रविवार, 6 सितंबर 2009

रासायनिक उर्वरक का विकल्प ''नाडेप कम्पोस्ट''

रासायनिक उर्वरक का विकल्प ''नाडेप कम्पोस्ट''

ग्वालियर 06 सितम्बर 09। अधिकतर कृषक मनमाने तरीके से रासायनिक उर्वरकों का उपयोग कर रहे हैं, परिणाम स्वरूप हमारे खेतों की मृदा संरचना खराब हो रही हैं तथा उत्पादन स्थिर। इस कमी को दूर करने के लिये नाडेप कम्पोस्ट कारगर उपाय है। नारायण देवराज पण्डरी पांडे, नाडेप टांका ग्राम पुसर जिला यवतमाल महाराष्ट्र द्वारा नाडेप कम्पोस्ट की विधि विकसित की गई। नाडेप कम्पोस्ट प्रदूषण मुक्त एवं रासायनिक उर्वरकों के विकल्प के रूप में खेतों के लिये अच्छी खाद सिध्द हुई  है। यह भूमि में रासायनिक उर्वरकों से उत्पन्न विकारों को दूर करने के साथ-साथ मृदा संरचना  को भी सुधारती है एवं आर्थिक दृष्टि से भी लाभदायक है । साथ ही कम से कम गोबर का उपयोग करके अधिक से अधिक खाद बनाने की यह उत्तम पध्दति है। इस पध्दति द्वारा एक गाय के वार्षिक गोबर से 80 से 100 टन यानि लगभग 150 गाड़ी खाद बनाई जा सकती है । इस खाद में नत्रजन 0.5 से 1.5 प्रतिशत, स्फुर 0.5 से 0.9 प्रतिशत, पोटाश 1.2 से 1.4 प्रतिशत व इसके अतिरिक्त अन्य सूक्ष्म मृदा पोषक तत्व भी पाये जाते हैं।

       नाडेप खाद तैयार करने के लिये तीन प्रकार के नाडेप टांका बनाये जा सकते हैं। पक्के नाडेप टांका, टटिया नाडेप या कच्चे नाडेप टांका तथा भू नाडेप टांका। आकार में टांका 10 फीट लम्बा, 6 फीट चौड़ा एवं 3 फीट ऊंचा अथवा 12 फीट लम्बा, 5 फीट चौड़ा और 3 फीट ऊंचा बनाया जाना चाहिये।

       पक्के नाडेप टांका ईंटों द्वारा बनाये जाते हैं । ईंटों को जोड़ते समय तीसरे छठे एवं नवें रद्दे में छेद बनेंगे । इस प्रकार हर दो रद्दे की जुड़ाई करते समय हर ईट जुड़ाई के बाद 7 इंच का छेद छोड़कर जुड़ाई करें । इस प्रकार चारों दीवारों में छेद बनेंगें । छेद इस प्रकार रखिये कि पहली लाईन के दो छेदों के मध्य मे दूसरी लाईन के छेद आयें और दूसरी लाईन के छेदों के मध्य में तीसरी लाइन के छेद आयें। इस टांके की अंदर और बाहर की दीवारों और फर्श को गोबर मिट्टी से लीप दें। बरसात व अत्याधिक गर्मी में नाडेप टांके के ऊंपर अस्थाई छाया दें ।

       कच्चे या टटिया नोडप बांस, बेशरम आदि की लकड़ियों से बनाते हैं । इसमें हवा का आवागमन स्वाभाविक रूप से छेद होने के कारण अपने आप ही होता है । इसी प्रकार भू नाडेप टांका परम्परागत तरीके के विपरीत बिना गड्डा खोदे जमीन पर एक निश्चित आकार 12 फीट लम्बा, 5 फीट चौड़ा और 3 फीट ऊंचा अथवा 10 फीट लम्बा, 6 फीट चौड़ा और 3 फीट ऊंचा आकार के अनुसार ले-आउट देकर बनाया जाता है । भू-नाडेप टांका आयताकार व व्यवस्थित ढेर को चारों ओर से गीली मिट्टी से लीपकर बंद कर दिया जाता है । बंद करने के दो तीन दिन बाद गीली मिट्टी के हल्के सख्त होने पर गोलाकार अथवा आयताकार टीन के डिब्बे से ढेर की लम्बाई व चौड़ाई में 9-9 इंच के अंतर पर 7 से 8 इंच गहरे छिद्र बनाये जाते हैं । इन छिद्रों से हवा का आवागमन होता है और आवश्यकता पड़ने पर पानी भी डाला जा सकता है। ताकि नाडेप टांका में पर्याप्त नमी रहे और विघटन क्रिया अच्छी तरह से हो सके।

       नाडेप टांका को भरने के लिये वानस्पतिक व्यर्थ पदार्थ जैसे सूखे पत्ते, छिलके, डण्ठल, भूसा आदि 1400 से 1500 किलोग्राम जो लगभग 400 घनफीट होगा । गोबर 100 से 120 किलो (8 से 10 टोकरी) अथवा गैस बॉयोगैस प्लांट निकली स्लरी भी उपयोग में लाई जा सकती है । सूखी छनी मिट्टी-खेती की या नाले वगैरह की मिट्टी लें। मात्र 1750 किलो गौमूत्र डालें तथा 1500 से 2000 लीटर (8-10 ड्रम) पानी कम्पोस्ट खाद की गुणवत्ता बढ़ाने के लिये गौमूत्र एवं पशुओं का मूत्र मिट्टी में मिलाकर उसका उपयोग करें ।

       नाडेप टांके को भरने से पहले टांके के अंदर की दीवार एवं फर्श पर गोबर पानी का घोल छिड़क कर अच्छी तरह गीला कर लें तत्पश्चात पहली परत के रूप में वानस्पतिक पदार्थ 6 इंच भरें । इस 30 घन फीट में 100 से 110 किलो सामग्री आयेगी । वनस्पतिक पदार्थ के साथ 3 से 4 प्रतिशत कड़वा नीम या पलाश की हरी पत्ती मिलाना लाभदायक होगा जिससे दीमक का भी नियंत्रण होगा ।

       दूसरी परत में गोबर का घोल 125 से 150 लीटर पानी में 4 किलो गोबर घोलकर पहली परत पर इस प्रकार छिड़कें कि पूरी वनस्पति अच्छी तरह भीग जाये। गर्मी के मौसम में पानी की मात्रा अधिक रखें ।  

       तीसरी परत में साफ सूखी छनी मिट्टी , भीगी हुई वनस्पति परत पर वास्तविक वजन की 50 प्रतिशत यानी 50 से 55 किलो काली मिट्टी समतल बिछा दें । उस पर थोड़ा पानी छींट दें । टांके को इस प्रकार तीन परतों में क्रम से लगातार टांके के ऊपर 1.5 फीट ऊंचाई तक झोंपड़ीनुमा आकार में भरते जाइये । 11 से 12 तहों में टांका भर जायेगा । अब भरे टांको को सील कर दें । भरी सामग्री के ऊपर 3 इंच की मिट्टी 400 से 500 किलो मिट्टी की तह जमा दें और उसे गोबर के मिश्रण से व्यवस्थित रूप से लीप दें । इस पर दरारें पड़ें तो इन्हें पुन: लीपते रहें ।

       15 -20 दिन बाद खाद सामग्री सिकुड़कर टांके के मुंह से 8 से 9 इंच नीचे चली जायेगी । तब पहले की भराई की तरह वानस्पतिक पदार्थ, गोबर घोल, छनी मिट्टी की परतों से पुन: टांके की सतह से 1.5 फीट ऊंचाई तक पहले जैसा भरकर लीप कर सील कर दें । 90 से 120 दिन में तैयार खाद गहरे भूरे रंग की बन जाती है और उसकी दुर्गन्ध समाप्त होकर एक अच्छी खुशबू आती है । खाद में 15 से 20 प्रतिशत नमी रहना ही चाहिये । इस खाद को एक वर्ग फीट में 35 तार छिद्र वाली छलनी से छान लेना चाहिये , छनी हुई नाडेप कम्पोस्ट खाद उपयोग में लाना चाहिये । छलनी के ऊंपर का अधपका कच्चा माल फिर से खाद बनाते समय वानस्पतिक पदार्थ के साथ उपयोग किया जा सकता है । एक टांके से लगभग 2.5 से 2.7 टन खाद मिलता है जो एक हैक्टेयर क्षेत्र के लिये पर्याप्त होता है । नाडेप कम्पोस्ट की सरल तकनीक सहज ही कृषक अपनाकर दोहरा लाभ ले सकते हैं ।

 

नाडेप कम्पोस्ट की विशेषता

इस विधि से तैयार खाद परम्परागत तरीके से तैयार की गई खाद से 3 से 4 गुना अधिक प्रभावशाली है । परम्परागत खाद से नींदा बढ़ते हैं । जबकि नाडेप कम्पोस्ट से नींदा में वृध्दि नहीं होती । क्यों कि नाडेप कम्पोस्ट में गर्मी के कारण नींदा बीजों की उगने की शक्ति नष्ट हो जाती है। नाडेप कम्पोस्ट के उपयोग से कृषक रासायनिक खाद एवं कीटनाशक दवाओं के दुष्परिणाम से बचेगा और विदेशी मुद्रा की भी बचत होगी। नाडेप कम्पोस्ट पध्दत्ति सम्पूर्णतया अप्रदूषणकारी है व इसके उपयोग से फ्यूमिक एसिड बनने की प्रक्रिया में गति आती है जिसके फलस्वरूप पर्याप्त ह्मूमस बनने की प्रकिया भूमि की जीवंतता को बनाये रखती है ।

 

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