सोमवार, 3 मार्च 2008

अधिवक्तागण अपने व्यावसायिक सुधार के पक्ष की ओर ध्यान दें-जस्टिस धर्माधिकारी

अधिवक्तागण अपने व्यावसायिक सुधार के पक्ष की ओर ध्यान दें-जस्टिस धर्माधिकारी

''विवादों के निपटारे में वैकल्पिक प्रणाली'' विषय पर संगोष्ठी आयोजित

मध्यप्रदेश मानव अधिकार आयोग के अध्यक्ष जस्टिस डी.एम. धर्माधिकारी ने कहा है कि अधिवक्ताओं को न्याय प्रशासन के सुधार के साथ ही अपनी व्यावसायिक गुणवत्ता के स्तर को सुधारने की ओर ध्यान देने की बड़ी जरूरत है। उन्होंने कहा कि न्याय की उम्मीद रखकर आने वाले पक्षकारों को अधिवक्ताओं पर बड़ा विश्वास रहता है, पक्षकारों के इस विश्वास को बनाये रखने के लिए ईमानदार प्रयास होने चाहिए। श्री धर्माधिकारी ने यह बात आज यहां 'विवादों के निपटारे में वैकल्पिक प्रणाली' विषय पर आयोजित संगोष्ठी में कही। इस अवसर पर प्रमुख वक्ता आंध्रप्रदेश उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायधिपति जस्टिस पर्वतराव थे। संगोष्ठी में भोपाल की जिला एवं सत्र न्यायधीश श्रीमती रेणु शर्मा, अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश श्री रामकुमार चौबे तथा वरिष्ठ अधिवक्ता श्री सेवकराम सोभानी मुख्य रूप से उपस्थित थे।

जस्टिस धर्माधिकारी ने कहा कि न्याय-प्रशासन के साथ न्याय दिलाने में मदद करने वाले लोग भी निष्पक्ष एवं कर्तव्य के प्रति ईमानदार होना जरूरी हैं। अन्य स्थिति में लोगों की न्याय-प्रणाली के प्रति आस्था में कमी हो सकती है, ऐसी स्थिति समूचे देश के लोकतंत्र के लिए हितकारी नहीं होगी। उन्होंने कहा कि विवादों के त्वरित निपटारे के लिए वैकल्पिक प्रणाली अपनाना अच्छी बात है। इसमें मध्यस्थता, परस्पर समझौता और पंच निर्णय भी सहायक हो सकते हैं। यदि इन से भी काम न बने तो न्यायालय को अंतिम विकल्प के रूप में अपनाया जा सकता है। श्री धर्माधिकारी ने कहा कि कालांतर में उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालयों में लोकहित याचिकांए बड़ी संख्या में आने लगी हैं, इससे भी न्यायालयों के काम में वृध्दि हुई है। उन्होंने सुझाव दिया कि लोकहित याचिकाओं पर विचार के लिए जिला स्तर की अदालतों में सेवानिवृत्त वरिष्ठ न्यायाधीशों की सेवाएं लेना भी हितकर होगा। श्री धर्माधिकारी ने कहा कि विगत दो-तीन वर्षों में कुछ ऐसे नये कानून बनाये गये हैं जिसमें पूरी जिम्मेदारी कार्यपालिका को सौंपी गई है। जैसे किशोर न्याय अधिनियम, परिवार परामर्श केन्द्र, श्रम विवाद, वृध्दजनों का संरक्षण अधिनियम आदि में वकीलों की भूमिका को समाप्त कर दिया गया है। उन्होंने कहा कि न्यायालयों में पेश होने वाले बहुतेरे मामलों में प्रशासनिक विवाद होते हैं। ऐसे प्रकरणों के लिए सेवानिवृत्त अनुभवी न्यायाधीशों की सेवाएं ली जा सकती हैं। श्री धर्माधिकारी ने कहा कि प्रकरणों के शीघ्र निपटारे के लोक अदालत अच्छा माध्यम है।

जस्टिस पर्वतराव ने कहा कि प्रकरणों के लिए शीघ्र निपटारे में निचली अदालतों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। उन्होंने बताया कि कैलिफोर्निया में पंद्रह साल पहले ट्रायल कोट्र्स तक तीन से चार फीसदी मामले ही पहुंच पाते थे, जबकि अधिकांश मामले पंच निर्णय और परस्पर समझौते से ही निपट जाते थे। उन्होंने सुझाव दिया कि सरकार को अंत-र्विभागीय विवादों के निपटारे में वैकल्पिक प्रणाली का सहारा लेना चाहिए। उन्होंने कहा कि न्यायाधीशों को न्यायिक अकादमियों में मध्यस्थता का प्रशिक्षण देकर उनकी दक्षता बढ़ानी चाहिए। परस्पर परामर्श की विधि भी विवादों को त्वरित निपटारे में बड़ी सहायक होती है। इसमें न्यायाधीश को दोनो पक्षकारों के बीच समझौते की मानसिकता बनाने की कोशिशें करनी चाहिए। उन्होंने अधिवक्ताओं से कहा कि वे अपना व्यवसाय केवल अर्थोर्पाजन के उद्देश्य से न करते हुए लोगों की मदद के लिए भी करें। इसलिए उन्हें अपना व्यावसायिक रवैया बदलना होगा। भोपाल की जिला एवं सत्र न्यायाधीश श्रीमती रेणु शर्मा ने कहा कि न्यायालयों में न्यायाधीशों सहित बुनियादी ढाँचे की बड़ी कमी है। वकील भी प्रकरणों के त्वरित निपटारे में अपेक्षित पहल नहीं करते हैं। लेकिन फिर भी हमें अपनी विद्यमान व्यवस्था से ही समस्या का हल निकालना होगा। उन्होंने बताया कि शनिवार को जिला न्यायालय में आयोजित लोक अदालत में 114 प्रकरण निपटाये गए। वकीलों को अपने पक्षकार के लिए सच्चे न्याय मित्र की भूमिका का निर्वहन करना चाहिए। समझौते के सुपात्र प्रकरणों को लंबित रखने का कोई औचित्य नहीं होता। श्रीमती शर्मा ने कहा कि भोपाल में ही 110 सेवानिवृत्त न्यायाधीश हैं, जिनकी सेवाएं कुछ खास प्रकार के मामलों के निपटारे के लिए ली जा सकती हैं। अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश श्री रामकुमार चौबे कहा कि हमारे देश में न्याय-प्रशासन की भारी कमी है। इसलिए पंच-निर्णय और परस्पर समझौतों जैसे उपायों को त्वरित निराकरण का माध्यम बनाना समय की मांग है। उन्होंने कहा कि विवादों के निपटारे में दोनों पक्षों के बीच बातचीत एक कारगर उपाय है। वरिष्ठ अधिवक्ता श्री सेवकराम सोभानी ने कहा कि विवाद समाधान की वैकल्पिक प्रणाली में न्याय-प्रशासन को वकीलों का सहयोग मिलना जरूरी है। श्री सोभानी ने कहा कि पूर्व में पक्षकारों के बयान भिन्न होने की स्थिति में न्यायाधीश-गण बयान लेकर प्रकरणों को संक्षिप्त कर देते थे, और उस प्रकार विचार के बिन्दु निर्धारित कर निर्णय लिया करते थे। लेकिन कालांतर में इस प्रक्रिया को अपनाना छोड़ दिया गया है। इस कारण भी अनेक मामले लम्बे समय तक न्यायालयों में चलते रहते हैं। उन्होंने कहा कि प्री-लिटीगेशन की कोशिशें करने से तो अनेक मामले न्यायालय में चलाने की जरूरत ही नहीं पड़ती। इसलिए पंचनिर्णय पध्दति अपनाकर प्रकरणों की संख्या को कम किया जा सकता है। श्री सोभानी ने कहा कि न्याय प्रशासन में शिथिलता के कारण भी बहुत मामले बड़े समय तक लंबित रहते हैं। न्यायालयो के रिकार्डरूम और कॉपी सेक्शन की व्यवस्थाएं भी चुस्त-दुरूस्त होनी चाहिए। कार्यक्रम का संचालन वरिष्ठ अधिवक्ता श्री बृजकिशोर सांघी तथा आभार प्रदर्शन ठाकुर जगदीश सिंह परमार ने किया। इस अवसर पर सेवारत और सेवानिवृत्त न्यायाधीश-गण तथा भोपाल के वरिष्ठ अधिवक्ता बड़ी संख्या में उपस्थित थे।

 

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