शुक्रवार, 31 अक्तूबर 2008

एक वैज्ञानिक खोज पर : चन्द्रयान-1

एक वैज्ञानिक खोज पर : चन्द्रयान-1

गायत्री चन्‍द्रशेखर

       भारत के प्रथम चन्द्रमा मिशन का उद्देश्य मानव रहित अंतरिक्ष यान-चन्द्रयान-1 को चन्द्रमा की कक्षा में पहुंचाना है। यह धरती से 3,84,000 किलोमीटर और चांद की सतह से 100 किलोमीटर की कक्षीय ऊंचाई पर पहुंचेगा।

       386 करोड़ रुपये की लागत से अंजाम दिए जा रहे इस मिशन के अंतर्गत धरती की कक्षा से परे धरती के एकमात्र प्राकृतिक उपग्रह का अध्ययन किया जायेगा। इसके लिए यान पर ग्यारह उपकरण लगाए गए हैं। अपने दो वर्ष के कार्यकाल के दौरान यह यान विविध विषयों के बारे में भारी यात्रा में आंकड़े भेजेगा। इस खोज का लक्ष्य चन्द्रमा की उत्पत्ति, विकास, भौतिक और रासायनिक विशेषताओं, वहां मौजूद हीलियम-3, यूरेनियम और थोरियम जैसे स्वच्छ ईंधन, मैग्नेशियम और टिटैनियम जैसी खनिज सम्पदा और सर्वाधिक आकर्षक जल-हिम (वाटर आइस), जो चन्द्रमा के धुवों पर विद्यमान होने का अनुमान है, का पता लगाना है।

       पहली बार उठाए गए इस ठोस कदम के ज़रिए भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) एक वैज्ञानिक जांच करेगा, जिसे चन्द्रमा पर मून इम्पेक्ट प्रोब (एम आई पी) यानी चन्द्र प्रभाव जांच का नाम दिया गया है। यह यान चन्द्रमा के गुरुत्वाकर्षण, उसके अल्ट्रा-सूक्ष्म वातावरण और भौतिक विशेषताओं का अध्ययन करने के लिए आंकड़े एकत्र करेगा।

       यह सवाल अपने में दिलचस्प है कि चन्द्रमा पर मानव के उतरने के लगभग 40 वर्ष बाद एक बार फिर से हमारी रुचि अपने निकटतम खगोलीय (सेलेस्टियल) पड़ोसी के रहस्यों को उज़ागर करने में क्यों फूट पड़ी है। क्या वजह है कि यूरोपीय स्पेस एजेंसी-ई एस ए, जापान, चीन, अमरीका और रूस एक नए उत्साह और सक्रियता के साथ गहन अंतरिक्ष परीक्षणों और चन्द्र मिशनों में जुटे हुए हैं?

       इसका एक कारण यह है कि पिछले तीन दशकों में प्रौद्योगिकी विषयक प्रगति बड़ी तेजी के साथ हुई है। कम्प्यूटर सिकुड़ गए हैं, उनकी क्षमता और गति कई गुणा बढ़ गयी है और संचार प्रौद्योगिकियों की बदौलत अंतरिक्ष में होने वाली फुसफुसाहट भी अविश्सनीय स्पष्टता के साथ भू-केन्द्रों पर लगे मानव-निर्मित कानों, यानी एंटीना पर सुनी जा सकती है। शक्तिशाली ऑन-बोर्ड प्रणालियों, अत्याधुनिक निरीक्षण और मार्ग-दर्शन तथा तत्क्षण फीड़ बैड लूपों से मानव को वह शक्ति हासिल हो गई है, जिससे वह ब्रह्मांड और तारा-प्रणालियों, तात्विक कणों की उत्पत्ति जैसे शाश्वत् प्रश्नों और ब्रह्मांड में व्याप्त मूलभूत नियमों की गहन जांच कर सकता है। अनेक मानव-रहित और मानव-सहित अभियानों के बावजूद चन्द्रमा, जिसका हमारे खगोलीय पड़ोसियों में सर्वाधिक अध्ययन किया गया है, के बारे में अनेक ऐसे रहस्य हैं जिनका खुलासा होना बाकी है।

       इसरो चन्द्रयान अभियान को प्रमुख कार्यक्रम के रूप में संचालित कर रहा है ताकि प्रतिभाशाली भारतीय युवा वैज्ञानिकों को इसके दायरे में लाया जा सके। भारत के समक्ष और भी बाध्यकारी कारण हैं। व्यापक निवेश और बहु-विषयी कौशल की आवश्यकता को देखते हुए अंतरिक्ष में एक लाख किलोमीटर से अधिक दूरी पर किए जाने वाले गहन परीक्षण निरन्तर विभिन्न देशों के बीच सामूहिक प्रयास बनते जा रहे हैं। भारत ग्रहीय खोजों में सहयोग करने वाले देशों के चुने हुए समूह में शामिल होने का इच्छुक है और इस दिशा में पहला कदम यह है कि वह स्वयं की क्षमता के बारे में सफलता प्रदर्शित करते हुए अपनी पहचान कायम करे।

