शुक्रवार, 8 मई 2009

जैविक खेती : उत्तम पैदावार व खेतों को उपजाऊ रखने की सफल विधि

जैविक खेती : उत्तम पैदावार व खेतों को उपजाऊ रखने की सफल विधि

Article Presented By: Zonal Public Relation Office, Gwalior Chambal Zone

जैविक खेती जीवों के सहयोग से की जाने वाली खेती के तरीके को कहते हैं। प्रकृति ने स्वयं संचालन के लिये जीवों का विकास किया है जो प्रकृति को पुन: ऊर्जा प्रदान करने वाली जैव संयंत्र भी हैं । यही जैविक व्यवस्था खेतों में कार्य करती है । खेतों में रसायन डालने से ये जैविक व्यवस्था नष्ट होने को है तथा भूमि और जल-प्रदूषण बढ़ रहा है । खेतों में हमे हमारे पास उपलब्ध जैविक साधनों की मदद से खाद, कीटनाशक दवाई, चूहा नियंत्रण हेतु दवा बगैरह बनाकर उनका उपयोग करना होगा । इन तरीकों के उपयोग से हमें पैदावार भी अधिक मिलेगी एवं अनाज, फल सब्जियां भी विषमुक्त एवं उत्तम होंगी । प्रकृति की सूक्ष्म जीवाणुओं एवं जीवों का तंत्र पुन: हमारी खेती में सहयोगी कार्य कर सकेगा ।

फसल पोषण को समझने के लिये हमें निम्न तथ्यों पर विचार करना होगा ।  प्रकृति ने हवा में में 78 प्रतिशत नाइट्रोजन क्यों दी है ? . सभी पौधों की पत्तियां हरी क्यों हैं ?  पौधे अपनी आवश्यकता की नाइट्रोजन हवा से क्यों नही ले सकते ?  सूक्ष्म जीवाणु मिट्टी में क्या कार्य पूर्ण करते हैं ?  प्रकृति का जंगली पेड़ों को पोषण देने का क्या तरीका है ?  खरपतवार बिना उर्वरकों के कैसे बढ़ते हैं ? एक ही जमीन अलग-अलग फसलों की आवश्यकता, जो कि अलग-अलग है को कैसे पूरा करती है ।

       ध्यान देने योग्य बात है कि पौधा अंकुरण से लेकर पूरी उम्र तक एक ही स्थान पर खड़ा रहता है । यह भोजन के लिये दूसरे स्थान पर नहीं जा सकता । इस बात को प्रकृति ने ध्यान में रखते हुये उनके पोषण के लिये एक व्यवस्था बनाई है ।

       पौधों की अच्छी वृध्दि हेतु इतनी अधिक नाइट्रोजन प्रकृति ने हवा में दी है, परंतु पौधे इसे सीधे शोषित नहीं कर सकते । यदि वे ऐसा करते तो उनकी लम्बाई इतनी अधिक हो जाती कि दूसरी प्राणियों को रहने में परेशानी खड़ी हो सकती थी। अत: नाइट्रोजन पौधों के लिये सूक्ष्म जीवाणुओं के माध्यम से उपलब्ध होती है, जो वायु नाइट्रोजन को परिवर्तित कर पौधों को उपलब्ध कराते हैं ।

       मिट्टी में कई तरह के सूक्ष्म जीवाणु मौजूद हैं । उसका कार्य पौधों को मिट्टी में उपलब्ध सूक्ष्म तत्व उपलब्ध कराना है  * उदाहरणार्थ- कुक वेक्टीरिया फास्फोरस को घोलकर पौधों को उपलबध कराते हैं । राइजोबियम, एजेक्टोबेक्टर नाइट्रोजन उपलब्ध कराते हैं । सल्फर घोलक-थायोबेसिलस पोटाश घोलक, लोह तत्व घोलक, खुडीप्लस आदि जीवाणु वो तत्व पौधों को उपलब्ध कराते हैं । ये सूक्ष्म जीवाणु परिवर्तन की उस प्रक्रिया को बढ़ावा देते हैं ।

       पौधों का हरा रंग प्रकाश संश्लेषण द्वारा सूर्य की ऊर्जा की मदद से पौधों की ग्रोथ के लिये कार्बोहाइड्रेड का निर्माण करता है । पत्तियों का लाल रंग जेन्थोफिल के कारण होता है उसका कार्य भी यही है ।

       पोषक तत्वों का एन.पी.के. सिध्दान्त प्रकृति में संपूर्ण रूप में सही नही है । जंगलों में पौधों को किसी भी रूप में नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश नहीं दिया जाता, फिर उन्हें यह पोषक तत्व कैसे मिल जाते हैं । इसका उत्तर जो पत्तियां पेड पौधों से झड़ती हैं, वे बैक्टीरिया के द्वार क्रिया के पश्चात या तो सीधे पौधों को उपलब्ध हो जाते हैं या भूमि में उपलब्ध तत्वों के पोषक तत्वों में बदलने में सहयोग करते हैं । यह कार्य सिर्फ जीवित मिट्टी में ही संभव है ।

       मनुष्य की गतिविधियों से दूर रसायन की बाहर से आपूर्ति के बिना ये पेड़ पौधे सूर्य, हवा, बारिश, आकाशीय बिजली, नमी व वैक्टीरिया से अपनी आवश्यकता की पूर्ति कर लेते हैं ।

       खरपतवार का मामला भी वनों जैसा ही है । ना तो कोई इनका बीज होता है और ना ही इन्हें कोई खाद देता है । स्पष्ट है कि प्रकृति ने इनके पैदा हाने की एक व्यवस्था निर्मित की है । उसी व्यवस्था से इनका पालन-पोषण होता है । साथ ही कई प्रकार के खरपतवार नाइट्रोजन अन्य खरपतवारों को उपलब्ध कराते हैं । कई उनमें प्राप्त रसायनों से पडौसी खरपतवारों को रोगों एवं कीड़ों से सुरक्षा करते हैं । परस्पर अपनी विशेषताओं से ये एक दूसरे को सहयोग कर एवं प्रकृति की सूक्ष्म व्यवस्थाओं के सहयोग से अपना जीवन चक्र पूरा करते हैं । इन सूक्ष्म जीवाणुओं एवं वनस्पति को सूर्य शक्ति का उपयोग कर ऊर्जा निर्मित करने की क्षमता है । जिससे ये अपना जीवन चक्र संचालित करते हैं ।

       उन्नीसवीं सदी में बैरम व्हॉन इरसेन ने प्रयोगों के बाद सिध्द किया कि जीवित प्राणियों में जो है, इससे जो चाहिये, वो बनाने की क्षमता है । बीज में जो खनिज हैं, वे अंकुरण के साथ बदल जाते हैं, पौधे मैग्नीज को केल्सियम में, केल्सिमय को फास्फोरस में, फास्फोरस को सल्फर में बदलने में समक्ष पाये गये हैं । जमीन से पौधा नहीं बदलता, पौधे से जमीन बदलती है ।

       अत: इससे ज्ञात होता है कि जीवाणु और जीव जो प्रकृति के जैव संयंत्र हैं, प्रकृति ने अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु बनाये हैं । प्रकृति अपने आप में पूर्ण है। इसे बाहर से कोई मदद नही चाहिये । खेती में भी यही जीवाणु कार्य करते हैं । जीवाणु ही कचरे को सड़ाते-पड़ाते हैं । उन्हीं से तैयार खादों से पेड़ -पौधे पोषक तत्व को प्राप्त करते हैं ।

 

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