शुक्रवार, 18 सितंबर 2009

फिजूलंखर्ची रोकने की मुहिम तथा सुरक्षा के उठते प्रश्न

फिजूलंखर्ची रोकने की मुहिम तथा सुरक्षा के उठते प्रश्न

निर्मल रानी    163011 महावीर नगर,  अम्बाला शहर,हरियाणा। फोन-9729229728

email: nnirmalrani@gmail.com

 

       भारतवर्ष बेशक एक विकासशील देश है तथा अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर छाई भारी मंदी के बावजूद यह देश अपने आप इस आर्थिक संकट से उबर पाने में सफल रहा। इसका मुख्य कारण यह माना जा रहा है कि चूंकि मूलत: यह देश कृषि उत्पादन पर निर्भर है, अत: इसे आर्थिक संकट से उस हद तक नहीं जूझना पड़ा जितना कि अन्य विकसित या विकासशील उद्योग आधारित देशों को जूझना पड़ा है। परन्तु साथ ही साथ इसका दूसरा अर्थ यह भी है कि भारतवर्ष की आधी से अधिक जनसंख्या खेती व मंजदूरी जैसे कामों से जुड़ी है। यही वजह है कि तमाम विशेषताओं के बावजूद भारत अब भी एक ंगरीब देश के रूप में जाना जाता है। महात्मा गांधी की धोती इस बात का प्रतीक नहीं थी कि उनके पास पहनने के लिए कपड़े नहीं थे या कपड़े ंखरीदने हेतु उनके पास पैसे नहीं थे। बल्कि धोती के रूप में अपने शरीर पर एक वस्त्र धारण कर गांधीजी ने दुनिया को विषेषकर ब्रिटिश तानाशाहों को यह संदेश देने का सफल प्रयास किया था कि हम उस विशाल देश का प्रनिधित्व करते हैं जो ंगरीब परन्तु स्वाभिमानी देश है। जिस देश का नागरिक नंगा और भूखा तो रह सकता है परन्तु परतंत्र नहीं रह सकता। गांधीजी के 'सादा जीवन उच्च विचार' जैसे इसी ंफार्मूले ने न केवल देश को आंजाद कराने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया बल्कि गांधीवादी विचारधारा का वास्तविक अनुसरण करने वाले लोग आज भी रहन-सहन, खान-पान आदि सभी क्षेत्रों में गांधीजी की सादगीपूर्ण नीतियों का अनुसरण करते हैं।

              आंजादी के 63 वर्ष बीत जाने के बाद वैश्विक स्तर पर छाई भारी मंदी के दौर में एक बार फिर देश को गांधीजी की सादगी याद आने लगी है। केंद्रीय नेताओं की ओर से कुछ ऐसे संकेत दिए जा रहे हैं जिससे यह महसूस किया जा रहा है कि सरकार अब ंफुंजूलंखर्ची पर लगाम लगाने का इरादा रखती है। इस मुहिम की शुरुआत पिछले दिनों तब हुई जबकि देश के एक प्रतिष्ठित समाचार पत्र ने यह प्रकाशित किया कि भारत के विदेश मंत्री एस एम कृष्णा तथा विदेश राज्य मंत्री शशि थरूर दोनों ही राजधानी दिल्ली के उच्चस्तरीय पांच सितारा होटलों में रह रहे हैं। जब वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी के संज्ञान में यह बात लाई गई तो उन्होंने उक्त दोनों ही मंत्रियों को पांच सितारा होटल के अपने-अपने कमरे ंखाली करने के सुझाव दिए। यह ंकवायद केवल इसलिए की गई ताकि भारत सरकार के इन मंत्रियों पर पांच सितारा होटल में होने वाले भारी भरकम ंखर्च को रोका जा सके। ंखबर यह भी सुनाई दी कि इन मंत्रियों का पांच सितारा होटल में रहना कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को भी पसंद नहीं आया। तथा उनकी इच्छा का भी आदर करते हुए दोनों ही मंत्री अपने-अपने होटल छोड़कर अन्य स्थानों पर चले गए।

              इसके बाद कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने स्वयं साधारण (इकॉनॉमी) श्रेणी में दिल्ली से मुंबई तक की विमान यात्रा कर ंफुंजूलंखर्ची कम करने का संदेश, शासन तथा कांग्रेस पार्टीजनों को देने की कोशिश की। फिर क्या था। सोनिया गांधी की इस साधारण श्रेणी की विमान यात्रा के पश्चात पांच सितारा होटल में रहकर विदेश मंत्रालय चलाने वाले एस एम कृष्णा ने भी अपनी प्रस्तावित बेलारूस यात्रा साधारण क्लास में करने की घोषणा कर डाली। भारत के गृहमंत्री पी चिदम्बरम भी ंखर्च कम करने की इस मुहिम में शामिल हो गए। और पिछले दिनों कांग्रेस महासचिव, सांसद राहुल गांधी ने भी नई दिल्ली से लुधियाना तक की अपनी यात्रा रेलगाड़ी के कुर्सीयान में कर ंफुंजूलंखर्ची रोकने की इस मुहिम को और आगे ले जाने का संदेश छोड़ा। ंखबर है कि देश के सभी कांग्रेस शासित राज्य अब ंफुंजूलंखर्ची रोकने की इस मुहिम में शामिल होने की तैयारी कर रहे हैं। राजस्थान सरकार ने तो इस संबंध   में कुछ दिशानिर्देश भी जारी कर दिए हैं। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने घोषणा की है कि अब राज्य के मंत्रिगण नियमित रूप से अपनी विमान यात्राएं केवल इकॉनॉमी क्लास में ही किया करेंगे। साथ ही साथ गहलोत ने इस दिशा में एक और महत्वपूर्ण निर्णय लेते हुए यह घोषणा भी की कि आगामी नौ महीनों तक राज्य का कोई भी मंत्री विदेश यात्रा पर हरगिंज नहीं जाएगा।