       एक तरह से चन्द्रयान-1 को अंतर्राष्ट्रीय प्रयास के रूप में देखा जा सकता है। 1380 किलोग्राम वजन के उपग्रह पर लगे 11 उपकरणों में से 5 स्वदेशी हैं और 6 अन्य देशों के हैं।

भारतीय पेलोड्स इस प्रकार हैं-

.      चन्द्रमा की भौतिक विशेषताओं का अध्ययन करने के लिए टेरेन (भूभाग) मैपिंग (मानचित्रण)     कैमरा।

.      खनिज संरचना के अध्ययन के लिए हाइपर स्पैक्ट्रल इमेजर

.      चन्द्रमा का व्यापक स्थलाकृति विषयक क्षेत्र बनाने और चन्द्र गुरूत्वाकर्षण क्षेत्र का परिष्कृत      मॉडल तैयार करने के लिए लूनर लेजर रेंजिंग इन्स्ट्रूमेंट।

.      बर्फ, यूरेनियम और थोरियम के क्षेत्रों की पहचान करने के लिए हाई एनर्जी एक्स-रेस्पेक्ट्रोमीटर।

.      मून इम्पेक्ट प्रोब, जो चन्द्रमा पर वांछित स्थान पर प्रभाव डालेगा ताकि निकटवर्ती      अन्तरालों पर चन्द्रमा के निचले और विरल वातावरण की सूक्ष्म खोज की जा सके और भविष्य में सरल लैंडिंग अभियानों के लिए प्रौद्योगिकियों का निर्धारण किया जा सके।

विदेशी उपकरण इस प्रकार हैं:-

.      यूरोपीय स्पेस एजेंसी-ई एस ए का चन्द्रयान-1 इमेजिंग एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर इसकी सहायता से उच्च कोटि का मानचित्रण किया जा सकता है। इसमें एक्स-रे फ्लूऑरेसॅन्स तकनीकों का इस्तेमाल किया जाता है। इसे चन्द्रमा पर मैग्नेशियम, अलुमिनियम, सिलिकन,आयरन और टिटानियम की खोज के लिए विशेष रूप से तैयार किया गया है। इसका विकास रूदरफोर्ड अप्लेटन लैब, यूके और इसरो उपग्रह केन्द्र, बंगलौर द्वारा किया गया है।

. ई एस ए का स्मार्ट निअर इन्फ्रारेड स्पेक्ट्रोमीटर-इसका इस्तेमाल चन्द्रमा के खनिज संसाधनों, सतह विशेषताओं के निर्माण, वह पध्दति जिसके आधार पर चन्द्रमा की पर्पटी की विभिन्न परतें एक दूसरी पर स्थित हैं और वह पध्दति जिसके आधार पर अंतरिक्ष में पदार्थ परिवर्तित होते हैं, का अध्ययन करने के लिए किया जायेगा।

.      ई एस ए से सब किलो इलेक्ट्रॉन वोल्ट एटम रिफलेक्टिंग ऐनेलाइज़र-इसका इस्तेमाल चन्द्रमा की सतह की संरचना और सौर पवन के साथ उसकी अनुक्रिया के अध्ययन तथा चन्द्रमा की मैग्नेटिक विसंगतियों के अध्ययन के लिए किया जायेगा। इस पेलोड के विकास मे भी भारत ने सक्रिय योगदान किया है।

.:      बल्गारिया से रेडिएशन डोज मानीटर- जिसका इस्तेमाल चन्द्रमा के चारों ओर रेडिएशन वातावरण का अध्ययन करने के लिए किया जायेगा।

.:      अमरीका से मिनी सिन्थेटिक अप्रेचर रडार-जिसका इस्तेमाल चन्द्रमा के धुवों के स्थायी रूप       से आच्छादित क्षेत्रों में कुछ मीटर की गहराई तक जल हिम का पता लगाने के लिए किया जायेगा।

.      अमरीका से मून मिनरलॉजी मैपर -जिसका इस्तेमाल उच्च स्पेसियल और स्पैक्ट्रल      रिजोल्यूशन्स में स्पेक्ट्रोस्कोप के ज़रिए खनिजों के मानचित्रण के लिए किया जायेगा।

 

