रविवार, 19 अक्टूबर 2008

मत्स्य पालन: तालाबों में मछलियों के आहार की माकूल व्यवस्था करें- • व्ही.डी. शर्मा

मत्स्य पालन: तालाबों  में मछलियों के आहार की माकूल व्यवस्था करें-

·                    व्ही.डी. शर्मा

 

ग्वालियर 19 अक्टूबर 08। ग्वालियर चम्बल संम्भाग में 3747 सिंचाई एवं अन्य ग्रामीण तालाब है जिनमें से 3332 तालाबों में मछली पालन होता है। मछली पालन वाले तालाबों का जल क्षेत्र 25 हजार 775 हेक्टेयर है। इन तालाबों में जुलाई-अगस्त से ही मत्स्य बीज डाले जा रहे हैं। कुछ तालाबों में मत्स्य पालक अब भी मत्स्य बीज डाल रहे हैं। गत वर्ष ग्वालियर चम्बल सम्भाग में 3364 मी. टन मछली का उत्पादन हुआ था। दो माह पूर्व जिन तालाबों में मत्स्य बीज डाले गये  थे। वहां मछलियों का वजन बढ़कर 200 से 250 ग्राम हो चुका होगा। मत्स्य पालन में समय पर मत्स्य बीज को तालाबों में डालने, पानी की पर्याप्त मात्रा को बनाये रखने तथा तालाब के आकार एवं उसमें पाली जाने वाली मत्स्य प्रजातियों के अनुरूप आहार व्यवस्था का बहुत महत्व होता है। उचित आहार के अभाव में मत्स्य उत्पादन प्रभावित हो सकता है।

       मछली पालन से अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिये वैज्ञानिक विधि द्वारा एक ही तालाब में विभिन्न प्रजाति के मछली बीज(मत्स्य बीज) का संचयन करके मत्स्य पालन किया जा रहा है। जिसे हम मिश्रित मत्स्यपालन कहते है। तालाबों में विभिन्न प्रजातियों के मत्स्य बीज का संचय तीन प्रकार से करते है। जैसे :-

1. तीन प्रजाति पालन- कतला, रोहू, मृगल, 2. चार प्रजाति पालन- कतला, रोहू, मृगल, कामनकार्प तथा 3. छै प्रजाति पालन-  कतला, रोहू, मृगल, कामनकार्प, सिल्वर कार्प एवं ग्रास कार्प।

प्रत्येक पालन विधि में मत्स्य बीज की संख्या 5000-6000 फिंगर लिंग प्रति हेक्टेयर रखी जाती है। मत्स्य पालन व्यवसाय में मछली उत्पादन बढाने के लिये तालाब में अच्छी किस्म के मत्स्य बीज का संचयन तथा मछलियों का आहार प्रबन्धन ये दो सबसे अधिक महत्वपूर्ण कार्य हैं। तालाबों में मछलियों के लिये आहार की व्यवस्था दो प्रकार से करनी चाहिये।

 

 

 


·                     लेखक मत्स्योद्योग विभाग में संयुक्त संचालक के पद पर कार्यरत हैं। वर्तमान में श्री शर्मा को ग्वालियर से स्थानांतरित कर मैहर में प्रदेश  एवं एशिया के जाने माने पौंडी फिश फार्म पर तैनात किया गया है। तीन सौ हेक्टेयर में फैला पौंडी फिश फार्म सालाना 25 करोड़ मत्स्य बीज तैयार करता है।

 

 

 

       तालाबों की उत्पादकता बढाने के लिये कार्बनिक खाद एवं रासायनिक खाद का प्रयोग किया जाता हैं तालाब में गोबर स्लरी तथा अन्य जानवरों के मल के प्रयोग से विभिन्न प्रकार के वनस्पति एवं जन्तु प्लवक (प्लेंकटान) उन्पन्न हो जाते हैं तथा रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग से उनकी संख्या में और वृध्दि हो जाती है।

 

1 प्राकृतिक आहार की व्यवस्था मत्स्य पालन वाले तालाबों में सूक्ष्म जीवों का उत्पादन करके की जाती है। इन सूक्ष्म जीवों को  ''प्लवक'' (प्लेंकटान) कहते हैं। ये प्लवक वनस्पति एवं जन्तु समूह के होते हैं, जिनको हम वनस्पति प्लवक एवं जन्तु प्लवक कहते हैं जो मछलियों का प्राकृतिक आहार होते हैं। ये प्लवक पौष्टिकता से भरपूर होते हैं। मछलियां तालाब के पानी से इस प्राकृतिक आहार को खूब चाव से खाती हैं। फलस्वरूप मछलियों के आकार में वृध्दि होती है। तालाब में प्लवकों की कमी होने से मछलियों की वृध्दि पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। परिणाम स्वरूप आय में भी निश्चित रूप से कमी हो जाती है।

       मत्स्य पालन वाले तालाब मे वनस्पिति एवं जन्तु प्लवकों का उत्पादन तालाब की मिट्टी व पानी की उत्पादकता पर निर्भर करता है। तालाब की उत्पादकता बढाने के लिये कार्बनिक खाद(गाय व भैंस का ताजा गोबर) भेड़, बकरी, मुर्गी का मल तथा गोबर गैस की स्लरी व रासायनिक उर्वरक यूरिया तथा सुपर फास्फेट का प्रयोग किया जाता है, इसके प्रयोग करने से वनस्पति एवं जन्तु प्लवकों का उत्पादन होता है एवं निरन्तर इनकी संख्या में वृध्दि होती है।

