मंगलवार, 16 अक्तूबर 2007

भारतीय त्यौहार धार्मिक कम सामाजिक अधिक

भारतीय त्यौहार धार्मिक कम सामाजिक अधिक

तनवीर जाफरी (सदस्‍य, हरियाणा साहित्‍य अकादमी)

       भारत में इन दिनों चारों ओर त्यौहारों की धूम नंजर आ रही है। भारत में रहने वाले सभी धर्मों व सम्प्रदायों के लोग अपने-अपने धर्मों के पारम्परिक त्यौहारों को मनाने में व्यस्त हैं। भारत दुनिया का एक ऐसा निराला देश है जहां सबसे अधिक संख्या में पर्व मनाए जाते हैं। इसका भी मुख्य कारण यही है कि यहां अनेक धर्मों व विश्वासों के लोग सदियों से सामूहिक रूप से रहते चले आ रहे हैं। साम्प्रदायिक सद्भाव के वातावरण से परिपूर्ण इस देश में अनेकों स्थान व अनेकों त्यौहार ऐसे हैं जोकि सभी सम्प्रदायों के लोगों द्वारा या तो सामूहिक रूप से मनाए जाते हैं अथवा उसके आयोजन में सभी समुदायों के लोगों का अहम सहयोग व योगदान होता है। दशहरा, ईद, दीवाली, गणेश उत्सव, डाण्डिया, दुर्गापूजा, होली तथा मोहर्रम आदि प्रमुख त्यौहारों को साम्प्रदायिक सद्भाव पेश करने वाली ऐसी ही श्रेणियों में रखा जा सकता है।

              इन दिनों भारत में दशहरा पर्व पूरे हर्षोल्लास से मनाया जा रहा है। पूरे देश में लगभग प्रत्येक नगरों व कस्बों में अनेक स्थानों पर रामलीला का मंचन किया जा रहा है तथा 21 अक्तूबर को विजय दशमी के दिन पूरे भारत में विशालकाय रावण एवं कुम्भकरण व मेघनाद जैसे आसुरी शक्तियों के प्रतीक, विशालकाय पुतले जलाए जाएंगे। दशहरा पर्व तथा इसके अन्तिम दिन रावण दहन का आयोजन बुराई पर अच्छाई की विजय के रूप में किया जाता है। यह त्यौहार जहां अपने ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में हमारे समक्ष भगवान श्री राम के उच्च आदर्शवादी जीवन चरित्र को प्रस्तुत करता है तथा दुराचारी, अत्याचारी व अहंकारी शक्तियों के समक्ष घुटने न टेकने की प्रेरणा देता है, वहीं यही त्यौहार देश के वर्तमान संदर्भ में भी साम्प्रदायिक सद्भाव की अनूठी मिसाल पेश करता है। उदाहरण के तौर पर भारत में अनेक स्थानों पर आयोजित होने वाली रामलीला में मुस्लिम व सिख धर्म के लोग रामलीला के मंचन में किसी न किसी पात्र के रूप में अपनी भूमिका निभाते हैं। ऐसा करते समय किसी प्रकार का रूढ़ीवादी पूर्वाग्रह उनके आड़े नहीं आता। इस वर्ष तो दशहरे के शुरुआती दिनों में रमंजान का पवित्र महीना समाप्त हो रहा था, उसके बावजूद दशहरा में भाग लेने वाले मुस्लिम लोगों की संख्या, उत्साह तथा उनकी सहभागिता में कोई कमी नहीं आई।

              भारत में तैयार होने वाले रावण के अधिकांश पुतले अथवा रामलीला से जुड़े सांजो सामान व स्टेज आदि को सजाने व उसके रख रखाव में भी मुस्लिम समुदाय का बड़ा योगदान रहता है। भारत के हरियाणा राज्य के बराड़ा कस्बे में इस वर्ष रावण का एक ऐसा पुतला तैयार किया जा रहा है जो साम्प्रदायिक सद्भाव की मिसाल कायम करने के साथ-साथ एक राष्ट्रीय कीर्तिमान स्थापित करने की तैयारी में भी जुटा हुआ है। रामलीला क्लब बराड़ा के संस्थापक अध्यक्ष तेजिन्द्र सिंह चौहान के संरक्षण व निर्देशन में तैयार होने वाला रावण का यह विशालकाय पुतला इस वर्ष देश का सबसे ऊंचा पुतला होने का दावा पेश करेगा। तेजिन्द्र सिंह चौहान ने 110 फीट से अधिक ऊंचाई वाले रावण के इस पुतले की तैयारी हेतु 12 मुस्लिम कारीगरों का एक दल विशेष रूप से ताज नगरी, आगरा से आमंत्रित किया है। कारीगरों के इस दल ने एक माह से अधिक समय तक बराड़ा में रहकर तथा दिन रात मेहनत कर इस विशाल पुतले को तैयार किया है। मोहम्मद उस्मान के नेतृत्व में मुस्लिम कारीगरों ने रमंजान में रोंजा (व्रत) रखकर यह सभी पुतले तैयार किए हैं। दरअसल त्यौहारों को इसी प्रकार से मिलजुल कर मनाने से तथा परस्पर सहयोग से भारत में साम्प्रदायिक सद्भाव मंजबूत होता है। अत: इन त्यौहारों को धार्मिक त्यौहारों का नाम देना ही गलत है। ऐसे पर्वों को धार्मिक पर्व के बजाए सामाजिक पर्व का नाम दिया जाना चाहिए।