चन्द्रयान-1 क्यूब के आकार का है जिसके एक ओर सोलर पैनल लगा है। इसकी अनेक प्रणालियों को लघुरूप दिया गया है ताकि इसके 11 वैज्ञानिक पेलोड्स की सुरक्षित और सक्षम कार्यप्रणाली सुनिश्चित की जा सके। सोलर पैनल अधिकतम 700 डब्ल्यू ऊर्जा पैदा कर सकता है। 36 ऐम्पियर-अवर लिथियम आयन बैटरी उस समय उपग्रह को ऊर्जा प्रदान करेगी जब सोलर पैनल प्रदीप्त न हो रहा हो।

नए मार्गों का सृजन:-

चन्द्रयान-1 अभियान में, इसरो अनेक ऐसी गतिविधियों को अंजाम देगा जिनकी पहले कभी परिकल्पना नहीं की गई थी।

. धरती की गुरुत्वाकर्षण शक्ति से बचाते हुए किसी अंतरिक्षयान को चन्द्रमा के प्रक्षेप पथ में पहुंचाना और चन्द्रमा के आस-पास पहुंचने के बाद उपग्रह को धीरे धीरे नीचे लाना और उसे चन्द्रमा की गुरुत्वाकर्षण शक्ति द्वारा ग्रहण किए जाने की अनुमति देना। चन्द्रयान-1 द्वारा आम तौर पर तय की जाने वाली दूरी से दस गुणा अधिक होगी।

. श्री हरिकोटा से चन्द्रमा तक की समूची यात्रा के दौरान अंतरिक्ष यान की ट्रैक, कंट्रोल और कमान प्रक्रियाएं अत्यन्त जटिल अभ्यासों से गुजरेंगी।

. उपग्रह की कक्षीय जिंदगी के दौरान उसके स्वास्थ्य और सलामती के बारे में गहन अंतरिक्ष से संकेत प्राप्त करना और साथ ही दो वर्ष की अवधि तक यान में लगे उपकरणों और चन्द्रमा पर लक्षित रूप में संघात किए जाने पर एमआईपी से जटिल और भारी मात्रा में आंकड़े प्राप्त करना।

. दो वर्ष तक कक्षा में रहने के दौरान चन्द्रयान-1 को नियंत्रित और निर्देशित करना

. चन्द्रमा से प्राप्त होने वाले व्यापक और विविध प्रकार के वैज्ञानिक आंकड़ों का विश्लेषण करना और वैज्ञानिक समुदाय के साथ उनकी हिस्सेदारी करना।

गहन अंतरिक्ष नेटवर्क केन्द्र

       अंतरिक्ष में इतनी अधिक दूरी से प्राप्त होने वाले रेडियो संकेत कितने शक्तिशाली होंगे? करीब 4 लाख किलोमीटर की दूरी से मिलने वाले संकेत नि:संदेह दुर्बल होंगे। आंकड़ों को प्राप्त करने, सुदृढ़ बनाने, विश्लेषण करने और उन पर कार्य करने के लिए एक अत्याधुनिक भारतीय गहन अंतरिक्ष नेटवर्क केन्द्र बंगलौर से 35 किलोमीटर दूर बाइअलालु में कायम किया गया है। इस केन्द्र पर गहन अंतरिक्ष संकेत प्राप्त करने के लिए 18 मीटर के पैराबोलिक डिश भविष्य में चन्द्र अभियानों के अलावा अंन्तरग्रहीय अभियानों को समर्थन दे सकता है। इलेक्ट्रोनिक्स कार्पोरेशन ऑफ इंडिया ने इस केन्द्र को अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप बनाया और चालू किया है। बाइअलालु गांव की स्थिति इस दृष्टि से आदर्श है। वह बाहरी रेडियो शोर से मुक्त है और चारों ओर से पर्वतों से घिरा हुआ है।

       चन्द्रयान-1 को 22 अक्तूबर 2008 को सुबह 6.20 पर निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार सफलतापूर्वक अंतरिक्ष में छोड़ दिया गया है। लगभग 15 दिन की यात्रा के बाद 8 नवम्बर को यह चन्द्रमा की कक्षा में पहुंचेगा। रुसी सहयोग से तैयार मिशन चन्द्रयान-2 के अंतर्गत 2011-2012 तक चन्द्रमा की सतह पर इन्स्ट्रूमेंट सहित लैंडर#रोवर (एक रोबोट) उतारा जायेगा।

       चन्द्रमा तक पहुंचने और उसे छूने की दिशा में प्रथम असाधारण कदम उठाया जा चुका है। इसरो जिस तरह अपनी गतिविधियों को व्यवस्थित रूप से कार्यान्वित करता है उसकी झलक चन्द्रयान-1 में भी दिखाई दे रही है। इससे यह विश्वास पैदा होता है कि यह व्यापक स्वरूप वाला कार्यक्रम मिशन के सभी लक्ष्यों को हासिल करेगा और अपेक्षित सफलता प्राप्त करेगा।

 

कोई टिप्पणी नहीं: