गुरुवार, 16 अक्टूबर 2008

मटर की खेती से लाभ कमा सकते हैं किसान

मटर की खेती से लाभ कमा सकते हैं किसान

ग्वालियर 16 अक्टूबर 08 । किसान कल्याण एवं कृषि विकास विभाग ने कृषकों को सलाह दी है कि वे मटर की खेती कर अधिक लाभ प्राप्त कर सकते हैं। मटर की अच्छी पैदावार के लिए उत्तम जल निकास वाली दोमट भूमि उपयुक्त होती है। सर्वप्रथम भूमि की दो बार हल से जुताई करके व बखर चलाकर मिट्टी को  भुरभुरी कर लें तदुपरांत पाटा की सहायता से खेत को समतल कर लेना चाहिए। मटर की उन्नत प्रजातियों में अंबिका, आई.पी.एस.9925, आई.पी.एस.आर.400, आई.पी.एस.डी. 9913 प्रमुख है।

मटर की अच्छी बढवार एवं पैदावार प्राप्त करने के लिए ठंडे शुष्क वातावरण की आवश्यकता होती है। मटर की बुआई अक्टूबर से नवंबर के मध्य तक करें। मटर की बोनी दुफन एवं तिफन द्वारा करने पर अंकुरण पूरे खेत में समान रुप से अच्छी तरह होता है।मटर का बीज 5 से 6 सेंटीमीटर गहराई में बोना चाहिए। कतार से कतार कीदूरी ऊंची बढने वाली जातियों के लिए 40 से 50 सेंटीमीटर एवं बोनी जातियों के लिए 30 से 40 सेंटीमीटर रखना चाहिए। कतारों में बीज से बीज की दूरी 4 से 6 सेंटीमीटर रखना चाहिए। जल्दी पकने वाली जातियों के लिए 40 किलोग्राम एवं मध्यम तथा देर से पकने वाली जातियों के लिए 24 किलोग्राम प्रति एकड की दर से बीज का उपयोग करना चाहिए।

बीज को बुआई से पूर्व थायरम दवाई 2.5 ग्राम तथा वाविस्टीन 0.5 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करके ही बोना चाहिए। बुआई करते समय यदि खेत में नमी हो तो अंकुरण अति उत्तम हो सकता है परन्तु यदि मिट्टी में नमी कम हो तो बुआई के तुरंत बाद सिंचाई कर देना चाहिए। शुष्क मौसम में 12 से 14 दिन के अंतराल पर सिंचाई करना चाहिए। फलियों में दाने आने पर सिंचाई करना अत्यंत आवश्यक होता है। मटर फसल की बाढ़ की प्रारंभिक अवस्था में आवश्यकतानुसार एक या दो बार निंदाई करने से उपज अच्छी होती है। पौधों को क्षति पहुँचाए बिना निंदाई गुडाई करना चाहिए।

मटर में भभूतिया रोग की रोकथाम के लिए घुलनशील सल्फर का छिडकाव 0.3 प्रतिशत घोल बनाकर करना चाहिए। गंधक पावडर का भुरकाव 10-12 किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से करना चाहिए। गेरुआ रोग की रोकथाम के लिए डायथेन एम-45 2-5 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर छिंडकाव करना चाहिए। एक एकड़ में लगभग 250 लीटर पानी पर्याप्त होता है। फली छेटक कीट की रोकथाम के लिए इंडोसल्फान 4 प्रतिशत चूर्ण का 10 किलोग्राम प्रति एकड के हिसाब से भुरकाव या 0.7 प्रतिशत इंडोसल्फान या क्वीनालफास 0.04 प्रतिशत का घोल बनाकर छिडकाव करना चाहिए। तना छेदक इल्ली की रोकथाम के लिए क्वीनालफास 1.5 प्रतिशत चूर्ण 8 किलोग्राम प्रति एकड़ के मान से भुरकाव करें। मटर की अगेती जातियों की उपज 16 से 20 क्विंटल प्रति एकड़ एवं मध्यम एवं देर से पकने वाली जातियों की उपज 28 से 32 क्विंटल हरी फली प्रति एकड़ होती है।

 

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