आतंकवाद के दुष्परिणामों को समझने की कोशिश करे पाकिस्तान
तनवीर जांफरी (सदस्य, हरियाणा साहित्य अकादमी, शासी परिषद)
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दक्षिण एशिया के परमाणु हथियार सम्पन्न दो प्रमुख राष्ट्र भारत व पाकिस्तान जहां कभी दक्षिण एशिया सहयोग संगठन (सार्क) देशों के वार्षिक सम्मेलनों के माध्यम से परस्पर सहयोग बढ़ाने की दिशा में सक्रिय नंजर आते हैं, दुर्भाग्यवश वहीं इन्हीं दो देशों के बीच अक्सर आस्तीनें चढ़ी हुई भी दिखाई दे जाती हैं। दोनों देशों की आम जनता हालांकि ंकतई तौर पर आपसी तनाव के पक्ष में नहीं है। पत्रकार, साहित्यकार, खेल जगत से जुड़े लोग, ंफिल्म व संगीत क्षेत्र के लोग, व्यापार तथा उद्योग जगत से संबंध रखने वाले तथा विशेषकर वे साधारण लोग जिनकी रिश्तेदारियां सीमा के आर-पार हैं, वे तो हरगिंज नहीं चाहते कि भारत व पाकिस्तान के बीच किसी भी प्रकार का तनाव पैदा हो। वास्तविकता तो यह है कि न सिंर्फ दोनों ही देश के राजनेताओं में बल्कि आम लोगों में भी एक बहुत बड़ा वर्ग ऐसा है जो दोनों देशों के बीच सीमा रेखा, वींजा तथा पासपोर्ट जैसे बंधनों को भी समाप्त किए जाने का पक्षधर है। फिर आंखिर क्योंकर दोनों देशों की सेनाएं देखते ही देखते एक-दूसरे से दो-दो हाथ करने के मूड में दिखाई देने लग जाती हैं।
दुनिया जानती है यहां तक कि पाकिस्तान भी भली-भांति उस दौर से वांकिंफ है जबकि दोनों देशों के बीच के सामान्य वातावरण में पाकिस्तान की ओर से की गई घुसपैठ ने 1999 में विघ् पैदा करते हुए युद्ध जैसा माहौल पैदा कर दिया था। परिणामस्वरूप दोनों ओर से अनेकों सैनिक व घुसपैठिए मारे गए थे। कारगिल क्षेत्र में पाकिस्तान की ओर से की गई उस घुसपैठ की आंखिर पाक शासकों द्वारा ंजरूरत क्यों महसूस की गई? ठीक इसी प्रकार 13 दिसम्बर 2001 को भारतीय संसद पर हुए आतंकवादी हमले में पाकिस्तान से सम्बद्ध कई आतंकी मारे गए। देश की संसद पर हुए इस हमले ने भारत के स्वाभिमान को हिलाकर रख दिया था। उस समय फिर भारतीय सेनाएं अपनी बैरकों से बाहर निकलकर सीमा की ओर कूच कर गईं थीं। परन्तु दोनों देशों की सूझबूझ तथा अन्तर्राष्ट्रीय दंखलअंदांजी के परिणामस्वरूप भारत ने फिर सहनशीलता का परिचय देते हुए अपने सैनिकों को बैरकों में वापस बुला लिया। अब एक बार फिर इन्हीं दोनों देशों के बीच वैसे ही तनावपूर्ण माहौल बन रहे हैं। इस बार पैदा होने वाले तनाव का कारण है इसी वर्ष 26 नवम्बर को महानगर मुम्बई के कुछ अति प्रमुख स्थलों पर पाकिस्तानी आतंकवादियों द्वारा आक्रमण किया जाना। इस बार भारतीय सुरक्षा एजेन्सियों द्वारा मुम्बई कांड में जहां नौ आतंकवादियों को मार गिराया गया वहीं मोहम्मद अजमल आमिर ंकसाब नामक एक युवा आतंकी को जीवित गिरंफ्तार भी कर लिया गया है। गिरंफ्तार आतंकी पूछताछ के दौरान भारतीय सुरक्षा एजेन्सियों को पाकिस्तान में चल रहे आतंकवादी शिविरों के संबंध में तथा अपने प्रशिक्षण के विषय में जो जानकारियां दे रहा है, वह भारत के लिए कोई चौंकाने वाले तथ्य ंकतई नहीं हैं। क्योंकि भारत गत् दो दशकों से यह कहता रहा है कि पाकिस्तान में धर्म के नाम पर खुलेआम आतंक की व नंफरत की पाठशालाएं व प्रशिक्षण केंद्र चलाए जा रहे हैं। परन्तु पाकिस्तान भारत की हर बात को संदेह की नंजरों से देखता रहा है। पाकिस्तान के शासकों ने भारत की बात या सलाह मानने के बजाए अपनी ंजमीन पर पनपने वाले आतंकी प्रशिक्षण शिविरों तथा विश्वस्तर पर ंगैर मुस्लिमों से की जाने वाली नंफरत की पाठशालाओं पर हमेशा पर्दा डालने का ही काम किया है।
कहने को तो तालिबानों ने अंफंगानिस्तान पर राज किया था। परन्तु वास्तव में उन्हें पाकिस्तान से ही उर्जा प्राप्त होती थी। इस बात से क्या पाकिस्तान इंकार कर सकता है कि अंफंगानिस्तान की तालिबानी सरकार को मान्यता देने वाला देश पाकिस्तान ही था? 911 के बाद अमेरिकी नेतृत्व में अंफंगानिस्तान पर हुए नाटो आक्रमण के दौरान भी क्या तालिबानी प्रवक्ता पाकिस्तान में बैठकर अपना पक्ष नहीं रखा करता था? आज वही तालिबान पाकिस्तान में तहरीक-ए-तालिबान के नाम से जिस स्तर पर सक्रिय है तथा जिस पैमाने की हिंसक व विध्वंसक कार्रवाईयों को वह अंजाम दे रहा है क्या पाकिस्तानी शासकों द्वारा अब उन्हें नियंत्रित किया जा सकेगा? पाक शासकों द्वारा आतंकवाद को सींचने, वहां की आतंकवादी गतिविधियों पर पर्दा डालने, उसे छुपाने तथा आतंकवाद को लेकर दुनिया के सामने झूठ बोलने का ही परिणाम है कि बेनंजीर भुट्टो जैसी नेता को पाकिस्तान ने खो दिया। राष्ट्रपति मुशर्रंफ इन्हीं आतंकवादियों के हमलों से दो बार बाल-बाल बचे। नवांज शरींफ भी भाग्यशाली रहे जो आतंकी हमले से बच गए। मैरियट होटल को इतने बड़े आत्मघाती हमले का शिकार बना दिया गया। यह तथा ऐसी कई आतंकी कार्रवाईयां इस हद तक केवल इसलिए पहुंची क्योंकि पाक शासकों ने वहां पनपने वाली आतंकवादी गतिविधियों का डटकर मुंकाबला करने के बजाए उनपर पर्दा डालने का प्रयास किया।
एक बार फिर पाकिस्तानी शासकों द्वारा वैसी ही भूल दोहराए जाने की कोशिश की जा रही है। भारत में 26 नवम्बर को हुए इतने बड़े आतंकवादी हमले के बावजूद तथा गिरंफ्तार आतंकवादी द्वारा स्वयं को पाकिस्तानी नागरिक होने व आतंकी शिविरों संबंधी अनेकों महत्वपूर्ण जानकारियां दिए जाने के बावजूद अब भी पाकिस्तानी शासन की ओर से भारत द्वारा पर्याप्त सुबूत न जुटाए जाने की बात कही जा रही है। पाकिस्तानी सुरक्षा एजेन्सियों तथा पाक शासन के ंजिम्मेदार लोगों द्वारा भारत में गिरंफ्तार आतंकी अजमल ंकसाब की पाक नागरिकता पर ही शक किया जा रहा था। परन्तु अब तो पाक में रह रहे उसके पिता अमीर ंकसाब ने तो स्वयं भारत में गिरंफ्तार अपने पुत्र की शिनाख्त कर यह स्वीकार कर लिया है कि अजमल ंकसाब उसी का बेटा है। अब आंखिर इससे बढ़कर सुबूत और क्या हो सकता है।
