करार की बेकरारी और फैसले की घडि़यां, लील जायेगी बिजली बड़े बड़े सूरमाओं को
कांग्रेस का तुरूप का पत्ता और वेटिंग इन सरकार की खलबलाहट, वेरी नाइस, वेरी इण्टरेस्टिंग
आलेख
नरेन्द्र सिंह तोमर ''आनन्द''
संसद में करार और करार से बेकरार संसद
संसद में इस समय इन दिनों जो हो रहा है, जो चल रहा है, सारा देश टकटकी लगा कर उसे देख रहा है । बात पॉंच सौं साढ़े पॉंच सौ लोगों के विश्वास होने बने रहने या न रहने की नहीं है, बात तो एक अरब भारतवासीयों के विश्वास की है । पॉच सैकड़ा लोग बतायेंगें कि एक अरब भारतवासी क्या चाहते हैं । परमाणु करार चाहते हैं कि नहीं, बिजली और परमाणु ऊर्जा चाहते हें कि नहीं ।
तमाशा यह भी है कि, पॉंच सैकड़ा वे लोग एक अरब भारतवासीयों के दिल की बात बतायेंगें जिनके घर की बिजली कभी नहीं जाती, इन्वर्टर, जनरेटर और सोलर सेटों से चकाचक ए.सी. में निवासरत पॉंच सैकड़ा लोग एक अरब झुग्गी झोंपड़ी और गॉंवों में रहने वाले गरीब किसानों के मन के भाव व्यक्त कर उनकी तकदीर तय करेंगें कि उनके घरों में न आने वाली दुर्लभ दर्शनीय बिजली भविष्य में उनको भरपूर, एकसार व सस्ती मिले कि नहीं ।
बिजली की जरूरत या तो कोई गॉंव वाला बता सकता है या फिर भोपाल से बाहर (भोपाल बिजली कटौती से मुक्त क्षेत्र घोषित है) किसी शहर में रहने वाला कोई वह वाशिन्दा जो इन्वर्टर या जनरेटर खरीदने में असमर्थ है । वह तो पॉवर चाहता है, बिजली चाहता है चाहे कैसे मिले परमाणु से मिले या अणु से या संसद की चल रही नौटंकी से या अमरीका से या रूस से या जापान से ।
एक अरब जनता की बात हवा में उड़ गयी उसकी जरूरत और समस्या का समाधान किसी नेता के पास नहीं है, किसी नेता की जेब में न जुबान पर बिजली की बात है । बस करार की बात है, सरकार की बात है ।
मुद्दा लेकिन शर्मनाक मुद्दा
आज एक अखबार के मेरे वरिष्ठ मित्र ने अपने आलेख में लिखा कि हुम्फ ये फख्र की बात है कि पहली बार संसद किसी मुद्दे पर चलेगी, विश्वासमत किसी मुद्दे पर होगा, बहस कियी मुद्दे को लेकर होगी । हालांकि उनका आलख अतिरंजित एवं अतिश्योक्तियों में बिंधकर बेकार हो गया लेकिन एक बात जो उनके आलेख का केन्द्र बिन्दु थी वह ''मुद्दा'' जैसे शब्द को लेकर थी । वैसे एक पुराने पत्रकार, अनुभवी और सम्मानीय के आलेखों पर टीप परम्परा के विरूद्ध है किन्तु आज इस धृष्टता की अति आवश्यकता होने से मैं उनसे विनम्रतापूर्वक क्षमायाचना करते हुये अपनी बात कहना पसन्द करूंगा कि मुद्दा तो है लेकिन शर्मनाक । संसद मुद्दे पर चलेगी, बहस मुद्दे पर हो रही है, विश्वासमत मुद्दे पर चल रहा है लेकिन शर्मनाक मुद्दे पर ।
बिजली, पावर, ऊर्जा हमारी सबसे महती आवश्यकता है, आजादी के बाद देश के विकास और प्रगति में बिजली सर्वोपरि भूमिका निभा कर अव्वल रही है । आज हम अपने संस्कारों, परम्पराओं, आध्यात्मिकता, सभ्यता, और प्राच्य विद्याओं व ज्ञान के लिये विश्व में जहॉं सर्वोपरि हैं तो वहीं हमारे नौजवानों और वैज्ञानिकों ने भी आज सिलिकॉन की दुनिया से लेकर साफ्टवेयर, कम्प्यूटर्स और इण्टरनेट की दुनियां में अपना लोहा मनवाया है । बड़े गर्व की बात है कि भारत की वर्तमान प्रतिभा शक्ति का 80 फीसदी भाग वैज्ञानिक मस्तिष्क है । मगर अफसोस की बात यह है कि हमारे नेताओं में 80 फीसदी अवैज्ञानिक व कुतर्कपूर्ण (इल्लॉजिकल) सोच व मस्तिष्कशुदा हैं ।
यह किससे छिपा है कि वर्तमान भारत जो इण्टरनेट क्रान्ति के जरिये आगामी दो तीन साल में पूर्णत: एक नये भारत में बदल जायेगा, इसे आप रोक नहीं सकते, कोई नहीं रोक सकता, कयोंकि यह सब नेता नहीं कर रहे, सरकार नहीं कर रही, खुद भारत कर रहा है देश कर रहा है । इसकी नींव जरूर स्वर्गीय राजीव गांधी ने रखी थी, आज का विकसित भारत स्वर्गीय राजीव गांधी की उस विलक्षण नींव पर टिका है, इसमें क्या शक है ।
जब स्वर्गीय राजीव गांधी ने संचार क्षेत्र में वायस के साथ डाटा संप्रेषण तकनीक से भारत को परिचित कराया था और पहली बार फैक्स जैसी सुविधा भारत को दी तब भी बहुत हो हल्ला हुआ, ये हो जायेगा वो हो जायेगा बहुत हुआ था । लेकिन कुछ नहीं हुआ देश ने फैक्स किये फैक्स लिये, आज तक देश इस नवीन फैक्स टैक्नॉलाजी का आनन्द ले रहा है । ऐसा कौन सा संस्थान, कार्यालय या भारतवासी होगा जो फैक्स नहीं करता होगा या लेता होगा । लेकिन फिर भी सदा स्वार्थी नेताओं ने फैक्स का क्रेक्स करने में पूरी दम लगायी थी, लोगों के दिमाग पर फेयर फैक्स अभी तक अंकित होगा ।
राजीव ने दूसरी सौगात देश को टेलीफोन के अत्याधुनिकीकरण के साथ टेलीविजन की दी थी, आज समूचे देश भर में दूरदर्शन या अन्य टी.वी. चैनल के पहुँचने से समूचा देश विश्व भर में कहॉं क्या हो रहा है से तुरन्त सादृश्य अवगत हो जाता है, आज जो संसद में हो रहा है, उसे इसी देन के कारण आज देश देख रहा है ऑंखें फाड़ कर नेताओं को खीसे निपोरते देख रहा है ।
इण्टरनेट और कम्प्यूटर से भारत को परिचित कराने वाले स्वर्गीय राजीव गांधी आज अगर जीवित होते तो देखते कि उनके द्वारा इस देश को दिया गया यह नन्हा सा मगर करामाती तोहफा एक विकट क्रान्तिकारी परिवर्तन लाने वाली ताकत में बदल गया है और समूचे विश्व में आगाज कर विश्व को सावधान कर रहा है कि हो जाओ सावधान भारत करवट बदल रहा है और आने वाले चन्द साल के भीतर हम एक नये भारत को रच देंगें ।
गरीब सरकारी मास्टरों और कालेज के प्रोफेसरों को किसी जमाने में महज तीन चार सौ रूपये से लेकर आठ नौ सौ रूपये तक की तनख्वाह मिलती थी, 1986 की नवीन शिक्षा नीति के बाद अब आज के मास्टर और प्रोफेसरों को देख लीजिये, खुद ही पता लग जायेगा कि परिवर्तन हुआ या नहीं ।
लेकिन इस बात से कौन इन्कार कर सकता है कि इन सबके पीछे बिजली की कितनी महत्वपूर्ण भूमिका है । देश को बिजली चाहिये, जल्दी चाहिये, बहुत चाहिये ।
आप बिजली दे नहीं पा रहे, करार लागू होने नहीं दे रहे देश को बिजली मिलने नहीं दे रहे, आखिर आप चाहते क्या हैं ।
केन्द्र में भाजपा नेतृत्वाधीन राजग गठबन्धन की सरकार थी, तब मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी तब भी म.प्र. में बिजली नहीं थी, भाजपा की जब उ.प्र. में सरकार थी तब उ.प्र. में बिजली नहीं थी । आज कितने सारे ऐसे प्रदेश हैं जहॉं बिजली नहीं है ।
हर काम हर चीज बिजली से ही होती है, सबसे ज्यादा देश में खपत बिजली की लाजमी है । आज देश को बिजली की जरूरत है, आप के पास बिजली है नहीं, तो फिर बाहर से क्यों नहीं आने देते बिजली ।
आपने खुद कई करार किये, कई विदेशी कम्पनीयों को देश में बुलाया, म.प्र. में कई विदेशी व्यावसायी व उद्योगपति बुला बुला कर रेड कार्पेट बिछाये । तब देश की गुलामी का खतरा या ईस्ट इण्डिया कमपनी का इतिहास आपको याद नहीं आया । देश में आपने बहुराष्ट्रीय कम्पनीयों का खासा नेटवर्क बिछा दिया तब देश की गुलामी का खतरा आपको नहीं दिखा । बीमा से अखबार तक विदेश को सौंपे तब आपको देश की गुलामी का खतरा आपको याद नहीं आया । आप विदेशीयों को बुलाते हैं या उनसे करार करते हैं तो कोई खतरा देश को नहीं होता, दूसरा कोई बुलाता है या करार करता है तो देश को खतरा हो जाता है, वाह बड़ी गजब बात है । आप भारतीय हैं, देशभक्त हैं, बकाया एक अरब भारतवासी देश द्रोही और देश बेचने वाले हैं वाह क्या गजब बात है ।
लालकृष्ण आडवाणी विदेश (पाकिस्तान ) में पैदा होता है भारत में नेतागिरी करता है, जिन्ना की मजार पर मत्था टेकता है और भारत का देशभक्त हो जाता है, सोनिया गांधी इटली (विदेश) में पैदा होती है, भारतीय संस्कृति अपनाती है, हिन्दुस्तानी संस्कार अपनाती है, जिन्ना को मत्था नहीं टेकती तो वह देशभक्त नहीं होती । आडवाणी विदेशी मूल का निवासी भारत का वेटिंग प्रधानमंत्री हो सकता है, और सोनिया बनी बनाई को प्रधानमंत्री बनने नहीं दिया जाता । वाह क्या गजब बात है, दोहरा दोगला चाल चरित्र या चेहरा क्या होता है शायद इसी को कहते हैं । वैसे धूतराष्ट्र की पत्नी गांधारी जो कि गंधार की रहने वाली थी (गंधार अफगानिस्तान में है) जब धृतराष्ट्र की पत्नी बनती है तो हिन्दू कुल की माता बन जाती है भारतवासी हो जाती है, मगर सोनिया अछूत रहती है वह गैर भारतीय रहती है वह प्रधानमंत्री नहीं बन सकती । वाह क्या गजब बात है ।
एक बड़ नेता जी संसद में बोले हाइड्रोलिक बिजली बना लो, सोलर बिजली बना लो गोबर बिजली बना लो पर एटम बिजली मत बना लो, अरे नेता जी तुम सांसद से सरपंच बन जाओ समझ जाओगे कि किस बिजली में क्या फर्क है ।
नेता लोग चिल्ला रहे थे कि अमरनाथ यात्रीयों पर हमला हुआ, अमरनाथ की जमीन वापस ली, हिन्दू हो तो अमरनाथ को जमीन दिला दो 1
हमारे हिन्दू धर्म में कहा जाता है कि, ''सबै भूमि गोपाल की'' अगर नेता जी तुम हिन्दू हो तो इतनी सी बात नहीं जानते कि सबै भूमि गोपाल की । उस सर्व शक्तिमान को कौन जमीन दे सकता है, कौन उससे जमीन ले सकता है । जहॉं तक हमलों की बात है, अक्षरधाम पर से लेकर हिन्दू धर्मस्थलों व तीर्थ यात्रीयों पर जितने हमले आपकी सरकार के समय हुये उतने इतिहास में कभी नहीं हुये । लोकतंत्र के मन्दिर संसद भवन पर हमला किसके कार्यकाल में हुआ ।
कंधार विमान अपहरण कब हुआ, किसके शासन काल में हुआ, खुंख्वार खतरनाक आतंकवादी किसने रिहा किये, कारगिल, काश्मीर और लद्दाख्ा में कितने सैनिक मरे, इसका कोई हिसाब है ।
नौ सो चूहे खा के बिल्ली हज को चली, जब तुम्हारी सरकार थी तो क्यों हज यात्रीयों की सबसिडी बन्द नहीं की या हिन्दू यात्रीयों को सबसिडी क्यों नहीं दी, तुम कर देते, क्यों नहीं की, उल्टे म.प्र में तो हज यात्रीयों की सुविधाये और सबसिडी बढ़ा दी गयी है । वाह क्या गजब बात है ।
देश ने जो भी लाइव टेलीकास्ट देखा, दुर्भाग्यवश अंग्रेजी में चल रहा है लेकिन देश फिर भी समझ रहा है कि वहॉं क्या हो रहा है ।
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