गुरुवार, 4 सितंबर 2008

चम्‍बल का बहादुर अन्‍तर्राष्‍ट्रीय धावक जो डकैत बना, पान सिंह तोमर पर बनेगी फिल्‍म

चम्‍बल का बहादुर अन्‍तर्राष्‍ट्रीय धावक जो डकैत बना, पान सिंह तोमर पर बनेगी फिल्‍म

नरेन्‍द्र सिंह तोमर ''आनन्‍द''

चम्‍बल के सीने में न जाने कितने देशभक्‍तों और बहादुरों की कहानीयां दफन हैं । चम्‍बल में इन्‍हे कभी वीर गाथाओं के तौर पर किस्‍से कहानीयों के रूप में तो कभी चौपाली चर्चाओं  में तो कभी सर्दियों में अगिहानो (अलावों) पर बैठकर तापते हुये बुजुर्गवार बच्‍चों को सुनाते हैं ।

यूं कहीं किस्‍से कहानी सुनते सुनते चम्‍बल के बेटे बड़े हो लेते हैं, चम्‍बल का पानी कहिये या राजपूतों का खून या फिर पाण्‍डवों में सदा से अन्‍याय के प्रति हिकारत का भाव (तोमर राजवंश पाण्‍डवों के वंशज हैं) । चम्‍बल के बेटे अन्‍याय बर्दाश्‍त नहीं करते, चम्‍बल के बेटे दूसरे किसी अन्‍य के साथ होते अन्‍याय या अत्‍याचार को भी बर्दाश्‍त नहीं करते । और बस लड़ जाते हैं, भिड़ जाते हैं ।

आल्‍हा महाकाव्‍य में कुछ पंक्‍ितयां चम्‍बल के बेटो पर सटीक बैठती हैं

ताको बैरी जीवित बैठो ताके जीवन कों धरकार ।

बरस अठारह कूकर जीवे, औ तेरह लौं जिये सियार ।

बरस अठारह क्षत्री जीवे आगें जीवन को धक्‍कार ।

गुम्‍मट बंध गये रजपूतन के, सेना गोलबन्‍द हे जाय ।

एकैं मारें, दो मरि जाय, तीजों दहशत सों मरि जाय ।

ईंट फूंटि के गुटईं हे जाय, गुटईं फूट छार हे जाय ।

छार फूटि कें रेता हो जाय, रेता आसमान मंडराय । 

सबके माथे चढ़ी भवानी, सबकीं ऑंख खून लहराय ।

चम्‍बल में अन्‍याय और अत्‍याचार (अब नया आइटम है भ्रष्‍टाचार) कतई बर्दाश्‍त नहीं हैं । चम्‍बल सत्‍ताद्रोही रही है, चम्‍बल बगावत करती आयी है, बगावत चम्‍बल की शान है । मगर यह बगावत कभी न्‍याय और न्‍यायप्रियता के विरूद्ध नहीं रही, कभी भी सही बात के खिलाफ आज तलक चम्‍बल के बेटे नहीं गये ।

चम्‍बल के बेटों ने भारत मॉं के मस्‍तक पर हमेशा अपने रक्‍त चन्‍दन का तिलक किया है, उसे हमेशा अपना रक्‍त स्‍नान करा कर ही उसका अभिषेक किया है ।

सत्‍ता पक्ष के अन्‍याय, भ्रष्‍टाचार और अनसुनवाई से सदा चम्‍बल नाराज रहती आयी है, स्‍वाभिमान चम्‍बल की रग रग में बसता है । जिसने सत्‍य की आवाज नहीं सुनी, जिसने न्‍याय की फरियाद नहीं सुनी वही चम्‍बल का दुश्‍मन हो गया । चम्‍बल के बेटे उसके खिलाफ बागी हो गये, सरकार ने न्‍याय नहीं किया, पुलिस ने न्‍याय नहीं किया, अदालत ने न्‍याय नहीं किया तो चम्‍बल के बेटों ने खुद की अदालत कायम की, खुद मुख्‍त्‍यार हुये, खुद ही पुलिस और खुद ही जज हो गये । देश की सर्वोच्‍च अदालत जो फैसला मुकम्‍मल न कर सके ऐसे फैसले चम्‍बल के बागीयों ने किये और सर्व मान्‍य हुये ।

