हरियाणा में चुनाव पूर्व धराशायी होते गठबंधन
निर्मल रानी
आगामी 13 अक्तूबर को हरियाणा में होने जा रहे विधानसभा चुनावों को लेकर राज्य में राजनैतिक घमासान तेंज हो गया है। अत्याधिक आत्मविश्वास से भरपूर दिखाई दे रहे राज्य के निवर्तमान मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा जहां एक बार पुन: कांग्रेस पार्टी की राज्य में सत्ता वापसी को लेकर आश्वस्त नंजर आ रहे हैं, वहीं हरियाणा के सभी विपक्षी दलों तथा उनके गठबंधन सहयोगियों के मध्य सगाई व तलांक का सिलसिला अभी से शुरु हो गया है। अभी मात्र एक पखवाड़ा पूर्व ही राज्य की एक मंजबूत कही जा सकने वाली विपक्षी पार्टी इंडियन नेशनल लोकदल तथा भारतीय जनता पार्टी के बीच हुआ चुनावी गठबंधन राज्य में चुनाव की घोषणा से पूर्व ही दम तोड़ गया। दरअसल इनेलो तथा भाजपा दोनों ही संभवत: चुनाव नतीजों के रूप में होने वाली अपनी-अपनी छीछालेदर से भली भांति परिचित थे। इसीलिए इन दोनों ही दलों ने सीटों के बंटवारे का बहाना लेकर गठबंधन रिश्ता तोड़ डाला।
हरियाणा की राजनीति में एक और नए गठबंधन का उदय गत् 16 जून को लखनऊ में एक समझौते के तहत हुआ था। बहुजन समाज पार्टी तथा हरियाणा जनहित कांग्रेस के मध्य हुए इस समझौते पर उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती, हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भजन लाल तथा हजकां प्रमुख कुलदीप बिश्ोई व अन्य कई प्रमुख नेताओं के हस्ताक्षर हुए थे। लगभग 75 दिन के इस गठबंधन पर भी संकट के बादल उस समय मंडराने शुरु हो गए थे जबकि गत् दिनों हरियाणा में हजकां व बसपा की एक संयुक्त रैली के दौरान विधानसभा की एक सीट की दावेदारी को लेकर इन दोनों गठबंधन दलों के कार्यकर्ता आपस में ही भिड़ गए जिसमें मारपीट, हंगामे तथा लाठी डंडे चलने तक ही नौबत आ गई। बसपा एवं हजकां के मध्य सीट की दावेदारी को लेकर होने वाले इस संघर्ष ने उसी समय यह संकेत दे दिया था कि इस गठबंधन का भविष्य आंखिरकार उावल नहीं जान पड़ता। और वैसा ही हुआ। बहुजन समाज पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव मान सिंह मनहेड़ा ने गत् दिनों रोहतक में एक संवाददाता सम्मेलन कर यह घोषणा कर ही डाली कि हजकां के साथ 75 दिन पूर्व हुई बी एस पी की सगाई भी टूट चुकी है। बी एस पी नेताओं का आरोप है कि कुलदीप बिश्ोई गठबंधन की रैलियों व सभाओं में सक्रिय होने तथा इनके आयोजन में दिलचस्पी लेने के बजाए गुप्त रूप से भारतीय जनता पार्टी के साथ अपनी पींगें बढ़ाने में व्यस्त थे जोकि बी एस पी को रास नहीं आया।
प्रश् यह है कि कहां तो हजकां व बसपा ने न केवल पचास व चालीस के अनुपात से सीटों का बंटवारा कर लिया था। बल्कि इन दोनों दलों के मध्य इस बात का भी ंकरार हो गया था कि इस गठबंधन के सत्ता में आने पर हरियाणा जनहित कांग्रेस को मुख्यमंत्री का पद दिया जाएगा जबकि उपमुख्यमंत्री का पद बहुजन समाज पार्टी के लिए निर्धारित किया गया था। फिर आंखिर ऐसी कौन सी वजह हो सकती है जिसकी बिना पर राज्य का यह नया गठबंधन समय पूर्व ही दम तोड़ गया। कहीं ऐसा तो नहीं कि भारतीय जनता पार्टी व इनेलो गठबंधन टूटने के बाद हरियाणा जनहित कांग्रेस वास्तव में भाजपा की ओर सीटों के गठबंधन के लिए पींगें बढ़ा रही हो? और यदि आने वाले कुछ दिनों में राज्य में इस प्रकार के किसी नए गठबंधन के समाचार मिलते भी हैं तो हरियाणा के मतदाताओं के समक्ष उस संभावित गठबंधन की विश्वसनीयता कितनी और क्या होगी, यह भी नंजरअंदांज नहीं किया जा सकता। विश्वसनीयता का प्रश् इसलिए खड़ा होगा क्योंकि राज्य के मतदाता हजकां व भाजपा दोनों ही दलों के सगाई व तलांक के पूर्व राजनैतिक घटनाक्रम बंखूबी देख चुके हैं। अत: मतदाताओं के समक्ष यह प्रश् ंजरूर खड़ा होगा कि राज्य की सत्तारूढ़ रही कांग्रेस पार्टी के समक्ष विकल्प के रूप में जो दल चुनाव पूर्व ही अपने राजनैतिक रिश्ते बना व बिगाड़ रहे हैं, आंखिर सत्ता में आने के बाद उनकी खींचातानी का क्या आलम होगा? हरियाणा की कईं सरकारें पहले भी राज्य में गठबंधन का दौर तथा उसमें होने वाली उठापटक यहां तक कि गठबंधन असफल होने पर राज्य में हुए मध्यावधि चुनाव तक का पूरा घटनाक्रम ंकरीब से देख चुकी है। ऐसे में यह सवाल स्वाभाविक है कि राज्य की जनता किसी एक मंजबूत राजनैतिक दल की स्थिर सरकार का चुनाव करने के बजाए किसी ऐसी गठबंधन सरकार की संभावनाओं की तलाश क्यों करे जिसका भविष्य ही दांव पर लगा हो।
वैसे भी चुनाव पूर्व दोनों विपक्षी गठबंधनों के धराशायी होने के बाद अब तक राज्य की जनता के लिए स्पष्ट रूप से यह संदेश जा चुका है कि हो न हो, गठबंधन दलों के रिश्ते टूटने का अर्थ यही है कि किसी भी विपक्षी दल में इतना साहस नंजर नहीं आता जो अकेले या गठबंधन के रूप में मिलकर भूपेन्द्र सिंह हुड््डा के पूर्व शासन को चुनौती देते हुए अपने आपको इनके मंजबूत विकल्प के रूप में पेश कर सके। ंजाहिर है इन सभी विपक्षी पार्टियों की खींचतान का सीधा लाभ कांग्रेस पार्टी को मिलने की पूरी उम्मीद दिखाई दे रही है।
राज्य के मतदाता राज्य के विकास के मद्देनंजर इस बात से भी भली भांति परिचित हैं कि हरियाणा के विकास के लिए राज्य सरकार का केंद्र सरकार के साथ तालमेल होना अत्यन्त आवश्यक है। लिहांजा राज्य की जनता की यह सोच भी कांग्रेस पार्टी के पक्ष में जाती है। दूसरी ओर कांग्रेस पार्टी के पास न केवल सांफ सुथरी एवं ईमानदार छवि के रूप में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का नेतृत्व एक आदर्श प्रस्तुत कर रहा है बल्कि राज्य के निवर्तमान मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने भी अपने साढ़े चार वर्ष के शासनकाल में अपनी ईमानदार छवि अर्जित की है। हुड्डा सरकार द्वारा गत् साढ़े चार वर्षों में प्रदेश के विकास के लिए किए गए कार्यों तथा जनहित के लिए शुरु किए गए अनेक कार्यक्रमों की भी एक लंबी सूची है, जिसे लेकर कांग्रेस पार्टी मतदाताओं के समक्ष जा रही है। उपरोक्त सभी परिस्थितियां ऐसी हैं जिनसे हरियाणा के चुनाव परिणामों का अंदांजा आसानी से लगाया जा सकता है।
राज्य के चुनावी वातावरण में अभी कुछ और मामूली सा उबाल आना शेष है। अभी आगामी 20 सितंबर को जींद में प्रस्तावित बहुजन समाज पार्टी की वह रैली देखने योग्य होगी जिसे उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री तथा बसपा प्रमुख मायावती का संबोधित करना प्रस्तावित है। ऐसी संभावना है कि जींद रैली में ही बी एस पी अपने सभी 90 उम्मीदवारों की भी घोषणा करेगी। बी एस पी के प्रत्याशियों की घोषणा के बाद चुनावी हलचल में कुछ तेंजी आने की संभावना है। उधर यदि हजकां व भाजपा के मध्य कोई आधिकारिक गठबंधन हो जाता है तो उसके बाद सीटों के बंटवारे से लेकर प्रत्याशियों की घोषणा तक राज्य के राजनैतिक परिदृश्य में कुछ मामूली सा उथल पुथल देखा जा सकता है। परन्तु इसके बावजूद जहां तक भाजपा, इनेलो तथा हजकां की राजनैतिक स्थिति का प्रश् है तो यह तो सभी देख रहे हैं कि किस प्रकार लगभग इन सभी दलों में आयाराम गयाराम की लीला चल रही है। किस प्रकार इन दलों के सत्ता के चाहवान नेता अपने अंधकारमय भविष्य से चिंतित होकर उसे उावल बनाने की तलाश में इधर उधर भटक रहे हैं। इनमें अधिकांश को तो कांग्रेस पार्टी में ही शरण मिल रही है।
उपरोक्त सभी राजनैतिक परिस्थितियों के अतिरिक्त आम जनता क्षेत्रीय दलों के भविष्य को लेकर नकारात्मक मूड में दिखाई दे रही है। लोकसभा के चुनाव परिणाम तो कम से कम ऐसा ही आभास करा रहे हैं। ंजाहिर है यदि विगत् लोकसभा चुनावों जैसी मतदाताओं की सोच हरियाणा के विधानसभा चुनावों में भी दोहराई गई तो इसका भी सीधा लाभ कांग्रेस पार्टी को ही मिलता दिखाई दे रहा है। ऐसे में यह कहा जा सकता है कि हरियाणा में कांग्रेस के समक्ष न केवल विकल्प का अभाव है बल्कि विपक्ष भी लगभग नदारद एवं असंगठित नंजर आ रहा है।
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