शुक्रवार, 7 मार्च 2008

भैंस चक्कर क्यों काटती है ? गेहूं के मामा का क्या इलाज करें ? चम्‍बल के किसानों की समस्‍याओं के समाधान दूरदर्शन पर पहली बार हुआ सीधा प्रसारण

भैंस चक्कर क्यों काटती है ? गेहूं के मामा का क्या इलाज करें ? चम्‍बल के किसानों की समस्‍याओं के समाधान दूरदर्शन पर पहली बार हुआ सीधा प्रसारण

खुश हुये चम्‍बलवासी दूरदर्शन पर खुद का सीधा प्रसारण देख कर

 

कृषकों ने फसल संगोष्ठी में पाया अपनी समस्याओं का समाधान

 

ग्वालियर 6 मार्च 08 । भैंस चक्कर क्यों काटती है ? गेहूं के मामा का क्या इलाज करें ? लहसुन की पत्तियां क्यूं सिकुड़ने लगती हैं ? कम वर्षा में क्या पैदा करें ? वॉटर शेड ?  मत्स्य पालन तथा मधुमक्खी पालन ?  फसलों को कीट व्याधि से कैसे बचायें ? माहू अगर मुहँ और नाक से मनुष्य के शरीर में चला जाये तो क्या असर करता है ? ... आदि-आदि कृषि, पशुपालन, बागवानी एवं कृषि आधारित उद्योग धंधों से जुड़े प्रश्नों एवं जिज्ञासाओं का कल आचंलिक कृषि अनुसंधान केन्द्र मुरैना में आयोजित फसल संगोष्ठी में दस विशेषज्ञों ने समाधान किया । इस सफल संगोष्ठी का आयोजन दूरदर्शन ग्वालियर द्वारा किया गया जिसका सीधा प्रदेश व्यापी प्रसारण भी हुआ ।

       भैंस चक्कर क्यों काटती है और चक्कर काटते-काटते मर जाती है । प्रश्न था एक जागरूक पशुपालक कृषक का जिसके उत्तर में कृषि विज्ञान केन्द्र मुरैना के पशुपालन विशेषज्ञ डॉ. पी.पी. सिंह ने बताया कि सर्रा (surra) रोग के कारण ऐसा होता है । जो ट्राईपैनसो -इवेनसाई नामक पराजीवी के कारण होता है । समय पर उपचार से मवेशी की रक्षा की जा सकती है । उन्होंने रोग प्रभावित भैंस को ट्राईक्विन एस-2 एमजी इंजेक्शन खाल के नीचे लगाने की किसानों को सलाह दी ।

कीट वैज्ञानिक डॉ. एम.एल. शर्मा ने एक जिज्ञासु के प्रश्न का उत्तर देते हुये कहा कि जब मौत करीब आती है तो पंख लग जाते हैं । माहू कीट के साथ भी ऐसा ही है । दरअसल जब तक माहू फसल से चिपका रहता है तब तक ही फसल की क्षति करता है । माहू की समस्या अब सात दिन की है । माहू के नाक व मुहं में जाने से मनुष्य को किसी भी प्रकार के नुकसान की अब तक कोई जानकारी नही है। परंतु माहू कीट के आंखों में जाने से जरूर थोडी परेशानी होती है ।

       खरपतवार नियंत्रण विशेषज्ञ डॉ. धर्वेन्द्र सिंह ने बताया कि गेहूं की फसल में तंग करने वाली खरपतवार गेहूं का मामा उर्फ गुल्ली डण्डा उर्फ लल्लू घास का बॉटनीकल नेम ''फैलेरिस माइनर'' है । कृषक सल्फा सलफयूरान-25 ग्राम (सक्रिय तत्व) प्रति हेक्टर की दर से 500 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रथम सिंचाई के उपरांत जब फसल 30 से 35 दिन के बीच हो छिड़काव करें तो गेहूं के मामा के छुटकारा पा सकते हैं । कृषक सकरी पत्तीवाले खरपतवारों से फसल की सुरक्षा के लिये आइसोप्रोटरान-75 प्रतिशत एक किलोग्राम प्रति हेक्टर की दर से 600 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रथम सिंचाई के उपरांत फसल के 30 से 35 दिन के बीच छिड़काव करें । चौड़ी पत्तीवाली खरपतवार बथुआ, कृष्णनील, चट्टी, जंगली पालक आदि से फसल को बचाने के लिये 2-4 डी सोडियम साल्ट 80 प्रतिशत 800 से 1250 ग्राम प्रति हेक्टर की दर से 600 लीटर पानी में मिलाकर फसल को 30 से 35 दिन के अंदर पहली सिंचाई के उपरांत छिड़काव करने की भी उन्होंने कृषकों को सलाह दी ।

       एक कृषक की कम पानी (अधिकतम तीन पानी) पर गेहूं पैदा करने की प्रबल इच्छा का समाधान करते हुये कृषि विशेषज्ञ डॉ. एस.एस. तोमर ने किसान को 20 से 25 दिन के दौरान पहला पानी, 60 से 65 दिन पर दूसरा तथा दूधिया अवस्था आ जाने पर तीसरा पानी लगाने की सलाह दी । उन्होंने कम वर्षा वाले क्षेत्र के किसानों को खरीफ में बाजरा तथा रबी में सरसों तथा चना लगाने की भी सलाह दी।

       आंचलिक कृषि अनुसंधान केन्द्र के निदेशक डॉ. वाई.एम. कूल ने कृषि जल प्रबंधन पर कृषकों की समस्याओं का समाधान किया । वॉटर शेड की अवधारणा पर प्रकाश डालने के साथ-साथ उन्होंने जल संरक्षण पर जोर दिया । उन्होंने कहा कि चंबल संभाग में 365 दिन में औसतन 25 से 28 दिन ही वर्षा होती है जो 650 एम.एम. है । उन्होंने 25 हेक्टर जल ग्रहण क्षेत्र में एक हेक्टर का दो से तीन मीटर गहरा तालाब बनाने की सलाह दी । साथ ही अतिरिक्त जल की निकासी के लिये तालाब में स्पिलवे भी रखने की सलाह दी । उन्होंने अनुसंधान केन्द्र की विभिन्न गतिविधियों से भी कृषकों को लाभ उठाने की अपील की ।

       मधुमक्खी पालन संबंधी प्रश्नों का उत्तर देते हुये वैज्ञानिक डॉ. अरविन्दर कौर ने बताया कि एक मधुमक्खी परिवार से औसतन 60 किलो शहद प्राप्त होता है । इसके अलावा मोम भी मिलता है । उन्होंने किसानों से प्रशिक्षण प्राप्त करने के उपरांत ही मधुमक्खी पालन की किसानों को सलाह दी । उन्होंने बताया कि कृषक मुरैना में आंचलिक अनुसंधान केन्द्र में भी यह प्रशिक्षण प्राप्त कर सकते हैं । साथ ही सरसों के फूलों से मुधमक्खी को मधु और परागकण दोनों ही मिलते हैं इस दृष्टि से भी मुरैना और आसपास का सरसों वाला क्षेत्र मधुमक्खी पालन की दृष्टि से श्रेष्ठ क्षेत्र है ।

       कृषकों को चने में उंगटा रोग से बचाव के लिये बीजोपचार का महत्व समझाया गया तथा फफूंद नाशक बीजोपचार की दवाओं की भी जानकारी दी गई । संगोष्ठी में कृषि उपकरणों, मत्स्य पालन, आंवले में तना मक्खी का समय रहते बचाव, सावधानियां एवं उपचार, राज्य शासन की कृषक हितकारी योजनाओं सहित विविध जानकारियां दी गई ।

       संगोष्ठी में कृषकों के साथ कृषि महाविद्यालय ग्वालियर के छात्र-छात्राओं ने भी शिरकत की । एक महिला कृषक द्वारा महिलाओं की भूमिका तथा शासकीय सुविधाओं संबंधी प्रश्न का समाधान करते हुये ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं को आगे लाने वाली शासकीय योजनाओं की जानकारी दी गई ।

       शाम सवा चार बजे से प्रारंभ यह संगोष्ठी सांय साढ़े छ: बजे तक चली । केन्द्र निदेशक आकाशवाणी डॉ. आर.बी. भण्डारकर ने प्रारंभ में फसल संगोष्ठी  की पृष्ठ भूमि पर प्रकाश डाला । साथ ही कृषि वैज्ञानिकों तथा  कृषकों का स्वागत भी किया । संगोष्ठी में सर्वश्री एन.आर. भास्कर, उपसंचालक कृषि मुरैना, गोविन्द प्रसाद परते, सहायक संचालक उद्यानिकी, डॉ. वाई.एम. कूल, डॉ. एस.एस. तोमर, डॉ. एम.एल. शर्मा, डॉ. एस.के. त्रिवेदी, इंजी. के. किशोर, डॉ. धमेन्द्र सिंह, डॉ सुश्री अरविन्दर कौर तथा डॉ. पी.पी. सिंह ने बतौर विषय विशेषज्ञ शिरकत की । संगोष्ठी का सफल संचालन कृषि महाविद्यालय के सहायक प्राध्यापक श्री यशवंत इन्द्रापुरकर ने किया । श्री ऋषिमोहन श्रीवास्तव ने एंकर फील्ड तथा श्री आर.के. यादव एवं श्री आर.ए. झलानी ने कुशल प्रस्तुतकर्ता के दायित्व का निर्वहन किया ।

 

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