष से कर अवकाश का लाभ उठा रहा है, जबकि बीपीओ उद्योग 5 वर्ष पुराना होने के नाते यह लाभ बहुत कम समय के लिए उठा पाया है। आई टी क्षेत्र का काम निश्चित रूप से बिना कर रियायतों के चल सकता है, किन्तु बीपीओ उद्योग से कर रियायतें वापस लेने की स्थिति में उस पर दुष्प्रभाव पड़ेगा। कर रियायतें वापस लेने से भारत के सॉफ्टवेयर प्रौद्योगिकी पार्कों (एसटीपीआई) पर भी विपरीत असर पड़ेगा।

       आई टी उद्योग के अपने बजट पूर्व ज्ञापन में बीपीओज को आई टी से अलग करने, और सेवा कर, एफ बी टी, ईएसओपी, कर योग्य सुविधाओं के रूप में एमएटी जैसे कर समाप्त करने की मांग की है। उन्होंने 10ए के अधीन कर अवकाश कम से कम 5 वर्ष के लिए जारी रखने और एसटीपीआई कर अवकाश 2009 के बाद 10 या उससे अधिक वर्षों के लिए आगे बढ़ाने की मांग की है।

दूर संचार

       भारत में दूर संचार कम्पनियों को विभिन्न प्रकार के शुल्कों और करों का बोझ सहन करना पड़ रहा है। वे चाहती है कि 2008-09 के बजट में उनका यह बोझ कम किया जाये। यह उद्योग चाहता है कि केवल एक शुल्क लगाकर अधिक पारदर्शी प्रणाली अपनायी जानी चाहिए। लाइसेंस शुल्क देश भर में विषमतापूर्ण है, जिसे हटाए जाने की आवश्यकता है। इसके स्थान पर दूर संचार कम्पनियां देश भर में 6 प्रतिशत की दर से एक समान लाइसेंस शुल्क लगाए जाने के पक्ष में है।

हाइड्रो कार्बन

       ऊर्जा क्षेत्र के लिए मंजूर किए गए कर प्रोत्साहनों के ही समान रियायतें हाइड्रो कार्बन क्षेत्र के लिए भी मंजूर की गयी है। इस बीच भारतीय उद्योग समय समय पर लगाए जाने वाले विभिन्न उपकरों और शुल्कों के प्रति चिंतित रहा है। उदाहरण के लिए सरकार द्वारा मोटर वाहनों, खनिज तेल और पॉलिस्टर फिलामेंट यार्न जैसी चुनी हुई वस्तुओं पर राष्ट्रीय आपदा आकस्मिता शुल्क (एनसीसीडी) लगाया गया है। कर विशेषज्ञों का मानना है कि एनसीसीडी की अंतर्राष्ट्रीय बाजार में खनिज तेल के मूल्यों में बेतहाशा बढ़ोतरी को देखते हुए एनसीसीडी में काफी बढ़ोतरी हुई है। इसलिए सरकार के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वह उत्पाद और सीमा शुल्क ढांचे को पेट्रोल और डीजल आयात के मामले में युक्तिसंगत बनाए।

धर्मार्थ संस्थान

       धर्मार्थ संस्थानों को दी जा रही आयकर में छूट वापस लिए जाने की संभावना है। इसकी वजह यह है कि धर्मार्थ के बहाने इन संगठनों के धारा 12ए के अंतर्गत पंजीकरण कराके धन के दुरुपयोग की गतिविधियों में शामिल होने की आशंका है।

पूंजी कारोबार कर

       काले धन का कारोबार निरंतर एक बड़ा मुद्दा रहा है, इसलिए समझा जा रहा है कि सरकार 2008-09 के बजट में पूंजी कारोबार कर (सीटीटी) शुरू करने पर विचार कर रही है। यह कर सम्बध्द राज्य में प्रचलित ''सर्कल दर'' के अनुसार लगाया जायेगा।

       इस कदम से सरकारी खजाने को लाभ होने की संभावना है। सम्पत्ति बाजार या रीयल एस्टेट उद्योग इस समय तेजी पर है। इसे देखते हुए पूंजी कारोबार कर से काले धन को बाहर लाने में भी मदद मिलेगी।

विशेष संवाददाता, स्टेट्समेन

 

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