रविवार, 6 जुलाई 2008

पूजा उपसना व सेवा किसकी करना श्रेष्‍ठ है

जिसको पूजोगे वैसे ही बन जाओगे उसी में अंतत: समा जाओगे और खुद भी वही तथा वैसे ही बन जाओगे, अत: पूज्‍य का चयन सोच समझ कर करिये, तंत्र शास्‍त्र व पूजन शास्‍त्र का यह गूढ़ रहस्‍य है- देखें गीता का यह रहस्‍योद्घाटक श्र्लोक  

यान्ति देवव्रता देवान्पितृन्‍यान्ति पितृव्रता: ।

भूतानि यान्ति भूतेज्‍या यान्ति मद्याजिनो अपि माम् ।।

देवताओं को पूजने वाले देवताओं को प्राप्‍त होते हैं, पितरों को पूजने वाले पितरों को प्राप्‍त होते हैं, भूतों को पूजने वाले भूतों को प्राप्‍त होते हैं और मेरा पूजन करने वाले भक्‍त मुझको ही प्राप्‍त होते हैं । इसलिये मेरे भक्‍तों का पुनर्जन्‍म नहीं होता । - भगवान श्रीकृष्‍ण, श्रीमद्भगवद्गीता अध्‍याय 9 श्र्लोक 25  

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