रविवार, 30 अगस्त 2009

छतों पर लगे मोबाइल फोन टॉवर हटाये जायें – मानव अधिकार आयोग

रिहायशी कॉलोनियों के पास सेल फोन टॉवर स्थापित करने की अनुमति न देने की अनुशंसा:

छतों पर लगे मोबाइल फोन टॉवर हटाये जायें मानव अधिकार आयोग

Bhopal:Sunday, August 30, 2009

म.प्र. मानव अधिकार आयोग ने नगरीय क्षेत्रों में सेल फोन टॉवर स्थापित करने के लिये कम से कम ऐसे भूखंडों का चयन करने को प्राथमिकता देने की अनुशंसा की है जिनका आकार ढाई सौ फुट× ढाई सौ फुट हो। इन भूखंडों पर सेल फोन टॉवर के लिये स्थापित की जाने वाली मशीनों और जनरेटर से 100 फुट की त्रिज्या में कोई भी रिहायशी आवास न हो। टॉवर स्थापित करने के लिये जनरेटर की चिमनी की ऊँचाई न्यूनतम 30 फुट अथवा पास की ऊँचे आवासीय भवन से 20 फुट अधिक होना चाहिये।

आयोग ने सिफारिश की है कि ढाई हजार वर्ग फुट तक के आवासीय भूखंडों पर स्थापित टॉवर तत्काल हटाये जाने चाहिये। रिहायशी कॉलोनियों में मकानों की छत पर स्थापित टॉवरों से लोगों की जान और माल की क्षति का खतरा बना रहता है। वैसे भी ये भवन डायनामिक इम्पेक्ट फोर्स से डिजायन नहीं होते हैं इसलिये छतों पर स्थापित टॉवरों को भी हटा देना चाहिये। आयोग ने कहा है कि राज्य का अधिकांश भू-भाग भूकंप संभावित क्षेत्र है, इसलिये टॉवरों की ऊँचाई इतनी हो कि उनके गिरने से कोई जनहानि न हो। आयोग ने कहा है कि भारतीय टेलीकम्युनिकेशन इंजीनियरिंग संस्थान दिल्ली द्वारा जारी मार्गदर्शी सिद्धांतों व निर्देर्शों का टॉवर की स्थापना में पालन कराया जाये। आयोग ने ये अनुशंसाएं खण्डवा के एक स्ट्रक्चरल इंजीनियर श्री राजेन्द्र तिवारी की शिकायत पर विभिन्न संबंधित संस्थाओं से जानकारियां लेने और विचार-विमर्श करने के बाद की हैं।

आयोग ने यह भी सिफारिश की है कि सेल फोन टॉवर्स का निर्माण एवं स्थापना घनी आबादी वाली बस्तियों के निकट न किया जाये। टॉवर स्थापित किये जाने वाले स्थान को वायर फेंसिंग और चारीदीवारी बनाकर सुरक्षित रखा जाना चाहिये ताकि उन तक किसी व्यक्ति की पहुंच न हो सके। आयोग ने यह भी कहा है कि विद्युत या डीजल जनरेटर से संचालित होने वाले टॉवरों में ध्वनि प्रदूषण न हो इसका विशेष ध्यान रखा जाना चाहिये। म.प्र. मानव अधिकार आयोग ने यह शिकायत प्राप्त होने के बाद नगरीय प्रशासन एवं विकास विभाग से टॉवर स्थापना की अनुमति देने के संबंध में शासन की नीति की जानकारी प्राप्त की। नीति से यह स्पष्ट हुआ कि सेल फोन टॉवर स्थापना की अनुमति देने की शर्तों में जन-सुरक्षा और स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव न पड़े इस संबंध में कोई खास शर्तें नहीं रखी गई हैं। आयोग की पहल पर शासन ने सेल फोन टॉवर से निकलने वाली विद्युत चुम्बकीय विकिरणों के दुष्प्रभावों का अध्ययन करने के लिये सात सदस्यीय एक विशेषज्ञ समिति गठित की। समिति में गाँधी मेडिकल कॉलेज भोपाल के एटामिक मेडिसिन्स विभाग के डॉ. करण पीपरे, सूचना एवं प्रौद्योगिकी के ओ.एस.डी. डॉ. अनुराग श्रीवास्तव, बी.एस.एन.एल. के श्री मनोज कुमार, नगरीय प्रशासन के अधीक्षण यंत्री श्री के.के. श्रीवास्तव, रिलायंस और एयरटेल कम्पनियों के एक-एक प्रतिनिधि को सम्मिलित किया गया।

