शाबास प्रवेन्द्र नागेन्द्र, पुलिस पर लगे कलंक को धोया, कुल की लाज भी रखी जनता का विश्वास भी पाया
पुलिस आरक्षकों की जांबाजी और बहादुरी पर विशेष सम्मान आलेख
मुरैना की जनता की ओर से -ग्वालियर टाइम्स
भगवान श्रीकृष्ण ने श्रीमदभगवदगीता में कहा कि स्वधर्मे निधनं श्रेय: परधर्मो भयावह: इसके अलावा धर्मयुक्त युध्द से बढ़कर क्षत्रिय के लिये अन्य कोई कल्याण कारक कर्तव्य नहीं हैं !
क्ल सुबह तड़के मुरैना की दर्जी गली में हुये आधा दर्जन बदमाशों से अंधे मुकाबले में छह सशस्त्र बदमाशों से जब पुलिस के केवल दो आरक्षक जान पर खेलकर भिड़ गये बल्कि सीधे मौत से टकरा गये वह भी तब जब रात का वक्त, अंधेरा कायम, लोग घरों में खुराटर्ें मार कर सो रहे हो और बिना स्ट्रीट लाइटों के गलियाँ स्याह अंधेरे में डूबी हों, चारों ओर श्मशानी सन्नाटा पसरा हो, हाथ को हाथ न सूझता हो और मौत बस चन्द गज की दूरी पर खड़ी कनपटी छूती हुयी निकल जाये !
भारत की सीमा पर निगहबानी करते चम्बल के सपूत फौजी नौजवानों के लिये ऐसे दृश्य रोजमर्रा के आम हैं तो मुरैना पुलिस भी कुछ ऐसे ही हालातों में जनता की वक्त ए रात चौकसी करती है ! बस फर्क ये है कि पुलिस में कुछ या कई गद्दार या कायर घर बनाये बैठे हैं तो वहीं कुछ अपने कुल और अन्नदाता विभाग की इज्जत व मान मर्यादा की रक्षा के लिये और शहर व अंचल के अमनोचैन कायमी के लिये 24 घण्टे मौत हथेली पर ले घूमते हैं !
हमें बहादुर पुलिस आरक्षकों की सम्मान गाथा सुनने से पहले उन परिस्थितियों पर भी गंभीरता से विचार करना होगा जहाँ सन्नाटे के साये में घनघोर अंधेरे में केवल दो लोग छह हथियार बन्द बदमाशों से जान पर खेल कर भिड़न्त ले लेते हैं !
लेकिन यह भी चिन्ता जनक है कि रात्रि पुलिस गश्ती दल केवल दो लोगों का और वह भी पैदल, उस पर भी इस कायरों और कमजोरों दब्बूओं के शहर में बदमाश के मारे जाने के बाद पुलिस एक घण्टे तक चिल्लाती रही मगर गली का कोई निवासी अपने घर से बाहर नहीं निकला ! उफ शर्म इन मुर्दो की बस्ती में क्या खाक चिराग जलेंगें !
वे जो अपने आप को चम्बलवासी कह कर गौरव से माथा उठा कर चम्बल को शर्मसार करते हैं, पुलिस पर अपराध होने के बाद पुलिस कार्यवाही से अपराधी को बचाने के लिये ऐड़ी चोटी का जोर लगाते हैं, पुलिस पर चढ़ चढ़ बैठते हैं, आखिर क्यों सबेरा होने तक पुलिस द्वारा चिल्ला चिल्ला कर बुलाये जाने दरवाजे पीटने के बाद भी घरों से नहीं निकले ! थू है ऐसे बहादुरी के मुर्दा पुतले शहर वासीयों पर ! इनसे तो वह कुत्ते अच्छे जो पुलिस को चिल्ला चिल्ला कर वारदातियों तक पुकार ले गये ! दर्जी गली वासी तो कुत्तो से भी गये बीते हो गये ! उफ शर्म शर्म शर्म ! यदि हम होते तो पुलिस के साथ मिल कर लड़ते और अपने बहादुर रक्षकों को अकेले नहीं मौत से टकराने देते !
मेरे मुहल्ले में जब भी कोई रात को गश्ती दल मुझे दिखता है तो मैं उसे नजर में रखता हूँ और कभी अगर ऐसा हुआ जैसा दर्जी गली में हुआ तो बदमाश एक नहीं पूरे गिरोह को ही ढेर कर लेंगे !
मेरे मोहल्ले में भी कुछ कायर बसते हैं लेकिन सौ गीदड़ भी मिलकर एक शेर से नहीं टकरा सकते यानि चन्द शेर भी हमारी बस्ती में हैं बस उतने काफी हैं और हम सभी ने आपस में रात में सतत सम्पर्क में रखने की नेटवर्किग भी कर रखी है ताकि कहीं गर कुछ ऐसा हो तो अव्वल तो हम खुद निबटा लेंगे और अगर पुलिस भी मौजूद हुयी तो पुलिस को जंग अकेले नहीं लड़ने देंगे ! फिर एक बार थू है दर्जी गली के कायर वाशिन्दों पर !
प्रवेन्द्र सिंह तोमर और नागेन्द्र सिंह चौहान ये दो नाम हैं उन बहादुर सिपाहीयों के जो जान पर खेल कर सामने खड़ी मौत को ललकार कर टकरा गये ! शाबास प्रवेन्द्र सिंह तोमर शाबास नागेन्द्र सिंह चौहान ! तुमने अपनी जांबाजी और बहादुरी से अपनी माँ के दूध को धन्य कर दिया, कुल की लाज रख ली और पुलिस पर कापुरूष पुलिसियों द्वारा लगाये कलंक को कुछ हद तक धो दिया ! पुलिस पर जनता का विश्वास लौटा दिया और उन पुलिसियों के मुँह पर जोरदार तमाचा जड़ दिया जो पुलिस पर कलंक और बोझ हैं और जो चोर और लुटेरे पाल कर अपने बैंक खाते चलाते हैं !
ऐसे बेशर्म और पुलिस को बदनाम करने वाले पुलिसियों को इन दो आरक्षकों से देशभक्ति और जांबांजी का सबक लेना चाहिये !
विशेष रूप से दाद देनी होगी प्रवेन्द्र सिंह तोमर की जिसने गोलीयों के बदले केवल एक गोली चलाई और अंधेरे से डूबे सन्नाटे में भी अचूक रही और एक ही गोली ने बदमाश का काम तमाम कर डाला ! काश नागेन्द्र सिंह चौहान भी जमीन पर लेट कर जान बचाने के बजाय गोली चलाता तो शायद एक दो बदमाश और भी जमीन्दोज हो जाते !
नागेन्द्र सिंह मौके पर मौजूद था यही काफी है लेकिन काश वह भी फायर करता तो धरती का बोझ कुछ और कम हो जाता ! पर खैर यह परिस्थितियों पर निर्भर करता है कि जिसको आसन्न खतरे के वक्त जो भी तरीका उचित समझ आये वह वही करता है ! पर शाबास प्रवेन्द्र ! तुम्हें इस देश का हार्दिक नमन !
हालांकि पुलिस अधीक्षक संतोष सिंह भी अपराधियों के विरूध्द काफी कठोर दिल हैं और सी.एस.पी. अमृत मीणा व टी.आई सिटी कोतवाली प्रवीण अष्ठाना भी इस समय काफी अच्छा काम कर रहे हैं, और अपराधों को जहाँ का तहाँ लगाम कस कर जिस कदर पुलिस अधीक्षक से लेकर सी.एस.पी. टी.आई और आरक्षकों ने रोक दिया है ! वाकई धन्यवाद और साधुवाद के पात्र हैं ! मैं इस पूरी टीम की वर्तमान कार्यप्रणाली से संतुष्ट व प्रसन्न हैं काश आगे भी इसी प्रकार अपराध मुक्त अंचल के लिये यही जांबाजी और कार्यप्रणाली बरकरार बनी रहे !
मेरे एक पूर्व आई.पी.एस. दोस्त के और एक पुसि आरक्षक मित्र मुझे कहा करते हैं कि चोर असल में चोर नहीं होता, चोर तो असली उस एरिया का थानेदार होता है, अगर वह चाहे तो चोरी डकैती या लूट हो ही नहीं सकती ! अगर होती है तो समझिये कि उस एरिया का थानेदार ही चोर है ! आज लम्बे समय से मैं इसे देख और महसूस कर रहा हूँ ! कि उनका कहना सत्य की अकाटय परिभाषा है !
मुरैना पुलिस को दिल से चम्बलवासीयों विशेषकर मुरैना वासीयों की ओर से धन्यवाद और बहादुरी के लिये नमन करते हुये कहना चाहूंगा कि !
हजारों साल से नर्गिस अपनी बेनूरी पे रोती है !
बड़ी मुश्किल से होते हैं चमन में दीदावर पैदा !!
वह सर क्या जो झुके अन्यायी की चौखट पर !
सिर तो वह है जो कटे न्याय की खातिर !!
नहीं हारते वे कभी जो लड़ कर जीवन पाते हैं !
पराजय के बाद भी राणा की तरह पूजे जाते हैं !!
राणा प्रताप और अकबर में फर्क बस इतना है दोस्तो !
नहीं दिखते अकबर के बुत भी कहीं, राणा के घोड़े हर चौराहे पे नजर आते हैं !
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