सोमवार, 28 सितंबर 2009

संकीर्ण सोच रखने वाले दलों व नेताओं से सावधान

संकीर्ण सोच रखने वाले दलों व नेताओं से सावधान

       निर्मल रानी

163011, महावीर नगर,  अम्बाला शहर,हरियाणा, फोन-9729229728

भारतीय लोकतंत्र में समय-समय पर आयोजित होने वाले विभिन्न राज्यों के चुनावी पर्व तथा लोकसभा के आम चुनाव के रूप में होने वाला चुनावी महापर्व हम भारतीय मतदाताओं को आमतौर पर 5 वर्षों में एक बार यह अवसर देता है कि हम देशहित, राष्ट्र के विकास, देश की एकता व अखंडता, साम्प्रदायिक सद्भाव आदि मुद्दों को सामने रखकर अपने-अपने क्षेत्रों से लोकसभा अथवा विधानसभा के प्रतिनिधियों का चुनाव करें। अभी मात्र 4 माह पूर्व ही देश के मतदाताओं ने देश को एक नई केंद्रीय सरकार चुन कर दी है। और एक बार फिर हरियाणा, महाराष्ट्र तथा अरुणाचल प्रदेश में आगामी 13 अक्तूबर को होने जा रहे विधानसभा के आम चुनाव भारतीय मतदाताओं से उनकी राय (मत) जानने जा रहे हैं।

              देश की स्वतंत्रता से लेकर अब तक होने वाले लगभग सभी चुनावों के दौरान आमतौर पर यह देखा जाता है कि एक ओर मतदाता जहां राष्ट्रीय हितों को मद्देनंजर रखकर मतदान करने की कोशिश करता है, वहीं साम-दाम-दंड-भेद से अपने चुनाव जीतने का हौसला रखने वाले कुछ स्वार्थी प्रवृत्ति के नेता अपने राजनैतिक स्वार्थ के चलते मतदाताओं को गुमराह करने से भी बांज नहीं आते। मात्र अपने पक्ष में मतदान करवाने के लिए कहीं जातिवाद का सहारा लिया जाता है तो कहीं क्षेत्रवाद को हवा देने का काम किया जाता है। कहीं क्षेत्रीय भाषा को हथियार बनाकर समाज को विभाजित करने का प्रयास किया जाता है तो कहीं स्थानीय लोगों की बेरोंजगारी जैसे संकीर्ण मुद्दों का ढोंग रचकर समाज में क्षेत्रीयता का ंजहर घोलने का काम किया जाता है। ंजाहिर है ऐसे सभी प्रयास नेताओं द्वारा केवल इसलिए किए जाते हैं ताकि वे समाज को क्षेत्र के नाम पर बांटने में सफल हों। मतदाताओं की भावनाओं को भड़क़ा सकें तथा इन बातों का लाभ उठाकर अपने पक्ष में मतदान करने हेतु मतदाताओं को उकसा सकें।

              उपरोक्त परिस्थितियों में भारतीय मतदाताओं का यहर् कत्तव्य बन जाता है कि वे किस प्रकार अपने आप को इन अवसरवादी एवं संकीर्ण विचार रखने वाले नेताओं के हथकंडों से बचाकर रखें तथा राष्ट्रहित एवं राष्ट्रीय विकास तथा देश की एकता व अखंडता को सर्वोपरि रखकर मतदान में हिस्सा लें। सत्ता के भूखे भेड़ियों की संकीर्ण राजनीति का नंगा नाच इन दिनों महाराष्ट्र में खुलेआम देखा जा रहा है। इसे हम भारत सरकार की कमंजोरी कहें अथवा सहिष्णुता या फिर इसे बुंजदिली का नाम दें। परन्तु यह सच है कि देश को तोड़ने की कोशिश में लगे अलगाववाद की शैली की राजनीति अपनाने वाले ठाकरे ब्रदर्स कांफी लंबे समय से महाराष्ट्र में अपनी इसी प्रकार की राजनीति चला रहे हैं। स्वयं को हिंदुत्ववादी राजनीति का समर्थक बताने वाला ठाकरे परिवार मात्र मतों की ंखातिर हिंदुत्व की भी बात करता है। परन्तु जब बात भाषा की आती है तो इन्हीं ढोंगी हिंदुत्ववादियों को हिंदी भाषा से नंफरत तथा मराठी भाषा से प्यार हो जाता है।

              अभी पिछले दिनों देश के एक जाने-माने पत्राकर राजदीप सरदेसाई मुंबई में राज ठाकरे से मिलने जा पहुंचे। आमतौर पर अंग्रेंजी भाषा में पत्रकारिता करने वाले सरदेसाई ने राज ठाकरे के समक्ष हिंदी भाषा में साक्षात्कार देने का प्रस्ताव रखा। परन्तु महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के इस नेता ने सरदेसाई को हिंदी भाषा में साक्षात्कार देने से सांफ मना कर दिया। ठाकरे ने केवल मराठी भाषा में ही अपनी बात कहने पर पूरा ंजोर दिया। परिणामस्वरूप सरदेसाई को राज ठाकरे से लिया जाने वाला साक्षात्कार स्थगित करना पड़ा। यह घटना हमें क्या दर्शाती है? एक भारतीय पत्रकार अपने पेशे की  ंजिम्मेदारी निभाते हुए यह चाह रहा था कि महाराष्ट्र की सत्ता पर दावेदारी जताने वाले राज ठाकरे जैसे नेताओं के विचारों को टीवी चैनल के माध्यम से पूरा देश जाने। सरदेसाई ने इसीलिए हिंदी भाषा का साक्षात्कार में प्रयोग किए जाने का प्रस्ताव रखा। परन्तु राजदीप सरदेसाई की सोच के ठीक विपरीत राज ठाकरे की इस बात में कोई दिलचस्पी नहीं थी कि उनके विचारों को पूरा देश भी जाने। उनकी नंजरें तो केवल महाराष्ट्र के विधान-भवन पर टिकी हुई हैं। ठाकरे को तो केवल मराठा मतों को आकर्षित करना है। इसके लिए उन्हें चाहे उत्तर भारतीयों को गालियां देनी पड़ें, उनके साथ मारपीट करनी पड़े अथवा अपमानित करना पड़े या फिर राष्ट्रभाषा हिंदी का अपमान ही क्यों न करना पड़े, उन्हें यह सब स्वीकार है। क्योंकि उनकी राजनैतिक सोच अत्यन्त सीमित व संकीर्ण है। बेशक उनकी बातों में यह नंजर आता है कि वे मराठा हितों अथवा मुंबई वासियों के हितों की बातें कर रहे हैं। परन्तु दरअसल ऐसा नहीं है। उनकी ऐसी मीठी बातों के पीछे का रहस्य केवल यही है कि वे मराठा मतों के सहारे महाराष्ट्र की विधानसभा में अपनी पार्टी का झण्डा फहराना चाहते हैं। और अपने इस एकमात्र लक्ष्य को अर्जित करने के लिए ही उनके द्वारा अलगाववाद, हिंदी भाषा का विरोध, उत्तर भारतीयों का विरोध अथवा उन्हें अपमानित करना तथा समाज में विघटन पैदा करने जैसे नापाक हथकंडों का सहारा लिया जा रहा है।

              देश में एक दो नहीं बल्कि दर्जनों ऐसे 'ठाकरे' राजनीति में सक्रिय दिखाई देंगे जो इसी प्रकार की गणित तथा योग के आधार पर अपनी राजनैतिक दुकानदारियां चला रहे हैं। कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक अपनी क्षेत्रीय, सीमित व संकीर्ण सोच से देश की एकता व अखंडता के स्वच्छ वातावरण को प्रदूषित करने वाले यह नेता सक्रिय देखे जा सकते हैं। सत्ता की लालच ने इन्हें इस हद तक अंधा कर दिया है कि इन्हें क्षेत्रीयता तथा सामाजिक संकीर्णता, राष्ट्रीयता एवं राष्ट्रीय एकता व अखंडता पर भारी नंजर आ रही है। अपनी पारिवारिक राजनैतिक पृष्ठभूमि, अपने धन तथा शक्ति आदि के बल पर ऐसे कई नेता परिवार देश के विभिन्न क्षेत्रों में अपनी अच्छी ंखासी पैठ बनाए देखे जा सकते हैं। कई जगहों पर तो इन्हें सत्ता पर ंकाबिंज भी देखा जा सकता है। ऐसे में देश के राष्ट्रप्रेमी जागरूक मतदाताओं का यहर् कत्तव्य है कि वे अत्यन्त सूक्ष्म्ता के साथ यह देखें कि क्षेत्रीय सत्ता हथियाने के बाद यही नेता आंखिर अपने क्षेत्र या राज्य में किस एजेंडे पर काम कर रहे हैं। कहीं ऐसा तो नहीं कि देश के विकास को प्राथमिकता देने के बजाए पूरे प्रदेश में 'हाथियों' के पार्कों की स्थापना करने को ही मुख्य एजेंडा बनाया जा रहा हो? कहीं ऐसे राजनेता सरकारी ंखंजाने से धन निकाल कर अपनी स्वयं की मूर्तियां राज्य में लगवाकर प्रदेश में स्थायी तौर पर अपनी राजनैतिक पहचान छोड़ने का तो प्रयास नहीं कर रहे?

              आज हमारा देश लगभग सभी बाहरी सीमाओं की ओर से ंखतरे का सामना कर रहा है। बाहरी दुश्मन से निपटना तो हमारे लिए फिर भी उतना कठिन नहीं है जितना कि इन 'स्वदेशी' तांकतों से निपटना जोकि भारतीय नागरिक एवं भारतीय नेता होने का दम भरते हुए भी विघटनकारी एवं अलगाववादी राजनीति को हवा देते रहते हैं। क्षेत्रीय सत्ता पर ंकाबिंज होने की इनकी लालसा भले ही इन्हें समाज को धर्म-जाति, क्षेत्र, भाषा आदि के नाम पर विभाजित करने को मजबूर क्यों न करती हो, परन्तु हम भारतीय मतदाताओं का तो कम से कम अवश्य यहर् कत्तव्य बनता है कि हम चुनावरूपी अवसर आने पर इन संकीर्ण मानसिकता रखने वाले सभी नेताओं व दलों को अपने मतदान के द्वारा यह सचेत करें कि देश की एकता व अखंडता, राष्ट्र का समग्र विकास जैसी राष्ट्रव्यापी बातें अधिक ंजरूरी हैं न कि संकीर्ण, सीमित व क्षेत्रीय सोच को हवा देने वाली बातें। ंजाहिर है भारतीय मतदाताओं को अपना यह पक्ष मतदान के माध्यम से ही रखने का अवसर प्राप्त होता है। देशहित को राष्ट्रीय परिपेक्ष्य में सोचने वाले मतदाताओं को चुनावरूपी इन शुभ अवसरों को हरगिंज गंवाना नहीं चाहिए।

                              निर्मल रानी

गुरुवार, 24 सितंबर 2009

सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी से 20 तटीय गांवों के जीवन में बदलाव

सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी से 20 तटीय गांवों के जीवन में बदलाव

सार्वजनिक - निजी भागीदारी के लिए मॉडल

 

                                                            के.एम रवीन्द्रन *

अपर महानिदेशक, पसूका, चेन्नई

       किसी भी प्रौद्योगिकी अथवा उपकरण के फायदे और नुकसान दोनों होते हैं। हालांकि उसकी प्रभावोत्पादकता इस बात पर निर्भर करती है कि उसके सकारात्मक पक्ष से हम कितना फायदा उठा सकते हैं। इसका मतलब यह है कि यह हम पर निर्भर है कि हम प्रौद्योगिकी को अपने पक्ष में कैसे इस्तेमाल करें।

 

       कुछ ऐसा ही पुडुचेरी बहुद्देश्यीय सामाजिक सेवा सोसायटी नामक गैर सरकारी संगठन ने पूरी सफलता के साथ किया है।

 

       सोसायटी ने मछुआरों के दैनक जीवन को नया रूप देने के लिए सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी के सर्वोत्तम इस्तेमाल के जरिए पुडुचेरी और तमिलनाडु के कुड्डालूर और वल्लुपुरम जिलों में ज्वार-भाटा को पूरी तरह से मछुआरा समुदाय के अनुकूल बना दिया है।

 

       पुडुचेरी में सोसायटी के मुख्यालय में इसरो के समर्थन से मुख्य सूचना केन्द्र की स्थापना से इस मिशन की शुरूआत हुई। यह केन्द्र गांवों में स्थित ग्राम सूचना केन्द्रों को सूचना प्रसारित करता है। पुडुचेरी में चिन्हित गांवों की संख्या नौ, कुड्डालूर में आठ और कराईकल में तीन हैं। इन 20 तटीय खेड़ों में ग्रामीणों के रोजमर्रा के जीवन में समृध्दि लाने के लिए सूचना और ज्ञान उपलब्ध कराया जा रहा है।  आसन्न संकट की आशंका के मामले में नियमित सूचना के अलावा चेतावनी संदेश जारी किए जाते हैं। पांच साल पहले त्सुनामी से तबाह क्षेत्र में लोगों को प्रौद्योगिकी उपलब्ध कराने का यह पुडुचेरी बहुउद्देश्यीय सामाजिक सेवा सोसायटी का एक महत्त्वपूर्ण प्रयास है।

 

       सार्वजनिक उद्बोधन प्रणाली के जरिए दिन में तीन बार, मौसम, लहरों की ऊंचाई, हवा की चाल, वे संभावित क्षेत्र जहां मछली मिल सकती हैं और मछलियों के दैनिक बाजार भाव के बारे में घोषणाएं करने के लिए प्रणाली स्थापित की गई हैं। यह सूचना इन गांवों में बोर्ड पर भी प्रदर्शित की जाती है। हालांकि सार्वजनिक उद्धोषणा प्रणाली की पहुंच सिर्फ एक किलोमीटर तक सीमित है लेकिन पुडुचेरी बहुउदेश्यीय सामाजिक सेवा सोसायटी के अथक प्रयासों से इस सीमा से भी बाहर कदम रखा गया है। सोसायटी ने पुढु युगम पड़ाइपोम (आइए, एक नए प्रभात के लिए प्रयास करें) नामक मछुआरों के प्रशिक्षण कार्यक्रम के प्रसारण के लिए आकाशवाणी (ऑल इंडिया रेडियो) के पुडुचेरी केन्द्र के साथ अनुबंध किया है। गहरे समुद्र में मौसम की स्थिति की जानकारी पाने के लिए मछुआरों के आग्रह पर संचार के इस माध्यम के इस्तेमाल का विचार किया गया। आकाशवाणी पुडुचेरी के सहयोग से ग्रामीण समुदाय के लिए सूचना नामक विशेष कार्यक्रम भी दिन में तीन बार प्रसारित किया जाता है।

 

       पुडुचेरी बहुउद्देश्यीय सामाजिक सेवा सोसायटी के पास मौसम पूर्वानुमान पर कार्यक्रम रिकार्ड करने के लिए सुसज्जित स्टूडियो है। सोसायटी के मुख्यालय में स्वचालित मौसम केन्द्र स्थापित किया गया है जहां लहरों की ऊंचाई, समुदाय आधारित आपदा की तैयारी,  सूचना का अधिकार, बाल अधिकार, महिला सशक्तीकरण, बच्चों के गैर कानूनी व्यापार और समुदाय आधारित अन्य विशिष्ट जानकारियां प्रदान की जाती हैं। स्व-सहायता समूहों से जुड़ी महिलाओं और युवकों सहित ग्रामीण समुदाय के लोग इस कार्यक्रम में उत्सुकता व उत्साह से भाग लेते हैं। उन्हें कार्यक्रम के संचालन का प्रशिक्षण दिया जाता है जो उनकी अपनी आवाज में रिकार्ड किया जाता है तथा आकाशवाणी पुडुचेरी के जरिए उसे प्रसारित किया जाता है।

 

       भू-विज्ञान मंत्रालय का हैदराबाद स्थित भारतीय राष्ट्रीय समुद्र सूचना सेवा केन्द्र और चेन्नई स्थित भारतीय मौसम विज्ञान विभाग मौसम पूर्वानुमान और लहरों की ऊंचाई के बारे में सूचना उपलब्ध कराते हैं। पुडुचेरी में सोसायटी के मुख्यालय में इसरों की मदद से डिजिटल डिस्प्ले प्रणाली स्थापित की गई है जो मछुआरों को समुद्र संबंधी सम्पूर्ण ब्यौरा उपलब्ध कराती है। इस गैर सरकारी संगठन ने इन गांवों के मछुआरों की सुरक्षा के लिए लहरों की ऊंचाई नापने के लिए 2007 में  (अक्षांश: 11 डिग्री 52. 442' एन, उन्नतांश: 79 डिग्री 50. 573' ई) बंगाल की खाड़ी, चिन्नावीरंपत्तीनम, पुडुचेरी में बंगाल की खाड़ी में अपना वेव राइडर चिन्ह स्थापित किया गया है।

 

       सॉपऊटवेयर सेवा कम्पनियों के राष्ट्रीय संघ ने इन 20 गांव ज्ञान केन्द्रों के जरिए सीखने के इच्छुक लोगों को कम्प्यूटर शिक्षा के अलावा इन गांवों में ई-साक्षरता और प्रौढ श्ािक्षा उपलब्ध कराने के लिए प्रयास किए हैं। दसवीं और 12वीं कक्षा के विद्यार्थियों के लिए बीएसएनएल की ब्राडबैंड सेवा के जरिए ई-शिक्षा उपलब्ध कराई जा रही है। पुडुचेरी में निजी टीवी चैनल रेनबो के जरिए भी ऐसी ही सुविधा उपलब्ध कराई गई है।

 

       पुडुचेरी आयुर्विज्ञान संस्थान के साथ अनुबंध के जरिए ग्रामीण लोगों को गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्यचिकित्सा देखरेख सेवा उपलब्ध कराने के लिए एक अन्य लागत प्रभावी (कम खर्च वाली) आईओटी सुविधा ई-औषधि  स्थापित की गई है।

 

       ई-कृषि सेवा के जरिए उर्वरक, बीज, कृषि उत्पादों की कीमतों जैसी कृषि संबंधी सभी प्रासंगिक सूचनाएं उपलब्ध कराई जा रही हैं। जहां कहीं संभव है आवेदन फार्म डाउनलोड करने और ऑन लाइन आवेदन जैसी सरकारी सेवाओंस्कीमों सूचनाओं को उपलब्ध कराने के लिए सरकार की ई-शासन सुविधा उपलब्ध कराई जाती है।

 

       कुल मिलाकर पुडुचेरी बहुउदेश्यीय सामाजिक सेवा सोसायटी बहुत ही सफल सार्वजनिक-निजी भागीदारी सिध्द हुई है।

 

       इसके अलावा यह सोसायटी (संस्था) सम्पूर्ण समग्र मानव विकास के लिए लोगों की शिक्षा और प्रशिक्षण पर बल दे रही है। प्रशिक्षण के लक्ष्यों में  लोगों को जागरूक बनाने, शिक्षा, संगठन, शक्ति और कार्रवाई शामिल है। इन वर्षों में स्वच्छता, पर्यावरण और पारिस्थितिकी जैसे संबंधित क्षेत्रों और कृषि में नेतृत्व के गुणों का अनेक लोगों को प्रशिक्षण देने के साथ-साथ उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति सुधारने और उन्हें सशक्त बनाने के लिए विभिन्न कौशलों के विकास का प्रशिक्षण दिया गया है।

 

       पुडुचेरी बहुद्देश्यीय सामाजिक सेवा सोसायटी ने इन गांवों का सुव्यवस्थित गांवों में रूपान्तरण करने के उद्देश्य से यहां  मेन्ग्रोव सहित हरियाली बढाने, तटीय पारिस्थितिकी विज्ञान जैसे क्षेत्रों में सुधार लाने के अनेक प्रयास किए हैं।

 

       यह सोसायटी पुडुचेरी और कुड्डालूर के आर्कडियोसीज की पंजीकृत समाज सेवा करने वाली संस्था है। इसका मुख्यालय पुडुचेरी में है। यह इस संघीय क्षेत्र के पुडुचेरी और कराईकल क्षेत्र तथा तमिलनाडु के कुड्डालूर एवं वल्लुपुरम जिलों में पिछले 32 साल से अनेक लोगों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति को नया रूप दे रही है।

 

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  *अपर महानिदेशक, पसूका, चेन्नई

 

मंगलवार, 22 सितंबर 2009

महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने अपने कार्यक्रमों के लिए ई-ट्रैकिंग एवं सामाजिक लेखा परीक्षण शुरु करेगा

महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने अपने कार्यक्रमों के लिए ई-ट्रैकिंग एवं सामाजिक लेखा परीक्षण शुरु करेगा

नई दिल्‍ली 22 सितम्‍बर 09, महिला एवं बाल विकास मंत्रालय अपने महिला एवं बाल विकास कार्यक्रमों में पारदर्शिता, जवाबदेही एवं अभिनवीकरण लाने के लिए शीघ्र ही वाच डाग, ई ट्रैकिंग एवं सामाजिक लेखा परीक्षण शुरु करेगा। महिला एवं बाल विकास मंत्री श्रीमती कृष्णा तीरथ ने आज यहां केंद्र एवं राज्यों के सामाजिक कल्याण बोर्डों के अध्यक्षों के राष्ट्रीय सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि जनकल्याण कार्यक्रमों में लोगों की शिकायतों को दूर करने के लिए प्रयास किया जाना चाहिए तथा लापरवाही, कार्यक्रमों एवं परियोजनाओं की विफलता, धन के कुप्रबंधन एवं सामाजिक समूहों के साथ असहयोग से जुड़े मामलों में बिल्कुल कड़ाई बरती जानी चाहिए।

 

       मंत्री महोदया ने केंद्रीय सामाजिक कल्याण बोर्ड की संस्थापक स्वर्गीय डा0 दुर्गाबाई देशमुख के योगदानों को याद करते हुए कहा कि बोर्ड को उनके सपने को पूरा करने के लिए हरसंभव प्रयास करना चाहिए। केंद्रीय सामाजिक कल्याण बोर्ड के कामकाज की आलोचना पर चिंता प्रकट करते हुए उन्होंने कहा कि केंद्रीय और राज्यों के सामाजिक कल्याण बोर्डों को अपनी वार्षिक कार्ययोजना तैयार करनी चाहिए तथा उसपर मंत्रालय से चर्चा करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि केंद्रीय सामाजिक कल्याण बोर्ड को अपने सहयोगियों तथा हितधारकों के कामकाज का रिकार्ड रखने के लिए नियमित रुप से सामाजिक लेखा परीक्षण एवं कार्यक्रम लेखा परीक्षण करना चाहिए।

 

       श्रीमती तीरथ ने कहा कि केंद्रीय सामाजिक कल्याण बोर्ड के कामकाज में सुधार के लिए उन्होंने अपने कार्यकाल के अगले पांच सौ दिनों के लिए कार्यक्रम लेखा परीक्षण, स्कीम का सामाजिक लेखा परीक्षण, एनजीओ प्रोफाइलिंग, सेवाओं के बीच अंतर को दूर करने के लिए विश्लेषण बोर्डों के पुनर्गठन आदि की प्रकियाएं शुरु की हैं।

 

रविवार, 20 सितंबर 2009

हरित क्रांति की दिशा में पावर टिलर (मिनी ट्रेक्टर) का अभियान बना शहडोल के आदिवासी काश्तकारों के लिए वरदान

हरित क्रांति की दिशा में पावर टिलर (मिनी ट्रेक्टर) का अभियान बना शहडोल के आदिवासी काश्तकारों के लिए वरदान

 

जे.पी. धौलपुरिया, उपसंचालक, जनसम्‍पर्क कार्यालय, शहडोल म.प्र.

 

 शहडोल 20 सितम्बर 2009/ताबड़तोड़ पावरटिलर (मिनी टे्रक्टर) वितरण करने के कृषि विभाग के कदम से शहडोल के गरीबी रेखा के नीचे जीवनयापन करने वाले आदिवासियों की काश्तकारी में चमक लौट आई है और उनके लिए यह वरदान साबित हुए हैं। उनकी आर्थिक एवं सामाजिक हैसियत में सुधार आया है। इस बदलाव की मिसाल बने हैं शहडोल जिले के दूरवर्ती और पिछड़े गांवों के 60 स्व-सहायता समूहों के 639 गरीब आदिवासी काश्तकार, जिनने पावर टिलर की मदद से तथा अपनी मेहनत और लगन से अपनी फसल का उत्पादन दो गुना कर लिया है।

 

       राज्य सरकार ने तकनीकी दक्षता वाले पावर टिलर देकर हताश गरीब आदिवासी काश्तकारों को नई रोशनी दी है। इसे अपने खेतों में चलाकर आदिवासी काश्तकार बिना किसी लागत के अपने खेतों की जुताई और फसलों की मचाई कर सकते हैं। पावर टिलर का खेतों में प्रचलन बढ़ने से निश्चित रूप से आदिवासी काश्तकार समूहों का कारोबार बढ़ा है। इन काश्तकारों के समूहों में जैसिंहनगर के खुशरबा के एक ज्वालामुखी स्व-सहायता समूह के आठ काश्तकार सदस्यों के 30 एकड खेतों में जुताई होती है । समूह के अध्यक्ष श्री मानसिंह बताते हैं कि पहले बैलों से चार एकड़ में जुताई करने पर पन्द्रह-बीस दिन का समय लग जाता था । पर अब पावर टिलर से एक ही दिन में जुताई हो जाती है। साथ ही दूसराें के खेतों में जुताई करने और खाद, मिट्टी, ईटों की ढुलाई करने से अतिरिक्त आमदनी भी हो जाती है।

 

       खेतों में जुताई और मचाई करने तथा काश्तकारों की बेहतरी के लिए कृषि लागत व समय बचाने के साथ पावर टिलर अन्य तरीकों से कमाई का उपयुक्त माध्यम भी बन रहे हैं। इससे इन काश्तकारों के खेतों की माटी गुलजार हो गई है। आमतौर पर साधनाें के अभाव में गरीब काश्तकार बैलों से ही खेतों में जुताई करते थे। असिंचित क्षेत्र में सिर्फ एक ही फसल ले पाते थे। इस एक फसल में भी उत्पादन कम होने से जो मिला उसी से काम चलाना पड़ता था। गुजरबसर के लिए उन्हें दूसरों के यहां दिहाड़ी मजदूरी करनी पड़ती थी । जिले के छत्तीसगढ़ की सीमा पर बसे गांव बरगवां के पन्द्रह सदस्यीय सिंह वाहिनी स्व-सहायता समूह के अध्यक्ष  बिहारी पाव बताते है कि पहले बैलों से खेतों में जुताई करने से उतना उत्पादन नहीं हो पाता था । लिहाजा दूसराें के यहां मजदूरी करके आजीविका चलानी पड़ती थी । अब पावर टिलर से खेतों में उत्पादन दो गुना हो जाने से आय बढ़ गई है। पावर टिलर का अन्य कार्यो में भी उपयोग होने से आमदनी बढ़ गई है। उन्हें अब दूसरों के यहां मजदूरी करने नहीं जाना पड़ता।

 

       गरीब आदिवासी काश्तकारों की बेहतरी के लिए जिले में 60 स्व-सहायता समूहों के 639 काश्तकारों को 95.28 लाख रूपये के अनुदान पर 60 नग पावरटिलर अब तक दिए जा चुके हैं। इनके साथ ट्राली, कैजव्हील, सीडड्रिल आदि भी दिए गए हैं। इससे इनने स्वयं की 1752 एकड़ भूमि पर जुताई कर आमदनी बढ़ाई है। ये अन्य काश्तकारो की करीब 1800 एकड़ भूमि पर भी जुताई कर कमाई कर रहे हैं। जब ये बैलों से जुताई करते थे तो खाद, बीज आदि की समय पर व्यवस्था नहीं कर पाते थे । साथ ही खेतों की जुताई, मताई (मचाई) कार्य समय पर तथा अच्छे तरीके से नहीं कर पाने के कारण बोआई व रोपाई कार्य में भी प्राय: देरी हो जाया करती थी, जिससे गरीब आदिवासी काश्तकार अधिकतम मात्र तीन-चार क्विं0 प्रति एकड़ धान का औसत उत्पादन ही ले पाते थे । पर अब यही उत्पादन बढ़कर छ:-सात क्विं0 प्रति एकड़ हो गया है। धान की उपज भी बढ़कर दो गुनी हो गई ह,ै जिससे उन्हें चार-पांच हजार रूपये प्रति एकड़ अतिरिक्त आय अर्जित हो रही है। जिनके यहां सिंचाई के साधन है, वे अब दो फसलें ले रहे हैं। ये 60 स्व-सहायता समूहों के 639 काश्तकारों द्वारा 1752 एकड़ जमीन पर धान की खेती करके उन्हें 25 से 30 लाख रूपये की अतिरिक्त आय होने से उनके जीवन में खुशहाली आ गई है । हरित क्रांति के संवाहक बने हुए पावरटिलर की उपयोगिता के बार में शहडोल के उपसंचालक कृषि श्री के.एम. टेकाम कहते हैं कि पावरटिलर के इस्तेमाल से गरीब आदिवासी काश्तकारों की माली हालत में सुधार हो रहा है। वे अब अच्छी खेती कर रहे हैं और दूसरों के यहां किराए पर पावर टिलर देकर भी आमदनी कर रहे हैं। और भी जरूरतमंद गरीब आदिवासी काश्तकारों को अनुदान पर पावरटिलर मुहैया कराए जाएगें ।

 

शुक्रवार, 18 सितंबर 2009

फिजूलंखर्ची रोकने की मुहिम तथा सुरक्षा के उठते प्रश्न

फिजूलंखर्ची रोकने की मुहिम तथा सुरक्षा के उठते प्रश्न

निर्मल रानी    163011 महावीर नगर,  अम्बाला शहर,हरियाणा। फोन-9729229728

email: nnirmalrani@gmail.com

 

       भारतवर्ष बेशक एक विकासशील देश है तथा अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर छाई भारी मंदी के बावजूद यह देश अपने आप इस आर्थिक संकट से उबर पाने में सफल रहा। इसका मुख्य कारण यह माना जा रहा है कि चूंकि मूलत: यह देश कृषि उत्पादन पर निर्भर है, अत: इसे आर्थिक संकट से उस हद तक नहीं जूझना पड़ा जितना कि अन्य विकसित या विकासशील उद्योग आधारित देशों को जूझना पड़ा है। परन्तु साथ ही साथ इसका दूसरा अर्थ यह भी है कि भारतवर्ष की आधी से अधिक जनसंख्या खेती व मंजदूरी जैसे कामों से जुड़ी है। यही वजह है कि तमाम विशेषताओं के बावजूद भारत अब भी एक ंगरीब देश के रूप में जाना जाता है। महात्मा गांधी की धोती इस बात का प्रतीक नहीं थी कि उनके पास पहनने के लिए कपड़े नहीं थे या कपड़े ंखरीदने हेतु उनके पास पैसे नहीं थे। बल्कि धोती के रूप में अपने शरीर पर एक वस्त्र धारण कर गांधीजी ने दुनिया को विषेषकर ब्रिटिश तानाशाहों को यह संदेश देने का सफल प्रयास किया था कि हम उस विशाल देश का प्रनिधित्व करते हैं जो ंगरीब परन्तु स्वाभिमानी देश है। जिस देश का नागरिक नंगा और भूखा तो रह सकता है परन्तु परतंत्र नहीं रह सकता। गांधीजी के 'सादा जीवन उच्च विचार' जैसे इसी ंफार्मूले ने न केवल देश को आंजाद कराने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया बल्कि गांधीवादी विचारधारा का वास्तविक अनुसरण करने वाले लोग आज भी रहन-सहन, खान-पान आदि सभी क्षेत्रों में गांधीजी की सादगीपूर्ण नीतियों का अनुसरण करते हैं।

              आंजादी के 63 वर्ष बीत जाने के बाद वैश्विक स्तर पर छाई भारी मंदी के दौर में एक बार फिर देश को गांधीजी की सादगी याद आने लगी है। केंद्रीय नेताओं की ओर से कुछ ऐसे संकेत दिए जा रहे हैं जिससे यह महसूस किया जा रहा है कि सरकार अब ंफुंजूलंखर्ची पर लगाम लगाने का इरादा रखती है। इस मुहिम की शुरुआत पिछले दिनों तब हुई जबकि देश के एक प्रतिष्ठित समाचार पत्र ने यह प्रकाशित किया कि भारत के विदेश मंत्री एस एम कृष्णा तथा विदेश राज्य मंत्री शशि थरूर दोनों ही राजधानी दिल्ली के उच्चस्तरीय पांच सितारा होटलों में रह रहे हैं। जब वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी के संज्ञान में यह बात लाई गई तो उन्होंने उक्त दोनों ही मंत्रियों को पांच सितारा होटल के अपने-अपने कमरे ंखाली करने के सुझाव दिए। यह ंकवायद केवल इसलिए की गई ताकि भारत सरकार के इन मंत्रियों पर पांच सितारा होटल में होने वाले भारी भरकम ंखर्च को रोका जा सके। ंखबर यह भी सुनाई दी कि इन मंत्रियों का पांच सितारा होटल में रहना कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को भी पसंद नहीं आया। तथा उनकी इच्छा का भी आदर करते हुए दोनों ही मंत्री अपने-अपने होटल छोड़कर अन्य स्थानों पर चले गए।

              इसके बाद कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने स्वयं साधारण (इकॉनॉमी) श्रेणी में दिल्ली से मुंबई तक की विमान यात्रा कर ंफुंजूलंखर्ची कम करने का संदेश, शासन तथा कांग्रेस पार्टीजनों को देने की कोशिश की। फिर क्या था। सोनिया गांधी की इस साधारण श्रेणी की विमान यात्रा के पश्चात पांच सितारा होटल में रहकर विदेश मंत्रालय चलाने वाले एस एम कृष्णा ने भी अपनी प्रस्तावित बेलारूस यात्रा साधारण क्लास में करने की घोषणा कर डाली। भारत के गृहमंत्री पी चिदम्बरम भी ंखर्च कम करने की इस मुहिम में शामिल हो गए। और पिछले दिनों कांग्रेस महासचिव, सांसद राहुल गांधी ने भी नई दिल्ली से लुधियाना तक की अपनी यात्रा रेलगाड़ी के कुर्सीयान में कर ंफुंजूलंखर्ची रोकने की इस मुहिम को और आगे ले जाने का संदेश छोड़ा। ंखबर है कि देश के सभी कांग्रेस शासित राज्य अब ंफुंजूलंखर्ची रोकने की इस मुहिम में शामिल होने की तैयारी कर रहे हैं। राजस्थान सरकार ने तो इस संबंध   में कुछ दिशानिर्देश भी जारी कर दिए हैं। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने घोषणा की है कि अब राज्य के मंत्रिगण नियमित रूप से अपनी विमान यात्राएं केवल इकॉनॉमी क्लास में ही किया करेंगे। साथ ही साथ गहलोत ने इस दिशा में एक और महत्वपूर्ण निर्णय लेते हुए यह घोषणा भी की कि आगामी नौ महीनों तक राज्य का कोई भी मंत्री विदेश यात्रा पर हरगिंज नहीं जाएगा।

              एक ओर तो देश के कुछ ंजिम्मेदार लोगों द्वारा ंखर्च कम करने के उपाय तलाश किए जा रहे हैं तो दूसरी ओर विपक्षी पार्टियां ऐसे प्रयासों का मंजांक उड़ा रही हैं। लालू प्रसाद यादव जैसे चारा घोटाले के आरोपी नेता, सोनिया गांधी व राहुल गांधी की इस मुहिम पर व्यंग्य करते हुए ंफरमाते हैं कि पैसा बचाना हो तो गांधीजी की तरह तीसरे दर्जे के रेल डिब्बे में यात्रा करो। लालू यादव बेशक सही ंफरमाते हों। देश के प्रत्येक नेता को आम जनता के साथ ही यात्रा करनी चाहिए। वैसा ही खान-पान रहन-सहन सब कुछ वैसा ही रखना चाहिए। ंखासतौर पर बिहार के नेताओं को तो ंगरीबों के रहन-सहन, खान-पान आदि का अवश्य अनुसरण करना चाहिए। सत्तु की पोटली कपड़े में बांधकर विशेष विमान में यात्रा करने का ढोंग रचने वाले तथा ंखर्च कम करने हेतु अपनी सुरक्षा कम होने के डर से संसद में हंगामा करने वाले 'यादव' जैसे नेताओं को यह अधिकार नहीं है कि वे आज के संवेदनशील दौर में दूसरे नेताओं को तो रेल के तीसरे दर्जे में यात्रा करने की सलाह दें तथा स्वयं विशेष विमान एवं ंजेड सुरक्षा का आनंद लेते फिरें।

              राहुल गांधी ने गत् दिनों दिल्ली-लुधियाना-दिल्ली की रेल यात्रा तो ंजरूर की। परन्तु दिल्ली वापसी के समय उनकी ट्रेन पर पथराव किया गया। इस घटना ने सुरक्षा एजेंसियों के कान खड़े कर दिए हैं। सुरक्षा एजेंसियां स्वयं यह सोचने पर मजबूर हैं कि ंफुंजूलंखर्ची रोकने की नेताओं की यह मुहिम कहीं सुरक्षा के दृष्टिकोण से घातक न साबित हों। गांधीजी जब तीसरे दर्जे में रेल यात्रा करते थे, उस समय गांधीजी का कोई स्वदेशी दुश्मन नहीं था। विदेशी तांकतें वैसे भी उनके व्यक्तित्व व राष्ट्रव्यापी जनाधार को देखकर घबराती थीं। परन्तु आज परिस्थितियां बहुत भिन्न हो चुकी हैं। स्वतंत्रता के इन 63 वर्षों के इतिहास का यदि हम बारीकी से अध्ययन करें तो हम यह पाएंगे कि सत्ता के भूखे भेड़िये की तरह हमारे ही देश का एक नेता दूसरे दल के नेता की जान की ंखैर नहीं चाहता। भारत में ऐसी तमाम राजनैतिक हत्याओं के प्रमाण मिल सकते हैं। दुर्भाग्यवश इसकी शुरुआत भी महात्मा गांधी की हत्या से ही हुई। स्वयं को विश्व की सबसे बड़ी शक्ति बताने वाले बर्तानवी शासक तो गांधी की ंफंकीरी, उनकी धोती व लाठी से घबराकर देश छोड़कर चले गए। परन्तु अपने ही देश के एक धर्मान्ध कट्टरपंथी, हिुन्दुत्ववादी व्यक्ति ने उन्हें ंकरीब से आकर गोली मार दी। अर्थात् इस देश का महात्मा इसी देश के एक आतंकी नागरिक के हाथों मारा गया।

              आज देश के हालात 63 वर्षों के बाद और भी बद्तर हो गए हैं। देश के सामने भीतरी व बाहरी दोनों तरंफ से ंखतरों का सामना है। ऐसे में जहां ंफुंजूलंखर्ची रोकना समय की अहम ंजरूरत है, वहीं देश के ंजिम्मेदार नेताओं की सुरक्षा का प्रश् भी उससे कम महत्वपूर्ण नहीं है। गांधीजी की तरह ट्रेन के तीसरे दर्जे में यात्रा करने की राहुल गांधी को सलाह देने वाले लालू प्रसाद यादव जैसे नेता एक बार स्वयं पटना से दिल्ली की यात्रा साधारण श्रेणी में स्वयं करके देखें, फिर उन्हें पता चल जाएगा कि जनता का दु:ख दर्द क्या होता है और सुरक्षा संबंधी किन परेशानियों का सामना उन्हें करना पड़ सकता है।

              अत: बेशक फिजूलंखर्ची रोकने की यह मुहिम बड़े पैमाने पर चलाई जाए। परन्तु इस मुहिम के अन्तर्गत ऐसे क्षेत्रों को चुना जाए जहां ंफुंजूंखर्ची भी रोकी जा सके तथा देश के ंजिम्मेदार नेताओं को सुरक्षा संबंधी किसी नई समस्या से भी जूझना न पड़े। ऐसा न हो कि ंफुंजूलंखर्ची रोकने की मुहिम का नाजायंज ंफायदा असामाजिक तत्व अथवा देश के दुश्मन आतंकवादियों को उठाने का मौंका मिले।

मंगलवार, 15 सितंबर 2009

ग्रामीण विकास मंत्रालय : तिमाही प्रगति रिपोर्ट की मुख्य विशेषताएं

ग्रामीण विकास मंत्रालय : तिमाही प्रगति रिपोर्ट की मुख्य विशेषताएं

राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून - नरेगा गरीबी से अधिक प्रभावी ढंग से निपटने के लिए सवेतन रोजगार कार्यक्रम का नक्शा मंत्रालय ने तैयार किया और केंद्र सरकार ने 2005 में इसे अंतिम रूप दिया। नरेगा को सुदृढ बनाने के लिए राष्ट्रपति द्वारा रेखांकित महत्त्वपूर्ण और प्राथमिकता वाले क्षेत्रों पर ध्यान देना जारी रखने के लिए मंत्रालय ने उच्च स्तरीय कार्यशालाएं आयोजित की और गहन विचार विमर्श किया। इसके फलस्वरूप जिला स्तर पर लोकपाल नियुक्त करने का निर्देश जारी किया गया। नरेगा के डाटाबेस का इस्तेमाल करने के लिए भारतीय अनन्य पहचान विकास प्राधिकरण के साथ भागीदारी का निर्णय लिया गया है।

       नरेगा के कार्यान्वयन की गुणवत्ता में सुधार के लिए इसके सामाजिक लेखा परीक्षा पर जोर दिया जा रहा है। इसके लिए कानून में संशोधन किया गया है। मंत्रालय ने विभिन्न स्कीमों और विशेष  कार्यक्रमों को आपस में मिलाने के लिए दिशानिर्देश विकसित किए हैं। इसके लिए 23 राज्यों में 115 जिलों में प्रायोगिक तौर पर नरेगा के साथ अन्य योजनाओं को मिलाने की योजना शुरू की गई है।

       फिलहाल नरेगा के तहत सिर्फ अकुशल मानव श्रम कार्य ही शामिल है लेकिन कानून में संशोधन के जरिए सिंचाई सुविधा, बागवानी रोपण और भूविकास सुविधाओं को भी नरेगा के कार्यों में शामिल किया गया है।

       वर्ष 2009-10 में जुलाई तक 2.53 करोड़ परिवारों को काम उपलब्ध कराया गया है और 87.09 करोड़ व्यक्ति दिवसों का सृजन किया गया है। नरेगा के बाद पिछले तीन साल के दौरान दैनिक मजदूरी बढक़र 87 रूपए हो गई है। नरेगा में सूखे के प्रभाव को भी कम करने की क्षमता है।

       प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत सड़कों के विकास पर जोर दिया जा रहा है। भारत निर्माण के छह घटकों में ग्रामीण सड़कों को भी एक घटक माना गया है। इसके तहत मैदानी क्षेत्रों में 1000 व्यक्तियों की आबादी वाली बस्तियों को और  पर्वतीय क्षेत्रों या जनजातीय क्षेत्रों में 500 की आबादी वाली बस्तियों को सर्व-मौसम सड़क संपर्कता उपलब्ध कराने का लक्ष्य रखा गया है। इस कार्यक्रम के तहत 54,648 बस्तियों को सड़क संपर्कता उपलब्धता कराने और 1,46,185 किमी लम्बी सड़कों के निर्माण का लक्ष्य है। 1,94,130 किमी सड़कों के उन्नयन का भी लक्ष्य निर्धारित किया गया है। प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत अगस्त 2009 तक राज्योंसंघीय क्षेत्रों को 7280.70 करोड़ रूपए जारी किए जा चुके हैं।

       प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना परियोजनाओं की ई-खरीद, परियोजनाओं की ऑनलाइन निगरानी की गुणवत्ता सुधारना, परियोजनाओं की नागरिक निगरानी की प्रायोगिक परियोजना और गुणवत्ता निगरानी तंत्र को सुदृढ करने जैसी नई पहल शुरू की गई हैं।

       इंदिरा आवास योजना मंत्रालय की प्रमुख योजनाओं में से एक है। इसके तहत गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले परिवारों को आवास बनाने के लिए वित्तीय सहायता उपलब्ध कराई जाती है। वर्तमान वर्ष के दौरान 8800.00 करोड़ रूपए का केंद्रीय आवंटन किया गया है जिसमें से 10 सितम्बर 2009 तक 2428.48 करोड़ रूपए जारी किए जा चुके हैं।

       राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम 1995 में शुरू किया गया था और इसमें फिलहाल इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय वृध्दावस्था पेंशन योजना, इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय विधवा पेंशन योजना, इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय अक्षमता पेंशन योजना,  राष्ट्रीय परिवार लाभ योजना और अन्नपूर्णा नामक पांच योजनाएं शामिल हैं।

       त्वरित ग्रामीण पेय जल आपूर्ति कार्यक्रम को अब पुनर्संरचना के बाद पहली अप्रैल 2009 से इन्दिरा ग्रामीण पेय जल कार्यक्रम बना दिया गया है। वर्ष 2009-10 में इसके लिए 8000 करोड़ रूपए आवंटित किए गए हैं जिनमें से 2377 करोड़ रूपए जारी किए जा चुके हैं।

 

       पंचायतों में महिलाओं के लिए 50 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान करने को मंत्रीमंडल ने मंजूरी दे दी है। इसके लिए संविधान में संशोधन का प्रस्ताव है। यह विधेयक संसद के अगले सत्र में पेश किया जाएगा।

 

 

राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून- नरेगा के तहत नई पहल

राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून- नरेगा के तहत नई पहल

ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज मंत्रालय ने राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून-नरेगा को सुदृढ बनाने के मद्देनजर राज्य सरकारों, केन्द्रीय रोजगार गारंटी परिषद् के सदस्यों, पेशेवरों, शिक्षकों, सार्वजनिक प्रतिनिधियों, नागरिक समाज के संगठनों सहित विभिन्न हितधाराकों के साथ व्यापक परामर्श के आधार पर नई पहल शुरू की है। विकेन्द्रीकरण को सुदृढ बनाना और नरेगा श्रमिकों को गतिशील बनाना, पारदर्शिता और सार्वजनिक जिम्मेदारी को मजबूत बनाना, पारदर्शिता के लिए सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी तथा नरेगा के तहत श्रमिकों के अधिकारों को सबल बनाना और नरेगा के जरिए टिकाऊ विकास जैसे प्रमुख क्षेत्रों पर ध्यान दिया गया है । नरेगा के तहत शुरू की गई प्रमुख पहल इस प्रकार हैं -

 

·        चयन समिति की सिफारिश पर राज्य सरकार जिला स्तर पर लोकपाल नियुक्त करेगी । लोकपाल नागरिक समाज का जाना-माना व्यक्ति होगा, जिसे सार्वजनिक प्रशासन, विधि, शिक्षा, सामाजिक कार्य या प्रबंधन के क्षेत्र मे अनुभव हो ।

·        लोकपाल मौके पर जांच करने, गलत कार्य करने वालों के विरुध्द प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कराने, अनुशासन एवं दंडात्मक कार्रवाई करने के निर्देश देगा ।

·        लोकपाल मासिक और वार्षिक रिपोर्ट भेजेगा ।

·        नरेगा भारतीय अनन्य पहचान विकास प्राधिकरण के साथ सहयोग करेगा। अनन्य पहचान विकास प्राधिकरण निवासियों की पहचान के लिए नरेगा के डाटाबेस का इस्तेमाल करेग 

·        शिकायत दर्ज कराने और नरेगा संबंधी पूछताछ के लिए राष्ट्रीय टोल हेल्पलाइन 1800110707 शुरू की गई है ।

·        ग्राम पंचायतों को हर छह महीने में सामाजिक लेखा परीक्षा के लिए कहा गया है ।

·        नरेगा की प्रगति रिपोर्ट की निगरानी के लिए 100 प्रतिष्ठित नागरिकों की पहचान की गई है ।

·        मंत्रालय ने नरेगा में मिलाने के लिए विभिन्न स्कीमों और कार्यक्रमों की पहचान की है, जिनमें भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, राष्ट्रीय वनीकरण कार्यक्रम, प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना, स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार योजना और जलाशय विकास कार्यक्रम शामिल हैं ।

 

ग्रामीण पेयजल आपूर्ति - सफलताएं और पहल

ग्रामीण पेयजल आपूर्ति - सफलताएं और पहल

भारत सरकार केन्द्र द्वारा प्रायोजित त्वरित ग्रामीण जल आपूर्ति कार्यक्रम के अंतर्गत सभी राज्यों को वित्तीय सहायता उपलब्ध कराती है, 01.04.2009 से इस कार्यक्रम का नाम अब राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम रखा गया है । इस कार्यक्रम में कई घटक हैं, जिनपर पहली अप्रैल 2009 से अमल शुरू किया जाएगा ।

भौतिक प्रगति

       भारत-निर्माण अवधि के दौरान जिन 55,067 बस्तियों को यह सुविधा मुहैया नहीं कराई जा सकी थीं और जो लगभग 3.31 लाख बस्तियां इससे से वंचित रह गयी थीं, उन्हें पेय जल सुविधाएं उपलब्ध कराई जायेंगी और 2.17 लाख बस्तियों की जल गुणवत्ता समस्या को दूर किया जाना है । 55,067 बस्तियों में से 54,430 बस्तियों में समस्या हल की जा सकी है । जहां पेय जल के टिकाऊ स्रोतों का अभाव है, वहां 2011 तक पेय जल सुविधा मुहैया कराने का प्रस्ताव है ।

वित्तीय प्रगति

       ग्रामीण जल आपूर्ति के लिए भारत निर्माण के अंतर्गत अनुमान लगाया गया है कि 4 वर्षों के दौरान 25,300 करोड़ रुपये केन्द्रीय सहायता की जरूरत पड़ेगी । वर्ष 2005-06 में 4098 करोड़ रुपये, 2006-07 में 4560 करोड़ रुपये और 2007-08 में 6441.69 करोड़ रुपये का उपयोग किया गया । वर्ष 2008-09 मे ग्रामीण पेयजल के लिए 7300 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया । इसमें से 7276.29 करोड़ रुपये (99.68 प्रतिशत) का 31 मार्च, 2009 तक उपयोग कर लिया गया है । वर्ष 2009-10 के दौरान 2377.07 करोड़ रुपये की रकम जारी की गई थी, जबकि अप्रैल 2009 के दौरान बजट में 8000 करोड़ रुपये का आबंटन निर्धारित किया गया था ।

 

दक्षिण-पश्चिम मानसून की धीमी प्रगति के कारण पेयजल की आकस्मिक योजनाएं

योजना

       मानसून  में देरी को देखते हुए जून में ही राज्यों से कह दिया गया कि वे अपने-अपने राज्यों में पेयजल की स्थिति की समीक्षा कर लें । योजना में अल्पकालिक और दीर्घकालिक- दोनों ही प्रकार के उपायों को शामिल किया जाए । पानी की कमी वाले राज्यों का विवरण तथा पानी के लाने-लेजाने के ब्यौरे भी दिए जाएं जैसे यदि सड़क या रेलगाड़ी का इस्तेमाल किया जाता हो तो उसका भी ब्यौरा दें । विभाग ने राज्यों के ग्रामीण जल आपूर्ति के प्रभारी सचिवों की 1 जुलाई, 2009 को बैठक भी बुलाई, जिसमें स्थिति से निबटने के बारे में उनकी तैयारियों के संबंध मे विचार-विमर्श किया गया । क्षेत्रीय अधिकारियों को मनोनीत किया गया जो विशेष समस्याओं पर गौर करें । वे केन्द्रीय टीम के भाग के रूप मे राज्यों का दौरा भी कर रहे हैं । राज्यों से कहा गया है कि वे चलाई जा रही योजनाओं को जल्दी पूरा करने के बारे में आवश्यक कदम उठायें । जिसके परिणामस्वरूप लोगों को तत्काल राहत मिले । पीने के पानी, टैंकों और जलाशयों में इकट्ठा करके रखा जाए । नरेगा की पानी की अन्य योजनाओं में उपयोग किया जाए ।

       विभाग को स्थिति पर बारीकी से नजर रखनी चाहिए । भारत सरकार के स्तर पर ग्रामीण जल आपूर्ति के लिए 5 प्रतिशत वार्षिक आबंटन किया जाना चाहिए । इस धनराशि से ग्रामीण क्षेत्रों में जल आपूर्ति प्रणाली की मरम्मत और रख-रखाव तथा अन्य आवश्यक कार्यों को पूरा किया जाना चाहिए । पेयजल कार्यक्रम के अमल के लिए नई नीति पर अमल किया जाना चाहिए । राष्ट्रीय ग्रामीण पेय जल कार्यक्रम (एनआरडीडब्ल्यूपी) का लक्ष्य है ग्रामीण क्षेत्र के हर व्यक्ति को पीने, खाना बनाने और अन्य घरेलू उपयोगों के लिए पर्याप्त मात्रा में पानी उपलब्ध कराना । 1972 से चलाये जा रहे त्वरित ग्रामीण जल आपूर्ति कार्यक्रम पर अमल के साथ-साथ उनके लिए जल आपूर्ति प्रणाली की सक्षम व्यवस्था तैयार की जानी चाहिए ।

 

ग्रामीण जल आपूर्ति कार्यक्रम की निगरानी

       ग्रामीण जल आपूर्ति कार्यक्रम के संबंध मे सभी तरह की जानकारी ऑन लाइन उपलब्ध है । इसके लिए इंटीग्रेटेड मैनेजमेंट इन्फार्मेशन सिस्टम पर सार्वजनिक उपयोग की हर संभव सहायता उपलब्ध है ।

 

पेयजल कार्यक्रम को पंचायतों को सौंपने के मामले में प्रोत्साहन

       एनआरडीडब्ल्यूपी कार्यक्रम के तहत कोष आबंटन के लिए संशोधित तरीका लागू किया गया है और ग्रामीण जनसंख्या प्रबंधन तथा ग्रामीण पेयजल आपूर्ति कार्यक्रम जैसी स्कीमों के तहत जल आपूर्ति कार्यक्रमों को लागू रखने पर जोर दिया जाता है ।

 

       पानी की गुणवत्ता जांच के लिए तहसील (सब डिवीजन) स्तर पर सहयोग की व्यवस्था की जा रही है जहां भूमिगत जल की रासायिनक जांच कराई जाती है । जिन इलाकों मे पानी में शंखिया और पऊलोराइड आदि मिले रहते हैं, वहां के पानी की जांच करने की सुविधा उपलब्ध कराई जाती है ताकि लोगों को स्वच्छ जल उपलब्ध हो सके ।

 

साम्प्रदायिकता से कम खतरनाक नहीं है भ्रष्टाचार का दानव

साम्प्रदायिकता से कम खतरनाक नहीं है भ्रष्टाचार का दानव

तनवीर जांफरी

email:   tanveerjafri1@gmail.com   tanveerjafri58@gmail.com tanveerjafriamb@gmail.com  163011, महावीर नगर,  अम्बाला शहर। हरियाणा ,  फोन : 0171-2535628 ,   मो: 098962-19228

 

विश्‍व के सबसे बड़े र्ध्‍म निरपेश लोकतंत्र इस भारत देश में कई मानव निर्मित समस्याएं ऐसी हैं जो इस देश के विकास के लिए बाधा साबित हो रही हैं। इनमें जहां साम्प्रदायिक शक्तियों का विस्तार इस देश की एक अहम समस्या है, वहीं भारतवर्ष में लगभग सभी क्षेत्रों में फैला भ्रष्टाचार भी साम्प्रदायिकता से कम खतरनाक नहीं है। हम भारतवासी केवल इस बात के लिए ंखुदा के शुक्रगुंजार हो सकते हैं कि सम्भवत: अब तक इस देश के प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति तथा भारत के मुख्य न्यायाधीश व लोकसभा अध्यक्ष जैसे पदों पर ऐसे कोई व्यक्ति विराजमान नहीं हुए जिनपर भ्रष्टाचार के आरोप लगे हों। अन्यथा भ्रष्टाचार के प्रसार तथा विस्तार की सीमाओं को तो शायद आंका ही नहीं जा सकता।

              हमारा देश भारतीय संसद में उच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश के विरुद्ध महाभियोग चलते देख चुका है। हमने एक राज्यपाल के विमान की दुर्घटना के समय आसमान से भारतीय मुद्रा की बरसात होते देखी है। भारतीय मीडिया स्टिंग ऑप्रेशन के द्वारा केंद्रीय मंत्रियों, राष्ट्रीय राजनैतिक दल के अध्यक्ष एवं सांसदों को रिश्वत लेते हुए रंगे हाथों पकड़ चुका है। यहां प्रदेश के मुख्यमंत्रियों को भ्रष्टाचार में संलिप्त पाया जा चुका है। केंद्रीय मंत्री, अनेक राज्य मंत्री, सांसद, विधायक, अंफसरशाही से जुड़े लोग आदि सभी भ्रष्टाचार के आरोपी देखे जा सकते हैं। ऐसे में यह प्रश् उठना स्वाभाविक है कि पूर्व राष्ट्रपति डॉ ए पी जे अब्दुल कलाम तथा प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह जैसे देश के चंद ंजिम्मेदार लोगों द्वारा देश में फैले भ्रष्टाचार के विरुद्ध आवांज उठाने का आंखिर कुछ सकारात्मक परिणाम मिलेगा भी अथवा नहीं। भ्रष्टाचार की जड़ें इस देश में इतनी गहरी हो चुकी हैं कि कुछ सरकारी विभागों में तो इसे यथार्थ के रूप में स्वीकार कर लिया गया है। ऐसे विभागों में अब हालत यहां तक हो गई है कि रिश्वतंखोर व भ्रष्ट व्यक्ति ही योग्य अथवा 'कमाऊपूत' समझा जाता है, जबकि एक ईमानदार अधिकारी को सनकी अथवा पागल व्यक्ति की संज्ञा तक दे दी जाती है। कानपुर के भगवती प्रसाद दीक्षित का प्रकरण देश के लगभग सभी सुधी लोगों को पता है कि किस प्रकार भ्रष्टाचार में नीचे से लेकर ऊपर तक डूबे सरकारी तंत्र ने दीक्षित जैसे एक ईमानदार व कर्मठ इंजीनियर तथा भ्रष्टाचार के विरुद्ध सख्त से सख्त कदम उठाने की हिम्मत रखने वाले इस अधिकारी को मानसिक रोगी तथा पागल बना दिया। और आंखिकार भ्रष्टाचार के विरुद्ध संघर्ष करते-करते वह व्यक्ति इस संसार से ही चल बसा। इसके अतिरिक्त सत्येंद्र दूबे, के मंजूनाथन व मनोज गुप्ता जैसे और न जाने कितने ऐसे उदाहरण मिलेंगे जिन्हें भ्रष्टाचारियों ने अपने रास्ते का कांटा समझकर उनकी हत्या कर दी हो। निश्चित रूप से भ्रष्टाचारियों के हौसले केवल निम् स्तर पर भ्रष्टाचार फैलने मात्र से ही इतने नहीं बढ़ जाते कि बात हत्या या सीनांजोरी तक आ जाए। जब सिर से पैर तक पूरा का पूरा तंत्र ही भ्रष्टाचार में संलिप्त होता है, तभी भ्रष्टाचारियों के हौसले इस हद तक बढ़ पाते हैं।

              भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने पिछले दिनों केंद्रीय जांच ब्यूरो तथा देश के सभी राज्यों की भ्रष्टाचार निरोधक एजेंसियों के एक सम्मेलन में संभवत: देश के पहले प्रधानमंत्री के रूप में बड़ी गंभीरता से देश में फैले भ्रष्टाचार पर अपनी बेबाक टिप्पणी देते हुए यह स्वीकार किया कि देश में व्यापक तौर पर यह धारणा बनी हुई है कि छोटे-मोटे मामलों में तो ंफौरन कार्रवाई होती है परन्तु 'बड़ी मछलियां' संजा से बच जाती हैं। उन्होंने कहा कि देश के आम लोगों में फैली इस धारणा को बदलने की ंजरूरत है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने यह भी कहा कि उच्चस्तर पर जो भ्रष्टाचार फैला है, उस पर सख्ती के साथ नंजर रखनी होगी। उन्होंने कहा कि ऐसे सभी मामलों में प्राथमिकता के आधार पर प्रत्येक आरोपों की निष्पक्ष रहकर तेंजी से सही-सही जांच होनी चाहिए। प्रधानमंत्री के इस वक्तव्य के बाद देश के उन उच्चस्तरीय भ्रष्टाचारियों के चेहरों पर चिंता की लकीरें अवश्य खिंच गई हैं जो अपने पद का दुरुपयोग कर भ्रष्टाचार द्वारा धनार्जन करने तथा अपनी अगली नस्लों के वास्ते अकूत संपत्ति जुटाने में लगे रहते हैं।

              देश के आम नागरिकों ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के इस स्पष्टवादिता से भरे बयान को गंभीरता से लिया है तथा प्रधानमंत्री के इस वक्तव्य के बाद निश्चित रूप से अब जनता की निगाहें इस ओर जा टिकी हैं कि देखें अब प्रधानमंत्री की ओर से हरी झंडी मिलने के बाद भ्रष्टाचार निरोधक जाल में सबसे पहली बड़ी मछली कौन सी फंसती है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की सांफगोई तथा कुछ कर गुंजरने के उनके हौसले को लेकर इस देश में कोई बहस नहीं है। यह बात गत् लोकसभा चुनावों में उस समय और प्रमाणित हो गई जबकि देश के मतदाताओं ने उन शक्तियों को ही राजनैतिक परिदृश्य से मिटा दिया जो मात्र सत्ता हासिल करने के लिए मनमोहन सिंह को 'कमंजोर प्रधानमंत्री' साबित करने के प्रयास कर रहे थे। राजनैतिक हल्ंकों में उनके सिख समुदाय से जुड़े होने को लेकर तरह-तरह की बातें की जाती हैं। परन्तु स्वयं मनमोहन सिंह ने पिछले लोकसभा चुनावों के दौरान पंजाब के लुधियाना शहर में आयोजित एक विशाल जनसभा में सांफतौर पर यह कहा कि सर्वप्रथम मैं इस देश का प्रधानमंत्री हूं, उसके बाद मैं सिख हूं। उन्होंने यह भी कहा कि वे धर्म व राजनीति के मिश्रण के विरोधी हैं। जबकि उसी सभा में राहुल गांधी ने मनमोहन सिंह को भारत का गौरव बताया था।

              सत्तारूढ़ गठबंधन के सबसे बड़े दल की हैसियत रखने वाली कांग्रेस पार्टी ने पिछले चुनाव में देश की जनता को यह बताने की कोशिश की थी कि कांग्रेस का हाथ, आम आदमी के साथ है। निश्चित रूप से आज देश का आम आदमी इस नारे को क्रियान्वित होते हुए देखना चाहता है। और यदि देश का आम आदमी वास्तव में यह महसूस करता है कि सरकार उसके साथ खड़ी है तथा उसे न्याय मिल रहा है, तो वही आम जनता उस सरकार या राजनैतिक दल का साथ देने से भी परहेंज नहीं करती। इसका एक छोटा सा उदाहरण उत्तर प्रदेश में विगत् संसदीय चुनावों के दौरान देखा गया। उत्तर प्रदेश में उन 39 ंजिलों में कांग्रेस पार्टी का प्रदर्शन सबसे बेहतर रहा जहां देश के बेरोंजगारों को रोंजगार मुहैया कराने वाली योजना 'राष्ट्रीय रोंजगार गारंटी योजना' (नरेगा) प्रथम चरण में लागू हुई थी। जिन-जिन क्षेत्रों में बेरोंजगारों को इस स्कीम के तहत पूरी पारदर्शिता से रोंजगार मिला तथा वर्षों के बाद जिन लोगों ने दो वक्त क़ी रोटी खाई तथा रोंजी रोटी के लिए उन्हें परदेस जाने से निजात मिली, ऐसे लोगों ने कांग्रेस पार्टी की 'जय हो' की आवांज से अपनी आवांज मिला दी।

              दरअसल आज देश का आम आदमी सांफ सुथरा प्रशासनिक ढांचा, पादर्शी व्यवस्था तथा भ्रष्टाचार मुक्त वातावरण देखना चाहता है। और निश्चित रूप से यह तभी संभव है जबकि भ्रष्टाचारियों को संरक्षण प्रदान करने वाले शीर्ष पर बैठे लोगों में भ्रष्टाचार समाप्त हो। भारतवर्ष में समस्या इस बात की है कि चाहे वह जीवन रक्षक दवाईयों अथवा खाद्य सामग्री में मिलावट करने वाला व्यक्ति हो, चाहे आर्थिक अपराध करने वाला बड़े से बड़ा व्यक्ति, चाहे आर्थिक अपराध करने वाला बड़े से बड़ा मास्टर माइंड या फिर कोई गैंगस्टर, पेशेवर अपराधी अथवा किसी अन्य बड़ी से बड़ी अपराधिक प्रवृत्ति में संलिप्त कोई व्यक्ति। ऐसे दुष्चरित्र लोगों को यहां ंफौरन ही बड़े से बड़ा राजनैतिक संरक्षण मिल जाता है। और इस राजनैतिक संरक्षण के बाद मध्यम व निम् स्तर के अधिकारी अपने आप लाचार व मजबूर बन जाते हैं। ऐसे में इन चंद ईमानदार अधिकारियों के समक्ष दो ही उपाय बचते हैं कि या तो वे उस उच्च श्रेणी के राजनैतिक हस्तक्षेप का सामना करते हुए अपने निलंबन अथवा नौकरी से हाथ धोने तक की नौबत का सामना करें, ऐसे भ्रष्ट नेटवर्क का कोपभाजन बनें या फिर उनकी नाजायंज बातें मानकर ंखुद भी भ्रष्टाचार के नेटवर्क के भागीदार बनें या उसकी 'मुख्यधारा' में शामिल हो जाएं। आज हम चीन की बढ़ती हुई तांकत से प्राय: चिंतित दिखाई देते हैं। परन्तु उनकी शक्ति तथा शासनप्रणाली का मूलमंत्र हम नंजरअंदांज कर देते हैं। जनसंख्या नियंत्रण हेतु चीन सरकार द्वारा उठाए गए ंकदम से पूरी दुनिया वांकिंफ ही है। ठीक एक वर्ष पूर्व उसी चीन में दो ऐसे व्यक्तियों को फांसी की संजा दे दी गई थी जो जानलेवा नंकली दूध का नेटवर्क चलाते थे। परन्तु हमारे देश में न जाने कब से नंकली दूध, ंजहरीली सब्ंजियां, मिलावटी रसद सामग्रियां और यहां तक कि अब तो मिलावटी ंखून तक भारतीय बांजार में उपलब्ध होने के समाचार मिल रहे हैं। यंकीनन बाड़ ही खेतों को खा रही है। ऐसे में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की न केवल चिंताएं वाजिब व न्यायसंगत हैं बल्कि उनकी चिंताओं को कार्यरूप दिए जाने की भी तत्काल ंजरूरत है।

              आशा की जानी चाहिए कि डॉ मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री रहते हुए देश के उच्च पदों पर बैठे ईमानदार अधिकारियों के हौसले बुलंद होंगे तथा देश के विकास का एवं आम आदमी को न्याय देने का हौसला रखने वाले अधिकारी बड़ी मछलियों को यथाशीघ्र अपने भ्रष्टाचार निरोधक जाल में फंसाएंगे। शायद तभी आम लोग इस सरकार की 'जय हो' कर सकेंगे।                                           

  तनवीर जांफरी

 

सोमवार, 14 सितंबर 2009

मुरैना के बटेश्वर मंदिरों का संरक्षण , व्याख्यानमाला में जुटे पुरातत्वविद्

मुरैना के बटेश्वर मंदिरों का संरक्षण , व्याख्यानमाला में जुटे पुरातत्वविद्

 

Bhopal:Monday, September 14, 2009

 

राजधानी में बटेश्वर मंदिरों के संरक्षण पर आयोजित व्याख्यानमाला में आज कई पुरातत्वविद् और विषय विशेषज्ञ जुटे। ग्वालियर से कोई 50 किलोमीटर दूर चंबल घाटी में मुरैना के एक स्थान पर इन 200 मंदिरों के अवशेष बिखरे पड़े हैं। इन्हें संरक्षित करने का बीड़ा पुरातत्व विभाग ने उठाया है। इसी परिप्रेक्ष्य में यह आयोजन किया गया था।

इस मौके पर अधीक्षण पुरातत्वविद् भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण दिल्ली मंडल डॉ. के.के. मोहम्मद ने बताया कि मुरैना के बटेश्वर के 200 मंदिरों में से फिलहाल 70 मंदिरों के संरक्षण का काम हाथ में लिया गया है। ये मंदिर अभी भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अधीन हैं। इस काम को पूरी पारदर्शिता और तत्परता से किया जा रहा है। डॉ. के.के. मोहम्मद पूर्व में भोपाल मंडल के अधीक्षण पुरातत्वविद् भी रह चुके हैं। उन्होंने कहा कि जंगल में बिखरे इन मंदिरों को उनके मूल स्वरूप में लाकर पुरातत्वीय इतिहास की कड़ी में एक नया अध्याय जोड़ा जाएगा।

इस मौके पर क्षेत्रीय निदेशक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण भोपाल डॉ. एस.वी.ओटा, अधीक्षण पुरातत्वविद् श्री एन. ताहीर, उप संचालक अभिषेक कुमार, डा. गीता सभरवाल, उप संचालक प्रशासन डॉ. वी.पी नागपच, पुरातत्व विभाग के अतिरिक्त डॉ. नारायण व्यास एवं पुरातत्व विषय से संबंधित विद्धजन इस व्याख्यान को सुनने के लिए उपस्थित थे।