              भारत के कई राज्यों में मनाया जाने वाला डाण्डिया पर्व भी एक ऐसा पर्व है जिसमें सभी समुदायों के लोग सामूहिक रूप से शरीक होते हैं तथा विशेष पारम्परिक डाण्डिया नृत्य में हिस्सा लेते हैं। इसी प्रकार भारत में विशेषकर महाराष्ट्र राज्य में मनाया जाने वाला गणेश पूजा महोत्सव भी एक ऐसा आयोजन है जिसमें सभी समुदायों के लोग भाग लेते देखे जा सकते हैं। बावजूद इसके कि गणेश महोत्सव हिन्दू धर्म से जुड़ा एक पर्व है तथा भगवान गणेश की पूजा केवल हिन्दू धर्म में ही की जाती है। फिर भी भारत में अनेक स्थानों पर मुस्लिम परिवारों द्वारा गणेश प्रतिमा को अपने घर में स्थापित करने से लेकर पूजा अर्चना करने तक उन्हें देखा जा सकता है। इतना ही नहीं बल्कि गणेश पूजा के अन्तिम दिन अर्थात् गणेश प्रतिमा के विसर्जन के समय लाखों गणेश भक्तों के साथ मुस्लिम समुदाय के लोग भी पूरी श्रद्धा व भक्ति के साथ इस कार्यक्रम में सम्मिलित होते हैं। इस वर्ष तो प्रसिद्ध फिल्म अभिनेता सलमान खान को भी मुम्बई स्थित उनके घर में गणेश प्रतिमा स्थापित करते तथा उनके द्वारा प्रतिमा का विसर्जन करते भी दिखाया गया। सलमान खान के घर गणेश महोत्सव के इस आयोजन में उन्हें अपने पूरे परिवार का सहयोग प्राप्त था।

             इसी प्रकार रंग बिरंगी संस्कृति के इस महान देश भारत में हिन्दुओं को पवित्र रमंजान के दिनों में रोंजा रखते व दरगाहों व मस्जिदों में बिना किसी धार्मिक भेदभाव के श्रद्धा से आते जाते हुए देखा जा सकता है। मोहर्रम, हालांकि खुशी का नहीं बल्कि गम मनाने का वह त्यौहार है जिसमें मुस्लिम समुदाय हंजरत मोहम्मद के नवासे हंजरत हुसैन व उनके परिजनों की करबला (इरांक) में लगभग 1400 वर्ष पूर्व हुई शहादत को याद करता है। कितने आश्चर्य की बात है कि सैकड़ों वर्षों से भारत में हिन्दू समुदाय के न सिंर्फ आम लोगों द्वारा बल्कि कई हिन्दू राजा महाराजाओं द्वारा भी मोहर्रम के आयोजन कराए गए हैं। हिन्दू समुदाय अब भी भारत में अनेक स्थनों पर हंजरत हुसैन की याद में तांजिये रखता है तथा हंजरत हुसैन का गम मनाता है। इतना ही नहीं बल्कि कई गैर मुस्लिम कवि करबला की घटना से प्रभावित होकर मरसिए, नौहे व सोंज आदि लिखते व पढ़ते हैं।

              इसी प्रकार ईद, दीपावली तथा होली जैसे त्यौहारों में भी सभी धर्मों व सम्प्रदायों के लोग मिलजुल कर खुशी का इंजहार करते हैं तथा एक दूसरे को मिठाईयां देते व खुशियां मनाते हैं। धार्मिक समरसता के इस विशाल देश में त्यौहारों के अवसर पर सरकारी कार्यालयों में होने वाले अवकाश भी धर्म के आधार पर नहीं होते बल्कि सभी समुदायों के लोग समस्त सम्प्रदायों के त्यौहारों के अवसर पर होने वाले अवकाश का भी सामूहिक रूप से आनन्द लेते हैं। यदि व्यवसायिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो भी यह सभी भारतीय त्यौहार एक दूसरे के समुदाय के लोगों को निकट लाने में तथा उनकी रोंजी-रोटी चलाने में अपनी अहम भूमिका निभाते हैं।

             उक्त परिस्थितियां यह समझ पाने के लिए पर्याप्त हैं कि वास्तव में अधिकांश भारतीय त्यौहारों को यदि धार्मिक त्यौहार कहने के बजाए इन्हें सामाजिक पर्व की संज्ञा दी जाए तो अधिक उचित होगा। भारत में बावजूद इसके कि कई सम्प्रदायों में रूढ़ीवादी एवं कट्टरपंथी सोच के लोग एक दूसरे के बीच नंफरत फैलाने के अपने अपवित्र मंसूबों में लगे रहते हैं, फिर भी एक दूसरे सम्प्रदायों से जुड़े पर्वों में समस्त सम्प्रदायों के लोगों के शरीक होने की लगातार बढ़ती हुई प्रवृत्ति इस बात का स्पष्ट संकेत है कि भारतवर्ष में साम्प्रदायिक एकता व साम्प्रदायिक सद्भाव की जड़ें दिन-प्रतिदिन और गहरी होती जा रही हैं। साम्प्रदायिक सद्भाव के ऐसे उदाहरण न केवल देश को भीतरी तौर पर मंजबूत करने में सहायक सिद्ध होंगे बल्कि इससे अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भी भारत की साख और मंजबूत होगी तथा दुनिया में भारत को एक ऐसे मंजबूत राष्ट्र के रूप में देखा जाएगा जोकि किसी एक धर्म व सम्प्रदाय का नहीं बल्कि केवल भारतवासियों का भारत है।                                                        

तनवीर जांफरी 22402, नाहन हाऊस अम्बाला शहर, हरियाणा फोन : 0171-2535628 मो: 098962-19228

 

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