बुधवार, 29 अक्टूबर 2008

राष्ट्रभक्ति का ढोंग रचने वाले अलगाववादी नेताओं से सावधान

राष्ट्रभक्ति का ढोंग रचने वाले अलगाववादी नेताओं से सावधान

तनवीर जांफरी (सदस्य, हरियाणा साहित्य अकादमी, शासी परिषद)

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       भारतीय राजनीति के परिपेक्ष में जब कभी अलगाववाद की बात चलती है तो सबसे पहले आम लोगों का ध्यान जम्मु-कश्मीर तथा पूर्वोत्तर क्षेत्र में पनपने वाले उन आन्दोलनों की ओर जाता है जो अलगाववाद के अपने दूरगामी लक्ष्य के लिए संघर्षरत हैं। ऐसे अलगाववादी अभियानों से निपटने के लिए भारत सरकार द्वारा क्षेत्रीय राज्य सरकारों व स्थानीय प्रशासन के सहयोग से इन्हें कुचलने हेतु भरसक प्रयास किए जाते हैं। यहां तक कि आवश्यकता पड़ने पर सैन्य बल, अर्धसैनिक बलों तथा स्थानीय पुलिस की भी पूरी मदद ली जाती है। ऐसे अलगाववादी मिशन चलाने वाले संगठनों को काली सूची में डाल दिया जाता है तथा इनसे सख्ती से निपटने के हर सम्भव उपाय किए जाते हैं। परन्तु अब ऐसा प्रतीत हो रहा है कि भारत में अलगाववाद भी राष्ट्रवाद के मुखौटे के साथ सक्रिय हो उठा है। और इसकी शुरुआत भारत के एक समृद्ध राज्य महाराष्ट्र से हो भी चुकी है।

              वैसे तो भारत के औद्योगिक व आर्थिक दृष्टिकोण से कांफी समृद्ध राज्य समझे जाने वाले महाराष्ट्र राज्य में शिवसेना नामक एक क्षेत्रीय पार्टी का गठन क्षेत्रवाद को बढ़ावा देने के आधार पर ही हुआ था। परन्तु स्वयं को राजनीति में स्थापित करने के लिए शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे द्वारा राष्ट्रवादी होने के साथ हिन्दुत्ववादी होने का ढोंग भी रचा गया। और इसी रास्ते पर चलकर बाल ठाकरे की शिवसेना तथा एक अन्य हिन्दुत्ववादी राष्ट्रीय दल भारतीय जनता पार्टी के मध्य कई दशकों तथा सत्ता हथियाने के लक्ष्य को लेकर अच्छी सांठगांठ भी रही जोकि आज भी ंकायम है। बाल ठाकरे के हिन्दुत्ववादी विचारों को अपनाकर भले ही भाजपा ने केंद्र में सत्ता प्राप्त करने जैसा लाभ क्यों न उठाया हो परन्तु भारतीय जनता पार्टी की इस स्वार्थ सिद्धि ने शिवसेना जैसी क्षेत्रवादी विचारों वाली पार्टी को मंजबूत करने में भी अपना अहम योगदान दिया है। अब बाल ठाकरे के पदचिन्हों पर ही चल पड़े हैं, उनके भतीजे राज ठाकरे।

              बाल ठाकरे के उत्तराधिकारी बनने को उठे विवाद में राज ठाकरे ने उसी 'राजनैतिक सामग्री' की महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना नामक अपनी अलग 'दुकान' चलानी शुरु कर दी जोकि उनके चाचा बाल ठाकरे 'बेचा' करते थे अर्थात् क्षेत्रवाद एवं मराठावाद। बड़े दु:ख की बात है कि यह ठाकरे परिवार एक ओर तो स्वयं को हिन्दुत्ववादी विचारधारा का घोर समर्थक बताता है। यह परिवार अपने से बड़ा राष्ट्रभक्त भी किसी को नहीं समझता। इनके झण्डे व पहनावे भी ऐसे हैं कि कोई भी इन्हें सच्चा हिन्दुत्ववादी, देशभक्त नेता ही समझ बैठे। परन्तु पिछले कुछ समय से इस ठाकरे परिवार द्वारा परस्पर राजनैतिक प्रतिस्पर्धा के अन्तर्गत जिस प्रकार क्षेत्रवादी आन्दोलन को हवा दी जा रही है तथा ंगैर मराठों पर जिस प्रकार ंजुल्म ढाए जा रहे हैं, उससे अब यह सांफ लगने लगा है कि इनकी देशभक्ति एवं राष्ट्रभक्ति महंज एक ढोंग और नाटक के सिवा और कुछ नहीं। भतीजे राज ठाकरे इन दिनों अपनी पूरी राजनैतिक उर्जा का प्रयोग इस मंकसद के लिए कर रहे हैं कि किसी तरह वे अपने चाचा बाल ठाकरे को मराठावाद के हितैषी होने की प्रतिस्पर्धा में पछाड़ सकें। इसके लिए राज ठाकरे ने एक अलग क्षेत्रीय दल का भी गठन किया है। महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) के तत्वावधान में राज ठाकरे महाराष्ट्र में जनसभाएं करते फिर रहे हैं। उनके भाषणों में राष्ट्रवाद के बजाए मराठावाद व क्षेत्रवाद का ही  ंजिक्र रहता है। मराठावासियों को वे हर हाल में यह समझाना चाहते हैं कि क्षेत्रीय लोगों के सबसे बड़े हितैषी वही हैं कोई और दूसरा नेता नहीं। राज ठाकरे अपने इस अभियान के तहत शेष भारतवासियों विशेषकर उत्तर भारतीयों के प्रति मराठों के दिलों में नंफरत के बीज भी बो रहे हैं। पिछले दिनों महाराष्ट्र में सैकड़ों ऐसी घटनाएं घटीं जिनमें कि राज ठाकरे के गुण्डों द्वारा बेगुनाह व निहत्थे मेहनतकश लोगों, टैक्सी ड्राइवरों, दुकानदारों, नौकरीपेशा लोगों, छात्रों तथा सरकारी सेवा में नौकरी हेतु परीक्षा देने आए उत्तर भारतीयों की जमकर पिटाई की गई। कांफी दिनों से मनसे द्वारा की जाने वाली इस गुण्डागर्दी का आंखिरकार पिछले दिनों उत्तर भारतीयों द्वारा भी जवाब दिया गया। भारतीय रेल सेवाएं बाधित हुईं, रेल सम्पत्ति को नुंकसान पहुंचा, कई जगहों पर बसों को जलाया व तोड़ फोड़ दिया गया। कुल मिलाकर राष्ट्रीय सम्पत्ति की कांफी क्षति हुई।

              सवाल यह है कि क्षेत्रवादी विचारधारा के नाम पर अलगाववाद को हवा देने वाले ऐसे तथाकथित राष्ट्रभक्त नेता क्या आगे भी यूं ही खुलेआम घूमते रहेंगे? क्या इनके द्वारा दर्शाया जाने वाला मराठा प्रेम का झूठा नाटक राज्य में सत्ता हथियाने का साधन मात्र नहीं? दरअसल गत् दो दशकों से भारत में अपनी जगह बना चुकी गठबंधन दलों की राजनीति ने देश के बड़े से बड़े नेताओं को उनकी हैसियत की पहचान करा दी है। अब भारत में ऐसे नेता व ऐसी पार्टियां कम ही हैं जिनकी आवांज, पहुंच तथा पहचान राष्ट्रीय स्तर पर कश्मीर से कन्याकुमारी तक हो। अत: अब दूसरी श्रेणी के नेताओं द्वारा क्षेत्रीय राजनीति को बढ़ावा देने की कोशिश की जा रही है। ऐसे नेताओं द्वारा क्षेत्रवाद को बढ़ावा देने वाले तथा इसे हवा देने वाले मुद्दों की पहचान की जा रही है तथा उनपर धार रखने के सभी उपाय किए जा रहे हैं। ऐसा करने के लिए यह क्षेत्रीय नेता पहले स्थानीय जनता के हितों के सबसे बड़े रक्षक के रूप में स्वयं को जनता के समक्ष प्रस्तुत करते हैं तथा यदि इतना कांफी न हो और हितैषी बनने मात्र से जनता आकर्षित न हो तो शेष भारतीयों के लिए नंफरत पैदा करने के हथकंडों को अपनाने से भी यह परहेंज नहीं करते।

              राष्ट्रीयता की विचारधारा रखने वाले भारतवासियों को अब इस बात का संदेह होने लगा है कि राज्य की सत्ता पर ंकब्ंजा जमाने के उद्देश्य से अपनाए जाने वाले अलगाववादी नेताओं के यह हथकंडे कहीं भारत को उस पूर्व अंफंगानिस्तान की तरह विभाजित न कर डालें जहां कि मात्र एक दशक पूर्व अलग-अलग टुकड़ों में अलग-अलग ंकबीले के सरगना कभी राज किया करते थे। केंद्र सरकार को ऐसी क्षेत्रीय, संकुचित व अलगाववादी सोच को हवा देने वाली राजनीति तथा ऐसी राजनीति करने वाले नेताओं के साथ सख्ती से निपटने की ंजरूरत है। इसके साथ-साथ भारतवासियों को भी स्वयं को पहले भारतवासी तथा राष्ट्रवादी होने पर गर्व महसूस करना चाहिए, किसी राज्य विशेष का निवासी होने पर नहीं।

       देश में राज्य की सीमाओं का निर्धारण क्षेत्रीय विकास के मद्दनेंजर तथा प्रशासनिक सहूलियतों के दृष्टिगत् किया जाता है। इसके लिए कुंए के मेंढक सरीखे नेताओं की चापलूसी भरी बातों में आने की ंकतई कोई ंजरूरत नहीं है। देशवासियों को अलगाववादी सोच रखने वाले ऐसे नेतओं से सचेत रहने की ंजरूरत है। देश का जो भी दल, जो भी नेता तथा जो भी क्षेत्रीय संगठन राष्ट्रीय हितों पर क्षेत्रीय हितों के हावी होने का मार्ग दिखाता है अथवा ऐसे दुर्भावना फैलाने वाले मिशन को हवा देता है, ऐसे लोगों से आम जनता को ंखबरदार रहना होगा। देश में धर्म, जाति, क्षेत्र अथवा भाषा के नाम पर अपनी राजनीति चलाने वाले नेता केवल क्षेत्रीय सत्ता हथियाने के लिए जनता के मध्य उनके हमदर्द के रूप में ऐसे ही मुखौटे पहनकर सामने आते हैं। परन्तु ंजरूरत है इनके मुखौटों को पहचानने व इन हथकंडों को नाकाम करने की ताकि हमारा भारत अखंड रह सके।        तनवीर जांफरी

 

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