रविवार, 13 दिसंबर 2009

राजनीति : पृथक तेलंगाना राज्य क्यो?

राजनीति : थक तेलंगाना राज्य क्यो?

जय यादव

       प्रथक तेलंगाना राज्य बनाने की मांग को लेकर पूर्व केंद्रीय मंत्री चंद्रशेखर राव के अनशन ने केंद्र सरकार को नरम बना दिया है। प्रधान मंत्री डा. मनमोहन सिंह ने प्रथक तेलंगाना राज्य बनाने के लिए प्रक्रिया प्रारंभ करने का आश्वासन देकर अशांत आंध्र प्रदेश को शांत करने का प्रयास किया है।

       प्रथक तेलंगाना की मांग नई नही है इसी मांग के सहारे तेलंगाना के नेता बीते चार-पाच दशको से राजनीति करते आ रहे है। तेलंगाना की दिखाने वाले प्रथक तेलंगाना के नेताओं ने अपने समर्थको का सब्र नही टूटने दिया, तब कहीं जाकर यह स्थिति बनीं।

       नए राज्यों के गठन को लेकर देश में आजादी के बाद से ही आंदोलन चल रहे है। कहीं इस तरह की मांग का आधार भाषावाद है तो कहीं भूगोल। कहीं आर्थिक पिछडेपन ने ऐसे आंदोलनो को ताकत दी तो कही नेताओं के निहित स्वाार्थ प्रथक राज्य के लिए लौ जलाए रखें।

       प्रथक तेलंगाना राज्य की मांग से पहले कई दशक चले आंदोलनो के बाद झारखंड, उत्तराखंड और छत्तीसगढं का उदय हुआ। प्रथक राज्य बनने के बाद भी इन नए राज्यों की जनता का भला नहीं हुआ, हां, यहा के नेताओं के सपने जरूर पूरे हो गए। नए राज्यों में भ्रष्टाचार और कुशासन पहले से ज्यादा गंभीर है कानून और व्यवस्था की स्थिति दिनों-दिन जर्जर हो रही है।

       तेलंगाना को स्वतंत्र राज्य बनाकर क्या वहां की जनता के सपनो में चंद्रशेखर राव कोई रंग भर पाएगे? शायद नहीं क्योकि केंद्र सरकार को प्रथक तेंलंगाना राज्य बनाने के लिए लंबी प्रक्रिया से गुजरना होगा।

       अपने जीवन को दांव पर लगाकर प्रथक तेलंगाना राज्य के गठन का मार्ग प्रशस्त करने वाले चंद्रशेखर राव राजनीति में न नही है उन्हे पता है कि लोहा कब गर्म होता है और कब गर्म लोहे पर चोट करना चाहिए । राव ने सही समय पर चोट की है लिब्रहन आयोग की रिपोर्ट से गर्म हो रही संसद प्रथक तेलंगाना आंदोलन की आंच से पिघल गई। इस प्रथक राज्य के आंदोलन की सफलता से प्रेरित होकर सुप्त प्राय: अन्य प्रथक राज्य आंदोलन सिंर उठा ले तो कोई बडी बात नही है प्रथक बुंदेलखड, दो आब, प्रथक गोरखा लैंड के आंदोलन अभी शींत निद्रा में है प्रथक तेलंगाना आदोलन की गर्मी इस शीत निद्रंा को तोड़ सकती है।

       देश को सुशासन देने के लिए छोटे राज्य बनाने की वकालत करने वालों की कतई कमी नही है। इसके समर्थन में सबके अपने अपने तर्क है, पर आज तेजी से सिकुड रही दुनिया में यह तर्क बेमानी साबित हो रहे है। पारदर्शिता बढ़ा दी है इसलिए नए और छोटे राज्य बनाकर जनता पर स्थापना व्यय का अतिरिक्त बोझ डालना अन्याय से कम नही है।

       मै प्रथक बुंदेलखंड आंदोलन से वर्षो जुड़ा रहा। भावनात्मक तौर पर भी और बुनियादी तौर पर भी। दुर्भाग्य से प्रथक बुंदेलखंड का आंदोलन अभी तक गति नही पकड़ पाया है। यह बात और है कि बुंदेलखंड को लेकर सभी दल राजनीति कर रहे है।

       बेहतर तो यह हो कि केंद्र सरकार प्रथक तेंलगाना राज्य बनाने से पहले नए राज्यों के गठन पर अपनी दृष्टि साफ कर लें। यहां यह तय होना ही चाहिए कि नए राज्यों का गठन राजनीति की जरूरतों को पूरा करने के लिए किया जाएगा या वास्तव में ऐसे राज्य बनाने की जरूरत को पूरा करने के लिए।

       भारत की आजादी के 62 सालो में कितने नए राज्य बन चुके है? इनसे क्या हासिल हुआ है? कितने नए राज्य और बनेगें? इनसे क्या हासिल होगा? यह तय किया जाना ज्यादा जरूरी है चंद्रशेखर राव के अनशन के आगे घुटने टेकने से बेहतर है कि या तो नए राज्य बने ही न, और बने भी तो एक सुस्पष्ट फार्मूले के आपार पर बने। अगर ऐसा हो सका तो रोज-रोज के नाटको और आंदोलनो से देश को बचाया जा सकता है। (भावार्थ)

 

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