भारत-पकिस्तान के मध्य उपजे वर्तमान तनावपूर्ण वातावरण में एक ओर दुर्भाग्यपूर्ण बात यह हो रही है कि पाक शासकों की तरह ही पाक मीडिया का भी एक ंखास वर्ग सच्चाई को स्वीकार करने के बजाए घटिया तर्कों द्वारा अपनी आतंकवाद रूपी बुराई पर पर्दा डालने तथा दुनिया को गुमराह करने का प्रयास कर रहा है। पिछले दिनों पाकिस्तान के एक प्रमुख समाचार पत्र में एक पाकिस्तानी स्तम्भकार के एक लेख में आतंकवादी अजमल ंकसाब की ंफोटो प्रकाशित की गई। उस ंफोटो में ंकसाब को अपने बाएं हाथ में हथियार लिए तथा दाहिना हाथ सामने की ओर उठाकर इशारा करते दिखाया गया है। सी एस टी टर्मिनल मुम्बई पर सी सी टी वी द्वारा ली गई इसी ंफोटो को आमतौर पर पूरी दुनिया में देखा जा रहा है। पाकिस्तान के स्तम्भ लेखक ने बड़ी बारीकी से उस ंफोटो का अध्ययन करने के बाद यह पाया है कि अजमल ंकसाब की दाहिनी कलई पर मोटा धागा (मौली) बंधा हुआ है। लेखक महोदय ने तर्क पेश किया है कि इस प्रकार के धागे हिन्दु समुदाय द्वारा अपनी कलाईयों पर बांधे जाते हैं। अत: अजमल हिन्दू समुदाय से संबद्ध आतंकी हो सकता है। पाक पत्रकार के इस तर्क का अब क्या जवाब दिया जाए जबकि उस आतंकी का पिता स्वयं उसे अपना पुत्र स्वीकार कर रहा हो। और दूसरी बात यह है कि इस प्रकार के धागे भारत ही नहीं बल्कि पाकिस्तान के मुस्लिम समुदाय के लोगों द्वारा भी पीरों ंफकीरों की दरगाहों से लेकर अपनी कलाईयों में बांधे जाते हैं। मुद्दई सुस्त और गवाह चुस्त की कहावत को चरितार्थ करने के बजाए पाक मीडिया को भी न्याय व सत्य की बात करनी चाहिए।
पाकिस्तान के कुछ ंजिम्मेदार पत्रकारों द्वारा भारत में हुए समझौता एक्सप्रेस धमाके व मालेगांव बम ब्लास्ट जैसी घटनाओं का हवाला देते हुए यह भी कहा जा रहा है कि भारत में हमेशा जल्दबांजी में आरोप पकिस्तान पर मढ़ दिए जाते हैं। परन्तु पाकिस्तान मीडिया व सरकार को यह भी ध्यान रखना चाहिए कि भारत की सुरक्षा एजेन्सियों ने ही मालेगांव जैसे हादसे की जांच कर इस मामले में भी दूध का दूध और पानी का पानी करने की पूरी कोशिश अपने ही विवेक, ईमानदारी तथा कार्यकुशलता एवं निष्पक्षता के बल पर की है। हिन्दू समुदाय से संबंध रखने वाले आतंकवादी नेटवर्क का भंडाफोड़ भारत की सुरक्षा एजेन्सियों द्वारा किसी दूसरे देश के दबाव में आकर नहीं किया गया। न ही भारत के धर्म निरपेक्ष उदारवादी राजनैतिक संगठनों द्वारा इस हादसे को लेकर उनपर कोई दबाव था। हां पाक मीडिया के ंजिम्मेदार लोगों के इस तर्क से मैं ंजरूरत सहमत हूं कि दोनों देशों के राजनेता आपसी बातचीत में पारदर्शिता की कमी रखते हैं। इन्हें किसी सही सलाह या सुझाव के पीछे भी कोई छुपी रणनीति या चाल नंजर आती है। ंजाहिर है ऐसे अविश्वासपूर्ण वातावरण का ंफायदा आतंकवादी संगठन व इनके आंका तो उठाते ही हैं साथ-साथ तीसरे देशों को भी भारत-पाक के आपसी मामलों में दंखलअंदांजी करने का अवसर मिल जाता है।
वर्तमान पाक शासकों से लेकर पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेंज मुशर्रंफ तक को आज दुनिया से यह कहना पड़ रहा है कि दुनिया पाकिस्तान पर आतंकवादी होने का आरोप लगाने के बजाए उससे सहानुभूति बरते क्योंकि वह स्वयं आतंकवाद का शिकार है। पाक रक्षा मंत्री अहमद मुख्तार ने स्वयं यह स्वीकार किया कि यदि लश्कर-ए-तैयबा के राजनैतिक संगठन जमात-उद-दवा पर पाकिस्तान प्रतिबंध न लगाता तो पाकिस्तान को आतंकवादी राष्ट्र घोषित किया जा सकता था। यह हालात पाकिस्तान ही नहीं बल्कि भारत के लिए भी दु:ख और चिंता का विषय है। पाकिस्तान में आतंकवादी पनपने के कोई एक दो-चार नहीं बल्कि सैकड़ों जीते-जागते सुबूत हैं। परन्तु दुर्भाग्यवश पाक शासक अब भी इन हालात से ईमानदारी से जूझने के बजाए इन्हें झुठलाने की कोशिश कर रहे हैं। पाक आतंकी भारत की ही शांति को भंग नहीं कर रहे हैं बल्कि इन्होंने पूरी दुनिया को हिलाकर रख दिया है। लंदन की भूमिगत रेल यातायात पर 77 की घटना को अंजाम देने वाला आत्मघाती शहंजाद तनवीर पाक मदरसे में शिक्षित था। इस घटना में 52 बेगुनाह लोग मारे गए थे। शहंजाद तनवीर को पकिस्तान के कट्टरपंथी हल्ंकों में एक हीरो की तरह देखा जाता है। वॉल स्ट्रीट जनरल के दक्षिण एशिया ब्यूरो चींफ 38 वर्षीय डेनियल पर्ल का कराची में एक साक्षात्कार के लिए जाते समय अपहरण कर लिया गया तथा ंफरवरी 2002 में उसकी गर्दन शरीर से अलग कर दी गई। कराची में हुई इस ंखौंफनाक घटना में भी पाकिस्तानी मूल के ब्रिटिश नागरिक उमर सईद शेंख को फांसी दी गई।
इस प्रकार के एक नहीं अनेक उदाहरण तथा आतंकी व कट्टरपंथी संगठनों के भी एक नहीं बल्कि बीसियों नाम ऐसे हैं जो दुनिया को तो नुंकसान पहुंचा ही रहे हैं परन्तु सबसे पहले यह पाकिस्तान के लिए ही अहितकर साबित हो रहे हैं। अत: पाक शासकों को, पाक सेना को, यहां तक कि पाकिस्तान को अस्थिर करने का आरोप झेल रही आई एस आई को भी चाहिए कि वह आतंकवाद के दुष्परिणामों को समझने की कोशिश करे। पाकिस्तान स्वंय आतंकी नेटवर्क को जड़ से उखाड़ने के ऐसे ठोस व उपयोगी उपाय करे कि न तो भारत को उसके द्वारा आतंकवादियों के विरुद्ध की जाने वाली कार्रवाई को लेकर कोई संदेह उत्पन्न हो सके और न ही अमेरिका या किसी अन्य देश को इन दोनों पड़ोसी देशों के बीच दंखलअंदांजी करने का मौंका मिल सके। तनवीर जांफरी
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