समिति की रिपोर्ट में स्पष्ट किया गया है कि ये विद्युत चुम्बकीय विकिरणें गर्भवती माताओं, गर्भस्थ शिशुओं और बालकों के स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव डाल सकती हैं। समिति ने यह भी सुझाव दिया है कि सेल फोन टॉवरों का निर्माण करने की अनुमति केवल खुले सार्वजनिक स्थानों पर ही दी जानी चाहिये। निर्मित भवनों की छतों पर टॉवर स्थापित करने से कभी भी दुर्घटनाएं घटित हो सकती हैं। विभिन्न कम्पनियों को सेल फोन टॉवरों के साझा उपयोग पर सहमति बनाने के प्रयत्न होने चाहिये। भविष्य में बनने वाली रिहायशी कॉलोनियों में सेल फोन टॉवर स्थापित करने के लिये स्थान आरक्षित कराये जाने चाहिये।

शिकायतकर्ता श्री राजेन्द्र तिवारी, स्वयं स्ट्रक्चरल इंजीनियर हैं। उन्होंने भी सेल फोन टॉवर्स के बारे में जो अध्ययन किये हैं उनके संदर्भ प्रस्तुत करते हुए आयोग को काफी जानकारियां दी हैं। श्री तिवारी ने फ्रांस के एक शोध पत्र का हवाला देते हुए स्पष्ट किया है कि सेल फोन टॉवर के पास रहने वाले लोगों को खून की कमी, दृष्टिदोष, सिरदर्द तथा अनिद्रा जैसे संत्रास हो सकते हैं। इसलिये सेल फोन के बेस स्टेशन को मानव बसाहट से कम से कम 300 मीटर दूर रखना उचित होगा। आस्ट्रिया के वियना विश्वविद्यालय के पर्यावरण स्वास्थ्य चिकित्सा संस्थान के एक शोधपत्र जो इंटरनेट पर उपलब्ध है में स्पष्ट किया गया है कि विद्युत चुम्बकीय विकिरणों का मानव स्वास्थ्य पर तात्कालिक प्रभाव भले ही न दिखे लेकिन लम्बे समय तक विकिरणों के प्रभाव से मानव शरीर पर दुष्परिणाम के उदाहरण मिले हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका में किये गये एक अध्ययन में भी बताया गया है कि सेल फोन टॉवर और सेल फोन दोनों को एक सुरक्षित दूरी पर रखना आवश्यक है। अन्य स्थिति में इनके अहितकारी परिणाम बूढ़ों, बच्चों, गर्भवती माताओं और कमजोर लोगों पर प्रकट होते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी सेल फोन टॉवर स्थापित करने के संबंध में पूर्ण सावधानी और सतर्कता के सिद्धांतों का पालन करने की सलाह दी है।

 

बुधवार, 12 अगस्त 2009

जो उखाड़ सको सो उखाड़ लो, नहीं मिलेगी बिजली- मुरैना कलेक्‍टर एम.के अग्रवाल

जो उखाड़ सको सो उखाड़ लो, नहीं मिलेगी बिजली- मुरैना कलेक्‍टर एम.के अग्रवाल

नरेन्‍द्र सिंह तोमर ''आनन्‍द''

मुरैना शहर संभागीय मुख्‍यालय है इसके कई मोहल्‍लों में पिछले 4-5 दिन से 24 घण्‍टों बिजली नहीं थी जिससे ग्‍वालियर टाइम्‍स जैसी वेबसाइट पहली बार इतिहास में पिछले 4 दिन से अपडैट नहीं हुयी, इस सम्‍बन्‍ध में एक पत्रकार के नाते हमने मुरैना कलेक्‍टर एम.के.अग्रवाल से कल फोन पर बात की, हमने कहा सर बराबर बिल भरते आ रहे हैं (पिछले 26 साल से) लेकिन हमारी बिजली बहुत परेशान कर रही है हमें बिजली नहीं मिल रही है, कलैक्‍टर एम.के. अग्रवाल का जवाब सुन कर हम भौंचक्‍क रह गये कलेक्‍टर ने कहा कि '' कह दिया न कि नहीं है बिजली, जो उखाड़ा पड़े सो उखाड़ लो, नहीं मिलेगी बिजली'' क्‍या एक कलेक्‍टर का ऐसा जवाब लोकतंत्र में एक लोकसेवक (जनता का सेवक) का सही जवाब था , हम आपकी राय जानना चाहते हैं , यदि आपको यह गलत व अप्रत्‍याशित एवं भद्दा महसूस होता है तो इसकी विश्‍वव्‍यापी निन्‍दा चाहते हैं , हालांकि इसकी शिकायत प्रधानमंत्री के प्रशासनिक सुधार कार्मिक एवं लोक शिकायत मंत्रालय तथा महामहिम राष्‍ट्रपति को ऑनलाइन की जा रही है और क्‍या अब भी कुछ सज्‍जन मुरैना के इस कलेक्‍टर को हमारी बेस्‍ट कलेक्‍टर्स और सुशासन की फिल्‍म में शामिल किये जाने हेतु प्रस्‍तावित करना पसन्‍द करेंगे ।

कहने को तो प्रति मंगलवार म.प्र. शासन की ओर से जन सुनवाई नामक नौटंकी म.प्र. सरकार करती है और जिसमें जनता की फरियाद सुनी जाती है और मौके पर ही समस्‍याओं का निराकरण किया जाता है लेकिन कलेक्‍टर के उपरोक्‍त जवाब से आपको मुरैना की जनसुनवाई की बानगी मिल गई होगी कि मुरैना का कलेक्‍टर कैसी जनसुनवाई करता होगा और जनता से क्‍या व्‍यवहार करता होगा । यह एक भुक्‍तभोगी दास्‍तान है और कल की ही घटना है । हालांकि बिजली विभाग के एस.ई; से हुयी वार्तालापों के कई फोन और कलेक्‍टर के फोन हमने रिकार्ड किये है । कोर सेण्‍टर सहित अन्‍य उच्‍च स्‍तरीय जॉचों में हम इन्‍हें सबूत के तौर पर प्रस्‍तुत करेंगें । लेकिन आपको कलेक्‍टर एम.के.अग्रवाल की गुण्‍डागर्दी के व्‍यवहार की वजह भी बता दें , पिछले दो महीने पहिले सहारा समय टी.वी. न्‍यूज चैनल के एक पत्रकार विजय तिवारी को कलेक्‍टर एम.के.अग्रवाल ने अपने कार्यालय में बन्‍द करके मारा पीटा था , विजय तिवारी के पास कलेक्‍टर एम.के. अग्रवाल सहित उसके कई मातहतों की वीडीयो स्ट्रिग्‍स थीं जिसमें कलेक्‍टर न केवल रिश्‍वत लेते बल्कि भ्रष्‍टाचार के रिकार्ड तोड़ कारनामे करते स्टिंग आपरेशन के जरिये फिल्‍मा लिया गया था । विजय तिवारी की मारपीट करने के साथ उसका कैमरा एवं पेन ड्राइव कलेक्‍टर एम.के.अग्रवाल ने अपने स्‍टाफ से छुड़वा ली थीं , जिसकी एफ.आई.आर मुरैना पुलिस नहीं लिख रही थी , सो रात को करीब 30-40 पत्रकार इक्‍ठ्ठा होकर मेरे पास आये और मैंने इण्‍ठरनेट के जरिये डी.जी.पी; म.प्र. को मुरैना कलेक्‍टर के खिलाफ एफ.आई.आर दर्ज कर दी यह एफ.आई.आर अभी तक दर्ज है जिसके सबूत हमारे पास हैं । बाद में अरूण तोमर (अध्‍यक्ष म.प्र. राज्‍य सहकारी संघ) के जरिये विजय तिवारी को काफी डराया धमकाया गया और राजीनामा कराने के लिये दवाब डलवाया गया । बाद में क्‍या हुआ पता नहीं लेकिन मुकदमें लड़ना और पैरवी करना, इण्‍टरनेट के जरिये एडवोकेसी करना , मुकदमे कायम कराना, एफ.आई.आर दर्ज कराना मेंरा पेशा है, मै एक एडवोकेट हूँ मेरी प्रोफशनल बाध्‍यता है कि मैं पीडि़त की बात सुनूं और उचित मंच पर पहुँचा कर उसे न्‍याय दिलाऊं अब इसमें मुल्जिम भले ही कोई भी क्‍यों न हो ।

मुरैना कलेक्‍टर एम.के अग्रवाल तभी से मुझसे दुश्‍मनी माने बैठे है और परेशान करने का, अपने पद का दुरूपयोग करने का कोई छोटा से छोटा मौका नहीं छोड़ रहे । वैसे मै कलेक्‍टर साहब को याद दिला दूं कि उनके विरूद्ध इतने साक्ष्‍य हैं कि एक बार भीतर चले गये तो निकल कर बाहर आना मुश्किल है , उच्‍च स्‍तरीय जॉच में हम सारे सबूत पेश भी करेंगे । चलिये श्रीमान अब लड़ ही लेते हैं और ढंग से लड़ लेते हैं 1 अब या तो हम नहीं या आप नहीं । चम्‍बल में एक ही शेर रहेगा आप या फिर हम । ''हम अमन चाहते हैं जुल्‍म के खिलाफ, फैसला अगर जंग से होगा तो जंग ही सही '' तैयार हो जायें श्रीमान जितना पद का दुरूपयोग कर सकते हो कर डालो, और अब हमारे वार भी झेलो । हम क्‍या उखाड़ पायेंगे ये वक्‍त बतायेगा श्रीमान । फिलहाल आपको इण्‍टरनेशनल हस्‍ती बनाये देते हैं , छोटे मोटे से लड़ने में मजा भी नहीं आता ।       

 

रविवार, 9 अगस्त 2009

ग्वालियर शिक्षा का संभावनाशील 'हब' - राकेश अचल

ग्वालियर शिक्षा का संभावनाशील 'हब'

  • राकेश अचल
  • लेखक वरिष्ठ पत्रकार है

 

धरती उर्वरा हो, तभी उसमें फसल अच्छी होती है। ठीक यही बात शिक्षा और ग्वालियर पर लागू होती है। ग्वालियर उत्तरी म प्र. में ही नहीं बल्कि उत्तर भारत मे भी एक महत्वपूर्ण 'एज्यूकेशन हब' के रूप में अपनी पहचान बना चुका है।

       ग्वालियर स्वतंत्रता पूर्व से ही शिक्षा का महत्वपूर्ण केन्द्र रहा है। ग्वालियर के तत्कालीन शासकों ने शिक्षा के महत्व को बहुत पहले समझ और पहचान लिया था। ग्वालियर दरबार ने भी शिक्षा को रियासत की जिम्मेदारी के रूप में लिया और 1846 में 'लश्कर मदरसा' के नाम से लश्कर में पहला आधुनिक शिक्षा विद्यालय खोला। रियासत के एक मंत्री श्री दिनकर राव राजवाड़े की व्यक्तिगत रूचि के कारण 1852 से 1859 के बीच ग्वालियर में अंग्रेजी शिक्षा भी प्रारंभ कर दी गई। ग्वालियर अकेली ऐसी रियासत थी जहां 1857 में दो हजार से अधिक आबादी वाले गांवों में स्कूल खोल दिये गये थे।

       ग्वालियर में 1885 में हाईस्कूल तथा 1890 में इन्टरमीडिएट कालेज की स्थापना कर दी गई थी। 1887 में ही ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया की रजत जयंती स्मारक के रूप में बनी इमारत में विक्टोरिया कालेज की स्थापना की गई। इस इमारत का लोकार्पण 1899 लार्ड कर्जन ने किया। इसी इमारत में आज महारानी लक्ष्मीबाई महाविद्यालय संचालित हो रहा हे।

       ग्वालियर में 1895 में सरदार स्कूल और मिलिट्री स्कूल की स्थापना भी की गई। 1903 में यहां दो नये कालेज और 1905 में पहला कन्या महाविद्यालय खोला गया। 1915 में पहली आयुर्वेद शाला और 1939 में कमलाराजा कन्या महाविद्यालय स्थापित किया गया। इस संस्थान में आज विभिन्न संकायों की 7500 छात्रायें अध्ययन करतीं हैं।

       आजादी से पूर्व ही 1946 में ग्वालियर में गजराराजा चिकित्सा महाविद्यालय की स्थापना की गई। 1949 में आयुर्वेद महाविद्यालय और 1950 में कृषि महाविद्यालय स्थापित कर दिया गया। 1957 में महारानी लक्ष्मीबाई के नाम पर राष्ट्रीय शारीरिक शिक्षा महाविद्यालय स्थापित किया गया, जो अब स्वयं डीम्ड यूनीवर्सिटी बन चुका है।

       ग्वालियर में 1964 में जीवाजी विश्वविद्यालय की स्थापना के बाद 1984 तक शिक्षा के क्षेत्र में एक ठहराव सा आ गया। लेकिन 1985 के बाद ग्वालियर के तत्कालीन सांसद माधवराव सिंधिया ने इस दिशा में महत्वपूर्ण पहल की। सिंधिया के प्रयासों से ग्वालियर को राष्ट्रीय यात्रा, पर्यटन प्रबंधन संस्थान मिला। उन्हीं के प्रयासों से ग्वालियर में अटलबिहारी बाजपेयी सूचना प्रबंधन तकनीकी का राष्ट्रीय संस्थान मिला। खान-पान प्रबंधन की राष्ट्रीय संस्था भी ग्वालियर आ गई।

       ग्वालियर में 59 साल बाद सरकार के प्रयासों से संगीत और कृषि विश्वविद्यालय की स्थापना भी हो गई है। सरकार ने ग्वालियर में चिकित्सा विश्वविद्यालय की स्थापना का संकल्प भी व्यक्त किया है। हाल ही में कृषि मंत्री ने यहां पशु चिकित्सा महाविद्यालय खोलने की भी घोषणा की है।

       ग्वालियर की भौगौलिक स्थिति के साथ ही यहां उपलब्ध बेहतर आवागमन और आवास सुविधाओं को देखते हुए निजीक्षेत्र के अधिकांश शैक्षणिक संस्थान और कोचिंग संस्थान ग्वालियर पहुँच चुके हैं। ग्वालियर में अब कला विज्ञान, चिकित्सा, तकनीक, पर्यटन शारीरिक शिक्षा, प्रबंधन, फैशन, एन सी सी. ही नहीं बल्कि नागरिक उड्डयन की शिक्षा देने वाले राष्ट्रीय स्तर के संस्थानों की सुदृढ़  उपलब्ध है।

आई आई आई टी एम. सूचना तकनीक के क्षेत्र में आई क्रांति को देखते हुए ग्वालियर में भारत सरकार ने इंडियन इंस्टीटयूट आफ इन्फारमेशन टैक्नोलाजी एण्ड मैनेजमेण्ट की स्थापना ग्वालियर में की। 60 हैक्टेयर के विशाल क्षेत्रफल में फैले इस राष्ट्रीय संस्थान में सूचना तकनीक और प्रशिक्षण के साथ ही बहुउद्देश्यी कार्यशालाओं, शोध परामर्श तथा कामकाजी लोगों के लिये सतत शिक्षण का काम पिछले एक दशक से हो रहा है।

       पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी के नाम से जोड़ा जा चुका यह संस्थान पोस्ट ग्रेज्युएट, मैनेजेंट डेवलपमेंट प्रोग्राम चला रहा है। इस संस्थान ने सूचना तकनीक एवं प्रबंधन के क्षेत्र में अपना अग्रणी स्थान बना लिया है। 

आई आई टी टी एम. पर्यटन एवं यात्रा पबंधन विषय पर देश में प्रशिक्षण की सुविधा गिनेचुने शहरों में उपलब्ध है। ग्वालियर में भारतीय पर्यटन एवं यात्रा प्रबंधन संस्थान 1983 से इस विषय से जुड़े छात्रों को स्नातक तथा स्नातकोत्तर डिग्री एव डिप्लोमा प्रदान कर रहा है। इस संस्थान में देश के नामचीन विशेषज्ञ तो हैं ही, साथ ही यहां हॉस्टल की भी बेहतरीन सुविधा उपलब्ध है। यह संस्थान जीवाजी विश्वविद्यालय परिसर में स्वयं की इमारत में संचालित है।

      एम आई टी एस. ग्वालियर में तकनीकी शिक्षा का शुभारंभ आजादी के पहले ही उपलब्ध हो गया था। ग्वालियर के तत्कालीन शासक जीवाजी राव सिंधिया ने 1957 में माधव इंस्टीटयूट ऑफ टैक्नोलॉजी एवं साइंसेज की स्थापना की थी। यहां बी ई. से लेकर पी एच डी. तक के अध्ययन-अध्यापक का प्रबंध है यहां सिविल, मैकेनिकल, इलेक्ट्रिकल, इलेक्ट्रोनिक्स, कम्प्यूटर के अलावा कृषि इंजिनियरिंग की पढ़ाई की व्यवस्था है। संस्थान में फार्मा, पोलीटेक्नोलॉजी साइंस, वायो कैमिस्ट्री आदि विषयों के अध्ययन अध्यापन के इंतजाम किये जा रहे हैं।

जीवाजी विश्वविद्यालय- ग्वालियर के एज्युकेशन हब बनने में जीवाजी विश्वविद्यालय की महत्वपूर्ण भूमिका है। जीवाजी विश्वविद्यालय की स्थापना 1966 में की गई। तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राधाकृष्णन ने इस संस्थान का लोकार्पण किया था। यह विश्वविद्यालय लगभग प्रत्येक विषय के अध्ययन की उच्चस्तरीय व्यवस्था कर रहा है।

जीवाजी विश्वविद्यालय की अध्ययन  शालाओं में विज्ञान, अर्थशास्त्र, गणित, राजनीति  शास्त्र, के अतिरिक्त प्रबंधन, इंजिनियरिंग, पर्यटन के प्रथक संस्थान हैं। यह देश का अकेला ऐसा विश्वविद्यालय है जहां प्रचलित विषयों के अलावा संगीत, ज्योतिष, योग, प्राकृतिक चिकित्सा जैसे पारंपरिक विषयों पर भी अध्ययन एवं शोध कराया जाता है।

संगीत शिक्षा - ग्वालियर सूचना प्रौद्यौगिकी का ही नहीं, संगीत शिक्षा का भी प्रचीन केन्द्र है। यहां पांच सौ साल पहले राजा मानसिंह तोमर ने पहली संगीत शाला स्थापित की थी। आज यहां माधव संगीत विद्यालय, चतुर संगीत महाविद्यालय, भारतीय संगीत महाविद्यालय के साथ ही  अब पूरा का पूरा संगीत विश्वविद्यालय स्थापित कर दिया गया है। संगीत को कैरियर बनाने के इच्छुक छात्र यहां विश्वविद्यालय में रह कर संगीत पर शोध के साथ ही गुरू शिष्य परंपरा के अन्तर्गत भी ज्ञानवर्धन कर सकते हैं। शीघ्र ही यहां एक ख्याल केन्द्र भी बन रहा है।

कृषि शिक्षा- कृषि प्रधान भारत देश में कृषि विज्ञान की शिक्षा के माध्यम से भी रोजगार की अनेक संभावनायें बनी हैं। ग्वालियर में अब तक कृषि विज्ञान में स्नातक एवं स्नातकोत्तर स्तर की शिक्षा ही उपलब्ध थी, किंतु इसी साल से यहां राजमाता विजयाराजे कृषि विश्वविद्यालय की स्थापना के साथ पी एच डी. की उपाधि हासिल की जा सकती है। मृदा परीक्षण, मृदा उपचार, उन्नत बीजों तथा कृषि उत्पादनों पर शोध और विकास के क्षेत्र में ग्वालियर जैसी व्यवस्थायें दूसरे क्षेत्रों में कम ही हैं।

शारीरिक शिक्षा - ग्वालियर शारीरिक शिक्षा प्रशिक्षण और अनुसंधान का देश का ही नहीं अपितु एशिया का सबसे बड़ा केन्द्र है। यहां 1957 में तत्कालीन शासकों द्वारा 150 हैक्टेयर क्षेत्रफल में स्थापित लक्ष्मीबाई राष्ट्रीय शारीरिक शिक्षा महाविद्यालय अब विश्वविद्यालय बन चुका है। इस संस्थान में सभी प्रमुख खेलों के प्रशिक्षण, शोध , खेल चिकित्सा, खेल पत्रकारिता, योगा सहित सभी प्रमुख विषयों के अध्ययन, अध्यापन की विस्वस्तरीय व्यवस्थायें हैं। इस संस्थान का बहुत तेजी से विकास हो रहा है। यहां स्नातक शिक्षा से लेकर पी एच डी. तक के अध्ययन का प्रबंध है।

चिकित्सा शिक्षा- ग्वालियर में उत्तर भारत का सबसे पुराना मेडीकल कालेज है, गजराराजा मेडीकल कालेज की स्थापना ग्वालियर में 1946 में की गई थी। इस चिकित्सा महाविद्यालय से जुड़ा एक विशाल अस्पताल भी है यहां एम बी बी एस., एम एस., एम डी., के अध्ययन, अध्यापन की व्यवस्था सतत् चली आ रही है। राज्य सरकार यहां शीघ्र ही एक हजार विस्तर का अस्पताल और बनाने जा रहीं है।

       एलोपैथी के अलावा यहां आयुर्वेदिक चिकित्सा महाविद्यालय भी पांच दशकों से संचालित है। इसी महाविद्यालय से जुड़ी आयुर्वेदिक फार्मेसी भी है।

कैंसर चिकित्सालय एवं शोध संस्थान- ग्वालियर में 35 साल पहले स्थापित किया गया कैंसर चिकित्सालय एवं शोध संस्थान अब रिसर्च सेंटर के रूप में विकसित हो चुका है। यहां माइक्रोबायोलॉजी में स्नातकोत्तर शिक्षा के साथ ही नर्सिंग का एक विशाल कालेज है। निजी क्षेत्र में दंतचिकित्सा के अतिरिक्त नर्सिंग प्रशिक्षण के अनेक संस्थान ग्वालियर में हैं जो देश-दुनियां को प्रतिवर्ष सैकड़ों नर्स तैयार कर दे रहे हैं।

महिला शिक्षा- म प्र. में महिला शिक्षा के क्षेत्र में ग्वालियर स्वतंत्रा प्राप्ति से पहले से अग्रणीय रहा है। यहां प्रदेश का सबसे बड़ा कमलाराजा कन्या विद्यालय है। इस महाविद्यालय में अलग- अलग संकाय की 7500 सीटें हैं। ग्वालियर में महिला पोलिटेक्नीक, महिला आई टी आई. , महिला बी टी आई. और महिला शिक्षा संस्थान है। एशिया का सबसे बड़ा एन सी सी. महिला प्रशिक्षण संस्थान ग्वालियर को पहचान बन चुका है। यहां पूरे वर्ष ओरियेंटेशन कार्यक्रम चलते रहते हैं।

       अब अभिभावक अपने बच्चों का कोचिंग और अध्ययन के लिये कोटा, जयपुर, पुणे या इंदौर भेजने के बजाय ग्वालियर में ही रखना पसंद करते हैं। यहां शिक्षा की उच्च गुणवत्ता कम दामों पर उपलब्ध है। इसे देखते हुए देश के अलग अलग हिस्सों के छात्र ग्वालियर की ओर रूख करने लगे हैं।

      ग्वालियर में प्रबंधन और इंजिनियरिंग के छात्रों के लिये व्यवहारिक प्रशिक्षण की सुविधायें भी बहुतायत में हैं। भिण्ड के मालनपुर और मुरैना के बानमौर औद्यौगिक क्षेत्र में मैकेनिकल, इलेक्ट्रीकल, डेयरी, ऊर्जा, आटोमोबाइल, इलेक्ट्रोनिक्स के एक से बढ़कर एक संस्थान है।

      निकट भविष्य में ग्वालियर में आई टी. पार्क के अलावा एस ई.जेङ की स्थापना भी होने वाली है। ग्वालियर के विशेष क्षेत्र विकास प्राधिकरण द्वारा विकसित की जा रही टाउनशिप में भी देश के प्रतिष्ठित शैक्षणिक संस्थानों ने अपनी इकाइयां स्थापित करने का निर्णय किया है।

       अब दुनिया का शायद ही ऐसा कोई विषय होगा जिसके अध्ययन और अध्यापन की सुविधा ग्वालियर में उपलब्ध न हो। ग्वालियर में राष्ट्रीय स्तर के इंजीनियरिंग कालेजों के साथ ही प्रबंधन के क्षेत्र में अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के संस्थान उपलब्ध है। शारीरिक शिक्षा के क्षेत्र में तो ग्वालियर में एशिया का अनूठा संस्थान है। ललित कलाओं और संगीत के छात्रों के लिये अब कहीं बाहर जाने की जरूरत नहीं है। छात्र यहां अध्ययन, अध्यापन के साथ ही तानसेन समारोह के माध्यम से देश के   प्रतिष्ठित संगीतज्ञों से सीधे रूबरू हो सकते हैं। कला के प्रदर्शन के लिये यहां तानसेन कला वीथिका भी है।

       सारांश यह है कि ग्वालियर में गरीब से गरीब और अमीर से अमीर छात्रों के लिये अध्ययन की श्रेष्ठतम सुविधायें उपलब्ध हैं। पब्लिक स्कूलों में रूचि रखने वालों के लिये सिंधिया स्कूल तो यहां है ही। रेलवे और उड्डयन के विषयों से जुड़े उच्च स्तरीय संस्थान ग्वालियर को 'एज्यूकेशन हब' के रूप में मान्यता दिलाने में कामयाब रहे हैं।

       ग्वालियर के आई आई टी एम. और ए बी आई. आई आई टी एम में तो प्रवेश अखिल भारतीय प्रवेश परीक्षाओं के जरिये होता है। इंजिनियरिंग, चिकित्सा एवं प्रबंधन संस्थानों में राज्यस्तर की प्रवेश परीक्षा म प्र. व्यवसायिक परीक्षा मण्डल की ओर से संचालित की जाती है। म प्र. के तकनीकी प्रबंधन और चिकित्सा संस्थानों में प्रवेश एवं शिक्षा शुल्क अन्य शहरी और राज्यों के मुकाबले काफी कम हैं।

 

शुक्रवार, 7 अगस्त 2009

भारतीय पर्यटन एवं यात्रा प्रबंधन संस्थान - डॉ. सौरभ दीक्षित

भारतीय पर्यटन एवं यात्रा प्रबंधन संस्थान

v                डॉ. सौरभ दीक्षित

v                 लेखक भारतीय पर्यटन एवं यात्रा प्रबंधन संस्थान में फेकल्टी मेम्बर है

 

       पर्यटन में केरियर बनाने वाले छात्रों का प्रथम प्रयास भारतीय पर्यटन एवं यात्रा प्रबंधन संस्थान में प्रवेश के लिये होता है। यह संस्थान विगत 26 वर्षों से देश में पर्यटन, शिक्षा एवं मानव संसाधन के लिये सेवारत है। यहां स्नातकोत्तर स्तर पर अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार(इंटरनेशन बिजनेस), सेवा क्षेत्र (सर्विसेज सेक्टर), पर्यटन एवं यात्रा (टूरिज्म एवं ट्रेवल) और पर्यटन एवं लेजर (टूरिज्म एवं लेजर) विषयों में प्रबंधन की उपाधि दी जाती है । इसके अलावा कई विषयों जैसे कि कम्प्युटराइज्ड आरक्षण प्रणाली, फ्रेंच एवं जर्मन विदेशी भाषायें, पर्यटन प्रबंधन, ईको टूरिज्म, ग्राहक संतुष्टि आदि विषयों पर शॉर्ट टर्म ट्रेनिंग पाठयक्रम आवश्यकतानुसार चलाये जाते हैं ।  संस्थान का प्लेसमेंट रिकार्ड बहुत अच्छा है। विश्व में आर्थिक मंदी के बावजूद इस वर्ष संस्थान के पर्यटन छात्रों का प्लेसमेंट शत-प्रतिशत रहा। नौकरी देने वाली कम्पनियों में थॉमस कुक, एसओपीसी, ओरबिट, सर्दन ट्रेवल्स, लिस्परिंग पॉम आदि कम्पनियां हैं । संस्थान के सभी पाठयक्रम एआईसीटीई द्वारा मान्यता प्राप्त हैं । संस्थान में आने वाले गणमान्य प्रोफेसर्स/ व्यवसायियों में प्रोफेसर एरिक कोहेम(इजरायल), प्रोफेसर क्रिस कूपर , श्री प्रेम सुब्रमण्यम , श्री इंदर शर्मा, प्रोफेसर तपन पंडा, आईआईएम इन्दौर आदि प्रमुख हैं ।

इन्फ्रास्ट्रक्चर - संस्थान 22 एकड़ के हरेभरे सुरम्य वातावरण में फैला हुआ है जो यहां आने वाले छात्रों को अनायास ही अपनी ओर खींच लेता है । खेलकूद में रूचि रखने वाले छात्रों के लिये बिलियर्डस, स्नूकर, बेडमिंटन, क्रिकेट, जिमनेज्यिम, बॉलीबाल, केरम,शतरंज, फुटबाल आदि की सुविधायें हैं । संस्थान का सभागार एयरकंडीशन है एवं इसमें 500 लोग बैठ सकते  हैं । संस्थान में दो संगणक केन्द्र जिनमें करीब 90 कम्प्यूटर्स लगे हुये हैं । ये संगणक केन्द्र पर्यटन एवं प्रबंधन से संबंधित सॉफ्टवेयर द्वारा युक्त हैं । सभी कम्प्यूटर्स में छात्रों, कर्मचारियों के लिये इंटरनेट कनेक्टिविटी उपलब्ध है। संस्थान का पुस्तकालय पर्यटन के क्षेत्र में देश का सबसे बड़ा पर्यटन से संबंधित पुस्तकों का संग्रह केन्द्र है।

आईआईटीटीएम की स्थापना सन् 1983 में संसदीय समिति की अनुशंसा पर भारत सरकार ने की थी । पिछले कई वर्षों से पर्यटन के क्षेत्र में मानव संसाधन की कमी महसूस की जा रही थी । अत: आईआईटीटीएम की स्थापना पर्यटन के क्षेत्र में एक अपेक्स बॉडी की तरह दिल्ली में की गई । सन् 1992 में इसको ग्वालियर स्थानांतरित किया गया । इसके पश्चात सन् 1996 में संस्थान में पर्यटन, यात्रा विषय पर

स्नातकोत्तर डिप्लोमा शुरू किया गया । जो कि भारतवर्ष में काफी प्रचलित हुआ। तत्पश्चात पर्यटन एवं प्रबंधन से संबंधित विषयों में स्नातकोत्तर डिग्री एवं पर्यटन में स्नातक डिग्री शुरू की गई । वर्तमान में संस्थान पीजीडीएम की उपाधि देता है । संस्थान एशिया पेसिफिक क्षेत्र में उन गिने चुने संस्थानों / विश्वविद्यालयों में से एक है जो पर्यटन एवं यात्रा प्रबंधन विषय में स्नातकोत्तर की उपाधि देते हैं ।

संस्थान नियमित पाठयक्रमों के अलावा अपने एवं पर्यटन मंत्रालय के लिये केपीसिटी बिल्ंडिग एवं टूरिज्म (सीबीएसटी), लर्न वाइल यू अर्न (एलडब्ल्यूवायएन), डोनर, विदेशी छात्रों के लिये मार्कोपोलो , गाइड ट्रेनिंग कोर्स संचालित करता है । एक साथ 450 से अधिक गाइडों को एक ही स्थान पर ट्रेनिंग देने के लिये संस्थान का नाम लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज है । आने वाले समय में संस्था पीएचडी स्तर के शोध कार्य करायेगा ।

       संस्थान कई राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त संस्थाओं जैसे कि यूएनएसके द्वारा गठित एशिया पेसिफिक एज्यूकेशन एंड ट्रेनिंग इन्स्टीटयूशन इन टूरिज्म (एपीइटीआईटी), एमडिशा, इंडियन एसोसियेशन ऑफ टूर आपरेटर्स , ट्रेवल एजेन्ट्स एसोसियेशन आफ इंडिया , एफएचआरएआई का सदस्य है । संस्थान एशिया पेसिफिक एज्यूकेशन एंड ट्रेनिंग इन्स्टीटयूशन इन टूरिज्म (एपीइटीआईटी), इन्टरनेशनल फोकल पॉइंट है तथा संस्थान के निदेशक प्रोफेसर सितीकंठ मिश्रा इसके वाइस चेयरमेन हैं । संस्थान ऐपिटिक का आधिकारिक न्यूज लेटर भी प्रकाशित करता है जिसका प्रचार-प्रसार 37 देशों में है ।

      भारतीय पर्यटन एवं यात्रा प्रबंधन संस्थान एक मल्टी केम्पस इन्स्टीटयूट है । इसके केन्द्र नई दिल्ली, भुवनेश्वर एवं गोवा में है । ग्वालियर सेंटर हेडक्वार्टर है । गोवा केन्द्र को नेशनल इन्स्टीटयूट आफ वाटर स्पोट्र्स के नाम से जाना जाता है । जोकि वाटर स्पोट्र्स में शर्ट टर्म कोर्सेस चलाता है और कई राज्यों को कन्सलटेंसी देता है ।

आगामी वर्षों में संस्थान का विस्तार प्रस्तावित है । संस्थान भारत सरकार को कॉमनवेल्थ गेम्स में कमरों की आवश्यकता, और एसिसिबल टूरिज्म पर रिसर्च में भी सहायता दे रहा है ।