शुक्रवार, 27 जून 2008

//लेख//स्वाधीनता समर के 150 वें वर्ष पर कमल,रोटी से गरीबों के जीवन में खुशहाली लाने का शंखनाद

//लेख//

 

स्वाधीनता समर के 150 वें वर्ष पर कमल,रोटी से गरीबों के जीवन में खुशहाली लाने का शंखनाद

       दस मई 1857 को मेरठ में सैनिक विद्रोह और दूसरे दिन 11 मई 1857 को दिल्ली की घेराबंदी से हुआ था देश के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का शंख नाद जिसकी प्रतिध्वनि देशकाल की सीमा लांघती हुई देश की आजादी के लिये समय-समय पर चलाये गये छोटे बड़े हर आन्दोलन में गूंजती रही । आज भी उसका स्मरण हर भारतीय को आन्दोलित कर जाता है । चाहे 19 वीं शताब्दी के अंत का स्वदेशी आन्दोलन या फिर क्रांतिकारियों की सिलसिलेवार कोशिशें । वर्ष 1946 में नेता सुभाषचंद्र बोस ने 1857 के '' दिल्ली चलो'' के नारे को बुलंद कर पूरे राष्ट्र को अंग्रजी शासकों के विरूध्द एक जुट होने का पैगाम दिया । दरअसल स्वतंत्रता दिवस 15 अगस्त 1947 देश की आजादी तक हर प्रयास में 1857 की क्रांति की अनुगूंज मुखरित होती रही । प्रथम स्वाधीनता संग्राम के 50 साल बाद वर्ष 1907 में राष्ट्रवादी क्रांतिवीर कलम के धनी विनायक दामोदर सावरकर ने अपने भारतीय स्वातंत्र्य समर नाम के ग्रन्थ की रचना कर 1857 के संग्राम पर सभी प्रकार के मतभेदों का अंत कर दिया । चर्बी लगे कारतूस प्रकरण पर वह लिखते हैं - .. यदि विस्फोट केवल कारतूसों के कारण हुआ था तो फिर कानपुर के नाना साहब, दिल्ली के बादशाह, झांसी की रानी और रूहेलखंड के खान बहादुर खान ने इसमें क्यों योगदान किया था ? वे न तो अंग्रेजों की सेना के सैनिक थे और न ही किसी प्रकार से उन्हें विवश किया जा रहा था कि वे दांतों से उन कारतूसों को तोड़ें ? और यदि कारतूसों के कारण ही वह ज्वाला भड़क रही थी तो अंग्रेज जनरल द्वारा उनकी वापसी के आदेश प्रसारित होते ही क्रांति की उस ज्वाला पर पानी पड़ जाना चाहिये था।  अत: स्पष्ट है कि प्रासंगिक कारण कारतूस नहीं थे, क्यों कि इस महान् यज्ञ में तो सैनिक-असैनिक, राजा और रंक, हिन्दू और मुसलमान, किसान और दुकानदार सभी ने समिधा समर्पित करने का संकल्प ले लिया था । वे आगे लिखते हैं - भारत की स्वतंत्रता स्थापना के लिये ही 1857 का समर हुआ ।

       काल मार्क्स ने विद्रोह के दौरान हो रहे अत्याचारों और क्रांतिकारियों के अभियानों पर न्यूयार्क डेली ट्रिब्यून में 28 जुलाई 1857 के अंक में लिखा -  '' भारतीय उथल-पुथल कोई सैनिक बगावत नहीं है, बल्कि एक राष्ट्रीय विद्रोह है ।'' उन्होंने यह भी दावा किया कि ' धीरे-धीरे ऐसे तथ्य सामने आते जायेंगें' जिनसे स्वयं जॉन बुल को विश्वास हो जायेगा कि जिसे वह सिपाही विद्रोह समझते हैं वह वास्तव में एक राष्ट्रीय विद्रोह है । मार्क्स ने इस महाविद्रोह में विभिन्न समुदायों की एकता का उल्लेख करते हुये 30 जून 1857 को लिखा कि मुसलमान और हिन्दू अपने समान मालिकों के खिलाफ एक हो गये हैं । मार्क्स ने विद्रोह की शुरूआत सैनिकों द्वारा किये जाने के सवाल को इस प्रकार उठाते हुये उसे आम जन से जोड़ा - फ्रांसीसी राजशाही पर पहला वार भी अभिजात वर्ग ने किया था न कि किसानों ने ।

       देश की आजादी के बाद 1957 में पूरे राष्ट्र ने स्वाधीनता संग्राम 1857 की शताब्दी मनायी । सरकारी , गैर सरकारी स्तर पर महासंग्राम के विविध पक्षों और घटनाओं का विश्लेषण किया गया । शायद अपेक्षित परिणाम आना अभी बाकी है । इसी क्रम में 1857 के डेढ़ सौवें साल पर कुछ हासिल करने का प्रयास करते हुये मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने 10 मई 2008 को  18.57 अर्थात 6 बजकर 57 मिनिट पर ग्वालियर में वीरांगना लक्ष्मीबाई की समाधि पर शहीदों की स्मृति को अक्षुण्ण बनाये रखने के लिये न केवल अखण्ड ज्योति प्रज्वलित की अपितु क्षेत्रीय पंच-सरपंचों को कमल रोटी देकर सम्प्रेषण के इस प्राचीन प्रयोग को दोहराया जो 1857 में क्रांति घोष का गुप्त संदेश सूचक थे । स्थान चयन की दृष्टि से शायद यह प्रदेश का सबसे अधिक उपयुक्त स्थल था जो इतिहासक्रम का साक्षी रहा है । जहां गंगादास आश्रम के 376 साधुओं ने वीरांगना लक्ष्मीबाई को बचाने के लिये फिरंगी सेना से लड़ते-लड़ते जीवन बलिदान कर दिया था और सैकड़ों घायल हुये व अंग्रेजी सेना के दमन का शिकार भी बावजूद इसके वीर साधुओं ने महारानी लक्ष्मीबाई का शव भी अंग्रेजों के हाथ नहीं आने दिया और बड़ी शाला की घास की गंजी में आग लगा कर लक्ष्मीबाई को अग्नि संस्कार कर दिया था ।

       मुख्यमंत्री ने प्रदेश के ग्राम-ग्राम तक रोटी और कमल की यात्रा के माध्यम से जनता में गरीबों की खुशहाली लाने का खुला संदेश भेजा है । उन्होंने इस अवसर पर महती जनसभा को संबोधित करते हुये कहा कि गरीबों में खुशहाली लाकर ही शहीदों के सपनों को पूरा किया जा सकता है । उन्होंने आगे कहा कि वीरांगना महारानी लक्ष्मी बाई तथा अन्य क्रांतिवीर योध्दाओं की स्मृति यह ज्योति नागरिकों को देश के लिये जीने-मरने और देश को समृध्दशाली बनाने की प्रेरणा देती रहेगी ।

       समारोह की अध्यक्षता राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सह सर कार्यवाह श्री मदनदास ने की । इस अवसर पर स्वतंत्रता संग्राम सेनानी श्री डोंगर सिंह कक्का, भाजपा प्रदेश अध्यक्ष श्री नरेन्द्र सिंह तोमर, जलसंसाधन एवं उच्च शिक्षा मंत्री श्री अनूप मिश्रा, नगरीय कल्याण एवं विकास मंत्री  डा. नरोत्तम मिश्रा, 20 सूत्री कार्यक्रम क्रियान्वयन समिति के उपाध्यक्ष श्री जयभान सिंह पवैया, महापौर श्री विवेक नारायण शेजवलकर , सुप्रसिध्द साहित्यकार श्रीमती क्षमाकौल तथा महापौर परिषद के सदस्य मंचासीन थे ।

       मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि 10 मई के दिन ही आज से 150 वर्ष पहले स्वाधीनता संग्राम के प्रथम शहीद मंगल पाण्डे के जीवन बलिदान से क्रांति की एक आंधी चली थी और हजारों देशभक्तों ने इससे प्रेरणा लेकर अपने प्राणों का बलिदान किया था । उन्होंने कहा कि यह दुर्भाग्य की बात है कि आज इतिहास के पन्नों पर भारत के इस प्रथम स्वतंत्रता संग्राम को विद्रोह के रूप में वर्णित किया जा रहा है । उन्होंने कहा कि देश की आजादी के लिये शहीदों के त्याग तपस्या और बलिदान सदैव नमन योग्य है और प्रथम स्वतंत्रता संग्राम को विद्रोह कहना उन महान बलिदानियों का न केवल अपमान है अपितु राष्ट्रद्रोह भी।

       अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में श्री मदन दास ने कहा कि 1857 से 1862 तक चले प्रथम स्वतंत्रता संग्राम ने जिस नेतृत्व,पराक्रम और कौशल का संदेश दिया, उसने देश की आजादी के लिये जनजागृति का काम किया । उन्होंने कहा कि रानी लक्ष्मीबाई के शौर्य और नेतृत्व ने देशभक्तों में देश को स्वतंत्र कराने की भावना को बलवती किया । उन्होंने कहा कि शहीदों के त्याग और बलिदान को सदैव स्मरणीय बनाये रखने के लिये अखंड ज्योति की स्थापना की जो पहल की गई है, वह गौरव की बात है साथ ही यह  ग्वालियर की जनता और  देश की जनता को शहीदों की शहादत से परिचित कराने के लिये एक अनूठी मिसाल बनेगी ।

       भाजपा प्रदेशाध्यक्ष श्री नरेन्द्र सिंह तोमर ने कहा कि प्रदेश में सरकार की पहल पर प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की 150 वीं वर्षगांठ पर सालभर देश भक्ति के कार्यक्रम होते रहे हैं । उन्होंने कहा कि वीरांगना की समाधि पर इस अखंड ज्योति की स्थापना सदैव भावी पीढ़ी को प्रेरणा देती रहेगी ।

 

तिघरा व सोजना के सरपंचों को भेंट किये स्वातंत्र्य समर के प्रतीक चिन्ह

       सन् 1857 के भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में स्वातंत्र्य वीरों द्वारा गांव-गांव में क्रांति का संदेश देने के लिये प्रतीक चिन्ह के रूप में अपनाये गये रोटी, कमल व ध्वज मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने ग्राम पंचायत तिघरा व सोजना के सरपंचों को भेंट किये । मुख्यमंत्री ने इस अवसर पर कहा कि आजादी की लड़ाई के यह प्रतीक चिन्ह देश की बलिवेदी पर मर मिटने वाले रणबांकुरों की याद दिलायेंगें जो देश के स्वाभिमान को जगाने में सहायक होगा । साथ ही यह शहीदों के प्रति सच्ची श्रध्दांजलि भी होगी और गरीबों में खुशहाली लाने का संदेश भी ।

 

स्वतंत्रता संग्राम सेनानी डोंगर सिंह कक्का का सम्मान

       वीरांगना लक्ष्मीबाई की समाधि स्थल पर अखंड ज्योति की स्थापना समारोह में मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सह सर कार्यवाह श्री मदन दास ने ग्वालियर के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी 104 वर्षीय श्री डोंगर सिंह कक्का का शाल और श्रीफल भेंट कर सम्मान किया ।

 

 

इति।

 

कोई टिप्पणी नहीं: