बुधवार, 12 मार्च 2008

मोती महल का पुराना वैभव पुन: सजीव

मोती महल का पुराना वैभव पुन: सजीव

असलम खान ( ब्‍यूरो चीफ जिला ग्‍वालियर )

मोती महल, बेजा ताल, इटेलियन गार्डन, चंदेरी का राज महल और न्याय भवन तथा शिवपुरी की छत्रियों का पुराना वैभव पुन: सजीव हो रहा है । यह कार्य इंटेक की देख-रेख में राजस्थान, आगरा तथा हैदराबाद के दक्ष कारीगरों द्वारा किया जा रहा है । संरक्षण कार्य की गुणवत्ता पर पूरा ध्यान दिया गया है, इसलिये काम को पूरा करने में समय भी लगा ।

       भारत का इतिहास राजनीतिक क्रांतियों और युध्द बाहुल्य से भरा हुआ है । कितने राज्य और राजे और विनिष्ट हो गये । चौदवीं सदी से मुस्लिम आक्रमण के उपरांत राजस्थान आये और बुंदेलखंड में राजप्रसाद निर्माण में पत्थर का उपयोग होने लगा । यह भी हो सकता है कि युध्द में बारूद के उपयोग के कारण बचाव की दृष्टि से अधिक मजबूत और सुरक्षित निर्माण के लिये भी पत्थर का प्रयोग किया जाने लगा । शायद तभी भारतीय राजप्रसाद (मान मंदिर) दुर्ग के भीतर सुरक्षित स्थल पर निर्मित किये जाते थे । ग्वालियर का प्राचीन राजमहल, गूजरी महल, प्राचीन दुर्ग की दीवार के सिरे के अधिकांश भाग पर स्थित है जिसके निर्माण का श्रेय मानसिंह (1486-1518 ई.) को है । कालान्तर में ग्वालियर के सिंधिया शासको ने शुक्राचार्य के बताये सिध्दांतानुसार सरोवर युक्त (बेजाताल) विशाल राज प्रसाद मोतीमहल बनवाया । जिसमें सभा मंडप, कार्यालय और राजवंशकों के निवास का प्रावधान किया गया था । शिल्पकारों ने शीतलता, विश्राम और सौंदर्य पूर्ति के लिये कला की ठोस और सुंदर रूचि का परिचय दिया । प्रभावोत्पादक दोहरे कारनीस, जलमार्ग, फौवारा और तलघर सब खास है मोती महल में ।

       मोती महल में 42 रागमाला चित्र विशेष महत्वपूर्ण है कारण रागमाला परंपरा के यह लगभग अंतिम चित्र हैं । सिंधिया राजाओं के आश्रय में पनपी यह चित्रकला ''राजस्थानी'' ''पश्चिम भारतीय शैली'' के साथ कहीं-कहीं कुछ स्वतंत्र अस्तित्व का परिचय देती है । सिंधिया शासन के प्रमुख जिवाजी राव सिंधिया ने मोती महल तथा अन्य महलों में ''नागपुर वाला'' नामक चित्रकार के निर्देशन में भित्ति चित्रों का निर्माण कराया था । चित्र हिन्दु पुराणों, राग-रागनियों, विशेष अवसर पर आयोजित दरबार और दशहरा जलूस के हैं । मोती महल के कुछ कमरों में कांच के जड़ाव का काम है तथा कुछ में छतों और दीवारों पर सधी हुई तूलिकाओं से खूबसूरत बेल-बूटे उकेरे गये हैं । दरबार हॉल और उसके अग्रकक्ष में स्वर्ण-वर्क से सजावट की गई है ।

       मोती महल का पूरी तरह राजप्रसाद के रूप में उपयोग नहीं हो सका । मुगलों के बाद अंग्रेजों के आ जाने से ग्वालियर राज्य के शासक योरूपीय कला से विशेष प्रभावित हुये । फलस्वरूप यहां इटालियन शैली में उनका निवास प्रसाद जय विलास महल का निर्माण हुआ और इटालियन गार्डन बनाया गया ।

       मोती महल में मध्य भारत का सचिवालय व बाद में वर्ष 1956 में मध्यप्रदेश राज्य के गठन के उपरांत संभागायुक्त कार्यालय सहित विभिन्न विभागों के शासकीय कार्यालय स्थापित कर दिये गये । समय अपनी गति से चलता रहा और कई कक्षों में सुंदर चित्रकारी को चूने ने और कई कक्षों में धुएं ने ढांप लिया । पत्थर की महराबें, जालियां क्षतिग्रस्त हो गई । इंटेक अब मोती महल के चुनिंदा हिस्से का सिलसिलेवार पुन:उध्दार कर रहा है । बेजाताल में भी ग्राउटिंग का कार्य किया जा रहा है और जल के भीतर रंगमंच को भी फिर से संवारा जा रहा है । 

       सिंधिया शासकों ने अपने पूर्वजों के शवदाह स्थल पर स्मारक के रूप में राजपूत राजाओं के समान छत्रियों का निर्माण करवाया जिनमें भारतीयता लिये मुस्लिम एवं पाश्चात्य कला की झलक दिखाई देती है । शिवपुरी, ग्वालियर रियासत की ग्रीष्मकालीन राजधानी हुआ करती थी । यहां स्वर्गीय माधवराव सिंधिया और उनकी माता सख्याराजे सिंधिया की छत्री है जो उद्यान में स्थित है । शिवपुरी की संगमरमर से बनाई गई यह छत्रियां अद्वितीय हैं । समय के साथ उनके पत्थर की वेदरिंग हुई है और उनकी भी नकासी प्रभावित हुई है । जिसका संरक्षण बहुत आवश्यक हो गया है ।

       चंदेरी मालवा और बुदंलेखंड को जोड़ने वाला महत्वपूर्ण नगर है जो चंदेरी साड़ियों के कारण विशेष ख्याति हासिल कर चुका है । साथ ही यह मध्य भारत के व्यापार मार्ग का भी पड़ाव है । यहां 9वीं एवं 10वीं सदी के जैन मंदिर धार्मिक आस्था का विशेष आकर्षण है । चंदेरी का राजमहल और न्याय भवन पुरातत्व की दृष्टि से अपना विशेष स्थान रखते हैं । इंटेक ने इसके संरक्षण का दायित्व भी अपने हाथ में लिया है ।

 

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