रविवार, 10 मई 2009

बोनी से पूर्व बीजोपचार से मिलती है अच्छी पैदावार

बोनी से पूर्व बीजोपचार से मिलती है अच्छी पैदावार

By: Zonal Public Relations Office- Gwalior- Chambal Zone

ग्वालियर 10 मई 09। अच्छी पैदावार प्राप्त करने के लिए फसलों के बीज निरोगी होना आवश्यक है। इसलिए कृषि विशेषज्ञों द्वारा बोनी से पूर्व बीजोपचार की सलाह दी जाती है। कृषि विशेषज्ञों के अनुसार कई प्रकार के रोग बीजों के द्वारा फैलते हैं। मसलन पौध गलन, पत्तों पर धब्बा रोग व बीज सड़न जैसे रोगों से फसलों को बहुत नुकसान पहुंचता है। इनसे बचने के लिए बीजोपचार(सीड ट्रीटमेण्ट) की सलाह किसानों को दी जाती है।

       बीजारूढ़ रोग कारकों के उन्मूलन के दो प्रमुख उपाय हैं। बीज के साथ मिले रोगजनक अंशों को अलग करना और फफूंद नाशक दवाओं से बीजों का उपचार। बीज से रोगजनक अंश दूर करने के लिए नमक के 20 प्रतिशत घोल (20 किलो नमक 100 लिटर पानी) में बीज को डुबोयें। रोगजनक अंश जो बीज के साथ मिले रहते हैं वे बीज से हल्के होते हैं। ये सभी पानी में उतर आते हैं और हल्के व खराब बीज पानी में तैरने लगते हैं। सावधानी पूर्वक पानी को निथारकर रोग जनक अंशों एवं हल्के खराब बीजों को अलग कर लेना चाहिए। तलहटी मे बैठे स्वस्थ्य-भारी बीजों को तीन से चार बार पानी में धोकर सुखा लें और फिर फफूंद नाशक दवा से बीजोपचार करना चाहिये।

       बीजोपचार के लिए दो प्रकार की फफूंद नाशक दवायें काम में लाई जाती हैं। अदैहिक फफूंद नाशक दवाओं के उपचार से बीज की बाहरी (ऊपरी) सतह पर मौजूद रोग नष्ट हो जाते हैं। प्रमुख अदैहिक फफूंद नाशक दवाओं में थायरम, केप्टान, डायफोलटन, पारा,युक्त दवायें(सेरेसान एगोलाल, जी.एन.), जिनेब(डायथेन एम-45) आदि।

       दैहिक फफूंद नाशक दवाओं के उपचार से बीज के भीतर रहने वाले रोग नष्ट किये जाते हैं। विटोवेक्स, बेवेस्टीन, बेनलेट, ट्रायकोडर्मा व बिरड़ी आदि प्रमुख दैहिक फफूंद नाशक दवायें हैं।

       बीजोपचार की विधि: बीजोपचार के लिए एक यंत्र , बीज समिश्रण यंत्र(सीड ट्रीटिंग ड्रम) का उपयोग किया जाता हैं। इस ड्रम में जितने बीज को उपचारित करना हो, उसके लिए आवश्यक दवा की मात्रा बीज के साथ ड्रम में डाल दें और उसके मुंह को अच्छी तरह बंद कर दें। 10 से 15 मिनट तक ड्रम को घुमायें। इससे बीज पर दवा की हलकी परत चढ़ जायेगी और इस प्रकार उपचारित बीज की बोनी की जा सकती है। यदि बीज समिश्रण यंत्र उपलब्ध न हो तो मिट्टी के एक घड़े में बीज एवं उतनी मात्रा के लिए आवश्यक दवा डाल दें। घड़े के मुंह को मोटे कागज की सहायता से बंद कर दें। फिर घड़े को 15 मिनिट तक अच्छी तरह हिलायें, जिससे बीज पर दवा की परत चढ़ जाये।

       रबी की फसलों मसलन गेहूं, चना,मटर, अलसी, मसूर, सूरजमुखी, एवं अन्य सभी सागभाजी को पौध गलन रोग से बचाने के लिए डायथेन एम-45 थायरम,डायफेलेटान,वेविस्टन,वेनलेट ट्रायकोडर्मा बिरड़ी आदि मे से कोई भी दवा प्रति किलोग्राम बीज मे 3 ग्राम के हिसाब से प्रयुक्त की जानी चाहिये।

       शुल्क बीजोपचार के अलावा बीजोपचार के लिए पानी में घुलनशील फफूंद नाशक दवाओं का भी उपयोग किया जाता है। इस विधि के लिए किसी मिट्टी अथवा प्लास्टिक के बर्तन में आवश्यक मात्रा में पानी एवं दवा लेकर घोल बना लें। इस घोल में लगभग 10 मिनिट तक बीज डुबोकर रखें। बाद में बीज निकाल कर बोनी करें। यह विधि खासकर आलू एवं गन्ने के बीजोपचार के लिए उपयोगी है।

साबधानियाँ- बीजोपचार करते समय हाथों में रबर के दस्ताने पहनने चाहिए, साथ ही हाथों-पावों में चोट आदि न हो। उपचारित बीज को किसी गीली जगह पर न रखें। जितनी आवश्यकता हो उतने ही बीज की मात्रा उपचारित करें। उपचारित बीज को घरेलू उपयोग में न लें। दवा खरीदते समय बनने एवं समाप्ति की तिथि अवश्य देंखें। बीजोपचार बंद कमरे में न करें व उपचारित बीज का भण्डारण न करें। बीजोपचार के पश्चात हाथ, पैर व मुख को साबुन से दो तीन बार अच्छी तरह धो लें।

 

कोई टिप्पणी नहीं: