मंगलवार, 2 दिसंबर 2008

वैश्विक प्रयासों से ही संभव है आतंकवाद से छुटकारा

वैश्विक प्रयासों से ही संभव है आतंकवाद से छुटकारा

तनवीर जांफरी   (सदस्य, हरियाणा साहित्य अकादमी, शासी परिषद) email:   anveerjafri1@gmail.com tanveerjafri58@gmail.com  tanveerjafriamb@gmail.com  22402, नाहन हाऊस अम्बाला शहर हरियाणा

       भारत की आर्थिक राजधानी के रूप में देखा जाने वाला मुंबई महानगर जुलाई 2006 में हुए सिलसिलेवार ट्रेन धमाकों को अभी पूरी तरह भुला भी नहीं पाया था कि गत् 26 नवम्बर की रात एक बार फिर इस ऐतिहासिक महानगर को आतंकवादियों ने दहला कर रख दिया। परन्तु इस बार मुंबई पर आतंकवादियों द्वारा किया गया यह हमला भारत में अब तक हुए आतंकवादी हमलों में सबसे बड़ा, सबसे ंखतरनाक, सबसे अधिक सुनियोजित तथा बहुउद्देशीय आक्रमण था। हमलावरों द्वारा 26 नवम्बर की इस घटना को अंजाम देने के पीछे केवल लोगों को जानमाल की क्षति पहुंचाना ही नहीं था बल्कि उनका मंकसद पूरी दुनिया को यह संदेश देना भी था कि दुनिया का कोई भी अतिसुरक्षित समझा जाने वाला स्थान भी उनके निशाने से बच नहीं सकता। और यह भी कि पर्यटक कहीं भी रहें, वे आतंकियों के निशाने से बच नहीं सकते। इसके अतिरिक्त भारतीय पर्यटन को प्रभावित कर हमारे देश की अर्थव्यवस्था को कमंजोर करने का भी आतंकवादियों द्वारा प्रयास किया गया है। इन सबसे अलग यदि इस बार हमलावरों द्वारा उनके निशाने पर लिए गए स्थलों पर नंजर डालें तो हमें लगेगा कि मानवता के इन दुश्मनों ने इस आक्रमण के द्वारा भारतीय विरासत को नष्ट करने एवं देश के स्वाभिमान को ललकारने का भी दुस्साहस किया है।

              आतंकवादियों द्वारा 26 नवम्बर की रात लगभग पौने दस बजे सर्वप्रथम कैंफे लियोपोल्ड से आतंकी हमले की शुरुआत की गई। 1871 में स्थापित किए गए इस कैंफे में आमतौर से विदेशी नागरिक एवं सैलानी आते रहते हैं। यह पुरानी मुंबई का एक अत्यन्त लोकप्रिय रेस्तरां है। इसके पश्चात आतंकियों द्वारा बॉम्बे वी टी के नाम से तथा अब छत्रपति शिवाजी टर्मिनल के नाम से मशहूर मुंबई के सबसे व्यस्त रेलवे स्टेशन को अपना निशाना बनाते हुए वहां यात्रियों की भीड़ पर धुंआधार गोलियां चलाई तथा हथगोले फेंके। इस रेलवे स्टेशन का निर्माण 1878 में किया गया था। अपनी स्थाप्तय कला के लिए विश्वप्रसिद्ध देश के इस सबसे व्यस्त रेल टर्मिनल को 2004 में युनेस्को द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय विरासत घोषित किया गया था। इसी प्रकार मुंबई में अरब सागर के तट पर बने 105 वर्ष पुराने ताज महल पैलेस होटल को भी आतंकियों ने अपनी बुरी नंजर का शिकार बनाया। ताज होटल, गेटवे ऑंफ इंडिया के समीप स्थित है। यहां से समुद्र का दृश्य स्पष्ट दिखाई देता है। इसी प्रकार मुंबई के एक अन्य लोकप्रिय होटल ओबेरॉय (अब ट्राइडेन्ट) पर भी आतंकियों ने धावा बोला। इसके अतिरिक्त कामा एण्ड एलेबेलस हॉस्पिटल तथा नरीमन हाऊस जैसी प्राचीन इमारतों को भी आतंकियों ने अपना निशाना बनाया। कामा हॉस्पिटल का निर्माण 1880 में एक अमीर व्यापारी द्वारा कराया गया था। जबकि नरीमन हाऊस यहूदियों का एक ऐसा प्रमुख केंद्र है जहां कि यहूदी पर्यटक भी ठहरा करते थे। इस भवन में यहूदी धर्म ग्रन्थों का एक विशाल पुस्तकालय तथा इनका आराधना स्थल भी है।

              आतंकवादियों द्वारा होटल ताज, होटल ओबेरॉय तथा नरीमन हाऊस जैसे ऐतिहासिक एवं आलीशान भवनों पर ंकब्ंजा जमा लिया गया था तथा तीनों स्थानों पर सैकड़ों लोगों को बंधक बना लिया गया था। देश के इस सबसे बड़े आतंकवादी हमले में 200 से अधिक लोगों के मारे जाने का समाचार है जबकि इसमें लगभग 400 व्यक्ति घायल भी हुए हैं। इस आतंकी हमले को विफल करने के लिए भारतीय सुरक्षा बलों द्वारा अपनी पूरी तांकत झोंक दी गई थी। महाराष्ट्र पुलिस के अतिरिक्त आतंकवादी निरोधक दस्ता (ए टी एस), राष्ट्रीय सुरक्षा गॉर्ड्स (एन एस जी), भारतीय सेना तथा भारतीय जल सेना के विशेष प्रशिक्षित कमांडो ने ऑप्रेशन ब्लैक टॉर्नेडो नामक इस आतंक विरोधी अभियान में भाग लिया। तीन दिन लगातार आतंकवादियों के साथ चली इस मुठभेड़ में आतंकवादियों के हौसलों तथा उनकी तैयारी का अंदांजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इस पूरे ऑप्रेशन के दौरान जहां कई सुरक्षाकर्मी व कमांडो आतंकियों की गोली से शहीद हुए, वहीं देश के 4 होनहार उच्च सुरक्षा अधिकारी भी इस ऑप्रेशन में शहीद हो गए। शहीद होने वाले अधिकारियों में सर्वप्रमुख नाम ए टी एस के प्रमुख हेमंत करकरे का था। इसमें कोई संदेह नहीं कि जिस प्रकार 911 का अमेरिका में हुआ आतंकी हमला विश्व का अब तक का सबसे बड़ा व सुनियोजित आतंकी षडयंत्र था, ठीक उसी प्रकार 26 नवम्बर को मुंबई में हुआ आतंकी आक्रमण देश का अब तक का सबसे बड़ा व ंखतरनाक आतंकवादी हमला था।    

                               बेशक अमेरिका को लगभग सभी क्षेत्रों में विश्व का एक अग्रणी, आधुनिक व शक्तिशाली राष्ट्र माना जाता है। नि:सन्देह 911 के बाद भले ही अमेरिका में कोई बड़ी आतंकवादी घटना न घटित हो पाई हो। परन्तु इसमें भी कोई शक नहीं कि अमेरिका जैसा देश भी 911 जैसे अकल्पनीय आतंकी षडयंत्र को टाल नहीं सका। भारत में भी जहां अनेकों धर्मस्थलों, बांजारों तथा अन्य प्रमुख प्रतिष्ठानों को आतंकी निशाना बनने से नहीं रोका जा सका, वहीं संसद भवन जैसा अतिसुरक्षित भवन भी आतंकियों की चपेट में आने से नहीं बच पाया। इसी प्रकार पाकिस्तान में जहां बेनंजीर भुट्टो को पूर्व चेतावनी देकर आतंकवादियों ने शहीद कर दिया, वहीं पाकिस्तान के अति सुरक्षित होटल मैरियट को भी अभी कुछ ही समय पूर्व आतंकवादियों ने अपना निशाना बनाया। यहां तक कि लंदन की अति सुरक्षित भूमिगत रेल सेवा को भी यह आतंकी अपनी निशाने पर ले चुके हैं। फ्रांस तथा स्पेन में भी मानवता के दुश्मन यही आतंकी ंखूनी खेल खेल चुके हैं। कहना ंगलत नहीं होगा कि भारत व पाकिस्तान में आतंकवादी हमले तो अब दिनचर्या में शामिल होने वाले घटनाक्रम जैसे प्रतीत होने लगे हैं।

              सवाल यह है कि गत् एक दशक से विभिन्न देशों में हो रहे इन आतंकी आक्रमणों का आंखिर कोई समाधान सम्भव भी है या नहीं? 911, भारतीय संसद पर हमला तथा तांजातरीन 26 नवम्बर की मुंबई की घटना आदि हादसे क्या हमें यह सोचने के लिए मजबूर नहीं करते कि अब शायद दुनिया की कोई भी जगह आतंकवादियों की पहुंच से बाहर नहीं रहीं? मानवता के यह दुश्मन क्या अपनी मंर्जी के मुताबिक तथा अपनी योजना के अनुसार जब चाहें, जहां चाहें और जैसे चाहें किसी भी बेगुनाह इंसान के जीवन से खिलवाड़ करने के लिए पूरी तरह स्वतंत्र हैं? क्या देश और दुनिया की राजनीति करने वाले राजनेताओं के पास ऐसे कोई उपाय नहीं कि वे आतंकवाद जैसे नासूर से आम लोगों को मुक्ति दिलवा सकें। परन्तु आतंकवादी समस्या से निपटने के गंभीर एवं पारदर्शी वैश्विक स्तर के प्रयासों की बात तो दूर, यहां तो ऐसी घटना के घटित होते ही राजनैतिक लोग इन घटनाओं में भी अपने राजनैतिक नंफे नुक्सान की संभावनाएं तलाशने लग जाते हैं। बिना समय गंवाए राजनेता बेगुनाहों की लाशों पर राजनीति करना शुरु कर देते हैं। कभी भारत में ही कोई राजनैतिक दल किसी दूसरे राजनैतिक दल को आतंकी घटना का ंजिम्मेदार ठहराने लगता है। और कभी भारत व पाकिस्तान जैसे पड़ोसी देश एक दूसरे को संदेह की निगाह से देखने लग जाते हैं। ंजाहिर है आरोपों-प्रत्यारोपों तथा आतंकवाद पर राजनीति किए जाने के परिणामस्वरूप भले ही राजनैतिक दल सनसनी या नंफरत फैलाकर इन घटनाओं का क्षणिक रूप से कुछ लाभ क्यों न उठा लें परन्तु निश्चित रूप से इन विरोधाभासों से आतंकवादियों के हौसले बुलंद होते हैं तथा किसी एक देश में एक बड़े आतंकी हमले को अंजाम देने के बाद यही आतंकवाद किसी अन्य देश में दूसरे बड़े हमले की योजना बनाने में व्यस्त हो जाते हैं।

              ऐसे में ंजरूरत है ऐसे पारदर्शी, सकारात्मक, ठोस तथा रचनात्मक अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के उन उपायों की जोकि आतंकवाद, आतंकवादियों, उनके ठिकानों तथा उनकी मदद करने वाले सभी स्रोतों यहां तक कि आतंकवादियों को मानसिक रूप से तैयार करने वाले तथाकथित वैचारिक स्रोतों को भी जड़ से नष्ट कर सकें। नि:सन्देह पाकिस्तान इस समय स्वयं आतंकवाद की बड़ी चुनौती का सामना कर रहा है। वहां आतंकवादी घटनाएं तो आम सी बात बनकर रह गई है। परन्तु इसमें भी कोई शक नहीं कि आतंकवादियों के सबसे अधिक व सबसे संगीन ठिकाने व प्रशिक्षण शिविर भी पाकिस्तान में ही हैं। ऐसा नहीं है कि पाकिस्तान में प्रशिक्षित आतंकवादी केवल भारत के ही हितों को नुंकसान पहुंचाएगा। मानवता का दुश्मन बन चुका यह आतंकी जहां भी जाएगा, समूची मानवता को आहत करेगा। चाहे वह अमेरिका में किसी घटना को अंजाम देने के षडयंत्र में शामिल हो, पाकिस्तान में या फिर भारत में।

              अत: यदि आतंकवाद जैसे नासूर का समूल नाश करना है तो समस्त आतंकवाद प्रभावित देशों को संगठित होकर इन मुट्ठी भर इंसानी दुश्मनों के विरुद्ध पूरी पारदर्शिता के साथ तथा बिना किसी धर्म-जाति व देश का लिहांज किए सांझी, कारगर व उपयोगी एक ऐसी रणनीति बनानी होगी जिससे कि इनका पूरी तरह से संफाया किया जा सके। इतिहास में ऐसे एक नहीं अनेकों प्रमाण हैं कि यदि किसी देश ने अथवा किसी संगठन ने अपने राजनैतिक लाभ के मद्देनंजर आतंकवाद को प्रोत्साहन दिया है तो आने वाले समय में उसी संगठन अथवा उसी देश को उसी के द्वारा सींचे गए आतंकवाद ने ही गहरी चोट भी पहुंचाई। अत: किसी भी देश, संगठन अथवा विचारधारा को यह बात पूरी तरह से अपने दिमांग से निकाल देनी चाहिए उनकी द्वारा सींची जाने वाली तथा प्रोत्साहित की जाने वाली आतंकवाद रूपी बेल केवल पड़ोसियों को ही जकड़ेगी, स्वयं उन्हें नहीं। ऐसा हरगिंज नहीं है। यदि कोई ऐसा सोचता है तो यह महंज उसकी ंगलतंफहमी है। प्रार्थना की जानी चाहिए कि 26 नवम्बर जैसे भयावह हादसे की पुनरावृत्ति भारत ही क्या दुनिया में कहीं भी नहीं हो। परन्तु अपनी इन प्रार्थनाओं को साकार करने हेतु निश्चित रूप से आज ंजरूरत है मात्र आतंकवाद का विरोध किए जाने के एक विश्वस्तरीय संकल्प की एवं ऐसे विश्वस्तरीय पारदर्शी प्रयासों की जोकि हमें तथा समूची मानवता को इस वर्तमान वैश्विक आतंकवाद से निजात दिलवा सकें।

कोई टिप्पणी नहीं: