बेटे के प्यार व बुलन्द हौसले से मिली जीवन की राह
-रामेश्वर लाल मीणा*
मिटा दे खाक में खुद को अगर कुछ मर्तबा चाहे कि दाना खाक में मिलकर गुले गुलजार होता है। उदयपुर जिले की मावली पंचायत समिति के थामला गांव की निवासी मंजू जोशी को जिन्दगी ने तो ऐसे अंधेरे मोड़ पर ला खड़ा किया था जहां से उम्मीदों के द्वार बंद और मायूसी के साये गहरे नजर आ रहे थे। मंजू पर 3 अगस्त, 2002 को दुखों का ऐसा पहाड़ टूट पड़ा, वक्त ने ऐसा सितम किया कि उसके दोनों हाथ छिन गए। जन्म जन्मांतर का साथ ही उसका बैरी बन गया। पति और सौतन ने मिलकर उसके हाथ काट दिये।
वक्त ने करवट ली और उसने विकलांग होने के बावजूद अपने पैरों पर खड़ा होने का फैसला किया। मंजू ने विकलांगता को हराकर तदबीरें उलट दी। बुलंद हौसला, दृढ निश्चय और पक्के संकल्प से उसके जीवन की दिशा बदल गई। बेटे से प्यार और जीवन की चाहत ने उसे अब सेवा और सम्मान का आधार दे दिया है।
मंजू जोशी अब समाजसेवा, महिलाओं में जागरूकता व शिक्षा के प्रचार-प्रसार के क्षेत्र में ''साथिन'' के रूप में काम कर रही है। वह अपने पैरों की अंगुलियों से हस्ताक्षर आदि कर लेती है। मंजू ने बताया कि उसका विवाह 22 अप्रैल, 1996 को साकरोदा गांव में रोशन लाल के साथ हुआ था। विवाह के बाद ससुराल पक्ष के लोग उसके साथ मारपीट करते थे। फिर 2 मई, 1998 को उसे पुत्र की प्राप्ति हुई।
उसने बताया कि प्रताड़ना से परेशान होकर वह पीहर चली गई। मंजू चाहती है कि उसके ससुराल पक्ष के दोषी लोगों को सख्त सजा मिले। राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष ने हाल ही में उदयपुर में आयोजित आदिवासी महिलाओं के कार्यक्रम में मंजू को 10 हजार रूपये की सहायता प्रदान की है।
मंजू ने बताया कि पुत्र ही अब उसका जीवन है। मंजू अपने पुत्र को पढ़ा लिखाकर आत्मनिर्भर बनाना चाहती है। साथिन के काम से प्रतिमाह मिलने वाले एक हजार रूपये से वह अपने पुत्र को थामला के एक निजी स्कूल में पढ़ा रही है। पति बना बैरी, मिलकर सौतन के साथ छीन लिए हाथ, पर बेटे के प्यार व बुलंद हौसले से मिली जीवन को राह।
& क्षेत्रीय प्रचार अधिकारी, डूंगरपुर
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