              एक ओर तो देश के कुछ ंजिम्मेदार लोगों द्वारा ंखर्च कम करने के उपाय तलाश किए जा रहे हैं तो दूसरी ओर विपक्षी पार्टियां ऐसे प्रयासों का मंजांक उड़ा रही हैं। लालू प्रसाद यादव जैसे चारा घोटाले के आरोपी नेता, सोनिया गांधी व राहुल गांधी की इस मुहिम पर व्यंग्य करते हुए ंफरमाते हैं कि पैसा बचाना हो तो गांधीजी की तरह तीसरे दर्जे के रेल डिब्बे में यात्रा करो। लालू यादव बेशक सही ंफरमाते हों। देश के प्रत्येक नेता को आम जनता के साथ ही यात्रा करनी चाहिए। वैसा ही खान-पान रहन-सहन सब कुछ वैसा ही रखना चाहिए। ंखासतौर पर बिहार के नेताओं को तो ंगरीबों के रहन-सहन, खान-पान आदि का अवश्य अनुसरण करना चाहिए। सत्तु की पोटली कपड़े में बांधकर विशेष विमान में यात्रा करने का ढोंग रचने वाले तथा ंखर्च कम करने हेतु अपनी सुरक्षा कम होने के डर से संसद में हंगामा करने वाले 'यादव' जैसे नेताओं को यह अधिकार नहीं है कि वे आज के संवेदनशील दौर में दूसरे नेताओं को तो रेल के तीसरे दर्जे में यात्रा करने की सलाह दें तथा स्वयं विशेष विमान एवं ंजेड सुरक्षा का आनंद लेते फिरें।

              राहुल गांधी ने गत् दिनों दिल्ली-लुधियाना-दिल्ली की रेल यात्रा तो ंजरूर की। परन्तु दिल्ली वापसी के समय उनकी ट्रेन पर पथराव किया गया। इस घटना ने सुरक्षा एजेंसियों के कान खड़े कर दिए हैं। सुरक्षा एजेंसियां स्वयं यह सोचने पर मजबूर हैं कि ंफुंजूलंखर्ची रोकने की नेताओं की यह मुहिम कहीं सुरक्षा के दृष्टिकोण से घातक न साबित हों। गांधीजी जब तीसरे दर्जे में रेल यात्रा करते थे, उस समय गांधीजी का कोई स्वदेशी दुश्मन नहीं था। विदेशी तांकतें वैसे भी उनके व्यक्तित्व व राष्ट्रव्यापी जनाधार को देखकर घबराती थीं। परन्तु आज परिस्थितियां बहुत भिन्न हो चुकी हैं। स्वतंत्रता के इन 63 वर्षों के इतिहास का यदि हम बारीकी से अध्ययन करें तो हम यह पाएंगे कि सत्ता के भूखे भेड़िये की तरह हमारे ही देश का एक नेता दूसरे दल के नेता की जान की ंखैर नहीं चाहता। भारत में ऐसी तमाम राजनैतिक हत्याओं के प्रमाण मिल सकते हैं। दुर्भाग्यवश इसकी शुरुआत भी महात्मा गांधी की हत्या से ही हुई। स्वयं को विश्व की सबसे बड़ी शक्ति बताने वाले बर्तानवी शासक तो गांधी की ंफंकीरी, उनकी धोती व लाठी से घबराकर देश छोड़कर चले गए। परन्तु अपने ही देश के एक धर्मान्ध कट्टरपंथी, हिुन्दुत्ववादी व्यक्ति ने उन्हें ंकरीब से आकर गोली मार दी। अर्थात् इस देश का महात्मा इसी देश के एक आतंकी नागरिक के हाथों मारा गया।

              आज देश के हालात 63 वर्षों के बाद और भी बद्तर हो गए हैं। देश के सामने भीतरी व बाहरी दोनों तरंफ से ंखतरों का सामना है। ऐसे में जहां ंफुंजूलंखर्ची रोकना समय की अहम ंजरूरत है, वहीं देश के ंजिम्मेदार नेताओं की सुरक्षा का प्रश् भी उससे कम महत्वपूर्ण नहीं है। गांधीजी की तरह ट्रेन के तीसरे दर्जे में यात्रा करने की राहुल गांधी को सलाह देने वाले लालू प्रसाद यादव जैसे नेता एक बार स्वयं पटना से दिल्ली की यात्रा साधारण श्रेणी में स्वयं करके देखें, फिर उन्हें पता चल जाएगा कि जनता का दु:ख दर्द क्या होता है और सुरक्षा संबंधी किन परेशानियों का सामना उन्हें करना पड़ सकता है।

              अत: बेशक फिजूलंखर्ची रोकने की यह मुहिम बड़े पैमाने पर चलाई जाए। परन्तु इस मुहिम के अन्तर्गत ऐसे क्षेत्रों को चुना जाए जहां ंफुंजूंखर्ची भी रोकी जा सके तथा देश के ंजिम्मेदार नेताओं को सुरक्षा संबंधी किसी नई समस्या से भी जूझना न पड़े। ऐसा न हो कि ंफुंजूलंखर्ची रोकने की मुहिम का नाजायंज ंफायदा असामाजिक तत्व अथवा देश के दुश्मन आतंकवादियों को उठाने का मौंका मिले।

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