हल से बल तक और बल से छल तक छल से खल तक यह एक अजीब दास्‍तान है जिस पर चम्‍बल के बेटो ने अपने लहू बहाये, इतिहास रचे ।

कोई जब गलत करे तो उसका विरोध कभी गलत नहीं होता, हॉं बात का विरोध करने का अपना अपना अलग अलग ढंग होता है, चम्‍बल के बेटो ने शठे शाठयम् अर्थात खग जाने खग ही की भाषा की नीति अख्‍त्‍यार की और बदमाशों को उन्‍हीं की भाषा में ज्ञान और नीति पढ़ाई ।

चम्‍बल के बेटे जब भारत के रक्षक हैं, देशभक्‍त हैं, वे बागी हो सकते हैं लेकिन डकैत कतई नहीं हो सकते । बागी को डाकू कहना एक बागी के लिये सबसे बड़ी गाली है । बागीयों ने जब कहीं गुजारा के लिये या गिरोह चलाने के लिये कहीं डाके डाले तो उन्‍हें डकैत की संज्ञा स्‍वत: प्राप्‍त हो गयी । वे पेशेवर डकैत कभी नहीं रहे ।

चम्‍बल में आजकल तो छिछोरे और ठग लुटेरे लम्‍पट हैं जिनका काम राहजनी , अपहरण और नकबजनी जैसे छिछोरे कामों से धन उपार्जन मात्र तक सीमित है ।

चम्‍बल की एक ताजी कहावत है कि जब तक जगजीवन परिहार (अभी इसकी मृत्‍यु प्रश्‍नचिह्नित है) जिन्‍दा रहा तब तक एक भी भैंस चोर (आजकल चम्‍बल में भभ्‍भर मचा रहे तथाकथित पुलिस मुखबिर रहे लोग उत्‍पात मचा कर चम्‍बल को परेशान किये हैं) नजर नहीं आया । सारे भैंस चोर (आजकल के छिछोरे) अपने अपने बिलों में दुबके बैठे रहे । चम्‍बल में चोरी, भडि़याई, लूट यब एक दम बन्‍द हों गयीं थीं । जगजीवन की तथाकथत मृत्‍यु के बाद सारे भैंस चोर आजाद हो गये और डकैत कहे जाने लगे ।

अब अन्‍याय के दुश्‍मन रहे या अत्‍याचार से ताजिन्‍दगी जूझे व्‍यक्ति ने बन्‍दूक उठाई तो न्‍याय और समाज की रक्षा के लिये, वे लोकतंत्र के सच्‍चे पहरेदार रहे । पुलिस और तथाकथित चम्‍बल से बाहर के कबाड़ी लेखकों और उपन्‍यासकारों ने उन्‍हें कभी दुर्दान्‍त कह कर तो कभी अत्‍याचारी और जुल्‍मी बता कर बदनाम किया । जबकि हकीकत इससे हजारों गुना दूर थी ।

खैर डकैतों को महिमा मण्डित करना गलत है, मैं इससे सहमत हूँ , लेकिन जब एक राबिनहुड पैदा होता है या कहीं कृष्‍ण अपना अवतार धारण करता है तो अन्‍याय और अत्‍याचार के खात्‍मे के लिये, आप उसे महिमा मण्डित भले ही न करें लेकिन उसके किस्‍से अपने आप लोगों के दिल पर अमिट हो जाते हैं, आप उन्‍हें रोक नहीं सकते, उनका स्‍वत: होने वाला अचूक महिमा मण्‍डन रोका नहीं जा सकता ।

