रविवार, 30 नवंबर 2008

विशेष आलेख - न्याय पाने का सभी को समान अधिकार है

विशेष आलेख - न्याय पाने का सभी को समान अधिकार है

म प्र. राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण का उद्देश्य समस्त व्यक्तियों को उनके विधिक अधिकारों के प्रति जागरूक करना एवं अधिकार प्राप्त करने की प्रक्रिया से अवगत कराना है। कानून ने प्रत्येक व्यक्ति को समानता का अधिकार दिया है। धर्म, जाति,लिंग के आधार पर किसी व्यक्ति को दुकानों, सार्वजनिक भोजनालय, होटल, सार्वजनिक स्थान में प्रवेश से एवं सार्वजनिक कुओं, तालाबों, स्नान घाटों, सड़कों के उपयोग से नहीं रोका जा सकता है। अस्पृश्यता (छुआछूत) का अंत हो चुका है। सभी को व्यापार या कारोबार करने का समान अधिकार है। एक अपराध के लिये एक से अधिक बार दंडित नहीं किया जा सकता। अपने विरूध्द गवाही के लिये बाध्य नहीं किया जा सकता। गिरफ्तारी के आधार जानना एवं वकील से सलाह का हर नागरिक को अधिकार है। मजिस्ट्रेट के आदेश बिना चौबीस घण्टे से अधिक बन्दी नहीं बनाया जा सकता। चौदह वर्ष से कम आयु के बालक को कारखाने व संकट के काम में नहीं लगाया जा सकता। मानव का दर्ुव्यापार तथा बेगार समाप्त हो चुकी है। शासकीय कार्यालयों के कार्यों की सूचना प्राप्त करने का प्रत्येक व्यक्ति को अधिकार है।

       प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि संविधान का पालन करे, देश की रक्षा करे, राष्ट्र की सेवा करें। सभी लोगों में समरसता और समान भ्रातत्व (भाईचारा) की भावना पैदा करें जो धर्म या वर्ग के भेदभाव से परे हो। स्त्रियों के सम्मान के विरूध्द प्रथाओं का त्याग करें। वन, वन्य, प्राणी,नदी, झील की रक्षा करें। सार्वजनिक सम्पत्ति को सुरक्षित रखें और हिंसा से दूर रहें।

फौजदारी कानून अन्तर्गत- गिरफ्तार होने वाला व्यक्ति यदि गिरफ्तारी का विरोध नहीं करता है तो पुलिस उसके शरीर को नहीं छू सकती तथा हथकड़ी नहीं लगा सकती। गिरफ्तारी का आधार बताएगी, परिवार को सूचना देगी, वकील से मिलने देगी तथा महिला की तलाशी महिला ही ले सकती है।

v                   यदि कोई व्यक्ति अपना भरण पोषण नहीं कर सकता है तो अपने पति, संतान एवं माता पिता से मजिस्ट्रेट न्यायालय में आवेदन देकर मासिक भत्ता पा सकता है। भत्ता बढ़ाने का आवेदन भी पेश कर सकता है।

v                  भूमि या जल, सीमा संबंधी विवाद होने पर कार्यपालक मजिस्ट्रेट के यहां आवेदन प्रस्तुत कर सकता है।

v                  पुलिस थाना रिपोर्ट नहीं लिखे तो डाक से पुलिस अधीक्षक को भेजे फिर भी कार्यवाही नहीं हो तो न्यायालय में परिवाद पेश कर सकता है। घटना की रिपोर्ट तुरंत करे अन्यथा विलम्ब घटना की सत्यता पर संदेह पैदा कर सकता है। घटना अनुसार ही रिपोर्ट लिखाए। हस्ताक्षर से पहले रिपोर्ट पढ़े या सुने, रिपोर्ट प्रति प्राप्त करें। अपने प्रकरण के प्रति जागरूक रहें। प्रत्येक पेशी पर फरियादी न्यायालय में उपस्थित रहें। गवाह झूठ बोले तो सरकारी वकील को कारण बतायें।

v                  घर के बाहर साधारण मारपीट, गाली -गलोच, धमकी, रास्ता रोकना, भूमि पर अतिक्रमण करना जैसे अपराध में जमानत अधिकार है।

v                  किसी कागज पर बिना पढ़े हस्ताक्षर नहीं करें। अपने सामने जो धटित हुआ उसी कागज पर हस्ताक्षर करें उसी अनुसार न्यायालय में बतायें अन्यथा आपके खिलाफ फौजदारी मुकदमा चल सकता है। समन्स प्राप्त होने पर अवश्य न्यायालय में उपस्थित रहें अन्यथा वारन्ट जारी हो सकता है। पंद्रह वर्ष से कम उम्र के व्यक्ति या स्त्री को पुलिस गवाही के लिए थाने नहीं बुला सकती है।

