बुधवार, 23 जुलाई 2008

राष्ट्रपति बुश रच रहे हैं एक और बड़े युद्ध की सांजिश

राष्ट्रपति बुश रच रहे हैं एक और बड़े युद्ध की सांजिश

तनवीर जांफरी   (सदस्य, हरियाणा साहित्य अकादमी, शासी परिषद)

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       पूरा विश्व आज मंहगाई व भुखमरी के उस दौर से गुंजर रहा है जिसकी पहले कभी कल्पना भी नहीं की गई थी। इसी मंहगाई का सीधा संबंध विश्व में दिन-प्रतिदिन तेंजी से फैलती जा रही अराजकता से भी है। इसके अतिरिक्त कच्चे तेलों की निरंतर हो रही भारी मूल्यवृद्धि भी बढ़ती मंहगाई व आम लोगों की बदहाली की एक ंखास वजह मानी जा रही है। संयुक्त राष्ट्र संघ ने पहली बार इस विषय पर अपनी गंभीर चिंता जताई है तथा विश्व से मंहगाई के परिणामस्वरूप उपजे खाद्यान संकट से जूझने के लिए विशेष योजना पर अमल करने की बात कही है। इस मानवीय कार्य हेतु संयुक्त राष्ट्र संघ ने बहुत बड़ी पूंजी की भी ंजरूरत जताई है। ऐसा नहीं है कि मंहगाई अथवा खाद्यान संकट या मुद्रा के अवमूल्यन का शिकार केवल ंगरीब या विकासशील देश ही हों। बल्कि दुनिया का सबसे शक्तिशाली व आर्थिक रूप से सबसे सुदृढ़ समझा जाने वाला देश अमेरिका भी इस वर्तमान वैश्विक त्रासदी का शिकार है। कहा जा रहा है कि अमेरिका इस समय अब तक की सबसे बड़ी मंदी का सामना कर रहा है। अमेरिकी डॉलर में भारी गिरावट देखी जा रही है। मंहगाई व बेरोंजगारी भी अमेरिका में अपने रिकॉर्ड स्तर को छू रही हैं। कुछ विशेषज्ञों का तो यहां तक कहना है कि दुनिया में पैदा होने वाले इन सभी चिंताजनक हालात के लिए अमेरिका विशेषकर राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश की नीतियां ही ंजिम्मेदार हैं।

              अमेरिका द्वारा इरांक पर अकारण थोपा गया युद्ध तथा इसका लगातार और लम्बा खींचा जाना दुनिया के बिगड़ते हालात का एक प्रमुख कारण है। यहीं से कच्चे तेल की ंकीमतों में बेतहाशा बढ़ोत्तरी की शुरुआत होती है। इसके अतिरिक्त अमेरिका द्वारा खाद्यान से ईंधन तैयार किए जाने के प्रयास के परिणामस्वरूप भी भारी मात्रा में खाद्यान का संकट उत्पन्न हो गया है। परन्तु इन सभी ंजमीनी हालात से बेंखबर राष्ट्रपति बुश लगता है कि अपना कार्यकाल समाप्त होने से पहले एक और बड़ा ंखूनी खेल खेलना चाह रहे हैं। एक ओर तो शांतिदूत नेल्सन मंडेला अपनी 90वीं वर्षगांठ पर संसार से ंगरीबी दूर किए जाने का आह्वान कर रहे हैं। मंडेला उन देशों की सहायता करने की अपील हैं जो देश ंगरीबी व भुखमरी से मुंकाबला कर पाने में सक्षम नहीं हैं। परन्तु दूसरी ओर राष्ट्रपति बुश जाते-जाते परमाणु हथियारों जैसा भयावह खेल खेलने की योजना बना रहे हैं।

              अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश ने इंजराईली सेनाओं से कहा है कि वे आवश्यकता पड़ने पर ईरान के परमाणु ठिकानों पर मिसाईल हमला करने से हरगिंज न हिचकिचाए। बुश ने इंजराईल को ईरान के विरुद्ध युद्ध के लिए प्रेरित करते हुए कहा है कि वह हर तरह से इंजराईल के साथ है। बात केवल जॉर्ज बुश के इस भड़काऊ बयान तक ही सीमित नहीं है बल्कि इंजराईल द्वारा इरांक-ईरान सीमा के निकट पड़ने वाले उन इरांकी सैन्य ठिकानों को भी अपने प्रयोग में लाया जा रहा है जोकि अमेरिकी सैन्य ठिकानों के रूप में प्रयोग हो रहे हैं तथा ईरान में कहीं भी मार कर पाने में सहायक सिद्ध हो सकते हैं। ऐसे में जॉर्ज बुश द्वारा इंजराईली सेना को ईरानी परमाणु ठिकानों पर हमला करने हेतु तैयार रहने का आह्वान करना निश्चित रूप से दुनिया के लिए एक बड़ी चिंता का विषय बन गया है। जॉर्ज बुश का यह बयान ईरानी सेना द्वारा किए गए मिसाईल परीक्षण के कुछ ही दिनों बाद आया है। ज्ञातव्य है कि ईरान ने अभी कुछ दिनों पूर्व ही मिसाईल परीक्षण किए थे। इस परीक्षण के लिए ईरान ने स्पष्ट किया था कि ईरान द्वारा किए जाने वाले ऐसे मिसाईल परीक्षण अमेरिका व इंजराईल की ओर से निरंतर मिलती रहने वाली सैन्य चुनौतियों की प्रतिक्रिया मात्र है। इन परीक्षणों को खाड़ी देशों के लिए ंखतरा अथवा चेतावनी नहीं समझा जाना चाहिए।

एक ओर तो जॉर्ज बुश ठीक इरांक की ही तरह दुनिया को गुमराह कर ईरान को भी अपने सैन्य निशाने पर लेना चाह रहे हैं तो दूसरी ओर अनेकों अमेरिकी सैन्य कमांडर तथा अन्य अमेरिकी उच्च सैन्य अधिकारी राष्ट्रपति बुश की इस विध्वंसात्मक नीति को लेकर चिंतित हैं। इरांक में अमेरिकी सैन्य हस्तक्षेप को राष्ट्रपति बुश की बड़ी भूल मानने वाले यह सैन्य अधिकारी ंकतई नहीं चाहते कि अमेरिका ईरान में भी इरांक जैसी ंगलती को पुन: दोहराए। यही वजह है कि राष्ट्रपति बुश इंजराईली सेना के कंधों पर बंदूक रखकर ईरान पर निशाना साधना चाह रहे हैं। उधर ईरानी राष्ट्रपति महमूद अहमदीनेजाद का मानना है कि राष्ट्रपति पद के लिए अमेरिका में होने वाले चुनावों के बाद ईरान-अमेरिका संबंध सुधरेंगे। राष्ट्रपति नेजाद के अनुसार भले ही अगला अमेरिकी राष्ट्रपति डेमोक्रेट पार्टी का हो अथवा रिपब्लिकन, परन्तु ईरान को पूरी उम्मीद है कि भविष्य में अमेरिका के साथ उसके अच्छे रिश्ते संभावित हैं। ईरान ने इंजराईल के यहूदी शासन के अतिरिक्त भविष्य में अमेरिका सहित किसी भी देश से बातचीत करने में अपनी रंजामंदी का इंजहार किया है। अपने चुनाव प्रचार के दौरान राष्ट्रपति पद के मंजबूत दावेदार डेमोक्रेट प्रत्याशी बराक ओबामा ने भी ईरान से राजनयिक स्तर की बातचीत शुरु करने की वकालत की है।

              ज्ञातव्य है कि 1979 से अमेरिका व ईरान के मध्य कूटनीतिक संबंध उस समय समाप्त हो गए थे जबकि ईरान में आई इस्लामिक क्रांति के दौरान हंजारों कट्टरपंथी ईरानी छात्रों द्वारा अमेरिकी दूतावास पर ंकब्ंजा जमा लिया गया था। छात्रों का दूतावास पर यह ंकब्ंजा 444 दिनों तक जारी था। इस घटना के बाद ही अमेरिका ने ईरान से अपने कूटनीतिक संबंध समाप्त कर लिए थे जो अब तक दोबारा ंकायम नहीं हो सके। इसके पश्चात ईरान-इरांक युद्ध के दौरान इरांक को अमेरिकी सहायता पहुंचाई गई थी। इससे भी अमेरिका व ईरान के मध्य ंफासला पैदा हुआ था। हां, इरांक के हालात को लेकर गत् वर्ष एक ईरान-अमेरिका-इरांक के मध्य त्रिपक्षीय वार्ता अवश्य हो चुकी है। परन्तु जब से वर्तमान अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश ने अमेरिकी सत्ता संभाली तब से अब तक अमेरिका व ईरान के संबंध मधुर होने के बजाए और भी अधिक कड़वे होते जा रहे हैं। यहां तक कि राष्ट्रपति बुश ईरान को 'शैतान की धुरी' तक कहकर संबोधित कर चुके हैं। अपने जिस परमाणु संवर्धन कार्यक्रम को ईरान अपनी उर्जा ंजरूरतों को पूरा करने वाले कार्यक्रम बता रहा है जॉर्ज बुश उन्हें परमाणु हथियार तैयार करने के संयंत्र तथा प्रयास बता रहे हैं। राष्ट्रपति बुश ईरान पर कई प्रकार के प्रतिबंध भी लगा चुके हैं। और अब अपने राष्ट्रपति काल के अन्तिम चरणों में उनकी हार्दिक इच्छा है कि वे यदि अपने सैन्य कमांडरों के दबाव तथा राजनैतिक विरोध के चलते सीधे तौर पर ईरान पर हमला नहीं कर सकते तो कम से कम इंजराईल को ही उकसा कर उसे ईरान पर हमला करने हेतु रांजी करें। जबकि दुनिया यह भली भांति जानती है कि अकेले इंजराईल ऐसा दुस्साहस हरगिंज नहीं कर सकता कि वह ईरान पर बिना अमेरिकी संरक्षण के हमला करने की ंगलती करे।

              गत् वर्ष मुझे यह सुनकर बहुत आश्चर्य हुआ था कि जॉर्ज बुश जैसे आक्रामक स्वभाव रखने वाले व्यक्ति का नाम नोबल शांति पुरस्कार हेतु प्रस्तावित किया गया था। मैंने अपने एक आलेख में उसी समय लिखा था कि यदि नोबल शांति पुरस्कार जॉर्ज बुश जैसे व्यक्ति को दिया गया तो यह नोबल शांति पुरस्कार का ही अपमान होगा। मैं नहीं समझता कि जॉर्ज बुश द्वित्तीय के शासनकाल में अमेरिका ने जितनी बदनामी सही है व जितना नुंकसान उठाया है, उतना किसी अन्य अमेरिकी राष्ट्रपति के शासनकाल में हुआ हो। अनेकों बार राष्ट्रपति बुश को युद्ध अपराधी घोषित करने की मांग हो चुकी है। आज भी राष्ट्रपति बुश पश्चिमी देशों सहित दुनिया में कहीं भी जाते हैं, अनेकों मानवतावादी संगठन इनके विरुद्ध ंजबरदस्त प्रदर्शन करते हैं। हर जगह इन्हें काले झण्डे दिखाए जाते हैं तथा इनके पुतले जलाए जाते हैं। इसमें कोई संदेह नहीं कि जॉर्ज बुश की इसी आक्रामक, हिंसक एवं अपराधी प्रवृत्ति ने अमेरिका को भी दुनिया की नंजर में एक ऐसे महाबली राष्ट्र के रूप में स्थापित कर दिया है जोकि बड़े भाई, पिता अथवा संरक्षक के रूप में नहीं बल्कि दैत्य अथवा राक्षस के रूप में जाना जाता हो। आशा की जानी चाहिए कि राष्ट्रपति बुश की सत्ता से बिदाई के पश्चात आने वाला अमेरिकी राष्ट्रपति अमेरिका की इस खलनायक रूपी छवि को समाप्त कर सकेगा।       तनवीर जांफरी

 

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