बस आप तो यह इंतजार करिये कि आप जो भ्रष्‍टाचार, अंधेरगर्दी और जुल्‍म व अत्‍याचार की आंधी चला रहे हैं, जस्‍ट वैट कि कब चम्‍बल के किसी बेटे की खुपडि़या घूमती है, फिर देखिये कि क्‍या होता है मारेगा पचास गिनेगा एक, खाल खींच कर भुस भर देगा । भोपाल और दिल्‍ली या बम्‍बई में बैठकर चम्‍बल के बारे में काल्‍पनिक लिखना बहुत आसान है, मुझे फख्र है , मैं चम्‍बल में पैदा होकर बाहर पढ़ लिख कर चम्‍बल को ही अपने कर्मक्षेत्र के रूप में चुना । हालांकि पैसा नहीं कमाया लेकिन एक आत्‍म संतोष है, मेरा ज्ञान मेरी विद्या मेरी मेहनत सब मेरी मातृभूमि की खिदमत में गुजर रही है । मैं उन लोगों में से नहीं जो अपनी मॉं के दूध को हराम कर गये, या जन्‍मभूमि का कर्ज चुकाये बगैर यहॉं से भाग गये । हॉं हम चम्‍बल से लिख रहे हैं ।

अभी बीबीसी हिन्‍दी पर खबर थी कि चम्‍बल के एक अन्‍तर्राष्‍ट्रीय धावक डाकू पान सिंह तोमर पर फिल्‍म बनेगी हम नीचे खबर को बीबीसी से सधन्‍यवाद उदृत कर हैं, मैं उन सौभाग्‍यशाली लोगों में से हूं जिन्‍हें पान सिंह तोमर तथा उसके गिरोह के सदस्‍यों से साक्षात मिलने का सौभाग्‍य नसीब हुआ था । पान सिंह तब डाकू नहीं थे, न उनके गिरोह में रहे लोग तब डाकू थे । तब वे भारी भले आदमी और भारी देशभक्‍त माने जाते थे । समय चक्र ने उन्‍हें डाकू बनाया । अम्‍बाह तहसील के गॉंव लेपा भिड़ौसा के रहने वाले पान सिंह तोमर के गिरोह में परिहार राजपूत, बीच का पुरा (उत्‍तर प्रदेश) तक के लोग सम्मिलित थे । पान सिंह तोमर एक बहादुर और वीर देशभक्‍त के रूप में ख्‍यात हैं, पुलिस जब हर प्रकार उन्‍हें मार पाने या पकड़ पाने में असफल रही तो उन्‍हे पूरे गिरोह सहित शराब और मुर्गो में जहर मिलवा कर मरवा दिया था । खैर जब फिल्‍म आयेगी तो हम भी देखेंगें कि वे क्‍या दिखाते बताते हैं, वैसे भाई इरफान खान जो पान सिंह तोमर का किरदार करने जा रहे हैं बहुत उम्‍दा कलाकार हैं, मुझे उनका अभिनय बेहद पसन्‍द है, भाई आशुतोष राणा भी साथ होते तो आनन्‍द आ जाता खैर एक समय की फिल्‍म कच्‍चे धागे में विनोद खन्‍ना या मुझे जीने दो में सुनील दत्‍त साहब ने जो जान फूंकी थी या चम्‍बल की कसम में राजकुमार या कसम भवानी की में जो तेवर थे उम्‍मीद है इरफान भाई बखूबी निभा ले जायेंगें

बीबीसी हिन्‍दी से साभार

 

चंबल के डाकू बनेंगे इरफ़ान खान

वंदना
बीबसी संवाददाता

 

पान सिंह तोमर- ये उस शख़्स का नाम है जिसने एथलेटिक्स में राष्ट्रीय चैंपियन की बुलंदियों से चंबल का कुख्यात डाकू बनने तक का सफ़र तय किया है.

इरफ़ान खान
इरफ़ान खान राष्ट्रीय चैंपियन से डाकू बने शख़्स का रोल निभाएँगे.इसी शख़्स की सच्ची कहानी को फ़िल्मी पर्दे पर उतारेंगे फ़िल्म निर्देशक तिग्मांशु धूलिया.

किरदार को पर्दे पर उतारने का काम इरफ़ान खान करेंगे.

तिंग्माशु धूलिया ने इस बारे में बताया, "पान सिंह तोमर स्टीपलचेज़ में राष्ट्रीय चैंपियन थे. 10-11 वर्षों तक कोई उनका रिकॉर्ड तोड़ नहीं पाया था. उन्होंने टोक्यो में एशियाई खेलों में भारत का प्रतिनिधित्व किया था लेकिन बाद में हालात कुछ यूँ बदले कि वे एक डाकू बन गए."

 पान सिंह तोमर स्टीपलचेज़ में राष्ट्रीय चैंपियन थे. 10-11 वर्षों तक कोई उनका रिकॉर्ड तोड़ नहीं पाया था. उन्होंने टोक्यो में एशियाई खेलों में भारत का प्रतिनिधित्व किया था लेकिन बाद में हालात कुछ यूँ बदले कि वे एक डाकू बन गए.एक व्यक्ति जो देश के लिए दौड़ता था बाद में देश के क़ानून के ख़िलाफ़ हो गया और भागता रहा, ये कहानी मुझे दिलचस्प लगी

 

तिग्मांशु धूलिया

तिंग्माशु ने कहा कि एक व्यक्ति जो देश के लिए दौड़ता था बाद में देश के क़ानून के ख़िलाफ़ हो गया और भागता रहा, ये कहानी उन्हें दिलचस्प लगी और इसलिए इसे पर्दे पर उतारने का फ़ैसला किया.

खेल और खिलाड़ियों की दशा- दुर्दशा पर यूँ तो भारत में कई फ़िल्में बनीं हैं लेकिन तिग्मांशु मानते हैं कि इनमे से ज़्यातार फ़िल्में सतही और फ़र्ज़ी किस्म की रही हैं.

वे कहते हैं, "चक दे इंडिया बहुत अच्छी फ़िल्म थी, आपको प्रेरित भी करती है लेकिन सच्चाई अलग है- पुरुष हॉकी टीम की ही हालत देखिए तो महिलाओं की हॉकी टीम का क्या होगा. मैं उस किस्म की फ़िल्म बनाना चाहता हूँ कि बॉक्सर ने स्वर्ण पदक जीता है, उसके नाम पर सड़क है लेकिन उसी सड़क पर वो भीख माँगता है. ऐसे पता नहीं कितने खिलाड़ी हैं देश में अगर क्रिकेटर को छोड़ दें तो."

ख़िलाड़ी से डाकू बने पान सिंह तोमर का किरदान निभाने वाले इरफ़ान खान ने किरदार की तैयारी शुरु कर दी है.

तिग्मांशु और इरफ़ान इससे पहले भी एक साथ काम कर चुके हैं. तिग्मांशु की पहली फ़िल्म हासिल में इरफ़ान ने अहम भूमिका निभाई थी.

इस रोल के लिए वर्ष 2003 में इरफ़ान खान को नकारात्मक भूमिका की श्रेणी में सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार भी मिला था. उसके बाद से बॉलीवुड में इरफ़ान खान का ग्राफ़ तेज़ी से बढ़ा है.

बतौर निर्देशक ख़ुद तिग्मांशु को भी इस फ़िल्म के लिए ओलोचकों की काफ़ी सराहना मिली थी. दोनों ने फ़िल्म चरस में भी एक साथ काम किया था.

फ़िल्म की शूटिंग इस साल के अंत में शुरु होगी. तिग्मांशु की नई फ़िल्म शागिर्द अक्तूबर में रिलीज़ हो रही है जिसमें नाना पाटेकर ने काम किया है.

 

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