v                  एक्सीडेंट होने पर क्षतिपूर्ति मिलती है आवेदक जहां निवास कर रहे वहां के न्यायालय में प्रकरण लगता है।

v                  झूठा फौजदारी दायर करने वाले के खिलाफ क्षतिपूर्ति दावा लगा सकते हैं। मानहानि के लिए क्षतिपूर्ति एवं फौजदारी दावा लगा सकते है।

v                  दहेज का लेना या देना अपराध है। 18 से कम आयु की लड़की या 21 से कम आयु के लड़के का विवाह करना अपराध है।

v                  महिला के गर्भ की जांच कराना अपराध है।

v                  पति या उसके संबंधी द्वारा महिला को किसी भी कारण से प्रताड़ित करना अपराध है।

v                  घर की किसी भी महिला के साथ हिंसात्मक व्यवहार करना दण्डनीय अपराध है।

v                  जमानत देने पर आरोपी को व्यक्तिगत जिम्मेदारी पर उपस्थित रखें अन्यथा जमानत राशि वसूली या जेल की सजा हो सकती है। महिला या 14 वर्ष की उम्र के बच्चे को छोड़कर किसी व्यक्ति के प्रति किए गए सात साल से कम सजा वाले अपराध में अरोपी तर्क सौदाकारी हेतु स्वेच्छा से आवेदन दे सकता है। ऐसा करने से नियत सजा से 1/4 तक की सजा पर उसका मामला निपट सकता है।

दीवानी मामलों में - एक सौ रूपये से अधिक की जमीन/मकान क्रय करने पर विलेख का पंजीयन अवश्य करायें। न्यायालय से फैसला होने पर तत्काल अपने वकील से अपील लगवायें देरी होने से अपील निरस्त हो जाती है। यदि कोई व्यक्ति अपने पति या पत्नी से जानबूझकर अलग रहता है तो जिला न्यायालय में साथ रहने के लिए आवेदन पेश कर सकते हैं। किसी भी विवाद की दशा में मध्यस्थ, लोक अदालत या सुलह कार्यवाही कराने हेतु तत्पर रहें इससे धन एवं समय की बचत होती है। नाबालिग की ओर से उसका संरक्षक या माता पिता पैरवी कर सकते हैं।

राजस्व मामलों में- भू राजस्व या लगान नियमित अदा कर रसीद संभाल कर रखें। पटवारी से अपना कब्जा खसरे में प्रतिवर्ष इंद्राज कराकर उसकी सत्य प्रतिलिपि प्राप्त करें। अन्य राजस्व अभिलेख में भी अपने हित का इंद्राज कराते रहें। जमीन मकान पर कोई हक प्राप्त होता है तो तत्काल नामांतरण करांएं। विभाजन पर नक्शा तरमीम करवायें सीमांकन कराकर सीमा चिन्ह बना कर रखें और राजस्व संबंधी सभी दस्तावेज दुरस्त कराकर रखें। राजस्व अभिलेख त्रुटि तत्काल सुधार करायें। अन्यथा न्यायालय में दावा निरस्त हो सकता है।

विधिक सहायता अन्तर्गत- अनुसूचित जाति/ जनजाति सदस्य, महिला या बालक, मानव दर्ुव्यवहार का सताया व्यक्ति, मानसिक रूप से अस्वस्थ, असमर्थ, जातीय हिंसा, अत्याचार, बाढ़, सूखा, औद्यौगिक विनाश से पीड़ित व्यक्ति , जेल बंदी, तथा वार्षिक आय 50,000 रू से कम वाला व्यक्ति विधिक सहायता का पात्र है। सभी न्यायालयों में कार्यवाही हेतु नि:शुल्क वकील, कोर्ट फीस, गवाह खर्चा, टाईप खर्चा आदि हेतु सहायता दी जाती है। निकटतम सिविल न्यायालय से सम्पर्क कर सकते हैं।

लोक अदालत-  प्रत्येक माह के पहले एवं तीसरे शनिवार को सिविल न्यायालय एवं तहसील न्यायालय में लोक अदालत लगती है। पूर्व से प्रकरण नियत होने पर भी उभय पक्ष उपस्थित होकर राजीनामा कर सकते हैं। इससे विवाद का अंतिम निराकरण हो जाता है। कोर्ट फीस वापस मिल जाती है।

 

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