       मत्स्य पालन वाले तालाब में प्राकृतिक आहार की मात्रा सदैव बनाये रखने के लिये गोबर एवं स्लरी तथा अन्य जानवरों के मल वर्ष भर के प्रत्येक महीने (दिसम्बर एवं जनवरी माह को छोड़कर) डालते हैं। तालाब में गोबर की आवश्यकता 12 टन प्रति हेक्टेयर प्रतिवर्ष पड़ती है। तालाब में एक मीटर पानी भरकर गोबर की पहली किस्त तीन टन प्रति हेक्टेयर, मछली के बच्चे डालने के 15 दिन पहले तथा 9 टन मात्रा में एक टन प्रतिमाह प्रतिहेक्टेयर की दर से डालते रहना चाहिये। गोबर को तालाब के कोनों पर ढेर बनाकर रख देते है जो धीरे-धीरे पानी में घुलता रहता है।

       गोबर गैस सयंत्र से निकली स्लरी (खाद) का प्रयोग ताजा गोबर से अधिक प्रभावशाली होता है। अत: स्लरी उपलब्ध हो तो तालाब में अवश्य डालना चाहिये।

       रासायनिक उर्वरकों को (दिसम्बर एवं जनवरी माह छोड़कर) शेष सभी महीनों में यूरिया 15 किलो ग्राम तथा सुपर फास्फेट 30 किलोग्राम का मिश्रण प्रतिमाह प्रतिहेक्टेयर की दर से तालाब के पानी में चारों ओर बिखेर कर डालना चाहिये। तालाबों में गोबर तथा रासायनिक उर्वरकों का उपयोग 15 दिन के अन्तराल पर करना चाहिये।

2 पूरक आहार - मत्स्य पालन वाले तालाबों में कार्बनिक एवं रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग से उत्पन्न मछलियों द्वारा लगातार छान कर खाते रहने से उनकी मात्रा सदैव पर्याप्त नहीं रह पाती है।

       अत: तालाब से अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिये कृत्रिम पूरक आहार की आवश्यकता पड़ती है। पूरक आहार के रूप में सरसों, मूंगफली तिल आदि की खली (महुआ खली को छोड़कर क्योंकि यह मछलियों के लिये जहर का काम करती है) धान की कनी, भूसी(राइस ब्रान) तथा गेहूं के चोकर का प्रयोग पौष्टिकता एवं आर्थिक दृष्टि से लाभकारी रहता है।

       खली व धान की कनी, भूसी (राइस ब्रान)का उपयोग बराबर मात्रा मिलाकर व बारीक पीसकर तालाब में छिडकर अथवा मिश्रण को एक बोरे में बांधकर एक डंडे के सहारे तालाब में लटकाना चाहिये । मछलियों को पूरक आहार प्रतिदिन एक निश्चित समय व स्थान पर देना चाहिये । आहार की मात्रा मछलियों के शारीरिक भार (वजन) के 2-3 प्रतिशत की दर से निकाल कर देना चाहिये ।

      प्रतिदिन के लिये पूरक आहार की मात्रा का अनुमान निम्नलिखित भोजन तालिका द्वारा लगाया जा सकता है । वर्षभर की आहार तालिका इस प्रकार है:-

मछलियों की अवस्था

कृत्रिम भोजन की मात्रा

 

तीन प्रजाति पालन

किलोग्राम प्रतिहेक्टर

चार प्रजाति पालन किलोग्राम प्रति हेक्टर

 

छ: प्रजाति पालन किलोग्राम

प्रति हेक्टर

प्रथम तीन महीने

 

2.00

 

2.50

 

3.00

 

द्वितीय तीन महीने

 

4.00

 

5.00

 

6.00

 

तृतीय तीने महीने

 

6.00

 

7.50

 

9.00

 

चतुर्थ तीन महीने

 

8.00

 

10.00

 

12.00

 

       

      छ: प्रजाति पालन वाली विधि में ग्रास कार्प एक शाकाहारी मछली है तथा यह जलीय व स्थलीय दोनों तरह की घास को अपनी शरीर के भार के लगभग 50 प्रतिशत भार तक की मात्रा बड़े चाव से खाती है । अत: पूरक आहार के रूप में जलीय घास जैसे सेवार, नाजाज, लेम्ना, सिरेटोफाइलम, हाइड्रिला आदि तथा स्थलीय चारा जैसे बरसीम, जई, लूसन चरी आदि काटकर प्रतिदिन आवश्यकतानुसार देना चाहिये । तालाबों में पाली गई मछलियों को भोजनालय से प्राप्त जूठन भी पूरक आहार के रूप दिया जा सकता है । इसमें पोषक तत्वों की मात्रा पर्याप्त होती है । 

       उपरोक्त दोनो प्रकार की आहार व्यवस्था मत्स्य पालन वाले तालाब में करने से मछलियों को पर्याप्त आहार मिलता है । फलस्वरूप मत्स्योत्पादन बढ़ने से मत्स्य पालकों को 50 हजार रूपये प्रति हेक्टर प्रतिवर्ष तक शुध्द लाभ हो सकता है ।

 

व्ही.डी.शर्मा

संयुक्त संचालक

मत्व्योद्योग,ग्वालियर

 

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