शनिवार, 12 जुलाई 2008

विशेष सामग्री :कृषि : कलम या ऑंख (कलिका) चढ़ाने की तकनीक रोजगारोन्मुखी

विशेष सामग्री :

कृषि : कलम या ऑंख (कलिका) चढ़ाने की तकनीक रोजगारोन्मुखी

जयपुर,

 कृषि क्षेत्र में उद्यानिकी फसलों के बढ़ते प्रचलन तथा राज्य और केन्द्र सरकार द्वारा उद्यानिकी के विस्तार कार्यक्रमों के कारण ''कलम चढ़ाने'' के जानकार लोगों की मांग बाजार में बढ़ गई है।

 कलम चढ़ाने के कार्य में युवाओं को रोजगार के अच्छे अवसर मिल रहे हैं। कलम का जानकार एक दिन में पेड़ की छांव तले औसतन 350 से 400 तक पौधों में कलम चढ़ा लेता है। एक पौधे पर कलम चढ़ाने पर एक से दो रुपये तक की आय होती है। स्थान और परिस्थिति के अनुसार इस कार्य पर दस रुपये प्रति पौध तक की आय मिल जाती है। ''कलम या ऑंख'' (कलिका) चढ़ाने की तकनीक बहुत ही सरल और जल्दी ही सीखने योग्य है।

देशी बेर, आंवला एवं बील पत्रा की पौध पर उन्नत किस्म की '' कलम'' चढ़ाना वानस्पतिक प्रवर्ध्दन कहलाता है। इस कार्य से देशी किस्म में भी अच्छी गुणवत्ताा वजन के फल शीघ्रता से प्राप्त होते हैं। परिणामस्वरूप किसानों या बगीचा मालिकों को अधिक आय प्राप्त होती है। यह कार्य सिंचित और बारानी दोनों ही क्षेत्राों के लिये अनुकूल होता है। इससे बीजू पौधों द्वारा कम पानी से अच्छी उपज मिल जाती है। ''कलम'' चढ़े बेर के एक पौधे से सालाना एक हजार रुपये तक की आमदनी हो रही है।

राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय, बीकानेर के कृषि अनुसंधान केन्द्र में जोधपुर जिले के 15 युवक कलम चढ़ाने के कार्य में जुटे हुए हैं। ये सभी इस केन्द्र पर ढाई लाख देशी बेर के पौधों पर गोला किस्म की कलम चढ़ाने का कार्य कर रहे हैं। कृषि विज्ञान केन्द्र, बीछवाल में आजीविका मिशन के तहत इसका व्यवसायिक प्रशिक्षण ग्रामीण युवकों को दिया गया था। कृषि विश्वविद्यालय की नर्सरी में बीकानेर के एक दर्जन युवक इस कार्य को अंजाम देकर अच्छी आमदनी प्राप्त कर रहे हैं।

राज्य में राष्ट्रीय बागवानी मिशन के तहत 23 जिलों में तथा राष्ट्रीय कृषि विकास परियोजना के नौ जिलों में उद्यानिकी फसलों और पौधों की नर्सरी की स्थापना का कार्य निरन्तर बढ़ रहा है। राज्य में किन्नू के डेढ़ लाख और मौसमी व संतरे के एक-एक लाख पौधे तैयार करने का लक्ष्य है। समय की दृष्टि से आंवले में मई से सितम्बर के बीच, बेर में 15 जून से 15 अगस्त तक और बील पत्रा में मई से जून का समय ''कलम'' चढ़ाने के लिये उपयुक्त है। कलिकायन के लिये बीज बोने के 60 से 80 दिनों बाद पौधशाला में मूलवृन्त तैयार हो जाता है। इसमें चुने हुए दो कल्लों पर जमीन की सतह से 15-20 सेंटीमीटर की दूरी पर पैच (पैबन्द) अथवा ''आई'' (ऑंख) विधि द्वारा कलिकायन किया जाता है।

रोज़गार के इच्छुक युवक कृषि विज्ञान केन्द्रों पर इसकी जानकारी ले सकते हैं। राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय की बीकानेर स्थित नर्सरी में इसके प्रशिक्षण की सुविधा उपलब्ध है।

 

कोई टिप्पणी नहीं: