रविवार, 6 सितंबर 2009

एकीकृत बाल संरक्षण योजना--बच्चों के समग्र विकास की देखरेख

एकीकृत बाल संरक्षण योजना--बच्चों के समग्र विकास की देखरेख

एन सी जोशी

उप निदेशक (मी.एवं सं.) पसूका, नई दिल्ली

       महिला और बाल विकास मंत्रालय ने, ऐसे बच्चों के विकास के लिए जिनको देखरेख और संरक्षण की जरूरत होती है या फिर ऐसे बच्चे जिनकी कानून के साथ खींचतान चलती रहती है, हाल ही में एकीकृत बाल संरक्षण योजना (आईपीसीएस) नाम से एक नई योजना शुरू की है। इस व्यापक योजना में आपात कालीन आउटरीच (अपने कार्यक्षेत्र से बाहर जाकर) सेवाएं, आश्रय, पालन-पोषण, विशेष आवास, खोये और बिछुड़े बच्चों हेतु वेबसाइट और अन्य अनेक नवाचारी हस्तक्षेप सहित बच्चों को सहायता पहुंचायी जाती है। इस योजना से बेसहारा, आवारा, भिखारियों और यौनकर्मियों के बच्चों, मलिन बस्तियों और अन्य कठिन परिस्थितियों में रहने वाले बच्चों को विशेष रूप से लाभ पहुंचेगा।

 

उद्देश्य

 

       योजना के उद्देश्य कठिन परिस्थितियों में रह रहे बच्चों की देखभाल में सुधार लाने के साथ-साथ उन कार्यों और स्थितियों से जुड़े जोखिमों को कम करना है जो बच्चों के साथ दर्ुव्यवहार, तिरस्कार, शोषण्ा, उपेक्षा और अलगाव को बढावा देते हैं। इन उद्देश्यों की प्राप्ति- बाल संरक्षण की उन्नत सुविधाओं, बच्चों के अधिकार की सच्चाई के बारे में अधिक जन जागरूकता, भारत में स्थिति और संरक्षण, बाल संरक्षण हेतु स्पष्ट रूप से परिभाषित जिम्मेदारियां और प्रवर्तित जवाबदेहियां, कठिन परिस्थितियों में रहने वाले बच्चों को कानूनी सहारा प्रदान करने के लिये सरकार द्वारा सभी स्तरों पर कार्यशील संरचनाओं की स्थापना और साक्ष्य आधारित निगरानी तथा मूल्यांकन प्रणाली की स्थापना से हो सकेगी।

 

 

लक्षित समूह

 

       एकीकृत बाल संरक्षण योजना में उन बच्चों पर ध्यान दिया जाएगा जिनको देखरेख और संरक्षण की आवश्यकता है। इसके साथ ही उन बच्चों के संरक्षण पर भी ध्यान केन्द्रित किया जाएगा जिनकी प्राय: कानून के साथ खींचतान चलती रहती है अथवा उससे साबका पड़ता है। आईसीपीए केवल वंचित और खतरों के बीच रहने वाले परिवारों के बच्चों, प्रवासी, अतिनिर्धन, और निम्न जाति के परिवारों के बच्चों, भेदभाव पीड़ित परिवारों के बच्चों, अल्पसंख्यकों के बच्चों, एचआईवीएड्स पीड़ित या प्रभावित बच्चों, अनाथ, मादक द्रव्यों का सेवन करने वाले बच्चों, बाल भिखारियों, यौनशोषित बच्चों, कैदियों के बच्चों और आवारा तथा कामकाजी बच्चों तक ही सीमित नहीं है। इन बच्चों के अलावा अन्य मुसीबतज़दा बच्चों को भी इस योजना के तहत सहायता उपलब्ध होगी। इन बच्चों के बचाव और पुनर्वास के अलावा उनकी कानूनी तौर पर देखभाल भी की जाएगी। आईसीपीएस बनने के बाद अब उसके छत्र के नीचे पहले से मौजूद सभी बाल संरक्षण कार्यक्रम आ गए हैं। इनमें बाल न्याय कार्यक्रम, आवारा बच्चों हेतु एकीकृत कार्यक्रम, स्वदेशी दत्तक ग्रहण प्रोत्साहन हेतु शिशु गृहों को सहायता जैसे कार्यक्रम शामिल हैं। आईसीपीएस में शामिल पहले के कार्यक्रमों में कुछ अतिरिक्त सुधार और संशोधन भी किये गए हैं।

 

       योजना के तहत चाइल्डलाइन के माध्यम से देखभाल, सहायता और पुनर्वास  सेवायें मुहैया करायी जाएंगी। इन सेवाओं में आपातकालीन आउटरीच सेवा, शहरी और अर्ध्दशहरी क्षेत्रों के जरूरतमंद बच्चों को मुक्त आश्रय, प्रयोजन के माध्यम से परिवार आधारित गैर-संस्थागत देखभाल, पालन-पोषण, दत्तक ग्रहण और तदोपरांत देखरेख, संस्थागत सेवायें - आश्रय स्थल, बाल भवन, पर्यवेक्षण गृह, विशेष गृह, विशेष आवश्यकता वाले बच्चों हेतु विशिष्ट सेवायें, बिछड़ेखोये हुए बच्चों हेतु वेबसाइट, वेब-जनित बाल संरक्षण प्रबंधन सूचना प्रणाली और जरूरतमंदनवाचारी हस्तक्षेप के लिये सामान्य अनुग्रह सहायता शामिल हैं।

 

बच्चों हेतु मुक्त आश्रय

 

       आईसीपीएस में अन्य बातों के अलावा शहरी और अर्ध्दशहरी क्षेत्रों में जरूरतमंद बच्चों के लिये मुक्त आश्रय (ओपन शेल्टर्स) की स्थापना का प्रावधान किया गया है। शहरी क्षेत्रों में बड़ी संख्या में बेघर और फुटपाथों पर रहने वाले बच्चों के अलावा बाल भिखारी हैं, जो गंभीर चिंता का विषय है। सर्वथा अकेले रह रहे इन बच्चों को देखभाल और सहारे की जरूरत है। भारत की करीब 29 प्रतिशत आबादी शहरी क्षेत्रों में रहती है, जिनमें से आधे से अधिक लोग अति दुष्कर परिस्थितियों में रह रहे हैं। आश्रय, स्वच्छता, सुरक्षित पेयजल, शिक्षा, स्वास्थ्य, मनोरंजन आदि सुविधाओं से वंचित होने के कारण इनकी स्थिति और भी जटिल हो गई है। इन परिस्थितियों में सबसे ज्यादा कष्ट बच्चों को ही सहना पड़ता है। उनमें से अधिकतर बच्चे, चाहे उन्हें अभिभावकों का सहारा हो या नहीं, प्राय: यातायात के चौराहों, सड़कों, रेलवे स्टेशनों, सब्जी मंडी आदि पर खड़े दिखाई देते हैं। इन्हीं बच्चों की बढती ज़रूरतों को पूरा करने के लिये इस योजना के तहत शहरी क्षेत्रों में विशेष रूप से मुक्त आश्रय बनाये जाएंगे। इन केन्द्रों में बच्चों के खेलने के स्थान के अलावा संगीत, नृत्य, नाटक, योग, ध्यान, कम्प्यूटर, इन्डोर और आउटडोर खेलों आदि की सुविधायें भी होंगी ताकि वे रचनात्मक गतिविधियों में भाग ले सकें। इन गतिविधियों से अर्थपूर्ण सामूहिक गतिविधियों, भागीदारी और पारस्परिक व्यवहार को प्रोत्साहन मिलेगा। इससे उनका समग्र विकास सुनिश्चित हो सकेगा और वे सामाजिक रूप से गलत और अनैतिक गतिविधियों से दूर रहेंगे। इसके साथ ही, वे भोजन, पोषाहार और स्वास्थ्य संबंधी अपनी प्राथमिक आवश्यकताओं को भी पूरा कर सकेंगे। इन आश्रयों में स्वास्थ्य संबंधी सुविधाओं के साथ-साथ सुविधानुसार समय पर अच्छी शिक्षा और व्यवसायिक प्रशिक्षण का प्रावधान होगा। बच्चे इनमें अपनी व्यक्तिगत चीजें और आय भी सुरक्षित रख सकेंगे। बच्चों की ऊर्जा को उत्पादक कार्यों में लगाने हेतु उनके मार्गदर्शन और परामर्श के अलावा कौशल-विकास शिक्षा की व्यवस्था भी की जाएगी।

 

       इस योजना पर अमल के लिये सरकार ने इस वित्त वर्ष में 60 करोड़ रुपये आबंटित किये हैं। केन्द्र सरकार, योजना के विभिन्न घटकों पर अमल और उन पर राज्यों का समर्थन सुनिश्चित करने के लिये एक समझौता ज्ञापन (एमओयू) को अंतिम रूप देने की प्रक्रिया में है।

 

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