मंगलवार, 16 सितंबर 2008

संसाधनों की कमी की आड़ में रोगी को इलाज से इंकार नहीं किया जा सकता - भारत के मुख्य न्यायाधिपति जस्टिस श्री बालाकृष्णन

संसाधनों की कमी की आड़ में रोगी को इलाज से इंकार नहीं किया जा सकता - भारत के मुख्य न्यायाधिपति जस्टिस श्री बालाकृष्णन

प्रतिबध्दता  और संवेदनशीलता से ही कार्यक्रमों की सफलता निर्भर -म.प्र. के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस श्री पटनायक

''स्वास्थ्य का अधिकार'' कार्यशाला का समापन

 

भोपाल : 14 सितम्बर  2008

 

उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधिपति जस्टिस श्री के.जी. बालाकृष्णन ने कहा है कि अस्पतालों में संसाधनों की कमी की आड़ में कोई भी सरकार रोगी को इलाज से मना नहीं कर सकती। इस संबंध में सर्वोच्च न्यायालय ने एक विशेषज्ञ समिति से जांच करवाई थी। समिति ने अपनी रिपोर्ट में अस्पतालों में सुविधाएं बढ़ाने एवं विभिन्न अस्पतालों में ऐसी संवाद प्रणाली बनाने का सुझाव दिया था जिससे रोगियों को तत्परता से चिकित्सा उपकरण, एम्बुलेंस और डॉक्टर की सेवाएं उपलब्ध हो सकें।  जस्टिस बालाकृष्णन ने यह बात आज यहां म.प्र. मानव अधिकार आयोग द्वारा आयोजित '' स्वास्थ्य के अधिकार'' कार्यशाला के समापन सत्र में कही। इस अवसर पर म.प्र. उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस श्री  ए.के. पटनायक, म.प्र. मानव अधिकार आयोग के अध्यक्ष जस्टिस श्री डी.एम. धर्माधिकारी, सर्वोच्च न्यायालय के सेवा निवृत्त न्यायाधीश जस्टिस श्री पी.पी. नावलेकर, सदस्य द्वय जस्टिस श्री नारायण सिंह 'आजाद' और श्री विजय शुक्ल मुख्य रुप से उपस्थित थे।

जस्टिस बालाकृष्णन ने कहा कि मानव अधिकारों की वैश्विक घोषणा में प्रत्येक व्यक्ति और उसके परिवार को अच्छे स्वास्थ्य के लिए भोजन, वस्त्र, हवा, सामाजिक सेवाएं तथा चिकित्सा सुविधाएं देने का उल्लेख है। उन्होंने कहा कि बेरोजगारी, बीमारी, अपंगता, वैधव्य, वृध्दावस्था और आजीविका की कमी की स्थिति में भी प्रत्येक मनुष्य को जीवन का अधिकार मिलता रहे उसके लिए उसका स्वास्थ्य अच्छा होना आवश्यक है। उन्होंने कहा कि इस दिशा में सर्वोच्च न्यायालय ने भी समय-समय पर विभिन्न प्रकरणों में दिए अपने निर्णयों में मनुष्य के स्वास्थ्य के अधिकार को आवश्यक माना है। जस्टिस बालाकृष्णन ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय ने एक प्रकरण में दुर्घटना में घायल व्यक्ति के चिकित्सकीय- विधिक प्रकरण में कोई अस्पताल अथवा डॉक्टर पीड़ित का इलाज करने से इन्कार नहीं कर सकता, ऐसा फैसला दिया है। इलाज से इंकार करना चिकित्सा आचार संहिता का उल्लंघन होगा। न्यायालय ने माना है कि ऐसा इन्कार व्यक्ति के जीवन और स्वतंत्रता की रक्षा के अधिकार का उल्लंघन है। न्यायालय के इस फैसले से अब लोगों को आपातकालीन चिकित्सा उपचार का अधिकार मिल गया है। श्री बालाकृष्णन ने अन्य प्रकरण का संदर्भ देते हुए कहा कि पारिश्रमिक लेकर किए गए रोग निदान और उपचार को अब उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम में ले लिया गया है। पारिश्रमिक लेकर दी गई चिकित्सा सेवा में लापरवाही एवं कमी की स्थिति में भी डॉक्टर एवं चिकित्सा संस्था के विरुध्द कार्रवाई की जा सकती है। इस विधिक प्रावधान से भी रोगियों के हित का संरक्षण हो सकेगा। जस्टिस बालाकृष्णन ने कहा कि पिछले वर्षों में सरकारों ने स्वास्थ्य सेवाओं के क्षेत्र में काफी संसाधन जुटाए हैं, निजी क्षेत्र में सर्वसुविधायुक्त अस्पताल खुलने लगे हैं, लेकिन ये सब सुविधाएं अभी तक केवल सम्पन्न वर्ग के लोगों को ही मिल रही हैं। सरकारों को ऐसे उपायों को भी अमल में लाना चाहिए जिससे गरीबों को भी इनका लाभ मिल सके। जस्टिस बालाकृष्णन ने कहा कि विगत दिनों प्रचार माध्यमों ने मानव अंगों के अवैध व्यापार की ओर ध्यान आकर्षित किया था। इसी प्रकार झोलाछाप डॉक्टरों और असुरक्षित परंपरागत दवाईयों के चलन की भी जानकारियाँ मिलती हैं। सरकारों को प्रशासनिक एवं विधिक प्रयास करके इन कमियों को दूर करने के प्रयत्न करने चाहिये। जस्टिस बालाकृष्णन ने कहा कि आज अनेक संक्रामक बीमारियाँ एक से दूसरे देश में जाने लगी हैं। कुछ वर्ष पूर्व मैड काऊ, सार्स और एवियन फ्लू रोगों के फैलने का पता चला था। एच.आई.व्ही. / एड्स की विकरालता भी कम नहीं हो रही है। इस स्थिति में मानव अधिकार की घोषणा को कम करके नहीं ऑकना चाहिए। दूसरे देशों से आने वाली नई बीमारियों की रोकथाम के लिए सरकारी, निजी और अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग से चिकित्सा प्रौद्योगिकी, दवाईयां और विशेषज्ञ चिकित्सा सेवाएं प्राप्त करने की कोशिश करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य के अधिकार को वैश्विक स्तर पर सार्थक अधिकार के रुप में स्वीकार करना होगा।

 मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस श्री ए.के. पटनायक ने कहा कि स्वास्थ्य का अधिकार एक नई सोच है। श्री पटनायक ने कहा कि यह एक नैसर्गिक सिध्दांत है कि बिना अच्छे स्वास्थ्य के कोई भी व्यक्ति अच्छा जीवन नहीं जी सकता। उन्होंने कहा कि मानव अधिकार के वैश्विक घोषणा में मनुष्य की स्वतंत्रता और गरिमा भी शामिल है। श्री पटनायक ने बेहतर स्वास्थ्य के लिए उपलब्ध विधिक प्रावधानों का उल्लेख किया। जस्टिस पटनायक ने कहा कि अस्पतालों द्वारा इलाज से इंकार करना मानव के जीवन के अधिकार का हनन है। उन्होंने बताया कि अच्छे स्वास्थ्य का स्वच्छ पर्यावरण से सीधा संबंध है। यदि आसपास का पर्यावरण साफ नहीं होगा तो लोगों का स्वास्थ्य भी अच्छा नहीं रह सकता। उन्होंने बताया कि मेरठ में एक पशुवध गृह के संबंध में उच्चतम न्यायालय ने निर्णय दिया था कि इस पशुवध गृह की स्थापना के कारण यदि पास में रहने वाले लोगों के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है तो वहां इसकी स्थापना नहीं की जा सकती। उन्होंने कहा कि कोई भी कार्यक्रम तब तक सफल नहीं हो सकता जब तक उसमें प्रतिबध्दता और संवेदनशीलता का भाव न हो। श्री पटनायक ने कहा कि सरकार को सतना में कुपोषण से हुई बच्चों की मृत्यु की ओर ध्यान देना चाहिए।

मध्यप्रदेश मानव अधिकार आयोग के अध्यक्ष जस्टिस श्री डी.एम. धर्माधिकारी ने कहा कि विलंबित और मंहगी न्याय प्रणाली तथा जटिल प्रशासनिक प्रक्रियाओं के कारण बड़ी संख्या में लोग अब अपनी तकलीफों के निदान के लिए मानव अधिकार आयोग में आ रहे हैं। आयोग में इन तकलीफज़दा लोगों की मदद की यथा संभव कोशिश की जाती है। श्री धर्माधिकारी ने आयोग के प्रति राज्य सरकार के सकारात्मक रुख की सराहना की। उन्होंने कहा कि आयोग न केवल व्यक्तिगत शिकायतों के निराकरण की पहल करता है बल्कि मानव के अन्न, पेयजल और स्वास्थ्य जैसे मसलों पर भी व्यापक लोकहित को ध्यान में रखते हुए जनमानस बनाने के प्रयास कर रहा है। श्री धर्माधिकारी ने कहा कि राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण ने भी आयोग द्वारा भेजे आवेदकों को बड़ी मदद की है। कतिपय मामलों में जहां आयोग की अनुशंसाओं को मान्य नहीं किया जाता, ऐसे मामले उच्च न्यायालय को संदर्भित करने हेतु विधिक सेवा प्राधिकरण को भेजे जाते हैं।

आयोग के आई.जी. श्री सुशोभन बॅनर्जी ने कार्यशाला के आयोजन का उद्देश्य स्पष्ट किया। संचालन उप सचिव श्री विजय चन्द्र ने किया। इस अवसर पर डी.जी.पी. श्री एस.के. राउत, आयोग के प्रमुख सचिव डॉ. ए.एन. अस्थाना, लोक स्वास्थ्य विभाग के प्रमुख सचिव श्री देवराज बिरदी, नेशनल ज्युडिशियल अकादमी के प्राध्यापक, प्रशिक्षु न्यायाधीश, जिला न्यायालय के न्यायाधीश, वरिष्ठ अधिवक्ता, गणमान्य नागरिक तथा राज्य प्रशासन और पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित थे।

 

कोई टिप्पणी नहीं: