साम्प्रदायिकता से कम खतरनाक नहीं है भ्रष्टाचार का दानव
तनवीर जांफरी
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विश्व के सबसे बड़े र्ध्म निरपेश लोकतंत्र इस भारत देश में कई मानव निर्मित समस्याएं ऐसी हैं जो इस देश के विकास के लिए बाधा साबित हो रही हैं। इनमें जहां साम्प्रदायिक शक्तियों का विस्तार इस देश की एक अहम समस्या है, वहीं भारतवर्ष में लगभग सभी क्षेत्रों में फैला भ्रष्टाचार भी साम्प्रदायिकता से कम खतरनाक नहीं है। हम भारतवासी केवल इस बात के लिए ंखुदा के शुक्रगुंजार हो सकते हैं कि सम्भवत: अब तक इस देश के प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति तथा भारत के मुख्य न्यायाधीश व लोकसभा अध्यक्ष जैसे पदों पर ऐसे कोई व्यक्ति विराजमान नहीं हुए जिनपर भ्रष्टाचार के आरोप लगे हों। अन्यथा भ्रष्टाचार के प्रसार तथा विस्तार की सीमाओं को तो शायद आंका ही नहीं जा सकता।
हमारा देश भारतीय संसद में उच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश के विरुद्ध महाभियोग चलते देख चुका है। हमने एक राज्यपाल के विमान की दुर्घटना के समय आसमान से भारतीय मुद्रा की बरसात होते देखी है। भारतीय मीडिया स्टिंग ऑप्रेशन के द्वारा केंद्रीय मंत्रियों, राष्ट्रीय राजनैतिक दल के अध्यक्ष एवं सांसदों को रिश्वत लेते हुए रंगे हाथों पकड़ चुका है। यहां प्रदेश के मुख्यमंत्रियों को भ्रष्टाचार में संलिप्त पाया जा चुका है। केंद्रीय मंत्री, अनेक राज्य मंत्री, सांसद, विधायक, अंफसरशाही से जुड़े लोग आदि सभी भ्रष्टाचार के आरोपी देखे जा सकते हैं। ऐसे में यह प्रश् उठना स्वाभाविक है कि पूर्व राष्ट्रपति डॉ ए पी जे अब्दुल कलाम तथा प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह जैसे देश के चंद ंजिम्मेदार लोगों द्वारा देश में फैले भ्रष्टाचार के विरुद्ध आवांज उठाने का आंखिर कुछ सकारात्मक परिणाम मिलेगा भी अथवा नहीं। भ्रष्टाचार की जड़ें इस देश में इतनी गहरी हो चुकी हैं कि कुछ सरकारी विभागों में तो इसे यथार्थ के रूप में स्वीकार कर लिया गया है। ऐसे विभागों में अब हालत यहां तक हो गई है कि रिश्वतंखोर व भ्रष्ट व्यक्ति ही योग्य अथवा 'कमाऊपूत' समझा जाता है, जबकि एक ईमानदार अधिकारी को सनकी अथवा पागल व्यक्ति की संज्ञा तक दे दी जाती है। कानपुर के भगवती प्रसाद दीक्षित का प्रकरण देश के लगभग सभी सुधी लोगों को पता है कि किस प्रकार भ्रष्टाचार में नीचे से लेकर ऊपर तक डूबे सरकारी तंत्र ने दीक्षित जैसे एक ईमानदार व कर्मठ इंजीनियर तथा भ्रष्टाचार के विरुद्ध सख्त से सख्त कदम उठाने की हिम्मत रखने वाले इस अधिकारी को मानसिक रोगी तथा पागल बना दिया। और आंखिकार भ्रष्टाचार के विरुद्ध संघर्ष करते-करते वह व्यक्ति इस संसार से ही चल बसा। इसके अतिरिक्त सत्येंद्र दूबे, के मंजूनाथन व मनोज गुप्ता जैसे और न जाने कितने ऐसे उदाहरण मिलेंगे जिन्हें भ्रष्टाचारियों ने अपने रास्ते का कांटा समझकर उनकी हत्या कर दी हो। निश्चित रूप से भ्रष्टाचारियों के हौसले केवल निम् स्तर पर भ्रष्टाचार फैलने मात्र से ही इतने नहीं बढ़ जाते कि बात हत्या या सीनांजोरी तक आ जाए। जब सिर से पैर तक पूरा का पूरा तंत्र ही भ्रष्टाचार में संलिप्त होता है, तभी भ्रष्टाचारियों के हौसले इस हद तक बढ़ पाते हैं।
भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने पिछले दिनों केंद्रीय जांच ब्यूरो तथा देश के सभी राज्यों की भ्रष्टाचार निरोधक एजेंसियों के एक सम्मेलन में संभवत: देश के पहले प्रधानमंत्री के रूप में बड़ी गंभीरता से देश में फैले भ्रष्टाचार पर अपनी बेबाक टिप्पणी देते हुए यह स्वीकार किया कि देश में व्यापक तौर पर यह धारणा बनी हुई है कि छोटे-मोटे मामलों में तो ंफौरन कार्रवाई होती है परन्तु 'बड़ी मछलियां' संजा से बच जाती हैं। उन्होंने कहा कि देश के आम लोगों में फैली इस धारणा को बदलने की ंजरूरत है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने यह भी कहा कि उच्चस्तर पर जो भ्रष्टाचार फैला है, उस पर सख्ती के साथ नंजर रखनी होगी। उन्होंने कहा कि ऐसे सभी मामलों में प्राथमिकता के आधार पर प्रत्येक आरोपों की निष्पक्ष रहकर तेंजी से सही-सही जांच होनी चाहिए। प्रधानमंत्री के इस वक्तव्य के बाद देश के उन उच्चस्तरीय भ्रष्टाचारियों के चेहरों पर चिंता की लकीरें अवश्य खिंच गई हैं जो अपने पद का दुरुपयोग कर भ्रष्टाचार द्वारा धनार्जन करने तथा अपनी अगली नस्लों के वास्ते अकूत संपत्ति जुटाने में लगे रहते हैं।
देश के आम नागरिकों ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के इस स्पष्टवादिता से भरे बयान को गंभीरता से लिया है तथा प्रधानमंत्री के इस वक्तव्य के बाद निश्चित रूप से अब जनता की निगाहें इस ओर जा टिकी हैं कि देखें अब प्रधानमंत्री की ओर से हरी झंडी मिलने के बाद भ्रष्टाचार निरोधक जाल में सबसे पहली बड़ी मछली कौन सी फंसती है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की सांफगोई तथा कुछ कर गुंजरने के उनके हौसले को लेकर इस देश में कोई बहस नहीं है। यह बात गत् लोकसभा चुनावों में उस समय और प्रमाणित हो गई जबकि देश के मतदाताओं ने उन शक्तियों को ही राजनैतिक परिदृश्य से मिटा दिया जो मात्र सत्ता हासिल करने के लिए मनमोहन सिंह को 'कमंजोर प्रधानमंत्री' साबित करने के प्रयास कर रहे थे। राजनैतिक हल्ंकों में उनके सिख समुदाय से जुड़े होने को लेकर तरह-तरह की बातें की जाती हैं। परन्तु स्वयं मनमोहन सिंह ने पिछले लोकसभा चुनावों के दौरान पंजाब के लुधियाना शहर में आयोजित एक विशाल जनसभा में सांफतौर पर यह कहा कि सर्वप्रथम मैं इस देश का प्रधानमंत्री हूं, उसके बाद मैं सिख हूं। उन्होंने यह भी कहा कि वे धर्म व राजनीति के मिश्रण के विरोधी हैं। जबकि उसी सभा में राहुल गांधी ने मनमोहन सिंह को भारत का गौरव बताया था।
सत्तारूढ़ गठबंधन के सबसे बड़े दल की हैसियत रखने वाली कांग्रेस पार्टी ने पिछले चुनाव में देश की जनता को यह बताने की कोशिश की थी कि कांग्रेस का हाथ, आम आदमी के साथ है। निश्चित रूप से आज देश का आम आदमी इस नारे को क्रियान्वित होते हुए देखना चाहता है। और यदि देश का आम आदमी वास्तव में यह महसूस करता है कि सरकार उसके साथ खड़ी है तथा उसे न्याय मिल रहा है, तो वही आम जनता उस सरकार या राजनैतिक दल का साथ देने से भी परहेंज नहीं करती। इसका एक छोटा सा उदाहरण उत्तर प्रदेश में विगत् संसदीय चुनावों के दौरान देखा गया। उत्तर प्रदेश में उन 39 ंजिलों में कांग्रेस पार्टी का प्रदर्शन सबसे बेहतर रहा जहां देश के बेरोंजगारों को रोंजगार मुहैया कराने वाली योजना 'राष्ट्रीय रोंजगार गारंटी योजना' (नरेगा) प्रथम चरण में लागू हुई थी। जिन-जिन क्षेत्रों में बेरोंजगारों को इस स्कीम के तहत पूरी पारदर्शिता से रोंजगार मिला तथा वर्षों के बाद जिन लोगों ने दो वक्त क़ी रोटी खाई तथा रोंजी रोटी के लिए उन्हें परदेस जाने से निजात मिली, ऐसे लोगों ने कांग्रेस पार्टी की 'जय हो' की आवांज से अपनी आवांज मिला दी।
दरअसल आज देश का आम आदमी सांफ सुथरा प्रशासनिक ढांचा, पादर्शी व्यवस्था तथा भ्रष्टाचार मुक्त वातावरण देखना चाहता है। और निश्चित रूप से यह तभी संभव है जबकि भ्रष्टाचारियों को संरक्षण प्रदान करने वाले शीर्ष पर बैठे लोगों में भ्रष्टाचार समाप्त हो। भारतवर्ष में समस्या इस बात की है कि चाहे वह जीवन रक्षक दवाईयों अथवा खाद्य सामग्री में मिलावट करने वाला व्यक्ति हो, चाहे आर्थिक अपराध करने वाला बड़े से बड़ा व्यक्ति, चाहे आर्थिक अपराध करने वाला बड़े से बड़ा मास्टर माइंड या फिर कोई गैंगस्टर, पेशेवर अपराधी अथवा किसी अन्य बड़ी से बड़ी अपराधिक प्रवृत्ति में संलिप्त कोई व्यक्ति। ऐसे दुष्चरित्र लोगों को यहां ंफौरन ही बड़े से बड़ा राजनैतिक संरक्षण मिल जाता है। और इस राजनैतिक संरक्षण के बाद मध्यम व निम् स्तर के अधिकारी अपने आप लाचार व मजबूर बन जाते हैं। ऐसे में इन चंद ईमानदार अधिकारियों के समक्ष दो ही उपाय बचते हैं कि या तो वे उस उच्च श्रेणी के राजनैतिक हस्तक्षेप का सामना करते हुए अपने निलंबन अथवा नौकरी से हाथ धोने तक की नौबत का सामना करें, ऐसे भ्रष्ट नेटवर्क का कोपभाजन बनें या फिर उनकी नाजायंज बातें मानकर ंखुद भी भ्रष्टाचार के नेटवर्क के भागीदार बनें या उसकी 'मुख्यधारा' में शामिल हो जाएं। आज हम चीन की बढ़ती हुई तांकत से प्राय: चिंतित दिखाई देते हैं। परन्तु उनकी शक्ति तथा शासनप्रणाली का मूलमंत्र हम नंजरअंदांज कर देते हैं। जनसंख्या नियंत्रण हेतु चीन सरकार द्वारा उठाए गए ंकदम से पूरी दुनिया वांकिंफ ही है। ठीक एक वर्ष पूर्व उसी चीन में दो ऐसे व्यक्तियों को फांसी की संजा दे दी गई थी जो जानलेवा नंकली दूध का नेटवर्क चलाते थे। परन्तु हमारे देश में न जाने कब से नंकली दूध, ंजहरीली सब्ंजियां, मिलावटी रसद सामग्रियां और यहां तक कि अब तो मिलावटी ंखून तक भारतीय बांजार में उपलब्ध होने के समाचार मिल रहे हैं। यंकीनन बाड़ ही खेतों को खा रही है। ऐसे में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की न केवल चिंताएं वाजिब व न्यायसंगत हैं बल्कि उनकी चिंताओं को कार्यरूप दिए जाने की भी तत्काल ंजरूरत है।
आशा की जानी चाहिए कि डॉ मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री रहते हुए देश के उच्च पदों पर बैठे ईमानदार अधिकारियों के हौसले बुलंद होंगे तथा देश के विकास का एवं आम आदमी को न्याय देने का हौसला रखने वाले अधिकारी बड़ी मछलियों को यथाशीघ्र अपने भ्रष्टाचार निरोधक जाल में फंसाएंगे। शायद तभी आम लोग इस सरकार की 'जय हो' कर सकेंगे।
तनवीर जांफरी
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