सोमवार, 17 मार्च 2008

अमेरिकावासी और जापानवासी भी लेते हैं पन्ना के आंवला मुरब्बा का स्वाद आंवला उत्पाद संवार रहे हैं मजदूर परिवारों का जीवन

अमेरिकावासी और जापानवासी भी लेते हैं पन्ना के आंवला मुरब्बा का स्वाद आंवला उत्पाद संवार रहे हैं मजदूर परिवारों का जीवन

By - J.P. Dhoulpuria , Public Relations Oficer District Panna M.P.

 

पन्ना 17 मार्च- पन्ना के सकरिया गांव के आंवला मुरब्बे के स्वाद और मिठास की चर्चा सात समंदर पार तक पहुंच गई है। महिला कारीगरों के कुशल हाथों से निकला यह आंवला मुरब्बा पर्यटकों के जरिए सकरिया गांव से अमेरिका और जापान तक का सफर तय कर चुका है।

 

              पन्ना जिले का सकरिया गांव झांसी-इलाहाबाद राष्ट्रीय राजमार्ग पर बसा है। यहां पहुंचते ही नजर आते हैं लद्यु वनोपज प्रसंस्करण एवं उपचार केन्द्र के 42 हैक्टेयर में फैले आंवला के पेड़, जिनसे सालाना पैदा होता है उन्नत नस्ल का 60 क्ंविटल आंवला । गरीब परिवारों का जीवन संवारने के लिए राज्य सरकार की पहल पर उत्तर वन मंडल ने इन आंवलों के विभिन्न उत्पाद तैयार करने का काम शुरू किया था। इस आंवला केन्द्र में सकरिया समेत हीरापुर एवं चौपड़ा गांव के गरीब परिवारों के 25 पुरूषों और 50 महिलाओं को काम पर लगाया गया। इनमें अधिकांश आदिवासी वर्ग के लोग शामिल हैं। आज इन लोगों ने अपनी मेहनत और आत्मविश्वास से आत्मनिर्भरता की एक ऐसी कहानी लिखी है, जिसने सकरिया को एक नई शक्ल और एक अलग पहचान दी है।

 

              इन तीनों गांवों की गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने वाले करीब चार दर्जन परिवारों की महिलाएं आंवला उत्पादों को स्वादिष्ट रूप देने में माहिर हो गई हैं। आंवलों पर इनकी श्रम साधना की ख्याति आज देश की सीमाएं लांघकर विदेशों में धाक जमाने की राह पर हैं। सकरिया गांव इन महिलाओं की बदौलत आंवला उत्पादों के उत्पादन का बड़ा केन्द्र बनने लगा है। आंवला केन्द्र के मिठास और स्वाद से भरे आवंला उत्पाद पर्यटकों को लुभाने में सफल हो रहे हैं और विदेशी पर्यटक अपने साथ आंवला मुरब्बा ले जाना नहीं भूलते हैं।

 

              लद्यु वनोपज प्रसंस्करण एवं उपचार केन्द्र में जो उत्पाद तैयार किए जा रहे हैं, उनमें आंवलों का मुरब्बा, अचार, लड्डू, बरफी, सुपारी एवं आंवला रस प्रमुख हैं। यहां तक कि त्रिफला भी तैयार किया जा रहा है। उत्पाद निर्माण की इस पूरी प्रक्रिया में ज्यादातर हाथों के काम शामिल हैं और इसमें महिलाएं प्राकृतिक रूप से गोदने, सुखाने, बनाने व संरक्षण इत्यादि में परंपरागत तरीके अपनाती हैं। इन सभी उत्पादों की पूरी जांच की जाती है। उनकी गुणवत्ता मानकों का पूरा ध्यान रखा जाता है और कीमत भी वाजिब रखी जाती है। यही वजह है कि इन उत्पादों के प्रति उपभोक्ताओं की रूचि बढ़ी है। केन्द्र निर्मित उत्पादों का दिल्ली, मुम्बई, इन्दौर, भोपाल, जबलपुर, ग्वालियर, उज्जैन आदि देश के अधिकांश भागों में अच्छी खासी मांग है। निर्माण कार्य से जुडे हर श्रमिक को न केवल श्रम के लिए मेहनताना मिलता है, बल्कि लांभाश भी दिया जता है।

              आज यह केन्द्र ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार सृजित कर आजीविका कमाने का आदर्श बन गया है। केन्द्र के अस्तित्व में आने के बाद सकरिया, हीरापुर, चौपड़ा ग्राम के 75 लोगों की साल भर की कमाई का इंतजाम तो है ही, इसके साथ-साथ वहां की महिलाओं के हाथों में आजीविका के लिए कल तक पेड़ों को काटने के लिए कुल्हाड़ी रहती थी, उन्हें एक नई भूमिका मिली है, जिसने उनके आत्मविश्वास को भी बढ़ाया है। कभी फांकाकशी करने वाले इन गरीब परिवारों के घरों के हालात बदल गए हैं। अच्छी आमदनी होने से कई मजदूर परिवारों ने मकान बना लिए हैं और जमीन खरीद ली है। उनके रहन-सहन का स्तर बदल गया है। उत्तर वन मंडल के वनमंडलाधिकारी श्री निजाम कुरैशी बताते हैं कि आंवला उत्पाद निर्माण कार्य गांव में गरीब परिवारों के लिए रोजगार के अवसर के रूप में बेहद फायदेमंद साबित हो रहा है। लद्यु वनोपज प्रसंस्करण एवं उपचार केन्द्र के प्रभारी श्री रमेश कुमार मिश्रा डिप्टी रेंजर का कहना है कि इस केन्द्र के शुरू होने के बाद से लोगों को रोजगार मिलने से इन क्षेत्रों में वनों की कटाई में भारी कमी आई है। केन्द्र के बगैर रेशे वाले उन्नत प्रजाति के आंवलों से प्रेरित होकर 24 किसानों ने मुनाफा कमाने की चाह में 30 हैक्टेयर रकवे में आंवला समेत हरर व बहेड़ा के पेड़ लगा लिए हैं।

 

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